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31 मार्च 2019

नौ राज्यों से पीएम-आशा के तहत 43.89 लाख टन तिलहन-दलहन खरीदेगी सरकार

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने किसानों से दलहन, तिलहन की खरीद के लिए सितंबर 2018 में प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना शुरू की थी। चालू रबी सीजन 2018-19 में इस योजना के तहत केवल 9 राज्यों से ही दलहन एवं तिलहन की खरीद की अनुमति केंद्र सरकार ने दी है, अत: देश के बाकि 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के किसान इस योजना से वंचित रहेंगे। इन 9 राज्यों से भी दलहन-तिलहन के कुल उत्पादन का 24 फीसदी ही खरीद का लक्ष्य तय गया है, ऐसे में सवाल यह है कि इससे कितने किसानों को अपनी फसल का समर्थन मूल्य मिल पायेगा?
किसान उत्पादक मंडियों में चना समर्थन मूल्य से 800-900 रुपये, सरसों 600 से 700 रुपये और मसूर 500 से 700 रुपये प्रति क्विंटल नीचे भाव पर बेचने को मजबूर हैं। राजस्थान की कोटा मंडी के व्यापारी भानू जैन ने बताया कि मंडी में चना 3,700 से 3,800 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है जबकि केंद्र सरकार ने चना का समर्थन मूल्य 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। मध्य प्रदेश की सतना मंडी में मसूर के भाव 3,650 से 3,800 रुपये प्रति क्विंटल रहे, जबकि मसूर का समर्थन मूल्य 4,475 रुपये प्रति क्विंटल हैं। भरतपुर मंडी के कारोबारी पुश्कर राज ने बताया कि मंडी में सरसों 3,400 से 3,500 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि सरसों का समर्थन मूल्य 4,200 रुपये प्रति क्विंटल है।
कुल 43.89 लाख टन खरीद का लक्ष्य
नेफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू रबी सीजन 2018-19 में दलहन और तिलहन की खरीद तेलंगाना, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र तथा हरियाणा से की जायेगी। उन्होंने बताया कि इन राज्यों से चना, सनफ्लावर, मूंगफली, मूंग, उड़द, मसूर और सरसों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 43,89,787 टन करने का लक्ष्य तय किया है जबकि इन राज्यों में इनका उत्पादन 183,02,373 टन होने का अनुमान है।
मध्य प्रदेश से मसूर और चना की खरीद होगी कम
पीएम-आशा योजना के तहत सरकार ने दलहन और तिलहन के कुल उत्पादन का 25 फीसदी तक खरीद करने का ऐलान किया था, जबकि चालू रबी में मध्य प्रदेश से मसूर की खरीद कुल उत्पादन की केवल 15 फीसदी और चना की खरीद 22 फीसदी ही करने का लक्ष्य तय किया है। राज्य में चालू रबी में 11,06,00 टन मसूर के उत्पादन का अनुमान है जबकि खरीद का लक्ष्य 1,69,750 टन का तय किया है। इसी तरह से चना के उत्पादन का अनुमान 52.17 लाख टन का है तथा खरीद का लक्ष्य केवल 11,48,750 टन का ही तय किया है। उधर तमिलनाडु से मूंग की खरीद का लक्ष्य कुल उत्पादन का 20 फीसदी ही तय किया है।
चना की खरीद का लक्ष्य पिछले साल से कम
उन्होंने बताया कि चालू रबी 2018-19 में समर्थन मूल्य पर 22,24,823 टन चना की खरीद का लक्ष्य तय किया गया है जबकि पिछले रबी सीजन में एमएसपी पर 27.24 लाख टन खरीदा था। मसूर की खरीद का लक्ष्य चालू रबी में 2,81,165 टन तथा 16.58 लाख टन सरसों की खरीद का लक्ष्य तय किया है। इसके अलावा रबी में 63 हजार टन मूंगफली तथा 43,228 टन मूंग और 1,28,815 टन उड़द की खरीद का लक्ष्य तय किया है।....... आर एस राणा

कॉफी की पांच भारतीय किस्मों को जीआई प्रमाणन

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय कॉफी की पांच किस्मों को भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रमाणन से सम्मानित किया गया है। इससे विश्‍व भर में भारतीय कॉफी की मौजूदगी बढ़ जायेगी और इसके साथ ही देश के कॉफी उत्‍पादकों को अपनी प्रीमियम कॉफी की अधिकतम कीमत प्राप्‍त करने में भी मदद मिलेगी।
कूर्ग अराबिका कॉफी, यह मुख्‍यत: कर्नाटक के कोडागू जिले में उगायी जाती है जबकि वायानाड रोबस्‍टा कॉफी, यह मुख्‍यत: वायानाड जिले में उगायी जाती है जो केरल के पूर्वी हिस्‍से में स्थित है। चिकमगलूर अराबिका कॉफी, यह विशेष रूप से चिकमगलूर जिले में उगायी जाती है साथ ही यह दक्‍कन के पठार में स्थित है जो कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र से वास्‍ता रखता है।
अराकू वैली अराबिका कॉफी, इसे आंध्र प्रदेश के विशाखापत्‍तनम जिले और ओडिशा क्षेत्र की पहाडियों से प्राप्‍त कॉफी के रूप में वर्णित किया जाता है जो 900-1100 माउंट एमएसएल की ऊंचाई पर स्थित है। जनजातियों द्वारा तैयार की जाने वाली अराकू कॉफी के लिए जैव अवधारणा अपनायी जाती है जिसके तहत जैविक खाद एवं हरित खाद का व्‍यापक उपयोग किया जाता है और जैव कीटनाशक प्रबंधन से जुड़े तौर-तरीके अपनाये जाते हैं।
बाबाबुदनगिरीज अराबिका कॉफी, यह भारत में कॉफी के उद्गम स्‍थल में उगायी जाती है और यह क्षेत्र चिकमंगलूर जिले के मध्‍य क्षेत्र में स्थित है। इसे हाथ से चुना जाता है। इसमें चॉकलेट सहित विशिष्‍ट फ्लैवर होता है। कॉफी की यह किस्‍म सुहावना मौसम में तैयार होती है। यही कारण है कि इसमें विशेष स्‍वाद और खुशबू होती है।
दुनिया में कॉफी की कुछ सर्वोत्‍तम किस्‍में भारत में
भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहां कॉफी की समूची खेती छाया वाले माहौल में की जाती है, इसे हाथ से चुना जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है। दुनिया में कॉफी की कुछ सर्वोत्‍तम किस्‍में भारत में ही उगायी जाती हैं, इन्‍हें पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों के जनजातीय किसानों द्वारा उगाया जाता है, जो विश्‍व में जैव विविधता वाले दो प्रमुख स्‍थल (हॉट स्‍पॉट) हैं। भारतीय कॉफी विश्‍व बाजार में अत्‍यंत ऊंची कीमतों पर बेची जाती है। यूरोप में तो इसकी बिक्री प्रीमियम कॉफी के रूप में होती है।
देशभर में 3.66 लाख कॉफी किसान
जीआई प्रमाणन से जो विशिष्‍ट मान्‍यता एवं संरक्षण मिलता है उससे भारत के कॉफी उत्‍पादक विशिष्‍ट क्षेत्रों में उगायी जाने वाली कॉफी की अनूठी खूबियों को बनाये रखने में आवश्‍यक खर्च करने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे। भारत में 3.66 लाख कॉफी किसानों द्वारा तकरीबन 4.54 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में कॉफी उगायी जाती है। इनमें से 98 प्रतिशत छोटे किसान हैं। कॉफी की खेती मुख्‍यत: भारत के दक्षिणी राज्‍यों में की जाती है।....... आर एस राणा

कई राज्यों में फिर मौसम खराब होने की आशंका, उत्तराखंड और पंजाब हल्की बारिश संभव

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार जम्मू-कश्मीर के उत्तरी भागों के ऊपर एक पश्चिमी विक्षोभ बना हुआ है जिससे आगामी 24 घंटों के दौरान जम्मू-कश्मीर के कई हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश के साथ एक दो स्थानों पर बर्फबारी होने के भी आसार हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों सहित हिमाचल प्रदेश उप हिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम के इलाकों में छिटपुट बारिश हो सकती है। जबकि उत्तराखंड, पंजाब, केरल और कर्नाटक के भी अलग-अलग हिस्सों में बारिश होने की उम्मीद है। दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित पूर्वी राजस्थान के कुछ हिस्सों में न्यूनतम तापमान में बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है।
उत्तर भारत के राज्यों में बढ़ा तापमान
बीते 24 घंटों के दौरान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के अलग-अलग भागों मे हल्की से मध्यम बारिश दर्ज की गयी। जम्मू-कश्मीर और उत्तरी कर्नाटक के आंतरिक हिस्सों में एक-दो स्थानों पर हल्की बारिश देखी गयी है। उत्तर पश्चिमी और मध्य भारत में दिन के तापमान में 2 से 3 डिग्री की बढ़त दर्ज की गई। राजस्थान के ज्यादातर हिस्सों में दिन का तापमान 40 डिग्री पहुंच गया जोकि इस सीजन में पहली बार इतना बढ़ा है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पूर्वी राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित उत्तर प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रो के न्यूनतम तापमान में 2-4 डिग्री की बढ़त दर्ज हुई है।
मानसूनी सीजन में अच्छी बारिश की उम्मीद
मौसम विभाग का कहना है कि इस साल अच्छी और जोरदार बारिश होने का अनुमान है। मौसम विभाग के मुताबिक, मॉनसून की चाल पर अल नीनो को कोई खतरा नहीं है। अल-नीनो की स्थिति न्यूट्रल है। मौसम विभाग ने अलनीनो को लेकर दुनिया भर की एजेंसियों की आशंकाओं को सिरे से खारिज कर दिया। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों की मौसम एजेंसियों समेत भारत की एक निजी एजेंसी ने भी मॉनसून की चाल पर अलनीनो के असर की आशंका जताई थी।
अल नीना का असर नहीं
आईएमडी के महानिदेशक के जे रमेश ने कहा है कि इस साल अच्छी बारिश हो सकती है। अल नीनो के खतरे पर उन्होंने कहा कि अभी तक किसी ने भी मजबूत अलीनो की बात नहीं की है। हाालंकि, फिलहाल मॉनसून के पैटर्न के बार में भी कुछ कहना जल्दबाजी ही है लेकिन अभी तक की स्थिति के अनुसार इस साल अच्छी बारिश होगी। आगे हालात बदल सकते हैं, इसलिए सही अनुमान का इंतजार करना होगा। भारतीय मौसम विभाग अप्रैल में मॉनसून का पहला अनुमान जारी करेगा।
96 से 104 फीसदी बारिश औसत मानसून
सामान्यत: औसत या फिर अच्छे मानसून का मतलब है कि लगभग 96 फीसदी से 104 फीसदी बारिश का हो। अच्छे मॉनसून की यह परिभाषा मौसम विभाग द्वारा दी गई है। वहीं, 90 फीसदी से कम बारिश देश में सूखे की स्थिति रहती है।
खरीफ के साथ रबी फसलों के लिए अच्छा मानूसन जरुरी
मानसूनी सीजन में अच्छी बारिश होने से खरीफ फसलों का उत्पादन तो अच्छा होता ही है, साथ ही रबी फसलों की बुवाई के लिए मानसूनी की बारिश अच्छी होना जरुरी है। पिछले मानसूनी सीजन में देश के गई राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा और बिहार में सामान्य से कम बारिश हुई थी जिस कारण इन राज्यों के कई जिलों में सूखे जैसे हालात बन गए थे।...........  आर एस राणा

लागत भी नहीं मिलने से आलू किसान हलकान

आर एस राणा
नई दिल्ली। चुनावी साल में आलू किसानों को अपनी फसल लागत से आधे दाम पर बेचनी पड़ रही है, जिससे किसानों में नाराजगी बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश की मंडियों में आलू 4 से 6 रुपये प्रति किलो बिक रहा है जबकि किसानों को लागत 8 से 9 रुपये किलो की आई है। आलू किसानों की नाराजगी लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकती है। 
उत्तर प्रदेश के मेरठ के आलू किसान अम्बूज शर्मा ने बताया कि महंगे डीजल, बीज और कीटनाशकों के साथ मजदूरी बढ़ने से आलू की खेती की लागत बढ़कर 8 से 9 रुपये प्रति किलो हो गई है जबकि किसान इस समय 4 से 6 रुपये प्रति किलो के भाव आलू बेचने को मजबूर हैं। उन्होंने बताया कि किसान को मुनाफा तो दूर लागत भी वसूल नहीं हो रही है, जिस कारण किसान खेती से पलायन कर रहे हैं।
कर्नाटक की बीज की मांग हुई पूरी
पंजाब के आलू किसान धर्मेंद्र गिल ने बताया कि अमृतसर मंडी में आलू के भाव घटकर 150 से 300 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है, जिससे उन्हें भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले सप्ताह कर्नाटक से आलू में बीज की मांग आई थी, जिससे भाव में हल्का सुधार आया था लेकिन अब कर्नाटक की मांग भी बंद हो गई है। उन्होंने बताया कि आलू की खुदाई मध्य मार्च तक पूरी हो जाती है, लेकिन फरवरी-मार्च में हुई बारिश से खोदाई में देरी हुई है।
कोल्ड स्टोर में भी भंडारण कम रहे हैं किसान
आगरा कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंघल ने बताया कि 80 से 85 फीसदी आलू की खुदाई हो चुकी है तथा अब केवल 15 से 20 फीसदी आलू ही खेत में बचा हुआ है। उन्होंने बताया कि पिछले साल आलू की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई थी, जिस कारण कोल्डस्टोर में रखे आलू किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था। यही कारण है कि किसान चालू सीजन में कोल्ड स्टोर में आलू का भंडारण कम रहे हैं। उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोर का किराया करीब 110 से 130 रुपये प्रति क्विंटल होता है।
दैनिक आवक की तुलना में मांग कमजोर
दिल्ली की आजादपुर मंडी के पोटाटो मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा ने बताया कि गर्मी बढ़ने से आलू की आवक भी बढ़ी है जबकि मांग कमजोर ही बनी हुई है। उन्होंने बताया कि पंजाब और उत्तर प्रदेश से आलू की करीब 100 मोटरों की दैनिक आवक हो रही है, लेकिन इसके मुकाबले खपत राज्यों की मांग कमजोर है इसलिए दैनिक आधार पर 60 से 65 मोटरों ही बिक पा रही है। मौसम में गर्माहट बढ़ने से आलू की क्वालिटी प्रभावित होने के डर से किसानों ने बिकवाली बढ़ रही है। मंडी में उत्तर प्रदेश के आलू के भाव 250 से 330 रुपये बोरी (एक बोरी-50 किलो) और पंजाब के आलू के भाव 220 से 250 रुपये प्रति बोरी रह गए। पिछले साल इस समय मंडी में आलू के भाव 500 से 1,000 रुपये प्रति बोरी बिक रहे थे।
उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में आलू का उत्पादन बढ़कर 525.89 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 513.10 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चालू फसल सीजन में आलू की बुवाई 21.84 लाख हेक्टेयर में हुई थी जोकि पिछले साल के 21.42 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। .................  आर एस राणा

28 मार्च 2019

दलहन आयात में 60 फीसदी की कमी आने के बावजूद भाव समर्थन मूल्य से नीचे

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान दलहन आयात में 60 फीसदी कमी आने के बावजूद भी किसानों को अपनी फसल समर्थन मूल्य से नीचे बेचनी पड़ रही है। चालू वित्त के पहले दस महीनों में आयात घटकर 21 लाख टन दालों का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 53.2 लाख टन का आयात हुआ था। उत्पादक मंडियों में चना के भाव 3,700 से 3,800 रुपये और मसूर के भाव 3,600 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए चना का एमएसपी 4,620 रुपये और मसूर का 4,475 रुपये प्रति क्विंटल है।
राजस्थान की कोटा मंडी में चना बेचने आए किसान महेंद्र यादव ने बताया कि मंडी में उनका चना 3,700 रुपये प्रति क्विंटल बिका। उन्होंने बताया कि चना की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद तो शुरू हो गई है लेकिन खरीद नाममात्र की ही हो रही है इसलिए किसानों को औने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ रही है। नेफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कोटा लाईन की मंडियों से 15 मार्च से चना की एमएसपी पर खरीद शुरू कर दी है, तथा 25 मार्च तक इन मंडियों से 62.65 टन चना खरीदा गया है। चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 34,562 टन चना की खरीद हुई है।
समर्थन मूल्य से नीचे बिक रहे हैं चना और मसूर
मध्य प्रदेश राज्य कृषि विपणन (मंडी) बोर्ड के अनुसार राज्य की मंडियों में देसी चना 2,705 से 4,350 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। राज्य से चालू रबी में 11.50 लाख टन चना की एमएसपी पर खरीद का लक्ष्य तय किया है। सतना मंडी के दलहन कारोबारी भानू जैन ने बताया कि मंडी में चना 3,700 से 3,800 रुपये और मसूर 3,600 से 3,650 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। उन्होंने बताया कि चना की दैनिक आवक 2,000 से 2,500 क्विंटल और मसूर की आवक 400 से 500 क्विंटल की हो रही है। 
अरहर के भाव एमएसपी से नीचे
नेफेड के अनुसार कर्नाटक की रायचूर मंडी में अरहर के भाव 3,900 से 4,900 रुपये और महाराष्ट्र की अमरावती मंडी में 4,300 से 5,050 रुपये प्रति क्विंटल हैं, जबकि केंद्र सरकार ने अरहर का एमएसपी 5,675 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। खरीफ विपणन सीजन 2018 में नेफेड ने एमएसपी पर 25 मार्च तक 2,14,763 टन अरहर की खरीद की है।
पहले दस 10 महीनों में दालों का आयात 60 फीसदी घटा
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी तक दालों के आयात में 50 फीसदी की कमी आकर कुल आयात 21 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में 53.2 लाख टन दालों का आयात हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले दस महीनों में 6,663.9 करोड़ मूल्य की दालों का आयात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 18,00.94 करोड़ रुपये का आयात हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के लिए केंद्र सरकार ने अरहर, उड़द, मूंग और मटर के आयात की मात्रा तय कर रखी है जबकि चना और मसूर के आयात पर क्रमश: 60 और 30 फीसदी का आयात शुल्क लगा रखा है। 
रिकार्ड उत्पादन का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में दालों का रिकार्ड 240.2 लाख टन उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल देश में 239.5 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था। ...... आर एस राणा

अप्रैल में बेचने के लिए 18 लाख टन चीनी का कोटा जारी, चीनी मिलों को राहत

आर एस राणा
नई दिल्ली। सरकार ने अप्रैल में बेचने के लिए 18 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है जोकि मार्च के 24.50 लाख टन से 6.50 लाख टन कम है। मार्च का बचा हुआ कोटा बेचने के लिए भी राहत देते हुए इसकी समय अविध को बढ़ाकर 30 अप्रैल 2019 तक कर दिया है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चीनी मिलों को राहत देने के लिए मार्च के कोटे की चीनी की बिक्री की अवधि को बढ़ाकर 30 अप्रैल 2019 कर दिया है। इससे मिलों पर चीनी बेचने का दबाव कम होगा। उन्होंने बताया कि अप्रैल में चीनी का कोट भी केवल 18 लाख टन का ही जारी किया गया है।
चीनी कारोबारी सुधीर भालोठिया ने बताया कि मंगलवार को दिल्ली में चीनी के भाव 3,300 से 3,350 रुपये और उत्तर प्रदेश में चीनी के भाव 3,100 से 3,150 रुपये प्रति क्विंटल (एक्स फैक्ट्री) रहे। महाराष्ट्र में चीनी के एक्स फैक्ट्री भाव 3,100 रुपये प्रति क्विंटल रहे। मार्च के चीनी के कोटे बिक्री अवधि को बढ़ाने से चीनी की कीमतों में 50 से 100 रुपये प्रति क्विंटल का सुधार आने का अनुमान है। 
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में पहली अक्टूबर 2018 से 15 मार्च 2019 तक चीनी का उत्पादन बढ़कर 273.47 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 258.20 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन में कुल 307 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में 325 लाख टन का उत्पादन हुआ था।....... आर एस राणा

महाराष्ट्र के गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया 4,900 करोड़ के पार

आर एस राणा
नई दिल्ली। सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र के गन्ना किसानों का चालू पेराई सीजन 2018-19 का चीनी मिलों पर 4,929 करोड़ रुपये बकाया है, जबकि राज्य की 41 चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई कर दी है। अत: बकाया भुगतान नहीं होने से राज्य के किसानों को भारी आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
महाराष्ट्र के गन्ना किसान बाला साहेब चौहान ने बताया कि सूखे के कारण किसानों की हालत खराब ही खराब थी, उपर से चीनी मिलों द्वारा गन्ने के बकाया का भुगतान नहीं किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले साल भी भुगतान में देरी हुई थी, चालू सीजन में भी हालात जस के तस बने हुए हैं। बकाया भुगतान में देरी से किसानों को परेशानी उठानी पड़ रही है।
राज्य में 41 चीनी मिलों ने गन्ना पेराई की बंद
राज्य के गन्ना आयुक्त कार्यलय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में 15 मार्च तक राज्य की चीनी मिलों ने 19,623 करोड़ रुपये का गन्ना खरीद है जबकि इसमें से भुगतान 14,881 करोड़ रुपये का ही किया है। ऐसे में चीनी मिलों पर किसानों का बकाया 4,929 करोड़ रुपये बकाया है। उन्होंने बताया कि चालू पेराई सीजन में राज्य में 186 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी, 24 मार्च तक राज्य की 41 चीनी मिलों में पेराई बंद हो गई है। 
केंद्र सरकार चीनी निर्यात के लिए नहीं बना पाई ठोस नीति
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सांसद राजू शेट्टी ने बताया कि राज्य के किसान पहले ही सूखे की मार झेल रहे हैं, उपर से गन्ना किसानों को चीनी मिलों से भुगतान में देरी हो रही है। उन्होंने बताया कि केंद्र के साथ ही राज्य सरकार की नीतियों के कारण चीनी मिलें भुगतान नहीं कर पा रही है। पिछले दो साल से देश में चीनी का उत्पादन मांग से ज्यादा हो रहा है लेकिन केंद्र सरकार ने चीनी निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई, बफर स्टॉक भी कम बनाया। जिस कारण चीनी मिलों पर नकदी का संकट हो गया। उन्होंने बताया कि सूखे से प्रभावित राज्य के किसानों को फसल बीमा कंपनियां मुआवजा भी नहीं दे रही है इसलिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के बजाए इस स्कीम का नाम प्रधानमंत्री कारपोरेट कल्याण योजना होना चाहिए क्योंकि इस योजना से किसानों के बजाए कंपनियों को ज्यादा फायदा हो रहा है।
चीनी का उत्पादन अनुमान कम
उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में 15 मार्च 2019 तक राज्य में चीनी का उत्पादन बढ़कर 100.08 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 93.84 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में देश में 307 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में 325 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। पहली अक्टूबर 2018 से 15 मार्च 2019 तक चीनी का उत्पादन 273.47 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है।..... आर एस राणा

भारत द्वारा दी जा रही चीनी सब्सिडी को लेकर अब ग्वाटेमाला डब्ल्यूटीओ पहुंचा

आर एस राणा
नई दिल्ली। ब्राजील और आस्ट्रेलिया के बाद मध्य अमेरिकी देश ग्वाटेमाला ने सोमवार को चीनी सब्सिडी को लेकर भारत को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की विवाद निपटान व्यवस्था में पहुंच गया है। ग्वाटेमाला ने आरोप लगाया है कि भारत द्वारा किसानों को दी जा रही चीनी सब्सिडी वैश्विक व्यापार नियमों के अनुरूप नहीं है।
ग्वाटेमाला ने इस मामले में भारत के साथ डब्ल्यूटीओ के विवाद निपटान की निगरानी के नियमों और प्रक्रियाओं के तहत विचार विमर्श चाहा है। ग्वाटेमाला ने यह मामला कृषि और सब्सिडी पर डब्ल्यूटीओ की विभिन्न धाराओं के तहत दायर किया है।
सरकार ने दी है मिलों को राहत
ग्वाटेमाला का कहना है कि भारत सरकार गन्ना किसानों के साथ ही चीनी मिलों को रियायतें दे रही है जिसका असर विश्व बाजार में चीनी की कीमतों पर पड़ता है। भारत सरकार ने घरेलू बाजार में चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) तय के साथ ही गन्ना किसानों को सब्सिडी और चीनी मिलों को भी राहत दी है, ताकि गन्ना किसानों को वित्तीय सहायता दी सके। इसके अलावा चीनी मिलों को बफर स्टॉक बनाने के लिए भी सब्सिडी दी है। उन्होंने कहना है कि भारत ने चीनी के निर्यात को बढ़ाने के लिए परिवहन लागत, माल ढुलाई, हैंडलिंग आदि के लिए चीनी मिलों को सब्सिडी दी है।
घेरलू बाजार उपलब्धता मांग की तुलना में ज्यादा
पेराई सीजन 2017-18 (अक्टूबर से सितंबर) में देश में चीनी का रिकार्ड उत्पादन 325 लाख टन का हुआ था, जबकि घरेलू बाजार में नए पेराई सीजन के शुरू में बकाया स्टॉक भी ज्यादा था। अत: घरेलू बाजार में चीनी की कुल उपलब्धता मांग से ज्यादा होने के कारण चीनी की कीमतों में मंदा आया था। उद्योग के अनुसार पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में भी चीनी का उत्पादन 307 लाख टन होने का अनुमान है जबकि देश में चीनी की सालाना खपत 245 से 255 लाख टन की ही होती है।....... आर एस राणा

पीएम-किसान योजना के लाभ के लिए पौने आठ करोड़ लाभार्थियों को करना होगा इंतजार

आर एस राणा
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले आनन-फानन में शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना के 7.74 करोड़ पात्र किसान परिवारों को पहली किस्त के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा। चुनाव आयोग ने 10 मार्च से पहले पंजीकृत 4.76 करोड़ किसान परिवारों को ही पहली और दूसरी किस्त के भुगतान की अनुमति दी है, ऐसे में बाकि किसानों को पहले किस्त चुनाव के बाद ही मिल पायेगी। लघु एवं सीमांत किसान परिवारों की संख्या देश में करीब 12.50 करोड़ है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जिन किसानों ने 10 मार्च से पहले रजिस्ट्रशन कराया था, उन्हें भुगतान करने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति मिल गई है। कृषि मंत्रालय के पास 10 मार्च से पहले 4.76 करोड़ किसानों का ब्यौरा आ चुका था, जिसमें से 2.75 करोड़ किसानों को पहली किस्त दी जा चुकी है। इन किसानों को दूसरी किस्त अप्रैल में दी जायेगी तथा बाकि बचे 2.01 करोड़ किसानों को पहली के साथ ही दूसरी किस्त का भुगतान भी किया जायेगा।
चुनाव आयोग ने 10 मार्च से पहले पंजीकृत किसानों को भुगतान की दी मंजूरी
लघु एवं सीमांत किसान परिवारों की संख्या देश में करीब 12.50 करोड़ है, ऐसे में चुनाव से पहले केवल 4.76 करोड़ किसानों को ही इस योजना का लाभ मिल पायेगा तथा बचे हुए करीब 7.74 करोड़ किसान परिवारों को पीएम-किसान योजना के लाभ के लिए चुनाव तक इंतजार करना होगा। वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना रिपोर्ट के अनुसार देश में 14.57 करोड़ किसान हैं।
कुल लाभार्थियों में 65 फीसदी से ज्यादा किसान भाजपा शासित राज्यों के
अभी तक के कुल लाभार्थियों में 65 फीसदी से ज्यादा किसान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्यों के हैं। कृषि मंत्रालय के अनुसार सरकार ने अभी तक इस योजना के तहत करीब 2.75 करोड़ किसानों को लगभग 5,500 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए हैं। पीएम-किसान योजना के तहत जारी की गई पहली किस्त में सबसे ज्यादा लाभार्थी उत्तर प्रदेश के 1.02 करोड़ किसान हैं। इसके अलावा गुजरात के 26.63 लाख और महाराष्ट्र के 15.12 लाख किसानों को पहली किस्त का भुगतान हो चुका है। उन्होंने बताया कि गैर भाजपा शासित राज्यों में सबसे ज्यादा किसान आंध्रप्रदेश के 33 लाख किसान है जिन्हें पहली किस्त मिल चुकी है।
दो हेक्टेयर तक खेती योग्य जमीन के किसान योजना में शामिल
छोटे एवं सीमांत किसान जिनके पास दो हेक्टेयर तक खेती योग्य भूमि है, उन्हें पीएम-किसान योजना के तहत सालाना 6,000 रुपये तीन किस्तों में देने की घोषणा केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट 2019-20 में की थी। इसके तहत मार्च के अंत तक 2,000 रुपये की पहली किस्त देने का वादा किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 1.01 करोड़ किसानों को पहली किस्त हस्तांतरित करते हुए इस योजना की औपचारिक शुरुआत की थी। इस योजना के तहत हर वर्ष 75,000 करोड़ रुपये किसानों के खाते में दिए जाने की योजना है। ....... आर एस राणा

24 मार्च 2019

समर्थन मूल्य पर 357 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य, उत्पादन अनुमान ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अप्रैल से शुरू होने वाले चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में केंद्र सरकार ने 357 लाख टन गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद का लक्ष्य तय किया है जबकि पिछले रबी में समर्थन मूल्य पर 357.95 लाख टन गेहूं खरीदा गया था।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू रबी में पंजाब से 125 और हरियाणा से 85 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया। चालू रबी में पंजाब में 171.60 लाख टन और हरियाणा में 132.19 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है। पंजाब से गेहूं की खरीद पहली अप्रैल 2019 से शुरू होगी तथा 25 मई तक खरीद की जायेगी। राज्य में एफसीआई 413 और राज्य की खरीद एजेंसियां 1,423 खरीद केंद्र खोलेगी। हरियाणा से गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद पहली अप्रैल से 15 मई तक चलेगी तथा राज्य में एफसीआई 86 और राज्य सरकार की एजेंसियां 298 खरीद केंद्रों के माध्यम से खरीद करेगी। पिछले रबी में पंजाब से 126.92 लाख टन और हरियाणा से 87.84 लाख टन गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर हुई थी।
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से खरीद का लक्ष्य कम
मध्य प्रदेश से चालू रबी में 75 लाख टन और उत्तर प्रदेश से 50 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है। मध्य प्रदेश में गेहूं का उत्पादन चालू रबी में 207.74 लाख टन और उत्तर प्रदेश में 350 लाख टन होने का अनुमान है। मध्य प्रदेश से गेहूं की खरीद 15 मार्च से 15 जून के दौरान की जायेगी तथा राज्य सरकारी एजेंसियां 3,100 खरीद केंद्रों के माध्यम से खरीद करेंगी। उत्तर प्रदेश से पहली अप्रैल से 15 जून तक गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद की जायेगी, तथा खरीद के लिए एफसीआई 213 और राज्य सरकार 6,000 केंद्र खोलेगी। पिछले रबी में मध्य प्रदेश से 73.13 लाख टन और उत्तर प्रदेश से 52.94 लाख टन गेहूं समर्थन मूल्य पर खरीदा गया था।
राजस्थान से खरीद का लक्ष्य ज्यादा
अन्य राज्यों में राजस्थान से 17 लाख टन, बिहार से 2 लाख टन, गुजरात से 50 हजार टन तथा उत्तराखंड से भी 2 लाख टन और अन्य राज्यों से 50 हजार टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है। राजस्थान में चालू रबी में गेहूं का 113.60 लाख टन, बिहार में 56.10 लाख टन, गुजरात में 24.20 लाख टन और उत्तराखंड में 9.26 लाख टन उत्पादन का अनुमान है। पिछले रबी में राजस्थान से 15.32 लाख टन, उत्तराखंड से 1.10 लाख टन, गुजरात से 37 हजार टन और चंडीगढ़ से 14 हजार टन तथा बिहार से 18 हजार टन गेहूं खरीदा गया था।
समर्थन मूल्य 105 रुपये बढ़ाया
चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का समर्थन मूल्य 105 रुपये बढ़ाकर 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि पिछले रबी विपणन सीजन 2018-19 में 1,735 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीद हुई थी।
गेहूं का उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 991.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में 971.1 लाख टन का  उत्पादन हुआ था। ........... आर एस राणा

सरकारी खरीद के अभाव में सस्ते दाम पर सरसों बेचने को मजबूर किसान

आर एस राणा
नई दिल्ली। सरकारी खरीद के अभाव में किसानों को सरसों औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ रही है। उत्पादक राज्यों की मंडियों में कंडीशन की सरसों 3,400 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल (कंडीशन-42 फीसदी तेल) बिक रही है जबकि केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय कर रखा है।
हरियाणा की दादरी मंडी में सरसों बेचने आए किसान अभय राम ने बताया कि मंडी में उनकी सरसों 3,450 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिकी है, अभी तक मंडी में सरसों की सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है। हरियाणा के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार राज्य की मंडियों से 28 मार्च से हैफेड सरसों की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू करेगा। हैफेड एक किसान से प्रति एकड़ 25 क्विंटल सरसों की खरीद करेगा तथा वही सरसों खरीदी जायेगी, जिसमें नमी 8 फीसदी से कम होगी।
उत्पादन के मुकाबले खरीद का लक्ष्य कम
सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान की कैथल मंडी के सरसों कारोबारी पुष्कर राज ने बताया कि मंडी में कंडीशन की सरसों 3,500 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। सरकारी खरीद अभी शुरू नहीं हुई है जिस कारण किसानों को नीचे भाव बेचनी पड़ रही है। नेफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार राजस्थान की कोटा लाइन की मंडियों से सरसों की खरीद शुरू कर दी गई है। 21 मार्च तक राज्य से 418 टन सरसों की खरीद हुई है जबकि चालू रबी में राजस्थान से सरसों की खरीद का लक्ष्य 8.50 लाख टन का है। राजस्थान के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में राज्य में 35.88 लाख टन सरसों के उत्पादन का अनुमान है।
रिकार्ड उत्पादन का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में देश में सरसों का रिकार्ड उत्पादन 83.97 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 75.40 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था। इससे पहले फसल सीजन 2012-13 में 80.29 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ था। उद्योग के अनुसार चालू रबी में सरसों का 87.50 लाख टन होने का अनुमान है। 
खाद्य तेलों का आयात बढ़ा
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर-18 से अक्टूबर-19) के पहले चार नवंबर से फरवरी में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 1.61 फीसदी बढ़कर 48.62 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात केवल 47.85 लाख टन का ही हुआ था। फरवरी में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 7.4 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 12.42 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले साल फरवरी में 11.57 लाख टन का आयात हुआ था। तेल वर्ष 2017-18 में 145.16 लाख टन और तेल वर्ष 2016-17 में रिकार्ड 150.77 लाख टन का आयात हुआ था।....... आर एस राणा

पीएम-किसान योजना में 4 लाख से ज्यादा ट्रांजैक्शन फेल, गलत लोगों के खाते में भी गया पैसा

आर एस राणा
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले आधी-अधूरी तैयारियों के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) के चार लाख से ज्यादा ट्रांजैक्शन फेल हो गए हैं। किसानों के खाते में पैसा तो भेजा गया, लेकिन तकनीकी कारणों से पैसा जमा नहीं हुआ। साथ ही कई ऐसे लोगों के खातों में भी रकम पहुंचने की शिकायत आई है जिसका खेती-किसानी से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए सरकार पीएम-किसान योजना के लाभार्थियों के लिए अब आधार को अनिवार्य करने जा रही है।  
जिन लोगों का खेती-किसानी से लेना-देना नहीं, उनके खाते में भी आए पैसे
सूत्रों के अनुसार भाजपा शासित राज्यों ने केंद्र सरकार के कहने पर ज्यादा से ज्यादा किसानों के डाटा बगैर जांच-परख के भेज दिए, जिस कारण इस तरह की समस्या सामने आ रही है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पीएम-किसान योजना के तहत जारी की गई पहली किस्त में से 4 लाख से ज्यादा ट्रांजैक्शन फेल होने के साथ ही बहुत से ऐसे लोगों के खातों में भी रकम पहुंच गई है, जिनका खेती-किसानों से कोई लेना देना है। इस कड़ी में एक प्राइवेट बैंक के मैनेजर के खाते में भी 2,000 रुपये की पहली किस्त जमा हुई है। उन्होंने बताया कि बाकि बचे हुए लाभार्थियों को पहली किस्त देने के लिए अब आधार के साथ ही एक और भी पहचान देना अनिवार्य होगा।
1.65 करोड़ किसानों का ब्यौरा दुरस्त करने के लिए राज्यों को वापिस भेजा 
उन्होंने बताया कि देश के करीब 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 4.75 करोड़ किसानों का ब्यौरा कृषि मंत्रालय के पास आया है जिनमें से 1.65 करोड़ किसानों का ब्यौरा दुरस्त करने के लिए वापिस राज्यों के पास भेजा गया है। ऐसे में मंत्रालय के पास पात्र 3.11 करोड़ किसानों का ब्यौरा है जिसमें से 2.75 करोड़ किसानों को पहली किस्त भेजी जा चुकी है।
अंतरिम बजट में सरकार ने की थी घोषणा
अंतरिम बजट 2019-20 में, केंद्र सरकार ने पीएम-किसान योजना की घोषणा की थी जिसके तहत दो हेक्टेयर तक की खेती योग्य भूमि वाले छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रुपये प्रति वर्ष तीन किस्तों में दिए जाने हैं। इसके तहत मार्च के अंत तक 2,000 रुपये की पहली किस्त देने का वादा किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 1.01 करोड़ किसानों को पहली किस्त हस्तांतरित करते हुए इस योजना की औपचारिक शुरूआत की थी। इस योजना के तहत हर वर्ष 75,000 करोड़ रुपये किसानों के खाते में दिए जाने हैं।..................आर एस राणा

21 मार्च 2019

चने का एमएसपी भी नहीं मिल पा रहा किसानों को

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात तो करती है लेकिन किसानों को चना समर्थन मूल्य से 570 से 670 रुपये प्रति क्विंटल नीचे भाव पर बेचना पड़ रहा है। उत्पादक मंडियों में चना के भाव 3,900 से 4,050 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
मध्य प्रदेश की उत्पादक मंडियों में चना की नई फसल की आवक बढ़ रही है लेकिन अभी तक समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू नहीं हुई है। उज्जैन मंडी में चना बेचने आए काजाखेड़ी बडनगर, उज्जैन के किसान लखन ने बताया कि मंडी में उनका चना 3,900 रुपये प्रति क्विंटल के बिका है। राज्य की इंदौर मंडी में चना के भाव 4,000 से 4,050 रुपये प्रति क्विंटल रहे। मध्य प्रदेश में चालू रबी में चना की बुवाई 34.32 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल राज्य में 35.50 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी।
राजस्थान से 25 से होगी खरीद शुरू
राजस्थान की मंडियों से चना की समर्थन मूल्य पर खरीद 25 मार्च से शुरू होगी, जबकि राज्य की मंडियों में नए चना की आवक शुरू हो गई है। कृषि विपणन विभाग, राजस्थान के अनुसार राज्य की मंडियों में चना के औसत भाव 3,900 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल है तथा होली के बाद उत्पादक मंडियों में चना की नई फसल की आवक और बढ़ेगी। राजस्थान में चना की बुवाई चालू रबी में 15.02 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल राज्य में 15.05 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार राज्य में चना का उत्पादन 21.63 लाख टन होने का अनुमान है। महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर मार्किटिंग बोर्ड के अनुसार राज्य की मंडियों में औसत चना के भाव 4,138 रुपये प्रति क्विंटल रहे।
समर्थन मूल्य पर तेलंगाना से हो रही है खरीद
नेफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार तेलंगाना से समर्थन मूल्य पर 21 हजार टन से ज्यादा चना की खरीद हो चुकी है। राजस्थान की मंडियों से चना की खरीद 25 मार्च से शुरू की जायेगी तथा अन्य राज्यों की मंडियों से भी जल्दी ही खरीद शुरू की जायेगी। उन्होंने बताया कि राजस्थान से समर्थन मूल्य पर 4.17 लाख टन चना खरीद का लक्ष्य है जबकि पिछले रबी सीजन में राज्य से 5.79 लाख टन चना की खरीद की थी। रबी विपणन सीजन 2018-19 में नेफेड ने समर्थन मूल्य पर 27.24 लाख टन चना की खरीद की थी, जिसमें से करीब 18.50 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ है।
उत्पादन कम होने का अनुमान
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए चना का एमएसपी 220 रुपये बढ़ाकर 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि पिछले रबी में एमएसपी 4,400 रुपये प्रति क्विंटल था। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में चना का उत्पादन घटकर 103.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 111 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चालू रबी में चना की बुवाई 10.21 फीसदी की कमी आकर कुल बुवाई 96.59 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल 107.57 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी।............  आर एस राणा

पीएम-किसान योजना में सात करोड़ से ज्यादा लाभार्थियों को आचार संहिता के कारण पहली किस्त में देरी की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 से ऐन पहले शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना के पात्र सात करोड़ से ज्यादा किसानों का रजिस्ट्रशन नहीं होने से पहली किस्त में देरी होने की आशंका है। उन्हें मार्च के अंत तक सरकार से वित्त मदद नहीं मिल पाएगी। चुनाव आचार सहिता लागू होने से पहले करीब 12.50 करोड़ किसानों में से कृषि मंत्रालय के पास 4.75 करोड़ किसानों का ब्यौरा ही आया था जिनमें से 3.11 करोड़ किसानों को ही पात्र पाया गया तथा इनमें से 2.75 करोड़ किसानों को पहली किस्त जारी की जा चुकी है। 
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 7 करोड़ से ज्यादा किसान जिनका अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, तथा जो पात्र है उनको पीएम-किसान योजना के तहत पहली किस्त देने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति मांगी है। उन्होंने बताया कि इसके ही पात्र किसान जिनको पहली किस्त दी जा चुकी है, उन्हें दूसरी किस्त देने की तैयारी भी चल रही है तथा इसके लिए भी चुनाव आयोग से अनुमति मांगी गई है।
कुल 4.75 करोड़ किसानों का आया है ब्यौरा
उन्होंने बताया कि देश के करीब 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 4.75 करोड़ किसानों का ब्यौरा कृषि मंत्रालय के पास आया है जिनमें से 1.65 करोड़ किसानों का ब्यौरा दुरस्त करने के लिए वापिस राज्यों के पास भेजा गया है। ऐसे में मंत्रालय के पास पात्र 3.11 करोड़ किसानों का ब्यौरा है जिसमें से 2.75 करोड़ किसानों को पहली किस्त भेजी जा चुकी है। उन्होंने बताया कि सरकार पीएम किसान योजना की दूसरी किश्त भी अप्रैल में देने की योजना बना रही है इसके लिए भी चुनाव आयोग से मंजूरी मांगी है।
रजिस्ट्रेशन का काम जारी रहेगा
उन्होंने बताया कि किसानों के रजिस्ट्रशन का काम जारी रहेगा, तथा चुनाव आयोग से अनुमति मिलने के बाद ही किसानों के खाते में रकम भेजी जायेगी। उन्होंने कहा कि जिन किसानों को पहली किस्त भेजी जा चुकी है, उन पर आचार संहिता का कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन नए रजिस्ट्रेशन हो रहे किसानों को पहली किस्त मिलने में देरी होने की आशंका है।
सालाना 6,000 रुपये मिलेंगे किसानों को
अंतरिम बजट 2019-20 में, केंद्र सरकार ने पीएम-किसान योजना की घोषणा की थी जिसके तहत दो हेक्टेयर तक की खेती योग्य भूमि वाले छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रुपये प्रति वर्ष तीन किस्तों में दिए जाने हैं। इसके तहत मार्च के अंत तक 2,000 रुपये की पहली किस्त देने का वादा किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 1.01 करोड़ किसानों को पहली किस्त हस्तांतरित करते हुए इस योजना की औपचारिक शुरूआत की थी। इस योजना के तहत हर वर्ष 75,000 करोड़ रुपये किसानों के खाते में दिए जाने हैं।
देश में किसानों की संख्या 14.75 करोड़
वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना रिपोर्ट के अनुसार देश में 14.57 करोड़ किसान हैं। इनमें से करीब 12.50 करोड़ किसान परिवार लघु एवं सीमांत श्रेणी में आते हैं। मंत्रालय के अनुसार पश्चिम बंगाल, सिक्किम, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और लक्षद्वीप के पात्र किसानों का ब्यौरा अभी तक नहीं आया है।........  आर एस राणा

सरकार ने केंद्रीय पूल से गेहूं खरीदारों की मांगी जानकारी, जमाखोरी की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार की नजर गेहूं के बड़े कारोबारियों पर है, इसी के तहत सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से खरीदारों की सूची मांगी है। एफसीआई ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री 1,950 रुपये प्रति क्विंटल के भाव कर रही है जबकि दिल्ली के लारेंस रोड़ पर गेहूं का भाव 2,070 से 2,075 रुपये प्रति क्विंटल है। जानकारों के अनुसार इन भाव में व्यापारियों को मात्र 10 से 15 रुपये प्रति क्विंटल की ही बचत हो रही है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू सीजन में खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत रिकार्ड 80 लाख टन गेहूं की बिक्री की गई है, इसके बावजूद भी भाव में अपेक्षित गिरावट नहीं आई है। इसीलिए एफसीआई से बड़े खरीददारों की सूची देने को कहा है। उन्होंने कहा कि व्यापारियों द्वारा खरीदे गए और बेचे गए गेहूं की जानकारी ली जायेगी। फसल सीजन 2017-18 में केवल 14.21 लाख टन गेहूं ओएमएसएस के तहत बिका था। 
मौजूदा भाव में गेहूं कारोबारियों को मात्र 10 से 15 रुपये की बचत
लारेंस रोड के एक गेहूं कारोबारी ने बताया कि एफसीआई हरियाणा और पंजाब से 1,950 रुपये प्रति क्विंटल के भाव गेहूं बेच रही है। इन भाव में हरियाणा स्थित एफसीआई के गोदाम से गेहूं खरीद करने पर 60 रुपये परिवहन लागत एवं करीब 40-50 रुपये अन्य खर्च को मिलाकर करीब 100 से 110 रुपये का खर्च आता है। अत: इस समय गेहूं में केवल 10 से 15 रुपये प्रति क्विंटल का मार्जिन मिल रहा है। इसलिए व्यापारियों ने गेहूं की खरीद भी एफसीआई से पहले की तुलना में कम कर दी है। उन्होंने बताया कि अप्रैल से नए गेहूं की आवक बढ़ जायेगी, तथा चालू सीजन में गेहूं का उत्पादन भी ज्यादा होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि सप्ताहभर में गेहूं की कीमतों में 30 से 35 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आया है।
फ्लोर मिलों ने खरीदा है 70 फीसदी से ज्यादा गेहूं
कर्नाटक के एक फ्लोर मिल के प्रबंधक ने बताया कि ओएमएसएस के तहत केंद्र द्वारा बेचे गए 80 लाख टन गेहूं में से 70 फीसदी से ज्यादा सीधा फ्लोर मिलों द्वारा खरीदा गया है। उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों ने मध्य प्रदेश से गेहूं की खरीद की है, जबकि सरकार मार्च में मध्य प्रदेश से ओएमएसएस के तहत बिक्री बंद कर दी थी। उन्होंने बताया कि दिसंबर तक एफसीआई 1,925 रुपये प्रति क्विंटल के भाव गेहूं बेच रही थी, जबकि जनवरी से बिक्री भाव 1,950 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था।
केंद्रीय पूल में स्टॉक ज्यादा
केंद्रीय पूल में पहली मार्च को 201.09 लाख टन गेहूं का स्टॉक बचा हुआ है जबकि पिछले साल मार्च में केवल 151.55 लाख टन का स्टॉक था। एफसीआई ने रबी विपणन सीजन 2018-19 में समर्थन मूल्य पर 357.95 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। इसमें सबसे ज्यादा पंजाब से 126.92 लाख टन, हरियाणा से 87.84 लाख टन और मध्य प्रदेश से 73.13 लाख टन तथा उत्तर प्रदेश से 52.94 लाख टन था।
एमएसपी में 105 रुपये की बढ़ोतरी
चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाकर 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि पिछले रबी सीजन में एमएसपी 1,735 रुपये प्रति क्विंटल था। मध्य प्रदेश में राज्य सरकार ने गेहूं पर 160 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस तय किया हुआ है, अत: मध्य प्रदेश में किसानों से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर खरीद होगी।
उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू रबी 2018-19 में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 991.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 971.1 लाख टन का उत्पादन ही हुआ था।..... आर एस राणा

चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 6 फीसदी बढ़ा, महाराष्ट्र-कर्नाटक में बंद होने लगी मिलें

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 में 15 मार्च तक चीनी का उत्पादन 5.91 फीसदी बढ़कर 273.47 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 258.20 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चालू पेराई सीजन में 154 चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है, जोकि मुख्यत: महाराष्ट्र और कर्नाटक की हैं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 15 मार्च तक 100.08 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 93.84 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था। राज्य में 85 चीनी मिलें पेराई बंद कर चुकी है तथा इस समय केवल 110 मिलों में ही पेराई चल रही थी। पिछले साल इस समय राज्य में 149 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी।
उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन पिछले साल के बराबर, कर्नाटक में ज्यादा
उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में पहली अक्टूबर 2018 से 15 मार्च 2019 तक 84.14 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 84.39 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। उधर कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 15 मार्च तक चीनी का उत्पादन बढ़कर 42.45 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 35.10 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। कर्नाटक में 56 चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है जबकि इस समय केवल 11 चीनी मिलों में ही पेराई चल रही है।
अन्य राज्यों में भी उत्पादन ज्यादा
तमिनाडु में चालू पेराई सीजन में अभी तक 5.40 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 4.33 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था। गुजरात में चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन पिछले साल के 9.10 लाख टन से बढ़कर 9.80 लाख टन का हो चुका है। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में चालू पेराई सीजन में 15 मार्च तक 6.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय तक 6.40 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। अन्य राज्यों में बिहार में 6.65 लाख टन, उत्तराखंड में 2.95 लाख टन, पंजाब में 5.45 लाख टन, हरियाणा में 4.90 लाख टन और मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ को मिलाकर 4.75 लाख टन का उत्पादन हुआ है। .......आर एस राणा

सीसीआई अप्रैल में खुले बाजार में बेचेगी कपास, दस लाख गांठ से ज्यादा है स्टॉक

आर एस राणा
नई दिल्ली। कपास की कीमतों में आई तेजी को देखते हुए कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) ने अप्रैल से कपास घरेलू बाजार में कपास बेचने का फैसला किया है। निगम के अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू फसल सीजन में 10.60 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास की खरीद की है। गुजरात की अहमदाबाद मंडी में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव बढ़कर 44,000 से 44,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) हो गया।
सीसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में एमएसपी पर 10.60 लाख गांठ कपास की खरीद की है, इसके अलावा निगम अभी तक 400 गांठ कपास की खरीद कॉर्मिशयल रुप में कर चुकी है तथा निगम का कार्मिशयल खरीद का लक्ष्य 4.5 लाख गांठ कपास का है। उन्होनें बताया कि सप्ताहभर में कपास की कीमतों में करीब 2,000 रुपये प्रति कैंडी की तेजी आई है। माना जा रहा है कि सीसीआई की बिक्री से कपास के भाव एक बार रुक सकते हैं, लेकिन कपास का जो बकाया स्टॉक बचा हुआ है, वह मजबूत हाथों में है इसीलिए बिकवाली भी कम आ रही है। अत: आगे इसके भाव में तेजी ही आने का अनुमान है। 
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि चालू सीजन में कपास का उत्पादन कम होने का अनुमान है इसीलिए घरेलू बाजार में कपास के भाव में तेजी आई है। उन्होंने बताया कि घरेलू मंडियों में भाव बढ़ने के साथ ही डॉलर की तुलना में रुपये में मजबूती आने से निर्यात पड़ते पहले की तुलना में कम लग रहे हैं। एक डॉलर की कीमत 69 रुपये के पास है तथा रुपया पिछले 7 महीने के ऊपरी स्तर पर है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में बंगलादेश की आयात मांग अच्छी रही है, हालांकि चालू महीने में पाकिस्तान को कपास के निर्यात सौदों में काफी कमी आई है।
अभी तक करीब 35 लाख गांठ का हुआ है निर्यात
उन्होंने बताया कि विश्व बजाार में मई महीने के वायदा अनुबंध में कपास का भाव 75.50 सेंट प्रति पाउंड है जबकि अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव बढ़कर 44,000 से 44,500 रुपये प्रति कैंडी हो गए है। अक्टूबर से शुरू हुए चालू सीजन में करीब 35 लाख गांठ कपास का निर्यात हो चुका है जबकि करीब 10 लाख गांठ का आयात भी हो चुका है। उद्योग ने चालू सीजन में 50 लाख गांठ के निर्यात का अनुमान लगाया है जबकि पिछले सीजन में 69 लाख गांठ का निर्यात हुआ था। 
उत्पादक मंडियों में आवक 5.66 फीसदी कम
सीसीआई के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान 10 मार्च तक उत्पादक मंडियों में कपास की आवक 5.66 फीसदी घटकर 233 लाख गांठ की ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 247 लाख गांठ की हुई थी।
कपास उत्पादन अनुमान कम
कॉटन एडवाईजरी बोर्ड (सीएबी) के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में 361 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल 370 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। कृषि मंत्रालय के दूसरे आंरभिक अनुमान के अनुसार चालू सीजन में कपास का उत्पादन 7 फीसदी घटकर 324 लाख गांठ होने का अनुमान है। कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार चालू सीजन में 330 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल 365 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था।............  आर एस राणा

17 मार्च 2019

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान मुश्किल में, चीनी मिलों पर आधे से ज्यादा बकाया भुगतान

आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की मुश्किलें कम होने के बजाए लगातार बढ़ती ही जा रही है। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में 15 मार्च तक राज्य की चीनी मिलों ने 23,821 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है जबकि इस दौरान भुगतान केवल 11,740 करोड़ रुपये का किया है। अत: चीनी मिलों पर राज्य के किसानों का 12,081 करोड़ रुपये बकाया बचा हुआ है। इसके अलावा पिछले पेराई सीजन 2017-18 का भी 250 करोड़ से ज्यादा का बकाया बचा हुआ है।
अमरोह जिले के देहराचक गांव के गन्ना किसान जोगिंद्र आर्य ने बताया कि उन्होंने अपना गन्ना वेव शुगर मिल में डाला है तथा अभी तक मिल ने केवल 5 जनवरी तक का ही भुगतान किया है। अत: जनवरी से मार्च तक का बकाया मिल पर बचा हुआ है। उन्होंने बताया कि एक तो भुगतान में देरी की जा रही है, दूसरा मिल द्वारा पर्ची भी कम जारी की जा रही है, जिससे गन्ना किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। वैसे भी गर्मी शुरू होने से आगे गन्ने में वजन कम हो जायेगा।
राज्य की मिलों को सरकार का संरक्षण प्राप्त
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी एम सिंह ने कहा कि राज्य की चीनी मिलों को राज्य सरकार का संरक्षण प्राप्त है, इसीलिए बकाया भुगतान में देरी की जा रही है। भुगतान नहीं होने से किसान राज्य और केंद्र सरकार से नाराज हैं, तथा इसका खामियाजा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लोकसभा चुनाव में भुगतान पड़ेगा। उन्होंने बताया कि चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 12,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका है, अगर इसमें ब्याज को भी मिला दे तो फिर बकाया की रकम और ज्यादा होगी। 
प्राइवेट चीनी मिलों पर ज्यादा है बकाया 
यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन (यूपीएसएमए) के एक वष्ठि अधिकारी के अनुसार राज्य की 92 प्राइवेट चीनी मिलों ने पहली अक्टूबर 2018 से 15 मार्च 2019 तक 21,656 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है, जबकि भुगतान केवल 10,708 करोड़ रुपये का ही किया है। राज्य की 24 को-आपरेटिव चीनी मिलों ने इस दौरान 2,042 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है तथा भुगतान केवल 967 करोड़ रुपये का ही किया है। राज्य की एकमात्र कारपोरेशन मिल ने 123 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है जबकि भुगतान केवल 64.38 करोड़ रुपये का ही किया है। 
प्रतापपुर चीनी मिल ने बंद की पेराई
राज्य के चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देवरिया स्थित प्रतापपुर चीनी मिल ने पेराई बंद कर दी है जबकि अन्य सभी 116 चीनी मिलों में अभी पेराई चल रही है। उन्होंने बताया कि चालू पेराई सीजन में 15 मार्च तक राज्य में चीनी का उत्पादन 84.14 लाख टन का हुआ है जबकि गन्ने में रिकवरी की दर 11.30 फीसदी की आ रही है। पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 84.39 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था, तथा रिकवरी केवल 10.62 फीसदी की ही आ रही थी। उन्होंने बताया कि राज्य में चीनी का उत्पादन आरंभिक अनुमान 125 लाख टन से कम होने की आशंका है।...... आर एस राणा

गुजरात और महाराष्ट्र के जलाशयों में पानी का स्तर घटा, गर्मियों में हो सकती है किल्लत

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहले से सूखे की मार झेल रहे गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों को गर्मियों में पानी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। गुजरात और महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगला के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले दस साल के औसत स्तर से भी काफी नीचे आ गया है जिस कारण गर्मियों में पीने के पानी के साथ ही किसानों को फसलों की बुवाई के लिए सिंचाई में भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार राजस्‍थान, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल की तुलना में कम है जबकि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्‍तराखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल की तुलना में ज्यादा है। छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल के बराबर ही है। 
पश्चिमी क्षेत्र के जलाशयों में औसत से 14 फीसदी कम पानी
मंत्रालय के अनुसार 14 मार्च 2019 को पश्चिमी क्षेत्र गुजरात तथा महाराष्ट्र के 27 जलाशयों में पानी का स्तर घटकर कुल भंडारण क्षमता का 24 फीसदी ही रह गया है जोकि पिछले दस साल के औसत अनुमान 38 फीसदी से 14 फीसदी कम है। पिछले साल की समान अवधि में पश्चिमी क्षेत्र के जलाशयों में कुल क्षमता का 36 फीसदी पानी था।
गुजरात और महाराष्ट्र के कई तालुका सूखे की चपेट में
मानसूनी सीजन में बारिश सामान्य से कम होने के कारण ही इन राज्यों की राज्य सरकारों ने कई  जिलों को सूखा घोषित किया हुआ है। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के 151 तालुकाओं को सूखा घोषित किया हुआ है। गुजरात सरकार ने भी 51 तालुका के 3,367 गांवों को सूखा घोषित किया है।
दखिण भारत के जलाशयों में दस साल के औसत स्तर से पानी कम
दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के 31 जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल से तो ज्यादा है लेकिन 10 साल के औसत स्तर से कम है। 14 मार्च 2019 को इन जलाशयों में पानी का स्तर कुल भंडारण का 27 फीसदी रह गया है जोकि दस साल के औसत 28 फीसदी से कम है। वैसे, पिछले साल की समान अवधि में इन राज्यों के जलाशयों में पानी का स्तर 23 फीसदी ही था।
मध्य क्षेत्र के साथ ही उत्तरी क्षेत्र में स्थिति अच्छी
मध्य क्षेत्र के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के 12 जलाशयों में पानी अच्छी स्थिति में है। इन राज्यों के जलाशयों में 14 मार्च 2019 को पानी का स्तर कुल भंडारण क्षमता का 39 फीसदी है जोकि पिछले 10 साल के औसत 36 फीसदी से ज्यादा है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इन जलाशयों में पानी का स्तर 33 फीसदी था। उत्तरी क्षेत्र के हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान के छह जलाशयों में पानी का स्तर कुल भंडारण क्षमता का 51 फीसदी है जोकि पिछले दस साल के औसत 30 फीसदी से ज्यादा है।........... आर एस राणा

खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 7.4 फीसदी की बढ़ोतरी तिलहन किसानों पर भारी

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्रमुख उत्पादक राज्यों में रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की दैनिक आवक शुरू हो गई है जबकि फरवरी महीने में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 7.4 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 12.42 लाख टन का हुआ है। अत: आयात में हुई बढ़ोतरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों का स्टॉक ज्यादा है, जिस कारण उत्पादक मंडियों में किसानों को सरसों 3,500 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बेचनी पड़ रही है जबकि केंद्र सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। 
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार फरवरी में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात बढ़कर 12.42 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले साल फरवरी में इनका आयात 11.57 लाख टन का ही हुआ था। चालू तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर से अक्टूबर) के पहले चार महीनों में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 1.61 फीसदी बढ़कर 48.62 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 47.85 लाख टन का ही हुआ था। एसईए के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा क्रुड और पॉम तेल के आयात शुल्क में अंतर 10 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर देने से रिफाइंड खाद्य तेलों के आयात में बढ़ोतरी हुई है। 
समर्थन मूल्य से नीचे बिक रही है सरसों
सोनीपत जिले के गोहाना के किसान गजे सिंह ने बताया कि मंडी मेें उन्होंने सरसों 3,500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बेची है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं कर रही है। जिस कारण व्यापारी समर्थन मूल्य से नीचे भाव पर खरीद कर रहे हैं।
डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होने से आयात पड़ते सस्ते
खाद्य तेलों के आयातक हेंमत गुप्ता ने बताया कि डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत बना हुआ है जिस कारण खाद्य तेलों का आयात सस्ता पड़ रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपया पिछले सात महीने के ऊपरी स्तर को छू चुका है। शुक्रवार को एक डॉलर की कीमत 69.10 रुपये रही। उन्होंने बताया कि उत्पादक मंडियों में सरसों की नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है तथा अप्रैल में मूंगफली की नई फसल की आवक भी बढ़ेगी।
सालभर में आयातित तेलों के भाव में आई भारी गिरावट
एसईए के अनुसार आयातित खाद्य तेलों के भाव भी पिछले साल की तुलना में नीचे बने हुए हैं। फरवरी 2019 में आरबीडी पामोलीन का औसत भाव भारतीय बंदरगाह पर घटकर 585 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि पिछले साल फरवरी में इसका भाव 677 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रुड पाम तेल का भाव फरवरी 2018 के 675 डॉलर प्रति टन से घटकर फरवरी 2019 में 550 डॉलर प्रति टन रह गया। क्रुड सोयाबीन तेल का भाव इस दौरान 809 डॉलर प्रति टन से घटकर 760 डॉलर प्रति टन रह गया। ..............  आर एस राणा

पीएम-किसान योजना में दावा 12 करोड़ का, पहली किस्त मिली अभी तक केवल 2.75 करोड़ किसानों को

आर एस राणा
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहली आधी-अधूरी तैयारियों के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएम-किसान) के तहत अभी तक केवल 23 फीसदी किसानों तक ही पहली किस्त पहुंची है। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि अभी तक 2.75 करोड़ किसानों को ही पहली किस्त 2,000 रुपये के हिसाब से जारी की गई है जबकि केंद्र सरकार इस योजना के तहत देशभर के 12 करोड़ किसानों को लाभ पहुंचाने का दावा कर रही है।
अप्रैल 2019 में केंद्र सरकार की योजना पात्र किसानों को दूसरी किस्त देने की है, ऐसे में 31 मार्च तक तय 12 करोड़ किसानों में से आधे किसानों को भी पहली किस्त मिलने की संभावाना नहीं है। वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना रिपोर्ट के अनुसार देश में 14.57 करोड़ किसान हैं। केंद्र सरकार ने दो हेक्टेयर तक जमीन वाले लघु एवं सीमांत किसानों को पीएम-किसान योजना में शामिल किया है, जिनकी संख्या देशभर में करीब 12 करोड़ किसान परिवार हैं। 
कई राज्यों से पात्र किसानों के आंकड़ों में हो रही देरी
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पूर्वोत्तर के कई राज्यों में किसानों के बजाए सहकारी समितियों के नाम जमीन है, तथा किसान बटाई पर खेती करते हैं। इस कारण इन राज्यों के पात्र किसानों की सूची में देरी हो रही है, इसके अलावा कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और राजस्थान के साथ ही कई अन्य राज्यों से पात्र किसानों के आकड़े मिलने में देरी हो रही है। 
पहली किस्त लेने में उत्तर प्रदेश और आंध्रप्रदेश अव्वल
सूत्रों के अनुसार अभी तक सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 75 लाख से अधिक किसानों को पहली किस्त मिली है, जबकि आंध्रप्रदेश में 32 लाख से अधिक किसानों को पहली किस्त मिल चुकी है। इसके अलावा गुजरात के लगभग 25.58 लाख किसान को, महाराष्ट्र के 11.55 लाख किसान को, तेलंगाना के 14.41 लाख किसान को और तमिलनाडु में 14.01 लाख किसानों को पहली किस्त मिल चुकी है। अन्य राज्यों में हरियाणा के 8.34 लाख किसानों को, असम के 8.09 लाख और ओडिशा के 8.07 लाख किसानों को भी पहली किस्त मिल चुकी है। 
सालाना 6,000 रुपये मिलेंगे किसानों को
अंतरिम बजट 2019-20 में, केंद्र सरकार ने पीएम-किसान योजना की घोषणा की थी जिसके तहत दो हेक्टेयर तक की खेती योग्य भूमि वाले छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रुपये प्रति वर्ष तीन किस्तों में दी जाएगी। इसके तहत मार्च के अंत तक 2,000 रुपये की पहली किस्त देने का वादा किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 1.01 करोड़ किसानों को पहली किस्त हस्तांतरित करते हुए इस योजना की औपचारिक शुरूआत की थी। इस योजना के तहत हर वर्ष 75,000 करोड़ रुपये किसानों के खाते में सीधे किसानों के खाते में दिए जाने हैं।............  आर एस राणा

हरियाणा से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद का लक्ष्य कम, पंजाब से ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी में रिकार्ड उत्पादन अनुमान के बावजूद हरियाणा से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की खरीद का लक्ष्य कम रखा गया है जबकि पंजाब से खरीद का लक्ष्य ज्यादा है।लक्ष्य कम होने से हरियाणा के गेहूं किसानों को गेहूं बेचने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने पंजाब एमएसपी पर 130 लाख टन और हरियाणा से 85 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है।
एफसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पहली अप्रैल 2019 से शुरू होने वाले चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में पंजाब से 130 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है जबकि पिछले साल राज्य से 126.92 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। हरियाणा से चालू रबी में 85 लाख टन गेहूं की खरीद का ही लक्ष्य तय किया गया है जबकि पिछले साल राज्य से 87.84 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। 
उन्होंने बताया कि रबी विपणन सीजन 2018-19 में एमएसपी पर 357.95 लाख टन गेहूं की खरीद की गई थी। मध्य प्रदेश से पिछले रबी में 73.13 लाख टन, उत्तर प्रदेश से 15.32 लाख टन, उत्तराखंड से 1.10 लाख टन, गुजरात से 37 हजार टन, बिहार से 18 हजार टन, चंडीगढ़ से 14 हजार टन और हिमाचल प्रदेश से एक हजार टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर हुई थी।
मध्य प्रदेश राज्य के गेहूं किसानों को 160 रुपये देगी बोनस
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का एमएसपी 1,840 रुपये प्रति क्विंटल किय हुआ है जबकि पिछले रबी सीजन में 1,735 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद हुई थी। मध्य प्रदेश सरकार राज्य के गेहूं किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देगी, अत: मध्य प्रदेश से गेहूं की खरीद 2,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर होगी।
चालू रबी में रिकार्ड उत्पादन का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में गेहूं का रिकार्ड 991.2 लाख टन उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल 971.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था। गेहूं की बुवाई चालू रबी सीजन में थोड़ी कम होकर 298.47 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल 299.84 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। पंजाब में गेहूं की बुवाई चालू रबी में 35.02 और हरियाणा में 25.10 लाख हेक्टेयर में हुई है। सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई 99.13 और मध्य प्रदेश में 59.11 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है।........  आर एस राणा

सरकार ही समर्थन मूल्य से 17 फीसदी नीचे भाव पर बेच रही है सरसों, किसानों को कैसे मिलेगा उचित भाव


आर एस राणा
नई दिल्ली। राजस्थान के साथ ही हरियाणा की उत्पादक मंडियों में रबी तिलहन की नई फसल की आवक बढ़ने लगी है लेकिन सार्वजनिक कंपनी नेफेड न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में सरसों 17 फीसदी तक नीचे भाव पर बेच रही है। अत: जब सरकार ही समर्थन मूल्य से नीचे भाव बेचेगी तो फिर किसानों को कैसे मिलेगा सरसों का उचित दाम?
नेफेड के अनुसार निगम ने 11 मार्च को 6,948 टन सरसों 3,501 से 3,559 रुपये प्रति क्विंटल के भाव हरियाणा और राजस्थान की मंडियों में सरसों बेची है जबकि केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019—20 के लिए सरसों का एमएसपी 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। अत: नई सरसों की आवक शुरू होने के बाद भी, नेफेड द्वारा बिक्री जारी है। नेफेड ने पिछले रबी विपणन सीजन में समर्थन मूल्य पर 8.78 लाख टन सरसों की खरीद की थी, जिसमें से 8.64 लाख टन की बिक्री की जा चुकी है।
एमएसपी से 400 से 700 रुपये नीचे बिक रही है सरसों
राजस्थान के अलवर जिले की खैरथल मंडी में सरसों बेचने आए किसान पुष्कर राज ने बताया कि मंडी में उनकी सरसों 3,500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिकी है। अलवर मंडी के सरसों कारोबारी सुरेश अग्रवाल ने बताया कि मंडी में सरसों की दैनिक आवक 18 से 20 हजार बोरियों की हो रही है। मंडी में 42 फीसदी कंडीशन (42 फीसदी तेज) की सरसों के भाव 3,500 से 3,800 रुपये और नोन कंडीशन की सरसों के भाव 3,000 से 3,400 रुपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने बताया कि आगे नई सरसों की आवक और बढ़ेगी, अत: सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई तो भाव में और गिरावट आयेगी।
राज्य की कोटा संभाग की मंडियों से 15 मार्च से होगी खरी शुरू
राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में राज्य से एमएसपी पर 8.50 लाख टन सरसों की खरीद का लक्ष्य रखा है जबकि चालू रबी सीजन 2018-19 में राज्य में 35.88 लाख टन सरसों के उत्पादन का अनुमान है। राज्य की मंडियों से सरसों की समर्थन मूल्य पर खरीद पहली अप्रैल से शुरू होगी, लेकिन कोटा लाईन की मंडियों से 15 मार्च से खरीद शुरू की जायेगी। 
उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में सरसों का उत्पादन बढ़कर 83.97 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 75.40 लाख टन का उत्पादन हुआ था। मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में सरसों की बुवाई बढ़कर 69.37 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल 67.06 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई हुई थी।.........
आर एस राणा

गन्ना किसानों के लिए दिए सॉफ्ट लोन का केवल 27 फीसदी इस्तेमाल, चीनी मिलोंं पर बकाया बढ़ा

आर एस राणा
नई दिल्ली। गन्ना किसानों के बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मंजूर किए 15,000 करोड़ रुपये के सॉफ्ट लोन में से बैंकों ने अभी तक केवल 26.67 फीसदी कर्ज यानि 4,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को ही हरी झंडी दी है। इसीलिए गन्ना किसानों का बकाया कम होने के बजाए लगातार बढ़ ही रहा है। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन के पहले पांच महीनों में ही बकाया बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये को पार कर चुका है, जिसमें उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर 9,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है।  
केंद्र सरकार ने 8 मार्च 2019 को चीनी मिलों को 10 हजार करोड़ रुपये के सॉफ्ट लोन प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जबकि इससे पहले भी सरकार ने जून 2018 में 4,440 करोड़ का सॉफ्ट लोन देने की घोषणा की थी। इसके अलावा बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार ने सितंबर 2018 में भी चीनी मिलों के लिए 5,500 करोड़ रुपये को पैकेज को मंजूरी दी थी। 
नेशनल फैडरेशन ऑफ कॉ-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफएल) के प्रबंध निदेशक प्रकाश पी. नायकनावारे ने आउटलुक तो बताया कि चीनी मिलों के साफ्ट लोन के अभी तक करीब 4,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को बैंको द्वारा मंजूरी दी गई है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को राहत देने के लिए साफ्ट लोन देने के प्रस्ताव को जो मंजूरी है, वह कदम तो अच्छा है लेकिन यह रास्ता लंबा है। अत: इसके परिणाम अगले दो से ढाई साल बाद ही सामने आयेंगे। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य को 29 रुपये से बढ़ाकर 31 रुपये प्रति किलो कर दिया, जबकि चीनी मिलों को लागत करीब 35 रुपये प्रति किलो की आ रही है। अत: अभी भी लागत से 4 रुपये प्रति किलो नीचे भाव पर ही चीनी बिक रही है जिस कारण मिलों पर किसानों का बकाया बढ़ रहा है।
मजबूत बैलेंस शीट वाली मिलों को ही बैंक दे रहे हैं ऋण
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने बताया कि केंद्र सरकार ने एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए चीनी मिलों को साफ्ट लोन देने के प्रस्तावों को जो मंजूरी है, यह कदम तो अच्छा है लेकिन इसका तत्काल लाभ नहीं मिलेगा। ऐथनॉल प्लांट लगाने के लिए, बड़े बजट की जरुरत होती है अत: बैंक भी उन्हीं चीनी मिलों के प्रस्ताव को मंजूर करेंगे, जिनकी बैलेंस शीट अच्छी होगी। इसके अलावा एथेनॉल प्लांट के लिए पर्यावरण मंजूरी में भी समय लगता है। उन्होंने बताया कि चीनी की उपलब्धता देश में ज्यादा है जबकि निर्यात पड़ते लग नहीं रहे हैं। अत: जब तक चीनी का निर्यात नहीं बढ़ेगा, स्थिति में सुधार आने की संभावना कम है।
लागत से नीचे भाव में चीनी बेच रही है मिलें
उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार ने हाल ही में साफ्ट लोन के प्रस्ताव को जो मंजूरी दी है, उसके अनुसार 28 फरवरी तक जिन चीनी मिलों ने किसानों का 25 फीसदी का भुगतान किया है, वहीं मिलें सॉफ्ट लोने के लिए आवेदन कर सकेगी। ऐसे में जिन चीनी मिलों की स्थिति मजबूत होगी, वहीं मिलें इसके लिए आवेदन कर सकेंगी। उन्होंने कहा कि मिलें चीनी की बिक्री तीन से साढ़े तीन रुपये प्रति किलो लागत से कम भाव पर कर रही हैं, अत: उधारी चुकान के लिए सॉफ्ट लोन क्यों लेंगी? उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने जो 114 प्रस्तावों को मंजूरी दी है, उनमें उत्तर प्रदेश के 39 प्रस्ताव हैं।
सॉफ्ट लोन के लिए सरकार को मिलें हैं 268 आवेदन 
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार ने एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए करीब 6,000 करोड़ रुपये के 114 प्रस्तावों को मंजूरी दी है जबकि सरकार को 13,400 करोड़ रुपये के 268 आवेदन सॉफ्ट लोन के लिए प्राप्त हुए हैं। उन्होंने बताया कि अन्य आवेदनों का अवलोकन किया जा रहा है तथा उम्मीद है कुछ और आवेदनों को जल्द ही मंजूरी दी जाए।
मिलों के राहत देने के बावजूद किसानों का बकाया बढ़ा
एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने 8 मार्च 2019 को चीनी मिलों को 10 हजार करोड़ रुपये के सॉफ्ट लोन प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जबकि इससे पहले भी सरकार ने जून 2018 में 4,400 करोड़ का सॉफ्ट लोन देने की घोषणा की थी। गन्ना किसानों के बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार चीनी मिलों को कई अन्य तरह की राहत भी दे चुकी है लेकिन इन सब के बावजूद भी चीनी मिलों पर किसानों का बकाया लगातार बढ़ ही रहा है। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू गन्ना पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के पहले पांच महीनों में ही गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये को पार कर चुका है।.......  आर एस राणा

भगवान भरोसे खेती फिर भी पीएम-किसान योजना के लाभ से वचिंत रहेंगे राजस्थान के 40 फीसदी किसान

 आर एस राणा
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना के दायरे में जहां उत्तर प्रदेश के 93 फीसदी किसान आ रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र के 80 फीसदी किसानों को इसका लाभ मिलेगा लेकिन जोत की संख्या दो हेक्टेयर से ज्यादा होने के कारण राजस्थान के लगभग 40 फीसदी किसान इस योजना के दायरे से बाहर रहेंगे।  
खेती दो हेक्टेयर से ज्यादा है इसलिए पीएम-किसान योजना के दायरे बाहर, लेकिन खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर। अत: बारिश हुई तो फसल होगी, नहीं तो खाने के भी लाले। राजस्थान के जैसलमेर जिले की फतेहगढ़ तहसील के मंडाई गांव के किसान कमल सिंह सोलंकी के पास जमीन तो दो हेक्टेयर से ज्यादा है लेकिन पिछले साल बारिश नहीं हुई जिस कारण खेतों दो बार बुवाई के बाद ही फसल नहीं हुई।
कमल सिंह सोलंकी की तरह राजस्थान के हजारों किसान हैं जिनके पास जमीन तो दो-चार हेक्टेयर से ज्यादा है, लेकिन सिंचाई के अभाव में फसलों का उत्पादन आधा या एक एकड़ (सिचिंत जमीन) से भी कम हो रहा है। कमल सिंह सोलंकी ने बताया कि हमारे पास जमीन दो हेक्टेयर से ज्यादा है, इसलिए पीएम-किसान योजना के दायरे में नहीं आते, लेकिन गांव के कुओं में पानी है नहीं, आसपास नहर भी नहीं है। इसलिए खेती पूरी तरह से बारिश के भरोसे है। पिछले साल हमारे यहां बारिश नहीं हुई, जिस कारण खेतों में बीज बोने के बाद, उगा ही नहीं। अत: किसानों को दोहरी मार पड़ी। फसल की बुवाई का खर्च तो लगा, लेकिन पैदावार नहीं हुई। गांव की आबादी करीब 2,200 है लेकिन पीएम-किसान योजना के दायरे में केवल एक चौथाई किसान ही हैं।
दो हेक्टेयर से ज्यादा जमीन वाले किसानों के हालात चिंताजनक
अजमेर जिले की पंचायत समिति श्रीनगर के गांव दातापंचायत के किसान डालचंद मेघवंशी ने बताया कि सिंचाई सुविधा नहीं होने के कारण फसलों का उत्पादन पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है। जिन किसानों के पास दो हेक्टेयर से ज्यादा जमीन है, उन्हें पीएम-किसान योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा, जबकि बारिश आधारित होने के कारण खेत खाली पड़े रहते हैं। ऐसे में दो हेक्टेयर से ज्यादा जमीन वाले किसानों के हालात भी खराब है। बारिश हो तो बाजरा, मूंग, मक्का या फिर ग्वार का थोड़ा-बहुत उत्पादन हो जाता है।
राज्य के करीब 40 फीसदी किसान पीएम-किसान के दायरे से बाहर
राजस्थान में 76.66 लाख किसान हैं जिनमें से करीब 40 फसीदी किसान पीएम-किसान योजना के दायरे बाहर रहेंगे। राजस्थान कृषि निदेशालय में संयुक्त निदेशक (सांख्यिकी)/सीएसओ बी एस राठौर ने बताया कि वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना रिपोर्ट के अनुसार राज्य में एक हेक्टेयर से कम भूमि वाले किसानों की संख्या 30.61 लाख और दो हेक्टेयर तक जोत वाले किसानों की संख्या 16.77 लाख है। अत: पीएम-किसान योजना के दायरे में राज्य के 47.38 लाख किसान ही आयेंगे।
दो हेक्टेयर से ज्यादा जोत वाले किसानों की संख्या 29.17 लाख
उन्होंने बताया कि राज्य में 2 से 4 हेक्टेयर तक जोत वाले किसानों की संख्या 14.16 लाख है, जबकि 4 से 10 हेक्टेयर की जोत वाले किसानों की संख्या 11.32 लाख है। इसके अलावा राज्य में 10 हेक्टेयर से ज्यादा जोत वाले किसानों की तादाद 3.59 लाख है।
सालाना 6,000 देने की है योजना
अंतरिम बजट 2019-20 में, केंद्र सरकार ने पीएम-किसान योजना की घोषणा की थी जिसके तहत दो हेक्टेयर तक की खेती योग्य भूमि वाले छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रुपये प्रति वर्ष तीन किस्तों में दी जाएगी। इसके तहत 31 मार्च तक 2,000 रुपए की पहली किस्त देने का वादा किया गया था। सरकार ने 23 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में 2.18 करोड़ किसानों के खातों में 2,000 रुपये की पहली किस्त हस्तांतरित कर दी है।........  आर एस राणा

सरकार ने बीटी कपास के बीज की कीमत में की कटौती, 80 लाख किसानों को होगा फायदा

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बीटी कपास के बीजों के अधिकतम बिक्री मूल्य में कटौती कर दी है, इससे देश भर के लगभग 80 लाख कपास किसानों को फायदा मिलने की संभावना है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचिना के अनुसार 450 ग्राम वाले बीटी कपास (बॉलगार्ड-II) के पैकेट के भाव को घटाकर 730 रुपये (इसमें 20 रुपये रॉयल्टी समेत) कर दिया गया है।
फसल सीजन 2018-19 में बीटी कपास बीजों का अधिकतम बिक्री मूल्य 740 रुपये प्रति पैकेज था, जिसमें 39 रुपये रॉयल्टी शुल्क शामिल था। अत: आगामी खरीफ बुवाई सीजन के समय किसानों को 2018 सीजन की तुलना में 10 प्रति पैकेट कम भुगतान करना होगा। चालू फसल सीजन के लिए रॉयल्टी को 39 रुपये से घटाकर 20 रुपये प्रति पैकेट कर दिया है। अत: घरेलू बीज कपंनियों को भी इससे लाभ मिलेगा, उन्हें डेवलपर को रॉयल्टी शुल्क के रुप में प्रति पैकेट 19 रुपये कम देने होंगे। 
बीटी कपास बीज के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) को कम करने के लिए स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) सहित कई संगठनों ने केंद्र सरकार से मांग की थी कि रॉयल्टी शुल्क को पूरी तरह से हटा दिया जाए ताकि किसानों को कपास बीज के उंची क़ीमतों का ‘अनावश्यक बोझ’ न उठाना पड़े।
कई संगठनों ने रॉयल्टी समाप्त करने की की थी मांग
एसजेएम के सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने एक मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बीटी कपास के बीजों के एमएसपी में रॉयल्टी शुल्क हटाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की थी। कुछ रिपोर्टों का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि बीटी कपास के पौधों को पिंक बोलवर्म (कीट) से बचाने के लिए डेवलपर कोई काम नहीं करता इसलिए ऐसी फीस वसूलने का कोई मतलब नहीं बनता। 
फसल सीजन 2016-17 में पहली बार घटाये थे दाम
केंद्र द्वारा दिसंबर 2015 में गठित एक पैनल द्वारा कपास बीज मूल्य नियंत्रण आदेश के तहत बीटी कपास बीजों के दाम पहली बार 2016-17 में घटाए गए थे। पैनल ने 830-1,030 रुपये के पुराने दाम घटाकर प्रति पैकेट 800 रुपये कर दिए थे। इसी तरह प्रति पैकेट 163 रुपये रॉयल्टी वैल्यू को लगभग 70 फीसदी घटाकर 49 रुपये कर दिया गया था। यह कदम मई 2016 में जारी प्रारूप के दिशा-निर्देशों के बाद उठाया गया था, जिसमें रॉयल्टी वैल्यू को बीज के बिक्री मूल्य के 10 फीसदी पर सीमित कर दिया गया था और इसके बाद समय-समय पर इसे कम किया गया।................ आर एस राणा

राजस्थान : चना एवं सरसों के कुल उत्पादन का 22 फीसदी खरीद का लक्ष्य कितने किसानों को मिलेगा समर्थन मूल्य

आर एस राणा
नई दिल्ली। राजस्थान की गहलोत सरकार ने चालू रबी सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 8.50 लाख टन सरसों और 4.17 लाख टन चना को मिलाकर कुल 12.67 लाख टन खरीद का लक्ष्य तय किया है जोकि कुल उत्पादन का केवल 22 फीसदी ही है। इसलिए किसानों को करीब 78 फीसदी फसल समर्थन मूल्य से नीचे भाव पर बेचनी पड़ेगी। ऐसे में सवाल यह है कि कितने किसानों को फसल का समर्थन मिल पायेगा?
चालू रबी में चना और सरसों का उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान
राज्य के सरकारिता मंत्री उदयलाल आजंना के अनुसार चालू रबी में राज्य से एमएसपी पर 8.50 लाख टन सरसों और 4.17 लाख टन चना को मिलाकर कुल 12.67 लाख टन खरीद का लक्ष्य तय किया है। राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी सीजन 2018-19 में राज्य में 35.88 लाख टन सरसों और 21.63 लाख टन चना को मिलाकर कुल 57.51 लाख टन उत्पादन का अनुमान है। पिछले रबी सीजन में राज्य में 34.01 लाख टन सरसों और 16.79 लाख टन चना को मिलाकर कुल 50.80 लाख टन का उत्पादन हुआ था। राज्य की मंडियों से पिछले रबी सीजन 20180-19 में समर्थन मूल्य पर 4.71 लाख टन सरसों और 5.79 लाख टन चना की खरीद की गई थी।
तीन महीने तक चलेगी एमएसपी पर खरीद
राज्य की मंडियों से पहली अप्रैल से चना और सरसों की खरीद एमएसपी पर शुरू की जायेगी जबकि कोटा संभाग से सरसों की नई फसल की खरीद 15 मार्च और चना की 25 मार्च से शुरू की जायेगी। कोटा संभाग में चना और सरसों की नई फसल की आवक अन्य मंडियों की तुलना में पहले शुरू हो जाती है। खरीद तीन महीनों जून के अंत तक चलेगी।
राज्य में 455 खरीद केंद्रों के माध्यम से होगी खरीद
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए चना का एमएसपी 4,620 रुपये और सरसों का एमएसपी 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। राज्य सरकार के अनुसार सरसों की खरीद के लिए 246 खरीद केंद्र और चना की खरीद के लिए 209 खरीद केंद्र को मिलाकर कुल 455 खरीद केंद्र स्थापित किए जायेंगे। जरुरत होने पर खरीद केंद्रों की संख्या में बढ़ोतरी की जायेगी।
राजस्थान : चना एवं सरसों के कुल उत्पादन का 22 फीसदी खरीद का लक्ष्य कितने किसानों को मिलेगा समर्थन मूल्य
आर एस राणा
नई दिल्ली। राजस्थान की गहलोत सरकार ने चालू रबी सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 8.50 लाख टन सरसों और 4.17 लाख टन चना को मिलाकर कुल 12.67 लाख टन खरीद का लक्ष्य तय किया है जोकि कुल उत्पादन का केवल 22 फीसदी ही है। इसलिए किसानों को करीब 78 फीसदी फसल समर्थन मूल्य से नीचे भाव पर बेचनी पड़ेगी। ऐसे में सवाल यह है कि कितने किसानों को फसल का समर्थन मिल पायेगा?
चालू रबी में चना और सरसों का उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान
राज्य के सरकारिता मंत्री उदयलाल आजंना के अनुसार चालू रबी में राज्य से एमएसपी पर 8.50 लाख टन सरसों और 4.17 लाख टन चना को मिलाकर कुल 12.67 लाख टन खरीद का लक्ष्य तय किया है। राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी सीजन 2018-19 में राज्य में 35.88 लाख टन सरसों और 21.63 लाख टन चना को मिलाकर कुल 57.51 लाख टन उत्पादन का अनुमान है। पिछले रबी सीजन में राज्य में 34.01 लाख टन सरसों और 16.79 लाख टन चना को मिलाकर कुल 50.80 लाख टन का उत्पादन हुआ था। राज्य की मंडियों से पिछले रबी सीजन 20180-19 में समर्थन मूल्य पर 4.71 लाख टन सरसों और 5.79 लाख टन चना की खरीद की गई थी।
तीन महीने तक चलेगी एमएसपी पर खरीद
राज्य की मंडियों से पहली अप्रैल से चना और सरसों की खरीद एमएसपी पर शुरू की जायेगी जबकि कोटा संभाग से सरसों की नई फसल की खरीद 15 मार्च और चना की 25 मार्च से शुरू की जायेगी। कोटा संभाग में चना और सरसों की नई फसल की आवक अन्य मंडियों की तुलना में पहले शुरू हो जाती है। खरीद तीन महीनों जून के अंत तक चलेगी।
राज्य में 455 खरीद केंद्रों के माध्यम से होगी खरीद
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए चना का एमएसपी 4,620 रुपये और सरसों का एमएसपी 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। राज्य सरकार के अनुसार सरसों की खरीद के लिए 246 खरीद केंद्र और चना की खरीद के लिए 209 खरीद केंद्र को मिलाकर कुल 455 खरीद केंद्र स्थापित किए जायेंगे। जरुरत होने पर खरीद केंद्रों की संख्या में बढ़ोतरी की जायेगी।..............  आर एस राणा

10 मार्च 2019

खेती की सुरक्षा के लिए देश में फॉल आर्मीवार्म के खिलाफ एसएबीसी ने किया प्रोजेक्ट सफल लांच

आर एस राणा
नई दिल्ली देश में कृषि कीट फॉल आर्मीवार्म से खेती की रक्षा के लिए प्रोजेक्ट सफल लांच किया गया है। दक्षिण एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (एसएबीसी) जोकि एक गैर-लाभकारी कृषि वैज्ञानिक संगठन है ने खेती और किसानों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण और बहु-वर्षीय परियोजना की शुरूआत की है।
इस परियोजना को एफएमसी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई का समर्थन प्राप्त है, जो स्थायी फसल सुरक्षा में विश्व स्तर पर अग्रणी मानी जाती है। यह कृषि मूल्य श्रृंखलाओं के प्रमुख हितधारकों के साथ मिलकर काम करेगी, जो संभवतः भारत में फॉल आर्मीवॉर्म की रोक के लिए प्रभावी हो सकते हैं। परियोजना सफल का लक्ष्य तकनीकों, अच्छी कृषि पद्धतियों और नियंत्रण उपायों के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों के लिए शैक्षिक सामग्री के साथ नियंत्रण उपायों को विकसित करना है ताकि किसानों की तैयारियों को बढ़ाया जा सके।
फाल आर्मीवॉर्म (स्पोडोप्टेरा फ्रूगीपेर्डा) मूल रूप से अमेरिकन कीड़ा है जो दुनिया भर में आक्रामक रूप से फैल रहा है। वर्ष 2016 में अफ्रीकी कृषि में इसको पहली बार पाया गया था और उसके बाद अगस्त 2018 में भारत के कर्नाटक में मक्का की फसल में इसकी पहली उपस्थिति देखी गई। पिछले दो सत्रों, खरीफ और रबी 2018 में फॉल आर्मीवॉर्म किसानों और भारतीय खेती के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है, क्योंकि इसकी उपस्थिति से विशेष रूप से मक्का की फसल को भारी नुकसान होता है।
यह कीड़ा फसल के शुरू में ही करता है हमला
यह फसल पर शुरूआती चरणों में ही हमला कर देता है और बड़े पैमाने पर आक्रामक व्यवहार तथा उच्च प्रजन्न क्षमता के कारण फसल पर ज्यादा प्रभाव डालता है। विशेष रूप से, फॉल आर्मीवॉर्म कई स्थानीए फसलों पर हमला करता है जैसे स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न, मक्का, गन्ना और ज्वार के साथ ही कई अन्य महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसलों को प्रभावित कर सकता है। कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में इस कीट के मिलने की सूचना मिली है।
छोटे किसानों की आमदनी होती है प्रभावित
फॉल आर्मीवॉर्म के प्रभाव के कारण छोटे किसानों की फसल की उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जबकि उत्पादकता में कमी आती है जिस कारण किसानों की आमदनी प्रभावित होती है। इसलिए यह कीड़ा भारतीय खेती के लिए एक बड़ा खतरा है। एसएबीसी के अध्यक्ष डॉ. सीडी माई ने कहा कि छोटे किसानों की भागीदारी के माध्यम से कपास में पिंक बॉलवर्म से निपटने के व्यावहारिक अनुभवों का पता लगाया जाएगा और फॉल आर्मीवॉर्म के खतरे को दूर करने के लिए उपाए ढूंडे जाएगें। हाल के दिनों में, मुख्य हितधारकों के सहयोग से एसएबीसी ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में पिंक बॉलवर्म पर अभियान को सफलतापूर्वक लागू किया।
एफएमसी फॉल आर्मीवॉर्म के खिलाफ लड़ाई में करेगा सहयोग
भारत में फसल सुरक्षा उद्योग में अग्रणी एफएमसी इंडिया स्थायी कृषि और आईपीएम को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता के तहत फॉल आर्मीवॉर्म के खिलाफ लड़ाई को समर्थन देने और प्रायोजित करने के लिए आगे आया है। एफएमसी इंडिया के अध्यक्ष प्रमोद थोटा ने कहा कि हम एफएमसी पर सही मायने में भारतीय किसानों को कृषि को टिकाऊ बनाने में मदद करने के लिए सही उपकरण और प्रौद्योगिकियों के साथ समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सहायक परियोजना सफल किसानों की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है, जो कि एफएमसी का सबसे महत्वपूर्ण काम है।..........  आर एस राणा

उद्योग ने कपास के उत्पादन अनुमान में एक बार फिर की दो लाख गांठ की कटौती

आर एस राणा
नई दिल्ली। महीने भर में उद्योग ने कपास के उत्पादन अनुमान में एक बार फिर 2 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) की कटौती कर चालू फसल सीजन में 328 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान लगाया है। इससे पहले फरवरी के पहले सप्ताह में भी उद्योग ने उत्पादन अनुमान में पांच लाख गांठ की कमी थी। पिछले साल देश में 365 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष अतुल एस. गणात्रा के अनुसार तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में कपास की तीसरी और चौथी पिकिंग नहीं हो पाई, जबकि गुजरात और महाराष्ट्र में मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने के कारण उत्पादन पिछले साल की तुलना में कम होने का अनुमान है। गुजरात में चालू सीजन में कपास का उत्पादन घटकर 83.50 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 101.80 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। उधर महाराष्ट्र में 77 लाख गांठ ही होने का अनुमान है। इसके अलावा तेलंगाना में 43 लाख गांठ, आंध्रप्रदेश में 16 और कर्नाटक में 15 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है। 
आयात बढ़ने और निर्यात घटने का अनुमान
पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू सीजन में 28 फरवरी तक उत्पादक मंडियों में 213.42 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है जोकि कुल उत्पादन का करीब 65 फीसदी है। चालू सीजन में 28 फरवरी तक 30 लाख गांठ कपास का निर्यात हो चुका है जबकि करीब 5.50 लाख गांठ का आयात भी हो चुका है। उद्योग के अनुसार चालू सीजन में कपास का कुल आयात बढ़कर 27 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 15 लाख गांठ का ही आयात हुआ था। चालू फसल सीजन में कपास का निर्यात घटकर 50 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 69 लाख गांठ का निर्यात हुआ था।
बकाया स्टॉक रहेगा कम
उद्योग के अनुसार चालू सीजन के अंत में 30 सितंबर 2019 को घरेलू मंडियों में कपास का बकाया स्टॉक घटकर 17 लाख गांठ ही बचने का अनुमान है जबकि पिछले बकाया स्टॉक 28 लाख गांठ का था। उत्पादक मंडियों में 29 एमएम बढ़िया क्वालिटी की कपास के भाव 42,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) चल रहे हैं जबकि पिछले साल इस समय भाव 41,000 रुपये प्रति कैंडी थे। कपास का बकाया स्टॉक कम है, अत: आगे दैनिक आवक घटने के बाद इसकी कीमतों में तेजी ही आने का अनुमान है।.......   आर एस राणा

एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए चीनी मिलों को 2,790 करोड़ सहायता को मंजूरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने नकदी की समस्या से जूझ रही चीनी मिलों को एथेनॉल उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए दिए जाने वाले ब्याज सहायता के वास्ते 2,790 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) की बैठक में यह निर्णय लिया गया।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैठक के बाद बताया कि सरकार ने चीनी मिलों को बैंक कर्ज पर 2,790 करोड़ रुपये की ब्याज सहायता देने को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने में चीनी मिलों की वित्तीय मदद करने की योजना के तहत बैंकों द्वारा मिलों को 12,900 करोड़ रुपये का कर्ज दिये जाने पर यह ब्याज सहायता उपलब्ध कराई जायेगी। चीनी मिलों के लिए इंटरेस्ट सबवेंशन स्कीम के तहत यह मंजूरी दी गई है।
इससे पहले जून में भी दिया था सस्ता कर्ज
समिति इससे पहले जून 2018 में भी 1,332 करोड़ रुपये की ब्याज सहायता को मंजूरी दे चुकी है। केंद्र सरकार ने चीनी उद्योग को जून 2018 में 8,500 करोड़ रुपये का पैकेज देने की घोषणा की थी, इसमें 4,440 करोड़ रुपये चीनी मिलों को सस्ते कर्ज के रूप में एथेनॉल क्षमता के विकास के लिए दिए गए थे।
चीनी के न्यूनतम बिक्री भाव में की थी बढ़ोतरी
चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 20 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है। केंद्र सरकार ने हाल ही में चीनी उद्योग के आग्रह पर चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) को दो रुपये प्रति किलो बढ़ाकर 31 रुपये किलो कर दिया था। 
एथेनॉल के भाव में किया था इजाफा
सितंबर 2018 में आर्थिक मामलों की मं‌त्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने एथेनॉल की कीमतों में भी बढ़ोतरी की थी। इसके तहत समिति ने सीधे गन्ने के रस से बनने वाले एथेनॉल का भाव बढ़ाकर 59.19 रुपये प्रति लीटर तय किया था, जबकि बी-ग्रेड एथेनॉल का भाव 47.13 रुपये से बढ़ाकर 52.43 रुपये प्रति लीटर कर दिया था।....... आर एस राणा

फरवरी में डीओसी के निर्यात में 43 फीसदी की भारी गिरावट-उद्योग

आर एस राणा
नई दिल्ली। वियतनाम, दक्षिण कोरिया और फ्रांस की आयात मांग घटने से फरवरी में डीओससी के निर्यात में 43 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल निर्यात 1,41,779 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल फरवरी में इनका निर्यात 2,48,663 टन का हुआ था।
ईरान, थाइलैंड की आयात मांग बढ़ी, अन्य देशों की घटी
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार फरवरी में सोया डीओसी के साथ ही सरसों, राइसब्रान और केस्टर डीओसी के निर्यात में कमी आई है। चालू वित्त वर्ष के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान डीओसी में वियतनाम, दक्षिण कोरिया और फ्रांस की आयात मांग कम रही है जबकि थाईलैंड और ईरान की आयात मांग में बढ़ोतरी हुई है। एसईए के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी वी मेहता के अनुसार चालू वित्त वर्ष में डीओसी में ईरान एक बड़े आयातक के रुप में उभरा है। ईरान ने चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों में 2,95,300 टन डीओसी का आयात किया है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में ईरान के केवल 22,910 टन का ही आयात किया था।
सरसों डीओसी का निर्यात बढ़ा, सोया का घटा
एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से फरवरी के दौरान डीओसी का निर्यात 0.77 फीसदी बढ़कर 27,86,574 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 27,65,320 टन का ही हुआ था। सरसों डीओसी का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले 11 महीनों में बढ़कर 9,62,990 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात केवल 5,38,988 टन का ही हुआ था। सोया डीओसी का निर्यात चालू वित्त वर्ष में घटकर 10,80,348 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 11,17,340 टन का हुआ था।
सोया डीओसी के भाव बढ़े
घरेलू बाजार में सोयाबीन की कीमतों में आई तेजी से सोया डीओसी के भाव भी बढ़े हैं। सोया डीअेासी का भाव फरवरी में बढ़कर भारतीय बंदरगाह पर 435 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि जनवरी में इसका भाव 413 डॉलर प्रति टन था। सरसों डीओसी का भाव इस दौरान 218 डॉलर प्रति टन पर स्थिर ही बना रहा।.......  आर एस राणा

गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 20 हजार करोड़ के पार, चीनी उत्पादन 16 लाख टन ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू गन्ना पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के 28 फरवरी तक गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 20,159 करोड़ रुपये पहुंच गया है। बकाया भुगतान बढ़ने से गन्ना किसानों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। चीनी का उत्पादन चालू पेराई सीजन के पहले पांच महीनों में 15.91 लाख टन बढ़कर 247.68 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 231.77 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में मिलों द्वारा गन्ने की पेराई पहले आरंभ कर दी गई थी, जिस कारण अभी तक चीनी के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन चालू पेराई सीजन में कुल उत्पादन पिछले साल के 325 लाख टन से कम होकर 307 लाख टन होने का अनुमान है। देशभर में 466 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जबकि पिछले साल इस समय 457 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी उत्पादन ज्यादा
इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन में महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन पहली अक्टूबर 2018 से 28 फरवरी 2019 तक 92.10 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 84.54 लाख टन का उत्पादन हुआ था। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 73.20 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 73.61 लाख टन के करीब ही है। कर्नाटक में भी चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन बढ़कर 41.69 लाख टन का हो चुका है जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के 33.92 लाख टन से ज्यादा है।
अन्य राज्यों में भी बढ़ा चीनी उत्पादन
अन्य राज्यों में तमिनाडु में 28 फरवरी तक चीनी का उत्पादन 4.70 लाख टन का, गुजरात में 8.80 लाख टन का, आंध्रप्रदेश एवं तेलंगाना में 5.70 लाख टन और बिहार में 5.75 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है। उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा तथा मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन क्रमश: 2.55 लाख टन, 4.60 लाख टन, 4.15 लाख टन और 4.10 लाख टन का हो चुका है।
चीनी मिलों को राहत देने के बावजूद बकाया भुगतान बढ़ा
उद्योग के अनुसार गन्ने के बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार हाल ही चीनी मिलों को 10,000 करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन का पैकेज देने के साथ ही चीनी के न्यूनतम बिक्री भाव (एमएसपी) को 29 रुपये से बढ़ाकर 31 रुपये प्रति किलो किया है। मार्च महीने का चीनी का कोटा बढ़ाकर 24.5 लाख टन करने घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में 100 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है।.........  आर एस राणा

06 मार्च 2019

राजस्थान के कोटा से गेहूं की एमएसपी पर खरीद 15 मार्च से, किसान कराये पंजीकरण

आर एस राणा
नई दिल्ली। राजस्थान के कोटा संभाग से गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद 15 मार्च से शुरू होगी, जबकि राज्य के अन्य जिलों की मंडियों से पहली अप्रैल से खरीद की जायेगी। राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री रमेश चंद्र मीणा ने बताया कि गेहूं की एमएसपी पर खरीद के लिए मंगलवार से पंजाीकरण शुरू कर दिया गया है।
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का एमएसपी 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि पिछले रबी में गेहूं का एमएसपी 1,735 रुपये प्रति क्विंटल था।
पंजीकरण के लिए फोटो पहचान पत्र की जरुरत
उन्होंने कहा कि किसान अपनी गेहूं की फसल को एमएसपी पर बेचने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की वेबसाइट पर पंजीकरण करवा सकते हैं। मीणा ने कहा कि कोटा संभाग में 15 मार्च से गेहूं की खरीद शुरू की जायेगी, जबकि यह प्रक्रिया एक अप्रैल से राज्य के बाकी हिस्सों में शुरू होगी। किसान पंजीकरण के लिए फोटो पहचान पत्र के लिए आधार कार्ड, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, किसान क्रेडिट कार्ड और पासपोर्ट को फोटोकाफी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
गेहूं उत्पादन अनुमान में कमी की आशंका
रबी विपणन सीजन 2018-19 में राजस्थान से एमएसपी पर 15.32 लाख टन गेहूं की खरीद की गई थी। राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में गेहूं की बुवाई घटकर 28,25,200 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि 104,47,590 टन उत्पादन का अनुमान है। पिछले साल रबी में राज्य में गेहूं की बुवाई 30,50235 हेक्टेयर में हुई थी, तथा उत्पादन 112,08,087 टन का हुआ था। ................  आर एस राणा

गैर-बासमती चावल का निर्यात 15.45 फीसदी घटा, बासमती का बढ़ा

आर एस राणा
बंगलादेश के साथ ही अन्य देशों की आयात मांग कम होने के कारण चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 10 महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान गैर-बासमती चावल के निर्यात में 15.45 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 61.21 लाख टन का ही हुआ है। इस दौरान बासमती चावल का निर्यात 2.62 फीसदी बढ़कर 33.65 लाख टन का हुआ है।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पिछले वित्त वर्ष में बंगलादेश ने गैर-बासमती चावल का आयात ज्यादा किया था, जबकि चालू वित्त वर्ष में बंगलादेश के पास घरेलू स्टॉक ज्यादा है जिस कारण बंगलादेश की आयात मांग कम रही है। उन्होंने बताया कि सामान्य गैर-बासमती चावल का निर्यात सालाना 68 से 70 लाख टन का होता है अत: चालू वित्त वर्ष में भी मार्च के आखिर तक करीब इतना निर्यात होने का अनुमान है।
मूल्य के हिसाब से गैर-बासमती का निर्यात 11.72 कम
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से जनवरी के दौरान गैर-बासमती चावल का निर्यात घटकर 61.21 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017—18 की समान अवधि में इसका निर्यात 72.40 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी के दौरान गैर-बासमती चावल का निर्यात 16,971 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में 19,224 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात हुआ था।
बासमती चावल का निर्यात 2.62 फीसदी ज्यादा
बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान 2.62 फीसदी बढ़कर 33.65 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में इसका निर्यात 32.79 लाख टन का ही हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों में बासमती चावल का निर्यात 24,919 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में 21,319 करोड़ रुपये मूल्य का ही निर्यात हुआ था।
बीते वित्त वर्ष में रिकार्ड हुआ था गैर-बासमती चावल का निर्यात
मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 में गैर-बासमती चावल का कुल निर्यात 22,927 करोड़ रुपये का रिकार्ड 86.33 लाख टन का हुआ है। बासमती चावल का निर्यात पिछले वित्त वर्ष में 26,841 करोड़ रुपये का 40.51 लाख टन का हुआ था।
बासमती धान के भाव में सुधार की उम्मीद
बासमती चावल की निर्यात फर्म खुरानिया एग्रो के प्रबंधक रामनिवास खुरानिया ने बताया कि घरेलू बाजार में पूसा 1,121 बासमती चावल सेला का भाव 6,775 से 6,800 रुपये और पूसा 1,509 बासमती चावल सेला का भाव 6,500 रुपये प्रति क्विंटल है। पूसा 1,121 बासमती धान का भाव घरेलू मंडियों 3,600 रुपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने बताया कि बासमती धान में चावल मिलों की मांग अच्छी बनी हुई है जिससे घरेलू बाजार में इसके भाव में सुधार आने का अनुमान है।
चावल के रिकार्ड उत्पादन का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में देश में रिकार्ड 11.56 करोड़ टन चावल के उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में 11.10 करोड़ टन का उत्पादन हुआ था।....आर एस राणा

मक्का की नई फसल की आवक से पहले ही कीमतें 10 फीसदी घटी, किसान चिंतित

आर एस राणा
नई दिल्ली। रबी सीजन में मक्का की नई फसल की आवक चालू महीने के आखिर तक शुरू होगी, जबकि अप्रैल में आवकों का दबाव बनेगा। सप्ताहभर में मक्का की कीमतों में 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है, तथा आगे भाव में और मंदा आने का अनुमान है जिससे मक्का किसानों की चिंता बढ़ गई है।
बिहार के भागलपुर जिला की नौगछिया तहसील के मक्का किसान पवन कुमार ने बताया कि उन्होंने दो एकड़ में मक्का की फसल की बुवाई कर रखी है। नई फसल की कटाई मार्च के आखिर तक बन जायेगी, जबकि मक्का की कीमतों में अभी से मंदा आना शुरू हो गया है। उन्होंने बताया कि फरवरी में नौगछिया अनाज मंडी में मक्का के भाव 2,100 रुपये प्रति क्विंटल थे जोकि घटकर 1,850 से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। माना जा रहा है कि अप्रैल में बिहार की मंडियों में मक्का के भाव घटकर 1,500 रुपये प्रति क्विंटल तक बन सकते हैं, अत: अभी मौजूदा कीमतों में 400 रुपये की और गिरावट आने की आशंका है।
दिल्ली के मक्का कारोबारी कमलेश कुमार जैन ने बताया कि मक्का कीमतों में 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुकी है। दिल्ली में मक्का के भाव घटकर 2,075 से 2,100 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं जबकि सप्ताहभर पहले इसके भाव 2,300 से 2,325 रुपये प्रति क्विंटल थे। उनहोंने बताया कि मक्का की आवक इस समय मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से रही है जबकि बिहार से मक्का की नई फसल की आवक अप्रैल में बनेगी। अत: आगे मक्का की कीमतों में और भी 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने का अनुमान है।
कीमतों में और मंदा आने का अनुमान
मुंबई के मक्का आयातक दलीप काबरा ने बताया कि घरेलू बाजार में मक्का की कीमतों में आई गिरावट बनी हुई है जिस कारण आयात सौदे नहीं हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में मक्का की बुवाई में कमी आई है, लेकिन नई फसल की आवक बढ़ने पर भाव में और भी गिरावट आने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के लिए मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,700 रुपये प्रति क्विंटल तय कर रखा है। रबी में मक्का का उत्पादन मुख्यत: बिहार, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में ज्यादा होता है।
रबी में मक्का की बुवाई कम
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में मक्का की बुवाई घटकर 15.55 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल रबी में इसकी बुवाई 17.28 लाख हेक्टेयर में हुई थी। प्रमुख उत्पादक राज्य बिहार में मक्का की बुवाई पिछले साल के 4.70 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 4.75 लाख हेक्टेयर में हुई है। अन्य राज्यों में आंध्रप्रदेश में 1.59 लाख हेक्टेयर में, महाराष्ट्र में 1.16 लाख हेक्टेयर में, तमिलनाडु में 2.17 लाख हेक्टेयर में और तेलंगाना 1.15 लाख हेक्टेयर में तथा पश्चिम बंगाल में 1.17 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई है। 
मक्का का उत्पादन रबी में घटने का अनुमान
मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में रबी सीजन में मक्का का उत्पादन 75.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में इसका उत्पादन 76.3 लाख टन का उत्पादन हुआ था। खरीफ और रबी में मक्का का कुल उत्पादन चालू फसल सीजन में 278 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 271.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था।............  आर एस राणा