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17 अगस्त 2018

देश में 12 कीटनाशकों पर तत्काल प्रभाव से रोक, 6 पर दिसंबर 2020 तक लगेगी रोक

आर एस राणा
नई दिल्ली। आखिरकार केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए खतरनाक 18 कीटनाशकों पर रोक लगाने का फैसला किया है, इनमें से 12 कीटनाशकों पर जहां तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया गया है, वहीं 6 कीटनाशकों को क्रमवार वर्ष 2020 तक प्रतिबंधित किया जायेगा।
केंद्र सरकार की ओर से गठित समिति ने अपनी सिफारिश में इन कीटनाशकों से होने वाले संभावित नुकसान पर प्रकाश डाला था, जिसके बाद केंद्र ने इन पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है।
इन कीटनाशकों के इस्तेमाल पर कई देशों ने पहले से ही पाबंदी लगा रखी है। सरकार ने बेनोमिल, फेनारिमोल, कार्बाराइल, मिथॉक्सी एथाइल मरकरी क्लोराइड, थियोमेटॉन समेत जिन 12 कीटनाशकों पर तुरंत प्रतिबंध लगाया गया है जबकि एलाचलोर, डिचलोरवस, फोरेट और फोस्फामिडॉन आदि को देश में 2020 तक प्रतिबंधित करना होगा। इन कीटनाशक से मनुष्यों के साथ ही पशु-पक्षियों पर इसके घातक परिणाम दिख रहे थे। हालांकि इसमें वो कीटनाशक ग्लायफोसेट शामिल नहीं है, जिसके लिए अमेरिका में मॉनसेंटो को एक कैंसर मरीज को भारी हर्जाना देने को कहा गया है।
कीटनाशकों की समीक्षा के लिए गठित समिति ने 16 जुलाई को इस मुद्दे पर सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी, जिसने सिफारिशों में कहा कि ये कीटनाशक लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं। विभिन्न स्तरों पर इनका प्रयोग फसल को विषैला बनाता है। इसी वजह से कई देशों ने इनके इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी लगा रखा है। समिति ने कहा कि इन्हें प्रतिबंधित किया जाना ही उचित व्यवस्था होगी।
केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेश के अनुसार, जिन कीटनाशकों को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित किया गया है, उनका निर्माण करने वाली कंपनियों को देशभर में मौजूद इन कीटनाशकों का इस्तेमाल रोकने के लिए चेतावनी जारी करनी होगी। उन्हें बाजार से अपना माल वापस लेना होगा। कंपनियों को चेतावनी में स्पष्ट करना होगा कि स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए खतरनाक होने के मद्देनजर इन कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाए।.........   आर एस राणा

एमएसपी में बढ़ोतरी से कपास की समर्थन मूल्य पर खरीद बढ़ने का अनुमान-सीसीआई

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर से शुरू होने वाले चालू खरीफ विपणन सीजन 2018-19 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कपास की खरीद बढ़ने की संभावना है। फसल सीजन 2017-18 में एमएसपी पर 3.75 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास की खरीद हुई थी। कॉटन कार्पोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा कपास के एमएसपी में की गई बढ़ोतरी से नए खरीफ विपणन सीजन में कपास की ज्यादा होने का अनुमान है। निगम ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है, तथा सितंबर में फसल की स्थिति के आधार पर खरीद का लक्ष्य तय किया जायेगा। उन्होंने बताया कि खरीफ सीजन विपणन सीजन 2017-18 में निगम ने 10.70 लाख गांठ कपास की खरीद की थी, जिसमें से 3.75 लाख गांठ की खरीद एमएसपी पर और बाकि की कामर्शियल खरीद की गई थी।
सीसीआई के पास सवा लाख गांठ का स्टॉक
उन्होंने बताया निगम के पास इस समय सवा लाख गांठ कपास का स्टॉक बचा हुआ है जिसको बेचने के लिए लगातार निविदा मांगी जा रही है। चालू सीजन में निगम ने 36,000 गांठ कपास का निर्यात भी किया है।
एमएसपी में 1,130 रुपये की बढ़ोतरी
केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के लिए मीडियम स्टेपल कपास का एमएसपी 5,150 रुपये और लॉन्ग स्टेपल कपास का एमएसपी 5,450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले खरीफ विपणन सीजन के मुकाबले इसमें 1,130 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है।
विश्व बाजार में कपास के भाव घटे
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन आॅफ इंडिया के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि रुपये की तुलना में डॉलर की मजबूती से कपास निर्यातकों को फायदा तो होगा, लेकिन नई फसल को देखते हुए आयातक आयात सौदे कम कर रहे है। इसीलिए विश्व बाजार में भी कपास की कीमतों में गिरावट आई है। अमेरिका में आईसीई में अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में कपास का भाव घटकर 83.41 सेंट प्रति पाउंड रह गया जबकि पिछले सप्ताह में इसका भाव 86.6 सेंट प्रति पाउंड था।
उत्तर भारत के राज्यों में अगले महीने आयेगी नई फसल
कपास कारोबारी नवीन ग्रोवर ने बताया कि अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव 48,000 से 48,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) है। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की नई फसल की आवक सितंबर के मध्य में बन जायेगी, इसलिए मौजूदा भाव में अब तेजी की संभावना नहीं है। सीसीआई के अनुसार चालू सीजन में 26 जुलाई तक 354.28 लाख गांठ कपास की आवक उत्पादक मंडियों में हो चुकी है।
बुवाई में आई कमी
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास की बुवाई घटकर 112.60 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 117.11 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। ...........  आर एस राणा

यूरिया का उत्पादन 244 लाख टन होने का अनुमान-मंत्रालय

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2018-19 में यूरिया खाद का उत्पादन 1.6 फीसदी बढ़कर 244 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले पिछले साल इसका उत्पादन 240.2 लाख टन का ही हुआ था।
रसायन और उर्वरक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 में थोड़ी गिरावट आई थी, लेकिन कुछेक इकइयां अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर काम कर रही थी। चालू वित्त वर्ष में सभी इकाइयों में उत्पादन बराबर हो रहा है इसलिए चालू वित्त वर्ष 2018-19 में यूरिया का उत्पादन बढ़कर 244 लाख टन होने का अनुमान है।
वित्त वर्ष 2017-18 में यूरिया खाद का आयात बढ़कर 59.75 लाख टन का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष में इसका आयात 54.81 लाख टन का ही हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2018-19 में उत्पादन में बढ़ोतरी से यूरिया के आयात में कमी आने की आशंका है।
मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान यूरिया खाद का आयात बढ़कर 21.41 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2016-17 की समान अवधि में इसका आयात 17.04 लाख टन का ही हुआ था।
उर्वरकों के संतुलित उपयोग को सुनिश्चित करने और यूरिया की खपत को कम करने के लिए, केंद्र सरकार ने घरेलू और आयातित यूरिया को नीम लेपित करना अनिवार्य कर रखा है। इसके अलावा कंपिनयों को यूरिया की भर्ती 50 किलो के बजाए 45 किलो करने के निर्देश भी जारी कर रखे हैं।
यूरिया का अधिकतम खुदरा मूल्य 5,360 रुपये प्रति टन तय किया हुआ है लेकिन किसानों को यूरिया की आपूर्ति सब्सिडी रेट पर की जाती है। खाद की कुल खपत में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी यरिया की है।.........  आर एस राणा

जुलाई में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 27 फीसदी घटा-एसईए

आर एस राणा
नई दिल्ली। घरेलू बाजार में स्टॉक ज्यादा होने से खाद्य एवं अखाद्य के आयात में कमी आई है। जुलाई में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात घटकर 11,19,538 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल जुलाई में इनका आयात 15,24,724 टन का हुआ था।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया (एसईए) के अनुसार घरेलू बाजार में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का 24.75 लाख टन का स्टॉक जमा है जोकि सामान्यत: 15-18 लाख टन से ज्यादा है। इसके अलावा रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत बना हुआ है तथा जून में केंद्र सरकार ने आयातित खाद्य तेलों के शुल्क में भी बढ़ोतरी की थी। इसीलिए इनके आयात में कमी आई है। 
एसईए के अनुसार चालू तेल वर्ष 2017—18 (नवंबर-17 से अक्टूबर-18) के पहले 9 महीनों नवंबर से जुलाई के दौरान 107,66,076 टन खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष 2016-17 की समान अवधि में इनका आयात 113,92,296 टन का हुआ था। 
एसईए के अनुसार आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में सालभर में गिरावट आई है। क्रुड पॉम तेल का भाव जुलाई में घटकर भारतीय बंदरगाह पर 583 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि पिछले साल जुलाई में इसका भाव 681 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से आरबीडी पॉमोलीन का भाव इस दौरान भारतीय बंदरगाह पर 683 डॉलर प्रति टन से घटकर 592 डॉलर प्रति टन रह गए। क्रुड सोयाबीन तेल के भाव चालू तेल वर्ष के जुलाई महीने में भारतीय बंदरगाह पर 709 डॉलर प्रति टन रहे जबकि पिछले साल जुलाई में इसके भाव 802 डॉलर प्रति टन थे। विश्व बाजार में खाद्य तेलों की उपलब्धता ज्यादा होने के साथ ही भारत की मांग कम होने से सालभर में आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में 14 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।......   आर एस राणा

रुपये के मुकाबले डॉलर 70 के पार, आयात महंगा होने से खाद्य तेलों की कीमतों में सुधार संभव

आर एस राणा
नई दिल्ली। सस्ते आयात के साथ ही घरेलू बाजार में स्टॉक ज्यादा होने के कारण खपत का सीजन होने के बावजूद भी खाद्य तेलों की कीमतों में मंदा बना हुआ है। हालांकि रुपये के मुकाबले डॉलर ऐतिहासिक स्तर 70.07 पर पहुंच गया है जिससे आयातित खाद्य तेलों महंगे हो जायेंगे, इसलिए घरेलू बाजार में भी खाद्य तेलों की कीमतों में सुधार आने का अनुमान है।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी वी मेहता ने बताया कि आयातित खाद्य तेल सस्त होने के साथ ही घरेलू बाजार में बकाया स्टॉक ज्यादा है। पिछले साल की तुलना में आयातित खाद्य तेलों की कीमतें 14 फीसदी घटी है जबकि घरेलू बाजार में खाद्य तेलों का बकाया स्टॉक 25 लाख टन के करीब है जबकि आमतौर पर 15 से 18 लाख टन का ही बकाया स्टॉक होता है। यही कारण है कि खपत का सीजन होने के बावजूद भी खाद्य तेलों के भाव नीचे ही बने हुए हैं।
उन्होंने बताया कि रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत होकर 70 के पार पहुंचने से, आयातित खाद्य तेलों के भाव बढ़ेंगे, इसलिए घरेलू बाजार में भी इनकी कीमतों में सुधार आने का अनुमान है। डॉलर की मजबूती से आगामी महीनों में खाद्य तेलों के आयात में भी कमी आने की आशंका है।
दिल्ली वैजीटेबल आॅयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि त्यौहारी सीजन होने के कारण आमतौर पर अगस्त-सितंबर में खाद्य तेलों में मांग अच्छी रहती है लेकिन सस्ते आयात के कारण घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों पर दबाव बना हुआ है। उन्होंने बताया कि जून-जुलाई के मुकाबले मांग में सुधार आया है, लेकिन भाव उल्टा कम ही हुए हैं। हरियाणा की दादरी मंडी में सरसों तेल का भाव 850 रुपये, इंदौर में सोया रिफाइंड तेल का भाव 740 रुपये, कांडला बंदरगाह पर क्रुड पॉम तेल का भाव 665 रुपये, पंजाब में बिनौला तेल का भाव 770 रुपये और राजकोट में मूंगफली तेल का भाव 940 रुपये प्रति 10 किलो रहा।
एसईए के अनुसार चालू तेल वर्ष 2017-18 (नवंबर-17 से अक्टूबर-18) के पहले 8 महीनों नवंबर से जून के दौरान 94 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 96.15 लाख टन का हुआ था।........  आर एस राणा

उत्तर भारत में कपास की फसल रोग रहित, सितंबर मध्य में बनेगी नई आवक-सीआईसीआर

आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास की फसल काफी अच्छी स्थिति में है, तथा नई फसल की आवक मध्य सितंबर में बनने की संभावना है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉटन रिसर्च (सीआईसीआर) के प्रमुख दिलीप मोंगा ने आउटलुक को बताया कि पंजाब के अबोहर जिले में कुछेक जगहों पर सफेद मक्खी का प्रकोप हुआ था, जिस पर पूरी तरह से नियंत्रण पा लिया गया है।
उन्होंने बताया कि उत्पादक राज्यों में मौसम फसल के अनुकूल है इसलिए नई फसल की आवक मध्य सितंबर तक चालू होने की संभावना है। पंजाब और राजस्थान में चालू खरीफ में कपास की बुवाई में कमी आई है जबकि हरियाणा में बढ़ी है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार पंजाब में चालू खरीफ में कपास की बुवाई घटकर 2.84 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में राज्य में 3.84 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। इसी तरह से राजसथान में कपास की बुवाई पिछले साल के 5.03 लाख हैक्टेयर से घटकर 4.96 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। हरियाणा में कपास की बुवाई 6.65 लाख हैक्टेयर में हुई है जोकि पिछले साल से बढ़ी है।
उन्होंने बताया कि पंजाब के अबोहर में सफेद मक्खी के हमले से बचने के लिए किसानों को कीटनाशकों के छिड़काव की सलाह दी गई है तथा स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है। उन्होंने बताया कि चालू खरीफ सीजन में पिछले साल की तुलना में कपास के बुवाई क्षेत्रफल में जरुर थोड़ी कमी आई है लेकिन अभी तक मौसम फसल के अनुकूल रहा है, तथा आगे भी मौसम अनुकूल रहा तो प्रति हैक्टेयर उत्पादकता ज्यादा आने का अनुमान है।
कॉटन एसोसिएशन आॅफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार फसल सीजन 2017-18 में उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास का उत्पादन 49.40 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में इसका उत्पादन इन राज्यों में 45.75 लाख गांठ का ही हुआ था। ..........  आर एस राणा

चावल निर्यात मामले में सऊदी अरब से वार्ता करेगी सरकार, कीटनाशक कम उपयोग की है मांग

आर एस राणा
नई दिल्ली। बासमती चावल के निर्यात मामले को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार ने सऊदी अरब को एक प्रस्ताव भेजा है। सऊदी अरब ने भारत से आयातित खाद्य वस्तुओं में कीटनाशकों के उपयोग को 90 फीसदी तक कम करने के लिए कहा था।
कृषि और प्रंसस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सऊदी अरब ने भारत से आयातित खाद्य वस्तुओं में कीटनाशकों के उपयोग में कमी लाने के लिए लिखा था, इस पर हमने उन्हें वार्ता के लिए प्रस्ताव भेजा है। उम्मीद है जल्दी ही मामला सुलझ जायेगा।
खतरनाक रसायनों के अत्यधिक प्रयोग के कारण यूरोपियन यूनियन ने भी बासमती चावल में फंफूदीनाशक ट्रासाइक्लाजोल के लिए अवशेष सीमा को 1 से घटाकर कर 0.01 एमजी (मिलीग्राम) प्रति किलो निर्धारित कर रखा है।
चावल की निर्यातक फर्म केआरबीएल लिमिटेड के चेयरमैन एडं मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल कुमार मित्तल ने बताया कि बासमती चावल में निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है। ईरान, इराक के साथ ही अन्य देशों की आयात मांग भी कम हुई है। नई फसल को देखते हुए भी आयातक नए आयात सौदे सीमित मात्रा में ही कर रहे हैं, साथ ही कई देशों से भुगतान संबंधी समस्या भी आ रही है।
उन्होंने बताया कि कीटनाशकों के कम उपयोग को लेकर अन्य देशों से भी मांग उठनी शुरू हो गई है, जिसका असर भी आगे बासमती चावल के निर्यात सौदों पर पड़ने की आशंका है। उन्होंने बताया कि पूसा बासमती चावल सेला का भाव विश्व बाजार में 1,100 डॉलर प्रति टन है।
एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही अप्रैल-जून के दौरान बासमती चावल का निर्यात घटकर 11.69 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में इनका निर्यात 12.58 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में बासमती चावल का निर्यात बढ़कर 8,585 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 8,181 करोड़ रुपये का ही हुआ था। एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार देश से सालाना करीब 40 लाख टन बासमती चावल का निर्यात होता है तथा चालू वित्त वर्ष में भी निर्यात पिछले साल के लगभग बराबर ही होने का अनुमान है। .....   आर एस राणा

11 अगस्त 2018

ग्वार गम उत्पादों का निर्यात मूल्य में बढ़ा, मात्रा में घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के दौरान ग्वार गम उत्पादों का निर्यात मूल्य के हिसाब से 5.82 फीसदी बढ़ा है जबकि मात्रा के हिसाब से 6.94 फीसदी की गिरावट आई है। एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जून के दौरान 1.34 लाख टन ग्वार गम उत्पादों का निर्यात ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 1.44 लाख टन का हुआ था।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में ग्वार गम उत्पादों का निर्यात मूल्य के हिसाब से बढ़कर 1,235 करोड़ रुपये का हो चुका है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 1,167 करोड़ रुपये का ही हुआ था। एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार घरेलू बाजार में ग्वार गम उत्पादों की कीमतें ज्यादा होने के कारण मूल्य के हिसाब से निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि आगामी दिनों में निर्यात में सुधार आने का अनुमान है।
ग्वार सीड की बुवाई चालू खरीफ में जहां प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान में बढ़ी है, वहीं गुजरात में बारिश की कमी से बुवाई में कमी आई है। राजस्थान के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू खरीफ में 10 अगस्त तक राज्य में ग्वार सीड की बुवाई बढ़कर 28.38 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 28.26 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। चालू खरीफ में राजस्थान में ग्वार सीड की बुवाई का लक्ष्य 35 लाख हैक्टेयर का तय किया गया है। राजस्थान में ग्वार सीड की बुवाई तो बढ़ी है, लेकिन राज्य के करीब 9 जिलों हनुमानगढ़, जालौर, नागौर, पाली, अजमेर, बूंदी, जैसलमेर, सिरोही, टोंक में बारिश कम होने से सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। ऐसे में आगामी दिनों में इन राज्यों में बारिश की स्थिति कैसी रहती है, इस पर ग्वार सीड और ग्वार गम की तेजी-मंदी निर्भर करेगी। 
गुजरात में चालू खरीफ सीजन में ग्वार सीड की बुवाई घटकर केवल 86,338 हैक्टेयर में ही बुवाई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 1,67,700 हैक्टेयर में हो चुकी थी। सामान्य खरीफ में गुजरात में ग्वार सीड की बुवाई 2.56 लाख हैक्टेयर में होती है।  ............  आर एस राणा

खरीफ फसलों की बुवाई तो सुधरी, लेकिन देश के कई हिस्सों में बारिश की कमी से हालात चिंताजनक

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ में खरीफ फसलों की बुवाई में तो सुधार आया है लेकिन देश के कई हिस्सों में बारिश सामान्य से काफी कम होने से सूखे जैसे हालात बने हुए हैं जोकि चिंताजनक हैं। मानसूनी सीजन के बचे हुए भाग में अगर इन क्षेत्रों में अच्छी बारिश नहीं हुई तो फिर खरीफ फसलों के उत्पादन पर भी असर पड़ने की आशंका है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ फसलों की बुवाई 924.76 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई 938.66 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। हालांकि बुवाई 1.48 फीसदी अभी भी पिछले चल रही है, जबकि पिछले सप्ताह तक यह आंकड़ा 1.83 फीसदी था।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार पहली जून से 10 अगस्त तक देशभर में बारिश सामान्य से 11 फीसदी की कम हुई है तथा इस दौरान देशभर के करीब 220 जिलों में बारिश सामान्य से काफी कम होने के कारण सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। इन जिलों में जल्द ही बारिश नहीं हुई तो फिर फसलों पर असर पड़ना शुरू हो जायेगा। 
मंत्रालय के अनुसार खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 307.78 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई 316.82 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। धान की रोपाई पिछले साल की तुलना में 2.85 फीसदी पिछे चल रही है। दालों की बुवाई चालू खरीफ सीजन में घटकर 124.15 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 127.89 लाख हैक्टेयर में दालों की बुवाई हो चुकी थी। खरीफ दलहन में मूंग की बुवाई पिछले साल से बढ़ी है लेकिन अरहर और उड़द की बुवाई पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले घटी है।
खरीफ तिलहनों की बुवाई चालू खरीफ में बढ़ी है, इनकी बुवाई बढ़कर 162.47 लाख हैक्टेयर में ही चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई 154.34 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन की बुवाई चालू सीजन में बढ़कर 110.72 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक सोयाबीन की बुवाई केवल 101.56 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई थी। मूंगफली की बुवाई घटकर चालू सीजन में अभी तक केवल 35.32 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में मूंगफली की बुवाई 36.58 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। केस्टर सीड की बुवाई चालू खरीफ में घटकर 2.41 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 3.02 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी।
मोटे अनाजों की बुवाई भी पिछड़ कर चालू खरीफ में अभी तक 160.16 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक मोटे अनाजों की बुवाई 165.58 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। मोटे अनाजों में मक्का की बुवाई चालू सीजन में 74.34 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 74.44 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। बाजरा की बुवाई चालू सीजन में घटकर अभी तक केवल 60.11 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 67.38 लाख हैक्टेयर में बाजरा की बुवाई हो चुकी थी। ज्वार की बुवाई चालू खरीफ में पिछले साल के 17.23 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 15.54 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है।
कपास की बुवाई भी चालू खरीफ सीजन में 3.85 फीसदी पिछे चल रही है। अभी तक देशभर में कपास की बुवाई केवल 112.60 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 117.11 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। गन्ने की बुवाई चालू खरीफ सीजन में बढ़कर 50.60 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक गन्ने की बुवाई 49.86 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई थी।....  आर एस राणा

सोयाबीन की बुवाई तो 9.02 फीसदी बढ़ी, लेकिन उत्पादक राज्यों के 30 जिलों में सूखे जैसे हालात

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन 2018-19 में भले ही सोयाबीन की बुवाई 9.02 फीसदी बढ़कर 110.72 लाख हैक्टेयर में हुई हो है लेकिन प्रमुख उत्पादक राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के करीब 30 जिलों में बारिश सामान्य से काफी कम होने के कारण सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। अत: चालू महीने में उत्पादक राज्यों में बारिश नहीं हुई तो फिर फसल को नुकसान की आशंका बढ़ जायेगी, जिसका असर उत्पादन पर पड़ेगा।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार पहली जून से 10 अगस्त तक सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश के 20 जिलों में बारिश सामान्य से कम हुई है तथा राज्य के 10 जिलों में तो सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। उधर महाराष्ट्र के 33 जिलों में अभी तक सामान्य से कम बारिश हुई है तथा राज्य के 11 जिलों में सूखे जैसे हालता बने हुए हैं। इसी तरह से राजस्थान के 22 जिलों में 10 अगस्त तक बारिश सामान्य से कम हुई तथा राजय के 9 जिलों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं।
महाराष्ट्र के नानंदेड स्थित साई सिमरन फूड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि चालू महीने में उत्पादक राज्यों में बारिश काफी कम हुई है। अगर चालू महीने में एक-दो अच्छी बारिश नहीं हुई तो फिर फसल की प्रति हैक्टेयर उत्पादकता प्रभावित होने की आशंका है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में सोयाबीन की बुवाई बढ़कर 110.72 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 101.55 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। मध्य प्रदेश में चालू खरीफ में सोयाबीन की बुवाई बढ़कर 53.18 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई केवल 47.95 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। महाराष्ट्र में चालू सीजन में सोयाबीन की बुवाई 38.42 और राजस्थान में 10.45 लाख हैकटेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इन राज्यों में क्रमश: 37.04 और 9.19 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी।
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2017-18 में सोयाबीन का उत्पादन 109.34 लाख टन का हुआ था जबकि इसके पिछले साल इसका उत्पादन 131.59 लाख टन का हुआ था।........  आर एस राणा

पीडीएस में होगा दालों का आवंटन, राज्यों को 15 रुपये प्रति किलो की मिलेगी सब्सिडी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्रीय पूल से दलहन के बंपर स्टॉक को हल्का करने के लिए केंद्र सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से इनके आवंटन का फैसला किया है। राज्यों को सप्लाई होने वाली दालों पर केंद्र सरकार 15 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी देगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की गुरूवार को हुई बैठक में इस पर फैसला किया गया। इस योजना के तहत राज्यों को 34.88 लाख टन दलहन की सप्लाई की जाएगी और केंद्र सरकार को इसके लिए सब्सिडी के तौर पर 5,237 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे।
केंद्रीय पूल में दलहन का बंपर करीब 45 लाख टन का है जबकि अक्टूबर में खरीफ दलहन की नई फसल की आवक शुरू हो जायेगी। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के लिए दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में की गई बढ़ोतरी से आगामी खरीफ में खरीद भी ज्यादा होने का अनुमान है। इसीलिए केंद्रीय पूल से दलहन का स्टॉक बेचने का सार्वजनिक कपंनियों पर दबाव बना हुआ था, लेकिन कीमतें कम होने के कारण केंद्रीय पूल से बिक्री सीमित मात्रा में ही हो पा रही थी। सूत्रों के अनुसार सार्वजनिक कंपनियों के पास खरीफ विपणन सीजन 2017-18 के साथ ही रबी विपणन सीजन 2018-19 की खरीदी हुई दालों का स्टॉक भी रखा है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2017-18 में दलहन का उत्पादन रिकार्ड 245.1 लाख टन होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल इसका उत्पादन 231.3 लाख टन का उत्पादन हुआ था।..... आर एस राणा

दलहन आयात में 79 फीसदी की भारी गिरावट, फिर भी तेजी की संभावना नहीं

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सराकार द्वारा उठाये गए कदमों से दालों के आयात में तो कमी आई है, लेकिन उत्पादक राज्यों की मंडियों दालों के भाव अभी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे ही बने हुए हैं। चालू वित्त वर्ष 2018-19 की तिमाही में दालों का आयात 79 फीसदी घटकर 3.50 लाख टन का हुआ है। दालों का केंद्रीय पूल में बंपर करीब 50 लाख टन से ज्यादा का स्टॉक है तथा आगामी दिनों में केंद्रीय पूल से दालों की बिक्री में तेजी आ सकती है, इसलिए दालों की कीमतों में बड़ी तेजी की संभावना नहीं है। 
मंडियों में भाव एमएसपी से नीचे
उत्पादक राज्यों की मंडियों में चना के भाव 3,800 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि केंद्र सरकार ने फसल सीजन 2017-18 के लिए चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। इसी तरह से उत्पादक मंडियों में मसूर के भाव 3,500 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे है, मसूर का एमएसपी 4,250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
मूल्य के हिसाब से भारी गिरावट
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान दालों का आयात घटकर 3.50 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में इनका आयात 16.55 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में दालों का आयात घटकर 969 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 6,038 करोड़ रुपये का हुआ था।
चना, मसूर और मटर पर आयात शुल्क
केंद्र सरकार ने चना, मसूर और मटर के आयात पर आयात शुल्क लगा रखा है, जबकि अरहर, मूंग और उड़द के आयात की मात्रा तय कर रखी है, साथ ही केवल दाल मिलर्स ही आयात कर सकते हैं। जिससे दलहन के कुल आयात में कमी आई है।
वित्त वर्ष 2016-17 में हुआ था रिकार्ड आयात
वित्त वर्ष 2017-18 में दलहन का कुल आयात  56.1 लाख टन का हुआ था, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष 2016-17 में इनका आयात रिकार्ड 66.09 लाख टन का हुआ था।
रिकार्ड उत्पादन का अनुमान
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2017-18 में दलहन का उत्पादन रिकार्ड 245.1 लाख टन होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल इसका उत्पादन 231.3 लाख टन का उत्पादन हुआ था।........  आर एस राणा

डीओसी के निर्यात में 24 फीसदी की बढ़ोतरी, सरसों डीओसी का निर्यात ज्यादा बढ़ा

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले चार महीनों अप्रैल से जुलाई के दौरान डीओसी का निर्यात 24 फीसदी बढ़कर 8,98,872 टन का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 7,25,250 टन का ही हुआ था। इस दौरान सरसों डीओसी के निर्यात में ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार जुलाई में डीओसी के निर्यात में 18 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 1,48,983 टन का हुआ है जबकि पिछले साल जुलाई में इनका निर्यात 1,25,904 टन का ही हुआ था। अप्रैल से जुलाई के दौरान सरसों डीओसी का निर्यात बढ़कर 3,69,646 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात केवल 1,65,609 टन का हुआ था। सोया डीओसी का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में बढ़कर 3,12,126 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 3,00,046 टन का ही हुआ था।
एसईए के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी वी मेहता के अनुसार अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वार के कारण आगामी दिनों में भारत से डीओसी और सोयाबीन का निर्यात चीन को होने की संभावना है। चीन ने वर्ष 2012 के बाद भारत से आयात बंद कर दिया था। इसके लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधिकारियों ने हाल ही में चीन का दौरा भी किया है।
घरेलू बाजार में तिलहनों की कीमतों में गिरावट आने से जुलाई में डीओसी की कीमतों में  जून के मुकाबले नरमी आई है। जुलाई में भारतीय बंदरगाह पर सोया डीओसी के भाव घटकर 433 डॉलर प्रति टन रह गए जबकि जून में इसके भाव 445 डॉलर प्रति टन थे। इसी तरह से सरसों डीओसी के भाव जून के 227 डॉलर प्रति टन से घटकर जुलाई में 217 डॉलर प्रति टन रह गए। ........  आर एस राणा

यूरिया खाद के घरेलू उत्पादन में आई कमी, आयात में हुई बढ़ोतरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद के आयात में कमी लाने की केंद्र सरकार की कोशिश वर्ष 2017-18 में यूरिया खाद पर तो लागू नहीं हो पाई। वर्ष 2017-18 में यूरिया खाद का आयात बढ़कर 59.75 लाख टन का हुआ है जबकि इसके पिछले साल में इसका आयात 54.81 लाख टन का ही हुआ था। इस दौरान यूरिया खाद का घरेलू उत्पादन भी 242.01 लाख टन से घटकर 240.23 लाख टन का ही रह गया।
कुल खपत में यूरिया खाद की हिस्सेदारी ज्यादा
देश में खाद की कुल खपत में यूरिया की हिस्सेदारी 50 फीसदी के करीब है, सालाना इसकी खपत करीब 300 लाख टन की होती है। कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2017-18 में 599.75 लाख टन खाद की मांग रही थी। खरीफ सीजन 2018 में खाद की कुल खपत 303.46 लाख टन होने का अनुमान है, इसमें 148.91 लाख टन यूरिया, 49.19 लाख टन डीएपी, 20.26 लाख टन एमओपी, 49.74 लाख टन मिश्रित तथा 26.26 लाख टन एसएसपी है।
यूरिया खाद के आयात में हुई बढ़ोतरी
रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के जून महीने में यूरिया खाद का आयात बढ़कर 7.86 लाख टन का हुआ है जबकि मई में इसका आयात 7.28 लाख टन का ही हुआ था। चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान यूरिया का आयात बढ़कर 21.41 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2016-17 की समान अवधि में इसका आयात 17.04 लाख टन का ही हुआ था।
डीएपी खाद का आयात ज्यादा
डीएपी खाद का आयात चालू वित्त वर्ष के जून महीने में बढ़कर 10.62 लाख टन का हुआ है जबकि मई में इसका आयात केवल 8.19 लाख टन का ही हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान डीएीपी का आयात बढ़कर 20.63 लाख टन का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष 2016-17 की समान अवधि में डीएपी का आयात 10.98 लाख टन का ही हुआ था।  ....  आर एस राणा

कपास का निर्यात बढ़कर 70 लाख गांठ होने का अनुमान, बकाया स्टॉक में आयेगी कमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2017-18 में कपास का निर्यात बढ़कर 70 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका निर्यात केवल 58.21 लाख गांठ का ही हुआ था। चालू सीजन में आयात भी घटकर आधा ही होने का अनुमान है। ऐसे में पहली अक्टूबर को शुरू होने वाली नई फसल की आवक के समय बकाया स्टॉक 14 लाख गांठ घटकर केवल 22 लाख गांठ ही बचने का अनुमान है इसलिए घरेलू मंडियों में कपास की कीमतों में और तेजी आने का अनुमान है।
जुलाई तक 67 लाख गांठ की हो चुकी हैं निर्यात शिपमेंट
कॉटन एसोसिएशन आॅफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष अतुल एस गणात्रा के अनुसार चालू फसल सीजन 2017-18 में जुलाई के आखिर तक 67 लाख गांठ कपास के निर्यात की शिपमेंट हो चुकी है तथा सीजन की समाप्ति तक निर्यात बढ़कर 70 लाख गांठ हो जायेगा। उन्होंने बताया कि कपास का आयात भी पिछले साल के 30.94 लाख गांठ से घटकर 15 लाख गांठ ही होने का अनुमान है।
घरेलू खपत ज्यादा होने का अनुमान 
सीआईए के अनुसार चालू फसल सीजन में कपास का उत्पादन पिछले साल के 337.25 लाख गांठ से बढ़कर 365 लाख गांठ होने का अनुमान है तथा कपास की घरेलू खपत भी चालू सीजन में बढ़कर 324 लाख गांठ की होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसकी खपत 310.14 लाख गांठ की ही हुई थी। खपत बढ़ने के साथ ही जहां आयात में भी कमी आयेगी और निर्यात में बढ़ोतरी होगी, इसलिए पहली अक्टूबर को नए सीजन के शुरू में कपास का बकाया स्टॉक पिछले साल के 36.07 लाख गांठ से घटकर केवल 22 लाख गांठ ही बचने का अनुमान है।
उत्पादक मंडियों में दैनिक आवक घटी
सीआईए के अनुसार चालू फसल सीजन में जुलाई के आखिर तक उत्पादक मंडियों में 353.45 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है, तथा उत्पादक राज्यों में बकाया स्टॉक कम होने से दैनिक आवक सीमित मात्रा में ही हो रही है।
बुवाई पिछले साल की तुलना में कम
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास की बुवाई घटकर 109.79 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 114.34 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी।.........  आर एस राणा

10 अगस्त 2018

गुजरात: बारिश की स्थिति में आया सुधार, खरीफ फसलों की बुवाई में हुई बढ़ोतर

आर एस राणा
नई दिल्ली। हाल ही में हुई बारिश से गुजरात में खरीफ फसलों की बुवाई में सुधार आया है। छह अगस्त तक राज्य में खरीफ फसलों की बुवाई सामान्य के 81.70 फीसदी क्षेत्रफल में हो चुकी है। खरीफ की प्रमुख फसल कपास और सोयाबीन की बुवाई सामान्य से भी ज्यादा क्षेत्रफल में हुई है, जबकि मूंगफली की बुवाई भी तय लक्ष्य के 96 फीसदी क्षेत्रफल में हो चुकी है।
राज्य के कृषि निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मध्य जुलाई के बाद से राज्य में अच्छी बारिश हुई है जिससे फसलों की बुवाई में तेजी आई है। राज्य में 6 अगस्त तक कपास की बुवाई बढ़कर 26.58 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 26.48 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। राज्य में कपास की बुवाई का लक्ष्य 26.02 लाख हैक्टेयर का तय किया गया था। इसी तरह से चालू खरीफ में सोयाबीन की बुवाई बढ़कर 1.32 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 1.24 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी।
तिलहन की प्रमुख फसल मूंगफली की बुवाई 14.53 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 16.19 लाख हैक्टेयर में हुई थी। केस्टर सीड की बुवाई राज्य में 1.03 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 1.66 लाख हैक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी। ग्वार सीड की बुवाई अभी तक राज्य में केवल 86,338 हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 1,67,700 हैक्टेयर में हो चुकी थी। सामान्यत: ग्वार सीड की बुवाई राज्य में 2.56 लाख हैक्टेयर में होती है।
दालों की बुवाई चालू खरीफ में राज्य में 3.85 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 5.28 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर की बुवाई राज्य में 2.25 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 2.59 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। मूंग और उड़द की बुवाई चालू खरीफ में घटकर क्रमश: 49,269 और 99,955 हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 1.13 और 1.32 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी।
मक्का की बुवाई राज्य में 3.05 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 3 लाख हैक्टेयर में ही बुवाई हो पाई थी। बाजरा और ज्वार की बुवाई चालू खरीफ में राज्य में क्रमश: 1.51 लाख हैक्टेयर और 41,182 हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय इनकी बुवाई 1.71 लाख हैक्टेयर और 40,600 हैक्टेयर में हुई थी। धान की रोपाई चालू खरीफ में राज्य में 6.80 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछलीे साल इस समय तक इसकी बुवाई 7.11 लाख हैक्टेयर में हुई थी।............  आर एस राणा

सोयाबीन की बुवाई में बढ़ोतरी, आगे भाव में और मंदा आने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ में सोयाबीन की बुवाई में 10.62 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है तथा अभी तक मौसम भी अनुकूल रहा है इसीलिए सोयाबीन की कीमतों में गिरावट बनी हुई है। सोमवार को उत्पादक मंडियों में इसके भाव घटकर 3,600 से 3,625 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। आगामी दिनों में मौसम अनुकूल रहा तो इसके मौजूदा भाव में और भी गिरावट आने का अनुमान है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में सोयाबीन की बुवाई बढ़कर 109.50 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 98.99 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू मानसूनी सीजन में पहली जून से 6 अगस्त तक महाराष्ट्र में मानसूनी बारिश सामान्य से 3 फीसदी ज्यादा ही हुई है लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान में इस दौरान क्रमश: सामान्य के मुकाबले 8 और 2 फीसदी कम हुई है। ऐसे में चालू महीने के मध्य तक उत्पादक राज्यों में एकाध अच्छी बारिश हो गई, तो आगे इसके भाव में और भी 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने का अनुमान है।
सोयाबीन की कारोबारी फर्म साई सिमरन फूड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि अभी तक प्रमुख उत्पादक राज्यों में मानसूनी बारिश अच्छी हुई है, इसलिए फसल अच्छी स्थिति में है। सोया डीओसी में निर्यात मांग कमजोर होने के कारण प्लांटों की मांग सोयाबीन में कमजोर है ऐसे में आगामी दिनों में उत्पादक राज्यों में मौसम अनुकूल रहा तो, सोयाबीन के भाव में और भी गिरावट आयेगी।
सोयाबीन कारोबारी हेंमत जैन ने बताया कि उत्पादक राज्यों की मंडियों में सोमवार को सोयाबीन के भाव 3,600 से 3,625 प्रति क्विंटल रहे हैं। सोया डीओसी के भाव 31,000 से 31,200 रुपये प्रति टन रहे जबकि इंदौर में सोया रिफाइंड तेल के भाव 740 से 745 रुपये प्रति 10 किलो रहे। उन्होंने बताया कि विश्व बाजार में सोयाबीन की कीमतों में गिरावट आई है, जबकि बंगलादेश, नेपाल और श्रीलंका के रास्ते सस्ते खाद्य तेलों का आयात हो रहा है। इसीलिए सोयाबीन की कीमतों पर दबाव बना हुआ है।............ आर एस राणा

04 अगस्त 2018

मौसम विभाग: अगस्त और सितंबर में 95 फीसदी बारिश होने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने अगस्त और सितंबर में सामान्य बारिश होने का अनुमान जारी किया है। शुक्रवार को आईएमडी द्वारा जारी भविष्यवाणी के अनुसार अगस्त-सितंबर में देशभर में 95 फीसदी बारिश (8 फीसदी कम या ज्यादा) होने का अनुमान है।
आईएमडी के अनुसार चालू मानसूनी सीजन के पहले दो महीनों जून से जुलाई के दौरान बिहार, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़ अन्य राज्यों में अच्छी बारिश हुई है। मानसून के बचे हुए सीजन में भी मानसूनी बारिश सामान्य होने के साथ ही राज्यवार भी अच्छी होने का अनुमान है जोकि फसलों के लिए लाभदायक होगी।
आईएमडी के अनुसार चालू मानसून सीजन में पहली जून से 2 अगस्त तक देशभर में सामान्य के मुकाबले 7 फीसदी बारिश कम हुई है। इस दौरान मणिपुर में सबसे ज्यादा 63 फीसदी कम, मेघालय में 43 फीसदी कम, अरूणाचल प्रदेश में 35 फीसदी कम, नागालैंड में 28 फीसदी कम, असम में 24 फीसदी कम, झारखंड में 24 फीसदी कम, बिहार में 22 फीसदी कम और पश्चिम बंगाल में भी 15 फीसदी कम बारिश हुई है। इस दौरान महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है।..... आर एस राणा

मानसूनी बारिश सामान्य के मुकाबले 8 फीसदी कम, खरीफ फसलों की बुवाई में आया सुधार

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में देशभर में मानसूनी बारिश सामान्य के मुकाबले 8 फीसदी कम होने के बावजूद फसलों की बुवाई में सुधार आया है। देशभर में 854.56 लाख हैक्टेयर में खरीफ फसलों की बुवाई हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुवाई 870.47 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। हालांकि पिछले साल के मुकाबले अभी भी बुवाई 1.83 फीसदी पिछे है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 262.73 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई 274.16 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। धान की रोपाई पिछले साल की तुलना में 4.17 फीसदी पिछे चल रही है। दालों की बुवाई चालू खरीफ सीजन में घटकर 115.57 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 120.57 लाख हैक्टेयर में दालों की बुवाई हो चुकी थी। खरीफ दलहन की प्रमुख फसलों अरहर और मूंग की बुवाई पिछले साल से बढ़ी है लेकिन उड़द की बुवाई पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 11.28 फीसदी पिछड़ी है।
खरीफ तिलहनों की बुवाई चालू खरीफ में बढ़ी है, इनकी बुवाई बढ़कर 157.54 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई 148.93 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन की बुवाई चालू सीजन में बढ़कर 109.50 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक सोयाबीन की बुवाई केवल 98.99 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई थी। मूंगफली की बुवाई घटकर चालू सीजन में अभी तक केवल 33.64 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में मूंगफली की बुवाई 34.98 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। केस्टर सीड की बुवाई चालू खरीफ में घटकर 1.50 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 2.72 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी।
मोटे अनाजों की बुवाई भी पिछड़ कर चालू खरीफ में अभी तक 151.35 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक मोटे अनाजों की बुवाई 155.87 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। मोटे अनाजों में मक्का की बुवाई चालू सीजन में बढ़कर 72.48 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 71.36 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। बाजरा की बुवाई चालू सीजन में घटकर अभी तक केवल 55.17 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 63.29 लाख हैक्टेयर में बाजरा की बुवाई हो चुकी थी। ज्वार की बुवाई चालू खरीफ में पिछले साल के 14.79 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 16.53 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है।
कपास की बुवाई भी चालू खरीफ सीजन में 3.93 फीसदी पिछे चल रही है। अभी तक देशभर में कपास की बुवाई केवल 109.79 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 114.34 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। गन्ने की बुवाई चालू खरीफ सीजन में बढ़कर 50.59 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक गन्ने की बुवाई 49.86 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई थी।.............. आर एस राणा

मध्य प्रदेश: दाल मिलों को राहत, दूसरे राज्यों से आने वाली दालों को मंडी टैक्स से छूट

आर एस राणा
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में राज्य सरकार ने दाल मिलों को राहत देते हुए पड़ौसी राज्यों से आने वाली दालों पर 2.25 फीसदी मंडी शुल्क को समाप्त कर दिया है। यह राहत केवल दाल मिलों को ही मिलेगी, व्यापारी अगर दूसरे राज्यों से दालें लेकर आते हैं तो उन्हें मंडी टैक्स चुकाना होगा।
दलहन उत्पादन में अग्रणी राज्य मध्य प्रदेश में चालू खरीफ सीजन में पहली जून से पहली अगस्त तक मानसूनी बारिश सामान्य से 3 फीसदी ज्यादा हुई है, इसके बावजूद भी राज्य में दलहन की बुवाई पिछले साल से पिछे चल रही है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में राज्य में दालों की बुवाई अभी तक केवल 21.79 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 24 लाख हैक्टेयर में दलहन की बुवाई हुई थी...... आर एस राणा

बासमती चावल के निर्यात में आई 7 फीसदी की कमी, गैर-बासमती का 12 फीसदी बढ़ा

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान जहां बासमती चावल के निर्यात में मात्रा के हिसाब से 7 फीसदी की गिरावट आई है वही गैर बासमती चावल के निर्यात में इस दौरान 12.57 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि मूल्य के हिसाब से गैर-बासमती के साथ ही बासमती चावल का निर्यात इस दौरान बढ़ा है।
एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों में बासमती चावल का निर्यात घटकर 11.69 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 12.58 लाख टन का ही हुआ था। गैर बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान बढ़कर 19.79 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 17.58 लाख टन का हुआ था।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से जून के दौरान बासमती चावल का निर्यात 8,585 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की सामान अवधि में इसका निर्यात 8,181 करोड़ रुपये का ही हुआ था। गैर बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान बढ़कर 5,562 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 4,608 करोड़ रुपये मूल्य का ही हुआ था।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार विश्व बाजार में गैर-बासमती चावल का स्टॉक कम होने के कारण हमारे यहां से निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। बासमती चावल के निर्यात में आगामी महीनों में सुधार आने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि बासमती चावल का कुल निर्यात 40 लाख टन के करीब ही होने का अनुमान है। 
हरियाणा की कैथल मंडी के चावल कारोबारी रामनिवास खुरानिया ने बताया कि बासमती चावल में निर्यात सौदे कम होने के कारण धान में मिलों की मांग कमजोर बनी हुई है। मंडी में पूसा-1,121 बासमती धान का भाव गुरूवार को 3,600 रुपये प्रति क्विंटल रहा। पूसा-1,121 बासमती चावल सेला का भाव 6,450 रुपये और पूसा 1,509 बासमती चावल सेला का भाव 6,150 से 6,200 रुपये प्रति क्विंटल रहा।.....  आर एस राणा