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28 अप्रैल 2019

केंद्र ने गेहूं का आयात शुल्क 10 फीसदी बढ़ाया, रिकार्ड उत्पादन का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं के आयात शुल्क में 10 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी की गई अधिसूचना के अनुसार आयात शुल्क को 30 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया गया है।
बैंगलुरु के गेहूं आयातक नवीन गुप्ता ने बताया कि 30 फीसदी आयात शुल्क पर भी आयात सौदे नहीं हो रहे है, अत: 40 फीसदी पर आयात की संभावना पूरी समाप्त हो गई हैं। उन्होंने बताया कि यूक्रेन के गेहूं का भाव 215 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) है। अत: 40 फीसदी आयात शुल्क जोड़ दे तो, भारतीय बंदरगाह पहुंच इसका भाव 2,320 रुपये प्रति क्विंटल (बंदरगाह के खर्च मिलाकर) हो जायेगा तथा  बैंगलुरु मिल पहुंच इसका भाव 2,400 रुपये प्रति क्विंटल होगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से  बैंगलुरु पहुंच गेहूं के सौदे 2,130 से 2,180 रुपये प्रति क्विंटल के हो रहे हैं। आस्ट्रेलियाई गेहूं के भाव 270 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) हैं।
समर्थन मूल्य में 105 रुपये की बढ़ोतरी
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि पिछले रबी में इसका एमएसपी 1,735 रुपये प्रति क्विंटल था। अत: चालू रबी के लिए समर्थन मूल्य में 105 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है। केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में समर्थन मूल्य पर 357 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है जबकि पिछले रबी में 357.92 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। चालू रबी सीजन 2019 में देश में गेहूं की रिकार्ड पैदावार 991.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 971.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था। 
समर्थन मूल्य पर धीमी खरीद
चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की सरकारी खरीद 62.80 फीसदी पिछड़ कर 70.10 लाख टन ही हुई है जबकि पिछले रबी सीजन की समान अवधि में 188.49 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। अभी तक हुई कुल खरीद में सबसे ज्यादा हरियाणा से 38.68 लाख टन गेहूं खरीदा गया है, हालांकि पिछले साल राज्य से इस समय तक 66.08 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। पंजाब से चालू रबी में अभी तक समर्थन मूल्य पर केवल 6.51 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य से 72.07 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। मध्य प्रदेश से चालू रबी में 18.88 लाख टन गेहूं की खरीद ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 34.32 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। उत्तर प्रदेश से चालू रबी में 3.70 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि पिछले रबी की समान अवधि में 9.47 लाख टन की खरीद हो चुकी थी।..............आर एस राणा

खरीफ में 14.79 करोड़ टन खाद्यान्न के उत्पादन का लक्ष्य

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने खरीफ सीजन 2019-20 में देश में 14.79 करोड़ टन खाद्यान्न के उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। खरीफ की प्रमुख फसल चावल के उत्पादन का लक्ष्य 10.2 करोड़ टन है।  भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने हाल ही सामान्य मानसून रहने की भविष्यवाणी की थी। 
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार खरीफ सीजन 2018-19 में खाद्यान्न का उत्पादन 14.22 करोड़ टन का हुआ था, अत: आगामी खरीफ में खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य ज्यादा तय किया गया है। आगामी रबी सीजन 2019-20 में खाद्यान्न का उत्पादन 14.32 करोड़ टन के करीब होने का अनुमान है। 
खरीफ सम्मेलन 2019 में, अधिकारियों ने माना कि आगामी खरीफ सीजन में चावल का उत्पादन लक्ष्य 10.2 करोड़ टन का तय किया गया है जबकि दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार खरीफ सीजन 2018-19 में चावल का उत्पादन 10.19 करोड़ टन होने का अनुमान है। और मक्का के उत्पादन लक्ष्य 213 लाख टन का तय किया गया है। आगामी खरीफ में दालों के उत्पादन का लक्ष्य 101 लाख टन और तिलहनों के उत्पादन का लक्ष्य 258.4 लाख टन का तय किया गया है। 
कपास के उत्पादन का लक्ष्य 357.5 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) होने का लक्ष्य तय किया गया है। .......आर एस राणा

गेहूं की सरकारी खरीद 63 फीसदी पिछड़ी, 77.10 लाख टन की हुई है खरीद

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की सरकारी खरीद 62.80 फीसदी पिछड़ कर 70.10 लाख टन ही हुई है जबकि पिछले रबी सीजन की समान अवधि में 188.49 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार गेहूं के उत्पादक राज्यों में अप्रैल में हुई बेमौसम बारिश से आवक में देरी हुई है, जिस कारण सरकारी खरीद धीमी गति से हुई है। उन्होंने बताया कि उत्पादक राज्यों में मौसम साफ है इसलिए आगे दैनिक आवक बढ़ेगी, जिससे खरीद में भी तेजी आयेगी। अभी तक हुई कुल खरीद में सबसे ज्यादा हरियाणा से 38.68 लाख टन गेहूं खरीदा गया है, हालांकि पिछले साल राज्य से इस समय तक 66.08 लाख टन की खरीद हो चुकी थी।
पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से खरीद पिछे
पंजाब से चालू रबी में अभी तक समर्थन मूल्य पर केवल 6.51 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य से 72.07 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। पंजाब से खरीद का लक्ष्य 125 लाख टन का है। मध्य प्रदेश से चालू रबी में 18.88 लाख टन गेहूं की खरीद ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 34.32 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। उत्तर प्रदेश से चालू रबी में 3.70 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि पिछले रबी की समान अवधि में 9.47 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। 
राजस्थान से भी खरीद पिछड़ी
राजस्थान से चालू रबी में एमएसपी पर 2.22 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है, जबकि पिछले रबी की समान अवधि में राज्य से 6.14 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। अन्य राज्यों में उत्तराखंड से 2,799 टन, चंडीगढ़ से 3,470 टन और गुजरात से 2,892 टन गेहूं ही खरीदा गया है। 
उत्पादन अनुमान ज्यादा
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में समर्थन मूल्य पर 357 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है जबकि पिछले रबी में 357.92 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 991.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले रबी में 971.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था। 
गेहूं का समर्थन मूल्य 1,840 रुपये 
चालू रबी विपणन सीजन के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाकर 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि पिछले रबी में गेहूं की खरीद 1,735 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की गई थी।...............  आर एस राणा

ब्लॉक स्तर पर होगा मौसम का पूर्वानुमान जारी, खेती को होगा फायदा

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) वर्ष 2020 तक देश के 660 जिलों के सभी 6,500 ब्लॉकों के स्तर पर मौसम का पूर्वानुमान जारी करने की क्षमता स्थापित करने की परियोजना पर तेजी से काम कर रहा है। इससे खेती को मौसम की अनिश्चितताओं की मार से निपटने में मदद मिलेगी।
वर्तमान में मौसम विभाग जिला आधार पर परामर्श जारी करता है। आईएमडी ने मौसन पूर्वानुमान और एएएस सेवाओं का विस्तार ब्लॉक स्तर तक करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के साथ समझौता किया है। मंगलवार को फिक्की में आयोजित एक कार्यक्रम में आईएमडी के उप महानिदेशक एस डी अत्री ने बताया कि आईसीएआर के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के बाद इस दिशा में काफी काम किया गया है। काम तेज गति से चल रहा है, हम लोगों की भर्ती कर रहे हैं और उन्हें प्रशिक्षित कर रहे हैं।
200 ब्लॉक में चल रहा है पायलट प्रोजेक्ट
उन्होंने कहा कि मौसम पूर्वानुमानों को और सटीक बनाना और कृषि मौसम परामर्श सेवाओं (एएएस) को अधिक उपयोगी बनाना सबसे चुनौती भरा काम है। उन्होंने कहा कि 200 ब्लॉक में पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। हमारा लक्ष्य वर्ष 2020 तक 660 जिलों के 6,500 ब्लॉकों को कवर करने का है। इससे फसलों को मौसम की अनिश्चितताओं से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी।
वर्ष 2020 तक 9.5 करोड़ किसानों को कवर करने का लक्ष्य
अत्री ने कहा कि मौसम विभाग के पास जिला स्तर पर मौसम आधारित सलाह प्रसारित करने के लिए 130 फील्ड इकाइयां हैं। देश के 530 जिलों में ग्रामीण कृषि मौसम सेवा के तहत कृषि विज्ञान केंद्र में ऐसी इकाइयों को स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में 4 करोड़ किसानों को एसएमएस और एमकिसान पोर्टल के जरिए जिला स्तर का मौसम पूर्वानुमान उपलब्ध कराया जा रहा है। ब्लॉक स्तर पर सेवाओं का विस्तार करके वर्ष 2020 तक देशभर के 9.5 करोड़ किसानों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है।
मिलकर काम करने की जरुरत
आईसीएआर के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) ए के सिंह ने इस अवसर पर कहा कि कृषि गतिविधियों में विस्तार के लिए सार्वजनिक, निजी और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को साथ काम करने की जरूरत है।......आर एस राणा

पंजाब ने केंद्र से गेहूं के मानकों में ढील देने की मांग की

आर एस राणा
नई दिल्ली। बेमौसम बारिश के कारण फसल को हुए नुकसान को देखते हुए पंजाब सरकार ने गेहूं के खरीद मानदंडों में छूट दिये जाने की मांग की है। राज्य के मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है कि बेमौसम बारिश के कारण किसानों को हुई फसल के नुकसान के मद्देनजर गेहूं खरीद के लिए नियमों में ढील दी जाये।
उधर केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने आरोप लगाया कि राज्य में गेहूं किसानों को परेशान किया जा रहा है और नमी जांच करने वाली मशीनों में ‘संगठित धांधलेबाजी’ के माध्यम से धन ऐंठा जा रहा है।
पंजाब से अभी तक केवल 2.90 लाख टन की हुई है खरीद
कटाई के समय हुई बेमौसम बारिश से गेहूं की फसल में नमी की मात्रा बढ़ गई, जिस कारण मंडियों में किसानों से खरीद कम की जा रही है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार राज्य से चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में 22 अप्रैल तक 2.90 लाख टन गेहूं की खरीद ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर की गई है। चालू रबी में राज्य से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 125 लाख टन का तय किया गया है तथा खरीद के लिए राज्य में एफसीआई ने 413 और राज्य सरकार की एजेंसियों ने 1,423 केंद्र खोले हुए हैं। राज्य की मंडियों से गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद पहली अप्रैल से शुरू हो गई थी, तथा खरीद 25 मई 2019 तक जारी रहेगी।
कुल खरीद 55.17 लाख टन
एफसीआई के अनुसार चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में एमएसपी पर कुल 55.17 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है, इसमें सबसे ज्यादा हरियाणा से 28.54 लाख टन, मध्य प्रदेश से 18.89 लाख टन, उत्तर प्रदेश से 2.78 लाख टन और राजस्थान से 1.97 लाख टन गेहूं खरीदा गया है। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी सीजन में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 991.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल देश में 971.1 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। 
गेहूं का समर्थन मूल्य 1,840 रुपये
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है, जबकि पिछले रबी विपणन सीजन में गेहूं का एमएसपी 1,735 रुपये प्रति क्विंटल था। ........आर एस राणा

विश्व बाजार में कीमतें कम होने से कपास निर्यात दस साल के न्यूनतम स्तर पर

आर एस राणा
नई दिल्ली। कपास की पैदावार में आई कमी से घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में करीब 15 फीसदी की तेजी आ चुकी है जिसका असर निर्यात पर पड़ा है। उद्योग के अनुसार चालू सीजन में कपास का निर्यात घटकर 46-47 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) ही होने का अनुमान है जोकि पिछले दस साल का न्यूनतम होगा। विश्व बाजार में कपास की कीमतें कम है, जिसकी वजह से बंगलादेश जोकि मुख्यत: भारत से आयात करता है, इस समय ब्राजील से आयात सौदे कर रहा है।
किसानों की आय वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के के लिए केंद्र सरकार एग्री उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की बात तो करती है, लेकिन कपास में इसके उल्ट हुआ है। कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू सीजन में कपास का निर्यात घटकर 47 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि कॉटन एडवाईजरी बोर्ड (सीएबी) ने नवंबर में पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू सीजन में 65 लाख गांठ कपास के निर्यात का लक्ष्य तय किया था, जोकि असंभव है। पिछले सीजन में देश से 69 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। चालू सीजन में कपास का आयात भी बढ़कर 27 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 15 लाख गांठ का आयात हुआ था। उन्होंने बताया कि भारत में कपास का आयात अमेरिका से हो रहा है। 
भारत से निर्यात पड़ते नहीं
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में तेजी आई है जबकि विश्व बाजार में दाम कम हुए हैं। इसलिए भारत से निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं। बंगलादेश भारतीय कपास का सबसे बड़ा आयातक देश है, वह इस समय ब्राजील से कपास की खरीद कर रहा है। उन्होंने बताया कि भारतीय कपास शंकर-6 किस्म का भाव बंगलादेश पहुंच 92 से 93 डॉलर प्रति पाउंड है, जबकि ब्राजील की कपास बंगलादेश पहुंच 89 से 90 डॉलर प्रति पाउंड है।
निर्यातकों को पहले के निर्यात सौदों में लग रहा है घाटा
उन्होंने बताया कि चालू सीजन में अक्टूबर 2018 से मार्च 2019 तक 42 से 43 लाख गांठ कपास के निर्यात सौदे हुए हैं, जबकि इस दौरान शिपमेंट 37 से 38 लाख गांठ की ही हुई है। उन्होंने बताया कि पहले से हुए निर्यात सौदों में निर्यातकों को घाटा लग रहा है, इसलिए कुछ सौदों की सेटलमेंट भी हो रही है। भारत से कपास का सबसे ज्यादा निर्यात बंगलादेश और वियतनाम को होता है, इसके अलावा चीन और पाकिस्तान मुख्य आयातक है। उन्होंने बताया कि बंगलादेश इस समय ब्राजील से आयात कर रहा है जबकि वियतनाम, अमेरिका से आयात कर रहा है। संबंधों में खटास होने के बाद से पाकिस्तान को भी कपास के नए निर्यात सौदे नहीं हो रहे हैं।
सीसीआई ई-निलामी के माध्यम से बेच रही है कपास
कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया निगम घरेलू मंडियों में ई-निविदा के माध्यम कपास बेच रही है तथा अभी तक एक लाख गांठ कपास बेची जा चुकी है। निगम ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 10.7 लाख गांठ कपास की खरीद की थी। उन्होंने बताया कि अहमदाबाद में शुकर-6 किस्म की कपास के भाव बढ़कर 47,000 से 47,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) हो गए, जबकि सीजन के शुरू में इसका भाव 41,000 से 41,500 रुपये प्रति कैंडी था। मई महीने के न्यूयार्क वायदा में कपास का भाव 8 अप्रैल 2019 को 79.08 सेंट प्रति पाउंड था जोकि घटकर 77.31 सेंट प्रति पाउंड रह गया। विदेशी बाजार में कीमतों में कमी आई है।
उद्योग 27 लाख गांठ घटा चुका है उत्पादन अनुमान
उद्योग ने आरंभिक उत्पादन अनुमान में की 27 लाख गांठ की कटौती
सीएआई के अनुसार चालू सीजन में कपास का उत्पादन घटकर 321 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि अक्टूबर 2018 में सीजन के शुरू में सीएआई ने 348 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान जारी किया था। उद्योग पहले के अनुमान में 27 लाख गांठ की कटौती कर चुका है। कपास कारोबारी नवीन ग्रोवर ने बताया कि घरेलू मंडियों में कपास का बकाया स्टॉक कम होने के कारण यार्न मिलें पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रही है। कपास की नई फसल सितंबर-अक्टूबर में आयेगी इसलिए घरेलू बाजार में अभी कपास की कीमतों में ज्यादा मंदे की संभावना नहीं है। ................ आर एस राणा

21 अप्रैल 2019

सीसीआई ने समर्थन मूल्य पर 10.7 लाख गांठ कपास खरीदी

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ विपणन सीजन 2018-19 में कॉटन कार्पोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएपी) पर 10.7 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास की खरीद की है। कुल खरीद में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी करीब 70 फीसदी तेलंगाना और महाराष्ट्र की है।
सीसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार उत्पादक मंडियों में कपास के भाव इस समय समर्थन मूल्य से उंचे भाव चल रहे हैं, इसलिए मंडियों में कपास बेची जा रही है। उन्होंने बताया कि कपास की बिक्री बाजार भाव पर की जा रही है। चालू सीजन में तेलंगाना से सबसे ज्यादा 7.77 लाख गांठ और आंध्रप्रदेश से 1.95 लाख गांठ कपास खरीदी है। 
सीसीआई के अनुसार चालू सीजन में उत्पादक मंडियों में 16 अप्रैल तक 278.83 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 286.03 लाख गांठ की आवक हुई थी। चालू सीजन में उत्पादक राज्यों की मंडियों में अब केवल 22.76 फीसदी कपास ही बची हुइ है। सीसीआई के अनुसार चालू सीजन 2018-19 में 361 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है जबकि कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार उत्पादन 321 लाख गांठ ही होने का अनुमान है।
सीसीआई के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात की मंडियों में कपास की आवक 72.51 लाख गांठ, महाराष्ट्र की मंडियोें में 63.27 लाख गांठ, तेलंगाना की मंडियों में 35.46 लाख गांठ हो चुकी है। इसके अलावा राजस्थान की मंडियों में 25.91 लाख गांठ, हरियाणा की मंडियों में 21.95 लाख गांठ, मध्य प्रदेश की मंडियों में 20.75 लाख गांठ, आंध्रप्रदेश की मंडियों में 10.27 लाख गांठ, कर्नाटक की मंडियों में 11.56 लाख गांठ की आवक हो चुकी है।............  आर एस राणा

मध्य प्रदेश में समर्थन मूल्य पर 15 लाख टन गेहूं की हो चुकी है खरीद

आर एस राणा
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 15 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। राज्य के दो लाख किसानों से बीते साल की इसी अवधि तक खरीदे गए गेहूं की तुलना में 1.60 लाख टन अधिक है। साथ ही इसका सुरक्षित भंडारण किया जा रहा है।
खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारियों के अनुसार राज्य में 25 मार्च से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी शुरू हुई है तथा 17 अप्रैल तक राज्य में 15 लाख मीट्रिक टन गेंहू की खरीदी की गई। पिछले साल की तुलना में इस साल 600 खरीदी केंद्र ज्यादा बनाए गए हैं। समितियां किसानों के खातों में सीधे भुगतान कर रही हैं। राज्स से चालू रबी में 75 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया गया है, जबकि पिछले रबी सीजन में राज्य से 73.13 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। 
कुल खरीदे गए गेहूं में से 71 फीसदी का मंडियों से हो चुका है उठाव
आधिकारिक तौर पर दावा किया गया है कि खरीदी में कोई दिक्कत न आए इसके लिए अगले एक माह की खरीदी के लिए पर्याप्त बोरे उपलब्ध हैं। खरीदे गए गेहूं में से 71 फीसदी हिस्से को भंडारण स्थल तक भेजा जा चुका है। भंडारण के लिए 4 लाख टन से ज्यादा की क्षमता के सायलो बैग उपयोग में लगाए गए हैं तथा जहां भी भंडारण सुविधा की कमी है वहां 14 लाख मीट्रिक टन के ओपन कैंप बनाए गए हैं। पिछले साल खरीदा गया गेहूं अब भी कई गोदामों में रखा हुआ है, जिसे अन्यत्र भेजने के निर्देश दिए गए हैं।
मध्य प्रदेश सरकार दे रही है 160 रुपये बोनस
हाल ही में बेमौसम बारिश से मंडियों में रखा गेहूं भीग गया थी, इस स्थिति से निपटने के लिए सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए गए है कि खुले में गेहूं को न रखा जाए। राज्य सरकार की ओर से गेहूं किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। इस तरह कुल मिलाकर प्रति क्विंटल 2,000 हजार रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने चालू रबी सीजन के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,840 रुपये क्विंटल तय किया है। बीते साल समर्थन मूल्य 1735 रुपये क्विंटल था।
कुल खरीद का लक्ष्य 357 लाख टन 
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार अन्य राज्यों में हरियाणा से 13.68 लाख टन और पंजाब 0.75 लाख टन और राजस्थान से 1.19 लाख टन गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर हो चुकी है। बीते सप्ताह कई राज्यों में हुई बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं की फसल भीग गई थी, जिससे उत्पादक मंडियों में गेहूं की दैनिक आवक पिछले साल की तुलना में कम हो रही है। केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन में समर्थन मूल्य पर 357 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है। ...... आर एस राणा

19 अप्रैल 2019

दाल मिलें ही कर सकेंगी आयात, अप्रैल अंत तक देना होगा आवेदन

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने दलहन आयात के नियमों को सख्त कर दिया है। अब केवल दाल मिलें ही आयात कर सकेगी तथा मिलों को आयात के लिए केंद्र सरकार को 30 अप्रैल 2019 तक आवेदन देना होगा, उसके बाद सरकार पात्र मिलों को आयात लाइसेंस जारी करेगी।
विदेशी व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019—20 में केवल दाल मिलों को ही दलहन के आयात की अनुमति दी जायेगी, इसके लिए मिलों को केंद्र सरकार से आयात के लाइसेंस लेने के लिए 30 अप्रैल 2019 तक आवेदन करना होगा। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने आयातित दालों की जमाखोरी को रोकने के लिए यह कदम उठाया है।
उत्पादक मंडियों में भले ही किसानों को दालें समर्थन मूल्य से नीचे बेचनी पड़ रही है, इसके बावजूद केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 6.5 लाख टन दालों के आयात को मंजूरी दी हुई है। चालू वित्त वर्ष के लिए मूंग और उड़द के डेढ़-डेढ़ लाख टन आयात को, और अरहर के दो लाख टन तथा मटर के डेढ़ लाख टन आयात करने की मंजूरी दी गई है।
अरहर, उड़द, मूंग और मटर के आयात की मात्रा तय
केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए डेढ़ लाख टन मूंग का आयात आयातकों के माध्यम से किया जा सकेगा, इसके अलावा केंद्र सरकार ने जो अनुबंध किए है उसका आयात होगा। उड़द के आयात की अनुमति भी चालू वित्त वर्ष के लिए डेढ़ लाख, अरहर के आयात के आयात की 2 लाख टन की मात्रा तय की गई, इसके अलावा केंद्र सरकार ने जो अनुबंध अरहर आयात के केंद्रीय स्तर पर किए है, वह भी आयात होगा। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने मौजाम्बिक से 2 लाख टन के आयात अनुबंध किए हुए हैं। ऐसे में अरहर का आयात 4 लाख टन हो जायेगा। सरकार ने मटर के डेढ़ लाख टन के आयात की अनुमति दी है, जोकि वित्त वर्ष 2018-19 के एक लाख से ज्यादा है।
समर्थन मूल्य से नीचे बिक रहा है चना और मसूर
उत्पादक मंडियों में रबी दलहन की प्रमुख चना और मसूर समर्थन मूल्य से नीचे बिक रही है। दलहन कारोबारी राधाकिशन गुप्ता ने बताया कि उत्पादक मंडियों में चना के भाव 4,000 से 4,100 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि केंद्र सरकार ने चना का समर्थन मूल्य 4,620 रुपये रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की मंडियों में मसूर 3,800 से 3,900 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि मसूर का समर्थन मूल्य 4,475 रुपये प्रति क्विंटल है। 
बीते वित्त वर्ष में रोक के बावजूद आयात हुआ था ज्यादा
वित्त वर्ष 2018-19 के लिए केंद्र सरकार ने उड़द और और मूंग के आयात की सीमता डेढ़-डेढ़ लाख टन, और मटर के आयात की मात्रा एक लाख टन तथा अरहर के आयात सीमा तय की थी। इसके अलावा चना के आयात पर 60 फीसदी और मसूर के आयात पर 30 फीसदी आयात शुल्क लगाया था। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी तक ही 21 लाख टन दालों का आयात हो चुका है।
दालों की रिकार्ड पैदावार का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में दालों का रिकार्ड 240.2 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में 239.5 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था। देश में दालों की सालाना खपत भी 240 से 245 लाख टन की ही होती है।...... आर एस राणा

एग्री उत्पादों का निर्यात बढ़ा, बासमती चावल और प्रोसेस फूड में मांग ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान एग्री उत्पादों का कुल निर्यात मूल्य से हिसाब से बढ़कर 2,40,067.07 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में निर्यात 2,46,336.12 करोड़ रुपये का हुआ था। इस दौरान बासमती चावल के साथ ही प्रोसेस फूड उत्पादों के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। वित्त वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान एग्री उत्पादों का निर्यात 2,23,814.49 करोड़ रुपये का हुआ था।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी में मरीन उत्पादों का निर्यात 13,14,066 टन का 43,947.04 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में कुल 14,30,226.83 टन का 47,634.57 करोड़ रुपये का हुआ था। बासमती चावल का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से फरवरी के दौरान 38,55,135 टन का 28,598.91 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष में इसका कुल निर्यात 40,51,896 टन का 26,841.19 करोड़ रुपये का हुआ था।
गैर-बासमती चावल का निर्यात घटा
मंत्रालय के अनुसार बेफेलो मीट का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों 11,16,363 टन का 22,924.50 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि वित्त वर्ष 2017-18 में इसका निर्यात 13,48,225 टन का 25,988.45 करोड़ रुपये का हुआ था। मसालों का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों में 9,52,074 टन का 20,406.71 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान कुल निर्यात 10,81,335 टन का 20,013.68 करोड़ रुपये का हुआ था। गैर बासमती चावल का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से फरवरी के दौरान 67,11,007 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में गैर बासमती चावल का कुल निर्यात 86,33,237 टन का 22,927 करोड़ रुपये का हुआ था।
डीओसी के साथ ही चीनी के निर्यात में हुई बढ़ोतरी
डीओसी का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से फरवरी के दौरान 38,98,666 टन का 9,061.94 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में डीओसी का कुल निर्यात 35,26,526 टन का 6,968.90 करोड़ रुपये का हुआ था। चीनी का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से जनवरी के दौरान 32,68,074 टन का 7,892.50 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष में चीनी का निर्यात 17,58,036 टन का 5,228.73 करोड़ रुपये का ही निर्यात हुआ था।
केस्टर तेल का निर्यात मूल्य में घटा
केस्टर तेल का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान 5,584.73 करोड़ रुपये का, चाय का निर्यात 5,310.74 करोड़ रुपये का और काफी का निर्यात 4,985.57 करोड़ रुपये और ताजा सब्जियों का निर्यात 4,814.56 करोड़ रुपये का हुआ है। बीते वित्त वर्ष 2017-18 में केस्टर तेल का निर्यात 6,730 करोड़ रुपये, चाय का निर्यात 5,396.39 करोड़ रुपये का तथा ताजा सब्जियों का निर्यात 4,997.49 करोड़ रुपये और ताजे फलों का निर्यात 4,746.31 करोड़ रुपये का हुआ था।.......  आर एस राणा

हरियाणा और पंजाब में गन्ने का बकाया भुगतान बनेगा चुनावी मुद्दा

आर एस राणा
नई दिल्ली। हरियाणा के साथ ही पंजाब के गन्रा किसानों का बकाया लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दलों के प्रत्याशियों पर भारी पड़ेगा। हरियाणा की चीनी मिलों पर चालू पेराई सीजन का करीब 500 करोड़ रुपये और पंजाब की चीनी मिलों पर किसानों का 1,250 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है। बकाया भुगतान को लेकर पंजाब के साथ ही हरियाणा के किसान भी लामबंद हो रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने राज्य की चीनी मिलों द्वारा गन्ना किसानों के बकाया का भुगतान नहीं किया जा रहा है, इस संबंध में कई बार संबंधित अधिकारियों और मंत्रियों से बात हुई है, लेकिन चीनी मिलों द्वारा बकाया भुगतान में तेजी नहीं लाई जा रही है, जिससे गन्ना किसानों में राज्य सरकार के खिलाफ रोष है। उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा बकाया नारायणगढ़ और भादसों चीनी मिलों करीब 225 करोड़ रुपये है, जबकि इन मिलों के पास चीनी का स्टॉक भी नहीं है। इसलिए इन मिलों द्वारा बकाया में देरी होगी। उन्होंने बताया कि बकाया भुगतान में देरी से राज्य के गन्ना किसानों में राज्य सरकार के खिलाफ रोष है, तथा राज्य के मुख्यमंत्री से भुगतान कराने की मांग की है।  
हरियाणा की जींद सहकारी चीनी मिल में हो चुकी है पेराई बंद
सूत्रों के अनसुार राज्य की सहकारी चीनी मिलों द्वारा भुगतान में सुधार तो हुआ है, लेकिन इसके बावजूद भी राज्य की शाहबाद चीनी मिल पर अभी 73 करोड़ रुपये, रोहतक चीनी मिल पर 62 करोड़ रुपये, पानीपत सहकारी चीनी मिल पर 42 करोड़ रुपये, करनाल चीनी मिल पर 45 करोड़ रुपये और सोनीपत चीनी मिल पर 38 करोड़ रुपये तथा पलवल चीनी मिल पर 39 करोड़ रुपये एवं महम शुगर मिल्स पर 64 करोड़ रुपये बकाया है। हरियाणा स्टेट फेडरेशन आफ कोआपरेटिव शुगर मिल्स लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार राज्य की जींद मिल में पेराई बंद हो गई है, लेकिन बाकि मिलों में पेराई अभी चल रही है। उन्होंने बताया कि राज्य की सहकारी चीनी मिलों में चीनी का उत्पादन अभी तक पिछले साल की तुलना में कम हुआ है। 
पंजाब की चीनी मिलों पर 1,250 करोड़ से अधिक है बकाया
भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल ने बताया कि पंजाब की चीनी मिलों पर राज्य के किसानों का बकाया 1,250 रुपये से ज्यादा का हो गया है लेकिन राज्य सरकार बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है। उन्होंने बताया कि राज्य की चीनी मिलें किसानों से 310 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ना खरीद रही है, इसमें भी 25 रुपये का भुगतान राज्य सरकार करेगी। पड़ोसी राज्य हरियाणा की चीनी मिलें 340 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ना खरीद रही है। उन्होंने बताया कि कम भाव पर गन्ना खरीदने के बावजूद भी राज्य की चीनी मिलों द्वारा भुगतान में देरी की जा रही है। उन्होंने बताया कि राज्य में चाहे अकाली दल की सरसों हो या फिर कांग्रेस की सब चीनी मिल मालिकों से मिली हुई है।
तुरंत भुगतान नहीं हुआ तो किसान करेंगे लोकसभा चुनाव का बहिष्कार 
पंजाब में बकाया भुगतान नहीं होने से गन्ना किसान माझा किसान संघर्ष कमेटी के बनैर तले आज से फिर आंदोलन पर बैठ गए हैं। माझा किसान संघर्ष कमेटी के एक नेता के अनुसार गन्ना किसानों को चीनी मिलों द्वारा 285 रुपये और पंजाब सरकार की तरफ से दिए जाने वाले 25 रुपये के हिसाब से गन्ने का तुरंत भुगतान नहीं किया गया तो मजबूरन गन्ना किसान को लोकसभा चुनाव का बाहिष्कार करना पड़ेगा। पंजाब में धूरी की शुगर मिल द्वारा किसानों के करोड़ों रुपये की गन्ने की अदायगी नहीं किए जाने से खफा किसानों ने धरना-प्रदर्शन किया था। ......   आर एस राणा

14 अप्रैल 2019

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में जातीय समीकरण पड़ेंगे भारी

आर एस राणा
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश के दूसरे चरण में नगीना, बुलंदशहर, आगरा और हाथरस सुरक्षित सीट है, इसके अलावा अमरोहा, अलीगढ़, मथुरा और फतेहपुर सीकरी समेत 8 सीटों पर चुनाव होना है। 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी आठ सीटों को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जीतने में कामयाब रही थी लेकिन इस बार सपा—बसपा और आरएलडी में हुए महागठबंधन के कारण जातीय समीकरण उम्मीदवारों की जीत तय करेंगे। 
उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान होंगे। दूसरे चरण में बसपा-सपा-आरएलडी की अगुवाई हाथी कर रहा है। आठ में से बसपा 6 सीटों पर चुनावी मैदान में है और सपा-आरएलडी एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। इसलिए दूसरे चरण का मतदान मायावती बनाम नरेंद्र मोदी के बीच चुनावी मुकाबला माना जा रहा है। इस दौर में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर और भाजपा की हेमा मालिनी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है।
बुलंशहर में जीत का अंतर हो सकता है कम
बुलंदशहर में मुख्य मुकाबला भाजपा के भोला सिंह, गठबंधन के योगेश वर्मा और कांग्रेस के बंसी सिंह में है। भोला सिंह 2014 में यहां से चार लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे। इस सीट पर 17 लाख से अधिक वोटर हैं। इनमें 9 लाख से अधिक पुरुष और करीब 8 लाख महिला वोटर हैं। बुलंदशहर में करीब 77 फीसदी हिंदू और 22 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती हैं। बुलंदशहर लोकसभा के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा अनूपशहर, बुलंदशहर, डिबाई, शिकारपुर और स्याना विधानसभा सीटें आती हैं। 2017 विधानसभा चुनाव में इन सभी 5 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है। बुलंदशहर के राहुल भल्ला ने बताया कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 6 लाख वोट मिले थे, इस बार सपा—बसपा और आरएलडी का महागठबंधन है, इसलिए जीत का अंतर कम हो सकता है।
अमरोहा सीट पर महागठबंधन से मिल रही है चुनौती
उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण में जाटों के मतों की अमरोहा, अलीगढ़ और मथुरा की सीटें बची है। इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अमरोहा सीट पर सबकी नजर रहेगी। मुस्लिम और जाट बाहुल्य इस सीट की पहचान गन्ना उत्पादन के रूप में भी होती है। अमरोहा जिले के देहरा चक गांव के गन्ना किसान जोगिंद्र आर्य ने बताया कि चीनी मिलों पर गन्रा किसानों का बकाया बढ़ रहा है, लेकिन यह मुद्दा इस बार चुनाव में नहीं है। गठबंधन होने के कारण चुनाव जातीय समीकरण में उलझ गया है। अमरोहा लोकसभा सीट से बसपा ने जेडीएस से आए कुंवर दानिश को मैदान में उतारा है। वहीं, भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद कंवर सिंह तंवर पर दांव लगाया तो कांग्रेस ने सचिन चौधरी पर दांव खेला है। अमरोहा सीट के जातीय समीकरण को देखें तो करीब 5 लाख मुस्लिम, 2.5 लाख दलित, 1 लाख गुर्जर, 1 लाख कश्यप, 1.5 लाख जाट और 95 हजार लोध मतदाता हैं।
नगीना सीट पर मुस्लिम वोटर करेंगे भाग्य का फैसला
नगीना लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, गठबंधन में यह सीट बसपा के खाते में गई है। यहां से बसपा ने गिरीश चंद्र, भाजपा ने मौजूदा सांसद यशवंत सिंह और कांग्रेस ने पूर्व आईएएस आरके सिंह की पत्नी ओमवती को उतारा है। नगीना सीट पर गठबंधन और कांग्रेस दोनों की नजर दलित और मुस्लिम वोटों पर है जबकि भाजपा राजपूत और गैर जाटव दलित के साथ-साथ जाट मतदाताओं के सहारे दोबारा जीत दर्ज करना चाहती है। लेकिन 6 लाख मुस्लिम वोटर इस सीट पर किंगमेकर की भूमिका में हैं।
कांग्रेस के राजबब्बर त्रिकोणीय मुकाबले में 
फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट का मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है। यहां से भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद बाबूलाल चौधरी का टिकट काटकर राजकुमार चहेर को उतारा है, जबकि कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर और बसपा से गुड्डु पंडित मैदान में हैं। इस सीट पर दो लाख जाट मतदाताओं के देखते हुए भाजपा ने जाट समुदाय पर दांव खेला है, जबकि तीन लाख ब्राह्मण मतों को ध्यान रखकर बसपा ने ब्राह्मण कार्ड खेला है। ऐसे में कांग्रेस के राजब्बर के सामने सबकी बड़ी चुनौती जातीय समीकरण को तोड़ना है।
महागठबंधन के उम्मीदवार से हेमा मालिनी को मिल रही है कड़ी टक्कर
मथुरा लोकसभा सीट से भाजपा ने एक बार फिर हेमा मालिनी को उतारा है, जबकि आरएलडी से कुंवर नरेंद्र सिंह और कांग्रेस से महेश पाठक मैदान में हैं। यहां करीब 4 लाख जाट समुदाय के मतदाता हैं, जबकि 2.5 लाख ब्राह्मण और 2.5 लाख राजपूत वोटर भी हैं तथा इतने ही दलित मतदाता हैं। इस सीट पर ढेड़ लाख के करीब मुस्लिम हैं। आरएलडी उम्मीदवार राजपूत के साथ-साथ जाट, मुस्लिम और दलितों को साधने में कामयाब रहते हैं तो फिर भाजपा के लिए कठिन हो जायेगा। कारोबारी संदीप बंसल ने बताया कि पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हेमा मालिनी 3.5 लाख वोटों से जीती थी, लेकिन इस बार महागठबंधन होने के कारण आरएलडी के उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिल रही है। 
अलीगढ़ में होगा त्रिकोणीय मुकाबला
अलीगढ़ लोकसभा सीट से भाजपा ने मौजूदा सांसद सतीश गौतम और कांग्रेस ने चौधरी बिजेन्द्र सिंह को मैदान में उतारा है जबकि बसपा ने अजीत बालियान को उतारा है। जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो यादव, ब्राह्मण, राजपूत और जाट के करीब डेढ़-डेढ़ लाख वोट हैं जबकि दलित 3 लाख और 2 लाख के करीब मुस्लिम मतदाता हैं। वोट बैंक की नजर से देंखे तो बसपा और कांग्रेस दोनों ने जाट उम्मीदवार उतारे हैं तो भाजपा ने ब्राह्मण पर दांव खेला है। इसलिए अलीगढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है। 
हाथरस में गठबंधन बनाम भाजपा
हाथरस लोकसभा सीट से सपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री रामजीलाल सुमन को मैदान उतारा है जबकि भाजपा ने राजवीर सिंह बाल्मीकि और कांग्रेस ने त्रिलोकीराम दिवाकर को मैदान में उतारा है। हाथरस सीट जाट बहुल मानी जाती है, इस सीट पर करीब 3 लाख जाट, 2 लाख ब्राह्मण, 1.5 लाख राजपूत, 3 लाख दलित, 1.5 लाख बघेल और 1.25 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। ऐसे में गठबंधन होने के कारण जाट, मुस्लिम और दलित मतदाता एकजुट हो गए तो भाजपा के लिए चुनौती बन जायेगी।
आगरा में भाजपा और बसपा में जंग 
आगरा सुरक्षित सीट पर बसपा ने मनोज सोनी, भाजपा ने एसपी सिंह बघेल और कांग्रेस ने प्रीता हरित को मैदान में उतारा है। भाजपा के एसपी बघेल सपा और बसपा में रह चुके हैं, ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं में अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है। इस तरह से भाजपा के साथ-साथ बघेल दूसरे दलों के वोट बैंक को साधने में कामयाब रहते हैं तो एक बार फिर कमल खिल सकता है। हालांकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर भी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। ऐसे में उनका भी अपना एक आधार है जबकि दलित और मुस्लिम के सहारे बसपा भी जीत की आस लगाए हुए है। .............. आर एस राणा

उत्तर प्रदेश सरकार ने समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद का लक्ष्य पांच लाख टन बढ़ाया

आर एस राणा
नई दिल्ली। गेहूं किसानों को राहत देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने गेहूं की खरीद का लक्ष्य 50 लाख टन से बढ़कर 55 लाख टन कर दिया है। राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अनुसार सरकार ने खरीद प्रक्रिया की राह में चुनावी बाधा नहीं आने देने का इंतजाम किया है। विभाग के अनुसार जिलाधिकारियों को नियमित खरीद की समीक्षा और उपाय करने के निर्देश दिए गए हैं।
भारत सरकार के खाद्य सचिव की अध्यक्षता में राज्यों के खाद्य सचिवों की बैठक में राज्य से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 50 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया था, लेकिन राज्य सरकार ने इसको बढ़ाकर 55 लाख टन कर दिया है। चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1,840 रुपये प्रति क्विंटल किया हुआ है जबकि पिछले रबी विपणन सीजन में गेहूं का समर्थन मूल्य 1,735 रुपये प्रति क्विंटल था।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में उत्तर प्रदेश में 350 लाख टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार पिछले रबी सीजन में राज्य से समर्थन मूल्य पर 52.94 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। चालू रबी में गेहूं की खरीद के लिए एफसीआई उत्तर प्रदेश में 213 और राज्य की खरीद एजेंसिया 6,000 खरीद केंद्रों के माध्यम से खरीद करेगी। राज्य में गेहूं की सरकारी खरीद पहली अप्रैल से 15 जून 2019 तक की जायेगी। एफसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार राज्य की मंडियों से गेहूं की खरीद शुरू हो गई है, तथा 12 अप्रैल तक राज्य की मंडियों से समर्थन मूल्य पर 14,000 टन गेहूं की खरीद हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश की मथूरा मंडी में गेहूं की दैनिक आवक 2,000 से 2,500 बोरी की हो रही है, लेकिन सरकार खरीद शुरू नहीं होने के कारण मंडी में गेहूं 1,650 से 1,660 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। माना जा रहा है कि गेहूं की कीमतों में इससे ज्यादा मंदा नहीं आयेग, आगे सरकारी खरीरद बढ़ेगी जबकि एफसीआई और फ्लोर मिलों की मांग भी निकलेगी, जिससे गेहूं की कीमतों में मई में तेजी बन सकती है।........आर एस राणा

मराठवाड़ा में किसानों के साथ मध्यमवर्ग की भी नाराजगी पड़ सकती है भारी

आर एस राणा
नई दिल्ली। महाराष्ट्र के जालना जिले के किसान निवरती पाटपूले ने बताया कि सूखे के कारण पीने के पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा हैं। उन्होंने बताया कि 2,000 लीटर पानी के टेंकर का भाव 400 रुपये से बढ़कर 800 रुपये हो गया है। सूखे के कारण किसानों की रबी की फसलें सूख गई है। जलाशयों में पानी है नहीं, जिस कारण खरीफ फसलों की बुवाई पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
नांनदेड के नरेश गोयनका ने बताया कि शहर में तो पानी मिल भी जाता है, लेकिन गांव में हालात खराब हैं। कारापोरेशन के नल में पानी 15 दिन के बाद ही आ रहा है, जिस कारण किसानों के साथ मध्यवर्गीय परिवार सरकार से नाराज हैं। महाराष्ट्र में सूखा प्रभावित मराठवाड़ा के आठ जिलाें औरंगाबाद, बीड़, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद और परभणी में लोकसभा के चुनाव में कई दिग्गज अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मराठवाड़ा के इन जिलों में मुख्य मुकाबला भाजपा-शिव सेना गठबंधन और कांग्रेस एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन के साथ ही रिपबल्किन पार्टी आफ इंडिया ए गठबंधन में है।
मराठवाड़ा के सबसे ज्यादा किसानों ने की है आत्महत्या
किसान संगठन से जुड़े एक नेता के अनुसार पूरे महाराष्ट्र में पिछले साढ़े चार साल में करीब 14 हजार किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। उनमें से 90% किसान मराठवाड़ा के इन आठ जिलों से ही थे। सरकार ने किसानों को धोखा दिया है। दो साल पहले किसानों ने मुंबई का दूध और सब्जी रोकी तो बात करने को तैयार हुई। मुख्यमंत्री ने तब 17-18 वादे किए थे लेकिन एक भी पूरा नहीं किया। नांनेदड लोकसभा सीट से कांग्रेस ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को मेदान में उतारा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रतापराव चिखलिकर को खड़ किया है। नरेश गोयनका ने बताया कि इस सीट पर कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के समय में भी जीत दर्ज थी। इस बार भी कांग्रेस की स्थिति अच्छी है। 
पानी की कमी और कृषि मुद्दों से वोटरों को लुभा रही है कांग्रेस
जालना लोकसभा चुनाव क्षेत्र से भाजपा ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रावसाहब दानवे को मैदान में उतारा है, दानवे 1999 से ही जालना संसदीय क्षेत्र से जीत रहे हैं लेकिन कांग्रेस पानी की कमी और कृषि मुद्दों के माध्यम से वोटरों को लुभा रही है। मुख्य मुकाबला भाजपा के दानवे और कांग्रेस के विलास औताडे के बीच होने की संभावना है। औताडे अंतिम बार 1991 में इस सीट से चुनाव जीते थे। बीड लोकसभा सीट से भाजपा ने दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की बेटी प्रीतम मुंडे को चुनाव मैदान में उतारा है तो वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने बजरंग मनोहर सोनवणे को टिकट दिया है। जानकारों के अनुसार बीड में पलायन बड़ी समस्या है।
लातूर में भीषण जलसंकट
मराठवाड़ा की एक अहम लोकसभा सीट है लातूर है, इस सीट पर 24 साल तक शिवराज पाटिल का राज रहा लेकिन इस सीट से भाजपा के मौजूदा सांसद डॉक्टर सुनील गायकवाड़ हैं, हालांकि 2019 के चुनावों में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया है। पार्टी ने इस बार सुधाकर श्रृंगारे को टिकट दिया है वहीं, कांग्रेस ने मच्छिंद्र कामत को मैदान में उतारा है। इस सीट का महत्व यह है कि दो दिन पहले यहां प्रधानमंत्री ने भी रैली की थी। लातूर भीषण जलसंकट से जूझ रहा है।
कांग्रेस ने शिवसेना के पिछले चुनाव में हारे हुए वानखेड़े को दिया टिकट
परभणी व हिंगोली दोनों पिछड़े इलाके हैं। हिंगोली में कांग्रेस के राजीव सातव सांसद है जोकि चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। शिवसेना ने पिछली बार हारे सुभाष वानखेड़े को दोबारा मौका नहीं देकर हेमंत पाटिल को प्रत्याशी बनाया तो कांग्रेस ने वानखेड़े को शिवसेना से तोड़ लिया और टिकट भी दे दिया। परभणी शिवसेना का गढ़ है, बीस सालों से उसका कब्जा है तथा अभी शिवसेना के संजय जाधव सांसद है, पार्टी ने उन्हें दोबारा खड़ा किया है। एनसीपी ने राजेश विटेकर रुप में नए चेहरे को उतारा है। 
किसानों की समस्याएं हैं बड़ा मुद्दा
किसानों की समस्याएं यहां सबसे बड़ा मुद्दा है। खेतों में सिंचाई की बात तो दूर, पीने के लिए भी पानी नहीं है। लातूर और हिंगोली में महिलाओं को दूर-दूर से पानी लाना पड़ रहा है। मराठवाड़ा का चुनाव मराठा बनाम ओबीसी के बीच है। स्वाभिमानी शेतकरी संगठन यहां प्रभावी है तथा लोकसभा चुनाव 2014 में स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता राजू शेट्‌टी एनडीए के साथ थे लेकिन इस बार के चुनाव में वह कांग्रेस का साथ दे रहे हैं। ....... आर एस राणा

गैर-बासमती चावल का निर्यात 16.55 फीसदी घटा, बासमती का बढ़ा

आर एस राणा
नई दिल्ली। बंगलादेश के साथ ही अफ्रीकी देशों की आयात मांग में कमी आने से गैर-बासमती चावल के निर्यात में गिरावट आई है जबकि बासमती चावल का निर्यात बढ़ा है। वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान गैर-बासमती चावल के निर्यात में 16.55 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 67.11 लाख टन का ही हुआ है जबकि बासमती चावल का निर्यात इस दौरान 6.25 फीसदी बढ़कर 38.55 लाख टन का हुआ है।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले साल बंगलादेश के पास चावल का स्टॉक कम था, जिसकी वजह से गैर बासमती चावल का भारत से रिकार्ड निर्यात हुआ था, लेकिन चालू सीजन में बंगलादेश के पास स्टॉक ज्यादा होने के कारण बंगलादेश की आयात मांग कम रही। उन्होंने बताया कि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में अप्रैल से फरवरी के दौरान गैर-बासमती चावल का निर्यात 80.42 लाख टन का हुआ था, जबकि चालू वित्त वर्ष में इसका निर्यात 67.11 लाख टन का ही हुआ है। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2017-18 में गैर-बासमती चावल का कुल निर्यात 22,967.82 करोड़ रुपये का 86.48 लाख टन का हुआ था। 
बासमती चावल का निर्यात बढ़ा
उन्होंने बताया कि बासमती चावल का निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान बढ़कर 38.55 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में इसका निर्यात 36.28 लाख टन का ही हुआ था। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2018-19 में बासमती चावल का कुल निर्यात 26,870.17 करोड़ रुपये का 40.56 लाख टन का हुआ था।
ईरान, इराक और अमेरिका की आयात मांग बढ़ी
चावल की निर्यातक फर्म केआरबीएल लिमिटेड के चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल कुमार मित्तल ने बताया  कि ईरान के साथ ही इराक और अमेरिका की आयात मांग बढ़ने से बासमती चावल का कुल निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 में तीन से सवा तीन लाख टन ज्यादा होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि ईरान से इस समय सारा भुगतान भारतीय रुपये में हो रहा है तथा ईरान को पूसा 1,121 बासमती चावल सेला का निर्यात 82,000 से 84,000 रुपये प्रति टन की दर से हो रहा है। उन्होंने बताया कि साउदी अरब की आयात मांग बासमती चावल में जरुर चालू वित्त वर्ष में पांच से सात फीसदी कम हुई है। 
बासमती धान और चावल के भाव तेज
चावल कारोबारी रामनिवाश खुरानिया ने बताया कि गेहूं का सीजन शुरू होने के कारण पंजाब और हरियाणा की मंडियों में बासमती धान की आवक बंद हो गई है। इस दिल्ली की नरेला मंडी में व्
यापारियों के मालों की आवक हो रही है। नरेला मंडी में बासमती धान पूसा 1,121 का भाव 3,950 से 4,000 रुपये और पूसा 1,121 बासमती चावल सेला का भाव 7,150 से 7,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। पिछले पंद्रह दिनों में इनकी कीमतों में करीब 3,00 से 4,00 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है।  ....... आर एस राणा

12 अप्रैल 2019

राजस्थान में खाद्यान्न उत्पादन में कमी की आशंका

आर एस राणा
नई दिल्ली। फसल सीजन 2018-19 में राजस्थान में खाद्यान्न के उत्पादन में 2.09 लाख टन की कमी आकर कुल उत्पादन 218.28 लाख टन ही ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 220.37 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
राज्य के कृषि निदेशालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में गेहूं का उत्पादन घटकर 102,96,095 टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 112,08,087 टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। इसी तरह से जौ का उत्पादन चालू रबी में घटकर 7,55,407 टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 9,08,604 टन जौ का उत्पादन हुआ था। 
बाजरा का उत्पादन कम
मोटे अनाजों में बाजरा का उत्पादन 37,64,687 टन, मक्का का 19,83,322 टन और ज्वार का 4,69,756 टन होने का अनुमान है जबकि फसल सीजन 2017-18 में राज्य में 37,51,525 टन बाजरा, 17,94,652 टन मक्का तथा 3,00,831 टन ज्वार का उत्पादन हुआ था। 
चना का उत्पादन बढ़ने की संभावना
चालू रबी में राज्य में दलहन की प्रमुख फसल चना का उत्पादन 21,87,962 टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 16,70,265 टन चना का उत्पादन हुआ था। अन्य दालों में मूंग का उत्पादन 12,21,099 टन, उड़द का 3,75,929 टन, मोठ का 2,22,584 टन का उत्पादन होने का अनुमान है। फसल सीजन 2017-18 में राज्य में मूंग का उत्पादन 9,75,766 टन का, उड़द का 5,23,622 टन का और मोठ का उत्पादन 3,23,338 टन का ही हुआ था। 
सरसों और मूंगफली का उत्पादन अनुमान ज्यादा
तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार राज्य में सरसों का उत्पादन 40,81,501 टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 34,01,126 टन का ही उत्पादन हुआ था। मूंगफली का उत्पादन राज्य में पिछले साल के 12,59,159 टन से बढ़कर 13,75,486 टन होने का अनुमान है। सोयाबीन का उत्पादन भी पिछले साल के 10,69,830 टन से बढ़कर 11,68,664 टन होने का अनुमान है। ......... आर एस राणा

उद्योग ने छह महीने में चौथी बार कपास उत्पादन अनुमान घटाया

 आर एस राणा
नई दिल्ली। उद्योग अक्टूबर 2018 से अभी तक चार बार कपास उत्पादन अनुमान में कटौती कर चुका है। ताजा अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास का उत्पादन 7 लाख गांठ घटकर 321 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) ही होने का अनुमान है। पिछले साल देश में 365 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष अतुल एस. गणात्रा के अनुसार प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के साथ ही तमिलनाडु और ओडिशा में कपास के उत्पादन में कमी आने का अनुमान है। तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में कपास की तीसरी और चौथी पिकिंग नहीं हो पाई थी, जबकि अन्य राज्यों में मानसूनी बारिश कम होने से प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में कमी आई है। 
उद्योग 27 लाख गांठ घटा चुका है उत्पादन अनुमान 
सीएआई ने अक्टूबर 2018 में 348 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान जारी किया था, उसके बाद से इसमें 27 लाख गांठ की कटौती की जा चुकी है। उद्योग के नए अनुमान के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात में चालू सीजन में कपास का उत्पादन घटकर 82.50 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 105 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। उधर महाराष्ट्र में 76.20 लाख गांठ ही होने का अनुमान है पिछले साल महाराष्ट्र में 83 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। इसके अलावा तेलंगाना में 39 लाख गांठ, आंध्रप्रदेश में 15 और कर्नाटक में 14.25 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है।
निर्यात में आ सकती है कमी
पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू सीजन में 31 मार्च तक उत्पादक मंडियों में 255.83 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है। चालू सीजन में उत्पादन में कमी आने का असर निर्यात पर भी पड़ने की आशंका है तथा कुल निर्यात घटकर 47 लाख गांठ ही होने का अनुमान है। पिछले साल 69 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। उद्योग के अनुसार चालू सीजन में कपास का कुल आयात बढ़कर 27 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 15 लाख गांठ का ही आयात हुआ था।
बकाया स्टॉक रहेगा कम
उद्योग के अनुसार चालू सीजन के अंत में 30 सितंबर 2019 को घरेलू मंडियों में कपास का बकाया स्टॉक घटकर केवल 13 लाख गांठ ही बचने का अनुमान है जबकि पिछले साल नई फसल की आवक के समय बकाया स्टॉक 28 लाख गांठ का था।......    आर एस राणा

दिल्ली सरकार से नाराज हैं गेहूं किसान, घोषित भाव पर नहीं हो रही खरीद

आर एस राणा
नई दिल्ली। जटखोड के गेहूं किसान ब्रहमदेव नरेला मंडी में गेहूं बेचने आए तो पता चला कि यहां गेहूं की खरीद ही नहीं हो रही है, तो उन्हें मायूसी हाथ लगी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने गेहूं की खरीद 2,616 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर करने का वादा किया था, लेकिन मंडी में गेहूं 1,750 से 2,055 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है।
माजरा डबास गांव के किसान सन्नी डबास दो ट्राली गेहूं बेचने मंडी में आए, तो उनका गेहूं 2,041 से 2,055 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिका। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद थी, राज्य सरकार 2,616 रुपये पर गेहूं की खरीद करेगी, लेकिन समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने से उन्हें मजबूरन व्यापारियों को गेहूं बेचना पड़ा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने हमे अंधेरे में रखा है, इसका असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा।
बाहरी दिल्ली में बड़े पैमाने पर हो रही है खेती
बाहरी दिल्ली के नरेला, बवाना, कंझावला तथा नजफगढ़ के गांवों में बड़े पैमान पर गेहूं और धान के साथ ही सब्जियों की खेती की जाती है। अगस्त 2017 में हुए दिल्ली के बवाना उपचुनाव में आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत मिली थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में राज्य सरकार को गेहूं किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी।
नरेला मंडी के अधिकारियों को नहीं मिला है आदेश
नरेला मंडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमें राज्य सरकार से अभी कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है इसलिए यहां पर गेहूं की सरकारी खरीद नहीं नहीं हो रही है। उन्होंने बताया कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने 1,840 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर गेहूं खरीदने का बोर्ड लगाया हुआ है, तथा एफसीआई को मंडी की तरफ से गेहूं की खरीद के लिए दो नं. सेड दे रखा है, हालांकि मंडी में एफसीआई का कोई भी कर्मचारी या फिर अधिकारी मौजूद नहीं था। नरेला मंडी के सचिव श्याम लाल शर्मा मंडी में मौजूद नहीं थे, पता चला कि उनके पास आजादपुर मंडी का चार्ज भी है, इसलिए नरेला मंडी में केवल मंगलवार, गुरूवार को शनिवार को ही बैठते हैं।
दिल्ली के विकास मंत्री ने 2,616 रुपये के भाव गेहूं खरीदने का किया था वादा
दिल्ली के विकास मंत्री गोपाल राय ने फरवरी में घोषणा की थी कि राज्य के किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर दिया जायेगा। विकास मंत्री गोपाल राय ने माना है कि दिल्ली में करीब 20,000 किसान हैं। उन्होंने कहा था कि राज्य के किसानों से गेहूं की खरीद 2,616 रुपये और धान की खरीद 2,667 रुपये प्रति क्विंटल के भाव की जायेगी। इस मामले में मंत्री से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
एक-दूसरे विभाग पर डाल रहे हैं जिम्मेदारी
दिल्ली सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार हमारा विभाग केवल वितरण का काम करता है, तथा गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद का काम दिल्ली राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड का है। दिल्ली राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड के सीनियर मैनेजर पी के राघव ने बताया कि गेहूं और धान की खरीद हम किसानों से नहीं करते हैं, बल्कि एफसीआई से खरीद करते हैं।..... आर एस राणा

बीते वित्त वर्ष में डीओसी का निर्यात 6 फीसदी बढ़ा-उद्योग

आर एस राणा
नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2018-19 में डीओसी के निर्यात में 6 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 32,05,768 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष में इनका निर्यात 30,26,628 टन का हुआ है। इस दौरान सरसों डीओसी का निर्यात बढ़कर 10,51,869 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष में इसका निर्यात केवल 6,63,988 टन का ही हुआ था।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार इस दौरान ईरान एक बड़े आयातक के रुप में उभरा है। ईरान ने वित्त वर्ष 2018-19 में पांच लाख टन सोया डीओसी का आयात किया है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष में केवल 23,000 टन का ही आयात किया था। वित्त वर्ष 2018-19 के मार्च महीने में डीओसी के निर्यात में एक फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 2,63,817 टन का हुआ है जबकि पिछले साल मार्च में इनका निर्यात 2,61,308 टन का हुआ था।
मूल्य के हिसाब से निर्यात 31 फीसदी बढ़ा
एसईए के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में मूल्य के हिसाब से डीओसी का निर्यात 31 फीसदी बढ़कर 6,221.95 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 4,761.80 करोड़ रुपये का हुआ था। थाईलैंड के साथ ही ताइवान ने वित्त वर्ष 2018-19 में डीओसी का आयात क्रमश: 39.58 और 6.85 फीसदी ज्यादा किया है जबकि वितयनाम और दक्षिण कोरिया ने क्रमश: 9.84 और 12.22 फीसदी आयात कम किया है।
सोया के साथ ही सरसों डीओसी के भाव बढ़े
मार्च 2019 में सोयाबीन डीओसी के दाम बढ़कर घरेलू बंदरगाह पर 440 डॉलर प्रति टन हो गया जबकि फरवरी में इसका भाव 435 डॉलर प्रति टन था। सरसों डीओसी का भाव इस दौरान 218 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 220 डॉलर प्रति टन हो गया।  
सोयाबीन की खपत हुई है ज्यादा
सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन में सोयाबीन की खपत अक्टूबर से मार्च तक 56 लाख टन की हो चुकी है तथा 77 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है। पिछले साल इस समय तक केवल 50 लाख टन की ही खपत हुई थी। सोपा के अनुसार चालू सीजन में सोयाबीन का उत्पादन 114.83 लाख टन हुआ है जबकि नई फसल के समय 1.50 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। ...... आर एस राणा

किसानों को नहीं मिल रहा दालों का समर्थन मूल्य, सरकारी खरीद नाममात्र की

आर एस राणा
नई दिल्ली। राजस्थान की किशनगंज तहसील से कोटा मंडी में चना बेचने आए किसान रामगोपाल ने बताया कि मंडी में चना 3,900 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिका है, जबकि केंद्र सरकार ने चना का समर्थन मूल्य 4,620 रुपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने बताया कि मंडी में चना समर्थन मूल्य पर खरीद तो हो रही है, लेकिन एक दिन में केवल एक-दो किसानों का चना ही खरीदा जा रहा है इसलिए मजबूरीवश किसानों को व्यापारियों को चना बेचना पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश की इंदौर मंडी के चना कारोबारी मनोहर गुप्ता ने बताया कि मंडी में चना की दैनिक आवक 8 से 10 हजार क्विंटल की हो रही है। चना की समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए कांटे तो लग गए हैं, लेकिन खरीद सीमित मात्रा में हो रही है। मंडी में चना 3,900 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। उन्होंने बताया कि उम्मीद है आगे सरकारी खरीद में तेजी आयेगी। सतना मंडी के मसूर व्यापारी भानू जैन ने बताया कि मंडी में मसूर 3,800 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि केंद्र सरकार ने मसूर का समर्थन मूल्य 4,475 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
नेफेड ने समर्थन मूल्य पर मात्र 38,000 टन चना खरीदा
नेफेड के अनुसार चालू रबी में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 8 अप्रैल तक 38,177 टन चना की खरीद की है, इसमें सबसे ज्यादा 34,500 टन तेलंगाना से खरीद हुई है। उन्होंने बताया कि आगे मध्य प्रदेश के साथ ही राजस्थान से चना की खरीद समर्थन मूल्य पर खरीद में तेजी आयेगी, साथ ही मसूर की खरीद भी शुरू होगी।
खरीद का लक्ष्य ही कम
पीएम-आशा योजना के तहत केंद्र सरकार ने दलहन और तिलहन के कुल उत्पादन का 25 फीसदी तक खरीद करने का ऐलान किया था, लेकिन चालू रबी में मध्य प्रदेश से मसूर की खरीद कुल उत्पादन की केवल 15 फीसदी और चना की खरीद कुल उत्पादन का 22 फीसदी ही करने का लक्ष्य तय किया है। मध्य प्रदेश के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में 11,06,00 टन मसूर के उत्पादन का अनुमान है जबकि समर्थन मूल्य पर खरीद का लक्ष्य 1,69,750 टन का तय किया है। इसी तरह से राज्य में चना के उत्पादन का अनुमान 52.17 लाख टन का है तथा खरीद का लक्ष्य केवल 11,48,750 टन का ही तय किया है।
पिछले साल से कम रखा है चना की खरीद का लक्ष्य
सूत्रों के अनुसार चालू रबी विपणन स ीजन 2018-19 में समर्थन मूल्य पर 22,24,823 टन चना की खरीद का लक्ष्य तय किया गया है जबकि पिछले रबी सीजन में एमएसपी पर 27.24 लाख टन खरीदा था। मसूर की खरीद का लक्ष्य चालू रबी में 2,81,165 टन का लक्ष्य तय किया है। 
रिकार्ड उत्पादन का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में दालों का रिकार्ड 240.2 लाख टन उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल देश में 239.5 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था।.... आर एस राणा

किसानों को पेंशन और ब्याज मुक्त कर्ज देने का वायदा किया

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने घोषणापत्र में किसानों को पेंशन देने के साथ ही क्रेडिट कार्ड पर ब्याज मुक्त कर्ज देने का वादा किया है। भाजपा द्वारा जारी घोषणा पत्र में किसान क्रेडिट कार्ड पर एक लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त कर्ज एक से पांच साल तक देने के साथ ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान का लाभ सभी किसानों को देने का वादा किया है। इसके साथ ही 60 साल से अधिक उम्र के किसानों के लिए पेंशन का भी वादा किया गया है।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा पत्र को 'संकल्प पत्र' के नाम से जारी किया है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित पार्टी के वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। वर्ष 2022 तक किसानों की आय दो दोगुनी करने का दावा करने वाली भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में किसानों को प्रमुखता से रखा है। नई दिल्ली में पार्टी की तरफ से जारी घोषणापत्र में उम्मीद के मुताबिक किसानों और उनसे जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दी गई है।
पीएम—किसान योजना के दायरे में देश के सभी किसान
इस पर अवसर पर राजनाथ सिंह ने कहा कि भाजपा किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के जरिए लिए गए एक लाख रुपये के कर्ज को ब्याज मुक्त किए जाने का वादा करती है। इसके साथ ही 60 साल से अधिक उम्र के किसानों के लिए पेंशन का भी वादा किया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने 2 हेक्टेयर तक भूमि वाले किसानों के पीएम-किसान योजना शुरू की है, इस योजना का दायदा बढ़ाकर सभी किसानों के लिए इसे लागू किया जायेगा।
कृषि क्षेत्र में 25 लाख करोड़ निवेश की घोषणा
भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में कृषि क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने के लिए 25 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की है। इसके साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड पर एक से पांच वर्ष के लिए एक लाख रुपये तक के कर्ज का समय पर भुगतान करने पर किसान से शून्य शुल्क लिया जायेगा।
फसल बीमा योजना में स्वैच्छिक पंजीकरण
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में दावा किया है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों के लिए जोखिम कम हुआ है तथा उन्हें बीमा की सुरक्षा मिली है। घोषणपत्र में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों के स्वैच्छिक पंजीकरण की योजना है। इसके साथ ही कृषि उत्पादों के आयात में कमी लाने के साथ ही निर्यात को बढ़ावा देने की योजना। किसानों के लिए सस्ते दाम पर प्रमाणित बीजों की उपलब्धता तथा बीजों की जांच उचित व्यवस्था का वायदा किया है। 
तिलहन मिशन और वेयरहाउस नेटवर्क पर जोर
अपने घोषणापत्र में भाजपा ने खाद्य तेलों में आत्मनिर्भता के लिए नया मिशन आरंभ करने की घोषणा की है। इसके साथ ही कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भंडारण और लॉजिस्टिक के नेटवर्क पर जोर। देशभर में राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे राष्ट्रीय वेयरहाउस ग्रिड स्थापित करने की योजना। किसानों के लिए नई ग्रामीण भंडारण योजना शुरू करने की घोषणा। 
जैविक खेती का रकबा बढ़ाने के साथ ही लाभप्रद बनाने पर जोर
अगले पांच साल में 20 हजार हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के साथ ही किसानों के लिए जैविक खेती को लाभदायक बनाने का वायदा भाजपा ने अपने घोषणापत्र में किया है। जैविक खेती वाले क्षेत्रों में ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने का वायदा। 
सिंचाई एवं को-आपेरिटव को बढ़ावा
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में कहा कि लंबित 68 सिंचाई परियोजनाओं को दिसंबर 2019 तक पूरा करने का वायदा किया है, साथ ही एक करोड़ हेक्टेयर भूमि को सूक्ष्म-सिंचाई योजना के अंतर्गत लाने का वायदा किया है। वर्ष 2022 तक 10,000 नए किसान उत्पादक संगठनों का गठन करने की घोषणा।.....  आर एस राणा

कांग्रेस ने किसानों के लिए अगल बजट का दांव चला तो, भाजपा ने पेंशन का

आर एस राणा
नई दिल्ली। कांग्रेस ने किसानों के लिए अलग बजट लाने और कर्जमाफी की घोषणा का दांव चला था, ऐसे में भाजपा ने भी अपने संकल्प पत्र में 60 साल की आयु के बाद पेंशन देने के साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) पर एक लाख रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज देने का वादा किया है। 
कांग्रेस
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि उनकी सरकार बनती है तो किसानों के लिए अलग से बजट पेश किया जाएगा। साथ ही कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र में कहा है कि किसानों का कर्ज न चुका पाना अपराध के दायरे से बाहर होगा। ऐसे किसान जो कर्ज को चुकाने में असमर्थ हैं, उन पर आपराधिक मुकदमे नहीं चलेंगे बल्कि दीवानी कानून के तहत कानूनी कार्रवाई होगी। 
कांग्रेस ने मोदी पर सरकार कृषि को संकट में डालने का लगाया आरोप
घोषणापत्र में कांग्रेस ने मोदी सरकार पर कृषि क्षेत्र को गहरे संकट में डालने का आरोप भी लगाया। कांग्रेस ने घोषणापत्र में कहा गया है कि मोदी सरकार ने पांच साल के कार्यकाल में किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया गया। उन्हें उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया गया। किसानों की फसलों को भी नहीं खरीदा गया। जिसकी वजह से उनपर कर्ज का बोझ बढ़ता चला गया। वहीं रही सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में फसल बीमा पर भी सवाल उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि फसल बीमा के नाम पर बीमा कंपनियों ने अपनी जेबें भरी। किसानों और खेतिहर मजदूरों को सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली।
कांग्रेस ने विकास और योजना आयोग बनाने की घोषणा
कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद किसानों के कर्ज को माफ करने का भी वादा किया। साथ ही फसलों के उचित मूल्य, कृषि में कम लागत, बैंकों से ऋण सुविधा देने का भी वादा किया गया है। कांग्रेस ने कृषि क्षेत्र के विकास की योजनाओं और कार्यक्रम को बनाने के लिए एक स्थाई राष्ट्रीय आयोग “कृषि विकास और योजना आयोग” की स्थापना करने की भी घोषणा की है। इस आयोग में किसान, कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री सम्मलित होंगे।
कांग्रेस ने कृषि बीमा योजना में भी बदलाव करने की बात कहीं
घोषणापत्र में मोदी सरकार की कृषि बीमा योजना में बदलाव करने के भी वादे किए हैं। साथ ही देश के प्रत्येक ब्लॉक में आधुनिक गोदाम, कोल्ड स्टोर और खाद्य प्रसंस्करण सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए नीतियां बनाने की बात भी कही गई है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भूमि अधिग्रहण, पुर्नवास और पुनर्स्थापना अधिनियम-2013 और वनाधिकार अधिनियम-2006 के क्रियान्वयन में बदलाव करने का भी वादा किया है। 
भाजपा 
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने घोषणापत्र में 60 साल से अधिक आयु के किसानों को पेंशन के साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड पर एक लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त कर्ज देने का वादा किया है। साथ ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) का लाभ सभी किसानों को देने की घोषण भी की है। 
भाजपा का कृषि में 25 लाख करोड़ रुपये के निदेश का वादा
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में कृषि क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने के लिए 25 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की है। इसके साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड पर एक से पांच वर्ष के लिए एक लाख रुपये तक के कर्ज का समय पर भुगतान करने पर किसान से शून्य शुल्क लिया जायेगा।भाजपा ने अपने घोषणापत्र में दावा किया है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों के लिए जोखिम कम हुआ है तथा उन्हें बीमा की सुरक्षा मिली है। घोषणापत्र में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों के स्वैच्छिक पंजीकरण की योजना है। 
भाजपा ने आयात में कमी और निर्यात बढ़ाने पर दिया जोर
इसके साथ ही कृषि उत्पादों के आयात में कमी लाने के साथ ही निर्यात को बढ़ावा देने की योजना। किसानों के लिए सस्ते दाम पर प्रमाणित बीजों की उपलब्धता तथा बीजों की जांच की उचित व्यवस्था का वादा किया है। अपने घोषणापत्र में भाजपा ने खाद्य तेलों में आत्मनिर्भता के लिए नया मिशन आरंभ करने की घोषणा की है। इसके साथ ही कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भंडारण और लॉजिस्टिक के नेटवर्क पर जोर। देशभर में राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे राष्ट्रीय वेयरहाउस ग्रिड स्थापित करने की योजना। किसानों के लिए नई ग्रामीण भंडारण योजना शुरू करने की घोषणा।
भाजपा ने जैविक खेती का रकबा बढ़ाने के साथ ही लाभप्रद बनाने पर दिया जोर
अगले पांच साल में 20 हजार हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के साथ ही किसानों के लिए जैविक खेती को लाभदायक बनाने का वादा भाजपा ने अपने घोषणापत्र में किया है। जैविक खेती वाले क्षेत्रों में ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने का वादा। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में लंबित 68 सिंचाई परियोजनाओं को दिसंबर 2019 तक पूरा करने का वादा किया है, साथ ही एक करोड़ हेक्टेयर भूमि को सूक्ष्म-सिंचाई योजना के अंतर्गत लाने का वादा किया है। वर्ष 2022 तक 10,000 नए किसान उत्पादक संगठनों का गठन करने की घोषणा।....... आर एस राणा

07 अप्रैल 2019

किसानों को औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ रही है सरसों

आर एस राणा 
नई दिल्ली।  हरियाणा के सोनीपत जिले के किसान जयकंवार ने दो एकड़ में सरसों बोई थी, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद नहीं होने के कारण राज्य के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर खरीद का अनुरोध किया है। राजस्थान और हरियाणा की मंडियों में किसानों को सरसों एमएसपी से 500 से 600 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बेचनी पड़ रही है।
जयकंवार के साथ पंडित अनिल एवं अन्य सरसों किसानों के साथ मिलकर खरखौदा की एसडीएम श्वेता सुहाग से मिलकर क्षेत्र के किसानों को सरसों की फसल बेचने में हो रही परेशानी से अवगत कराया और राज्य के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा।
दैनिक आवक की तुलना में नाममात्र की हो रही है खरीद
राजस्थान के कोटा जिले के राजगढ़ गांव के सरसों किसान प्रलाद गुर्जर ने बताया कि कोटा मंडी में उनकी सरसों 3,400 रुपये प्रति क्विंटल बिकी है, जबकि सरकार ने सरसों का समर्थन मूल्य 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। उन्होंने बताया कि मंडी मेें सरसों की सरकारी खरीद तो हो रही है, लेकिन नाममात्र की। जिस कारण किसानों को समर्थन मूल्य पर से नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है। खैरथल मंडी के सरसों कारोबारी पुष्कर राज ने बताया कि मंडी में सरसों की दैनिक आवक 20 से 25 हजार क्विंटल की हो रही है जबकि सरकारी खरीद मात्र 100 से 200 क्विंटल की ही हो रही है। मंडी में सरसों के भाव 3,400 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है।
राजस्थान से उत्पादन के मुकाबले खरीद लक्ष्य कम
नेफेड ने राजस्थान की मंडियों से एमएसपी पर 14 मार्च से खरीद शुरू हुई थी। राज्य की मंडियों से 4 अप्रैल तक 8,533 टन सरसों की खरीद ही हुई है। राज्य के खाद्य मंत्रालय के अनुसार समर्थन मूल्य पर चालू रबी में राज्य से सरसों की खरीद का लक्ष्य 8.50 लाख टन का है। राजस्थान के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में राज्य में 35.88 लाख टन सरसों के उत्पादन होने का अनुमान है। हरियाणा की मंडियों से सरसों की हैफेड के माध्यम से की जा रही है।
सरसों का उत्पादन रिकार्ड होने का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में देश में सरसों का रिकार्ड उत्पादन 83.97 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल 75.40 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था। उद्योग ने चालू रबी में 87.50 लाख टन सरसों का उत्पादन  होने का अनुमान जारी किया है।.... आर एस राणा

किसानों के कर्ज नहीं चुका पाना पहले ही है दीवानी मामला-विशेषज्ञ

आर एस राणा
नई दिल्ली। कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र में कहा है कि किसानों का कर्ज न चुका पाना अपराध के दायरे से बाहर होगा। ऐसे किसान जो कर्ज को चुकाने में असमर्थ हैं, उन पर आपराधिक मुकदमे नहीं चलेंगे बल्कि दीवानी कानून के तहत कानूनी कार्रवाई होगी। जानकारों और विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस के इस वादे से किसानों को राहत मिलेगी। उन्हें कर्ज न चुकाने की स्थिति में आपराधिक मामले चलाए जाने और गिरफ्तारी कोई आशंका नहीं होगी। जानकारों के अनुसार ऐसे मामले आपराधिक केस हैं ही नहीं, आपराधिक मामले के तौर पर कार्रवाई करके किसानों को बेवजह परेशान किया जाता है।
पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने कहा कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि कर्ज नहीं चुकाने पर किसानों पर आपराधिक मामला चलाकर गिरफ्तार नहीं किया जायेगा। हालांकि जब से मीडिया की पहुंच आम जनता तक बढ़ी है तब से किसानों की गिरफ्तारी इन मामलों में नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि जब बड़े-बड़े उद्योगपति बैंकों की मोटी रकम लेकर विदेश भाग जाते हैं, तो उसके मुकाबले तो किसानों का कर्ज कुछ भी नहीं है।
कर्ज वसूली न होने पर बैंक राज्य सरकार से लेते हैं मदद
दरअसल प्राथमिकता में बांटे जाने वाले कृषि समेत सभी तरह कर्जों की वसूली न होने पर बैंक इनकी वसूली के लिए राज्य सरकार की मदद लेते हैं। सरकार भी प्राथमिकता क्षेत्र में लोन बांटने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित करने के लिए कर्ज वसूली की जिम्मेदारी खुद पर लेती हैं। इसके तहत जिलाधिकारी राजस्व वसूली की तरह किसानों से बैंकों के कर्जों की वसूली करते हैं। वसूली न होने पर राजस्व वसूली के नियमों के तहत आपराधिक कार्रवाई करते हैं। कांग्रेस ने इसी नियम में बदलाव का वादा किया है।  
कांग्रेस के घोषणपत्र से संपूर्ण कर्जमाफी और डेढ़ गुना एमएपी नदारद
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआइकेएससीसी) के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि किसानों का कर्ज नहीं चुका पाना, आपराधिक मामला नहीं बनता है, यह तो दीवानी मामला है। उन्होंने बताया कि इसे तो बैंकों ने आपराधिक मामला बना दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने नवंबर 2018 में दिल्ली में एआइकेएससीसी के मंच से घोषणा की थी, कि किसानों को संपूर्ण कर्जमाफी और फसलों की लागत का डेढ़ गुना दाम, स्वामीनाथन की रिपोर्ट के आधार पर दिया जायेगा। लेकिन यह दोनों ही बातें कांग्रेस ने अपने घोषणपत्र में शामिल नहीं की हैं, इससे कांग्रेस की नियत पर सवाल उठते हैं।
बैंक किसानों से हस्ताक्षर युक्त चे ले लेते हैं
हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि हम कांग्रेस की इस पहल  का स्वागत करते है। हालांकि उन्होंने भी कहा कि किसानों द्वारा कर्ज नहीं चुका पाना आपराधिक मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि बैंक अपनी सुविधा के लिए किसानों को जिस समय कर्ज देते हैं, तो उनसे हस्ताक्षर युक्त चेक ले लेते हैं, और जब किसान उस कर्ज को चुका नहीं पाता है तो बैंक किसान के उस चेक को लगा देते हैं, जबकि बैंक में किसान के खाते में बकाया रकम नहीं होती। इसलिए चेक बाउंस हो जाता है। उन्होंने कहा कि राज्य में इस तरह से हजारों मामले चल रहे हैं।............ आर एस राणा

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के बकाया पर ब्याज के भुगतान का रास्ता साफ

आर एस राणा
नई दिल्ली।  उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को बकाया पर ब्याज के भुगतान चीनी मिलों को करना होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने शपथ पत्र देकर गन्ने के बकाया पर ब्याज का भुगतान करने की बात मान ली है। राज्य के किसानों का बकाया पर ब्याज करीब 2,000 करोड़ रुपये था, जिसे सपा की तत्कालीन अखिलेश सरकार ने माफ कर दिया था।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन की याचिका पर आज इलाहाबाद हाईकोर्ट में राज्य के गन्ना आयुक्त संजय आर भूसरेड्डी ने हलफनामा देकर बकाया पर ब्याज देना स्वीकार कर लिया। हफलनामे के अनुसार राज्य की जो चीनी मिलें फायदे में हैं, वे किसानों को बकाया पर 12 फीसदी का ब्याज तथा जो चीनी मिलें घाटे में चल रही है उनको बकाया पर 7 फीसदी का ब्याज देना होगा।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने आउटलुक को बताया कि यह राज्य के 42 लाख किसानों की जीत है। उन्होंने बताया कि 25 महीने बाद इस पर फैसला आया है, वह भी तब जब 5 फरवरी 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार दो महीने में 9 मार्च 2017 के आदेश का अनुपालन करें, नहीं तो गन्ना आयुक्त को जेल जाना पड़ेगा।
वीएम सिंह ने इस केस के कारण छोड़ा लोकसभा चुनाव 
इलाहाबाद हाईकोर्ट में 5 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई होनी थी, इसी को देखते हुए वीएम सिंह ने लोकसभा 2019 का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए एक चुनाव तो क्या 10 चुनाव भी छोड़ने पड़े तो, छोड़ दूंगा। 
तत्कालीन अखिलेश सरकार ने ब्याज देने के फैसले को किया था रद्द
वीएम सिंह ने बताया कि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के बकाया भुगतान ब्याज समेत दिए जाने का आदेश दिया था जिसको तत्कालीन अखिलेश सरकार की कैबिनेट ने फैसला कर रद्द कर दिया था। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार द्वारा इस फैसले को रद्द करने से जहां राज्य के लाखों किसान प्रभावित हुए, वहीं किसानों के बकाया तत्काल भुगतान को रास्ता भी बंद हो गया, क्योंकि जब चीनी मिलों को ब्याज ही नहीं देना पड़ेगा, तो फिर भुगतान मिलें अपनी मर्जी से करेंगी।
राज्य के करीब 40-42 लाख किसान परिवारों का है बकाया
उन्होंने बताया कि राज्य के करीब 40 से 42 लाख किसान परिवारों का गन्ने का ब्याज बकाया है। अदालत ने साल 2011-12, 2012-13 और 2013-14 तथा 2014-15 के जिस बकाये पर ब्याज देने को कहा है वह रकम करीब 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होती है। उन्होंने बताया कि समाजवादी पार्टी (सपा) की तत्कालीन अखिलेश सरकार ने कैबिनेट में बकाया भुगतान नहीं करने का प्रस्ताव पारित किया था, जिस कारण अखिलेश सरकार को किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ी और उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। ...... आर एस राणा

कांग्रेस का किसानों के लिए अलग बजट पर क्या कहना है जानकारों का?

आर एस राणा
नई दिल्ली। खेती-किसानी चुनाव के समय हर पार्टी के घोषणापत्र में प्रमुखता से जगह तो बनाती है, लेकिन यह अलग बात है कि चुनाव जीतने के बाद उन घोषणाओं पर अमल कितना होता है। किसानों की कर्जमाफी की घोषणा से तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतने वाली कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में दावा किया है किसानों के लिए अलग से बजट पेश किया जायेगा। अत: अलग बजट से किसानों की हालात में सुधार आयेगा, या फिर यह भी केवल एक घोषणा ही साबित होगी, जानते हैं क्या कहना है इस बारे में जानकारों का?
कृषि अर्थशास्‍त्री डॉ. टी. हक ने कहां कि बजट का मतलब होता है, आय और खर्च का ब्यौरा देना। खेती में आय तो होती नही, केवल खर्च होता है इसलिए कृषि के लिए अलग से बजट व्यावहारिक ही नहीं है। उन्होंने कहा कि खेती से राज्य सरकारों को तो आय होती है, लेकिन इससे केंद्र सरकार को कोई आय नहीं होती। हॉ यह हो सकता है कि खेती के लिए, किसानों के लिए लोकसभा में अलग से समय-समय पर चर्चा हो लेकिन किसानों के लिए अगल से बजट की बात तो एकदम से बेबुनियाद है।
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सांसद राजू शेट्टी ने कहा कि अलग बजट हो तो उसमें आय और खर्च का पूरा ब्यौरा होना चाहिए। किसानों के लिए अलग बजट, इतना जरुरी नहीं है जितना की किसानों की आय बढ़ाना। उन्होंने कहा कि किसान ट्रैक्टर, ट्रैक्टर के पार्ट्स, अन्य उपकरण, कीटनाशक, बीज या फिर खाद खरीदता है तो उसे जीएसटी देना पड़ता है, लेकिन जब किसान अपने उत्पाद मंडी में बेचता है तो उसे समर्थन मूल्य भी नहीं मिलता। किसान समर्थन मूल्य पर से नीचे भाव पर फसल बेचता है, तो बिक्री मूल्य और समर्थन मूल्य के अंतर का ब्यौरा भी सरकार को रखना चाहिए, तथा किसान की आय मानकर उसकी भरपाई करनी चाहिए। गन्ना उत्पादों जैसे चीनी, शीरा आदि की बिक्री पर भी जीएसटी लगता है, उस पर किसान का अधिकार होना चाहिए। इन सब का बजट में हिसाब—किताब होना चाहिए। 
भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही ने कहा कि किसानों की दो प्रमुख मांगें है, स्वामीनार्थन की रिपोर्ट के आधार पर फसलों की लागत का डेढ़ गुना दाम और संपूर्ण कर्जमुक्ति। उन्होंने कहा किसानों को इससे फर्क नहीं पड़ता कि, किसानों के लिए अलग से बजट हो। उनको इससे फर्क पड़ता है कि उनकी फसल समर्थन मूल्य से नीचे बिकती है। कांग्रेस किसानों के जिन मुद्दों को लेकर भाजपा पर हमला करती रही है, वह मुद्दे तो उनके घोषणापत्र में है ही नहीं।
कांग्रेस का भाजपा पर कृषि क्षेत्र को गहरे संकट में डालने का आरोप
मोदी सरकार ने रेल बजट को भी अब आम बजट में ही शामिल कर लिया है लेकिन राहुल गांधी ने वादा किया है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो किसानों के लिए अलग से पेश किया जाएगा। घोषणापत्र में मोदी सरकार पर कृषि क्षेत्र को गहरे संकट में डालने का आरोप भी लगाया है। घोषणपत्र में कहा गया है कि मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया गया। उन्हें उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया गया। किसानों की फसलों को भी नहीं खरीदा गया। जिसकी वजह से उनपर कर्ज का बोझ बढ़ता चला गया। वहीं रही सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में फसल बीमा पर भी सवाल उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि फसल बीमा के नाम पर बीमा कंपनियों ने अपनी जेबें भरी। किसानों और खेतिहर मजदूरों को सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली।
कृषि विकास और योजना आयोग बनाने की घोषणा
कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद किसानों के कर्ज को माफ करने का भी वादा किया है। साथ ही फसलों के उचित मूल्य, कृषि में कम लागत, बैंकों से ऋण सुविधा देने का भी वादा किया गया है। कांग्रेस ने कृषि क्षेत्र के विकास की योजनाओं और कार्यक्रम को बनाने के लिए एक स्थाई राष्ट्रीय आयोग “कृषि विकास और योजना आयोग” की स्थापना करने की भी घोषणा की है। इस आयोग में किसान, कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री सम्मलित होंगे।
कांग्रेस ने कृषि बीमा योजना में भी बदलाव करने की बात कहीं
घोषणापत्र में मोदी सरकार की कृषि बीमा योजना में बदलाव करने के भी वादे किए हैं। साथ ही देश के प्रत्येक ब्लॉक में आधुनिक गोदाम, कोल्ड स्टोर और खाद्य प्रसंस्करण सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए नीतियां बनाने की बात भी कही गई है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भूमि अधिग्रहण, पुर्नवास और पुनर्स्थापना अधिनियम-2013 और वनाधिकार अधिनियम-2006 के क्रियान्वयन में बदलाव करने के भी संदेश दिए हैं।.....  आर एस राणा

गन्ना किसानों का बढ़ता बकाया भाजपा के लिए चुनौती

आर एस राणा
नई दिल्ली। गन्ना किसानों का बढ़ता बकाया भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए लोकसभा चुनाव में चुनौती पैदा करेगा। सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के लगभग 69 जिलों के गन्ना किसान भुगतान नहीं मिलने से केंद्र एवं राज्य सरकारों से नाराज हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने पीएम-किसान योजना के माध्यम से लघु एवं सीमांत किसानों को साधने के लिए 6,000 सालाना देना शुरू किया, लेकिन गन्ना किसानों का बकाया कम होने के बजाए बढ़ता गया। माना जा रहा है कि इस समय देशभर की चीनी मिलों पर पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) के मार्च अंत तक बकाया बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये का पार कर चुका है, जिसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों का है।
यूपी और महाराष्ट्र के 69 जिलों में गन्ने की खेती कर रहे हैं किसान
उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से 45 और महाराष्ट्र के 36 जिलों में से 24 में किसान गन्ने की खेती करते हैं। पिछले पेराई सीजन 2017—18 में भी गन्ना किसानों को बकाया भुगतान में देरी हुई थी, जबकि चालू पेराई सीजन में हालात सुधरने के बजाए और बिगड़े हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों के बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए चीनी मिलों को ब्याज मुक्त कर्ज देने के साथ ही चीनी के न्यूनतम बिक्री भाव में भी बढ़ोतरी की, लेकिन बकाया भुगतान में सुधार नहीं आया। 
गन्ने की बुवाई के लिए पैसे नहीं
उत्तर प्रदेश के अमरोह जिले के देहराचक गांव के गन्ना किसान जोगिंद्र आर्य ने बताया कि वेव शुगर मिल ने अभी तक 11 जनवरी तक का भुगतान किया है। मिल द्वारा पेराई भी धीमी गति से की जा रही है जबकि करीब एक एकड़ गन्ना अभी भी खेत में खड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि आगे गन्ने की बुवाई करनी है लेकिन भुगतान मिल नहीं रहा है, अत: बकाया भुगतान नहीं होने के कारण आगे गन्ने की बुवाई के लिए पैसे नहीं है। 
सरकारों ने गन्ना किसानों को हमेशा बनाया मोहरा
लंबे समय से गन्ना किसानों के हितों की लड़ाई लड़ रहे राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक बीएम सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश के करीब दो करोड़ गन्ना किसान है, जिनका बकाया चीनी मिलों पर है। इससे किसानों में रोष है जिसका खामियाजा राज्य की भाजपा सरकार के साथ अन्य दलों को भी उठाना होगा। उन्होंने बताया किसानों को हमेशा सरकारों ने मोहरा बनाया है, चाहे वह कांग्रेस की सरकार हो, बसपा या फिर सपा की। इसलिए इस बार लोकसभा चुनाव में किसानों ने नोटा का बटन दबाने का फैसला किया है। केंद्र हो या फिर राज्य सरकार गन्ना किसानों के नाम पर चीनी मिलों को फायदा पहुंचा रही हैं।
बकाया के लिए किसान कर रहे हैं संघर्ष
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता युधवीर सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा दिए गए पैकेज से चीनी मिलों को फायदा हुआ है। किसान तो अभी भी अपना बकाया पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
महाराष्ट्र के किसानों पर दोहरी मार
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सांसद राजू शेट्टी के अनुसार महाराष्ट्र के गन्ना किसानों को चीनी मिलों से भुगतान में देरी हो रही है इससे राज्य के किसानों पर दोहरी मार पड़ी है। सूखे के चलते राज्य के किसानों को पहले ही आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए राज्य के किसान राज्स सरकार से नाराज हैं। राज्य की चीनी मिलों के पास नकदी की दिक्कत है जबकि पिछले दो साल से देश में चीनी का उत्पादन मांग से ज्यादा हो रहा है। केंद्र सरकार ने चीनी निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई।.....  आर एस राणा

सरकार ने एक लाख टन मक्का आयात को दी मंजूरी, कीमतों पर पड़ेगा असर

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने उद्योग की मांग को देखते रियायती दर पर एक लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दे दी है जिसका असर मक्का की कीमतों पर पड़ने की आशंका है। वैसे भी चालू महीने के मध्य तक बिहार, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में मक्का की नई मक्का की आवक शुरू हो जायेगी।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार पोल्ट्र उद्योग की मांग को पूरी करने के लिए 15 फीसदी के आयात शुल्क की दर पर एक लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दी है। इस मक्का का उपयोग पोल्ट्री फीड में ही होगी तथा उपयोगकर्ता कंपनियां को ही आयात की अनुमति दी जायेगी। डीजीएफटी के अनुसार तात्कालिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, कुछ निश्चित छूट और शर्तो के साथ ‘फीड ग्रेड’ मक्का को शूल्क दर कोटा (टैरिफ रेट कोटा) के तहत आयात करने की अनुमति दी गई है।
डीजीएफटी के अनुसार यह निर्णय पोल्ट्री क्षेत्र के कई प्रतिनिधियों से प्राप्त सूचना के उपरांत लिया गया है। पॉल्ट्री उद्योग ने कीट के हमले और मक्के की खेती के रकबे में कमी के चलते फ़ीड ग्रेड मक्का की अपूर्ति में कमी का उल्लेख करते हुए आयात में छूट की मांग की थी। उन्होंने शून्य शुल्क पर मक्का आयात की छूट दिए जाने का अनुरोध किया था।
यूक्रेन से हो सकता है आयात
यूएस ग्रेन काउंसिल के भारतीय प्रतिनिधि अमित सचदेव ने बताया कि सरकार ने एक लाख टन मक्का आयात की अनुतति दी है। आयात की मात्रा कम होने के कारण इसका कीमतों पर केवल आंशिक असर पड़ सकता है। उन्होंने बताया कि यूक्रेन की मक्का का भाव 170 से 175 डॉलर प्रति टन (एफओबी) है तथा इसका भाव 205 से 210 डॉलर (सीएंडएफ) होगा। दक्षिण भारत के पोल्ट्री फीड निर्माताओं को यह मक्का 1,800 से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच बैठेगी। उन्होंने बताया कि अमेरिका और ब्राजील में जीएम मक्का है, इसलिए इन देशों से आयात की संभावना नहीं है। वर्ष 2015 में भी केंद्र सरकार ने पांच लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दी थी, लेकिन आयात हुआ था केवल 2.5 लाख टन।
अगले सप्ताह नई फसल की बनेगी आवक
मक्का कारोबारी राजेश गुप्ता ने बताया कि बिहार की मंडियों में चालू महीने के मध्य तक नई फसल की आवक शुरू हो जायेगी, जबकि आयातित मक्का की खेप मई में ही आने का अनुमान है। मई में घरेलू मंडियों में भी आवक ज्यादा होगी, जिससे भाव में मंदा आने की संभावना है। उन्होंने बताया कि बिहार की मंडियों में मक्का के भाव 2,100 से 2,150 रुपये प्रति क्विंटल हैं। दिल्ली के नया बाजार में मक्का का भाव 2,300 से 2,350 रुपये प्रति क्विंटल है। माना जा रहा है कि बिहार में मक्का की दैनिक आवक बढ़ने पर अप्रैल के आखिर में भाव में 300 से 400 रुपये का मंदा बन सकता है। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के लिए मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,700 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। 
रबी में उत्पादन अनुमान कम
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में रबी सीजन में मक्का का उत्पादन 75.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 76.3 लाख टन का उत्पादन हुआ था। देश में खरीफ में मक्का का ज्यादा उत्पादन होता है। फसल सीजन 2018—19 में खरीफ और रबी सीजन को मिलाकर कुल उत्पादन 278 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 271.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था।.......   आर एस राणा

पेट्रोल में दस फीसद एथेनॉल ब्लेंडिंग अभी दूर की कौड़ी, 7.2 फीसदी की होगी आपूर्ति चालू सीजन में

 आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए एथेनॉल उत्पादन को बढ़ाने के लिए उद्योग को राहत तो दे रही है, लेकिन अभी कुल तक अनिवार्य 10 फीसदी ब्लेंडिंग के मुकाबले 7.2 फीसदी पर ही पहुंचा है। चालू पेराई सीजन 2018-19 में चीनी मिलों ने 237 करोड़ लीटर एथेनॉल की सप्लाई के अनुबंध किए हैं। अभी अनिवार्य 10 फीसदी का लक्ष्य दूर की कौड़ी ही है। पिछले पेराई सीजन में चीनी मिलों ने 150 करोड़ लीटर एथेनॉल की सप्लाई तेल कंपनियों को की थी।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन आफ इंडिया (इस्मा) के अनुसार अनिवार्य 10 फीसदी ब्लेंडिंग के लिए 330 करोड़ लीटर एथेनॉल की जरुरत होती है, जबकि चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों ने तेल कंपनियों के साथ 237 करोड़ लीटर एथेनॉल सप्लाई के अनुबंध किए हैं। पिछले गन्ना पेराई सीजन 2017-18 में चीनी मिलों ने तेल कंपनियों के साथ 160 करोड़ लीटर एथेनॉल सप्लाई के अनुबंध किए थे, जिसमें से सप्लाई केवल 150 करोड़ लीटर एथेनॉल की, की थी जोकि अनिवार्य 10 फीसदी ब्लेंडिंग का केवल 4.22 फीसदी ही था।
उद्योग के लिए एथेनॉल महत्वपूर्ण उत्पाद तो है ही, यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित ईंधन भी है साथ ही इससे बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी। यह किसानों के लिए भी लाभकारी है। केंद्र सरकार ने चीनी उद्योग को जून 2018 में 8,500 करोड़ रुपये का पैकेज देने की घोषणा की थी। इसमें 4,440 करोड़ रुपये सस्ते कर्ज के रूप में एथेनॉल की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए दिए गए थे।
सीधे गन्ने के रस से एथेनॉल का उत्पादन होने से, 5 लाख टन चीनी उत्पादन होगा कम
इस्मा के अनुसार चीनी मिलों ने जो 237 करोड़ लीटर ऐथनॉल की सप्लाई के अनुबंध किए हैं, उनमें से 45 करोड़ लीटर एथेनॉल की सप्लाई सीधे गन्ने के रस से बनने वाले बी-ग्रेड शीरे से की जायेगी, जिससे पांच लाख टन चीनी के उत्पादन में कमी आयेगी। साथ ही करीब 16.5 करोड़ लीटर ऐथनॉल की सप्लाई क्षतिग्रस्त खाद्यान्न (सड़े हुए आलू, मक्का, खराब खाद्यान्न) आदि से की जायेगी।
वर्ष 2022 तक 10 फीसदी के स्तर पर पहुंचने की उम्मीद
उद्योग के अनुसार पहले चार महीनों पहली दिसंबर 2018 से मार्च 2019 तक चीनी मिलों तेल कंपनियों को 75 करोड़ लीटर एथेनॉल की सप्लाई कर चुकी है, इसमें से 21 करोड़ लीटर ऐथनॉल का उत्पादन सीधे गन्ने के रस से बनने वाले बी-ग्रेड शीरे तथा क्षतिग्रस्त खाद्यान्न से किया गया है। इस्मा के अनुसार जिस तरह से केंद्र सरकार ने एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए उद्योग को राहत दी है, उससे अनिवार्य 10 फीसदी ब्लेंडिंग का टारगेट वर्ष 2022 तक पूरा हो जायेगा। उद्योग को उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक देश में ऐथनॉल का उत्पादन बढ़कर 20 फीसदी ब्लेंडिंग के स्तर पर पहुंच जायेगा।
केंद्र सरकार ने इथेनॉल के भाव बढ़ाये थे
सितंबर में आर्थिक मामलों की मंत्रीमंडलीय समिति (सीसीईए) ने एथेनॉल की कीमतों में भी बढ़ोतरी की थी। इसके तहत सीधे गन्ने के रस से बनने वाले बी-ग्रेड एथेनॉल का भाव 47.13 रुपये से बढ़ाकर 52.43 रुपये प्रति लीटर कर दिया था, हालांकि शीरे से उत्पादित सी-ग्रेड के एथेनॉल का मूल्य 43.70 रुपये से घटाकर 43.46 रुपये प्रति लीटर कर दिया था।......   आर एस राणा

उत्तर और मध्य भारत में झुलसाएगी गर्मी-आईएमडी

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने अगले तीन महीनों के लिए अपने मौसमी अनुमान में कहा कि अप्रैल से जून के बीच उत्तर एवं मध्य भारत में औसत तापमान सामान्य से 0.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहने की आशंका है। मौसम विभाग द्वारा सोमवार को जारी विज्ञप्ति में बताया कि तापमान देश के अन्य हिस्सों में सामान्य के करीब ही रहेगा।
मौसमी अनुमान में बताया गया कि मध्य भारत के ज्यादातर मौसम संबंधी उपखंडों और उत्तरपश्चिम भारत के कुछ उपखंडों में अप्रैल से जून का मौसम औसत तापमान सामान्य से 0.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहने का अनुमान है।
शेष उपखंडों में औसत अधिकतम तापमान सामान्य के करीब रहने की संभावना है। आईएमडी के उत्तर-पश्चिमी उपखंड में जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान आते हैं।
वहीं मध्य भारत के उपखंड में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गोवा, मध्यप्रदेश और गुजरात आते हैं। मौसम विभाग ने कहा कि पश्चिमी राजस्थान में मौसमी न्यूनतम एवं औसत तापमान सामान्य से एक डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहने का अनुमान है।...   आर एस राणा

केंद्र सरकार ने 6.5 लाख टन दलहन के आयात को दी मंजूरी, भाव में तेजी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 6.5 लाख टन दालों के आयात को मंजूरी दे दी है। मूंग और उड़द के डेढ़-डेढ़ लाख टन आयात को, और अरहर के दो लाख टन तथा मटर का डेढ़ लाख टन आयात करने की मंजूरी दी गई है।
केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए डेढ़ लाख टन मूंग का आयात आयातकों के माध्यम से किया जा सकेगा, इसके अलावा केंद्र सरकार ने जो अनुबंध किए है उसका आयात होगा। उड़द के आयात की अनुमति भी चालू वित्त वर्ष के लिए डेढ़ लाख, अरहर के आयात के आयात की 2 लाख टन की मात्रा तय की गई, इसके अलावा केंद्र सरकार ने जो अनुबंध अरहर आयात के केंद्र स्तर पर किए है, वह भी आयात होगा। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने मौजाम्बिक से 2 लाख टन के आयात अनुबंध किए हुए हैं। ऐसे में अरहर का आयात 4 लाख टन हो जायेगा। सरकार ने मटर के डेढ़ लाख टन के आयात की अनुमति दी है, जोकि वित्त वर्ष 2018-19 के एक लाख से ज्यादा है।
उत्पादक मंडियों में भाव समर्थन मूल्य से नीचे
कर्नाटक की गुलबर्गा मंडी के दालों के कारोबारी सी एस नादर ने बताया कि मंडी में अरहर के भाव 5,000 से 5,300 रुपये प्रति क्विंटल हैं, जबकि केंद्र सरकार ने अरहर का समर्थन मूल्य 5,675 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। दिल्ली के लारेंस रोड़ के दलहन व्यापारी राधाकिशन गुप्ता ने बताया कि दिल्ली में चना के भाव 4,300 से 4,400 रुपये प्रति क्विंटल और मध्य प्रदेश तथा राजस्थान की मंडियों में 4,000 से 4,100 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। केंद्र सरकार ने चना का समर्थन मूल्य पर चालू रबी के लिए 4,620 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
सरकारी सख्ती के बावजूद बढ़ा आयात
केंद्र सरकार ने दलहन आयात पर सख्ती करते हुए वित्त वर्ष 2018-19 के लिए डेढ़-डेढ़ लाख टन मूंग और उड़द तथा एक लाख टन मटर के साथ 2 लाख टन अरहर के आयात सीमा तय की थी। इसके अलावा चना के आयात पर 60 फीसदी और मसूर के आयात पर 30 फीसदी आयात शुल्क लगाया था। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी तक 21 लाख टन दालों का आयात हुआ।
रिकार्ड उत्पादन का अ
नुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में दालों का रिकार्ड 240.2 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में 239.5 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था......  आर एस राणा