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31 जनवरी 2020

वित्त वर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.8 फीसदी संभव : आर्थिक सर्वेक्षण

आर एस राणा
नई दिल्ली। आगामी वित्त वर्ष 2020-21 में कृषि एवं संबंधित क्षेत्र की आर्थिक विकास दर 2.8 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि चालू वित्त वर्ष में कृषि एवं संबंधित क्षेत्र की आर्थिक विकास दर 2.9 फीसदी रहने का अनुमान है।
यह अनुमान शुक्रवार को जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में लगाया गया है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की आर्थिक विकास दर आगामी वित्त वर्ष 2020-21 में 6-6.5 फीसदी रहने का अनुमान है। मुख्‍य आर्थिक सलाहकारकृष्‍णमूर्ति सुब्रमण्‍यन ने वित्त वर्ष 2020-21 में कृषि और इससे जुड़े क्षेत्र में 2.8 फीसदी ग्रोथ का भरोसा जताया है। मौजूदा वित्‍त वर्ष के लिए यह अनुमान 2.9 फीसदी रखा गया है। साथ ही उन्‍होंने 2019-20 में इंडस्‍ट्रीयल ग्रोथ के 2.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है।
हाल के महीनों में महंगाई में वृद्धि का रुख देखा गया
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत में वर्ष 2014 से ही महंगाई निरंतर घटती जा रही है। हालांकि, हाल के महीनों में महंगाई में वृद्धि का रुख देखा गया है। उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुख्‍य महंगाई दर वर्ष 2018-19 (अप्रैल- दिसम्‍बर 2018) के 3.7 फीसदी से बढ़कर वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 4.1 फीसदी हो गई है। थोक मूल्‍य सूचकांक (डब्‍ल्‍यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर में वर्ष 2015-16 और वर्ष 2018-19 के बीच की अवधि के दौरान वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि, डब्‍ल्‍यूपीआई पर आधारित महंगाई दर वर्ष 2018-19 की अप्रैल-दिसम्‍बर 2018 अवधि के 4.7 फीसदी से घटकर वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 1.5 फीसदी रह गई। ................ आर एस राणा

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने की जरुरत : सर्वेक्षण

आर एस राणा
नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2019-20 पेश करते हुए वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के संकल्प को दोहराया। किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि और कृषि ऋण, बीमा कवरेज और सिंचाई सुविधाओं जैसी कुछ बुनियादी चुनौतियों का समाधान करने की तत्काल जरुरत है।
संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कृषि और संबद्ध क्षेत्र की कुछ बुनियादी चुनौतियों के समाधान की आवश्यकता है। कृषि जिंसों के लिए वैश्विक बाजारों की खोज पर ध्यान देने की जरुरत है। कृषि, जल संरक्षण, बेहतर कृषि पद्धतियों के माध्यम से पैदावार में सुधार, बाजार तक पहुंच, संस्थागत ऋण की उपलब्धता, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच संबंधों को बढ़ाने जैसे मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।
सर्वेक्षण के अनुसार, एक प्रभावी जल संरक्षण तंत्र सुनिश्चित करते हुए सिंचाई सुविधाओं के विस्तार की आवश्यकता है। कृषि ऋण के प्रावधान के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण की जरुरत है। चूंकि छोटे और सीमांत किसानों की जोत का अनुपात काफी बड़ा है अत: विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए संबद्ध क्षेत्रों, जैसे पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन, को रोजगार और आय का एक सुनिश्चित माध्यमिक स्रोत प्रदान करने के लिए बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
खेती में मशीनीकरण पर जोर देने की जरुरत
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जमीन, जल संसाधन और श्रम शक्ति में कमी आने के साथ उत्पादन का मशीनरीकरण तथा फसल कटाई के बाद के प्रचालनों पर जिम्मेदारी आ जाती है। कृषि के मशीनरीकरण से भारतीय कृषि वाणिज्यिक कृषि के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। कृषि में मशीनरीकरण को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चीन (59.5 फीसदी) तथा ब्राजील (75 फीसदी) की तुलना में भारत में कृषि का मशीनरीकरण 40 फीसदी हुआ है।
ग्रामीण परिवारों के लिए पशुधन आय का दूसरा महत्वपूर्ण साधन
लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए पशुधन आय का दूसरा महत्वपूर्ण साधन है और यह क्षेत्र किसानों की आय को दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि पिछले पांच वर्षों में पशुधन क्षेत्र 7.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि मछलीपालन खाद्य, पोषाहार, रोजगार और आय का महत्वपूर्ण साधन रहा है। मछलीपालन क्षेत्र से देश में लगभग 16 मिलियन मछुआरों और मछलीपालक किसानों की आजीविका चलती है। मछलीपालन के क्षेत्र में हाल के वर्षों में वार्षिक औसत वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है। इस क्षेत्र के महत्व को समझते हुए 2019 में स्वतंत्र मछलीपालन विभाग बनाया गया है।
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के लिए खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। प्रसंस्करण के उच्च स्तर से बर्बादी कम होती है, मूल्यवर्धन में सुधार होता है, फसल की विविधता को प्रोत्साहन मिलता है, किसानों को बेहतर लाभ मिलता है तथा रोजगार प्रोत्साहन के साथ-साथ निर्यात आय में भी वृद्धि होती है। 2017-18 में समाप्त होने वाले पिछले छह वर्षों के दौरान खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र लगभग 5.6 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर (एएजीआर) से बढ़ रहा है। वर्ष 2017-18 में 2011-12 के मूल्यों पर विनिर्माण तथा कृषि क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) क्रमशः 8.83 प्रतिशत और 10.66 प्रतिशत रहा।
पूर्वोत्‍तर के क्षेत्रों में वित्‍तीय समावेशन को बढ़ाने की जरूरत
आर्थिक समीक्षा में पूर्वोत्‍तर में ऋण के तेज वितरण में सुधार के लिए पूर्वोत्‍तर के क्षेत्रों में वित्‍तीय समावेशन को बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया गया है। फसल बीमा की जरूरत पर बल देते हुए आर्थिक समीक्षा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के लाभों के बारे में बताया गया है, जिसकी शुरुआत 2016 में फसल बुवाई से पहले से लेकर, फसल कटाई के बाद तक के प्राकृतिक जोखिमों को कवर करने के लिए की गई थी। पीएमएफबीवाई की वजह से सकल फसल क्षेत्र (जीसीए) मौजूदा 23 फीसदी से बढ़कर 50 फीसदी हो गया है। सरकार ने एक राष्‍ट्रीय फसल बीमा पोर्टल का भी गठन किया, जिसमें सभी हितधारकों के लिए इंटरफेस उपलब्‍ध है।
खाद्य सब्सिडी बिल में कमी के लिए राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की दरों की समीक्षा
विकास प्रक्रिया की स्‍वाभाविक राह और अर्थव्‍यवस्‍था में हो रहे संरचनात्‍मक बदलाव की वजह से कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान मौजूदा मूल्‍य पर देश के सकल मूल्‍य वर्धन में वर्ष 2014-15 के 18.2 फीसदी से घटकर वर्ष 2019-20 में 16.5 फीसदी हो गया। आर्थिक समीक्षा में बढ़ते खाद्य सब्सिडी बिल को कम करने के लिए राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दरों की समीक्षा का प्रस्‍ताव किया गया है। आर्थिक समीक्षा में भारतीय खाद्य निगम के बफर स्‍टॉक के विवेकपूर्ण प्रबंधन की भी सलाह दी गई है।
पीएमकेएसवाई के साथ ड्रिप एवं स्प्रिंकल सिंचाई योजनाओं पर जोर
खेतों के स्‍तर पर जल इस्‍तेमाल की क्षमता बढ़ाने के लिए आर्थिक समीक्षा में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) जैसी योजनाओं के जरिए सूक्ष्‍म सिंचाई (ड्रिप एवं स्प्रिंकल सिंचाई) के इस्‍तेमाल की सलाह दी गई है। आर्थिक समीक्षा में नाबार्ड के साथ 5,000 करोड़ रुपये के आरंभिक फंड के गठन के साथ समर्पित सूक्ष्‍म सिंचाई फंड की भी चर्चा की गई।.............. आर एस राणा

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए 25 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जायेंगे : राष्ट्रपति

आर एस राणा
नई दिल्ली। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए 25 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जायेंगे। सरकार ने सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएम-किसान) के ​तहत 8 करोड़ से अधिक किसानों को 43,000 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की है।
संसद के दोनों सदनों के संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि किसान निस्वर्थ भाव से देश के सेवा करते हैं, इसलिए मेरी सरकार की प्राथमिकताओं में ग्रामीण क्षेत्र का विकास कर किसानों के जीवन में बदलाव लाना है। उन्होंने कहा कि सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए आने वाले वर्षों में 25 लाख करोड़ रुपये की राशि खर्च करने जा रही है साथ ही किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से आय-केंद्रित प्रणाली विकसित करने की रणनीति पर सरकार काम कर रही है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के तहत, आठ करोड़ से अधिक किसान परिवारों के बैंक खातों में 43,000 करोड़ रुपये से अधिक जारी किए गए हैं। दो जनवरी को, मेरी सरकार ने एक साथ छह करोड़ किसानों के बैंक खातों में 12,000 करोड़ रुपये स्थानांतरित करके एक रिकॉर्ड बनाया है। केंद्र सरकार पीएम-किसान योजना के माध्यम से तीन समान किस्तों में सालाना 6,000 रुपये किसानों के खाते में ​राशि जारी करती है। केंद्र सरकार ने पिछले साल अंतरिम बजट में इस योजना को शुरू किया था। इस योजना के दायरे में करीब 14.5 करोड़ किसान परिवार आने का अनुमान है।
दलहन और तिलहनों की खरीद में 20 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी
राष्ट्रपति ने कहा कि  सरकार खरीफ और रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लगातार बढ़ा रही है, ताकि एमएसपी को इनपुट लागत से कम से कम डेढ़ गुना तय किया जा सके। उन्होंने कहा कि दालों और तिलहनों की खरीद में 20 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार, राज्यों के साथ मिलकर प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को राहत देने के लिए काम कर रही है। प्रधानमंत्री बीमा योजना के तहत हर साल औसतन 5.5 करोड़ किसान बहुत कम प्रीमियम पर फसल बीमा कवर का लाभ उठा रहे हैं तथा पिछले तीन वर्षों में 57,000 करोड़ रुपये के किसानों के दावों का निपटान किया गया है।
ई-नाम में 400 मंडियों को और जोड़ने की योजना
उन्होंने कहा कि किसानों के लिए ऑनलाइन राष्ट्रीय बाजार ई-नाम का प्रभाव भी दिखने लगा है। लगभग 1.65 करोड़ किसानों और लगभग 1.25 लाख व्यापारियों को इससे जोड़ा गया है, जबकि 90,000 करोड़ रुपये के व्यापार का लेन-देन हुआ है। ई-नाम का दायदा और बढ़ाने के लिए नए वित्त वर्ष में इसके तहत करीब 400 मंडियों को और जोड़ने की योजन है जबकि करीब 540 मंडियों को पहले ही जोड़ा जा चुका है।
शहद उत्पादन में लगभग 60 फीसदी की वृद्धि हुई, निर्यात दोगुने से ज्यादा
राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार वैकल्पिक कृषि पद्धतियों जैसे जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। शहद उत्पादन में लगभग 60 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि इसका निर्यात दोगुने से अधिक हो गया है। देश के 50 करोड़ से अधिक पशुधन के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है। कोविंद ने कहा कि राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत, 13,000 करोड़ रुपये की राशि का उपयोग टीकाकरण और अन्य उपायों से किया जा रहा है ताकि मवेशियों को पैर और मुंह की बीमारी से बचाया जा सके।...    आर एस राणा

योग की तरह अब देसी घी की ब्रैंडिंग करेगा भारत, आईसीएआर से मांगी रिपोर्ट

आर एस राणा
नई दिल्ली। जैतून का तेल दुनिया में सबसे अच्छा व स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है, लेकिन भारत अब देसी घी को दुनिया के बाजारों में उतार कर जैतून के तेल को टक्कर देने की योजना बना रहा है। केंद्रीय पशुपालन व डेयरी मंत्रालय में सचिव अतुल चतुर्वेदी का कहना है कि योग की तरह देसी घी की ब्रैंडिंग करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि देसी घी दुनिया का एकमात्र कुकिंग मीडियम है जिसका एक से अधिक बार उपयोग करने से नुकसान नहीं है, लिहाजा यह जैतून के तेल की तुलना में बेहतर साबित हो सकता है। इस सिलसिले में केंद्र सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों को जैतून तेल के मुकाबले देसी घी में पाए जाने वाले पौष्टिक व गुणकारी तत्वों की तुलनात्मक रिपोर्ट सौंपने को कहा है।
आईसीएआर से मांगी तुलनात्मक रिपोर्ट मांगी
चतुर्वेदी ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में कहा कि देसी घी जैतून के तेल से बेहतर है, जिसकी ब्रैंडिंग करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमने जिस तरह से योग की ब्रैंडिंग की है उसी तरह अगर देसी घी की ब्रैंडिंग की जाए तो यह दुनिया के बाजारों में भारत का एक अच्छा उत्पाद बन सकता है, जिसका हम निर्यात कर सकते हैं। हमने आईसीएआर को जैतून के तेल के साथ ही अन्य खाने के तेल और देसी घी की तुलनात्मक रिपोर्ट मांगी है।
आयुर्वेद में देसी घी को खाने के तेलों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है
चतुर्वेदी ने कहा कि विशेषज्ञों द्वारा देसी घी को खाने के अन्य तेलों के मुकाबले बेहतर बताए जाने पर इसकी ब्रैंडिंग की जाएगी। उन्होंने कहा कि जिस तरह यूरोपीय देशों ने जैतून की ब्रैंडिंग सबसे अच्छा खाद्य तेल के रूप में की है, उसी तरह देसी घी की ब्रैंडिंग करके दुनिया को यह बताया जा सकता है कि जैतून के तेल से भी देसी घी बेहतर है। आयुर्वेद में देसी घी को खाने के तेलों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है जो पित्त और वात दोष में गुणकारी होता है। देसी घी का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है। अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि भारत से दूध और दूध के अन्य उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए उत्पादन लागत कम करने के साथ-साथ पशुओं को रोगमुक्त करना जरूरी है, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।...........   आर एस राणा

30 जनवरी 2020

गेहूं का उत्पादन 10 और चना का 5 फीसदी बढ़ने का अनुमान : स्काईमेट

आर एस राणा
नई दिल्ली। बुआई में हुई बढ़ोतरी के साथ अनुकूल मौसम से चालू रबी सीजन में गेहूं के साथ ही चना के उत्पादन अनुमान में बढ़ोतरी की संभाना है। गेहूं का उत्पादन 10.6 फीसदी बढ़कर 11.30 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि चना का उत्पादन 5 फीसदी बढ़कर 106.6 लाख टन होने का अनुमान है।
मौसम की जानकारी देने वाली निजी कंपनी स्काईमेट वेदर सर्विसेज के अनुसार चालू रबी में देश के कई राज्यों में अक्टूबर, नवंबर में हुई बारिश से गेहूं की बुआई में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही जनवरी में कई गेहूं उत्पादक राज्यों में अच्छी बारिश हुई है, जिससे गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 11.30 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 10.21 करोड़ टन का उत्पादन हुआ था। कृषि मंत्रालय के अनुसार गेहूं की बुआई बढ़कर चालू रबी में 334.35 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 299.08 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।
चना और सरसों का उत्पादन अनुमान भी ज्यादा
रबी दलहन की प्रमुख फसल चना का उत्पादन बढ़कर 106.6 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल देश में 101.3 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चना की बुआई पिछले साल के 95.89 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 106.40 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है। सरसों का उत्पादन चालू रबी में 1.4 फीसदी बढ़कर 94.6 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल सरसों का उत्पादन 93.3 लाख टन का हुआ था। हालांकि सरसों की बुआई पिछले साल की तुलना में थोड़ी कम हुई है। सरसों की बुआई 69.24 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुआई 69.45 लाख हेक्टेयर में हुई थी।............ आर एस राणा

खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कटौती के प्रस्ताव को वाणिज्य मंत्रालय ने किया खारिज

आर एस राणा
नई दिल्ली। उपभोक्ता मामले मंत्रालय के खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कटौती के प्रस्ताव को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने खारिज कर दिया है। सूत्रों के अनुसार पहली फरवरी को बजट पेश होना है, तथा बजट में सरकार तिलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के उपायों की घोषणा कर सकती है, इसलिए वाणिज्य मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
वैसे भी खाद्य तेलों की कीमतों में पिछले दस दिनों से लगातार मंदा बना हुआ है, तथा इनकी कीमतों में करीब 8 से 10 रुपये प्रति किलो तक का मंदा आ चुका है। सरसों तेल का भाव बढ़कर 990 रुपये प्रति 10 किलो हो गया था, जोकि घटकर अब 870 रुपये प्रति 10 किलो रह गया है।
सूत्रों के अनुसार उपभोक्ता मामले मंत्रालय इस प्रस्ताव को अब सचिवों की कमेटी के पास भेजेगा, और सचिवों की कमेटी से ड्यूटी घटाने की मांग करेगा। सचिवों की कमेटी की बैठक बजट से एक दिन पहले 31 जनवरी को होनी प्रस्तावित है। हालांकि जानकारों का मानना है कि खाद्य तेलों की कीमतों में आई गिरावट को देखते हुए खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कटौतरी के प्रस्ताव सचिव की कमेटी में खारिज होने की संभावना है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने क्रुड पाम तेल के आयात पर पांच फीसदी और सोया और सनफ्लावर तेल पर 10 फीसदी आयात शुल्क घटाने का प्रस्ताव भेजा था।........... आर एस राणा

खाद्य तेलों के आयात में कमी करने के लिए बजट में एनएमईओ की हो सकती घोषणा

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्य तेलों के आयात में कमी करने के लिए केंद्र सरकार बजट में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ) लाने की योजना बना रही है, जिसका मकसद घरेलू स्तर पर तिलहनों का उत्पादन बढ़ाना है। इसके तहत जहां उद्योग को क्षमता बढ़ाने के लिए सस्ता कर्ज देने की योजना है, वहीं किसानों को उन्नत किस्म के बीजों और खाद पर सब्सिडी दी जायेगी।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार एनएमईओ का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है, तथा पहली फरवरी 2020 को पेश होने वाले आम बजट 2020-21 में इसकी घोषणा हो सकती है। राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के तहत चार सब मिशन बनाए हैं। पहले मिशन में तिलहनी फसलों सोयाबीन, सरसों, मूंगफली, तिल और कुसुम आदि फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को उन्नत किस्म के बीज और खाद आदि पर सब्सिडी देने की योजना है। इसके अलावा दूसरे मिशन के तहत उन फसलों का उत्पादन बढ़ाना है, जोकि अन्य उपयोग में आती है लेकिन इनसे तेल भी प्राप्त होता है जैसे कपास, केस्टर सीड और राइब्रान आदि। इसके अलावा तीसरे मिशन के तहत तिलहन उत्पादक क्षेत्रों में प्रोसेसिंग उद्योग की स्थापना के साथ ही उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी के लिए सस्ता ऋण दिए जाने की योजना है। चौथे मिशन के तहत उपभोक्ताओं में जागरुकता पैदा करना, जिससे की प्रति व्यक्ति खाद्य तेलों की खपत में कमी आए।
तिलहन की ज्यादातर खेती असिंचित क्षेत्र में होती है
तिलहन की ज्यादातर खेती असिंचित क्षेत्र में होती है तथा गेहूं और धान के मुकाबले तिलहनी फसलों का उत्पादन प्रति हेक्टेयर कम होता है। जिस कारण किसान तिलहन की खेती को प्राथमिकता नहीं देते। उन्होंने बताया कि एनएमईओ के तिलहन का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जायेगा। इसके तहत तिलहन किसानों को फसलों के वाजिब दाम देने के साथ ही आयातित खाद्य तेलों के शुल्क में बढ़ोतरी करने के साथ ही अन्य उपाय भी शामिल हैं। हाल ही केंद्र सरकार ने रिफाइंड तेलों के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल किया है। देश में खाद्य तेलों की सालाना खपत करीब 250 लाख टन की होती है, जबकि उत्पादन लगभग 100 लाख टन का ही है। अत: सालाना करीब 150 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया जाता है।
फसल सीजन 2013-14 के बाद तिलहन उत्पादन में आई कमी
देश में तिलहनों का रिकार्ड उत्पादन फसल सीजन 2013-14 में 327.49 लाख टन का हुआ था, लेकिन उसके बाद से इसमें कमी दर्ज की गई। फसल सीजन 2014-15 में तिलहन का उत्पादन घटकर 275.11 लाख टन और वर्ष 2015-16 में केवल 252.51 लाख टन का ही हुआ। फसल सीजन 2016-17 और 2017-18 में उत्पादन क्रमश: 312.76 और 314.59 लाख टन का ही हुआ। फसल सीजन 2018-19 में तिलहन का उत्पादन 322.57 लाख टन का हुआ है। तिलहन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अगले पांच साल में तिलहनों का बढ़ाकर करीब 480 लाख टन करने का लक्ष्य एनएमईओ में किया गया है।
सालाना 70,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का करते हैं आयात
उद्योग के अनुसार खाद्य तेलों के आयात पर सालाना करीब 70,000 करोड़ रुपये का खर्च हो रहा है। खाद्य तेलों का आयात तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर-18 से अक्टूबर-19) के दौरान 149.13 लाख टन का हुआ है जबकि इसके पिछले तेल वर्ष में आयात 145.16 लाख टन का हुआ था। तेल वर्ष 2016-17 में देश में रिकार्ड 150.77 लाख टन का हुआ था।.............  आर एस राणा

प्याज और आलू के साथ टमाटर का उत्पादन बढ़ेगा, बागवानी फसलें 31.33 करोड टन होने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। उपभोक्ताओं को इस समय भले ही प्याज महंगे दाम पर खरीदना पड़ रहा है, लेकिन फसल सीजन 2019-20 में प्याज, आलू के साथ ही टमाटर का उत्पादन अनुमान ज्यादा है। कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार बागवानी फसलों का उत्पादन 0.84 फीसदी बढ़कर रिकार्ड 31.33 करोड़ टन होने का अनुमान है।
किसान पारंपरिक फसलों के बजाए बागवानी फसलों की बुआई को तरजीह दे रहे हैं, यही कारण है कि बागवानी फसलों की बुआई में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। मंत्रालय के अनुसार फसल सीजन 2019-20 में बागवानी फसलों की बुवाई 256.1 लाख हेक्टेयर में हुई है जोकि इसके पिछले साल के 254.3 लाख हेक्टयेर से ज्यादा है। बुआई में हुई बढ़ोतरी से फसल सीजन 2019-20 में बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़कर 31.33 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इनका उत्पादन 31.07 करोड़ टन का हुआ था। बागवानी फसलों का उत्पादन खाद्यान्न उत्पादन से भी ज्यादा हो रहा है।
प्याज का उत्पादन 7.17 फीसदी और आलू का 3.49 फीसदी बढ़ने का अनुमान
पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2019-20 में प्याज का उत्पादन 7.17 फीसदी बढ़कर 244.5 लाख टन का होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 228.2 लाख टन का उत्पादन हुआ था। फसल सीजन 2018-19 में कई राज्यों में बेमौसम बारिश और बाढ़ से प्याज की खरीफ और लेट खरीफ फसल को भारी नुकसान हुआ था, जिस कारण उत्पादन में कमी आई। आलू का उत्पादन 3.49 फीसदी बढ़कर 519.4 लाख टन होने का अनुमान है जबकि फसल सीजन 2018-19 में 510.9 लाख टन का उत्पादन हुआ था। टमाटर का उत्पादन इस दौरान 1.68 फीसदी बढ़कर 193.3 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 190.1 लाख टन का उत्पादन ही हुआ था।
बेमौसम बारिश और बाढ़ से अंगुर, केला, आम, पपीता, अनार को नुकसान
फलों का उत्पादन फसल सीजन 2019-20 के पहले अनुमान के अनुसार 2.27 फीसदी घटने का अनुमान है। कई राज्यों में बेमौसम बारिश और बाढ़ से अंगुर, केला, आम और पपीता के साथ ही अनार की फसल को नुकसान हुआ है, जिसका असर उत्पादन पर पड़ा है। सब्जियों का उत्पादन चालू फसल सीजन में पिछले साल की तुलना में 2.64 फीसदी ज्यादा होने का अनुमान है। ..............  आर एस राणा

गेहूं की रिकार्ड बुआई, रबी फसलों का रकबा 654 लाख हेक्टेयर के पार

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में गेहूं की बुआई 11.79 फीसदी बढ़कर रिकार्ड 334.35 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि रबी फसलों का कुल रकबा 9.47 फीसदी बढ़कर 654.13 लाख हेक्टेयर हो चुका है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार गेहूं के साथ ही दलहन, मोटे अनाजों और तिलहन की बुआई बढ़ी है। रबी फसलों की कुल बुआई बढ़कर 654.13 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 597.52 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। गेहूं की बुआई बढ़कर 334.35 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 299.08 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। सामान्यत: गेहूं की बुआई 305.58 लाख हेक्टेयर में ही होती है। फसल सीजन 2016-17 में गेहूं की बुआई 313.60 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में अक्टूबर, नवंबर में हुई बारिश से गेहूं की बुआई में बढ़ोतरी हुई है। चालू रबी में मध्य प्रदेश में गेहूं की बुआई बढ़कर 79.68 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 60 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। इसी तरह से गुजरात में 13.90 लाख हेक्टेयर में और महाराष्ट्र में 10.05 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है जबकि पिछले साल इन राज्यों में क्रमश: 8.07 और 5.58 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। राजस्थान में गेहूं की बुआई 33.15 और पंजाब में 35.08 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है। पिछले साल इस समय तक इन राज्यों में क्रमश: 28.25 और 35.20 लाख हेक्टेयर में बुआई हो पाई थी। हरियाणा में 24.90 और उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुआई 98.70 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है।
चना की बुआई में बढ़ोतरी, मसूर की कम
दालों की बुआई चालू रबी में बढ़कर 159.18 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 150.60 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 95.89 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 106.40 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है। मसूर की बुआई 16.02 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 16.88 लाख हेक्टेयर से कम है। मटर की बुआई 9.56 लाख हेक्टेयर में, उड़द की बुआई 7.42 लाख हेक्टेयर में और मूंग की बुआई 5.57 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 10.41 लाख हेक्टेयर, 7.26 लाख हेक्टेयर और 5.67 लाख हेक्टयेर में ही हुई थी।
ज्वार, मक्का के साथ ही जौ की बुआई ज्यादा
मोटे अनाजों की बुआई बढ़कर चालू रबी सीजन में 54.83 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 47.08 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुआई बढ़कर 29.91 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 24.87 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मक्का की बुआई 16.47 लाख हेक्टेयर और जौ की बुआई 7.82 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 14.23 और 7.25 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
सरसों की बुआई पिछले साल के लगभग बराबर, मूंगफली की बढ़ी
रबी तिलहन की बुआई 79.66 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 79.61 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई 69.24 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुआई 69.45 लाख हेक्टेयर में हुई थी। मूंगफली की बुआई 4.60 लाख हेक्टेयर में हुई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 4.33 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। अलसी की बुआई 3.33 लाख हेक्टेयर और सनफ्लावर की बुआई 1.01 लाख हेक्टेयर में हुई है। धान की रोपाई चालू रबी में बढ़कर 26.11 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई केवल 21.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।............ आर एस राणा

कपास की सरकारी खरीद 261 फीसदी बढ़ी लेकिन भाव फिर भी समर्थन मूल्य से नीचे

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू सीजन में कपास की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकारी खरीद तो 261.30 फीसदी बढ़कर 38.66 लाख गांठ की हो चुकी है लेकिन उत्पादक मंडियों में कपास के दाम 5,200 से 5,400 रुपये प्रति क्विंटल ही हैं जबकि केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए लॉन्ग स्टेपल कपास का समर्थन मूल्य 5,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
कॉटन कार्पोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू सीजन में निगम समर्थन मूल्य पर 38.66 लाख गांठ कपास की खरीद कर चुकी है जबकि पिछले पूरे सीजन में निगम ने केवल 10.7 लाख गांठ कपास की खरीद ही की थी। उन्होंने बताया कि अभी तक हुई खरीद में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी तेलंगाना की 22.15 लाख गांठ है। अन्य राज्यों में कर्नाटक से 1.15 लाख गांठ, आंध्रप्रदेश से 1.05 लाख गांठ, महाराष्ट्र से 6.4 लाख गांठ, मध्य प्रदेश से 1.05 लाख गांठ तथा गुजरात से 2.20 लाख गांठ कपास की खरीद की है। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से 4.45 लाख गांठ तथा ओडिशा से 57 हजार गांठ कपास की खरीद हुई है।
अभी तक 14—15 लाख गांठ के हुए हैं निर्यात सौदे
कमल कॉटन ट्रेडर्स प्रा. लिमिटेड के डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि मंडियों में कपास की दैनिक आवक लगातार बढ़ रही है, जबकि सीसीआई समर्थन मूल्य पर सीमित मात्रा में ही खरीद कर रही है। इसीलिए उत्पादक मंडियों में कपास के दाम 5,200 से 5,400 रुपये प्रति क्विंटल क्वालिटीनुसार चल रहे हैं। चालू सीजन में कपास का उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में अभी तक करीब 14 से 15 लाख गांठ कपास के निर्यात सौदे ही हुए हैं, जोकि पिछले साल की तुलना में कम हैं।
विदेशी बाजार में भाव में और सुधार आने का अनुमान
अहमदाबाद के कपास कारोबारी नरेश कुमार गुप्ता ने बताया कि अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास के भाव मंगलवार को घटकर 40,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रहे जोकि पिछले सप्ताह उपर में भाव 41,000 रुपये प्रति कैंडी हो गए थे। उन्होंने बताया कि विदेशी बाजार में कपास की कीमतों में सुधार आया है। न्यूयार्क वायदा में कॉटन के मार्च महीने के भाव 71.25 सेंट प्रति पाउंड हो गए। उन्होंने बताया कि विदेशी बाजार में भाव में और सुधार आने का अनुमान है, जिससे चालू सीजन में कपास का कुल निर्यात 44 से 45 लाख गांठ का होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में पाकिस्तान को कपास का निर्यात नहीं हो रहा है।
कपास का उत्पादन अनुमान ज्यादा
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार कपास का उत्पादन 354.50 लाख गांठ होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 312 लाख गांठ से ज्यादा है। पहली अक्टूबर से 31 दिसंबर तक उत्पादक मंडियों में 125.89 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है। चालू फसल सीजन में 42 लाख गांठ कपास के निर्यात का अनुमान है जोकि पिछले साल के लगभग बराबर ही है। कपास का आयात चालू सीजन में घटकर 25 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 32 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड (सीएबी) ने फसल सीजन 2019-20 में देश में कपास का उत्पादन 360 लाख गांठ होने का अनुमान जारी किया है जबकि कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार 322.67 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है।............ आर एस राणा

सरकार की दालों एवं खाद्य तेलों की कीमतों पर अंकुश की तैयारी, राज्यों को सस्ती दालें बेचने की योजना

आर एस राणा
नई दिल्ली। खुदरा में दालों के साथ ही खाद्य तेलों की कीमतों में आई तेजी रोकने के लिए केंद्र सरकार, राज्य को बाजार भाव से 15 रुपये प्रति किलो सस्ती दर पर दालें बेचेगी, साथ ही मूंगफली दाने के निर्यात पर रोक के साथ ही खुले बाजार में डेढ़ लाख टन मूंगफली बेचने की तैयारी कर रही है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दालों की कीमतों को काबू करने के लिए राज्य सरकारों को केंद्रीय पूल से 15 रुपये प्रति किलो बाजार भाव से सस्ती दालें बेचने के लिए वित्त सचिव को पत्र लिखकर छूट देने की मांग की है। इसके तहत राज्य सरकार को 8.50 लाख टन दालें बेचने की योजना है। उन्होंने बताया कि खाद्य तेलों की कीमतों में आई तेजी को रोकने के लिए मूंगफली दाने के निर्यात पर रोक लगाने के साथ ही डेढ़ लाख टन मूंगफली खुले बाजार में बेचने का फैसला किया है। उन्होंने बताया कि नेफेड के माध्यम से मूंगफली खुले बाजार में बेची जायेगी। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान 1,89,736 टन मूंगफली दाने का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 2,48,679 टन का निर्यात हुआ था।
केंद्रीय पूल में करीब 35 लाख टन दालों का बफर स्टॉक
उन्होंने बताया कि केंद्रीय पूल में मूल्य स्थिरिकरण कोष (पीएसएफ) के करीब 14.6 लाख टन दालों का बकाया स्टॉक है। इसके अलावा 21 लाख टन दालों का स्टॉक कृषि विभाग के पास मूल्य स्थिरिकरण योजना (पीएसएस) का है। खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अभी तक राज्य सरकार को बाजार भाव पर दालें बेची जा रही थी। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय भंडार और नाफेड के माध्यम से अरहर दाल 82 रुपये प्रति किलो की दर से बेची जा रही है, तथा अब सफल के माध्यम से भी अरहर दाल की बिक्री शुरू की जायेगी।
खुदरा में दालों के साथ खाद्य तेलों के भाव बढ़े
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के अनुसार सोमवार को दिल्ली में अरहर दाल का खुदरा भाव 95 रुपये, उड़द दाल का 110 रुपये, मूंग दाल का 105 रुपये, मसूर दाल का 76 रुपये और चना दाल का भाव 73 रुपये प्रति किलो रहा। पहली नवंबर को दिल्ली में अरहर दाल का भाव 97 रुपये, उड़द का 93 रुपये, मूंग का 90 रुपये और मसूर का 71 रुपये तथा चना का खुदरा भाव भी 71 रुपये प्रति किलो था। उत्पादक मंडियों में अरहर की आवक बढ़ी है, जबकि उड़द और मूंग की दैनिक आवक पहले की तुलना में कम हुई है। सोया रिफाइंड तेल का भाव खुदरा में सोमवार को 122 रुपये और पॉम तेल का 108 रुपये प्रति किलो रहा, जबकि पहली नवंबर को इनका भाव क्रमश: 105 और 81 रुपये प्रति किलो था।
चालू वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों में दालों का आयात 47.12 फीसदी बढ़ा
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले 8 महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान दालों का आयात 47.12 फीसदी बढ़कर 22.51 लाख टन का हो चुका है। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 15.30 लाख टन का ही हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वर्ष के पहले 8 महीनों में दालों का आयात 63.55 फीसदी बढ़कर 7,609.53 करोड़ रुपये का हुआ है। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 4,652.71 करोड़ रुपये मूल्य की दालों का आयात हुआ था।
खरीफ में दालों का उत्पादन अनुमान कम
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2019-20 के खरीफ में दालों का उत्पादन घटकर 82.3 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल खरीफ में 92.2 लाख टन का हुआ था। कई राज्यों में बेमौसम बारिश और बाढ़ से उड़द और मूंग की फसल को नुकसान हुआ है। केंद्र सरकार ने हाल ही में चालू वित्त वर्ष 2019—20 के लिए उड़द के आयात की तय मात्रा को डेढ़ लाख टन से बढ़ाकर चार लाख टन किया था।
रबी में दालों के साथ तिलहन की बुआई ज्यादा
मंत्रालय के अनुसार चालू रबी सीजन में दालों की बुआई बढ़कर 157.33 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 149.53 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 95.44 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 105.35 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है। मसूर की बुआई चालू रबी में 15.94 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 16.84 लाख हेक्टेयर से कम है। रबी तिलहन की बुआई चालू सीजन में 79.25 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 79.17 लाख हेक्टेयर में इनकी बुआई हुई थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई 68.98 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुआई 69.29 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।............. आर एस राणा

एफसीआई ने ओएमएसएस के तहत गेहूं के बिक्री भाव में 110 रुपये की कटौती की

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की बिक्री भाव में 110 रुपये प्रति क्विंटल की कटौती कर दी है। खाद्य मंत्रालय ने एफसीआई को पत्र लिखाकर ओएमएसएस के तहत गेहूं के बिक्री भाव में कटौती करने की सिफारिश की है, तथा जल्द ही इसकी अधिसूचना जारी होने की संभावना है।
खाद्य मंत्रालय ने गेहूं के बिक्री भाव के लिए अब दौ कैटागिरी निधारित कर दी है, इसमें एफएक्यू क्वालिटी का रिजर्व प्राइस चालू विपणन वर्ष 2019-20 की बची हुई अवधि के लिए 2,135 रुपये प्रति क्विंटल होगा। इससे पहले गेहूं का रिजर्व प्राइस चौथी तिमाही के लिए 2,245 रुपये प्रति क्विंटल था। इसके अलावा लस्टर लौस गेहूं का बिक्री भाव 2,080 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
एफसीआई के पास गेहूं का 327.96 लाख टन का बंपर स्टॉक
एफसीआई के पास गेहूं का पहली जनवरी को 327.96 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 271.21 लाख टन से ज्यादा है। अप्रैल में गेहूं की नई फसल की आवक बनेगी, तथा चालू रबी में गेहूं की रिकार्ड बुआई को देखते हुए बंपर उत्पादन अनुमान है। ऐसे में एफसीआई नई फसल से पहले गेहूं के भंडार को हल्का करना चाहती है। गेहूं की बुआई बढ़कर चालू रबी में 330.20 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक गेहूं की बुआई 296.98 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। सामान्यत: गेहूं की बुआई 305.58 लाख हेक्टेयर में ही होती है।
फरवरी में गुजरात की नई फसल की आवक बनेगी
दिल्ली के गेहूं कारोबारी कमलेश कुमार जैन ने बताया कि खुले बाजार में भी गेहूं का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जबकि फरवरी अंत तक गुजरात की फसल की आवक शुरू जायेगी। मार्च में राजस्थान की मंडियों में नया गेहूं आ जाता है, इसलिए गेहूं की कीमतों में आगे मंदा ही आने का अनुमान है। दिल्ली में गेहूं के भाव 2,350 से 2,370 रुपये प्रति क्विंटल रहे, लेकिन भाव में कटौती की खबर के कारण व्यापार नहीं के बराबर हुआ।..... आर एस राणा

नेफेड ने खाद्य मंत्रालय से चना बेचने की अनुमति मांगी

नेफेड ने केंद्रीय खाद्य मंत्रालय से खुले बाजार में 4,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से चना बेचने की अनुमति मांगी है। अगले महीने चना की नई फसल की आवक शुरू होगी, जबकि नेफेड के पास करीब 16 लाख टन चना का स्टॉक है।
सूत्रों के अनुसार खाद्य मंत्रालय 16 लाख टन चना में से 10 लाख टन को केंद्रीय पूल में रखेगा, जबकि छह लाख टन बेचने की अनुमति देगा।  केंद्रीय पूल में दालों का कुल स्टॉक 14.6 लाख टन और नेफेड के पास दालों का करीब 21 लाख टन का बफर स्टॉक है। अत: केंद्रीय पूल में दलहन का करीब 35 लाख टन का बकाया स्टॉक है।
चालू रबी में चना की बुआई पिछले साल के 95.44 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 105.35 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है जबकि मौसम भी फसल के अनुकूल है। ऐसे में माना जा रहा है कि चालू सीजन में चना का रिकार्ड उत्पादन हो, अत: नेफेड नई फसल से पहले पुराना स्टॉक बेचना चाहती है, जिससे चना की कीमतों में और गिरावट आने का अनुमान है।

18 जनवरी 2020

गेहूं की बुआई 11 फीसदी ज्यादा, रबी फसलों का रकबा 8.59 फीसदी बढ़ा

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में अक्टूबर, नवंबर में हुई बारिश से रबी फसलों की बुआई को फायदा हुआ है। चालू रबी में गेहूं बुआई 11.18 फीसदी बढ़कर 330.20 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि रबी फसलों की कुल बुआई का रकबा 8.59 फीसदी बढ़कर 641.39 लाख हेक्टयेर पर पहुंच गया है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार के चालू रबी में गेहूं के साथ ही दलहन और मोटे अनाजों के साथ ही तिलहन की बुआई में बढ़ोतरी हुई है। रबी फसलों की कुल बुआई बढ़कर 641.39 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 590.64 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। गेहूं की बुआई बढ़कर चालू रबी में 330.20 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक गेहूं की बुआई 296.98 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। सामान्यत: गेहूं की बुआई 305.58 लाख हेक्टेयर में ही होती है।
चना की बुआई में भारी बढ़ोतरी, मसूर और मटर की कम
दालों की बुआई चालू रबी में बढ़कर 157.33 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 149.53 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 95.44 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 105.35 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है। मसूर की बुआई चालू रबी में 15.94 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 16.84 लाख हेक्टेयर से कम है। मटर की बुआई चालू रबी में 9.54 लाख हेक्टेयर में, उड़द की बुआई 7.08 लाख हेक्टेयर में और मूंग की बुआई 5.36 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 10.40 लाख हेक्टेयर, 6.93 लाख हेक्टेयर और 5.55 लाख हेक्टयेर में ही हुई थी।
मोटे अनाजों में ज्वार, मक्का, जौ की बुआई बढ़ी
मोटे अनाजों की बुआई चालू रबी में बढ़कर 53.19 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 46.86 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुआई चालू रबी में बढ़कर 29.46 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 24.81 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। मक्का की बुआई चालू रबी में 15.31 लाख हेक्टेयर और जौ की बुआई 7.81 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 14.11 और 7.20 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
रबी तिलहन की बुआई पिछले साल के लगभग बराबर
रबी तिलहन की बुआई चालू सीजन में 79.25 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 79.17 लाख हेक्टेयर में इनकी बुआई हुई थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई 68.98 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुआई 69.29 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मूंगफली की बुआई 4.54 लाख हेक्टेयर में हुई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 4.20 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। अलसी की बुआई 3.31 लाख हेक्टेयर और सनफ्लावर की बुआई 97 हजार हेक्टेयर में हुई है। पिछले साल इस समय तक असली की बुआई 3.36 लाख हेक्टेयर में और सनफ्लावर की 1.06 लाख हेक्टेयर में हुई हुई थी। धान की रोपाई चालू रबी में बढ़कर 21.41 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई केवल 18.11 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी।............  आर एस राणा

चालू पेराई सीजन में पंद्रह जनवरी तक चीनी उत्पादन में आई 26 फीसदी की गिरावट

आर एस राणा
नई दिल्ली। चीनी का पेराई सीजन आरंभ हुए साढ़े तीन महीने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक देशभर में केवल 436 मिलों में ही पेराई शुरू हुई है जबकि पिछले साल इस समय 507 मिलों में पेराई चल रही थी। मिल चलने में हुई देरी के साथ ही महाराष्ट्र और कर्नाटक में उत्पादन में आई कमी के कारण पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2019-20 में 15 जनवरी तक चीनी का उत्पादन 26.16 फीसदी घटकर 108.90 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 147.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था।
नेशनल फेडरेशन आफ कोआपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के अनुसार चालू पेराई सीजन में अभी तक केवल 436 चीनी मिलों में ही पेराई आरंभ हुई है। महाराष्ट्र में चालू सीजन में केवल 139 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो पाई है जबकि पिछले साल 191 मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी थी। कर्नाटक में 63, गुजरात में 15 और आंध्रप्रदेश में 10 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इन राज्यों में क्रमश: 65,16 और 18 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी थी। उत्तर प्रदेश में जरुर चालू सीजन में 119 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी है जोकि पिछले साल की 117 मिलों के मुकाबले दो मिलों में ज्यादा है। तमिलनाडु में भी केवल 16 चीनी मिलों में ही पेराई आरंभ हुई है जबकि पिछले साल 23 मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी थी।
उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन बढ़ा, महाराष्ट्र में भारी गिरावट
उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 15 जनवरी तक चीनी का उत्पादन बढ़कर 43.80 लाख टन का हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 41.95 लाख टन से ज्यादा है। महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन घटकर केवल 25.50 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 57.20 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में अभी तक उत्पादन में 55.41 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई है। पिछले सीजन में राज्य में 107 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था, लेकिन बेमौसम बारिश, बाढ़ और सूखे के कारण चालू सीजन में उत्पादन में भारी कमी आने का अनुमान है। चालू पेराई सीजन में देशभर में गन्ने में औसतन रिकवरी की दर 10.17 फीसदी की ही आ रही है जबकि पिछले पेराई सीजन में 10.53 फीसदी की आ रही थी।
कर्नाटक, गुजरात और आंध्रप्रदेश में भी उत्पादन कम
कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 22.10 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल इस समय तक 26.80 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। गुजरात में 3.70 लाख टन और आंध्रप्रदेश में 1.15 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल इन राज्यों में क्रमश: 5.95 लाख टन और 1.60 लाख टन का उत्पादन हो चुका था। अन्य राज्यों में बिहार में 3.05 लाख टन, हरियाणा में 1.95 लाख टन, मध्य प्रदेश में 1.15 लाख टन, पंजाब में 2.30 लाख टन, तमिलनाडु में 1.65 लाख टन, उत्तराखंड में 1.40 लाख टन और तेलंगाना में 80 हजार टन चीनी का उत्पादन हो चुका है।
चालू पेराई सीजन में 263 लाख टन उत्पादन का अनुमान
एनएफसीएसएफ के अनुसार चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 263 लाख टन होने का अनुमान है जिसमें उत्तर प्रदेश में 118 लाख टन, महाराष्ट्र में 55 लाख टन, कर्नाटक में 33 लाख टन और गुजरात में 10 टन, आंध्रप्रदेश में 5 लाख टन, बिहार में 8 लाख टन, हरियाणा में 7 लाख टन और मध्य प्रदेश में 4.50 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है। अन्य राज्यों में पंजाब में 7 लाख टन, तमिलनाडु में 8 लाख टन, तेलंगाना में 2.50 लाख टन और उत्तराखंड में 4 लाख टन तथा अन्य राज्यों में एक लाख टन के उत्पादन का अनुमान है।....  आर एस राणा

बेमौसम बारिश से आलू और सरसों को नुकसान की आशंका, गेहूं को फायदा

आर एस राणा
नई दिल्ली। बेमौसम बरसात सरसों और आलू की फसलों के लिए आफत बनकर आई है, क्योंकि सरसों में जहां इस बारिश से सफेद रतुआ की बीमारी का प्रकोप बढ़ने की संभावना है, वहीं खेतों में पानी भरने से आलू की फसल को नुकसान हो सकता है। गेहूं की फसल को इस बारिश से फायदा होगा।
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान समेत पूरे उत्तर भारत में पश्चिमी विक्षोभ से होने वाली इस बारिश की चेतावनी मौसम विभाग ने पिछले रविवार को ही दी थी। पिछले दो तीन दिनों से उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में जगह-जगह काफी बारिश हुई है और जहां खेतों में पानी भर गया है, वहां किसानों को आलू की फसल बर्बाद होने की चिंता सता रही है। वहीं, नमी बढ़ने से सरसों की फसल में बीमारी का प्रकोप बढ़ने का खतरा बना हुआ है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं और चना की फसल को बारिश से फिलहाल कोई नुकसान नहीं है, लेकिन खेतों में पानी भरने की स्थिति में इन फसलों को भी नुकसान हो सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत आने वाले राजस्थान के भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय के कार्यकारी निदेशक पीके राय के अनुसार इस समय हो रही बारिश से सरसों की फसल में तना गलन रोग का प्रकोप बढ़ेगा, जबकि सरसों पर जगह-जगह सफेद रतुआ (व्हाइट रस्ट) का प्रकोप पहले से ही बना हुआ है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में सरसों की खेती ज्यादा होती है और इन सभी राज्यों में बारिश बीते कुछ दिनों से हो रही है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के पूवार्नुमान के अनुसार, उत्तर भारत में 17 जनवरी तक कई क्षेत्रों में बारिश हो सकती है।
आलू के खेत में पानी भरने से फसल खराब होने का डर
आईसीएआर के तहत आने वाले केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान-क्षेत्रीय केंद्र मोदीपुरम, मेरठ के संयुक्त उपनिदेशक डॉ. मनोज कुमार के अनुसार आलू की फसल तैयार हो गई है तथा खेतों में पानी भरने से फसल के खराब होने का डर है। देर से लगाई गई फसल का विकास भी रुक सकता है। उन्होंने कहा कि खेतों में जहां पानी भरेगा वहां आलू की फसल खराब होने की संभावना बढ़ जाएगी। कारोबारी बताते हैं कि बारिश से फसल खराब होने पर इस साल आलू का उत्पादन घट सकता है, क्योंकि मानसून के आखिरी दौर की बारिश के कारण फसल की बुआई में पहले ही देरी हुई थी और इस बारिश से फसल खराब होने की संभावना बढ़ गई है।
गेहूं और चना की फसल को इस बारिश से होगा फायदा
आईसीएआर के तहत आने वाले भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक एवं परियोजना संयोजक जी पी दीक्षित ने बताया कि चना की फसल को बहरहाल कोई नुकसान नहीं है, बल्कि इस बारिश से किसानों को सिंचाई के खर्च की बचत हुई है और इससे चने की फसल को फायदा ही मिलेगा। आईसीएआर के तहत आने वाले हरियाणा के करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि गेहूं की फसल को सर्दी के मौसम की इस बारिश से फायदा ही होगा। उन्होंने कहा कि गेहूं की फसल को बारिश से तभी नुकसान हो सकता है जब खेतों में अधिक समय तक पानी खड़ा रहेगा।.......... आर एस राणा

आयातित खाद्य तेल 50 फीसदी तक हुए महंगे, दिसंबर में आयात 7 फीसदी घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। इंडोनेशिया और मलेशिया में पाम तेल की बायोफ्यूल में खपत बढ़ने और उत्पादन अनुमान में कमी आने से आरबीडी पामोलीन और क्रुड पाम तेल की कीमतों में अक्टूबर से अभी तक करीब 50 फीसदी की तेजी आ चुकी है जिसका असर आयात पर भी पड़ा है। दिसंबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 7 फीसदी की गिरावट आकर कुल आयात 11,28,281 टन का ही हुआ है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार क्रुड पाम तेल का भाव बढ़कर मुंबई में 15 जनवरी को 830 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) हो गया जबकि अक्टूबर में इसका औसतन भाव 541 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से आरबीडी पामोलीन की कीमतें बढ़कर मुंबई में 15 जनवरी को 815 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) हो गई जबकि इसका भाव भी अक्टूबर में 567 डॉलर प्रति टन था। आयात महंगा होने से घरेलू बाजार में भी खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी आई, जिस कारण केंद्र सरकार ने हाल ही में आयात शुल्क में भी कटौती की थी। सरकार ने रिफाइंड पामोलीन के आयात पर शुल्क को 50 फीसदी से घटाकर 45 फीसदी और क्रूड पाम तेल पर आयात शुल्क 40 फीसदी से घटाकर 37.50 फीसदी कर दिया, जो एक जनवरी से लागू गया है।
नवंबर और दिसंबर में आयात घटा
एसईए के अनुसार दिसंबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 7 फीसदी घटकर 11,28,281 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में आयात 12,11,164 टन का हुआ था। चालू तेल वर्ष नवंबर-19 से अक्टूबर-20 के पहले दो महीनों नवंबर, दिसंबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 3.8 फीसदी घटकर 22,55,501 टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 23,45,057 टन का हुआ था। हाल ही में केंद्र सरकार ने उद्योग को राहत देने के लिए आरबीडी रिफाइंड तेल के साथ ही पामोलीन के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल किया है जबकि क्रुड पॉम तेल का आयात मुक्त श्रेणी में ही रखा गया है। इससे क्रुड पाम तेल के आयात में आगे बढ़ोतरी होगी। दिल्ली के नया बाजार के खाद्य तेलों के कारोबारी हेंमत गुप्ता ने बताया कि घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में पिछले तीन-चार महीनों से लगातार तेजी बनी हुई थी, लेकिन पिछले दो-तीन दिनों से कीमतों में नरमी आई है।
खुदरा कीमतों में भी आई तेजी
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के अनुसार खुदरा में पाम तेल के भाव दिल्ली में गुरूवार को 108 रुपये प्रति किलो हो गए, जबकि 15 अक्टूबर को इसका भाव 79 रुपये प्रति किलो था। इसी तरह से सोया रिफाइंड तेल का भाव भी 15 अक्टूबर को 105 रुपये प्रति किलो था, जोकि बढ़कर गुरूवार को 122 रुपये प्रति किलो हो गया। सनफ्लावर तेल का भाव भी इस दौरान 116 रुपये से बढ़कर 124 रुपये प्रति किलो हो गया।
पिछले तेल वर्ष में खाद्य तेलों का आयात बढ़ा
एसईए के अनुसार तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर-18 से अक्टूबर-19) के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात बढ़कर 149.13 लाख टन का हुआ, जोकि इसके पिछले साल के 145.16 लाख टन से ज्यादा था। तेल वर्ष 2016-17 में देश में रिकार्ड 150.77 लाख टन खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात हुआ था।..........  आर एस राणा

मानसून के आगमन और विदाई की तारिखों में बदलाव करेगा मौसम विभाग

आर एस राणा
नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन का असर मानसूनी बारिश पर भी पड़ रहा है। इसी को देखते हुए सरकार ने मानसून के आगमन और विदाई की तारीखों में बदलाव करने का फैसला किया है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में मानसून के आगमन की तारीख बढ़ाई जाएगी लेकिन केरल में तिथि पहली जून ही रहेगी।
बारिश के बदलते पैटर्न को देखते हुए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) इस साल से दक्षिण पश्चिम मानसून के आने और जाने की तिथियों में बदलाव करेगा। मंत्रालय में सचिव एम. राजीवन ने कहा कि तिथियों में बदलाव से किसानों को फसलों की बुआई में मदद मिलेगी। चार महीने का बारिश का सीजन पहली जून से शुरू होता है और 30 सितंबर को समाप्त होता है। राजीवन ने कहा कि केरल में मानसून के आगमन की तारीख पहली जून है। संभावना है कि इस तारीख में कोई बदलाव नहीं होगा। लेकिन आइएमडी कुछ राज्यों और शहरों में मानसून के पहुंचने की तिथियों में बदलाव करेगा।
मध्य भारत के राज्यों में मानसून के आने की तिथियों में आइएमडी द्वारा बदलाव किए जाने की संभावना है। इस क्षेत्र में छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिमी मध्य प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, विदर्भ, मध्य महाराष्ट्र, कोंकण व गोवा, गुजरात क्षेत्र और कछ और सौराष्ट्र शामिल है। आइएमडी के महानिदेशक एम. महापात्रा ने कहा कि अप्रैल में जब विभाग 2020 के मौसम के बारे में पहला दीर्घकालिक पूर्वानुमान जारी करेगा, उसी के साथ नई तिथियां घोषित किए जाने की उम्मीद है
आमतौर पर उत्तर पश्चिम भारत (राजस्थान के हिस्से) से एक सितंबर से मानसून की वापसी होने लगती है। इसको बदलकर 10 सितंबर किया जा सकता है। महापात्रा ने बताया कि अभी तक 1940 के डाटा के हिसाब से तिथियों का निर्धारण किया जाता है, जिसे अब बदले जाने की जरूरत है। क्योंकि पिछले साल 19 जुलाई तक पूरे देश में मानसून आया था। जबकि, एक सितंबर की जगह नौ अक्टूबर को उसकी वापसी हुई। राजीवन ने बताया कि प्रभाव आधारित पूर्वानुमान जारी करने के लिए आइएमडी ब्रिटेन के मौसम विभाग के साथ मिलकर काम कर रहा है। इससे अत्यधिक खराब मौसम में किए जाने वाले उपायों के बारे में सलाह देने में मदद मिलेगी।..... आर एस राणा

चावल निर्यातकों का ईरान में अटका 1,600 करोड़ रुपये, निर्यात में आई कमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय बासमती चावल के निर्यातकों का ईरान में 1,600 करोड़ रुपये से ज्यादा अटका हुआ है, जिस कारण नए निर्यात सौदे भी सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले आठ महीनों अप्रैेल से नवंबर के दौरान बासमती चावल का निर्यात 5.13 फीसदी घटकर 23.63 लाख टन का ही हुआ है जबकि गैर-बासमती चावल के निर्यात में इस दौरान 37.77 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल निर्यात 31.41 लाख टन का ही हुआ है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में बासमती चावल का निर्यात घटकर 23.63 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 24.91 लाख टन का निर्यात हुआ था। मूल्य के हिसाब से इस दौरान बासमती चावल के निर्यात 3.2 फीसदी की गिरावट आकर कुल 17,723.2 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 18,439.8 करोड़ रुपये का हुआ था। गैर-बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में घटकर 31.41 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 50.48 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से इसमें 35.77 फीसदी की गिरावट आकर कुल 9,028.3 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 14,059.5 करोड़ रुपये का हुआ था।
नवंबर, दिसंबर का ही करीब 700 करोड़ रुपये हो चुका है बकाया
ईरान के साथ ही सऊदी अरब को निर्यात सौदे कम होने के कारण बासमती चावल के निर्यात में कमी आई है। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने आउटलुक को बताया कि भारतीय निर्यातकों के नवंबर और दिसंबर में ईरान को किए गए निर्यात सौदों का ही 700 करोड़ रुपये से ज्यादा पैमेट अटक गया है, जबकि पुराना भी करीब 900 करोड़ रुपये अभी भी बचा हुआ है। अत: बकाया बढ़कर 1,600 करोड़ रुपये से ज्यादा का हो गया है जिस कारण निर्यातक नए निर्यात सौदे नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमने केंद्र सरकार को लिखा है कि ईरान को बासमती चावल का निर्यात सिर्फ एडवांस पैमेंट के आधार पर किया जाये। उन्होंने बताया कि जैसे की थाइलैंड एडवांस पैमेंट लेकर ही चावल का निर्यात करता है।
आगामी महीनों में इसके निर्यात में और कमी आने का अनुमान
उन्होंने बताया कि अमेरिका और ईरान की बीच तनाव के कारण भारतीय निर्यातक ईरान को नए निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही कर हैं, जिस कारण आगामी महीनों में इसके निर्यात में और कमी आने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि ईरान को नवंबर में करीब 70 हजार टन और दिसंबर में 1.50 लाख टन बासमती चावल का निर्यात हुआ है, जिसमें से एक लाख टन का निर्यात एडवांस लाइसेंस के तहत हुआ है।
बासमती धान की कीमतों में आई गिरावट
हरियाणा की कैथल मंडी में कारोबारी रामनिवास खुरानियां ने बताया कि राइस मिलों की मांग कमजोर होने से ट्रेडिशनल बासमती धान की कीमतें घटकर 3,850 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। इसकी कीमतों में उपर से 200 रुपये का मंदा आया है। पूसा 1,121 बासमती धान के भाव मंडी में 2,925 से 2,950 रुपये और इसके सेला चावल के भाव 5,275 से 5,300 रुपये प्रति क्विंटल रहे। डीपी धान के भाव 2,550 रुपये प्रति क्विंटल रहे। उन्होंने बताया कि खराब मौसम के कारण मंडी में धान की दैनिक आवक कम हो रही है।........... आर एस राणा

केंद्र 19.50 लाख टन दालों का बफर स्टॉक बनायेगा, पिछले साल से 20.74 फीसदी ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2019-20 में केंद्र सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के तहत दालों का बफर स्टॉक 20.74 फीसदी बढ़ाकर 19.50 लाख टन करने का फैसला किया है जबकि पिछले फसल सीजन में 16.15 लाख टन दालों का बफर स्टॉक बनाया था।
केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय में सचिव अविनाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली मूल्य स्थिरीकरण कोष प्रबंधन समिति (पीएसएफएमसी) की बैठक में दालों के बफर स्टॉक को बढ़ाने का फैसला लिया गया है। दलहन के बफर स्टॉक में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी अरहर की 10 लाख टन की होगी। इसके अलावा बफर स्टॉक में उड़द चार लाख टन, मसूर 1.50 लाख टन तथा मूंग एक लाख टन के अलावा तीन लाख टन चना का स्टॉक होगा।
कीमतें तेज होने पर सरकार बफर स्टॉक से उपलब्धता बढ़ाती है
केंद्र सरकार दालों की कीमतों को नियंत्रण में रखने के मकसद से पीएसएफ के तहत दालों का बफर स्टॉक बनाती है और बाजार में कीमतों में तेजी आने की स्थिति में बफर स्टॉक से उपलब्धता बढ़ाकर कीमतों को नियंत्रित करने की कोशिश करती है। हाल में उपभोक्ता मंत्रालय ने बफर स्टॉक से 8.47 लाख टन दालें राज्यों को बेचने का फैसला लिया था। बफर स्टॉक के अलावा नेफेड के पास इस समय करीब 21 लाख टन दालों का स्टॉक है। चालू खरीफ में नेफेड ने समर्थन मूल्य पर 1.39 लाख टन तथा 1,345 टन अरहर की खरीद की है।
खरीफ में दलहन उत्पादन में कमी आने की आशंका
चालू खरीफ में अक्टूबर और नवंबर में बेमौसम बारिश के कारण महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्यप्रदेश समेत अन्य दलहन उत्पादक राज्यों में दलहनी फसलों उड़द और मूंग को नुकसान हुआ है, जिससे इनके उत्पादन में कमी आने का अनुमान है। कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2019-20 में दालों का उत्पादन घटकर 82.3 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल खरीफ में 92.2 लाख टन का हुआ था। खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर का उत्पादन घटकर 35.4 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल 35.9 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई बढ़ी
मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में दालों की बुआई बढ़कर 151.26 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 144.47 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 94.28 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 102.39 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है। मसूर की बुआई चालू रबी में 15.80 लाख हेक्टेयर में और मटर की 9.40 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 16.60 और 9.21 लाख हेक्टेयर में हुई थी।...........  आर एस राणा

चीनी मिलों ने किए 28 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे, घरेलू बाजार में कीमतों में आया सुधार

आर एस राणा
नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम में आई तेजी से घरेलू चीनी मिलों को फायदा मिला है, क्योंकि देश से चीनी की निर्यात मांग बढ़ी है और अब तक 28 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे हो चुके हैं। चीनी की निर्यात मांग बढ़ने से घरेलू बाजार में भी चीनी की कीमतों में सुधार आया है।
घरेलू मंडियों में जनवरी में चीनी की कीमतों में करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। नेशनल फेडरेशन ऑप को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज (एनएफसीएसएफ) के अनुमान के अनुसार चालू पेराई सीजन 2019-20 में चीनी का निर्यात तय लक्ष्य 60 लाख टन का पूरा हो जाएगा। एनएफसीएसएफ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों में तेजी आने से निर्यात मांग बढ़ी है, जिसे देखते हुए लगता है कि इस साल सरकार द्वारा तय किया गया चीनी का कोटा पूरा हो जायेगा।
केंद्र ने 60 लाख टन चीनी का निर्यात कोटा कर रखा है तय
केंद्र सरकार ने पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2019-20 में अधिकतम स्वीकार्य निर्यात कोटा (एमएईक्यू) के तहत घरेलू चीनी मिलों के लिए 60 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा तय किया है। पिछले पेराई सीजन 2018-19 में सरकार ने एमआईईक्यू के तहत 50 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा निर्धारित किया था, जिसमें से केवल 38 लाख टन चीनी का ही निर्यात हुआ था।
विश्व बाजार में रॉ-शुगर की कीमतें 18 फीसदी तक बढ़ी
नाइकनवरे ने कहा कि एक अक्टूबर से शुरू हुए चालू पेराई सीजन यानी चीनी उत्पादन व विपणन वर्ष 2019-20 (अक्टूबर से सितंबर) के अभी चार महीने भी पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन 28 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे हो चुके हैं और वैश्विक स्तर पर चीनी की आपूर्ति मांग के मुकाबले कम होने से आगे कीमतों में तेजी बनी रहेगी, जिससे घरेलू मिलों को चीनी निर्यात से फायदा मिलेगा। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रॉ-शुगर की कीमतें करीब तीन महीनों में 18 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं। इस दौरान व्हाईट चीनी की कीमतों में करीब नौ फीसदी से ज्यादा की तेजी आई है, जिससे चीनी मिलों को निर्यात पड़ते लग रहे हैं। केंद्र सरकार चीनी के निर्यात पर मिलों को 10.44 रुपये प्रति किलो की दर से प्रोत्साहन राशि भी दे रही है।
घरेलू बाजार में चीनी के भाव में आया सुधार
यूएस शुगर-11 का भाव सोमवार को 14 सेंट प्रति पाउंड से ऊपर था और लंदन शुगर का भाव भी बीते सत्र में 376.80 डॉलर प्रति टन पर बंद हुआ था। नाइकनवरे ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी के मौजूदा भाव के अनुसार, भारत में चीनी मिलों को सफेद चीनी का एक्स मिल भाव तकरीबन 2,300 रुपये प्रति क्विंटल, जबकि कच्ची चीनी का भाव करीब 2,100 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है। दिल्ली के चीनी कारोबारी सुशील कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश में पुरानी चीनी का एक्स फैक्ट्री भाव इस समय 3,280-3,300 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि नई चीनी का एक्स फैक्ट्री भाव 3,250-3,290 रुपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने बताया कि इस महीने चीनी के दाम में करीब 80-100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है।
सरकार ने चीनी मिलों से 31 दिसंबर तक किए गए निर्यात का ब्यौरा मांगा
उन्होंने बताया कि सरकार ने 31 दिसंबर तक चीनी मिलों से चीनी निर्यात का ब्यौरा मांगा है। सरकार ने 530 चीनी मिलों के लिए 60 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा तय किया हुआ है। इनमें से कुछ मिलों ने अभी तक निर्यात किया ही नहीं है। उन्होंने बताया कि इस साल 30 सितंबर तक 60 लाख टन चीनी का निर्यात होने के बाद क्लोजिंग स्टॉक 100 लाख टन से नीचे आ जाएगा। एनएफसीएसएफ के अनुमान के अनुसार, चालू सीजन में चीनी का उत्पादन 263 लाख टन होने का है, जबकि पिछले साल का बकाया स्टॉक 145 लाख टन है। इस प्रकार कुल उपलब्धता 408 लाख टन है। इसमें से 60 लाख टन निर्यात और करीब 260 लाख टन घरेलू खपत निकालने के बाद बकाया स्टॉक 88 लाख टन बचेगा। इसमें से 40 लाख टन का बफर स्टॉक रहेगा।......  आर एस राणा

अरहर किसानों को नहीं मिल रहा समर्थन मूल्य, दालों का आयात 47 फीसदी बढ़ा

आर एस राणा
नई दिल्ली। आयात सस्ता होने के कारण किसानों को मंडियों में अरहर न्यूनतम समर्थन मूल्य  (एमएसपी) से 6,00 से 750 रुपये प्रति क्विंटल नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है, जबकि चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले 9 महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान दालों का आयात 47.12 फीसदी बढ़कर 22.51 लाख टन का हो गया।
दलहन कारोबारी एस चंद्रशेखर नादर ने बताया कि सोमवार को गुलबर्गा मंडी में अरहर 5,050 से 5,200 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिकी तथा मंडी में दैनिक आवक 10 से 12 हजार बोरी की हो रही है। उन्होंने बताया कि म्यांमार से आयातित लेमन अरहर के भाव मुंबई में 4,900 रुपये प्रति क्विंटल है। आयातित अरहर सस्ती होने के कारण ही घरेलू मंडियों में भाव समर्थन मूल्य से नीचे बने हुए हैं। केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 5.75 लाख टन अरहर (चार लाख टन दाल मिलों के माध्यम से और 1.75 लाख टन सरकारी सत्र पर) आयात की अनुमति दी हुई है, जिसमें से दाल मिलें अपने कोटे का आयात कर चुकी हैं तथा सरकार सत्र पर भी एक लाख टन से ज्यादा लेमन अरहर का आयात हो चुका है। उत्पादक मंडियों में आगे दैनिक आवक और बढ़ेगी, जिससे कीमतों पर दबाव बना रहने का अनुमान है।
चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में दलहन आयात में भारी बढ़ोतरी
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले 8 महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान दालों का आयात 47.12 फीसदी बढ़कर 22.51 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 15.30 लाख टन का ही हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वर्ष के पहले 8 महीनों में दालों का आयात 63.55 फीसदी बढ़कर 7,609.53 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 4,652.71 करोड़ रुपये मूल्य की दालों का आयात हुआ था।
अरहर का उत्पादन अनुमान कम
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2019-20 में अरहर का उत्पादन घटकर 35.4 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल 35.9 लाख टन का उत्पादन हुआ था। फसल सीजन 2017-18 में देश में रिकार्ड 42.9 लाख टन अरहर का उत्पादन हुआ था। खरीफ सीजन में दालों का कुल उत्पादन घटकर 82.3 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल खरीफ में 92.2 लाख टन का हुआ था।
रबी में दलहन की बुआई बढ़ी
मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में दालों की बुआई बढ़कर 151.26 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 144.47 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 94.28 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 102.39 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है। मसूर की बुआई चालू रबी में 15.80 लाख हेक्टेयर में और मटर की 9.40 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 16.60 और 9.21 लाख हेक्टेयर में हुई थी।.........   आर एस राणा

11 जनवरी 2020

तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार की बजट में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन लाने की योजना

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्य तेलों पर आयात की निर्भरता कम करने के लिए केंद्र सरकार बजट में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ) जाने की योजना बना रही है, जिसका मकसद घरेलू स्तर पर तिलहनों का उत्पादन बढ़ाना है। देश में खाद्य तेलों की सालाना खपत करीब 250 लाख टन की होती है, जबकि उत्पादन लगभग 100 लाख टन का ही है। अत: सालाना करीब 150 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया जाता है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार एनएमईओ का ड्राफ्ट लगभग तैयार हो गया है। एनएमईओ के विजन दस्तावेज को मंजूरी मिलने के बाद इसे लांच किया जाएगा। आगामी वित्त वर्ष में इसे अमल में लाने की योजना है। किसानों को तिलहन की फसलें समर्थन मूल्य से नीचे दाम पर बेचनी पड़ती हैं, साथ ही तिलहन की ज्यादातर खेती असिंचित क्षेत्र में होती है। गेहूं और धान के मुकाबले तिलहनी फसलों का उत्पादन प्रति हेक्टेयर कम होता है। जिस कारण किसान तिलहन की खेती को प्राथमिकता नहीं देते।उन्होंने बताया कि एनएमईओ के तिलहन का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जायेगा। इसके तहत तिलहन किसानों को फसलों के वाजिब दाम देने के साथ ही आयातित खाद्य तेलों के शुल्क में बढ़ोतरी करने के साथ ही अन्य उपाय भी शामिल हैं। चालू सप्ताह में ही केंद्र सरकार ने रिफाइंड तेलों के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल किया है।
फसल सीजन 2013-14 के बाद से तिलहन उत्पादन में आई कमी
देश में तिलहनों का रिकार्ड उत्पादन फसल सीजन 2013-14 में 327.49 लाख टन का हुआ था, लेकिन उसके बाद से इसमें कमी दर्ज की गई। फसल सीजन 2014-15 में तिलहन का उत्पादन घटकर 275.11 लाख टन और वर्ष 2015-16 में केवल 252.51 लाख टन का ही हुआ। फसल सीजन 2016-17 और 2017-18 में उत्पादन क्रमश: 312.76 और 314.59 लाख टन का ही हुआ। फसल सीजन 2018-19 में तिलहन का उत्पादन 322.57 लाख टन का हुआ है। तिलहन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अगले पांच साल में तिलहनों का बढ़ाकर करीब 480 लाख टन करने का लक्ष्य एनएमईओ में किया गया है।
सालाना करीब 70,000 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं खाद्य तेलों के आयात पर
खाद्य तेलों का आयात तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर-18 से अक्टूबर-19) के दौरान 149.13 लाख टन का हुआ है जबकि इसके पिछले तेल वर्ष में आयात 145.16 लाख टन का हुआ था। तेल वर्ष 2016-17 में देश में रिकार्ड 150.77 लाख टन का हुआ था। उद्योग के अनुसार खाद्य तेलों के आयात पर सालाना करीब 70,000 करोड़ रुपये का खर्च हो रहा है।
अक्टूबर से अभी तक आयातित खाद्य तेल 42 से 50 फीसदी तक हुए महंगे
देश में खाद्य तेल के कुल आयात में 65 फीसदी हिस्सेदारी पाम तेल की है। पाम तेल का आयात मुख्य रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से किया जाता है, तथा इंडोनेशिया और मलेशिया में पाम तेल का उपयोग बायोडीजल में बढ़ने से आयात महंगा हो गया। घरेलू बाजार में आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में अक्टूबर से अभी तक करीब 42 से 50 फीसदी की तेजी आ चुकी है। आरबीडी पॉमोलीन का भाव अक्टूबर में भारतीय बंदरगाह पर 567 डॉलर प्रति टन था जोकि दिसंबर अंत में बढ़कर 850 डॉलर प्रति टन हो गया। इसी तरह से क्रुड पाम तेल का भाव इस दौरान 541 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 770 डॉलर प्रति टन हो गए।..........  आर एस राणा

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का मिलों पर चालू पेराई सीजन का बकाया बढ़कर 4,200 करोड़ के पार

आर एस राणा
नई दिल्ली। जैसे-जैसे गन्ना पेराई सीजन आगे बढ़ रहा है, उसी के साथ गन्ना किसानों का बकाया भी चीनी मिलों पर बढ़ने लगा है। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू चालू पेराई सीजन में 10 जनवरी 2020 तक उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान का राज्य की चीनी मिलों पर बकाया बढ़कर 4,283 करोड़ रुपये पहुंच गया हैं जबकि पिछले पेराई सीजन का भी राज्य की चीनी मिलों ने किसानों को अभी तक 1,815.57 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया है।
उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त कार्यालय के अनुसार चालू पेराई सीजन 2019-20 में पहली अक्टूबर 2019 से 10 जनवरी 2020 तक राज्य की चीनी मिलों ने किसानों से 9,131 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है जिसमें से भुगतान केवल 4,848 करोड़ रुपये का ही किया है। अत: राज्य की चीनी मिलों पर बकाया बढ़कर 4,283 करोड़ पहुंच गया है। बकाया में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी राज्य की प्रावइेट चीनी मिलों पर 3,860 करोड़ रुपये है। इसके अलावा राज्य की सहकारी चीनी मिलों पर बकाया 343 करोड़ रुपये और निगम की चीनी मिलों पर बकाया 78.87 करोड़ रुपये है।
बीते पेराई सीजन का भी 1,815 करोड़ रुपये बचा है बकाया
गन्ना आयुक्त कार्यालय के अनुसार गन्ना किसानों का पेराई सीजन 2018-19 का भी राज्य की चीनी मिलों पर 1,815 करोड़ रुपये अभी भी बकाया है। इसके अलावा पेराई सीजन 2107-18 का 40.54 करोड़ रुपये और पेराई सीजन 2016-17 का 22.29 करोड़ रुपये का भुगतान भी चीनी मिलों ने अभी तक किसानों को नहीं किया है। तय नियमों के अनुसार चीनी मिलों को गन्ना खरीदने के 14 दिनों के अंदर किसानों को गन्ने का भुगतान करना होगा है, बकाया में देरी होने पर चीनी मिलों को ब्याज देना होगा।
चीनी उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन रिकवरी पिछले साल से कम
चालू पेराई सीजन में 10 जनवरी तक राज्य में चीनी का उत्पादन 40.32 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 38.40 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन गन्ने में रिकवरी की दर पिछले साल की तुलना में कम आ रही है। चालू पेराई सीजन में अभी तक रिकवरी औसतन 10.80 फीसदी की आई है, जबकि पिछले साल औसतन 10.94 फीसदी की आई थी।..... आर एस राणा

आंध्रप्रदेश सरकार ने हल्दी का 6,350 रुपये और मिर्च का 7,000 रुपये एमएसपी घोषित किया

आर एस राणा
नई दिल्ली। आंध्रप्रदेश सरकार ने हल्दी और मिर्च के साथ ही प्याज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित कर दिया है। राज्य के विशेष सचिव वाई मधुसूदन रेड्डी द्वारा जारी आदेश के अनुसार हल्दी का एमएसपी 6,350 रुपये और मिर्च का 7,000 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया गया है। इसके अलावा राज्य सरकार ने प्याज का एमएसपी 770 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
तेलंगाना के किसान काफी समय से हल्दी का एमएसपी घोषित करने की मांग कर रहे हैं। तेलंगाना के किसान हल्दी का एमएसपी 15,000 रुपये प्रति क्विंटल तय करने की मांग कर रहे हैं। हल्दी की नई फसल की आवक शुरू हो गई है, तथा आगे दैनिक आवक और बढ़ेगी। निजामाबाद मंडी में हल्दी के भाव 6,200 से 6,300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।..... आर एस राणा

गेहूं की बुआई 11 फीसदी ज्यादा, रबी फसलों कुल रकबा 625 लाख हेक्टेयर के पार

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में अक्टूबर, नवंबर में हुई बारिश से रबी की प्रमुख फसल गेहूं के साथ ही दालों और मोटे अनाजों की बुआई में बढ़ोतरी हुई है। गेहूं की बुआई में 11.11 फीसदी की और रबी फसलों की कुल बुआई 8 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। मौसम भी गेहूं की फसल के अनुकूल बना हुआ है, इसलिए चालू रबी में रिकार्ड पैदावार होने का अनुमान है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार के चालू रबी में फसलों की बुआई बढ़कर 625.02 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 578.47 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुआई बढ़कर चालू सीजन में 326.46 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक गेहूं की बुआई 293.81 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।
चना की बुआई में भारी बढ़ोतरी, मसूर की कम
चालू रबी में दालों की बुआई भी बढ़कर 151.26 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 144.47 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 94.28 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 102.39 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है। मसूर की बुआई चालू रबी में 15.80 लाख हेक्टेयर में और मटर की 9.40 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 16.60 और 9.21 लाख हेक्टेयर में हुई थी। उड़द और मूंग की बुआई क्रमश: 6.73 और 3.41 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 6.47 और 3.76 लाख हेक्टयेर में हुई थी। अन्य दालों की बुआई चालू रबी में 5.47 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 5.79 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।
ज्वार, मक्का और जौ की बुआई ज्यादा
मोटे अनाजों की बुआई चालू रबी में बढ़कर 51.07 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 45.12 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुआई चालू रबी में बढ़कर 28.25 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 23.74 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। मक्का की बुआई चालू रबी में 14.52 लाख हेक्टेयर और जौ की बुआई 7.73 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 13.54 और 7.14 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
सरसों की बुआई पिछले की तुलना में कम
रबी तिलहन की बुआई चालू सीजन में थोड़ी घटकर 77.68 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 78.43 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई 68.12 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुआई 68.88 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मूंगफली की बुआई 4.18 लाख हेक्टेयर में और अलसी की बुआई 3.20 लाख हेक्टेयर तथा सनफ्लावर की बुआई 91 हजार हेक्टेयर में हुई है। पिछले साल इस समय तक मूंगफली की बुआई 3.99 और असली की बुआई 3.34 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। धान की रोपाई चालू रबी में बढ़कर 18.55 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई केवल 16.63 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी।..........  आर एस राणा

केंद्र सरकार ने आयातित रिफाइंड तेलों को प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल किया, उद्योग को होगा फायदा

आर एस राणा
नई दिल्ली। घरेलू उद्योग को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने आरबीडी रिफाइंड तेल के साथ ही पामोलीन के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल कर लिया है, इससे क्रुड पॉम तेल का आयात बढ़ेगा। जिससे घरेलू तिलहन उद्योग की रिफाइनिंग क्षमता का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा बुधवार को जारी अधिसूचना के अनुसार आरबीडी रिफाइंड तेल के साथ ही आरबीडी पामोलीन के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल किया गया है जबकि क्रुड पॉम तेल का आयात मुक्त श्रेणी में रहेगा। सूत्रों के अनुसार प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल होने के बाद अब आरबीडी रिफाइंड तेल और आरबीडी पामोलीन के आयात के लिए आयात लाइसेंस लेने के साथ ही अन्य औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी।
प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल करने से रिफाइंड तेल का आयात नहीं होगा
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता ने बताया कि देश में रिफाइंड पाम तेल के आयात में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी, जबकि केंद्र सरकार द्वारा इसे प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल कर देने से इसका आयात नहीं हो पायेगा। आयातक क्रुड पाम तेल का आयात ही कर पायेंगे, जिससे घरेलू तेल उद्वोग की रिफाइनिंग क्षमता का बेहतर इस्तेमाल तो होगा ही, साथ ही इससे घरेलू स्तर पर रोजगार के अवसर भी ज्यादा उपलब्ध होंगे।
आयात महंगा होने से घरेलू बाजार में बढ़े दाम
विदेशी बाजार में खाद्य तेलों के दाम बढ़ने के कारण घरेलू बाजार में भी खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी आई है। घरेलू बाजार में पाम तेल के भाव में पिछले दो महीनों में करीब 40 से 45 फीसदी तक तेजी आ चुकी है। दुनिया में पाम तेल का मुख्य उत्पादक व निर्यातक इंडोनेशिया और मलेशिया है, जहां बायोडीजल कार्यक्रम शुरू होने से पाम तेल की खपत बढ़ने और उत्पादन कमजोर रहने के अनुमानों से पाम तेल के दामों में लगातार तेजी बनी हुई है। जिस कारण केंद्र सरकार ने रिफाइंड पामोलीन के आयात पर शुल्क 50 फीसदी से घटाकर 45 फीसदी और क्रूड पाम तेल पर आयात शुल्क 40 फीसदी से घटाकर 37.50 फीसदी कर दिया था जो एक जनवरी से लागू हुआ। केंद्र सरकार द्वारा रिफाइंड तेल और क्रुड पॉम तेल के आयात शुल्क में कमी करने से अंतर 7.5 फीसदी का रह गया था, जिस कारण रिफाइंड तेल का आयात और बढ़ने की संभावना थी।
रिफाइंड तेलों के आयात में हुई बढ़ोतरी
एसईए के अनुसार तेल वर्ष 2018-19 (अक्टूबर-18 से नवंबर-19) के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात बढ़कर 149.13 लाख टन का हुआ था, जोकि इसके पिछले साल के 145.16 लाख टन से ज्यादा था। देश में तेल वर्ष 2016-17 में रिकार्ड 150.77 लाख टन खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात हुआ था। एसईए के अनुसार नवंबर 2019 में रिफाइंड तेलों का आयात बढ़कर 1,22,409 टन का हुआ है जबकि पिछले साल नवंबर में आयात 1,08,911 टन का ही हुआ था।..... आर एस राणा

मक्का किसानों को उचित भाव मिला तो सरकार ने आयात को दे दी मंजूरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। मक्का के दाम समर्थन मूल्य से उंचे होने के कारण किसानों को उम्मीद थी कि इस बारे उन्हें उचित भाव मिलेगा, लेकिन सरकार ने आयात के लिए निविदा जारी कर दी। आयातित मक्का फरवरी, मार्च में आने की उम्मीद है जबकि मार्च, अप्रैल में रबी मक्का की आवक शुरू हो जायेगी, अत: आयात का असर इसकी कीमतों पर पड़ने की आशंका है।
सार्वजनिक कंपनी एमएमटीसी ने 50 हजार पीली मक्का (नोन जीमए) मंगाने के लिए निविदा जारी की है। सूत्रों के अनुसार निगम ने निविदा की मात्रा को बढ़ाकर 1.75 लाख टन कर दिया है, जिसके लिए नई निविदा जल्द जारी की जायेगी। सूत्रों के अनुसार नई निविदा में मक्का आयात की शिपमेंट 10 फरवरी 2020 रखी गई है। भारत की मक्का आयात मांग को देखते हुए विदेशी बाजार में भाव बढ़ने की उम्मीद है, साथ ही इतनी बड़ी मात्रा में नोन जीएम मिलने की उम्मीद भी कम है। मक्का का आयात फरवरी, मार्च में ही आने का अनुमान है जबकि रबी सीजन में बिहार और अन्य राज्यों की नई फसल की आवक मार्च, अप्रैल में बनेगी।
कीमतों में आई नरमी
निजामाबाद मंडी के मक्का कारोबारी पूनमचंद गुप्ता ने बताया कि गुरूवार को मंडी में मक्का के दाम घटकर 1,900 से 1,950 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। सरकार द्वारा मक्का आयात के लिए निविदा मांगने से कीमतों में 50 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019—20 के लिए मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,760 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। उन्होंने बताया कि मक्का का आयात फरवरी, मार्च में ही ज्यादा होने का अनुमान है, इसलिए आयात का असर रबी सीजन की मक्का की कीमतों पर ज्यादा पड़ेगा।
यूक्रेन से नोन जीएम मक्का का आयात संभव
यूएस ग्रेन काउंसिल में भारतीय प्रतिनिधि अमित सचदेव ने बताया कि नोन जीएम मक्का का आयात यूक्रेन से हो सकता है, यूक्रेन से आयातित मक्का के भाव भारतीय बंदरगाह  पहुंच 220 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) हैं। इसमें 15 फीसदी आयात शुल्क के साथ ही बंदरगाह और परिवहन लागत को जोड़ दे इसका भाव 1,850 से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल होगा। अत: बंदरगाह ने नजदीक स्थिर पोल्ट्री उद्योग के साथ ही स्टार्च मिलें इसकी खरीद करेेंगी। उन्होंने बताया कि नवंबर, दिसंबर 2019 में भी सरकार ने 50 हजार टन मक्का का आयात किया था। अमेरिका और ब्राजील में जीएम मक्का का उत्पादन होता है, इसलिए इन देशों से आयात की संभावना नहीं है। उन्होंने बताया कि मक्का का आयात फरवरी अंत और मार्च में होगा, इसलिए अभी घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में मंदे की उम्मीद नहीं है। सोया डीओसी के साथ बाजरा के दाम तेज है इसलिए घरेलू बाजार में आगे इसके भाव में फिर सुधार बन सकता है।
खरीफ में उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार खरीफ सीजन 2019-20 में मक्का का उत्पादन 198.9 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल खरीफ में 190.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था। मक्का का उत्पादक खरीफ और रबी दोनों सीजन में होता है। फसल सीजन 2018-19 में खरीफ और रबी सीजन को मिलाकर कुल उत्पादन 272.3 लाख टन का हुआ था। मक्का की बुआई चालू रबी में 13.70 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 12.86 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।.......... आर एस राणा

विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण दिसंबर में डीओसी निर्यात 79 फीसदी घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण दिसंबर में डीओसी के निर्यात में 79 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल निर्यात 67,562 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में इसका निर्यात 3,24,927 टन का हुआ था।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीओसी के दाम नीचे हैं, जबकि घरेलू बाजार में तिलहन की कीमतें उंची बनी हुई है। जिससे डीओसी के भाव भी तेज हैं इसी का असर निर्यात पर पड़ा है। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले 9 महीनों अप्रैल से दिसंबर के दौरान डीओसी के निर्यात में 25 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 18,02,434 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 24,11,248 टन का निर्यात हुआ था।
सोया के साथ सरसों डीओसी का निर्यात घटा, केस्टर डीओसी का बढ़ा
एसईए के अनुसार दिसंबर में सोया डीओसी का निर्यात केवल 5,876 टन का ही हुआ है जबकि नवंबर में इसका निर्यात 69,415 टन का हुआ था। चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में सोया डीओसी का निर्यात 5,02,992 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 9,24,542 टन का निर्यात हुआ था। सरसों डीओसी का निर्यात चालू वित्त वर्ष में 7,05,630 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 8,63,267 टन का हुआ था। हालांकि केस्टर डीओसी का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में बढ़कर 4,69,248 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 2,92,511 टन का ही हुआ था।
डीओसी की कीमतों में आई भारी तेजी
भारतीय बंदरगाह पर दिसंबर 2019 में सोया डीओसी के भाव बढ़कर 476 डॉलर प्रति टन हो गए, जबकि पिछले साल दिसंबर में इसके भाव 364 डॉलर प्रति टन थे। सरसों डीओसी के दाम भी इस दौरान 222 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 245 डॉलर प्रति टन हो गए। केस्टर डीओसी के भाव पिछले साल दिसंबर में घरेलू बंदरगाह पर 82 डॉलर प्रति टन थे जोकि दिसंबर 2019 में बढ़कर 92 डॉलर प्रति टन हो गए।......  आर एस राणा

उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का 6,000 करोड़ से ज्यादा है बकाया

आर एस राणा
नई दिल्ली। गन्ना किसानों की मुश्किलें कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 6,031.69 करोड़ रुपये हो गया है। बकाया में चालू पेराई सीजन 2019-20 का ही 3,874.71 करोड़ रुपये हो चुका है। गन्ने के बकाया भुगतान में देरी होने से गन्ना किसानों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश गन्ना आयुक्त कार्यालय के अनुसार चालू पेराई सीजन 2019-20 के पहले तीन महीनों पहली अक्टूबर 2019 से 31 दिसंबर 2109 तक राज्य की चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 3,874.71 करोड़ रुपये हो गया है जबकि राज्य की चीनी मिलों ने पेराई सीजन 2018-19 का 2,094.15 करोड़ रुपये का भुगतान भी अभी तक नहीं किया है। इसके साथ ही पेराई सीजन 2017-18 का 40.54 करोड़ रुपये तथा पेराई सीजन 2016-17 का भी 22.29 करोड़ रुपये भी किसानों का राज्य की चीनी मिलों पर अभी तक बकाया है। चीनी मिलों को गन्ना खरीदने के 14 दिनों के अंदर भुगतान करना होता हैं
बकाया भुगतान में देरी से गन्ना किसान हलकान
उत्तर प्रदेश के अमरोह जिले के देहराचक गांव के गन्ना किसान जोगिंद्र आर्य ने आउटलुक को बताया कि वेव शुगर मिल ने अभी तक 30 नवंबर तक का ही भुगतान किया है। उन्होंने बताया कि मैंने मिल में 700 क्विंटल गन्ना डाला है, जिसमें से भुगतान अभी तक केवल 150 क्विंटल का ही मिला है। बकाया भुगतान में देरी होने के कारण बच्चों की स्कूल फीस आदि भी समय पर जमा नहीं हो पा रही है।
पर्चियां समय से नहीं मिलने कारण गेहूं की बुआई नहीं हो सकी
मुज्जफरनगर जिले के गांव खरड़ के गन्ना किसान मनोज मलिक ने बताया कि पिछले साल का भी पूरा भुगतान अभी तक मिला है, जबकि नया पेराई सीजन आरंभ हुए तीन महीने बीत चुके हैं। उन्होंने बताया कि चालू पेराई सीजन में पर्चियां समय से नहीं मिल रही हैं जिस कारण समय पर खेत खली नहीं हो सका। उन्होंने बताया कि खरीद केंद्रों पर धीमी गति से तौल होने के कारण दो से तीन दिन तक गन्ना लदी ट्रालियां खड़ी रहती हैं जिस कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि सोसायटी सचिव व मिल कर्मचारियों की मिलीभगत से किसानों का शोषण किया जा रहा है।..........  आर एस राणा

सीजन के पहले तीन महीनों में 10 लाख गांठ कपास का हुआ निर्यात-उद्योग

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू सीजन में 31 दिसंबर तक 10 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास का निर्यात हुआ है जबकि इस दौरान करीब 6.50 लाख गांठ का आयात भी हो चुका हैं। पहली अक्टूबर से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2019-20 में कपास का उत्पादन 13.62 फीसदी बढ़कर 354.50 लाख गांठ होने का अनुमान है।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार कपास का उत्पादन 354.50 लाख गांठ होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 312 लाख गांठ से ज्यादा है। पहली अक्टूबर से 31 दिसंबर तक उत्पादक मंडियों में 125.89 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है। चालू सीजन में उत्पादन अनुमान ज्यादा होने के कारण यार्न मिलों की मांग भी कमजोर है, जिस कारण उत्पादक मंडियों में कपास के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बने हुए हैं। मंडियों में कपास के भाव 4,900 से 5,200 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि केंद्र सरकार ने चालू फसल सीजन 2019-20 के लिए कपास का एमएसपी 5,250-5,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
प्रमुख उत्पादक राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना में उत्पादन अनुमान ज्यादा
एसोसिएशन के अनुसार उत्तर भारत में कपास की पैदावार 61 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल उत्तर भारत के राज्यों में 59.50 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। मध्य भारत के राज्यों में कपास का उत्पादन 197 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 180.63 लाख गांठ का ही उत्पादन हुआ था। गुजरात में कपास का उत्पादन 96 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 88 लाख गांठ कपास उत्पादन हुआ था। वहीं महाराष्ट्र में उत्पादन 85 लाख गांठ होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 70 लाख गांठ से ज्यादा है। तेलंगाना में 51 लाख गांठ और कर्नाटक 20.50 लाख गांठ तथा आंध्रप्रदेश में 15 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान है। अन्य राज्यों में मध्य प्रदेश में 16 लाख गांठ, तमिलनाडु में पांच और ओडिशा में 4 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान है।
निर्यात पिछले साल के लगभग बराबर होने का अनुमान, आयात में कमी की आशंका
सीएआई के अनुसार चालू फसल सीजन में 42 लाख गांठ कपास के निर्यात का अनुमान है जोकि पिछले साल के लगभग बराबर ही है। कपास का आयात चालू सीजन में घटकर 25 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 32 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड (सीएबी) ने फसल सीजन 2019-20 में देश में कपास का उत्पादन 360 लाख गांठ होने का अनुमान जारी किया है जबकि कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार 322.67 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है।.......  आर एस राणा

खाड़ी देशों में तनाव से बासमती चावल के निर्यात सौदों पर असर, कीमतों में आई गिरावट

आर एस राणा
नई दिल्ली। ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ रहे तनाव से देश से बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ा है जिससे घरेलू बाजार में बासमती चावल के साथ ही धान की कीमतों में नरमी आई है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (एआईआरईए) ने स्थिति में सुधार होने तक अपने सदस्यों से बासमती चाववल की खेप नहीं भेजने को कहा है।
एआईआरईए ने अपनी सदस्यों को एक बयान जारी कहा है कि स्थिति में सुधार होने तक बासमती चावल की नई खेप ईरान को नहीं भेजे। एआईआरईए के अध्यक्ष नाथी राम गुप्ता ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि अभी की स्थिति में ईरान को बासमती चावल का निर्यात संभव नहीं है। हमने अपने सदस्यों को परामर्श जारी कर सावधान रहने तथा स्थिति में सुधार होने तक नई खेप नहीं भेजने को कहा है। बासमती चावल के निर्यात सौदे कम होने का नुकसान बासमती धान के किसानों को उठाना पड़ेगा।
बासमती धान के साथ ही चावल की कीमतों में आई गिरावट
हरियाणा की कैथल मंडी के बासमती चावल कारोबारी रामनिवास खुरानिया ने आउटलुक को बताया कि अमेरिका और ईरान के बीच बढ़े तनाव का असर बासमती चावल और धान की कीमतों पर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष में पहले ही बासमती चावल का निर्यात कम हो रहा था, अब इसमें और भी कमी आने की आशंका है। उन्होंने बताया कि सोमवार को पूसा 1,121 धान के भाव मंडी में घटकर 2,950 रुपये प्रति क्विंटल रहे गए, जबकि पिछले सप्ताह इसके भाव 3,100 रुपये प्रति क्विंटल थे। इसी तरह से पूसा 1,121 बासमती चावल सेला के भाव घटकर 5,350 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। डीपी पूसा धान के भाव घटकर मंडी में 2,550 रुपये और ट्रेडिशनल बासमती धान के भाव 3,950 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में निर्यात में आई है कमी
एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले सात महीनों अप्रैल से अक्टूबर के दौरान बासमती चावल का निर्यात घटकर 20.57 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 22.94 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में बासमती चावल का निर्यात 15,564 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 16,963 करोड़ रुपये का हुआ था।
भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक है ईरान
वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने 32,800 करोड़ रुपये के बासमती चावल का निर्यात किया था। इसमें से करीब 10,800 करोड़ रुपये का बासमती चावल अकेले ईरान को निर्यात किया गया था। इराक में अमेरिकी ड्रोन हमले में शीर्ष ईरानी कमांडर कासेम सोलेमानी के मारे जाने के बाद से तनाव बढ़ गया है। चालू वित्त वर्ष के आरंभ से ही ईरान को भारत से बासमती चावल के निर्यात सौदे कम रहे हैं।
निर्यातकों का लगभग 900 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान अभी भी अटका हुआ है
गुप्ता ने बताया कि जून 2019 तक निर्यात किए गए बासमती चावल के निर्यातकों के लगभग 900 करोड़ रुपये का भुगतान अभी भी बाकी है। उन्होंने बताया कि ईरान भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक देश है, अत: निर्यात में कमी आने से कीमतों में भी गिरावट आयेगी। बासमती धान की फसल सितंबर, अक्टूबर में आती है जिस कारण नवंबर से निर्यात सौदों में तेजी आती है, लेकिन इस बार निर्यात सौदे कम हो रहे हैं। ईरान, भारत से बासमती चावल की खरीद के लिए सालाना करीब 2 लाख टन की लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी) जारी करता है जबकि बाकि का निर्यात सीधे निजी निर्यातकों के माध्यम से किया जाता है।...... आर एस राणा

चीन, अफ्रीकी देशों को भारत से सस्ता गैर-बासमती चावल कर रहा है निर्यात

आर एस राणा
नई दिल्ली। अफ्रीकी देशों में अब तक भारतीय गैर-बासमती चावल का बोलबाला था, लेकिन अब इन देशों में चीन, भारत से सस्ता चावल निर्यात कर रहा है। जिस कारण भारत से गैर-बासमती चावल के निर्यात में भारी कमी आई है।
चीन चावल का बड़ा आयातक देश रहा है, लेकिन इस बार गैर-बासमती चावल का बड़े पैमाने पर निर्यात कर रहा है जिसका सीधा असर भारत से होने वाले निर्यात पर पड़ रहा है। चावल निर्यात में भारत सबसे बड़ देश रहा है, लेकिन इस प्रतिस्पर्धा में अब चीन उतर आया है। सूत्रों के अनुसार उद्योग भवन में पॉलिसी बनाने से लेकर चावल निर्यात करने वाली शीर्ष मिलों की निगाहें भी बड़ी सतर्कता के साथ चीन को देख रहीं हैं, क्‍योंकि यह अफ्रीकी बाजारों में टनों चावल पहुंचा रहा है तो आम तौर पर भारत का काम होता था।
भारत से काफी सस्ते दाम पर निर्यात कर रहा है चीन
पिछले 6 महीनों में चीन ने अपने सरकारी वेयरहाउस से करीब 3 मिलियन टन से अधिक गैर-बासमती चावल की निकासी की है जिसमें से अफ्रीकी देशों में गैर-बासमती चावल की कई खेप भेजी गई हैं। उत्‍तराखंड के बड़े चावल निर्यातक लक्ष्‍य अग्रवाल ने कहा कि भारीतय गैर-बासमती चावल का भाव अफ्रीकन देशों में करीब 400 डॉलर प्रति टन हैं लेकिन चीन इससे काफी कम कीमत पर चावल निर्यात कर रहा है। मार्केट सूत्रों के अनुसार, चीन 300 से 320 डॉलर प्रति टन गैर-बासमती चावल का निर्यात कर रहा है। लक्ष्‍य अग्रवाल ने बताया कि भारत और चीन की दरों में काफी अंतर है। अगर ऐसा ही जारी रहा तो हमारे यहां से हो रहे निर्यात में और कमी आयेगी।
चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में गैर-बासमती चावल के निर्यात में आई कमी
दशकों तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश रहा है, इसके बाद थाईलैंड, वियतनाम और पाकिस्‍तान आदि देशों का नाम चावल निर्या‍तक में आता है। एक ओर जहां भारत शीर्ष स्‍थान को सुरक्षित रखना चाहता था वहीं भारत से गैर-बासमती चावल के निर्यात में गिरावट आई है। सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल से नवंबर के दौरान भारत से गैर-बासमती चावल का निर्यात घटकर मूल्य के हिसाब से 9,028.34 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2018-19 की समान अवधि में 14,059.51 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात हुआ था। एपीडा के अनुसार चीन गैर-बासमती चावल के पुराने स्टॉक को अफ्रीकन देशों को निर्यात कर रहा है।..........  आर एस राणा

पेराई सीजन के पहले तीन महीनों में चीनी उत्पादन 30 फीसदी घटा, महाराष्ट्र और कर्नाटक में आई कमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन के पहले तीन महीने बीतने के बाद चीनी उत्पादन में 30.22 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल उत्पादन 77.95 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 111.72 लाख टन का उत्पादन हो चुका था।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार महाराष्ट्र और कर्नाटक में बाढ़ और सूखे के कारण गन्ने की फसल को नुकसान हुआ था जिस कारण इन राज्यों में चीनी के उत्पादन में कमी आई है। देशभर में चालू पेराई सीजन में 437 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जबकि पिछले साल इस समय 507 मिलों में पेराई चल रही थी।
महाराष्ट्र में दो चीनी मिलों में पेराई हुई बंद
इस्मा के अनुसार महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 31 दिसंबर तक 16.50 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय तक राज्य में 44.57 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। राज्य में केवल 137 चीनी मिलों में पेराई चल रही है, जबकि पिछले साल इस समय 187 मिलों में पेराई चल रही थी। राज्य के अहमदनगर और औरंगाबाद में दो चीनी मिलों में पेराई बंद भी हो गई है। चालू सीजन में राज्य में बेमौसम बारिश, बाढ़ और सूखे से गन्ने की फसल को भारी नुकसान हुआ जिस कारण रिकवरी की दर भी 10 फीसदी ही आ रही है जबकि पिछले साल इस समय तक 10.50 फीसदी की आ रही थी।
उत्तर प्रदेश में उत्पादन में हुई है बढ़ोतरी
उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 119 चीनी मिलों में पेराई चल रही है तथा राज्य में 31 दिसंबर तक 33.16 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल राज्य में इस समय 117 चीनी मिलों में ही पेराई चल रही थी, और उत्पादन 31.07 लाख टन का हुआ था। राज्य में गन्ने में औसतन रिकवरी की दर 10.84 फीसदी की आ रही है।
कर्नाटक और गुजरात में भी घटा चीनी का उत्पादन
कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में पहली अक्टूबर 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक 16.33 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 21.03 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। राज्य में 63 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जबकि पिछले साल 65 मिलों में पेराई चल रही थी। अन्य राज्यों में गुजरात में 31 दिसंबर तक चीनी का उत्पादन 2.65 लाख टन, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में 96 हजार टन, तमिलनाडु में 95 हजार टन, बिहार में 2.33 लाख टन, हरियाणा में 1.35 लाख टन, पंजाब 1.60 लाख टन, उत्तराखंड में 1.06 लाख टन और मध्य प्रदेश में एक लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है।...........  आर एस राणा

केंद्र सरकार क्रुड पॉम तेल के साथ रिफांइड तेलों के आयात शुल्क में की कटौती

आर एस राणा
नई दिल्ली। विदेशी बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में चल रही तेजी के कारण केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कटौती की है। केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार क्रुड पॉम तेल के आयात पर शुल्क को 40 फीसदी से घटाकर 37.5 फीसदी और रिफाइंड तेल के आयात पर शुल्क को 50 फीसदी से घटाकर 45 फीसदी कर दिया है।
मलेशिया और इंडोनेशिया से पाम तेल का आयात महंगा होने के कारण घरेलू बाजार में भी खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी आई है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने हाल ही में केंद्र सरकार को पत्र लिखकर खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कमी नहीं करनी की मांग की थी। एसईए के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता के अनुसार अंतरार्ष्ट्रीय बाजार से आयात महंगा होने के कारण घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इससे देश के किसानों को तिलहनों का ऊंचा भाव मिल रहा है, जिससे वे तिलहनों की खेती करने को लेकर उत्साहित होंगे।
खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन देना होगा
उन्होंने कहा कि हमें अगर खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनना है तो किसानों को प्रोत्साहन देना ही पड़ेगा जोकि उन्हें उनकी फसलों का बेहतर व लाभकारी दाम दिलाकर किया जा सकता है। भारत दुनिया का दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक है जो खाद्य तेल की अपनी जरूरतों के अधिकांश हिस्से की पूर्ति आयात से करता है। बेमौसम बारिश और बाढ़ के कारण खरीफ सीजन में सोयाबीन की फसल को नुकसान हुआ था, जिस कारण उत्पादन अनुमान में कमी आई।
आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में आई तेजी
अक्टूबर के मुकाबले नवंबर में खाद्य तेलों की कीमतों में भारी तेजी दर्ज की गई है। भारतीय बंदरगाह पर आरबीडी पामोलीन का भाव नवंबर 2019 में बढ़कर औसतन 663 डॉलर प्रति टन रहा, जबकि अक्टूबर में इसका भाव 567 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रुड पाम तेल का भाव नवंबर में बढ़कर 636 डॉलर प्रति टन हो गया जबकि अक्टूबर में इसका दाम औसतन 541 डॉलर प्रति टन था। क्रुड सोया तेल के भाव इस दौरान 722 डॉलर से बढ़कर 763 डॉलर प्रति टन हो गए। एसईए के अनुसार तेल वर्ष 2018-19 (अक्टूबर-18 से नवंबर-19) के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात बढ़कर 149.13 लाख टन का हुआ, जोकि इसके पिछले साल के 145.16 लाख टन से ज्यादा है। देश में तेल वर्ष 2016-17 में रिकार्ड 150.77 लाख टन खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात हुआ था।............  आर एस राणा