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27 जनवरी 2019

मानसूनी बारिश की कमी से गेहूं समेत रबी फसलों की बुवाई 4.90 फीसदी पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने का असर गेहूं, दलहन और मोटे अनाजों की बुवाई पर पड़ा है। गेहूं की बुवाई में 2.53 फीसदी, दलहन की बुवाई में 6.13 फीसदी, मोटे अनाजों की बुवाई में 13.93 फीसदी और धान की रोपाई में 21.32 फीसदी की कमी आई है। 
कृषि मंत्रालय के अनुसार देशभर में रबी फसलों की बुवाई 4.90 फीसदी घटकर 591.64 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 622.12 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। 
गेहूं की बुवाई में आई कमी
रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई चालू सीजन में 23 जनवरी तक 296.37 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 304.08 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। गेहूं की बुवाई समान्यत: 306.57 लाख हेक्टेयर में होती है।
दालों की बुवाई पिछले साल से कम
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 6.13 फीसदी घटकर 151.10 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 160.97 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई 9.96 फीसदी घटकर अभी तक केवल 95.99 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 106.55 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
मसूर और उड़द की बुवाई घटी, मूंग एवं मटर की बढ़ी
अन्य दालों में मसूर की बुवाई चालू सीजन में 16.88 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 17.18 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। उड़द और मूंग की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 7 और 5.70 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 8.10 और 6.67 लाख हेक्टेयर में हुई थी। मटर की बुवाई चालू रबी में बढ़कर पिछले साल के 9.33 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 10.38 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है।
मोटे अनाजों की बुवाई 13.93 फीसदी कम
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 13.93 फीसदी घटकर 47.02 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 54.63 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई चालू रबी में 18.78 फीसदी घटकर केवल 24.76 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 30.49 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी। मक्का और जौ की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 14.28 और 7.24 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 15.84 और 7.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। रागी और बाजरा की बुवाई में भी क्रमश: पिछले साल की तुलना में 8.26 फीसदी और 38.73 फीसदी की कमी आई है।
तिलहन की बुवाई में हल्की कमी
तिलहन की बुवाई चालू रबी में 0.50 फीसदी घटकर 79.10 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 79.49 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई जरुर पिछले साल के 66.80 लाख हेक्टेयर से 3 फीसदी बढ़कर 68.81 लाख हेक्टेयर में हुई है। मूंगफली और असली की बुवाई चालू रबी में घटकर क्रमश: 4.41 और 3.42 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 5.44 और 3.98 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। सनफ्लावर की बुवाई में पिछले साल के 1.64 लाख हेक्टेयर से घटकर 1.08 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
धान की रोपाई 21.32 फीसदी घटी
धान की रोपाई चालू सीजन में 21.32 फीसदी घटकर केवल 18.06 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 22.95 लाख हेक्टेयर में इसकी रोपाई हो चुकी थी।.....आर एस राणा

महाराष्ट्र सरकार सूखा राहत से निपटने के लिए 2,900 करोड़ रुपये करेगी जारी

आर एस राणा
नई दिल्ली। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में किसानों को राहत देने के लिए 2,900 करोड़ रुपये जारी करने की घोषणा की है। राज्य के राजस्व, राहत और पुनर्वास मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि राज्य सरकार किसानों को मुआवजा जारी करेगी, जो आने वाले दिनों में उनके खातों में जमा हो जायेगा। 
उन्होंने कहा कि सूखे की स्थिति से निपटने के लिए, राज्य सरकार किसानों के साथ मजबूती के साथ खड़ी है। राज्य के 151 तहसीलों के 268 मंडल के 923 गांवों को सूखा प्रभावित घोषित किया गया है। उन्होंने कहा कि बिजली बिल, गायों के लिए चारा और किसानों से संबंधित अन्य योजनाओं को देखा जा रहा है।
केंद्र को भेजा है 7,900 करोड़ का प्रस्ताव
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने सूख राहत से निपटने के लिए केंद्र सरकार को 7,900 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा है। केंद्र सरकार की मदद घोषित होने तक, किसानों को राज्य सरकार की निधि से सहायता देने का फैसला किया गया है। इसलिए 2,900 करोड़ रुपये की धनराशि विभागीय आयुक्त के स्तर पर वितरित की गई है।
मंडल स्तर पर चारा शिवर बनेंगे
राज्य में सूखे की रोकथाम के लिए गठित समिति की गुरुवार को हुई बैठक में चारा शिविर शुरू करने का फैसला लिया गया। जिलाधिकारी को प्रस्ताव मिलने के बाद मंडल स्तर पर चारा शिविर शुरू किए जाएंगे। एक शिविर में सामान्यत: 300 से 500 जानवरों को रखा जायेगा। जिलाधिकारी को अधिकार दिया गया है कि यदि वहां पशुओं की संख्या अधिक होती है, तो उसी सर्कल में आवश्यकता अनुसार एक और शिविर शुरू करने का निर्णय वे ले सकते हैं। राज्य सरकार पहले ही पांच स्थानों पर चारा शिविर शुरू कर चुकी है।
पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जायेगी
राजस्व मंत्री ने कहा कि पानी की कमी को दूर करने के लिए पाइप लाइन की मरम्मत जैसे अस्थाई नई पाइपलाइनों के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है। इसी तरह बकाया बिजली बिल के कारण बंद बड़ी जलापूर्ति योजनाओं को शुरू करने के लिए राज्य सरकार ने बकाया बिल की पांच प्रतिशत धनराशि भरने का फैसला किया है। राज्य सरकार ने राष्ट्रीय कृषि बीज विकास योजना के अंतर्गत 10 हजार क्विंटल बीज आवंटित करने का निर्णय लिया है। ...........  आर एस राणा

बजट में किसानों को केसीसी पर एक लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त ऋण संभव

आर एस राणा
नई दिल्ली। मोदी सरकार पहली फरवरी को पेश करने वाले अंतरिम बजट में छोटे-मझोले किसानों को बड़ी राहत दे सकती है। केंद्र सरकार किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) पर एक लाख रुपये तक के ऋण की समय से अदायगी करने वाले किसानों के लिए ब्याज माफी का ऐलान कर सकती है।
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले केंद्र सरकार किसानों की नाराजगी दूर करना चाहती है। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार में किसानों की नाराजगी को अहम माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार छोटे और मझोले किसानों को एक लाख रुपये तक के ब्याज मुक्त ऋण की सुविधा देने के साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड से दो लाख रुपये का कर्ज लेने वाले किसानों को जमीन भी बैंक के पास गिरवी नहीं रखनी पड़ेगी। इससे छोटे और मझोले किसानों को फायदा तो होगा ही, साथ ही इन किसानों को बैंकों से कर्ज लेने में सहूलियत मिलेगी।
बजट में कृषि कर्ज की सीमा में एक लाख बढ़ोतरी संभव
वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में कृषि कर्ज की सीमा को बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपये किया गया था। सूत्रों के अनुसार अंतरिम बजट 2019 में इसमें एक लाख करोड़ रुपये का इजाफा किये जाने की संभावना है। देशभर में करीब 3 लाख किसानों के पास केडिट कार्ड हैं। 
समय पर कर्ज की अदायगी पर 4 फीसदी देना पड़ता है ब्याज
किसान क्रेडिट कार्ड के तहत किसानों को तीन लाख रुपये तक का लोन मिलता है तथा समय से कर्ज की अदायगी करने वाले किसानों को चार फीसदी का ब्याज देना होता है। वित्त मंत्री ने पिछले बजट में किसान क्रेडिट कार्ड की तर्ज पर मछुआरों और पशुपालकों को भी कार्ड दिए जाने का एलान किया था। ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि उन्हें कर्ज मिलने में आसानी रहे।
किसान कई फसलों को लागत से नीचे दाम पर बेचने को मजबूर
महंगा कर्ज, कृषि लागत की अधिकता और फसलों की उचित कीमत नहीं मिलने जैसी समस्याओं से देश के किसानों को जूझना पड़ रहा है। देश के कई राज्यों में किसान आलू, प्याज और लहसुन के साथ ही दलहन फसलों को लागत से बेहद कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर हैं। ऐसे में सरकार के अंतरिम बजट में किसानों के हितों को प्राथमिकता के साथ उठाए जाने की उम्मीद है।..............  आर एस राणा

अभी तक की बारिश से गेहूं, चना और सरसों की फसल को फायदा-कृषि आयुक्त

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू सप्ताह में कई राज्यों में हुई बारिश से गेहूं के साथ ही चना और सरसों की फसल को फायदा हुआ है। कृषि आयुक्त एस के मल्होत्रा ने गुरुवार को  संवाददाताओं से कहा कि वर्तमान मौसम रबी फसलों के लिए अच्छा है। 
उन्होंने कहा कि चालू रबी में चना के बुवाई क्षेत्रफल में 10 फीसदी की कमी आई है, लेकिन अन्य दालों की बुवाई में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि चना बुवाई में आई कमी से चना का उत्पादन कम होने के अनुमान से किसानों को अच्छा भाव मिलेगा, लेकिन खुले बाजार में कीमतें ज्यादा नहीं बढ़ेगी क्योंकि केंद्रीय पूल में चना का स्टॉक ज्यादा है। 
चना की बुवाई 9.96 फीसदी कम
रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई चालू रबी में 9.96 फीसदी घटकर 95.40 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 105.95 लाख हेक्टेयर में हुई थी। रबी में दलहन की कुल बुवाई चालू सीजन में 5.57 फीसदी घटकर 149.01 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 157.80 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। 
मटर की बुवाई में हुई बढ़ोतरी
अन्य दालों में मटर की बुवाई चालू रबी में पिछले साल के 9.30 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 10.31 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि मसूर की बुवाई चालू सीजन में 16.85 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 17.18 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। उड़द और मूंग की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 6.75 और 4.98 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 7.50 और 4.89 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
रबी और खरीफ के बीच में होता है जायद फसलों का उत्पादन
सरकार ने जायद फसलों का रकबा 25 लाख हेक्टेयर बढ़ाने का लक्ष्य रखा है जिससे इन फसलों का उत्पादन 50 लाख टन बढ़ेगा। रबी और खरीफ फसलों के बीच जो फसल ली जाती है उन्हें जायद या ग्रीष्मकालीन फसल कहते हैं। इनकी बुवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है। इन फसलों का रकबा और उत्पादन बढ़ाने के लक्ष्य के साथ गुरुवार को राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जायद फसलों पर इस तरह का यह पहला सम्मेलन है। 
दलहन, तिलहन और मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर
कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने कहा कि जायद में दलहन, तिलहन और मोटे अनाजों का रकबा करीब 24 लाख हेक्टेयर है जिसे बढ़ाकर 49 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि जायद फसलों की बुवाई से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मदद मिलती है। इस मौसम के लिए किसानों को रणनीति बनानी चाहिये। ऐसी फसलों की खेती करनी चाहिये जो कम समय में तैयार हो जाये और जिन के लिए पानी की कम से कम जरूरत हो। साथ ही ये फसल मिट्टी उत्पादकता बढ़ाने में भी मददगार हो सकती हैं।...........  आर एस राणा

22 जनवरी 2019

चीनी का उत्पादन घटकर 307 लाख टन होने का अनुमान, बकाया बढ़कर 19,000 करोड़-उद्योग

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में चीनी का उत्पादन घटकर 307 लाख टन ही होने का अनुमान है जोकि आरंभिक अनुमान 315 लाख टन से 8 लाख टन कम है। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में 15 जनवरी 2019 तक चीनी का उत्पादन 8.32 फीसदी बढ़कर 146.86 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 135.57 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में पहली अक्टूबर 2018 से 31 दिसंबर 2018 तक चीनी मिलों पर किसानों के बकाया की राशि बढ़कर 19,000 करोड़ रुपये हो गई है, इसमें 2,800 करोड़ पिछले पेराई सीजन का भी है। पिछले पेराई सीजन में दिसंबर के अंत तक बकाया केवल 10,600 करोड़ रुपये ही था।
इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन में करीब पांच लाख टन चीनी उत्पादन के बराबर सीधे गन्ने के रस से एथनॉल का उत्पादन होने का अनुमान है। इस समय देशभर में 510 चीनी मिलों में पेराई चल रही है। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 117 चीनी मिलों में पेराई चल रही है तथा राज्य की मिलों में 41.93 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है।
उत्तर प्रदेश और महारष्ट्र में घटने की आशंका
इस्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 112.86 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 120.45 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 15 जनवरी तक चीनी का उत्पादन बढ़कर 57.25 लाख टन का हो चुका है जोकि पिछले पेराई सीजन के मुकाबले 7 लाख टन ज्यादा है। राज्य में चालू पेराई सीजन में 95 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में 107.23 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
कर्नाटक में बढ़ेगा चीनी उत्पादन
अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 42 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में राज्य में 37.52 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। चालू पेराई सीजन में 15 जनवरी तक राज्य में 26.76 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 21.35 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था।
अन्य राज्यों में उत्पादन बढ़ने का अनुमान
अन्य राज्यों तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और उत्तराखंड में चालू पेराई सीजन में 62 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है जोकि पिछले पेराई सीजन की तुलना में 2.5 लाख टन ज्यादा है।
निर्यात में कमी की आशंका
विश्व बाजार में चीनी के भाव नीचे होने के कारण चालू पेराई सीजन में चीनी का निर्यात 30 से 35 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन के लिए 50 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी हुई है।
भाव में हल्का सुधार संभव
चीनी की कीमतों में सप्ताहभर में सुधार आया है। केंद्र सरकार चीनी उद्योग के लिए राहत पैकेज देने पर विचार कर रही है, तथा इस समय चीनी में खपत का सीजन चल रहा है इसलिए चीनी के भाव में हल्का सुधार और भी आने का अनुमान है।.............. आर एस राणा

21 जनवरी 2019

रबी में गेहूं, दलहन और मोटे अनाजों की बुवाई में आई कमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी फसल सीजन में गेहूं, दलहन और मोटे अनाजों के साथ ही धान की पोराई में कमी आई है। देश के कई राज्यों में मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने का असर फसलों की बुवाई पर पड़ा है। गेहूं की बुवाई में 2.57 फीसदी, दलहन की बुवाई में 5.57 फीसदी, मोटे अनाजों की बुवाई में 13.88 फीसदी और धान की रोपाई में 21.51 फीसदी की कमी आई है। 
कृषि मंत्रालय के अनुसार रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई चालू सीजन में 18 जनवरी तक 296.05 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 303.87 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। गेहूं की बुवाई समान्यत: 306.29 लाख हेक्टेयर में होती है।
दलहन की बुवाई 5.57 फीसदी पिछड़ी
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 5.57 फीसदी घटकर 149.01 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 157.80 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई 9.96 फीसदी घटकर अभी तक केवल 95.40 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 105.95 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
मसूर और उड़द की बुवाई कम
अन्य दालों में मसूर की बुवाई चालू सीजन में 16.85 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 17.18 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। उड़द और मूंग की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 6.75 और 4.98 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 7.50 और 4.89 लाख हेक्टेयर में हुई थी। मटर की बुवाई जरुर चालू रबी में पिछले साल के 9.30 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 10.31 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। 
मोटे अनाजों की बुवाई 13.88 फीसदी पिछड़ी
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 13.88 फीसदी घटकर 46.66 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 54.18 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई चालू रबी में 18.75 फीसदी घटकर केवल 24.60 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 30.27 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी। मक्का और जौ की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 14.13 और 7.23 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 15.62 और 7.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। रागी और बाजरा की बुवाई में भी पिछले साल की तुलना में कमी आई है। 
तिलहन की बुवाई में हल्की कमी
तिलहन की बुवाई चालू रबी में 0.95 फीसदी घटकर 78.45 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 79.20 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई जरुर पिछले साल के 66.77 लाख हेक्टेयर से 2.84 फीसदी बढ़कर 68.66 लाख हेक्टेयर में हुई है। मूंगफली और असली की बुवाई चालू रबी में घटकर क्रमश: 4.08 और 3.37 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 5.25 और 3.97 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। सनफ्लावर की बुवाई में पिछले साल की तुलना में कमी आई है।
धान की रोपाई 21.51 फीसदी घटी
धान की रोपाई चालू सीजन में 21.61 फीसदी घटकर केवल 17.93 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 22.84 लाख हेक्टेयर में इसकी रोपाई हो चुकी थी।......   आर एस राणा

महाराष्ट्र, गुजरात के साथ ही कई अन्य राज्यों के जलाशयों में पानी की कमी चिंताजनक

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहले से ही मौसम की मार झेल रहे महाराष्ट्र, गुजरात के साथ ही झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के किसानों की मुश्किले गर्मियों में और बढ़ सकती है। इन राज्यों के जलाशयों में पानी का स्तर पिछले दस साल के औसत स्तर से भी नीचे चला गया है, जोकि चिंताजनक है। खरीफ में मानसूनी बारिश कम होने के कारण देश के कई राज्यों ने पहले ही सूखा घोषित किया हुआ है, ऐसे में जलाशयों में पानी का स्तर औसत से भी कम होने के कारण आगे गर्मियों के सीजन में किसानों को और मुश्किलों का सामाना करना पड़ सकता है।
महाराष्ट्र और गुजरात में मानसूनी बारिश औसत से कम हुई थी, जिस कारण इन राज्यों में खरीफ के साथ ही रबी फसलों का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। जलाशयों में पानी कम होने के कारण इन राज्यों के किसानों को गर्मियों में फसलों की सिंचाई के लिए पानी की किल्लत हो सकती है।
गुजरात और महाराष्ट्र के जलाशयों में जलस्तर काफी नीचे
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार 17 जनवरी 2019 को पश्चिमी क्षेत्र के गुजरात तथा महाराष्ट्र के 27 जलाशयों में पानी का स्तर घटकर कुल भंडारण क्षमता का 37 फीसदी ही रह गया है जोकि पिछले दस साल का औसत अनुमान 52 फीसदी से भी काफी कम है। पिछले साल की समान अवधि में पश्चिमी क्षेत्र के जलाशयों में कुल भंडारण क्षमता का 50 फीसदी पानी था।
पूर्वी क्षेत्र के जलाशयों में भी जलस्तर घटा
यही हाल पूर्वी क्षेत्र के झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा के 15 जलाशयों का भी है। इन जलाशयों में पानी का स्तर घटकर इनकी कुल भंडारण क्षमता के 61 फीसदी पर आ गया जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में इन जलाशयों में पानी का स्तर 69 फीसदी था। इन जलाशयों में पानी का स्तर पिछले 10 साल के औसतन अनुमान 64 फीसदी से भी कम है।
दक्षिण के जलाशयों में पिछले साल के बराबर
इसी तरह से दक्षिण भारत के जिलों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के 31 जलाशयों में पानी का स्तर दस साल के औसत स्तर से नीचे आ गया है। इन जलाशयों में पानी का स्तर कुल भंडारण क्षमता का 41 फीसदी ही रह गया है जोकि दस साल के औसत 47 फीसदी से कम है। वैसे, पिछले साल की समान अवधि में इन राज्यों के जलाशयों में पानी का स्तर केवल 41 फीसदी ही था।
मध्य क्षेत्र में पानी का स्तर पिछले साल से ज्यादा
मध्य क्षेत्र के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के 12 जलाशयों में पानी का स्तर उनकी कुल भंडारण क्षमता के 52 फीसदी पर है जोकि पिछले दस साल के औसतन 52 फीसदी के लगभग बराबर ही है।पिछले साल के 45 फीसदी से जरुर मध्य क्षेत्र के जलाशयों में पानी का स्तर ज्यादा है। 
उत्तर क्षेत्र के जलाशयों में पानी का स्तर बढ़ा
देश के उत्तरी क्षेत्र के जलाशयों में भी पानी की स्थिति ठीक है। हिमाचल, पंजाब तथा राजस्थान के 6 जलाशयों में पानी का स्तर 62 फीसदी है जोकि पिछले दस साल के औसत 48 फीसदी से ज्यादा है। पिछले साल की समान अवधि में उत्तरी क्षेत्र के जलाशयों में कुल क्षमता का 47 फीसदी पानी ही था।.....   आर एस राणा

इंडोनेशिया और मलेशिया ने भारत से शर्तों के साथ चीनी आयात में दिखाई रुचि

आर एस राणा
नई दिल्ली। चीनी के बंपर उत्पादन के साथ ही किसानों के बढ़ते बकाया से हलकान केंद्र सरकार चीनी का निर्यात बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है। इसी प्रयास के तहत इंडोनेशिया और मलेशिया ने भारत से चीनी आयात करने की रुचि तो दिखाई है लेकिन इसके लिए पॉम तेल केे आयात पर शुल्क घटाने की शर्त रख दी है।
सूत्रों के अनुसार इंडोनेशिया और मलेशिया लगभग 11 से 13 लाख टन चीनी का आयात कर सकते हैं, अत: पॉम तेल आयात पर शुल्क में कटौती पर खाद्य मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय बातचीत कर रहे हैं।
केंद्र सरकार चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया और मलेशिया को चीनी निर्यात की संभावनाएं तलाश रही है इसके लिए इन देशों में टीमें भी भेजी गई थी तथा भारत से चीन ने पहले भी चीनी का आयात किया है। सूत्रों के अनुसार बांग्लादेश और श्रीलंका भी भारत से चीन का आयात कर रहे हैं। 
चीनी निर्यात की संभावनाओं के लिए मलेशिया गए प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने आउटलुक को बताया कि मलेशिया 3 से 4 लाख टन चीनी का आयात करता है जबकि इंडोनेशिया 8 से 9 लाख टन का आयात करता है। इंडोनेशिया इस समय आस्ट्रेलिया और ब्राजील से चीनी का आयात करता है, तथा इंडोनेशिया ने आस्ट्रेलिया और ब्राजील के मुकाबले भारत से चीनी आयात पर शुल्क 5 फीसदी ज्यादा लगा रखा है।
चीनी की कुल उपलब्धता ज्यादा
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) की पहली तिमाही पहली अक्टूबर 2018 से 31 दिसंबर 2019 तक चीनी का उत्पादन 110.52 लाख टन का हो चुका है जबकि कुल उत्पादन 320 लाख टन होने का अनुमान है। चालू पेराई सीजन में पहली अक्टूबर 2018 को 107 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 427 लाख टन की बैठेगी। देश में चीनी की सालाना खपत 255 से 260 लाख टन की होती है। ऐसे में घरेलू बाजार में चीनी की बंपर उपलब्धता है जबकि विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण केंद्र सरकार द्वारा रियायतें देने के बावजूद भी सीमित मात्रा में ही निर्यात सौदे हुए हैं।
विश्व बाजार में भाव कम होने से निर्यात की गति धीमी
विश्व बाजार में व्हाईट चीनी के भाव 350 डॉलर प्रति टन है, जबकि इन भाव में निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं। सूत्रों के अनुसार चालू पेराई सीजन में अभी तक केवल 6.5 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे ही हुए हैं जबकि केंद्र सरकार ने 50 लाख टन निर्यात की अनुमति दी हुई है। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स फैक्ट्री भाव 3,200 से 3,250 रुपये और दिल्ली में भाव 3,500 रुपये प्रति क्विंटल रहे।
सरकार ने 31 दिसंबर को घटाया था शुल्क
केंद्र सरकार ने 31 दिसंबर 2018 को मलेशिया से आयातित क्रुड पॉम तेल पर आयात शुल्क को 44 फीसदी से घटाकर 40 फीसदी और रिफाइंड तेल पर आयात शुल्क को 54 फीसदी से घटाकर 45 फीसदी कर दिया था। इसके अलावा इंडोनेशिया से आयातित क्रुड पॉम तेल के आयात पर शुल्क को 44 फीसदी से घटाकर 40 फीसदी और रिफाइंड तेल के आयात पर शुल्क को 54 से घटाकर 50 फीसदी कर दिया था। 
पॉम पर आयात शुल्क घटाया तो तिलहन के भाव पर पड़ेगा असर 
गन्ना किसानों के हितों को देखते हुए अगर पॉम तेल के आयात पर शुल्क में और कटौती की गई तो, फिर तिलहन किसानों का हित प्रभावित हो सकता है। इससे घरेलू बाजार में तिलहन की कीमतों में कमी आने की आशंका है। वैसे भी सरसों और मूंगफली के भाव पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बने हुए हैं। उत्पादक मंडियों में सरसों के भाव 3,800 से 3,900 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि केंद्र सरकार ने रबी विपणन सीजन 2018-19 के लिए सरसों का एमएसपी 4,200 रुपये प्रति क्विंटल है।.....   आर एस राणा

खरीफ में ग्वार सीड का उत्पादन 7.42 फीसदी बढ़ने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान में जहां ग्वार सीड के उत्पादन में बढ़ोतरी का अनुमान है, वहीं राजस्थान और गुजरात में उत्पादन में कमी आने की आशंका है। चालू खरीफ में ग्वार सीड का उत्पादन 17.22 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 16.03 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था।
प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान में ग्वार सीड के उत्पादन में 16.96 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल उत्पादन 14.55 लाख टन होने का अनुमान है। राज्य के कृषि निदेशालय के द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के चालू खरीफ में ग्वार सीड की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 471 किलोग्राम आई है। पिछले साल राज्य में ग्वार सीड का उत्पादन केवल 12.44 लाख टन का ही हुआ था जबकि पिछले साल प्रति हेक्टेयर उत्पादकता केवल 363 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की ही आई थी।
राजस्थान में खरीफ में ग्वार सीड की बुवाई 30,87,761 हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल राज्य में 34,32,293 हेक्टेयर में ग्वार सीड की बुवाई हुई थी।
हरियाणा में उत्पादन अनुमान कम
हरियाणा राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में राज्य में ग्वार सीड का उत्पादन घटकर 1,94,000 टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 2,23,00 टन का उत्पादन हुआ था। चालू सीजन में राज्य में ग्वार सीड की बुवाई 2,46,000 हेक्टेयर में हुई थी जबकि पिछले साल राज्य में 2,73,000 हेक्टेयर में ग्वार सीड की बुवाई हुई थी। 
ग्वार सीड का उत्पादन गुजरात में भी घटने का अनुमान
उधर गुजरात के कृषि निदेशालय के अनुसार राज्य में ग्वार सीड का उत्पादन 73,000 टन ही होने का अनुमान है जबकि राज्य में ग्वार सीड की बुवाई 1,35,000 हेक्टेयर में हुई थी। पिछले साल गुजरात में 1,36,000 टन ग्वार सीड का उत्पादन हुआ था, जबकि बुवाई 2,05,000 हेक्टेयर में हुई थी।
पहले 8 महीनों में निर्यात बढ़ा
एपिडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 8 महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान ग्वार गम उत्पादों का निर्यात 3,30,978 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 3,22,055 टन का निर्यात हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में ग्वार गम उत्पादों का निर्यात 3,053 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में 2,589 करोड़ रुपये का ही निर्यात हुआ था।
स्टॉकिस्ट बढ़ा सकते हैं थाव
जानकारों के अनुसार चालू सीजन में कुल उपलब्धता ज्यादा है, साथ ही ग्वार गम उत्पादों में निर्यात मांग भी कमजोर रही, जिस कारण भाव में नरमी बनी हुई थी। हालांकि स्टॉकिस्ट भाव तेज करना चाहते है, इसलिए आगे इसके भाव में सुधार बनने की आशंका है। प्रमुख उत्पादक मंडी जोधपुर में ग्वार सीड के भाव गुरूवार को 4,400 रुपये और ग्वार गम के भाव 8,700 रुपये प्रति क्विंटल रहे। .........  आर एस राणा

गुजरात में कपास के साथ ही अन्य फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। गुजरात के कई जिलों में मानसूनी बारिश कम होने से सूखे जैसे हालात बने हुए हैं जिससे राज्य के किसानों पर दोहरी मार पड़ी है। सूखे से खरीफ फसलों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भारी कमी आई, साथ ही रबी फसलों के उत्पादन में भी गिरावट आने का अनुमान है। चालू फसल सीजन 2018-19 में राज्य में कपास के उत्पादन में जहां 48.95 फीसदी की भारी गिरावट आने की आशंका है, वहीं खरीफ में मूंगफली का उत्पादन 50.50 फीसदी घटने का अनुमान है। राज्य के कृषि निदेशालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार अन्य फसलों की पैदावार में भी कमी आयेगी।
चालू फसल सीजन 2018-19 में राज्य में कपास का उत्पादन घटकर 52 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) ही होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में राज्य में 101.87 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। राज्य के कई जिलों में सूखे जैसे हालात बनने के कारण प्रति हेक्टेयर कपास की उत्पादकता चालू सीजन में 326 किलोग्राम ही आने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 660 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उत्पादकता आई थी।
खरीफ में मूंगफली उत्पादन आधे से कम
राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार खरीफ मूंगफली का उत्पादन घटकर चालू सीजन में 19.48 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 39.36 लाख टन मूंगफली का उत्पादन हुआ था। केस्टर सीड का उत्पादन चालू फसल सीजन में घटकर 10.43 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 14.84 लाख टन का उत्पादन हुआ था। सरसों का उत्पादन राज्य में पिछले साल के 4 लाख टन से घटकर 3.17 लाख टन होने का अनुमान है। हालांकि सोयाबीन का उत्पादन जरुर पिछले साल के 1.15 लाख टन से बढ़कर 1.70 लाख टन होने का अनुमान है। दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार तिलहन का कुल उत्पादन घटकर 35.12 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 60.10 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
दलहन उत्पादन अनुमान में कमी
दलहनी फसलों का उत्पादन चालू फसल सीजन 2018-19 में घटकर राज्य में 7.06 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले 9.25 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था। अरहर का उत्पादन राज्य में घटकर 3.25 लाख टन और चना का उत्पादन 2.81 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में इनका उत्पादन क्रमश: 3.37 और 3.67 लाख टन का हुआ था।
गेहूं, चावल का उत्पादन घटेगा
गेहूं का उत्पादन राज्य में घटकर 24.20 लाख टन और चावल का 18.34 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इनका उत्पादन क्रमश: 31.02 और 20.39 लाख टन का उत्पादन हुआ था। मक्का का उत्पादन जरुर पिछले साल के 6.69 लाख टन से बढ़कर 7.19 लाख टन होने का अनुमान है लेकिन बाजरा का उत्पादन पिछले साल के 9.18 लाख टन से घटकर केवल 2.10 लाख टन ही होने का अनुमान है।
प्याज और आलू का उत्पादन कम
राज्य में प्याज का उत्पादन घटकर चालू सीजन में 6.19 लाख टन और आलू  का उत्पादन 33.50 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 15.63 लाख टन प्याज और 37.53 लाख टन आलू का उत्पादन हुआ था। जीरा का उत्पादन भी चालू सीजन में घटकर 2.23 लाख टन ही होने का अनुमान है।.....  आर एस राणा

किसानों के बुनियादी सवाल वर्ष 2018 में प्रमुख राजनीतिक मुद्दे बनकर उभरे

देश के किसानों के बुनियादी सवाल वर्ष 2018 में प्रमुख राजनीतिक मुद्दे बनकर उभरे, जो आगे अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी छाए रह सकते हैं. खासतौर से किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलने और अनाजों की सरकारी खरीद की प्रक्रिया दुरुस्त नहीं होने को विपक्ष आगामी आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ अहम मसला बनाना चाहेगा.  हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में हिंदीभाषी तीन प्रमुख प्रदेशों में बीजेपी का सत्ता से बेदखल हो जाना इस बात की तस्दीक करता है कि ग्रामीण इलाकों में लोग सरकार की नीतियों और काम से खुश नहीं थे.  बीते एक साल में देश की राजधानी में ही किसानों की पांच बड़ी रैलियां हुईं, जबकि केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने प्रमुख फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारण में नए फॉर्मूले का उपयोग किया. साथ ही, सरकार ने किसानों को खुश करने के लिए कई योजनाएं लाई हैं.  मध्यप्रदेश के मंदसौर में पिछले साल पुलिस की गोली से छह किसानों की मौत हो जाने के बाद देशभर में मसला गरमा गया था और किसानों का विरोध-प्रदर्शन तेज हो गया था. किसानों का मसला इस साल एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मसला बना रहा.  

विभिन्न राजनीतिक दल आज भले ही अलग-अगल मुद्दों को लेकर अपनी आवाज बुलंद करें, मगर किसानों के मसले को लेकर उनमें एका है. इसकी एक मिसाल दिल्ली में 30 नवंबर की किसान रैली में देखने को मिली जब किसानों उनकी फसलों का बेहतर दाम दिलाने और उनका कर्ज माफ मरने के मसले पर राजनीतिक दलों ने अपनी एकजुटता दिखाई थी.  उसी रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, "पूरे देश में अब जो आवाज गूंज रही है वह किसानों की है जो गंभीर विपदा व संकट में हैं." स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव ने कहा, "लोकसभा चुनाव 2019 में ग्रामीण क्षेत्र के संकट से संबंधित मसले छाए रहेंगे." किसानों के 200 से अधिक संगठनों को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर तले लाने का श्रेय योगेंद्र यादव को ही जाता है. 

यादव ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "देश में हमेशा कृषि संकट रहा है. लेकिन यह कभी चुनावों में प्रमुख मुद्दा नहीं बना. विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार और किसानों बनी नई एकता से यह सुनिश्चित हुआ है कि कृषि क्षेत्र का संकट लोकसभा चुनाव-2019 में केंद्रीय मसला बनेगा." उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा का शासन स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा किसान विरोधी रहा है, क्योंकि पिछले साढ़े चार साल के शासन काल में किसानों के साथ असहानुभूति का रवैया रहा है. पूरे साल कई ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं, जिनमें सड़कों पर फसल और दूध फेंककर किसानों का गुस्सा दिखा गया है. किसानों ने उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने को लेकर अपनी नाराजगी दिखाई है.  किसानों का विरोध-प्रदर्शनों के बीच सरकार ने कुछ फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी की. हालांकि किसानों ने इस बढ़ोतरी को अपनी मांगों व अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं पाया. जिन सब्जियों के दाम प्रमुख शहरों में 20-30 रुपये प्रति किलो हैं, किसानों को वहीं सब्जियां औने-पौने भाव बेचना पड़ता है.  किसानों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि कृषि मंत्रालय सुधार तंत्र विकसित करने में अप्रभावी प्रतीत होता है, जबकि सरकार ने खरीद की तीन योजनाएं लाईं. 

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने जून में यह स्वीकार किया था कि उत्पादन आधिक्य के कारण कृषि संकट है और उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए कदम उठाने की मांग की थी. स्वाभिमान शेतकरी संगठन के नेता और लोकसभा सदस्य राजू शेट्टी ने कहा कि फिर भी भाजपा सरकार मांग और आपूर्ति का विश्लेषण कर सुधार के कदम उठाने में विफल रही. किसानों के मसले को लेकर ही राजू शेट्टी ने पिछले साल भाजपा की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार से इस्तीफा दे दिया था.  कृषि विज्ञानी अशोक गुलाटी ने कहा कि वर्तमान भाजपा सरकार में समझ और दूरर्शिता का अभाव है. उन्होंने कहा कि सरकार ने जरूरी बाजार सुधार नहीं किया, बल्कि सिर्फ नारे दिए और घोषणाएं कीं.  हैरानी की बात यह है कि मंदसौर की घटना के समय केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह किसानों के मसले को तवज्जो न देकर बाबा रामदेव के साथ बिहार में दो दिवसीय योग सत्र में हिस्सा लेने पहुंचे थे

खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात दिसंबर में 11 फीसदी बढ़ा-उद्योग

आर एस राणा
नई दिल्ली। दिसंबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 11 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 12,11,164 टन का हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में इनका आयात 10,88,783 टन का हुआ था। 
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डा. बी वी मेहता ने बताया कि दिसंबर में खाद्य तेलों का आयात 11,45,794 टन और अखाद्य तेलों का आयात 65,370 टन का हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में खाद्य तेलों का आयात 10,58,289 टन का और अखाद्य तेलों का आयात 30,494 टन का हुआ था। उन्होंने बताया कि चालू तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर से अक्टूबर) के पहले दो महीनों नवंबर-दिसंबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 0.32 फीसदी घटकर 22,83,604 टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 23,37,593 टन का हुआ था।
पॉम और रिफाइंड तेल के आयात शुल्क में अंतर कम
केंद्र सरकार ने 31 दिसंबर 2019 को मलेशिया से आयातित क्रुड पॉम तेल पर आयात शुल्क को 44 फीसदी से घटाकर 40 फीसदी और रिफाइंड तेल पर आयात शुल्क को 54 फीसदी से घटाकर 45 फीसदी कर दिया था। इसके अलावा इंडोनेशिया से आयातित क्रुड पॉम तेल के आयात पर शुल्क को 44 फीसदी से घटाकर 40 फीसदी और रिफाइंड तेल के आयात पर शुल्क को 54 से घटाकर 50 फीसदी कर दिया। उद्योग का मानना है कि क्रुड पॉम तेल और रिफाइंड पाम तेल के आयात शुल्क में अंतर कम होने के कारण आगामी दिनों में क्रुड के बजाए रिफाइंड तेलों का आयात बढ़ेगा, जिसका असर घरेलू बाजार में पॉम की खेती के साथ ही उद्योग पर भी पड़ेगा।
विश्व बाजार में खाद्य तेलों के भाव में आई गिरावट
आयातित आरबीडी पॉम तेल के भाव दिसंबर में भारतीय बंदरगाह पर औसतन 518 डॉलर प्रति टन रहे जोकि नवंबर के 510 डॉलर की तुलना में तो बढ़े हैं लेकिन पिछले साल दिसंबर में इसके औसतन भाव 661 डॉलर प्रति से घटे हैं। इसी तरह से क्रुड पॉम तेल के भाव 482 डॉलर प्रति टन जोकि नवंबर के 472 डॉलर प्रति टन से तो बढ़े हैं लेकिन पिछले साल दिसंबर के 662 डॉलर प्रति टन से घटे हैं। क्रुड सोया तेल के भाव भारतीय बंदरगाह पर दिसंबर में औसतन 679 डॉलर प्रति टन रहे। मेहता ने बताया कि उपलब्धता ज्यादा होने के कारण विश्व बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में सालभर में 15 से 30 फीसदी की गिरावट आई है।.....   आर एस राणा

पहली तिमाही में ही यूपी के गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर पांच हजार करोड़ के करीब

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) की पहली तिमाही में ही चीनी मिलों पर उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 4,922 करोड़ रुपये हो गया है जबकि राज्य के किसानों का पिछले पेराई सीजन का भी 1,564 करोड़ रुपये अभी भी बकाया बचा हुआ है। भुगतान में देरी से गन्ना किसानों को भारी आर्थिक पेरशानी उठानी पड़ रही है।
उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने चालू पेराई सीजन में 11 जनवरी तक 11,465 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है जबकि इसमें से भुगतान केवल 3,691 करोड़ रुपये का ही किया है। अत: 14 दिनो के तय समय के आधार पर चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का पहली अक्टूबर 2018 से 11 जनवरी 2019 तक बकाया बढ़कर 4,922 करोड़ रुपये हो गया है। भुगतान में तेजी नहीं आई तो आगामी दिनों में बकाया में और बढ़ोतरी होगी, जिसका खामियाजा राज्य के गन्ना किसानों को उठाना पड़ेगा।
भुगतान में देरी से किसान परेशान
अमरोहा जिले के देहरा चक गांव के गन्ना किसान जोगिंद्र आर्य ने बताया कि वेव शुगर मिल में उन्होंने चालू पेराई सीजन में अभी तक 500 क्विंटल गन्ना डाला है, जबकि भुगतान केवल एक ही पर्ची यानि 20 क्विंटल का ही मिला है। उन्होंने बताया कि भुगतान में देरी के साथ ही मिल द्वारा पर्ची भी कम जारी की जा रही है जिससे दोहरी परेशानी उठानी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि भुगतान में देरी के कारण आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
मिलों में गन्ना पेराई की गति धीमी
यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन (यूपीएसएमए) के अनुसार राज्य में 117 चीनी मिलों में पेराई चल रही है तथा राज्य की चीनी मिलों ने अभी तक 3,586.23 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई ही की है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 4,026.21 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई की जा चुकी थी। चालू पेराई सीजन में गन्ने में रिकवरी की दर औसतन बढ़कर 10.95 फीसदी की आ रही है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में रिकवरी 10.19 फीसदी की आ रही थी।
चीनी का उत्पादन कम
चालू पेराई सीजन में 11 जनवरी तक राज्य में चीनी का उत्पादन 4.29 फीसदी घटकर 39.25 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय तक 41.01 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था।.....  आर एस राणा

पहली तिमाही में सोया डीओसी का निर्यात 2.3 फीसदी घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू तेल वर्ष 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) की पहली तिमाही में सोया डीओसी के निर्यात में 2.3 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 6.74 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में 6.90 लाख टन का हुआ था।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डी एन पाठक ने बताया कि दिसंबर में सोया डीओसी का निर्यात 2.78 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में 2.82 लाख टन का निर्यात हुआ था। उन्होंने बताया कि चालू तेल वर्ष की पहली तिमाही के अक्टूबर में तो निर्यात ज्यादा हुआ था, लेकिन नवंबर और दिसंबर में निर्यात में कमी आई है।
ईरान की आयात मांग ज्यादा, अन्य देशों की कम
साई सिमरन फूड लिमिटेड के अध्यक्ष नरेश गोयनका ने बताया कि सोया डीओसी में ईरान की आयात मांग बढ़ी है, लेकिन अन्य देशों की आयात मांग कमजोर है। घरेलू बाजार में सोया डीओसी के भाव में चालू महीने में करीब 2,000 से 2,500 रुपये प्रति टन की तेजी आकर सोमवार को कांडला बंदरगाह पर भाव 31,000 से 31,500 रुपये प्रति टन हो गए हैं, तथा उंचे भाव में निर्यात सौदे कम हो रहे है। इसलिए भाव रुकने की संभावना है। उत्पादक राज्यों में सोयाबीन के प्लांट डिलीवरी भाव बढ़कर 3,700 रुपये और सोया रिफाइंड तेल के भाव 760 से 765 रुपये प्रति  10 किलो हो गए हैं। ईरान को सोया डीओसी के निर्यात सौदे 435 से 440 डॉलर प्रति टन की दर से हो रहे हैं।
उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में सोयाबीन की उत्पादन बढ़कर 134.59 लाख टन का होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 109.81 लाख टन का हुआ था। उद्योग के अनुसार सोयाबीन का उत्पादन 114.83 लाख टन होने का अनुमान है।.......  आर एस राणा

13 जनवरी 2019

सस्ती दालों की खरीद में राज्यों की बेरुखी, मात्र साढ़े पांच लाख टन के किए सौदे

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने अगस्त में राज्य सरकारों को सस्ती दालें बेचने का फैसला किया था, लेकिन पांच महीने बीतने के बावजूद राज्यों की बेरुखी के कारण केंद्रीय पूल से अभी तक मात्र 5.50 लाख टन दालें ही राज्यों ने खरीदी हैं। केंद्रीय पूल से राज्यों को दालों की बिक्री थोक मूल्य से 15 रुपये प्रति किलो सस्ते भाव पर बेचने का फैसला केंद्र सरकार ने 9 अगस्त 2018 को लिया था।
केंद्रीय पूल में दालों का स्टॉक ज्यादा है जबकि राज्यों की मांग सीमित मात्रा में आ रही है। दलहन को स्टॉक में ज्यादा समय तक रख भी नहीं सकते, इसलिए सार्वजनिक कपंनियों को आगे खुले बाजार में बिकवाली ज्यादा करनी पड़ेगी। सूत्रों के अनुसार नेफेड ने खुले बाजार में अभी तक 12 लाख टन से ज्यादा दालें बेची हैं। नेफेड उत्पादक राज्यों में 4,050 से 4,405 रुपये प्रति क्विंटल के भाव चना बेच रही है जबकि नेफेड ने चना की खरीद समर्थन मूल्य 4,620 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की थी।
नेफेड के पास 38 लाख टन दालों का स्टॉक
सूत्रों के अनुसार नेफेड के पास दलहन का करीब 38 लाख टन का बकाया स्टॉक है जबकि चालू खरीफ में उड़द, मूंग और अरहर की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद चल रही है। प्राइस स्पोर्ट स्कीम के तहत नेफेड ने पिछले दो सालों में 51.62 लाख टन दालों की खरीद की है। इसके अलावा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास भी दालों का बकाया स्टॉक है।  
उड़द, मूंग और अरहर की हो रही है एमएसपी पर खरीद
खरीफ के बाद रबी में भी दालों की पैदावार कम होने की आशंका है लेकिन उत्पादक मंडियों में भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) ने नीचे ही बने हुए हैं, इसलिए केंद्रीय एजेंसियों का आगे दलहन की समर्थन मूल्य पर और खरीद करनी होगी। ऐसे में केंद्रीय पूल में दालों का स्टॉक और बढ़ेगा। नेफेड ने चालू खरीफ विपणन सीजन 2018-19 में एमएसपी पर 2.93 लाख टन मूंग, 3.22 लाख टन उड़द और 23,475 टन अरहर का खरीद की है। 
मंडियों में भाव समर्थन मूल्य से नीचे 
दलहन कारोबारी राधाकिशन गुप्ता ने बताया कि उत्पादक मंडियों में अरहर के भाव 4,700 से 5,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे है जबकि केंद्र सरकार ने अरहर का समर्थन मूल्य 5,675 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। इसी तरह से मंडियों में उड़द के भाव 4,000 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल हैं जबकि उड़द का एमएसपी 5,600 रुपये प्रति क्विंटल है। मूंग के भाव उत्पादक मंडियों में 4,700 से 5,700 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि मूंग का एमएसपी 5,975 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
खरीफ में दलहन उत्पादन घटने का अनुमान
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ सीजन 2018-19 में दालों का उत्पादन घटकर 92.2 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल खरीफ में 93.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चालू रबी में दालों की बुवाई 5.73 फीसदी घटकर 147.91 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 156.90 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। रबी की प्रमुख फसल चना की बुवाई 10.14 फीसदी घटकर 94.61 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 105.28 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।.............आर एस राणा

मानसूनी बारिश की कमी से रबी फसलों की बुवाई 4.75 फीसदी पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। खरीफ सीजन में देश के कई राज्यों में मानसूनी बारिश कम होने का असर रबी फसलों की बुवाई पर पड़ा है। चालू रबी में फसलों की कुल बुवाई में 4.75 फीसदी की कमी आकर कुल बुवाई 581.50 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 610.51 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। चालू सीजन में दलहन, मोटे अनाज और चावल की रोपाई में सबसे ज्यादा कमी आई है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई चालू सीजन में 11 जनवरी तक 294.07 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 300.51 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। गेहूं की बुवाई समान्यत: 306.39 लाख हेक्टेयर में होती है। 
दलहन की बुवाई 5.73 फीसदी पिछे
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 5.73 फीसदी घटकर 147.91 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 156.90 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई 10.14 फीसदी घटकर अभी तक केवल 94.61 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 105.28 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
मसूर की बुवाई कम, मटर की ज्यादा
अन्य दालों में मसूर की बुवाई चालू सीजन में 16.77 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 17.10 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मटर की बुवाई जरुर पिछले साल के 9.26 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 10.29 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। उड़द और मूंग की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 6.74 और 4.86 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 7.49 और 4.88 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई सबसे ज्यादा घटी
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 15.87 फीसदी घटकर 44.98 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 53.47 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई चालू रबी में 21.27 फीसदी घटकर केवल 23.54 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 30.08 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी। मक्का और जौ की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 13.61 और 7.13 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 15.13 और 7.40 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
सरसों की बुवाई 2.54 फीसदी बढ़ी
तिलहन की बुवाई चालू रबी में 0.99 फीसदी घटकर 77.97 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 78.75 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई जरुर पिछले साल के 66.60 लाख हेक्टेयर से 2.54 फीसदी बढ़कर 68.28 लाख हेक्टेयर में हुई है। मूंगफली और असली की बुवाई चालू रबी में घटकर क्रमश: 4.07 और 3.36 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 5.05 और 3.95 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
धान की रोपाई कम
धान की रोपाई चालू रबी सीजन में 20.66 फीसदी घटकर केवल 16.57 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 20.88 लाख हेक्टेयर में इसकी रोपाई हो चुकी थी।..........  आर एस राणा

किसानों को लुभाने के लिए केंद्र सीधे खाते में पैसे देने की कर रही है तैयारी

आर एस राणा
नई दिल्ली। बजट से पहले ही मोदी सरकार किसानों को लुभाने के लिए बड़ा कदम उठाने जा रही है। सूत्रों के अनुसार किसानों को सीधे पैसे देने की योजना है तथा इस स्कीम में जिन किसानों के पास जमीन नहीं है, उन्हें भी शामिल किया जा सकता है। 
बिना जमीन वाले किसानों को भी किया जायेगा शामिल
किसानों की कर्जमाफी के बदले मोदी सरकार ने नया प्रस्ताव तैयार कर लिया है। नए प्रस्ताव के अनुसार, किसानों के खाते में सीधे रकम भेजी जायेगी। बिना जमीन वाले किसानों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव में ओडिशा और तेलंगाना मॉडल की झलक है। स्कीम के तहत हर परिवार के लिए रकम की अधिकतम सीमा तय की जाएगी।
प्रस्ताव में दो राज्य ओडिशा और तेलंगाना मॉडल की झलक है। तेलंगाना में राज्य सरकार खरीफ और रबी के बुवाई सीजन से पहले किसानों के खाते में 4,000-4,000 रुपये प्रति एकड़ पैसा जमा जाती है। वहीं ओडिशा में राज्य सरकार ने कालिया योजना चालू की है जिसके तहत किसानों को 5,000 रुपये प्रति एकड़ दिए जायेंगे। इसके अलावा केंद्र सरकार नई योजना के तहत किसानों की फसलों की सरकारी खरीद भी सुनिश्चित की जायेगी। 
परिवार को मदद देने पर जोर
इस पैकेज में बीमा, कृषि कर्ज, आर्थिक मदद एक साथ देने पर विचार हो रहा है। सरकार व्यक्तिगत फायदा देने के बजाए परिवार को मदद देने पर विचार कर रही है। इस स्कीम के तहत किसान परिवार के अलावा ज्यादा आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार को मदद देने की रणनीति बन रही है। स्कीम में छोटे, सीमांत और बटाईदारों या किराये पर खेती करने वाले किसानों को भी शामिल किये जाने की योजना है। नई योजना के तहत किसानों को शून्य फीसदी पर ऋण देने पर भी फैसला हो सकता है।...........  आर एस राणा

केस्टर सीड के उत्पादन में 30.39 फीसदी की भारी गिरावट की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात में चालू सीजन में केस्टर सीड की पैदावार में 30.39 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल 10.43 लाख टन का ही उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 14.84 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
राज्य के कृषि निदेशालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू सीजन में केस्टर सीड का उत्पादन घटकर 10.43 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि जानकारों का मानना है कि राज्य में 9 लाख टन से ज्यादा उत्पादन नहीं होगा। खरीफ में बारिश की कमी से राज्य के कई जिलों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं।
अभी तक केस्टर तेल का निर्यात कम, आगे सुधार आने का अनुमान
केस्टर तेल के निर्यातक कुशल राज पारिख ने बताया कि केस्टर तेल के निर्यात सौदे 1,550 डॉलर प्रति टन की दर से हो रहे हैं तथा आगामी दिनों में चीन की आयात मांग बढ़ने की संभावना है। नवंबर में केस्टर तेल का निर्यात 47,264 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल नवंबर में 49,976 टन का हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 8 महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान केस्टर तेल का कुल निर्यात 3,90,921 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में 4,36,300 टन का निर्यात हुआ था। पिछले वित्त वर्ष में कुल 6,51,326 टन केस्टर तेल का निर्यात हुआ था।
भाव में आयेगा सुधार
गुजरात की मंडियों में केस्टर सीड के भाव 1,020 से 1,030 रुपये प्रति 20किलो चल रहे हैं। चालू सीजन में उत्पादन में कमी आने की आशंका के कारण स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आ रही है। केस्टर सीड की नई फसल की आवक जनवरी में बनेगी, तथा आवकों का दबाव फरवरी में बनेगा। उत्पादन में कमी की आशंका के कारण आगे इसके भाव में और भी तेजी बनने की संभावना है।
केस्टर डीओसी का निर्यात हुआ कम
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 की पहले 9 महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान केस्टर डीओसी का निर्यात घटकर 2,85,945 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में 4,73,317 टन का निर्यात हुआ था। दिसंबर में इसका निर्यात 10,664 टन का ही हुआ है जबकि नवंबर में 46,686 टन का निर्यात हुआ था। केस्टर सीड के भाव भारतीय बंदरगाह पर 82 डॉलर प्रति टन चले रहे हैं।...........   आर एस राणा

मॉनसेंटो को बड़ी राहत, GM कॉटन सीड्स पर पेटेंट के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने जायज ठहराया

आर एस राणा
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से बहुराष्ट्रीय कंपनी मॉनसेंटो को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने आनुवांशिक रूप से संवर्द्धित कपास के बीजों (जीएम कॉटन सीड्स) पर कंपनी के पेटेंट के दावे को जायज ठहराया है। कोर्ट ने कहा है कि अमेरिकी बीज निर्माता कंपनी जीएम (जीन संवर्द्धित) कॉटन सीड्स पर पेटेंट का दावा कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है, जिसकी वजह से मॉनसेंटो जीएम कॉटन सीड्स पर पेटेंट का दावा नहीं कर पा रही थी।
मॉनसेंटो को जर्मनी की दवा और फसलों के लिए रासायन बनाने वाली कंपनी बेयर एजी खरीद चुकी है। कोर्ट के इस फैसले को विदेशी कृषि कंपनियों मसलन मॉनसेंटो, बेयर, डूपॉ पायोनियर और सेनजेंटा के लिए राहत के तौर पर देखा जा रहा है। इन कंपनियों को भी भारत में जीएम फसलों पर पेटेंट के हाथ से जाने का डर सता रहा था।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने किसानों के संगठन शेतकारी संगठन के नेता अजित नार्डे के हवाले से कहा है कि यह अच्छी खबर है क्योंकि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने पेटेंट नियमों को लेकर जारी अनिश्चितता की वजह से भारतीय बाजार में नई तकनीक को जारी करने पर रोक लगा दी थी। उन्होंने कहा कि नई तकनीक तक किसानों की पहुंच से उन्हें मदद मिलेगी।
मेको मॉनसेंटो बायोटेक (इंडिया), मॉनसेंटो और महाराष्ट्र की हाइब्रिड सीड कंपनी (मेको) का संयुक्त उपक्रम है और यही कंपनी 40 से अधिक भारतीय बीज कंपनियों को जीएस कॉटन बीज की बिक्री करती है। दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला स्थानीय कंपनी एनएसएल की याचिका पर आया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भारत का पेटेंट कानून मॉनसेंटो को उसके जीएम कॉटन बीज पर किसी तरह के पेटेंट की इजाजत नहीं देता है।
इसके बाद मॉनसेंटो के भारतीय साझा उपक्रम (जेवी) ने रॉयल्टी भुगतान के विवाद को लेकर 2015 में एनएसएल के साथ अपने करार को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट को मॉनसेंटो के उस दावे को भी देखना था, जिसमें उन्होंने कहा था कि एनएसएल ने बीटी कॉटन सीड्स को लेकर उसकी बौद्धिक संपदा का उल्लंघन किया है। 2003 में मॉनसेंटो के जीएम कॉटन सीड को मंजूरी दी गई थी। भारत दुनिया में सबसे अधिक कपास का उत्पादन करता है। इसके साथ ही वह कपास का दूसरा बड़ा निर्यातक है। भारत में कपास की खेती का 90 फीसद रकबा, मॉनसेंटो की जीएम बीज पर निर्भर है।..........  आर एस राणा

दिसंबर में डीओसी के निर्यात में 23 फीसदी की भारी गिरावट

आर एस राणा
नई दिल्ली। विश्व बाजार में भाव नीचे होने के कारण देश से दिसंबर में डीओसी के निर्यात में 23 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल निर्यात 3,03,115 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में इनका निर्यात 3,91,431 टन का हुआ था।
डीओसी के निर्यात में ईरान की मांग ज्यादा रही
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार दक्षिण कोरिया के साथ ही वियतनाम की मांग में चालू वित्त वर्ष में कमी आई है। हालांकि इस दौरान थाईलैंड की आयात मांग बढ़ी है, साथ ही डीओसी में ईरान एक बड़ा आयातक बनकर उभरा है। अप्रैल से दिसंबर के दौरान ईरान ने करीब 3 लाख डीओसी का आयात किया है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में केवल 23,000 टन का ही आयात किया था।
पहले 9 महीनों में कुल निर्यात 6 फीसदी ज्यादा
एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 9 महीनों अप्रैल से दिसंबर के दौरान डीओसी का कुल निर्यात 6 फीसदी बढ़कर 23,87,028 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में इनका निर्यात 22,46,989 टन का ही हुआ था। चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में जहां सोया डीओसी, राईसब्रान डीओसी और केस्टर डीओसी के निर्यात में कमी आई है, वहीं सरसों डीओसी का निर्यात बढ़ा है। सरसों डीओसी का निर्यात चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से दिसंबर के दौरान बढ़कर 8,21,777 टन का हो गया जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 4,61,937 टन का ही हुआ था।
कीमतों में आई गिरावट
भारतीय बंदरगाह पर दिसंबर में सोया डीओसी का औसत भाव 364 डॉलर प्रति टन रहा जबकि नवंबर में इसका भाव 365 डॉलर प्रति टन था। सरसों डीओसी का भाव नवंबर के 230 डॉलर प्रति टन से घटकर औसतन 222 डॉलर डॉलर प्रति टन रहा। केस्टर डीओसी का भाव भी नवंबर के 95 डॉलर से घटकर दिसंबर में 82 डॉलर प्रति टन रहे।..........  आर एस राणा

गन्ना के बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए मिलों को एक और पैकेज देने की तैयारी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार आम चुनाव से पहले किसानों की नाराजगी दूर करना चाहती है इसलिए गन्ना किसानों के बढ़ते बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए आम बजट से पहले चीनी मिलों को एक और राहत पैकेज दे सकती है। सूत्रों के अनुसार मिलों को लगभग 10 हजार करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन दे सकती है। इसके अलावा चीनी के न्यूनतम बिक्री भाव में भी बढ़ोतरी करने की तैयारी है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार केंद्र सरकार पांच साल के लिए 6 फीसदी ब्याज पर चीनी मिलों को कर्ज देगी। यह कर्ज चीनी मिलों को एथेनॉल उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के साथ ही नए एथेनॉल प्लांट लगाने के लिए दिया जायेगा। इसके अलावा केंद्र सरकार चीनी के न्यूनतम बिक्री भाव को 29 रुपये से बढ़ाकर 32 रुपये प्रति किलोग्राम कर सकती है। सूत्रों के अनुसार आगामी कैबिनेट की बैठक में इस पर फैसला हो सकता है।
चालू पेराई सीजन में 11,000 करोड़ हो चुका है बकाया
गन्ना किसानों का बकाया दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है। खासकर के उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की चीनी मिलें गन्ना किसानों के बकाया का भुगतान समय से नहीं कर पा रहीं है। जिसकी वजह से चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में अभी तक बकाया बढ़कर करीब 11 हजार करोड़ के स्तर पर पहुंच गया है। माना जा रहा है कि स्थिति अगर ऐसे ही बनी रही तो अप्रैल तक बकाया बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर पिछले पेराई सीजन का भी बकाया बचा हुआ है। 
सितंबर में चीनी मिलों को 5,500 करोड़ का दिया था पैकेज
केंद्र सरकार ने सितंबर 2018 में चीनी उद्योग को 5,500 करोड़ रुपये का पैकेज दिया था। इसके तहत चीनी मिलों को चालू पेराई सीजन 2018-19 में तय कोटा 50 लाख टन चीनी के निर्यात पर सहायता राशि के अलावा निर्यात करने के लिए चीनी मिलों को परिवहन लागत पर भी सब्सिडी दी जा रही है।
जून में दिया था 8,500 करोड़ का पैकेज
इससे पहले जून 2018 में भी केंद्र सरकार ने उद्योग के लिए 8,500 करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया था। इसमें 4,440 करोड़ रुपये मिलों को सस्ते कर्ज के रूप में एथेनॉल क्षमता बढ़ाने के लिए दिए गए थे। इसमें 1,332 करोड़ रुपये की ब्याज सहायता थी। इसके अलावा भी केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को राहत देने के लिए एथेनॉल के खरीद मूल्य में तो बढ़ोतरी की ही थी, साथ ही चीनी पर आयात शुल्क दोगुना कर 100 फीसदी किया और इस पर निर्यात शुल्क समाप्त कर दिया था।
यूपी में राज्य सरकार ने भी दिया पैकेज
उधर गन्ना के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ सरकार ने किसानों का भुगतान करने के लिए चीनी मिलों के लिए 4,000 करोड़ रुपये के आसान ऋण कार्यक्रम की घोषणा की थी। राज्य ने भुगतान की स्थिति आसान बनाने के लिए अन्य लाभों की भी घोषणा की हुई है, इसके बावजूद भी बकाया भुगतान लगातार बढ़ता जा रहा है।
पहली तिमाही में बढ़ा चीनी उत्पादन
पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन की पहली तिमाही एक अक्टूबर से 31 दिसंबर 2018 तक चीनी का उत्पादन 5.72 फीसदी बढ़कर 110.52 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 103.56 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी मिलों में गन्ने की पेराई पहले आरंभ होने से चीनी का अभी तक उत्पादन बढ़ा है लेकिन महाराष्ट्र के कई जिलों में बारिश की कमी का असर गन्ने की फसल पर पड़ा है इसलिए चीनी का कुल उत्पादन चालू पेराई सीजन में पिछले साल की तुलना में कम होने का अनुमान है। देशभर में 501 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जबकि पिछले साल इस समय 505 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी।
चीनी के भाव में आ सकता है सुधार
मंगलवार को दिल्ली में चीनी के भाव 3,400 से 3,450 रुपये प्रति क्विंटल और उत्तर प्रदेश में एक्स फैक्ट्री भाव 3,100 से 3,225 रुपये प्रति क्विंटल रहे। केंद्र सरकार द्वारा उद्योग को राहत देने के लिए चीनी की कीमतों में 100 ससे 200 रुपये प्रति क्विंटल का सुधार आने की संभावना है। ............  आर एस राणा

गन्ना किसानों के बकाया भुगतान पर अब यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया झटका

आर एस राणा
नई दिल्ली। गन्ना किसानों के ब्याज के बकाया भुगतान पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने भी योगी सरकार को एक बार फिर से झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के केन कमिश्नर के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही को रोकने से इंकार कर दिया। साथ ही राज्य सरकार के ब्याज माफ करने के अधिकार को भी चुनौती दी।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस किया, याचिका में 14 दिन के अंदर तय गन्ना भुगतान ना करने पर चीनी मिलों द्वारा किसानों को ब्याज देने के प्रावधान को माफ करने के राज्य सरकार के अधिकार को चुनौती दी। राज्य सरकार की तरफ से गुहार लगाई गई कि जब राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने राज्य सरकार के अधिकार को ही चुनौती दी है तो 20 दिसंबर 2018 के हाईकोर्ट की अवमानना याचिका के आदेश पर रोक लगा दी जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अवमानना की कार्यवाही पर रोक नहीं लगेगी, तथा हाईकोर्ट में कार्यवाही चालू रहेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को दिया था फैसला
वीएम सिंह ने आउटलुक को बताया कि यह राज्य के 42 लाख किसानों की जीत है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2018 को अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार या तो तीन सप्ताह में 9 मार्च 2017 के आदेश का अनुपालन करें, नहीं तो 4 फरवरी को राज्य के केन कमिश्नर संजय भूसरेड्डी अदालत में हाजिर हों। मामले में वीएम सिंह द्वारा अवमानना याचिका दाखिल की गई थी।
तत्कालीन अखिलेश सरकार ने ब्याज देने के फैसले को किया था रद्द
वीएम सिंह ने बताया कि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के बकाया भुगतान ब्याज समेत दिए जाने का आदेश दिया था जिसको तत्कालीन अखिलेश सरकार की कैबिनेट ने फैसला कर रद्द कर दिया था। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार द्वारा इस फैसले को रद्द करने से जहां राज्य के लाखों किसान प्रभावित हुए, वहीं किसानों के बकाया तत्काल भुगतान को रास्ता भी बंद हो गया, क्योंकि जब चीनी मिलों को ब्याज ही नहीं देना पड़ेगा, तो फिर भुगतान मिलें अपनी मर्जी से करेंगी।
यूपी के लगभग 40 से 42 लाख किसान परिवारों का है बकाया
वीएम सिंह ने बताया कि राज्य के करीब 40 से 42 लाख किसान परिवारों का ब्याज बकाया है। अदालत ने साल 2011-12, 2012-13 और 2013-14 तथा 2014-15 के जिस बकाये पर ब्याज देने को कहा है वह रकम करीब 2,000 करोड़ रुपये होती है। उन्होंने बताया कि समाजवादी पार्टी (सपा) की तत्कालीन अखिलेश सरकार ने कैबिनेट में बकाया भुगतान नहीं करने का प्रस्ताव पारित किया था, जिस कारण अखिलेश सरकार को किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ी और उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। उन्होंने कहा कि अगर योगी सरकार ने भी किसानों के ब्याज के बकाया भुगतान पर टालमटौल का रवैया इसी तरह से जारी रखा, तो उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतान पड़ेगा।
अखिलेश सरकार के फैसले को हाईकोर्ट ने किया था रद्द
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2014 और 2015 में आदेश जारी कर गन्ना किसानों को उनके बकाया का भुगतान ब्याज समेत किये जाने का आदेश दिया था, लेकिन तत्कालीन अखिलेश सरकार ने इसके खिलाफ कैबिनेट में प्रस्ताव पास कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने मार्च 2017 में रद्द कर दिया था।
23 साल से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ब्याज दिलाने के लिए लड़ रहे हैं वीएम सिंह
गन्ना किसानों को 1995-96 के बकाया भुगतान में देरी पर वीएम सिंह की याचिका पर वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पैसा नहीं दिया तो फिर अवमानना याचिका डालकर अगौता शुगर मिल, बुलंदशहर से किसानों के खाते में 2 करोड़ 18 लाख रुपये जमा कराए।.............  आर एस राणा

उद्योग के कपास उत्पादन अनुमान में 5.25 लाख गांठ की कटौती

आर एस राणा
नई दिल्ली। उद्योग के अनुसार कपास की उत्पादन चालू सीजन में घटकर 335 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) ही होने का अनुमान है जोकि पहले अनुमान के मुकाबले 5.25 लाख गांठ और पिछले साल की तुलना में 30 लाख गांठ कम है।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्यों गुजरात और महाराष्ट्र में खरीफ सीजन में सामान्य से कम हुई मानसूनी बारिश के कारण उत्पादन में कमी आई है। बारिश की कमी के कारण महाराष्ट्र और गुजरात की राज्य सरकारों ने कई जिलों में सूखा घोषित किया हुआ है। 
आवकों में आई कमी
सीएआई के अध्यक्ष अतुल एस. गणात्रा के अनुसार चालू सीजन में 31 दिसंबर तक उत्पादक मंडियों में 115.97 लाख गांठ कपास की ही आवक हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 142.50 लाख गांठ की आवक हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में पहली अक्टूबर को 23 लाख गांठ कपास का ही बकाया स्टॉक बचा हुआ था जबकि अभी तक 3.53 लाख गांठ का आयात हो चुका है। पहले अनुमान में कपास के उत्पादन का अनुमान 340.25 लाख गांठ होने का था, जबकि पिछले साल 365 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था।
निर्यात घटने और आयात बढ़ने की आशंका
सीआईए के अनुसार 31 दिसंबर तक 17 लाख गांठ कपास के निर्यात सौदे हो चुके हैं जबकि कुल निर्यात 51 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है। पिछले साल 69 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। उद्योग के अनुसार चालू सीजन में कपास का आयात बढ़कर 27 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 15 लाख गांठ का ही आयात हुआ था।
गुजरात और महाराष्ट्र में उत्पादन कम
उद्योग के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में गुजरात में कपास का उत्पादन घटकर 83.50 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 105 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। इसी तरह से महाराष्ट्र में कपास का उत्पादन पिछले साल के 83 लाख गांठ से घटकर 77 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है। दक्षिण भारत के राज्यों तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में भी उत्पादन पिछले साल के 94.50 लाख गांठ से घटकर 86 लाख गांठ ही होने का अनुमान है। हालांकि उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास का उत्पादन चालू सीजन में बढ़कर 60 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इन राज्यों में 56 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था।........   आर एस राणा

06 जनवरी 2019

उत्तर भारत के पहाड़ी राज्यों में बारिश के साथ बर्फबारी की संभावना

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अगले 24 घंटों के दौरान जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश और बर्फ़बारी हो सकती है।
उत्तरी पंजाब और असम के एक दो स्थानों पर बारिश संभव है। देश के उत्तर पश्चिमी मैदानी इलाकों में न्यूनतम तापमान हल्का बढ़ सकता है। गंगा के मैदानी इलाकों में कोहरे की तीव्रता कम हो जाएगी। हालांकि, मध्यम से घना कोहरा कई जगहों पर बना रहेगा। राजस्थान के पश्चिमी इलाकों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण कई जिलों में बारिश होने का अनुमान है, साथ ही सीकर और झुंझुनूं में ओलावृष्टि होने की आशंका है।
मौसम विभाग के अनुसार पिछले 24 घंटों के दौरान, असम में हल्की से मध्यम बारिश हुई। उधर अरुणाचल प्रदेश के भी एक दो हिस्सों में बारिश और बर्फबारी हुई। सिक्किम के एक या दो स्थानों पर हल्की बारिश देखी गई।
उत्तर पश्चिम के मैदानी इलाकों में न्यूनतम तापमान हल्का बढ़ गया, जबकि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली के कुछ स्थानों के साथ-साथ राजस्थान के कई हिस्सों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा में तापमान में मामूली वृद्धि देखी गई। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के कई स्थानों पर मध्यम से घना कोहरा छाया रहा।.............  आर एस राणा

रबी में मोटे अनाजों के साथ ही दलहन की बुवाई में आई कमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में मानसूनी बारिश कम होने का असर रबी फसलों की बुवाई पर देखा जा रहा है। मोटे अनाजों की बुवाई में चालू रबी में 17.30 फीसदी और दालों की बुवाई में 6.44 फीसदी की कमी आई है। देशभर में रबी फसलों की कुल बुवाई 3.41 फीसदी घटकर अभी तक 564.42 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 584.37 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा ओडिशा के साथ ही कई राज्यों में खरीफ में बारिश सामान्य से कम हुई थी।
कृषि मंत्रालय के अनुसार रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई चालू सीजन में 4 जनवरी तक 288.37 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 1.70 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल इस समय तक गेहूं की बुवाई केवल 283.55 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।
दलहन में चना की बुवाई पर ज्यादा असर
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 6.55 फीसदी घटकर 143.56 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 153.44 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई 10.86 फीसदी घटकर अभी तक केवल 92.89 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 104.21 लाख हेक्टेचर में बुवाई हो चुकी थी।
अन्य दालों में मसूर की बुवाई 16.61 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 16.97 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मटर की बुवाई जरुर पिछले साल के 9.17 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 10.10 लाख हेक्टेयर में हुई है। उड़द और मूंग की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 6.16 और 3.65 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 6.86 और 3.67 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
मोटे अनाजों की बुवाई 17.30 फीसदी कम
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 17.30 फीसदी घटकर 43.33 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 52.40 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई चालू रबी में 22.76 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 29.89 लाख हेक्टेयर में ज्वार की बुवाई हो चुकी थी। मक्का और जौ की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 12.88 और 7.08 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 14.34 और 7.31 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
सरसों की बुवाई बढ़ी, मूंगफली की घटी
तिलहन की बुवाई चालू रबी में 1.54 फीसदी घटकर 75.16 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 76.33 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई जरुर पिछले साल के 64.99 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 66.43 लाख हेक्टेयर में हुई है। मूंगफली और असली की बुवाई चालू रबी में घटकर क्रमश: 3.50 और 3.15 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 4.52 और 3.86 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
धान की रोपाई में 24.86 फीसदी की भारी गिरावट
धान की रोपाई चालू रबी सीजन में घटकर केवल 14.01 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 18.64 लाख हेक्टेयर में इसकी रोपाई हो चुकी थी।...... आर एस राणा

बासमती चावल के निर्यात में 5.25 फीसदी की आई गिरावट, आगे निर्यात सौदों में आयेगा सुधार

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 8 महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान बासमती चावल के निर्यात में 5.25 फीसदी की गिरावट आकर 24.90 लाख टन का ही निर्यात हुआ है। डॉलर के मुकाबले रुपये में आई मजबूती से बासमती चावल के निर्यात सौदे कम हो रहे है तथा माना जा रहा है कि चालू वित्त वर्ष में कुल निर्यात पिछले वित्त वर्ष के 40.51 लाख टन से कम रहने की आशंका है।
मूल्य के हिसाब से बासमती चावल का निर्यात बढ़ा
कृषि और प्रसंस्कृत खाद उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों के दौरान बासमती चावल का निर्यात घटकर 24.90 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 26.28 लाख टन का निर्यात हुआ था। मूल्य के हिसाब से जरुर चालू वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों में निर्यात में बढ़कर 18,440 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में 16,871 करोड़ रुपये का ही निर्यात हुआ था।
गैर-बासमती चावल के निर्यात में भी आई कमी
गैर-बासमती चावल के निर्यात में चालू वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से नवंबर के दौरान 13.96 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 49.21 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 57.20 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष में गैर-बासमती चावल का निर्यात 13,722 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में इसका निर्यात 15,125 करोड़ रुपये का हुआ था।
बासमती चावल के निर्यात में कमी आने की आशंका
निर्यातक फर्म केआरबीएल लिमिटेड के चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल कुमार मित्तल ने दिसंबर में डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 6 फीसदी मजबूत हुआ है जिस कारण इस समय निर्यात सौदों में कमी आई है। उन्होंने कहा कि आगे बासमती चावल के निर्यात सौदों में तेजी तो आयेगी, लेकिन कुल निर्यात पिछले वित्त वर्ष 2017-18 के 40.51 लाख टन से 2 से 3 लाख टन कम होने की आशंका है। विश्व बाजार में भारतीय बासमती चावल पूसा 1,121 सेला का भाव 1,100 से 1,125 डॉलर प्रति टन है। उन्होंने कहा कि चालू सीजन में बासमती धान का उत्पादन भी 12 से 15 फीसदी कम होने का अनुमान है। अत: आगे जैसे ही निर्यात सौदों में तेजी आयेगी, धान और चावल के भाव बढ़ने की संभावना है। 
धान की दैनिक आवक घटी
हरियाणा की कैथल मंडी के धान कारोबारी रामनिवास खुरानिया ने बताया कि उत्पादक मंडियों में धान की दैनिक आवक कम हो गई है। मंडी में पूसा 1,121 बासमती धान के भाव शुक्रवार को 3,500 से 3,525 रुपये और सेला चावल के भाव 6,700 से 6,800 रुपये प्रति क्विंटल रहे। ट्रेडिशनल बासमती धान के भाव 5,100 रुपये प्रति क्विंटल रहे।.............  आर एस राणा

चालू पेराई सीजन की पहली तिमाही में चीनी उत्पादन 5.72 फीसदी ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) की पहली तिमाही एक अक्टूबर से 31 दिसंबर 2018 तक चीनी का उत्पादन 5.72 फीसदी बढ़कर 110.52 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 103.56 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था।
इडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी मिलों में गन्ने की पेराई पहले आरंभ होने से चीनी का अभी तक उत्पादन बढ़ा है लेकिन महाराष्ट्र के कई जिलों में बारिश की कमी का असर गन्ने की फसल पर पड़ा है इसलिए चीनी का कुल उत्पादन चालू पेराई सीजन में पिछले साल की तुलना में कम होने का अनुमान है। देशभर में 501 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जबकि पिछले साल इस समय 505 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी।
उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन में आई कमी
प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 31 दिसंबर तक 31 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 33.3 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है। राज्य की चीनी मिलों ने चालू पेराई सीजन में 286 लाख टन गन्ने की पेराई की है जबकि पिछले साल इस समय तक 328 लाख टन गन्ने की पेराई की गई थी। राज्य में 117 चीनी मिलों में पेराई चल रही है।
महाराष्ट्र में उत्पादन 14.56 फीसदी बढ़ा
महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन बढ़कर 31 दिसंबर तक 43.98 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में केवल 38.39 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। राज्य में 184 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जबकि पिछले सीजन की समान अवधि में 183 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी। राज्य की चीनी मिलों में गन्ने की पेराई पहले आरंभ हुई थी, जिस कारण उत्पादन बढ़ा है। माना जा रहा कि राज्य की मिलों में पेराई भी पिछले साल की तुलना में जल्द बंद हो जायेगी।
कर्नाटक में 3.62 लाख टन चीनी का उत्पादन 
चालू पेराई सीजन में कर्नाटक में चीनी का उत्पादन 20.45 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 16.83 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। राज्य में चालू पेराई सीजन में 63 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जोकि पिछले पेराई सीजन के बराबर ही है।
अन्य राज्यों में चीनी उत्पादन पिछले साल के लगभग बराबर
अन्य राज्यों में गुजरात में चालू पेराई सीजन में 31 दिसंबर तक 4.3 लाख टन, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में 2.15 लाख टन, तमिलनाडु में 1.40 लाख टन, बिहार में 2.30 लाख टन, हरियाणा में 1.60 लाख टन, पंजाब में 1.20 लाख टन और मध्य प्रदेश में 1.20 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है।...........  आर एस राणा

कीमतों में आई भारी गिरावट से आलू किसान हलकान

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार भले ही वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा बार-बार दोहरा रही है लेकिन हालत यह है कि प्याज और लहसून के बाद आलू किसानों को भी मुनाफा तो दूर लागत भी नहीं मिल पा रही है। उत्पादक राज्यों की मंडियों में आलू के भाव घटकर 2 से 5 रुपये प्रति किलो रह गए हैं।
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के बहचौला गांव के आलू किसान अंबुज शर्मा ने बताया कि दो एकड़ में आलू की फसल लगाई हुई है, लेकिन कीमतों में आई भारी गिरावट से मुनाफा तो दूर लागत भी वसूल नहीं हो रही है। दिल्ली की आजादपुर मंडी में आलू का भाव घटकर पहली जनवरी को 360 से 800 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। परिवहन लागत और अन्य खर्च निकालने के बाद किसानों को 150 से 400 रुपये प्रति क्विंटल का भाव ही मिल रहा है। जबकि इससे ज्यादा खर्च खेत से आलू की निकासी की मजदूरी में आ रहा है।
अक्टूबर से अभी तक 450 से 750 रुपये का आ चुका है मंदा
आगरा के सादाबाद के किसान अर्नव भार्गव ने बताया कि अक्टूबर से अभी तक आलू की कीमतों में करीब 450 से 750 रुपये प्रति क्विंटल की भारी गिरावट आ चुकी है। फरुकाबाद मंडी में 15 अक्टूबर को आलू का भाव 800 से 1,250 रुपये क्विंटल था, जबकि पहली जनवरी को मंडी में आलू का भाव घटकर 350 से 500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। उन्होंने बताया कि आलू की कीमतों में आई गिरावट से भारी घाटा लग रहा है। उधर पंजाब की फिरोजपुर मंडी में आलू के भाव घटकर 200 से 350 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि अक्टूबर में इसके भाव 700 से 900 रुपये प्रति क्विंटल थे।
आवक की तुलना में मांग कमजोर
दिल्ली की आजादपुर मंडी के पोटेटो ऐंड अनियन मर्चेंट एसोसिएशन (पोमा) के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने बताया कि पंजाब और हिमाचल के बाद उत्तर प्रदेश से भी नए आलू की आवक शुरू हो गई है। आवक के मुकाबले मांग कम होने से भाव में मंदा आया है। आजादपुर मंडी में 18 से 19 हजार क्विंटल आलू की आवक हो रही है तथा नए आलू के भाव घटकर 360 से 800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए जबकि पुराना आलू 150 से 400 रुपये क्विंटल बिक रहा है।
आलू का उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2017-18 में आलू का उत्पादन बढ़कर 493,44,000 टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 486,05,000 टन का ही हुआ था।
वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़ा निर्यात
राष्ट्रीय बागवानी एवं अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (एनएचआरडीएफ) के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान 3,07,409 टन आलू का निर्यात हुआ है जबकि वित्त वर्ष 2016-17 में कुल निर्यात 2,55,725 टन का ही हुआ था।.............  आर एस राणा

यूपी में चीनी का उत्पादन घटा, मिलें कम रही हैं गन्ने की पेराई

आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में पहली अक्टूबर 2018 से पहली जनवरी 2019 तक 31.82 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 34.42 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। चीनी मिलों द्वारा गन्ने की पेराई धीमी गति से करने के कारण चीनी उत्पादन में कमी आई है।
चालू पेराई सीजन में राज्य की चीनी मिलों ने 2,933.44 क्विंटल गन्ने की पेराई ही की है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 3,391.82 टन गन्ने की पेराई की जा चुकी थी। चालू पेराई सीजन में गन्ने में रिकवरी की औसतन 10.85 की दर आ रही है जबकि पेराई सीजन में इस समय केवल 10.15 फीसदी की औसतन रिकवरी आ रही थी। राज्य में 117 चीनी मिलों में पेराई चल रही है।
यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन (यूपीएसएमए) के अनुसार पहली जनवरी 2019 को पेराई सीजन 2017-18 का चीनी मिलों पर किसानों का बकाया 1,875.19 करोड़ रुपये बचा हुआ है जबकि चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में पहली जनवरी तक राज्य की चीनी मिलों ने 9,364.33 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है तथा इसमें से अभी तक केवल 2,594.90 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया है।.....  आर एस राणा

यूपी की चीनी मिलों पर पिछले पेराई सीजन का ही 1,875 करोड़ रुपये से ज्यादा है बकाया

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू पेराई सीजन शुरू हुए तीन महीने बीतने के बावजूद भी उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर पिछले पेराई सीजन का 1,875.19 करोड़ रुपया अभी भी बकाया बचा हुआ है जबकि चालू पेराई सीजन 2018-19 में गन्ने पेराई की गति धीमी होने के कारण किसानों को परेशानी उठानी पड़ रही है। समय पर खेत खाली नहीं होने के कारण किसान गेहूं की बुवाई नहीं कर पा रहे हैं।
गेहूं की बुवाई नहीं कर पा रहे हैं किसान
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के देहरा चक गांव निवासी किसान जोगिंद्र आर्य ने बताया कि उन्होंने 6 एकड़ में गन्ना लगा रखा है जिसमें से दो एकड़ में गेहूं की बुवाई करनी थी लेकिन वेव शुगर मिल द्वारा पर्ची कम जारी करने से अभी तक केवल आधा एकड़ खेत ही खाली हो पाया है जबकि गेहूं की बुवाई का समय निकल चुका है। उन्होंने बताया कि पिछले पेराई सीजन का बकाया पैमेंट भी अभी पूरा नहीं मिला है जिस कारण आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
चालू पेराई सीजन में भी भुगतान में देरी
यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन (यूपीएसएमए) के अनुसार पहली जनवरी 2019 को पेराई सीजन 2017-18 का चीनी मिलों पर किसानों का बकाया 1,875.19 करोड़ रुपये बचा हुआ है जबकि चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में पहली जनवरी तक राज्य की चीनी मिलों ने 9,364.33 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है तथा इसमें से अभी तक केवल 2,594.90 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया है।
गन्ने की पेराई पिछले साल पेराई सीजन से कम 
राज्य में चालू पेराई सीजन में पहली जनवरी 2019 तक 31.82 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 34.42 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। चालू पेराई सीजन में राज्य की चीनी मिलों ने 2,933.44 क्विंटल गन्ने की पेराई ही की है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 3,391.82 टन गन्ने की पेराई की जा चुकी थी। चालू पेराई सीजन में गन्ने में रिकवरी की औसतन 10.85 की दर आ रही है जबकि पेराई सीजन में इस समय केवल 10.15 फीसदी की औसतन रिकवरी आ रही थी। राज्य में 117 चीनी मिलों में पेराई चल रही है।............   आर एस राणा