आर एस राणा
नई
दिल्ली। खेती-किसानी चुनाव के समय हर पार्टी के घोषणापत्र में प्रमुखता से
जगह तो बनाती है, लेकिन यह अलग बात है कि चुनाव जीतने के बाद उन घोषणाओं
पर अमल कितना होता है। किसानों की कर्जमाफी की घोषणा से तीन राज्यों में
विधानसभा चुनाव जीतने वाली कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने
घोषणापत्र में दावा किया है किसानों के लिए अलग से बजट पेश किया जायेगा।
अत: अलग बजट से किसानों की हालात में सुधार आयेगा, या फिर यह भी केवल एक
घोषणा ही साबित होगी, जानते हैं क्या कहना है इस बारे में जानकारों का?
कृषि
अर्थशास्त्री डॉ. टी. हक ने कहां कि बजट का मतलब होता है, आय और खर्च का
ब्यौरा देना। खेती में आय तो होती नही, केवल खर्च होता है इसलिए कृषि के
लिए अलग से बजट व्यावहारिक ही नहीं है। उन्होंने कहा कि खेती से राज्य
सरकारों को तो आय होती है, लेकिन इससे केंद्र सरकार को कोई आय नहीं होती।
हॉ यह हो सकता है कि खेती के लिए, किसानों के लिए लोकसभा में अलग से
समय-समय पर चर्चा हो लेकिन किसानों के लिए अगल से बजट की बात तो एकदम से
बेबुनियाद है।
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सांसद
राजू शेट्टी ने कहा कि अलग बजट हो तो उसमें आय और खर्च का पूरा ब्यौरा
होना चाहिए। किसानों के लिए अलग बजट, इतना जरुरी नहीं है जितना की किसानों
की आय बढ़ाना। उन्होंने कहा कि किसान ट्रैक्टर, ट्रैक्टर के पार्ट्स, अन्य
उपकरण, कीटनाशक, बीज या फिर खाद खरीदता है तो उसे जीएसटी देना पड़ता है,
लेकिन जब किसान अपने उत्पाद मंडी में बेचता है तो उसे समर्थन मूल्य भी नहीं
मिलता। किसान समर्थन मूल्य पर से नीचे भाव पर फसल बेचता है, तो बिक्री
मूल्य और समर्थन मूल्य के अंतर का ब्यौरा भी सरकार को रखना चाहिए, तथा
किसान की आय मानकर उसकी भरपाई करनी चाहिए। गन्ना उत्पादों जैसे चीनी, शीरा
आदि की बिक्री पर भी जीएसटी लगता है, उस पर किसान का अधिकार होना चाहिए। इन
सब का बजट में हिसाब—किताब होना चाहिए।
भाजपा किसान मोर्चा के
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही ने कहा कि किसानों की दो प्रमुख मांगें
है, स्वामीनार्थन की रिपोर्ट के आधार पर फसलों की लागत का डेढ़ गुना दाम और
संपूर्ण कर्जमुक्ति। उन्होंने कहा किसानों को इससे फर्क नहीं पड़ता कि,
किसानों के लिए अलग से बजट हो। उनको इससे फर्क पड़ता है कि उनकी फसल समर्थन
मूल्य से नीचे बिकती है। कांग्रेस किसानों के जिन मुद्दों को लेकर भाजपा
पर हमला करती रही है, वह मुद्दे तो उनके घोषणापत्र में है ही नहीं।
कांग्रेस का भाजपा पर कृषि क्षेत्र को गहरे संकट में डालने का आरोप
मोदी
सरकार ने रेल बजट को भी अब आम बजट में ही शामिल कर लिया है लेकिन राहुल
गांधी ने वादा किया है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो किसानों के लिए अलग से
पेश किया जाएगा। घोषणापत्र में मोदी सरकार पर कृषि क्षेत्र को गहरे संकट
में डालने का आरोप भी लगाया है। घोषणपत्र में कहा गया है कि मोदी सरकार के
पांच साल के कार्यकाल में किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया गया। उन्हें
उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया गया। किसानों की फसलों को भी नहीं
खरीदा गया। जिसकी वजह से उनपर कर्ज का बोझ बढ़ता चला गया। वहीं रही सही कसर
नोटबंदी ने पूरी कर दी। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में फसल बीमा पर भी
सवाल उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि फसल बीमा के नाम पर बीमा कंपनियों ने
अपनी जेबें भरी। किसानों और खेतिहर मजदूरों को सरकार की तरफ से कोई सहायता
नहीं मिली।
कृषि विकास और योजना आयोग बनाने की घोषणा
कांग्रेस
ने सत्ता में आने के बाद किसानों के कर्ज को माफ करने का भी वादा किया है।
साथ ही फसलों के उचित मूल्य, कृषि में कम लागत, बैंकों से ऋण सुविधा देने
का भी वादा किया गया है। कांग्रेस ने कृषि क्षेत्र के विकास की योजनाओं और
कार्यक्रम को बनाने के लिए एक स्थाई राष्ट्रीय आयोग “कृषि विकास और योजना
आयोग” की स्थापना करने की भी घोषणा की है। इस आयोग में किसान, कृषि
वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री सम्मलित होंगे।
कांग्रेस ने कृषि बीमा योजना में भी बदलाव करने की बात कहीं
घोषणापत्र
में मोदी सरकार की कृषि बीमा योजना में बदलाव करने के भी वादे किए हैं।
साथ ही देश के प्रत्येक ब्लॉक में आधुनिक गोदाम, कोल्ड स्टोर और खाद्य
प्रसंस्करण सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए नीतियां बनाने की बात भी कही गई
है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भूमि अधिग्रहण, पुर्नवास और
पुनर्स्थापना अधिनियम-2013 और वनाधिकार अधिनियम-2006 के क्रियान्वयन में
बदलाव करने के भी संदेश दिए हैं।..... आर एस राणा
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