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26 मई 2019

उत्पादन घटने से आम किसानों को नुकसान, निर्यात में 8-10 फीसदी कमी की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्रतिकूल मौसम से चालू सीजन में आम के उत्पादन में कमी आने से किसानों को तो नुकसान हुआ ही है, साथ ही इससे निर्यात में भी 8 से 10 फीसदी की कमी आने की आशंका है। वित्त वर्ष 2017-18 में भी भारत से आम के निर्यात में कमी आई थी।
मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एस इंसराम अली ने आउटलुक को बताया कि अप्रैल में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से आम के पेड़ों पर बौर झड़ गया था जिससे फसल को भारी नुकसान हुआ है। इसलिए चालू सीजन में आम के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में पिछले साल 45 से 47 लाख टन आम का हुआ था, जबकि चालू सीजन में उत्पादन में 40 से 50 फीसदी की कमी आने की आशंका है। उत्पादन में कमी आने से आम किसानों को भारी नुकसान हुआ है।
नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र से मदद की मांग
उन्होंने बताया कि प्रतिकूल मौसम का असर उत्तर प्रदेश ही नहीं अन्य उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में भी आम के उत्पादन पर पड़ा है। उन्होंने बताया कि फसल को हुए नुकसान की भरपाई के लिए उन्होंने केंद्र सरकार से राहत की मांग की है। इस संबंध में भारत सरकार के कृषि सचिव से उनकी 7 जून को दिल्ली में मीटिंग होनी है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में आम की फसल की आवक मध्य जून में शुरू होगी।
निर्यात में 8 से 10 फीसदी कमी की आशंका
महाराष्ट्र के आम निर्यातक चांद फ्रुट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नसीर मोहम्मद ने बताया कि चालू सीजन में आम की पैदावार कम होने के कारण आम के भाव घरेलू बाजार में उंचे है। भारत के मुकाबले पाकिस्तान का आम सस्ता है। इसलिए चालू सीजन में आम के निर्यात में 8 से 10 फीसदी की कमी आने की आशंका है। उन्होंने बताया कि इस समय खाड़ी देशो में भारतीय अल्फांसो आम का भाव 400 से 500 रुपये प्रति पेटी (एक पेटी 3 से 3.50 किलो) का है जोकि पिछले साल की तुलना में 25 से 50 रुपये ज्यादा है।
आम का सबसे बड़ा आयातक संयुक्त अरब अमीरात
भारत की बेहतर गुणवत्ता वाली आम की किस्मों अल्फांसो, दशहरी और केसर का निर्यात मुख्यत: संयुक्त अरब अमीरात, यूके, साउदी अरब, कतर, यूएसए, कुवैत और ओमान तथा नेपाल को ज्यादा होता है। एपीडा के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 में 49,118 टन आम का निर्यात हुआ था जोकि इसके पिछले वित्त वर्ष 2016-17 के 52,760 टन से कम है। वित्त वर्ष 2017-18 में भारत से आम के कुल निर्यात में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी संयुक्त अरब अमीरात की 48 फीसदी की थी।
उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2017-18 में 212.53 लाख टन आम के उत्पादन का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल 2016.17 में 195.06 लाख टन आम का उत्पादन हुआ था।...... आर एस राणा

अप्रैल में केस्टर तेल का निर्यात 8.75 फीसदी घटा, उंचे भाव में निर्यात सौदे कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। घरेलू बाजार में उंचे दाम होने के कारण केस्टर तेल के निर्यात में कमी आई है। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल मेंं केस्टर तेल का निर्यात 8.75 फीसदी घटकर 45,897 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल अप्रैल में 50,312 टन का हुआ था।
केस्टर तेल की निर्यातक फर्म ओसवाल एग्री इम्पैक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर कुशल राज पारिख ने घरेलू बाजार में केस्टर तेल के भाव काफी उंचे है, जिसकी वजह से निर्यात में कमी आई है। उन्होंने बताया कि इस समय केस्टर तेल में चीन के निर्यात सौदे 1,720 से 1,730 डॉलर प्रति टन की दर से हो रहे हैं तथा महीनेभर में ही करीब 20 से 30 डॉलर प्रति टन की तेजी आ चुकी है। उत्पादन कम होने से घरेलू बाजार में केस्टर सीड की कुल उपलब्धता पिछले साल की तुलना में कम होने के कारण चालू वित्त वर्ष में कुल निर्यात पिछले साल की तुलना में कम होने का अनुमान है।
केस्टर सीड का उत्पादन अनुमान कम
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में केस्टर तेल का निर्यात 13.82 फीसदी घटकर 5.61 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष के दौरान 6.51 लाख टन का निर्यात हुआ था। उद्योग के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में केस्टर सीड का उत्पादन घटकर 11.27 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल 14.33 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
उत्पादन अनुमान कम होने के कारण दैनिक आवक घटी
चालू सीजन में केस्टर सीड का उत्पादन कम होने का अनुमान है जिस कारण बिकवाली भी कम आ रही है। केस्टर सीड के कारोबारी हेंमत गुप्ता ने बताया कि गुजरात की मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक 55 से 60 हजार बोरियों की हो रही है तथा उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड के भाव 5,575 रुपये प्रति क्विंटल और केस्टर तेल का भाव 1,175 रुपये प्रति 10 किलो है। उत्पादन में कमी के कारण केस्टर सीड की कीमतों में आगे और तेजी आने का अनुमान है वैसे भी केस्टर सीड की नई फसल की आवक जनवरी-फरवरी में बनेगी।......आर एस राणा

मदर डेयरी ने दूध के दाम 2 रुपये बढ़ाये, नई कीमत शनिवार से लागू होगी

आर एस राणा
नई दिल्ली। अमूल के बाद मदर डेयरी ने भी दूध की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी है। राष्‍ट्रीय राजधानी में प्रमुख दूध आपूर्ति कंपनी मदर डेयरी ने शुक्रवार को दूध के दाम में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी करने का ऐलान किया है। कंपनी ने कहा कि नई कीमत शनिवार से प्रभावी होगी। कंपनी ने कहा है कि किसानों से दूध खरीद की लागत बढ़ने से मजबूरी में यह मूल्‍यवृद्धि करनी पड़ी है।
चालू सप्ताह में अमूल ने बढ़ाये थे दाम
मदर डेयरी ने केवल पॉली पैक दूध की कीमतों में ही बढ़ोतरी की है। बल्‍क वेंडेड दूध जिसे टोकन दूध के रूप में जाना जाता है, उसकी कीमतों में कंपनी ने बढ़ोतरी नहीं की गई है। मदर डेयरी ने यह फैसला देश की सबसे बड़ी डेयरी कंपनी अमूल द्वारा चालू सप्ताह के शुरू में दूध का दाम 2 रुपये लीटर बढ़ाने की घोषणा के तीन दिन बाद लिया है।
25 मई से होंगी बढ़ी हुई कीमतें लागू
मदर डेयरी ने अपने एक बयान में कहा है कि कंपनी 25 मई से दिल्‍ली-एनसीआर में अपने पॉली पैक दूध वेरिएंट्स की उपभोक्‍ता मूल्‍य में बढ़ोतरी करने जा रही है। कंपनी फूल क्रीम दूध का भाव 500 एमएल में 26 रुपये है जोकि 25 मई से 27 रुपये हो जायेगा। इसी तरह से फूल क्रीम प्रीमियम 500 एमएल दूध का भाव शनिवार से 27 रुपये से बढ़कर 28 रुपये हो जायेगा।
दूध की आपूर्ति में आई कमी, एसएमपी के भाव भी बढ़े
सूत्रों के अनुसार दूध का लीन सीजन होने के कारण आपूर्ति में पांच से सात फीसदी तक कम हुई है, साथ ही चारा की कीमतों में आई तेजी के कारण डेयरियों को दूध की खरीद कीमतों में औसतन 2 से 3 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी करनी पड़ी है जिस कारण डेयरियों की लागत बढ़ गई है। स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का स्टॉक कम होने के कारण इसकी कीमतों में भी तेजी आई है। सालभर में एसएमपी की कीमतों में करीब 10 रुपये प्रति लीटर तक की तेजी आ चुकी है। ........ आर एस राणा

बंगलादेश ने चावल आयात पर शुल्क 55 फीसदी किया, गैर-बासमती चावल के निर्यात में आयेगी कमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। घरेलू चावल किसानों के हितों को देखते हुए बंगलादेश सरकार ने चावल के आयात पर शुल्क को 27 फीसदी बढ़ाकर 55 फीसदी कर दिया है, इसका असर भारतीय गैर-बासमती चावल के निर्यात पर भी पड़ेगा। वित्त वर्ष 2018-19 में भारत से बंगलादेश को गैर-बासमती चावल के निर्यात में करीब 76 फीसदी की भारी कमी आई है।
बंगलादेश सरकार के राष्ट्रीय राजस्व बोर्ड द्वारा जारी सूचना के अनुसार घरेलू किसानों के हितों की रक्षा के लिए चावल के आयात पर शुल्क को बढ़ाकर 55 फीसदी किया गया है जोकि तत्काल प्रभाव से लागू होगा। बंगलादेश में चावल के आयात पर अभी तक 28 फीसदी आयात शुल्क था।
गैर-बासमती चावल के निर्यात में आयेगी कमी
चावल के निर्यातक महेंद्र जैन ने बताया कि बंगलादेश ने चावल के आयात पर शुल्क को बढ़ाकर लगभग दोगुना कर दिया है, इससे भारत से बंगलादेश को होने वाले गैर-बासमती चावल के निर्यात में ओर कमी आयेगी। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2018-19 में भी बंगलादेश को भारत से गैर-बासमती चावल के निर्यात में कमी आई है।
वित्त वर्ष 2018-19 में 76 कम हुआ बंगलादेश को निर्यात
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बंगलादेश, भारत से गैर-बासमती चावल का आयात ज्यादा करता है। उन्होंने बताया कि 28 फीसदी शुल्क होने के कारण वित्त वर्ष 2018-19 में भी बंगलादेश को निर्यात में 76 फीसदी की कमी आई थी। आयात शुल्क में बढ़ोतरी से इसके निर्यात में और कमी आने की आशंका है। वित्त वर्ष 2018-19 में बंगलादेश ने भारत से गैर-बासमती चावल का आयात 4,43,278 टन का 1,251.21 करोड़ रुपये का ही किया था, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में बंगलादेश ने भारत से 18,45,324 टन का 4,863.84 करोड़ रुपये का आयात किया था। वित्त वर्ष 2018-19 में बंगलादेश ने भारत से बासमती चावल का 2,262 टन 20.50 करोड़ रुपये का आयात किया है।
कुल निर्यात में भी आई कमी
एपीडा के अनुसार बंगलादेश द्वारा आयात शुल्क 28 फीसदी करने के कारण ही वित्त वर्ष 2018-19 में गैर-बासमती चावल के कुल निर्यात में कमी आई थी। इस दौरान गैर-बासमती चावल का कुल निर्यात घटकर 75.34 लाख टन का ही हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 88.18 लाख टन का गैर-बासमती चावल का निर्यात हुआ था। मूल्य के हिसाब से वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान गैर-बासमती चावल का निर्यात घटकर 20,903 करोड़ रुपये का ही हुआ जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष के दौरान 23,437 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था।..........आर एस राणा

समर्थन मूल्य पर 323 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खरीद, यूपी और एमपी में पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली।  चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद बढ़कर 323.64 लाख टन की हो चुकी है। चालू रबी में जहां पंजाब और हरियाणा में गेहूं की खरीद तय लक्ष्य से ज्यादा हुई है, वहीं मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से खरीद पिछड़ी है। पिछले रबी सीजन की समान अवधि में 331.46 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार चालू रबी सीजन में हरियाणा से रिकार्ड 93.20 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जबकि खरीद का लक्ष्य 85 लाख टन का तय किया गया था। पिछले रबी सीजन में राज्य से 87.84 लाख टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर हुई थी। पंजाब से चालू रबी विपणन सीजन 2018-19 में गेहूं की सरकारी खरीद बढ़कर 127.01 लाख टन की हो चुकी है जबकि खरीद का लक्ष्य 125 लाख टन का तय किया गया था। राज्य से पिछले रबी सीजन में समर्थन मूल्य पर 126.92 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से खरीद में आई कम
उत्तर प्रदेश से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर केवल 26.57 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है, जबकि राज्य से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 50 लाख टन का तय किया गया है। पिछले साल राज्य से समर्थन मूल्य पर 52.94 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। मध्य प्रदेश से चालू रबी में एमएसपी पर 65.44 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जबकि खरीद का लक्ष्य 75 लाख टन का तय किया हुआ है। पिछले रबी में राज्य से 73.13 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।
राजस्थान में खरीद लक्ष्य से कम
राजस्थान से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 10.89 लाख टन गेहूं की खरीद ही हुई है जबकि खरीद का लक्ष्य 17 लाख टन का तय किया हुआ है। पिछले रबी में राज्य से 15.32 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। अन्य राज्यों में उत्तराखंड से 39,000 टन, चंडीगढ़ से 12,000 टन और गुजरात 5,000 टन तथा हिमाचल प्रदेश से एक हजार टन गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर हुई है।
रिकार्ड उत्पादन अनुमान
चालू रबी में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद का लक्ष्य 356.50 लाख टन का तय किया है जबकिे पिछले रबी सीजन में 357.95 लाख टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर की थी। कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं का रिकार्ड 991.2 लाख टन उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल 971.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था।  ........  आर एस राणा

अलनीनो हुआ कमजोर, लगातार तीसरे साल मानसूनी बारिश अच्छी होने का अनुमान-केजी रमेश

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अलनीनो की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है, जिससे चालू मानसूनी सीजन में बारिश अच्छी होने का अनुमान है। आईएमडी के महानिदेशक डॉ. केजी रमेश ने बताया कि चालू सीजन में देशभर के सभी भागों में लगातार तीसरे साल मानसून सामान्य रहने का अनुमान है। खरीफ फसलों की बुवाई के लिए मानसूनी बारिश काफी महत्वपूर्ण है।
उन्होंने ने बताया कि मानसून कई कारकों से प्रभावित होता है, जिसमें अलनीनो भी एक पार्ट है, दिसंबर से फरवरी तक अलनीनो मजबूत हो रहा था। फरवरी के बाद यह कमजोर होना शुरू हुआ है। 16 अप्रैल 2019 को हमने मौसम की जो पहली भविष्यवाणी की थी, तब अलनीनो की 0.9 फीसदी की वार्मिंग थी, अप्रैल से अब तक इसमें 0.4 फीसदी वार्मिंग की कमी आई है, और अब केवल 0.5 फीसदी वार्मिंग रह गई है, जोकि मानसून आने तक शून्य हो जायेगाी।
देश के चारों भागों में अच्छी बारिश का अनुमान
उन्होंने बताया कि दक्षिण-पश्चिम मानसून लंबी अवधि के औसत का 96 फीसदी रहने का अनुमान है इसमें 5 फीसदी बारिश कम या ज्यादा होने का अनुमान है। 96 से 104 फीसदी बारिश को सामान्य माना जाता है। उन्होंने बताया कि सबसे अच्छी बात यह है कि देश के चारों भागों में बारिश अच्छी होने का अनुमान है जोकि खरीफ की फसलों के अच्छा है।
मानसून के आगमन में तो देरी, लेकिन आगे अच्छी गति से बढ़ेगा
केजी रमेश ने बताया कि मानसूनी बारिश अच्छी होने से वर्ष 2017-18 में देश में खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन हुआ था, पिछले साल भी खाद्यान्न खासकर के धान, दलहन और तिलहनों का उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि केरल में मानसून 6 जून को पहुंचने का अनुमान है, जोकि सप्ताहभर की देरी से आयेगा लेकिन आने के बाद देश के अन्य राज्यों में मानसून समय से पहुंचेगा। वर्ष 2018 में मानसून 29 मई को केरल पहुंच गया था।
सामान्य बारिश होने का अनुमान 39 फीसदी
मौसम विभाग के मुताबिक इस साल मानसून सीजन के दौरान सामान्य से बहुत ज्यादा (110 फीसदी से ज्यादा) बारिश की संभावना 2 फीसदी ही है, जबकि सामान्य से अधिक (104-110 फीसदी) की संभावना 10 फीसदी है। इसके अलावा सामान्य बारिश यानि 96-104 फीसदी बारिश होने की संभावना 39 फीसदी है। यानि कुल मिलाकर सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश की संभावना 50 फीसदी से ज्यादा है।.......   आर एस राणा

19 मई 2019

महाराष्‍ट्र में भंयकर सूखे के कारण ​किसान पलायन को मजबूर

आर एस राणा
नई दिल्ली। महाराष्ट्र भीषण सूखे की चपेट में झुलस रहा है, राज्य 1972 जैसे सूखे के हालात से गुजर रहा है। राज्‍य के छब्बीस जिले भीषण सूखे से ग्रस्त है। खेतों की सिंचाई तो दूर लोगों को पीने का पानी भी नहीं मिल पा रहा है, इसलिए लोग पलायन करने को मजबूर हैं।
स्वाभिमान शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सदस्य राजू शेट्टी ने आउटलुक को बताया कि राज्य के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जलाशयों में पानी है नहीं। ट्यूबवैलों में जलस्तर काफी नीचे चला गया है। राज्य में 1962 के सूखे से भी ज्यादा भयावह स्थिति बनी हुई है। किसानों को पीने के पानी नहीं मिल रहा है, पशुओं को पानी और चारा नहीं मिल रहा है। इन हालातों में खरीफ फसलों की बुवाई भी नहीं हो पायेगी। इसलिए काम की तलाश में किसान दूसरे राज्यों को पलायन को मजबूर हैं।
सूखे का असर खरीफ फसलों की बुवाई पर पड़ेगा
उन्होंने बताया कि सूखे के कारण राज्य में खरीफ की फसलों खासकर के कपास, दलहन, मक्का, सोयाबीन के साथ ही फलों और सब्जियों की बुवाई के साथ ही उत्पादकता पर असर पड़ेगा। राज्यों के मराठवाड़ा और विदर्भ में कई सालों से सामान्य से कम बारिश के कारण किसानों की आर्थिक हालात पहले से ही खराब है, अत: सूखे के कारण किसानों को साहूकारों या फिर बैंकों से कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ेगा।   
काम की तलाश में दूसरे राज्यों में जा रहे हैं लोग
अहमदनगर के किसान बाला साहेब चौहान ने बताया कि नदियों के साथ ही तालाब सूख गये हैं, जलाशयों में पानी नाममात्र का ही बचा हुआ है। हालाता यह है कि लोगों को पीने का पानी भी नहीं मिल रहा है। पिछले साल भी राज्य में सूखे जैसे हालात थे, जिस कारण ​पशुओं के चारे के साथ ही पानी की किल्लत है। उन्होंने बताया कि खेती बारिश के भरोसे है, इसलिए लोग दूसरे राज्यों में काम की तलाश में जा रहे हैं। प्रशासन टैंकरों से पीने के पानी की सप्लाई कर रहा है लेकिन टैंकरों की संख्या कम होने के कारण किसानों को दो-तीन किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ रहा है। 
इन जिलों में पड़ है सूखा
राज्य के 26 जिलों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं, इनमें औरंगाबाद, परभणी, अहमदनगर, धुले, जलगांव, नाशिक, नंदूरबार, अकोला, अमरावती, बुलढाणा, बीड, हिंगोली, जालना, नांदेड़, लातूर, उस्मानाबाद,  यवतमाल, वाशिम, वर्धा, चंद्रपुर, नागपुर, पुणे, सांगली, सातारा, सोलापुर और पालघर शामिल हैं।
मराठवाड़ा में हालात ज्यादा खतरनाक
महाराष्ट्र के 17 बड़े जलाशयों में से 5 में पानी सीमित मात्रा में ही बचा हुआ है। राज्य के 5 बड़े जलाशयों में महज 10 फीसदी पानी बचा है, जबकि मराठवाड़ा इलाके में सूखे की सबसे ज्यादा मार है। यहां के पानी सप्लाई करने वाले जलाशयों में महज पांच फीसदी पानी ही बचा है। हाल ही में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार राज्य के सूखाग्रस्त इलाकों का दौरा कर राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणनवीस से मिले थे, तथा राज्य सरकार से सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों को राहत कार्य तेज करने की मांग की थी।............. आर एस राणा

महाराष्ट्र-गुजरात समेत 6 राज्यों पर मंडराया सूखे का खतरा, केंद्र ने किया आगाह

आर एस राणा
नई दिल्ली। पश्चिमी और दक्षिण भारत के 6 राज्यों में जलस्तर सामान्य से कम होने के कारण सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। अत: केंद्र सरकार ने पत्र लिखकर महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु को सलाह दी है कि वो समझदारी से पानी का इस्तेमाल करें। तमिलनाडु को शुक्रवार को इस बारे में चिट्ठी भेजी गई, जबकि बाकी राज्यों में बीते हफ्ते ही इसे जारी कर दिया गया था। इन रज्यों के बांधों में पानी के गिरते स्तर को देखते हुए ये चेतावनी जारी की गई है।
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के एक सदस्य ने इसकी जानकारी दी। राज्यों को 'सूखा सलाह' उस वक्त जारी की जाती है जब जलाशयों में पानी का स्तर बीते दस साल के जल भंडारण के औसत से 20 फीसदी कम हो जाता है। पत्र में लिखा गया है कि राज्य पानी का इस्तेमाल केवल पीने के लिए ही करें, जब तक की बांधों में पुनर्भरण नहीं होता।
देशभर के 91 जलाशयों में कुल क्षमता का 24 फीसदी ही बचा है पानी
केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय देश के 91 मुख्य जलाशयों में पानी के भंडारण की निगरानी करता है। आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त पानी का कुल भंडार 35.99 अरब घनमीटर बचा है जो इन जलाशयों की क्षमता का 22 फीसदी ही है। सभी 91 जलाशयों की कुल क्षमता 161.993 अरब घनमीटर है। 9 मई तक के आंकड़ों के मुताबिक इनमें 24 फीसदी पानी बचा है। ऐसे में डर है कि दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से में पानी की किल्लत हो सकती है।
पश्चिमी क्षेत्र के जलाशयों में औसत से 9 फीसदी कम पानी
मंत्रालय के अनुसार 16 मई 2019 को पश्चिमी क्षेत्र गुजरात तथा महाराष्ट्र के 27 जलाशयों में पानी का स्तर घटकर कुल भंडारण क्षमता का 13 फीसदी ही रह गया है जोकि पिछले दस साल के औसत अनुमान 22 फीसदी से 9 फीसदी कम है। पिछले साल की समान अवधि में पश्चिमी क्षेत्र के जलाशयों में कुल क्षमता का 18 फीसदी पानी था।
दक्षिण भारत के जलाशयों में दस साल के औसत स्तर से पानी कम
दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के 31 जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल के बराबर है लेकिन 10 साल के औसत स्तर से कम है। 16 मई 2019 को इन जलाशयों में पानी का स्तर कुल भंडारण क्षमता का 13 फीसदी ही रह गया है जोकि दस साल के औसत 16 फीसदी से कम है। वैसे, पिछले साल की समान अवधि में इन राज्यों के जलाशयों में पानी का स्तर 13 फीसदी ही था। केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, ओडिसा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और केरल के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल से कम है।............... आर एस राणा

गेहूं की सरकारी खरीद 319 लाख टन के पार, हरियाणा और पंजाब से तय लक्ष्य से ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद बढ़कर 319.05 लाख टन की हो चुकी है। पंजाब और हरियाणा से जहां गेहूं की खरीद तय लक्ष्य से ज्यादा हो चुकी है, वहीं सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के साथ ही मध्य प्रदेश से खरीद तय लक्ष्य से कम हुई है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार चालू रबी सीजन में हरियाणा से रिकार्ड 93.08 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जबकि खरीद का लक्ष्य 85 लाख टन का तय किया गया था। पिछले रबी सीजन में राज्य से 87.84 लाख टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर हुई थी। हरियाणा राज्य कृषि निदेशालय के अनुसार राज्य में चालू रबी में 132.19 लाख टन गेहूं का उत्पादन होने का अनुमान है।
पंजाब से चालू रबी विपणन सीजन 2018-19 में गेहूं की सरकारी खरीद बढ़कर 126.40 लाख टन की हो चुकी है जबकि खरीद का लक्ष्य 125 लाख टन का तय किया गया था। राज्य से पिछले रबी सीजन में समर्थन मूल्य पर 126.92 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में गेहूं का उत्पादन 171.60 लाख टन होने का अनुमान है।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से गेहूं की खरीद पिछड़ी
सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर केवल 25.30 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है, जबकि राज्य से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 50 लाख टन का तय किया गया है। पिछले साल राज्य से समर्थन मूल्य पर 52.94 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। राज्य सरकार के अनुसार चालू रबी में राज्य में 350 लाख टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान है। मध्य प्रदेश से चालू रबी में एमएसपी पर 63.12 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जबकि खरीद का लक्ष्य 75 लाख टन का तय किया हुआ है। पिछले रबी में राज्य से 73.13 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। राज्य में चालू रबी में 207.74 लाख टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान है।
राजस्थान से खरीद तय लक्ष्य से पिछे
राजस्थान से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 10.58 लाख टन गेहूं की खरीद ही हुई है जबकि खरीद का लक्ष्य 17 लाख टन का तय किया हुआ है। पिछले रबी में राज्य से 15.32 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में गेहूं का उत्पादन 113.60 लाख टन होने का अनुमा है। अन्य राज्यों में उत्तराखंड से 39,000 टन, चंडीगढ़ से 12,000 टन और गुजरात 5,000 टन तथा हिमाचल प्रदेश से एक हजार टन गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर हुई है।
गेहूं की कुल खरीद का लक्ष्य कम, उत्पादन अनुमान ज्यादा
चालू रबी में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद का लक्ष्य 356.50 लाख टन का तय किया है जबकिे पिछले रबी सीजन में 357.95 लाख टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर की थी। केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन के लिए गेहूं का एमएसपी 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि पिछले रबी में गेहूं की खरीद 1,735 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हुई थी। मध्य प्रदेश में राज्य सरकार गेहूं की खरीद पर किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस दे रही है। कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं का रिकार्ड 991.2 लाख टन उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल 971.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था।..........आर एस राणा

दलहन की कीमतों में आई है तेजी, सप्ताहभर में 500 रुपये तक बढ़े भाव

आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्पादक मंडियों में दलहन की कीमतों में तेजी आई है तथा सप्ताहभर में ही इनके भाव में करीब 200 से 500 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। उत्पादक मंडियों में अरहर के भाव बढ़कर 6,000 से 6,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं, जबकि चना के भाव भी बढ़कर 4,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। जानकारों के अनुसार दलहन के भाव उंंचे हो चुके हैं इसलिए स्टॉक हल्का करना चाहिए। 
कर्नाटक की गुलबर्गा मंडी के दलहन कारोबारी सीएस नादर ने बताया कि उत्पादक मंडियों में अरहर के साथ ही उड़द की दैनिक आवक कम हो गई है। दैनिक आवक कम होने के कारण अरहर के साथ ही उड़द की कीमतों में तेजी आई है। मंडी में अरहर के भाव बढ़कर 6,000 से 6,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। सप्ताहभर में अरहर की कीमतों में 400 से 500 रुपये और उड़द की कीमतों में 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। केंद्र सरकार ने अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,675 रुपये और उड़द का समर्थन मूल्य 5,600 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। 
चना के आयात पर 60 फीसदी है आयात शुल्क
दिल्ली की लारेंस रोड़ के दलहन कारोबारी राधाकिशन गुप्ता ने बताया कि चना की दैनिक आवक कम होने से इसकी कीमतों में सप्ताहभर में करीब 200 से 250 रुपये की तेजी आई है। चना के भाव लारेंस रोड़ पर बढ़कर 4,500 से 4,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं जबकि चना का एमएसपी केंद्र सरकार ने 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। उन्होंने बताया कि चालू रबी में चना का उत्पादन पिछले साल से कम होने का अनुमान है, जबकि चना के आयात पर केंद्र सरकार ने 60 फीसदी का आयात शुल्क लगाया हुआ है। इसीलिए चना की कीमतों में तेजी आई हैं।
दलहन आयात की मात्रा तय
केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 6.5 लाख टन दालों के आयात को मंजूरी दी हुई है। चालू वित्त वर्ष के लिए मूंग और उड़द के डेढ़-डेढ़ लाख टन आयात को, और अरहर के दो लाख टन तथा मटर का डेढ़ लाख टन आयात करने की मंजूरी दी हुई है। इसके अलाववा करीब पौने दो लाख टन अरहर का मौजाम्बिक से सरकारी एजेंसियों के माध्यम से होगा। चना के आयात पर 60 फीसदी और मसूर के आयात पर 30 फीसदी आयात शुल्क लगाया था। वित्त वर्ष 2018-19 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी तक 21 लाख टन दालों का आयात हुआ था।
अरहर और चना का उत्पादन अनुमान कम
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में अरहर का उत्पादन घटकर 36.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 40.2 लाख टन का हुआ था। चना का उत्पादन भी चालू रबी में घटकर 103.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 111 लाख टन चना का उत्पादन हुआ था। दलहन का कुल उत्पादन फसल सीजन 2018-19 में बढ़कर 240.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 239.5 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था।..............आर एस राणा

विश्व बाजार में सोयाबीन की कीमतों में आई गिरावट से डीओसी की निर्यात मांग घटी

आर एस राणा
नई दिल्ली। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर से विश्व बाजार में सोयाबीन की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई है, इसका असर घरेलू बाजार में सोया डीओसी की कीमतों पर पड़ा है। घरेलू बाजार में चालू महीने में सोया डीओसी की कीमतों में 8.45 फीसदी की गिरावट आकर बंदरगाह पर भाव 32,500 से 33,000 रुपये प्रति टन रह गए जिससे निर्यात मांग कम हो गई।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के उपाध्यक्ष नरेश गोयनका ने बताया कि चीन, अमेरिका से सालाना करीब 400 लाख टन सोयाबीन का आयात करता है, लेकिन ट्रेड वॉर के कारण चीन की आयात मांग कम होने से विश्व बाजार में सोयाबीन की कीमतें चालू महीने में घटकर 11 साल से न्यूनतम स्तर पर आ गई थी। शिकागो बोर्ड आफ ट्रेड (सीबॉट) में 30 अप्रैल को सोयाबीन का भाव जुलाई वायदा में 8.64 डॉलर प्रति बुशल था जोकि 13 मई को घटकर 7.95 डॉलर प्रति बुशल रह गया। हालांकि उसके बाद से भाव में हल्का सुधार आया है। 
डीओसी के भाव घटे
उन्होंने बताया कि विदेशी बाजर में सोयाबीन की कीमतों में आई गिरावट के कारण घरेलू बाजार में सोया डीओसी की कीमतों में गिरावट आई है। कांडला बंदरगाह पर सोया डीओसी के भाव घटकर 32,500 से 33,000 रुपये प्रति टन रह गए जबकि चालू महीने के शुरू में इसके भाव 35,000 से 35,500 रुपये प्रति टन थे। सोयाबीन के भाव मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की मंडियों में 3,700 से 3,800 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। सोया रिफाइंड तेल के भाव इंदौर में 755 से 760 रुपये प्रति 10 किलो रहे। 
डीओसी के निर्यात में भारी गिरावट
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार अप्रैल में 12,265 टन सोया डीओसी का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल अप्रैल में 68,264 टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ था। अप्रैल में सोया डीओसी के भाव बढ़कर घरेलू बंदरगाह पर 460 डॉलर प्रति टन हो गए, जबकि जनवरी में इसका भाव 413 डॉलर प्रति टन था। वित्त वर्ष 2018-19 में डीओसी का कुल निर्यात 13,58,083 टन का हुआ था।
कीमतों में तेजी-मंदी मानसून पर करेगी निर्भर
सोपा के अनुसार चालू सीजन 2018-19 में सोयाबीन का उत्पादन 114.83 लाख टन का हुआ है जबकि अक्टूबर 2018 से अप्रैल 2019 तक मंडियों में 81 लाख टन सोयाबीन की आवक हो चुकी है। पिछले साल की समान अवधि में 66.50 लाख टन सोयाबीन की ही आवक ही हुई थी। उत्पादक मंडियों में 30 लाख टन से ज्यादा सोयाबीन का स्टॉक बचा हुआ है जबकि जून-जुलाई में बुवाई शुरू हो जायेगी। अत: आगे इसकी कीमतों में तेजी-मंदी मानसूनी बारिश पर निर्भर करेगी। ............ आर एस राणा

अमेरिका, चीन के ट्रेड वॉर से विश्व बाजार में कपास के दाम 13 फीसदी घटे

आर एस राणा
नई दिल्ली। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ी तनातनी से विश्व बाजार में कपास की कीमतों में सप्ताहभर में ही 13 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। न्यूयार्क कॉटन वायदा में 15 मई को कपास के भाव घटकर तीन साल के नीचले स्तर 65.79 सेंट प्रति पाउंड रह गए जबकि पिछले सप्ताह इसके भाव 75-76 सेंट प्रति पाउंड थे। विश्व बाजार में कीमतों में आई कमी से भारत से निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं, जबकि इससे आयात बढ़ने की आशंका है। 
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर बढ़ने से विश्व बाजार में कपास की कीमतों में भारी गिरावट आई है, इससे हमारे यहां से निर्यात पड़ते समाप्त हो गए हैं। उन्होंने बताया कि विश्व बाजार में कपास की कीमतों में आई गिरावट से आयात बढ़ने की संभावना है। चालू फसल सीजन में आयात बढ़कर 28 से 30 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में केवल 15 लाख गांठ का ही आयात हुआ था।
उन्होंने बताया कि चालू सीजन में कपास के भाव उंचे रहे हैं, इसलिए कपास की बुवाई बढ़ने का अनुमान है। कपास के प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना में मानसूनी बारिश कैसी होती है, इस पर कपास का उत्पादन काफी हद तक निर्भर करेगा। उन्होंने बताया कि चालू रबी में गेहूं की फसल की कटाई में देरी के कारण उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की बुवाई पिछले साल से पिछे चल रही है। 
घरेलू मंडियों में घटे कपास के भाव
कपास कारोबारी सुरेश कुमार ने बताया कि अहमदाबादम में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव 43,000 से 43,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रह गया। चालू सीजन में कपास के उत्पादन में कमी आई है, जिससे उत्पादक मंडियों में दैनिक आवक सीमित मात्रा में ही हो रही है। कपास की नई फसल की आवक सितंबर-अक्टूबर में बनेगी, इसलिए आगे कीमतों में तेजी-मंदी अमेरिका और चीन आगे संबंध कैसे रहते हैं इस पर भी निर्भर करेगी।
सीसीआई ने 1.40 लाख गांठ बेची
कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया निगम ने 1.40 लाख गांठ कपास खुले बाजार में बेची है। उन्होंने बताया कि विश्व बाजार में भाव कम होने से घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में कमी आई है, लेकिन निगम अभी कपास की बिक्री कीमतों में कमी नहीं करेगी। निगम घरेलू मंडियों में ई-निविदा के माध्यम कपास बेच रही है। निगम ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 10.7 लाख गांठ कपास की खरीदी है। 
उत्पादन अनुमान काफी कम
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास का उत्पादन घटकर 315 लाख गांठ ही होने का अनुमान है। सीजन के शुरू में सीएआई ने 348 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान जारी किया था। पिछले साल देश में 365 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू सीजन में 30 अप्रैल तक उत्पादक मंडियों में 278.73 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है। चालू सीजन में उत्पादन में कमी आने का असर निर्यात पर भी पड़ेगा। चालू सीजन में निर्यात घटकर 46 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 69 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। ....... आर एस राणा

अप्रैल में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 11 फीसदी घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में अप्रैल में 11 फीसदी की गिरावट आकर कुल आयात 12,32,283 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल अप्रैल में इनका आयात 13,86,466 टन का हुआ था। चालू तेल वर्ष 2018-19 की पहली छमाही में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात तीन फीसदी बढ़कर 75,41,689 टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 73,18,295 टन का हुआ था।
मार्च में आयात में 26 फीसदी की हुई थी बढ़ोतरी
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार अप्रैल खाद्य तेलों के साथ ही अखाद्य तेलों के आयात में मार्च की तुलना में भी कमी आई है। अप्रैल में खाद्य तेलों का आयात 11,98,763 टन का ही हुआ है जबकि मार्च में इनका आयात 13,93,255 टन का हुआ था। इसी तरह अखाद्य तेलों का आयात अप्रैल में घटकर 33,520 टन का ही हुआ है जबकि मार्च में अखाद्य तेलों का आयात 53,302 टन का हुआ था। मार्च में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 26 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। 
अप्रैल में महंगे हुए आयातित खाद्य तेल
एसईए के अनुसार विश्व बाजार में खाद्य तेलों की उपलब्धता ज्यादा होने के खाद्य तेलों की कीमतों में सालभर में 11 से 22 फीसदी की गिरावट तो आई है, लेकिन डॉलर के मुकाबले रुपया सालभर में 6 फीसदी कमजोर हुआ है। आयातित खाद्य तेलों के भाव मार्च के मुकाबले अप्रैल में तेज हुए हैं। आरबीडी पामोलीन के भाव भारतीय बंदरगाह पर अप्रैल में बढ़कर 569 डॉलर प्रति टन हो गए जबकि मार्च में इसका भाव 559 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रुड पॉम तेल का भाव मार्च के 520 डॉलर से बढ़कर अप्रैल में 530 डॉलर प्रति टन रह गए। क्रुड सोयाबीन तेल की कीमतें इस दौरान जरुर मार्च के 711 डॉलर प्रति टन से घटकर 692 डॉलर प्रति टन रह गए। ....... आर एस राणा

अगले पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 8.4 फीसदी घटने की आशंका-यूएसडीए

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले गन्ना पेराई सीजन 2019-20 में चीनी का उत्पादन 8.4 फीसदी घटकर 303 लाख टन ही होने का अनुमान है। अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार गन्ने के उत्पादन में कमी आने के कारण चीनी के उत्पादन में कमी आयेगी।
चालू गन्ना पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान देश में चीनी का 330 लाख टन उत्पादन का अनुमान है। यूएसडीए के अनुसार आगामी पेराई सीजन में गन्ने में रिकवरी की दर में कमी आने के साथ ही गन्ना के क्षेत्रफल में भी कमी आने का अनुमान है। इसके अलावा चीनी मिलों द्वारा सीधे गन्ने के रस से एथनॉल बनाने का असर भी चीनी उत्पादन पर पड़ेगा। 
35 लाख टन चीनी के निर्यात का अनुमान
यूएसडीए की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में आगामी पेराई सीजन में भी चीनी का सबसे ज्यादा होगा, हालांकि महाराष्ट्र और कर्नाटक में अगले पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन में कमी आने का अनुमान है। आगामी पेराई सीजन 2019-20 में चीनी का निर्यात 35 लाख टन होने का अनुमान है। यूएसडीए ने चालू पेराई सीजन में 34 लाख टन चीनी के निर्यात का अनुमान लगाया था। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में चीनी निर्यात के लिए कुल 30 लाख टन के अनुबंध हो चुके हैं, जिसमें से 28.53 लाख टन चीनी निर्यात के लिए मिलों से भेजी जा चुकी है।
चालू पेराई सीजन में उत्पादन अनुमान ज्यादा
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार, चालू पेराई सीजन में 2018-19 में चीनी का उत्पादन बढ़कर 330 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले पेराई सीजन के मुकाबले 5 लाख टन ज्यादा है। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में 30 अप्रैल 2019 तक 321.19 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के मुकाबले 9.36 लाख टन ज्यादा है। पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 311.83 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।................. आर एस राणा

छह जून को केरल में दस्तक देगा मानसून, 96 फीसदी बारिश होने का अनुमान-आईएमडी

आर एस राणा
नई दिल्ली। इस साल मानसून के पहुंचने में थोड़ी देरी होने की आशंका है, हालांकि मानसूनी बारिश सामान्य 96 फीसदी ही होने का अनुमान है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) द्वारा बुधवार को जारी भविष्यवाणी के अनुसार केरल में 6 जून को मानसून दस्तक देगा। आईएमडी के अनुमान से एक दिन पहले ही मौसम का आकलन करने वाली निजी संस्था स्काइमेट ने कहा था कि इस साल केरल के तट पर मानसून 4 जून को टकराएगा तथा मानूसनी बारिश भी सामान्य से कम 93 फीसदी ही होने का अनुमान जताया था।
आईएमडी के अनुसार इस साल मानसून के पहुंचने में थोड़ी देरी हो सकती है और यह 6 जून को केरल के तट पर टकराएगा। पिछले साल 29 मई को मानसून केरल के तट पर पहुंच गया था। जबकि 2017 में यह 30 मई को केरल के तट पर टकराया था।
आईएमडी की भविष्यवाणी 14 साल में 13 बार सही निकली
भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि पिछले 14 सालों के दौरान मानसून के पहुंचने की उसकी भविष्यवाणी 13 बार सही निकली है, सिर्फ एक बार यानि 2015 में उसका अनुमान सही नहीं गया था। 2015 में मौसम विभाग ने 30 मई को मानसून के केरल तट पर पहुंचने का अनुमान जारी किया था जबकि मानसून 5 जून को पहुंचा था।
अल-नीनो कमजोर रहने की संभावना
आईएमडी ने मानसून को लेकर इस साल के अपने पहले अनुमान में सामान्य बरसात होने की उम्‍मीद जताई है। मौसम विभाग के मुताबिक इस साल मानसून सीजन में अल-नीनो कमजोर रहने की संभावना है और सीजन बढ़ने के साथ यह और कमजोर होता जाएगा। मौसम विभाग के मुताबिक इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून लंबी अवधि के औसत का 96 फीसदी रहने का अनुमान है इसमें 5 फीसदी बारिश कम या ज्यादा होने का अनुमान है।
सामान्य से ज्यादा बारिश के आसार 50 फीसदी
मौसम विभाग के मुताबिक इस साल मानसून सीजन के दौरान सामान्य से बहुत ज्यादा (110 फीसदी से ज्यादा) बरसात की संभावना 2 फीसदी ही है, जबकि सामान्य से अधिक (104-110 फीसदी) की संभावना 10 फीसदी है। इसके अलावा सामान्य बारिश यानि 96-104 फीसदी बारिश होने की संभावना 39 फीसदी है। यानि कुल मिलाकर सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश की संभावना 50 फीसदी से ज्यादा है।
सामान्य से कम बारिश होने का अनुमान 32 फीसदी
मौसम विभाग के मुताबिक सामान्य से थोड़ी कम यानि 90-96 फीसदी बरसात की संभावना 32 फीसदी और 90 फीसदी से कम बारिश की संभावना 16 फीसदी है। मानसून सीजन के दौरान अगर 90 फीसदी से कम बारिश हो तो सूखाग्रस्त घोषित किया जाता है। यानि इस साल 16 फीसदी संभावना सूखाग्रस्त मानसून की भी है। खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए मानसूनी बारिश काफी महत्वपूर्ण है। पिछले खरीफ सीजन में देश के कई राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और ओडिशा आदि में सामान्य से कम बारिश हुई थी, जिससे इन राज्यों के कई जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया हुआ है। .............. आर एस राणा

चालू पेराई सीजन में 21.29 लाख टन का हो चुका है चीनी का निर्यात

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई गन्ना पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में 21.29 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन 2017-18 में करीब पांच लाख टन चीनी का ही निर्यात हुआ था।
आल इंडिया शुगर ट्रेड एसोसिएशन (एआईएसटीए) के अनुसार पहली अक्टूबर 2018 से 6 अप्रैल 2019 के दौरान 21.29 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ है, जिसमें 9.76 लाख टन रॉ-शुगर है। इसके अलावा निर्यात के लिए 7.24 लाख टन चीनी पाइपलाइन में है। एआईएसटीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आर पी भगरिया ने बताया कि चालू पेराई सीजन में चीनी निर्यात के लिए कुल 30 लाख टन के अनुबंध हुए हैं, जिसमें से 28.53 लाख टन चीनी मिलों से भेजी जा चुकी है। 
पिछले पेराई सीजन में केवल 5 लाख टन का ही हुआ था निर्यात
विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण पेराई सीजन 2017-18 में देश से केवल पांच लाख टन चीनी का ही निर्यात था। चालू पेराई सीजन में केंद्र सरकार द्वारा चीनी निर्यात पर दी जा रही सब्सिडी से ही इसके निर्यात में पिछले पेराई सीजन की तुलना में बढ़ोतरी हुई है। एआईएसटीए के अनुसार भारत से इस समय चीनी का निर्यात मुख्यत: बांग्लादेश, श्रीलंका, सोमालिया, अफगानिस्तान और ईरान को हुआ है।
चालू पेराई सीजन में रिकार्ड 330 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान
केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में चीनी के स्टॉक को कम करने के लिए चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान 50 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी हुई है। साथ ही चीनी के निर्यात बढ़ावा देने के लिए चीनी मिलों को परिवहन पर सब्सिडी भी दी जा रही है। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में चीनी का रिकार्ड 330 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है जोकि पिछले पेराई सीजन के 325 लाख टन से पांच लाख टन ज्यादा ही है। देश में चीनी की सालाना खपत 260 लाख टन की ही होती है। महाराष्ट्र के साथ ही कर्नाटक की चीनी मिलों में गन्ने की पेराई बंद हो चुकी है जबकि उत्तर प्रदेश के साथ पंजाब और हरियाणा की कुछ चीनी मिलों में ही पेराई चल रही है।............... आर एस राणा

अमूल को चालू वित्त वर्ष में 20 फीसदी कारोबार बढ़कर 40,000 करोड़ होने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। अमूल ब्रांड के तहत डेयरी उत्पादों का विपणन करने वाली गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) को चालू वित्त वर्ष 2019-20 में कारोबार 20 फीसदी बढ़कर 40,000 करोड़ रुपये पर पहुंचने की उम्मीद है।
जीसीएमएमएफ ने वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान अपने कारोबार में 13 फीसदी की बढ़ोतरी कर कुल कारोबार 33,150 करोड़ रुपये का किया है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष में कंपनी का कारोबार 29,225 करोड़ रुपये का हुआ था।
चालू वित्त वर्ष में मूल्य और मात्रा दोनों में बढ़ोतरी की उम्मीद 
अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर आर एस सोढ़ी ने बताया कि पिछले वित्त वर्ष में हमने उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की थी, इसके बावजूद भी राजस्व में बढ़ोरती हुई थी। चालू वित्त वर्ष में मूल्य और मात्रा दोनों में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष 2019-20 में कुल कारोबार 20 फीसदी बढ़ने की संभावना है।
अमूल दे रही है अपने किसानों को दूध के ज्यादा दाम
सोढ़ी ने कहा कि पिछले पांच महीने में महाराष्ट्र में दूध की खरीद कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि हम कई राज्यों में अपने दूध किसानों को ज्यादा दाम दे रहे हैं, इसके बावजूद भी अमूल के राजस्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अमूल दूध की कीमतों में तत्काल बढ़ोतरी की संभावना को उन्होंने खारिज कर दिया।
दैनिक दूध की क्षमता को बढ़कर 380-400 लाख लीटर करने की योजना
जीसीएमएमएफ ने हाल ही में कहा है कि अमूल फेडरेशन के अंतर्गत आने वाली 18 सदस्यीय यूनियनों ने वित्त वर्ष 2018-19 में 45,000 करोड़ रुपये का कारोबार किया, जोकि इसके पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 13 फीसदी ज्यादा था। गुजरात के 18,700 गांव में अमूल फेडरेशन के 18 सदस्यीय यूनियनों में 36 लाख से अधिक किसान जुड़े हुए हैं जिनसे औसतन दैनिक 230 लाख लीटर दूध की खरीद की जा रही है। अमूल की सदस्य यूनियनों ने दैनिक 350 लाख लीटर दैनिक दूध प्रसंस्करण क्षमता को बढ़ाकर अगले दो साल में 380 से 400 लाख लीटर करने की योजना बनाई हुई है।........ आर एस राणा

घरेलू बाजार में कीमतें उंची होने से अप्रैल में सोया डीओसी का निर्यात 25 फीसदी घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। घरेलू मंडियों में दाम उंचे होने के कारण अप्रैल में सोया डीओसी का निर्यात 25 फीसदी घटकर 75 हजार टन का ही हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष के अप्रैल में 1.01 लाख टन डीओसी का निर्यात हुआ था। चालू तेल वर्ष 2018-19 के पहले सात महीनों अक्टूबर-18 से अप्रैल-19 के दौरान डीओसी का कुल निर्यात 43 फीसदी बढ़कर 16.88 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 11.78 लाख टन का ही हुआ था।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा) के अनुसार अप्रैल में भारतीय बंदरगाह पर सोया डीओसी का भाव बढ़कर 460 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि 440 डॉलर प्रति टन था। मार्च में सोया डीओसी के निर्यात में अच्छी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन अप्रैल में कीमतों में आई तेजी के कारण निर्यात सौदों में कमी आई। उद्योग के अनुसार चालू तेल वर्ष अक्टूबर-18 से सितंबर-19 के दौरान 20 लाख टन सोया डीओसी का निर्यात होने का अनुमान है। 
कुल आवक पिछले साल से ज्यादा
सोपा के अनुसार खरीफ सीजन 2018 में सोयाबीन का 114.83 लाख टन का उत्पादन हुआ था, जबकि नई फसल के समय उत्पादक मंडियों में बकाया स्टॉक 1.50 लाख टन का बचा हुआ था। चालू सीजन में करीब 1.50 लाख टन का आयात भी हुआ है। ऐसे में सोयाबीन की कुल उपलब्धता 117.83 लाख टन की बैठती है। चालू सीजन में अक्टूबर से अप्रैल के दौरान उत्पादक मंडियों में 81 लाख टन सोयाबीन की आवक हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 66.50 लाख टन से ज्यादा है।
सोयाबीन का बकाया स्टॉक 37 लाख टन से ज्यादा
उद्योग के अनुसार चालू तेल वर्ष में सोया डीओसी का सबसे ज्यादा निर्यात बंगलादेश, नेपाल और फ्रांस, ईरान, जापान और वितयनाम को हुआ है। सोपा के अनुसार उत्पादक राज्यों की मंडियों में सोयाबीन का बकाया स्टॉक 37 लाख टन से ज्यादा का बचा हुआ है जबकि अक्टूबर में नई फसल की आवक बनेगी। ...... आर एस राणा

13 मई 2019

पंजाब के गन्ना किसानों को राज्य द्वारा घोषित 25 रुपये के भुगतान में भी देरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। पंजाब में गन्ने की पेराई अंतिम चरण में है लेकिन राज्य की चीनी मिलों के साथ ही राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाला भुगतान भी नहीं मिलने से किसानों में नाराजगी है। गन्रा बकाया को लेकर राज्य के किसानों द्वारा धरना-प्रदर्शन किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले 25 रुपये प्रति क्विंटल की कुल धनराशि में से केवल 20 फीसदी का भुगतान ही अभी तक किया गया है।
राज्य सरकार ने चालू गन्ना पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के लिए गन्ना किसानों को राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) की 310 रुपये प्रति क्विंटल की राशि में से 25 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान करने की घोषणा की थी। चीनी मिलों को किसानों को 285 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करना है। राज्य के गन्ना आयुक्त एस जसवंत सिंह ने आउटलुक को बताया कि इस मद में राज्य सरकार ने अभी तक 25-26 करोड़ रुपये का भुगतान गन्ना किसानों को किया है। उन्होंने बताया कि कुल राशि का पता तो पेराई सीजन समाप्त होने के बाद ही चलेगा, लेकिन माना जा रहा है कि कुल राशि 120 से 122 करोड़ रुपये की बैठेगी। उन्होंने बताया कि गन्ना किसानों को लगातार भुगतान किया जा रहा है। 
राज्य की 14 मिलों में हो चुकी है पेराई बंद
उन्होंने बताया कि राज्य में 16 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी, जिनमें से 14 चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है तथा अब केवल 2 चीनी मिलों में ही पेराई चल रही है। चालू पेराई सीजन में राज्य में 76 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन हो चुका है। चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का कितना बकाया है, यह बताने से उन्होंने इंकार कर दिया।
राज्य के किसानों का 1,250 करोड़ रुपये से ज्यादा है बकाया
भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल ने बताया कि पंजाब की चीनी मिलों पर राज्य के किसानों का बकाया 1,250 रुपये से ज्यादा का हो गया है लेकिन राज्य सरकार बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है। इसीलिए राज्य के गन्ना किसान नाराज हैं। उन्होंने बताया कि राज्य की धूरी शुगर मिल पर किसानों का 70 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल में दिए फैसले में 15 दिन के अंदर गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का आदेश दिया है।..... आर एस राणा

गुजरात और महाराष्ट्र के जलाशयों में पानी स्तर घटा, किसान परेशान

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहले से ही सूखे की मार झेल रहे गुजरात और महाराष्ट्र के जलाशयों में पानी कम होने से किसान परेशान हैं। इसके अलावा राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़ और केरल के जलाशयों में भी पानी सामान्य से कम होने के कारण किसानों को पीने के साथ ही खेतों की सिंचाई के लिए संकट का सामना करना पड़ रहा है। देश के अधिकांश राज्यों में खरीफ फसलों की बुवाई मानसूनी बारिश और जलाशयों के पानी पर ही ज्यादा निर्भर करती है।   
केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़ और केरल के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल की तुलना में कम है जबकि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल की तुलना में ज्यादा है। ओडिशा, उत्‍तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल के बराबर ही है।
पश्चिमी क्षेत्र के जलाशयों में औसत से 9 फीसदी कम पानी
मंत्रालय के अनुसार 9 मई 2019 को पश्चिमी क्षेत्र गुजरात तथा महाराष्ट्र के 27 जलाशयों में पानी का स्तर घटकर कुल भंडारण क्षमता का 15 फीसदी ही रह गया है जोकि पिछले दस साल के औसत अनुमान 24 फीसदी से 9 फीसदी कम है। पिछले साल की समान अवधि में पश्चिमी क्षेत्र के जलाशयों में कुल क्षमता का 21 फीसदी पानी था।
दक्षिण भारत के जलाशयों में दस साल के औसत स्तर से पानी कम
दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के 31 जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल से तो ज्यादा है लेकिन 10 साल के औसत स्तर से कम है। 9 मई 2019 को इन जलाशयों में पानी का स्तर कुल भंडारण क्षमता का 14 फीसदी ही रह गया है जोकि दस साल के औसत 16 फीसदी से कम है। वैसे, पिछले साल की समान अवधि में इन राज्यों के जलाशयों में पानी का स्तर 13 फीसदी ही था।
पूर्वी क्षेत्र के जलाशयों में पानी पिछले साल से कम
पूर्वी क्षेत्र के झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा के 14 जलाशयों में पानी का स्तर पिछले साल से तो कम है लेकिन दस साल के औसत स्तर से थोड़ा ज्यादा है। 9 मई 2019 को इन जलाशयों में पानी का स्तर कुल भंडारण का 31 फीसदी रह गया है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इन राज्यों के जलाशयों में पानी का स्तर 33 फीसदी था। हालांकि पिछले दस साल के औसत 28 फीसदी से ज्यादा ही है। 
मध्य और उत्तरी क्षेत्र के जलाशयों में स्थिति अच्छी
मध्य क्षेत्र के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के 12 जलाशयों में पानी अच्छी स्थिति में है। इन राज्यों के जलाशयों में 9 मई 2019 को पानी का स्तर कुल भंडारण क्षमता का 28 फीसदी है जोकि पिछले 10 साल के औसत 25 फीसदी से ज्यादा है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इन जलाशयों में पानी का स्तर 26 फीसदी था। उत्तरी क्षेत्र के हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान के छह जलाशयों में पानी का स्तर कुल भंडारण क्षमता का 49 फीसदी है जोकि पिछले दस साल के औसत 26 फीसदी से ज्यादा है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों में पानी की स्थिति 18 फीसदी ही थी।.......  आर एस राणा

स्टार्च मिलें एडवांस लाइसेंस के तहत यूक्रेन से मक्का का कर रही है आयात

आर एस राणा
नई दिल्ली। स्टार्च मिलें यूक्रेन से एडवांस लाइसेंस के तहत नोन जीएम मक्का का आयात कर रही है, हालांकि आयात होने के बावजूद भी घरेलू बाजार में मक्का की मौजूदा कीमतों में ज्यादा मंदे की उम्मीद नहीं है। आयातित मक्का का भाव भारतीय बदंगाह पर पहुंच 205 डॉलर प्रति टन है, इसमें परिहवन लागत एवं अन्य खर्च मिलाकर बंदरगाह के नजदीक स्थित स्टार्च मिलों में पहुंच मक्का का भाव 1,750 से 1,800 रुपये प्रति क्विंटल है।
दिल्ली के मक्का कारोबारी कमलेश कुमार जैन ने बताया कि रबी सीजन में मक्का के प्रमुख उत्पादक राज्य बिहार की मंडियों में मक्का के भाव 1,700 से 1,750 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि दिल्ली पहुंच इसके भाव 1,950 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल हैं। बिहार से दक्षिण भारत के राज्यों में पहुंच मक्का के भाव 2,000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा है, इसलिए आयातित मक्का सस्ती पड़ रही है। बारिश सामान्य से कम होने के साथ ही कई राज्यों में कीट फाल आर्मीवर्म के संक्रमण के कारण खरीफ 2018 में मक्का की फसल को कई राज्यों में नुकसान हुआ था, जिस कारण गुजरात, महाराष्ट्र के साथ ही कर्नाटक आदि में मक्का का स्टॉक कम होने के कारण कीमतों में तेजी आई थी। हालांकि महीने भर से भाव में मंदा तो आया है लेकिन खरीफ मक्का की आवक सितंबर में बनेगी, उसके बाद ही भाव में मंदा आने का अनुमान है। 
एमएमटीसी ने आयात के लिए मांगी हुई है निविदा
केंद्र सरकार ने अप्रैल 2019 में 15 फीसदी के आयात शुल्क की दर से एक लाख टन नोन जीएम मक्का के आयात की अनुमति दी थी। इसका आयात उपयोगकर्ता कंपनियां को एमएमटीसी के माध्यम से करना है। एमएमटीसी के एक अधिकारी ने बताया कि मक्का आयात के लिए निविदा मांगी हुई हैं, तथा निविदा भरने की अंतिम तिथि 15 मई 2019 है। सूत्रों के अनुसार एमएमटीसी मक्का आयात के लिए मांगी हुई निविदा को कैंसिल कर सकती है। 
एडवांस लाइसेंस के तहत हो रहा है मक्का का आयात 
यूएस ग्रेन काउंसिल के भारतीय प्रतिनिधि अमित सचदेव ने बताया कि यूक्रेन से 205 डॉलर प्रति टन की दर से मक्का का आयात हो रहा है। मक्का का आयात एडवांस लाइसेंस के तहत हो रहा है, इसके तहत आयातकों को आगे इसका निर्यात करना होगा। उन्होंने बताया कि अभी तक करीब 80 हजार टन से ज्यादा मक्का का आयात हो चुका है। मक्का का आयात बंदरगाह के आस-पास स्थित स्टार्च मिलें ही कर रही हैं। यूक्रेन में मक्का की कटाई पूरी हो चुकी है तथा फसल सीजन 2018-19 में यूक्रेन में मक्का का उत्पादन 358.1 लाख टन होने का अनुमान है। जीएम होने के कारण ब्राजील और अमेरिका से मक्का के आयात की संभावना नहीं है। सूत्रों के अनुसार इससे पहले वर्ष 2015 में भी केंद्र सरकार ने पांच लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दी थी, लेकिन आयात हुआ था केवल 2.5 लाख टन। 
रबी में उत्पादन अनुमान कम
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में रबी सीजन में मक्का का उत्पादन 75.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 76.3 लाख टन का उत्पादन हुआ था। देश में खरीफ में मक्का का ज्यादा उत्पादन होता है। फसल सीजन 2018-19 में खरीफ और रबी सीजन को मिलाकर कुल उत्पादन 278 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 271.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था।......  आर एस राणा

उत्तर प्रदेश से गेहूं की खरीद धीमी, किसान समर्थन मूल्य से नीचे बेचने को मजबूर

आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किसानों को फसलों का समर्थन मूल्य देने के बड़े-बड़े वादे तो किए, लेकिन राज्य से गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर हो रही खरीद में दावों की पोल खुलने लगी है। पहली अप्रैल से शुरू हुए रबी खरीफ विपणन सीजन में 8 मई तक राज्य की मंडियों से एमएसपी पर केवल 18.19 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि पिछले रबी सीजन की समान अवधि में 25.51 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी।
पीलीभीत जिले की पूरनपुर तहसील के गांव बेगपुर के किसान गुरुप्रीत सिंह ने बताया कि मंडी में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद नाममात्र की ही हो रही है, इसलिए व्यापारियों को औने-पौने दाम पर गेहूं बेचना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि अप्रैल में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से नुकसान हुआ, और अब खरीद नहीं होने से किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है।
व्यापारी समर्थन मूल्य से नीचे खरीद रहे हैं गेहूं
बरेली जिले की बेहड़ी तहसील के गेहूं किसान दिलबाग सिंह ने बताया कि गेहूं की खरीद के लिए सरकारी कांटे तो लगे हुए हैं, लेकिन खरीद नाममात्र की हो रही है। उन्होंने बताया कि गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,840 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि व्यापारी 1,700 से 1,750 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर गेहूं खरीद रहे हैं। केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए गेहूं के समर्थन मूल्य में 105 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि पिछले साल समर्थन मूल्य 1,735 रुपये प्रति क्विंटल था।
तय लक्ष्य से खरीद कम होने की आशंका
चालू रबी विपणन सीजन 2018-19 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश से 50 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है जबकि राज्य सरकार ने खरीद के लक्ष्य को बढ़ाकर 55 लाख टन कर दिया है। जानकारों के अनुसार खरीद सीमित मात्रा में ही हो रही है, ऐसे में माना जा रहा है कि समर्थन मूल्य पर कुल खरीद तय लक्ष्य से कम होने की आशंका है।
राज्य में 350 लाख टन उत्पादन का अनुमान
राज्य के कृषि निदेशालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में गेहूं का उत्पादन 350 लाख टन होने का अनुमान है। राज्य से गेहूं की खरीद के लिए एफसीआई ने राज्य में 213 और राज्य की एजेंसियों ने 6,000 खरीद केंद्र खोले हुए हैं। गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद 15 जून तक चलेगी। पिछले रबी सीजन में उत्तर प्रदेश से समर्थन मूल्य पर 52.94 लाख टन गेहूं की खरीद की थी।........आर एस राणा

गेहूं की सरकारी खरीद 10 फीसदी पिछड़ी, तय लक्ष्य से कम होने की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद 10.28 फीसदी पिछड़कर 265.29 लाख टन की ही हुई है जबकि पिछले साल रबी में इसकी खरीद 294.70 लाख टन की हुई थी। चालू रबी में गेहूं की कुल खरीद तय लक्ष्य 356.50 लाख टन से कम रहने की आशंका है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उत्पादक राज्यों में अप्रैल में बेमौसम बारिश ओलावृष्टि से फसल की आवक में देरी हुई थी, जिस कारण चालू रबी में गेहूं की खरीद पिछे चल रही है। हालांकि उन्होंने बताया कि सप्ताहभर से उत्पादक मंडियों में दैनिक आवक का दबाव बना हुआ है, इसलिए सरकारी खरीद भी बढ़ने लगी है।
हरियाणा से तय से ज्यादा हुई खरीद, पंजाब से कम
एफसीआई के अनुसार पंजाब से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 112.04 लाख टन गेहूं की खरीद ही हुई है जबकि पिछले रबी की समान अवधि में राज्य से 121.14 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। चालू रबी में राज्य से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 125 लाख टन का तय किया गया है। पंजाब से पिछले रबी सीजन में 126.92 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। हरियाणा से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 85.05 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य से 84.11 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। राज्य से खरीद का लक्ष्य 85 लाख टन का तय किया गया था, जबकि पिछले साल कुल खरीद 87.84 लाख टन की हुई थी।
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से खरीद चल रही है पिछे
मध्य प्रदेश से समर्थन मूल्य पर चालू रबी में 46.23 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य से 54.80 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। राज्य से खरीद का लक्ष्य चालू रबी में 75 लाख टन का तय किया गया है, जबकि पिछले साल समर्थन मूल्य पर 73.13 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश से चालू रबी में 14.68 लाख टन गेहूं की खरीद ही हो पाई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 22.97 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। राज्य से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 50 लाख टन का तय किया गया है जबकि पिछले साल राज्य से 52.94 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी।
राजस्थान से खरीद पिछड़ी
राजस्थान से चालू रबी में 7.04 लाख टन गेहूं ही समर्थन मूल्य पर खरीदा गया है जबकि पिछले साल की समान अवधि में राज्य से 10.75 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। राज्य से खरीद का लक्ष्य चालू रबी में 17 लाख टन का तय किया गया है जबकि पिछले साल राज्य से 15.32 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। अन्य राज्यों में उत्तराखंड से 26,012 लाख टन, चंडीगढ़ से 11,968 लाख टन, गुजरात से 4,395 टन और हिमाचल प्रदेश से 365 टन गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर हुई है। 
तय लक्ष्य से खरीद कम होने की आशंका
चालू रबी में एमएसपी पर गेहूं की खरीद का लक्ष्य 356.50 लाख टन का तय किया गया है। सूत्रों के अनुसार मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से गेहूं की खरीद तय लक्ष्य से कम होने की आशंका है। पिछले रबी सीजन में एमएसपी पर 357.95 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि पिछले रबी में गेहूं की खरीद 1,735 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की गई थी। मध्य प्रदेश में राज्य सरकार गेहूं की खरीद पर किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस दे रही है। 
रिकार्ड उत्पादन अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में गेहूं का रिकार्ड 991.2 लाख टन का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 971.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था। दिल्ली में गेहूं के भाव 1,925 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।........आर एस राणा

उद्योग ने कपास उत्पादन अनुमान में एक बार फिर की 6 लाख गांठ की कटौती

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू फसल सीजन में उद्योग पहली अक्टूबर 2018 से अभी तक पांच बार कपास उत्पादन अनुमान में कटौती कर चुका है। ताजा अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास का उत्पादन घटकर 315 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) ही होने का अनुमान है। पिछले साल देश में 365 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष अतुल एस. गणात्रा के अनुसार प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र में पहले के उत्पादन अनुमान में दो लाख गांठ की कमी आने की आशंका है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में भी पहले का उत्पादन अनुमान घटने की आशंका है। पानी की कमी के कारण कई राज्यों में कपास की तीसरी और चौथी पिकिंग नहीं हो पाई थी।
उद्योग 33 लाख गांठ घटा चुका है उत्पादन अनुमान
सीएआई ने कपास सीजन के आरंभ में अक्टूबर 2018 में 348 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान जारी किया था, उसके बाद से अभी इसमें पांच बार में 33 लाख गांठ की कटौती की जा चुकी है। उद्योग के नए अनुमान के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में 74.20 लाख गांठ कपास का उत्पादन ही होने का अनुमान है पिछले साल महाराष्ट्र में 83 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। इसके अलावा तेलंगाना में 38 लाख गांठ, आंध्रप्रदेश में 14 और मध्य प्रदेश में 23.25 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है। पिछले साल इन राज्यों में क्रमश: 51.30, 18.50 और 21.50 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। 
निर्यात घटने और आयात बढ़ने की उम्मीद
पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू सीजन में 30 अप्रैल तक उत्पादक मंडियों में 278.73 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है। चालू सीजन में उत्पादन में कमी आने का असर निर्यात पर भी पड़ेगा। चालू सीजन में निर्यात घटकर 46 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 69 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। उद्योग के अनुसार चालू सीजन में कपास का कुल आयात बढ़कर 31 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 15 लाख गांठ का ही आयात हुआ था। पहली अक्टूबर 2018 से 30 अप्रैल 2019 तक 42.50 लाख गांठ की निर्यात शिपमेंट हो चुकी हैं जबकि 7.27 लाख गांठ का आयात हो चुका है। ...... आर एस राणा

06 मई 2019

बासमती चावल का रिकार्ड निर्यात, गैर-बासमती का घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2018-19 में बासमती चावल का निर्यात 9 फीसदी बढ़कर रिकार्ड 44.15 लाख टन का हुआ है जबकि गैर-बासमती चावल के निर्यात में इस दौरान 14.56 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 75.34 लाख टन का ही हुआ है। ईरान की आयात मांग बढ़ने से बासमती चावल के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है।
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में बासमती चावल में ईरान की आयात ज्यादा मांग रही है, जिससे कुल निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि ईरान भारत से सालाना 6.5 से 7 लाख टन बासमती चावल का आयात कर रहा था, लेकिन वित्त वर्ष 2018-19 में ईरान ने 10 लाख टन का आयात किया है। उन्होंने बताया कि यूरोपीय यूनियन की आयात मांग बासमती चावल में इस दौरान कम रही है। गैर-बासमती चावल के निर्याम में कमी का प्रमुख कारण बंगलादेश की आयात मांग कम रहना है। पिछले साल बंगलादेश के पास चावल का स्टॉक कम था, जिस कारण देश से रिकार्ड गैर-बासमती चावल का निर्यात हुआ था।
गैर-बासमती चावल के निर्यात में आई कमी
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में बासमती चावल का निर्यात बढ़कर 44.15 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष के दौरान 40.56 लाख टन का निर्यात हुआ था। गैर-बासमती चावल का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 में घटकर 75.34 लाख टन का ही हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष में देश से रिकार्ड 88.18 लाख टन गैर-बासमती चावल का निर्यात हुआ था।
बासमती चावल का निर्यात मूल्य के हिसाब से 23 फीसदी ज्यादा
चावल की निर्यातक फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वित्त वर्ष 2018-19 में डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर रहा, जिससे बासमती चावल का निर्यात मूल्य के हिसाब से ज्यादा बढ़ा है। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान मूल्य के हिसाब से बासमती चावल का निर्यात 23 फीसदी बढ़कर 32,806 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष के दौरान 26,871 करोड़ रुपये मूल्या का ही बासमती चावल का निर्यात हुआ था। गैर-बासमती चावल का निर्यात मूल्य के हिसाब से वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान घटकर 20,903 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष में 23,437 करोड़ रुपये मूल्य का गैर-बासमती चावल का निर्यात हुआ था।
बासमती चावल की कीमतों में आई नरमी
बासमती चावल के कारोबारी रामनिवास खुरानिया ने बताया कि बासमती चावल में इस समय निर्यात मांग पहले की तुलना में कम हुई है। पूसा 1,121 बासमती चावल सेला का भाव शुक्रवार को 7,150 रुपये प्रति क्विंटल रहा, इसमें 50 रुपये की गिरावट आई है। पूसा 1,121 बासमती धान का भाव मंडियों में 4,000 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि उत्पादक मंडियों में गेहूं की आवक होने के कारण धान की आवक नहीं हो रही है।....... आर एस राणा

चीनी का रिकार्ड 330 लाख टन उत्पादन अनुमान, गन्ना किसान मुश्किल में

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान देश में चीनी का रिकार्ड 330 लाख टन उत्पादन का अनुमान है। चीनी का बंपर उत्पादन किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। बंपर उत्पादन के साथ ही चीनी का निर्यात सीमित मात्रा में होने के कारण चीनी मिलों पर किसानों का बकाया लगातार बढ़ा रहा है जिससे गन्ना किसानों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार बकाया में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में 2018-19 में चीनी का उत्पादन बढ़कर 330 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले पेराई सीजन के मुकाबले 5 लाख टन ज्यादा है। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में 30 अप्रैल 2019 तक 321.19 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के मुकाबले 9.36 लाख टन ज्यादा है। पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 311.83 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। 
महाराष्ट्र में गन्ना उत्पादन में कमी की आशंका
इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन में अभी भी 100 चीनी मिलों में पेराई चल रही है, तथा उत्तर भारत के गन्ना उत्पादक राज्यों में गन्ने में रिकवरी की दर पिछले पेराई सीजन में ज्यादा आई है। हालांकि चीनी मिलें बंद होने से पिछले 15 से 20 दिनों से चीनी के उत्पादन में कमी जरुर आई है। जानकारों के अनुसार सूखे के कारण महाराष्ट्र में गन्ना के क्षेत्रफल में कमी आने की आशंका है।
उत्तर प्रदेश में 68 मिलों में चल रही है पेराई
उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 30 अप्रैल 2019 तक चीनी का उत्पादन बढ़कर 112.65 लाख टन का हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 0.27 लाख टन ज्यादा है। राज्य में 119 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हुई थी, जबकि अभी तक 58 चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है। इस समय राज्य में 68 चीनी मिलों में ही पेराई चल रही है। महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 107 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है, तथा राज्य की लगभग सभी चीनी मिलों में पेराई बंद हो गई है।
कर्नाटक में मिलों पेराई हो चुकी है बंद
कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 30 अप्रैल 2019 तक 43.20 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है तथा राज्य की सभी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है। इसके अलावा गुजरात में 11.19 लाख टन, तमिलनाडु में 7.05 लाख टन, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में 7.60 लाख टन और मध्य प्रदेश और गुजरात में 5.30 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है। उधर बिहार में 8.35 लाख टन, पंजाब में 7.70 लाख टन और हरियाणा में 30 अप्रैल 2019 तक 6.75 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। 
आगामी पेराई सीजन में आरंभ में 147 लाख टन स्टॉक की उम्मीद
चालू पेराई सीजन में 330 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है, जबकि पहली अक्टूबर 2018 को नए पेराई सीजन के आरंभ में 107 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। देश में चीनी की सालाना खपत 260 लाख टन होने का अनुमान है, ऐसे में आगामी पेराई सीजन पहली अक्टूबर 2019 को चीनी का बंपर बकाया स्टॉक 147 लाख टन बचने का अनुमान है। विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण चीनी का निर्यात 30 लाख टन ही होने का अनुमान है।................  आर एस राणा

गेहूं किसानों पर दोहरी मार, समर्थन मूल्य पर खरीद 26 फीसदी पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी में गेहूं की किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। अप्रैल के मध्य में जहां बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसल को नुकसान हुआ वहीं बारिश से भीगे हुए गेहूं की खरीद सरकारी एजेंसियां नहीं कर रही है जिससे किसान परेशान हैं। चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में गेहूं की सरकारी खरीद 26 फीसदी पिछड़ कर अभी तक 196.10 लाख टन की ही हुई है जबकि पिछले रबी सीजन की समान अवधि में 266.07 लाख टन की हो चुकी थी। खरीद में सबसे ज्यादा कमी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से आई है। चालू रबी में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कुल खरीद तय लक्ष्य 356.50 लाख टन से कम होने की आशंका है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार पंजाब से चालू रबी में एमएसपी पर 75.55 लाख टन गेहूं की खरीद ही हो पाई है जबकि पिछले रबी में इस समय तक राज्य से 113.19 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। राज्य से खरीद का लक्ष्य 125 लाख टन का तय किया गया है। हरियाणा से चालू रबी में अभी तक समर्थन मूल्य पर 73.30 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में राज्य से 79.06 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। राज्य से खरीद का लक्ष्य 85 लाख टन का तय किया गया है। सूत्रों के अनुसार पंजाब और हरियाणा से चालू रबी में गेहूं की खरीद तय लक्ष्य से ज्यादा ही होने का अनुमान है।
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से खरीद लक्ष्य से कम रहने की आशंका
मध्य प्रदेश से चालू रबी में 33.46 लाख टन गेहूं की खरीद ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य से 46.87 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। राज्य से चालू रबी में 75 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया गया है। सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश से भी चालू रबी में गेहूं की खरीद 9.14 लाख टन की ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में राज्य से 17.23 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। मध्य प्रदेश के साथ ही उत्तर प्रदेश से चालू रबी में गेहूं की खरीद तय लक्ष्य से कम होने की आशंका है।
राजस्थान से गेहूं की खरीद कम
राजस्थान से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 4.33 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि पिछले साल इस समय तक 9.01 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी राज्य से चालू रबी में 15.32 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया गया है। अन्य राज्यों में उत्तराखंड से 16,172 टन, चंडीगढ़ से 9,795 टन और गुजरात से 3,875 टन गेहूं की खरीद ही समर्थन मूल्य पर हुई है। केंद्र सरकार ने चालू रबी में 356.50 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है जबकि पिछले रबी में 357.95 लाख टन गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर हुई थी। 
समर्थन मूल्य 105 रुपये बढ़ाया
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का एमएसपी 105 रुपये बढ़ाकर 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि रबी में गेहूं की खरीद 1,735 रुपये प्रति क्विंटल पर की थी। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के चालू रबी में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 991.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले रबी में 971.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था।...... आर एस राणा

वैज्ञानिकों ने की चने में जेनेटिक कोड की खोज, उच्च पैदावार वाली किस्म तैयार करने में मिलेगी मदद

आर एस राणा
नई दिल्ली। कृषि वैज्ञानिकों ने चने की जेनेटिक कोड की खोज की है, इससे जलवायु परिर्वतन के अनुकूल अधिक उत्पादन देने वाली किस्म को तैयार करने में मदद मिलेगा। इससे किसानों को चना की ऐसी किस्म मिल सकेंगी, जो प्रतिकूल प्रस्थितियों में भी ज्यादा उत्पादन दे सकेंगी। भारत में दलहन में सबसे ज्यादा उत्पादन चना का होता है, अत: चना का उत्पादन बढ़ने से दालों में आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी।
डॉ त्रिलोचन महापात्र, सचिव, कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (डीएआरई) और महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कहा कि यह वैश्विक कृषि अनुसंधान के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है और ये अद्वितीय वैज्ञानिक समाधान दुनिया की कृषि सम्बंधित समस्याओं को कम करने में मदद करेंगे।
आईसीआरआईएसएटी के महानिदेशक डॉ पीटर कार्बेर्री ने कहा की कि इस नई खोज से कृषि प्रजनकों, को विविध जर्मप्लाज्म और जीन का उपयोग करके जलवायु-परिवर्तन के लिए तैयार चने की नई किस्म विकसित करने में मदद मिलेगी, जो विकासशील देशों में कृषि उत्पादकता में वृद्धि और स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान होगा।
अधिक तापमान में भी उत्पादन बढ़ाने में मिलेगी मदद
डॉ राजीव वार्ष्णेय जोकि इस परियोजना के प्रमुख और आईसीआरआईएसएटी के रिसर्च प्रोग्राम डायरेक्टर जेनेटिक गेन्स (आरपीजीजी) एवं डायरेक्टर सेण्टर ऑफ एक्सीलेंस इन जीनोमिक्स एंड सिस्टम्स बायोलॉजी (सीईजीएसबी), ने बताया की “जीनोम-वाइड एसोसिएशन के अध्ययन से हमें 13 महत्वपूर्ण लक्षणों के लिए जिम्मेदार जीन्स की पहचान करने में सफलता मिली है। उदाहरण के लिए, हमने आरईन1, बी-1, 3-गलूसैंस, आरईएफ6 जैसे जीन्स की खोज की, जो फसल को 380सी तक तामपान सहन करने और उच्च उत्पादकता प्रदान करने में मदद कर सकता है।
विश्व स्तर के 21 शोध संस्थानों के कृषि वैज्ञानिकों ने मिलकर किया काम
वैश्विक स्तर के 21 शोध संस्थानों के कृषि वैज्ञानिको ने 45 देशों से मिली चने की 429 प्रजातियों का सफलतापूर्वक अनुक्रमण करके सूखे और गर्मी के प्रति सहिष्णुता रखने वाले नए-नए जीन की खोज की है। टीम का नेतृत्व हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स- (आईसीआरआईएसएटी) के डॉ. राजीव वार्ष्णेय ने किया। इस टीम में भारतीय अनुसंधान परिषद के दो महत्वपूर्ण संस्थानों भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के अलावा 19 अन्य संस्थानों के वैज्ञानिक सम्मिलित हैं।
दलहन के कुल उत्पादन में चना की भागीदारी ज्यादा
फसल सीजन 2018-19 में दलहन का उत्पादन 240.2 लाख टन होने का अनुमान है, इसमें चना का उत्पादन 100 लाख टन से ज्यादा है। कृषि मंत्रालय के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में चना की बुवाई 96.59 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल देश में 107.57 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में चना का उत्पादन 103.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 111 लाख टन का उत्पादन हुआ था।....... आर एस राणा

नेपाल के रास्ते हो रहा सस्ते खाद्य तेलों का आयात, उद्योग ने सरकार को लिखा पत्र

आर एस राणा
नई दिल्ली। नेपाल के रास्ते भारत में शून्य शुल्क पर पॉम तेल के साथ ही सोयाबीन तेल का आयात हो रहा है, जिससे घरेलू बाजार में जहां किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीचे दाम पर तिलहन की फसलें बेचनी पड़ रही है वहीं उद्योग को भी इससे नुकसान उठाना पड़ रहा है।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा) के अनुसार दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) देशों से खाद्य तेलों के आयात पर शून्य शुल्क होने के कारण आयातक नेपाल के रास्ते सस्ते खाद्य तेलों क्रुड पॉम तेल और सोयाबीन तेल का आयात कर रहे हैं। सोपा ने सरकार को लिखे पत्र में कहा कि नेपाल में सोयाबीन का उत्पादन नहीं होता, जबकि नेपाल में सोयाबीन की पेराई क्षमता भी सीमित मात्रा में ही है।
नेपाल में पॉम और सोयाबीन का नहीं होता उत्पादन
सोपा के अनुसार नेपाल में पाम तेल का उत्‍पादन भी नहीं होता है। नेपाल से आयात होने वाला पाम तेल इंडोनेशिया और मलेशिया से आयात किया हुआ है, जबकि सोयाबीन तेल दक्षिण अमेरिकी देशों से आयात किया हुआ है। शून्य शुल्क होने के कारण आयातक इन देशों से नेपाल के रास्ते खाद्य तेलों का आयात कर रहे हैं, जिसका सीधा असर घरेलू किसानों के साथ ही उद्योग को भी उठाना पड़ रहा है।
नेपाल के रास्ते करीब 5,000 टन सस्ता पड़ता है आयात
उद्योग के अनुसार नेपाल के रास्‍ते भारत में सोयाबीन तेल और पाम ऑयल का जो आयात हो रहा है, वह पूरी तरह से नियमों का उल्‍लंघन है। इससे सीमा शुल्‍क की भी चोरी की जा रही है। नेपाल के रास्ते हो रहे आयात को रोकने के लिए सोपा ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्‍ट टैक्‍सेस एंड कस्‍टम के चेयरमैन को पत्र लिखा है। उद्योग के अनुसार नेपाल के रास्ते हो रहा खाद्य तेल करीब 5,000 रुपये प्रति टन तक सस्ता पड़ रहा है। सोपा ने नेपाल में उत्पादित होने वाले खाद्य तेल के आयात की ही अनुमति देने का अनुरोध किया है। इस तरह के आयात से किसानों और उद्योग को भारी नुकसान हो रहा हैं इसलिए इस पर त्‍वरित कार्रवाई की जानी चाहिए। 
किसान सरसों बेच रहे हैं समर्थन मूल्य से नीचे
उद्योग ने कहा गया है कि किसानों को उचित मूल्‍य सुनिश्चित करने और उन्‍हें अधिक तिलहन का उत्‍पादन बढ़ाने को प्रोत्‍साहित करने के लिए खाद्य तेलों पर आयात शुल्‍क को बढ़ाया गया था, साथ ही इससे खाद्य तेलों के आयात पर हमारी निर्भरता भी कम होती। उद्योग ने लिखा है कि शून्‍य शुल्‍क पर बड़ी मात्रा में खाद्य तेल का यह आयात किसानों को मिलने वाले लाभ को पूरी तरह से खत्‍म कर देगा और उद्योग पर भी प्रतिकूल असर डालेगा। इसके अलावा सरकार को राजस्‍व की हानि भी हो रही है। उत्पादक मंडियों में सरसों 3,500 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है, जबकि केंद्र सरकार ने चालू रबी सीजन के लिए सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।........ आर एस राणा