नई दिल्ली : घरेलू बाजार में चावल की सप्लाई बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने चावल से आयात शुल्क हटाने का फैसला किया है। धान की फसल पर पहले सूखा और फिर बाढ़ की दोहरी मार पड़ने के कारण इस साल चावल उत्पादन में करीब 1।60 करोड़ टन तक कमी आने की आशंका है। घरेलू बाजार में चावल की किल्लत न हो, इसलिए सरकार ने सितंबर 2010 तक चावल आयात पर कोई शुल्क न वसूलने का फैसला किया है। केंद्रीयय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'यह अधिसूचित कर दिया गया है कि सितंबर 2010 तक चावल से आयात शुल्क (70 फीसदी) हटा दिया गया है।' एक कर विशेषज्ञ ने कहा कि आधे कूटे और पूरे कूटे (सेमी मिल्ड एंड होल मिल्ड) चावल से आयात शुल्क हटाया गया है। यह छूट पॉलिश और बिना पॉलिश, दोनों तरह के चावल पर लागू है।
सूत्रों ने बताया कि पिछले माह आयोजित एक बैठक में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में खाद्य मामलों पर गठित मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह (ईजीओएम) ने चावल से आयात शुल्क हटाने की सिफारिश की थी। मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपायों के तहत सरकार ने 20 मार्च 2008 से 31 मार्च 2009 के बीच चावल के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी थी। हालांकि, 1 अप्रैल से आयात शुल्क को दोबारा लागू कर दिया गया था। सरकार ने चावल से आयात शुल्क हटाने का फैसला ऐसे वक्त में किया है, जब देश का आधा हिस्सा सूखे की चपेट है तो दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बाढ़ का कहर बरपा है। इन इलाकों में मुख्य रूप से चावल की खेती होती है। धान की पैदावार को नुकसान पहुंचने के बाद पिछले चार महीनों में चावल की कीमतें 25 फीसदी बढ़ चुकी हैं। इससे पहले मुखर्जी ने कहा था कि सूखे और बाढ़ के कारण इस साल चावल उत्पादन में 1।60 करोड़ टन की गिरावट आ सकती है। 2008-09 में भारत में 9.91 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था। (ई टी हिन्दी)
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