आर एस राणा
नई
दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से बहुराष्ट्रीय कंपनी मॉनसेंटो को बड़ी राहत मिली
है। कोर्ट ने आनुवांशिक रूप से संवर्द्धित कपास के बीजों (जीएम कॉटन सीड्स)
पर कंपनी के पेटेंट के दावे को जायज ठहराया है। कोर्ट ने कहा है कि
अमेरिकी बीज निर्माता कंपनी जीएम (जीन संवर्द्धित) कॉटन सीड्स पर पेटेंट का
दावा कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले
को पलट दिया है, जिसकी वजह से मॉनसेंटो जीएम कॉटन सीड्स पर पेटेंट का दावा
नहीं कर पा रही थी।
मॉनसेंटो को जर्मनी की दवा और फसलों के लिए
रासायन बनाने वाली कंपनी बेयर एजी खरीद चुकी है। कोर्ट के इस फैसले को
विदेशी कृषि कंपनियों मसलन मॉनसेंटो, बेयर, डूपॉ पायोनियर और सेनजेंटा के
लिए राहत के तौर पर देखा जा रहा है। इन कंपनियों को भी भारत में जीएम फसलों
पर पेटेंट के हाथ से जाने का डर सता रहा था।
न्यूज एजेंसी
रॉयटर्स ने किसानों के संगठन शेतकारी संगठन के नेता अजित नार्डे के हवाले
से कहा है कि यह अच्छी खबर है क्योंकि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने
पेटेंट नियमों को लेकर जारी अनिश्चितता की वजह से भारतीय बाजार में नई
तकनीक को जारी करने पर रोक लगा दी थी। उन्होंने कहा कि नई तकनीक तक किसानों
की पहुंच से उन्हें मदद मिलेगी।
मेको मॉनसेंटो बायोटेक
(इंडिया), मॉनसेंटो और महाराष्ट्र की हाइब्रिड सीड कंपनी (मेको) का संयुक्त
उपक्रम है और यही कंपनी 40 से अधिक भारतीय बीज कंपनियों को जीएस कॉटन बीज
की बिक्री करती है। दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला स्थानीय कंपनी एनएसएल की
याचिका पर आया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भारत का पेटेंट कानून
मॉनसेंटो को उसके जीएम कॉटन बीज पर किसी तरह के पेटेंट की इजाजत नहीं देता
है।
इसके बाद मॉनसेंटो के भारतीय साझा उपक्रम (जेवी) ने रॉयल्टी
भुगतान के विवाद को लेकर 2015 में एनएसएल के साथ अपने करार को रद्द कर दिया
था। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट को मॉनसेंटो के
उस दावे को भी देखना था, जिसमें उन्होंने कहा था कि एनएसएल ने बीटी कॉटन
सीड्स को लेकर उसकी बौद्धिक संपदा का उल्लंघन किया है। 2003 में मॉनसेंटो
के जीएम कॉटन सीड को मंजूरी दी गई थी। भारत दुनिया में सबसे अधिक कपास का
उत्पादन करता है। इसके साथ ही वह कपास का दूसरा बड़ा निर्यातक है। भारत में
कपास की खेती का 90 फीसद रकबा, मॉनसेंटो की जीएम बीज पर निर्भर है।.......... आर एस राणा
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