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30 दिसंबर 2018

त्रिपुरा में एफसीआई पहली बार किसानों से समर्थन मूल्य पर धान खरीदेगी

प्रधानमंत्री ने वाराणसी में देश को समर्पित किया चावल अनुसंधान केंद्र

आर एस राणा
नई दिल्ली। शनिवार को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में चांदपुर स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केन्द्र का उद्घाटन कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों को बड़ा तोहफा दिया। इसके साथ ही दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केन्द्र परिषद को भी राष्ट्र को समर्पित किया।
प्रधानमंत्री ने अनुसंधान केन्द्र के उद्घाटन के पूर्व इसकी प्रयोगशाला, पुस्तकालय आदि का निरीक्षण भी किया। इसके बाद उन्होंने कृषि विशेषज्ञों और केन्द्र के अफसरों से यहां होने वाले क्रिया-कलापों की जानकारी ली। प्रधानमंत्री गाजीपुर से सीधे यहा पहुंचे। 
चावल की बेहतर गुणत्तवा पर होगा शोध
केन्द्र में चावल की पैदावार और उसकी गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए शोध किया जायेगा। इस केन्द्र का फायदा पूर्वांचल ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत से जुड़े राज्यों को भी मिलेगा। बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड आदि राज्यों में धान की खेती बड़ी मात्रा में होती है। इस अनुसंधान केन्द्र में काला नमक, राजरानी, बादशाह पसंद और ब्लैक चावल जैसी उत्कृष्ट प्रजातियों की उत्पादकता पर भी शोध किया जायेगा।
नई किस्म विकसित करने में मिलेगी मदद
पूर्वांचल के जलवायु एवं मिट्टी में उपजाऊ होने वाली सुगंधा, बासमती और मंसूरी समेत अन्य हाईब्रिड प्रजातियों की गुणवत्ता, पैदावार, स्वादिष्टता, खुशबूदार, पौष्टिकता आदि को बढ़ाने का काम इस केंद्र में किया जायेगा।। केन्द्र में विभिन्न किस्म के अच्छे जीन लेकर नई किस्म विकसित करने पर जोर दिया जायेगा। मधुमेह की बीमारी को ध्यान में रखते हुए यहां धान की गुणवत्ता में सुधार के लिए कार्य किया जाएगा। करीब 93 करोड़ रुपये की लागत से बना यह अनुसंधान केन्द्र पूर्वी भारत का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय संस्थान है।......  आर एस राणा

28 दिसंबर 2018

गेहूं के साथ सरसों की बुवाई बढ़ी, दलहन और मोटे अनाजों की घटी

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में जहां गेहूं और सरसों की बुवाई में बढ़ोतरी हुई है, वहीं दलहन और मोटे अनाजों की बुवाई में कमी आई है। देशभर में रबी फसलों की कुल बुवाई 3.51 फीसदी घटकर अभी तक 546.22 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 566.11 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
कृषि मंत्रालय के अनुसार रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई चालू सीजन में 28 दिसंबर तक 277.37 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई केवल 274.16 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।
रबी दलहन की बुवाई कम
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 6.36 फीसदी घटकर 140.67 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 150.19 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई 10.63 फीसदी घटकर अभी तक केवल 91.64 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 102.54 लाख हेक्टेचर में बुवाई हो चुकी थी। अन्य दालों में मसूर की बुवाई 16.40 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 16.89 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मटर की बुवाई जरुर पिछले साल के 9.13 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 9.97 लाख हेक्टेयर में हुई है। उड़द और मूंग की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 5.87 और 3.08 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 6.45 और 2.92 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।
मोटे अनाजों की बुवाई में आई कमी
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 17.07 फीसदी घटकर 42.22 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 50.91 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई चालू रबी में 22.46 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 29.19 लाख हेक्टेयर में ज्वार की बुवाई हो चुकी थी। मक्का और जौ की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 12.13 और 7.02 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 13.64 और 7.25 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
तिलहन में सरसों की बुवाई ज्यादा
तिलहन की बुवाई चालू रबी में 0.34 फीसदी घटकर 74.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 74.40 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई पिछले साल के 63.82 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 65.79 लाख हेक्टेयर में हुई है। मूंगफली और असली की बुवाई चालू रबी में घटकर क्रमश: 3.29 और 3.10 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 4.26 और 3.63 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
धान की रोपाई 28.18 फीसदी पिछड़ी
धान की रोपाई चालू रबी 11.81 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 16.45 लाख हेक्टेयर में इसकी रोपाई हो चुकी थी।............   आर एस राणाा

भावांतर, कर्जमाफी समेत पट्टे पर खेती करने वालों पर केंद्र सरकार कर सकती है मेहरबानी

आर एस राणा
नई दिल्ली। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिली शिकस्त के बाद अब मोदी सरकार किसानों को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसी के लिए प्रधानमंत्री ने 26 दिसंबर को अहम बैठक बुलाई थी। इस बैठक में भावांतर योजना और कर्ज माफी समेत पट्टे पर खेती करने वाले किसानों को भी लोन/बीमा का लाभ देने का ऐलान कर सकती है।
सूत्रों के अनुसार अब सरकार उन किसानों को भी फसल बीमा और कर्ज माफी का फायदा पहुंचाना चाहती है जिनके पास अपनी जमीन नहीं है यानि कि बटाईदार और छोटे किसानों को राहत देना है। पट्टे पर खेती करने वाले किसानों को भी लोन/बीमा का लाभ देने के लिए फसल बीमा योजना और किसान कर्ज देने वाली स्कीम में बदलाव कर सकती है।
कर्ज नहीं लेने वाले किसानों को भी लाभ देने की तैयारी
नए नियमों के तहत मंडी रजिस्ट्रेशन के आधार पर कर्ज देने की योजना है। कर्ज ना लेने वाले किसानों को भी ये लाभ देने की योजना है। हर ब्लॉक में क्रॉप कलेक्शन सेन्टर खोले जा सकते हैं जहां किसान तय एमएसपी पर अपनी पैदावार बेच सकेंगे। पीएमओ ने कृषि मंत्रालय, नीति आयोग से इस पर जानकारी मांगी है।
बटाईदार किसानों को भी मिलें लाभ
सरकारी आंकड़े के मुताबिक देश में बटाईदार किसान करीब 15 फीसदी हैं। हालांकि जानकारों का मानना है कि देश में बंटाईदार या टेनेंट किसानों की संख्या 30 फीसदी से ज्यादा है। आंध्रप्रदेश में करीब 50 फीसदी जबकि पंजाब में 25 फीसदी खेती बटाई पर होती है।
फसलों की खरीद के लिए कई मॉडलों पर विचार
केंद्र सरकार फसलों की खरीद के लिए भावांतर के तर्ज पर किसानों के खाते में पैसा जमा करा सकती है। इसमें एमएसपी और बाजार भाव का अंतर किसान को सीधे खाते में मिलेगा। इसके अलावा एक विकल्प ये है कि तेलंगाना मॉडल के तहत फसलों की बुवाई से पहले प्रति एकड़ तय राशि किसान को मिले। सूत्रों के अनुसार देशभर में इस योजना पर सालाना करीब 1 लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। इसके अलावा एक विकल्प यह है कि 1 लाख तक के फसल लोन माफ कर दिए जाए। इस पर करीब 3.3 लाख करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है।....  आर एस राणा

गुजरात में सूखे के कारण गेहूं के साथ मोटे अनाजों की बुवाई 25.30 फीसदी घटी

आर एस राणा
नई दिल्ली। खरीफ में मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने के कारण गुजरात के कई जिलों में सूखे जैसे हालात होने का असर गेहूं के साथ मोटे अनाजों और अन्य फसलों की बुवाई पर पड़ा है। चालू रबी में राज्य में गेहूं और मोटे अनाजों की बुवाई में 25.30 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई है।
राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार 24 दिसंबर तक राज्य में अनाजों की बुवाई केवल 8.53 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 11.42 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। गेहूं की बुवाई चालू रबी में घटकर अभी तक केवल 7.30 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 10.13 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
ज्वार की बुवाई बढ़ी, मक्का की घटी
मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई चालू रबी में जरुर राज्य में बढ़कर 34,740 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 24,227 हेक्टेयर में ही हुई थी। मक्का की बुवाई चालू सीजन में घटकर राज्य में अभी तक 82,150 हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 92,664 हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई पिछड़ी
दालों की बुवाई भी चालू रबी में घटकर राज्य में 24 दिसंबर तक 1,86,606 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 3,13,582 हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई चालू रबी में घटकर 1.66 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 2.89 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
रबी तिलहन की बुवाई कम
तिलहन की बुवाई भी चालू रबी में राज्य में पिछले साल के 2.20 लाख हेक्टेयर से घटकर 1.95 लाख हेक्टेयर में ही हुई है। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई चालू रबी में 1.93 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 2.18 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी।
मसालों की बुवाई पिछले साल से घटी
मसालों में जीरा की बुवाई चालू सीजन में 3.21 लाख हेक्टेयर में और धनिया की 29,112 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक जीरा की 3.69 लाख हेक्टेयर में और धनिया की 68,784 हेक्टेयर में हो चुकी थी। इसके अलावा अन्य मसालों में सौंफ की बुवाई जरुर पिछले साल के 35,868 हेक्टेयर से बढ़कर चालू सीजन में 40,800 हेक्टेयर में हुई है। चालू सीजन में आलू की बुवाई राज्य में 1.19 और प्याज की 24,873 हेक्टेयर में ही हुई है जोकि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में कम है।............  आर एस राणा

दलहन निर्यात 141 फीसदी बढ़ने के बावजूद किसान को नहीं मिल रहा समर्थन मूल्य

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा दलहन निर्यात पर इनसेंटिव देने से निर्यात में तो बढ़ोतरी हुई है लेकिन किसानों को उड़द, मूंग और अरहर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 6,75 से 2,100 रुपये प्रति क्विंटल नीचे भाव पर ही बेचनी पड़ रही है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार मार्च 2018 से दलहन निर्यात पर 7 फीसदी का इनसेंटिव दे रही है, जिससे दलहन के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले सात महीनों अप्रैल से अक्टूबर के दौरान दालों का निर्यात 141 फीसदी बढ़कर 1.95 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में केवल 81,000 टन दालों का ही निर्यात हुआ था। अक्टूबर में 23,344 टन दालों का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल अक्टूबर में केवल 6,594 टन दालों का ही निर्यात हुआ था।
चना और मसूर को हो रहा है ज्यादा निर्यात
उन्होंने बताया कि दलहन में चना और मसूर का निर्यात मुख्यत: बंगलादेश, मिस्र, अमेरिका, सिंगापुर, नेपाल, भूटान, सऊदी अरब, मलेशिया और मालदीव को हुआ है। वित्त वर्ष 2017-18 में कुल 1.79 लाख टन दलहन का ही निर्यात हुआ था। केंद्र सरकार ने नवंबर 2017 में दलहन के निर्यात पर लगी रोक को हटाया था। 
उत्पादक मंडियों में भाव समर्थन मूल्य से नीचे
कर्नाटक की गुलबर्गा मंडी के दलहन कारोबारी चन्द्रशेखर एस नादर ने बताया कि मंडी में अरहर 4,600 से 5,000 रुपये और उड़द 4,400 से 4,800 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि केंद्र सरकार ने चालू खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के लिए अरहर और उड़द का एमएसपी क्रमश: 5,675 और 5,600 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। राजस्थान की कोटा मंडी के दलहन कारोबारी भानू जैन ने बताया कि मंडी मूंग 4,800 से 5,400 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि मूंग का एमएसपी 6,975 रुपये प्रति क्विंटल है।
एमएसपी पर खरीद कम
नाफेड उत्पादक मंडियों से एमएसपी पर दालों की खरीद तो कर रही है लेकिन खरीद दैनिक आवक की तुलना में कम हो रही है जिसका असर भी कीमतों पर पड़ा है। नाफेड ने अनुसार चालू खरीफ में 22 दिसंबर तक एमएसपी पर 2,16,939 टन मूंग और 1,61,583 टन उड़द तथा 3,529 टन अरहर की खरीद की है। 
पिछले साल दलहन की रिकार्ड हुई थी पैदावार
कृषि मंत्रालय के अनुसार फसल सीजन 2017-18 में देश में दलहन का रिकार्ड उत्पादन 252.3 लाख टन का हुआ है जबकि इसके पिछले साल दालों का उत्पादन 231.3 लाख टन का ही हुआ था। मंत्रालय ने फसल सीजन 2018-19 में 240 लाख टन दलहन उत्पादन का लक्ष्य तय किया है जबकि खरीफ 2018-19 में 92.2 लाख टन दालों के उत्पादन का अनुमान है। ...............  आर एस राणा

महंगे दाम पर यूरिया खरीदने को मजबूर हैं राजस्थान के किसान

आर एस राणा
नई दिल्ली। राजस्थान में गेहूं की बुवाई हुए महीनेभर से ज्यादा होने के कारण किसान फसल में पानी तो दे रहे हैं, लेकिन यूरिया खाद नहीं मिलने से दूकानों के चक्कर काटने पर मजबूर हैं। यूरिया की सप्लाई कम होने का दुकानदार भी फायदा उठ रहे हैं। कई दुकानदार 270 रुपये का कट्टा 400 से 430 रुपये में बेच रहे हैं। राज्य के कई जिलों में खाद की कमी को लेकर किसान धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं साथ ही खाद लेने के लिए किसानों को घंटों लाईन में लगना पड़ रहा हैं तथा कई जगहों पर पुलिस के पहरे में यूरिया बिक रहा है।
गंगापुर सिटी के गांव सांवटा पिचानौत के किसान महेश सिंह ने आउटलुक को बताया कि सप्ताहभर पहले गेहूं की फसल में पानी लगा दिया था, लेकिन यूरिया खाद सोसायटी में नहीं मिला। अत: कई दिनों तक चक्कर लगाने के बाद बालकिशन खाद बीज भंडार से 430 रुपये में यूरिया का कट्टा खरीदना पड़ा जबकि इसका सरकारी भाव 270 रुपये है। दूकानदार ने पैमेंट तो उदई मोड़ स्थित दूकान पर ली तथा खाद गंगापुर सिटी की पुरानी अनाज मंडी के गोदाम से दिया। साथ ही मांगने पर भी रसीद नहीं दी। उन्होंने बताया कि दुकानों पर यूरिया खाद होने के बावजूद भी दूकानदार 400 से 430 रुपये में कट्टा बेच रहे हैं।
तय भाव से 60-160 रुपये अधिक दाम चुका रहे हैं किसान
किसान जगदीश सिंह पिचानौत ने बताया कि गेहूं की फसल में पानी लगाने का समय है इसलिए किसानों को यूरिया की खरीद तय भाव से 60 से 160 रुपये प्रति कट्टा ज्यादा दाम पर करनी पड़ रही है। गंगापुर सिटी की नादौती और हिंडौन तहसीलों में ज्यादातर प्राइवेट दुकानों पर यूरिया 330 से 430 रुपये प्रति कट्टा बेचा जा रहा है।  
गेहूं की फसल की सिंचाई तो कर दी, लेकिन खाद नहीं मिला
गेहूं की फसल में तीन दिन पहले पानी लगाया था, लेेकिन यूरिया खाद नहीं मिलने से राजस्थान के बारां जिले की किशनगंज तहसील के गांव गोवर्धनपूरा का किसान रामलाल हर रोज दो किलोमीटर दूर अभिषेक कृषि सेवा केंद्र पर इस आस में आता है कि आज तो उसे दो कट्टे यूरिया मिल ही जायेगा लेकिन दूकानदार को भी मालूम नहीं है कि कब तक खाद आयेगा। इसी तरह से किशनगंज तहसील के ही नया गांव का किसान विजय सिंह भी यूरिया के लिए हर रोज चार किलोमीटर दूर यूरिया लेने आता है, लेकिन दूकान पर ही खाद नहीं मिल रहा। कोटा जिले की तहसील सांगोद के गांव जलूरी के किसान मेगराज नागर को उम्मीद बंदी है कि अगले एक-दो दिन में उसे यूरिया मिल जायेगा।
किसान दूकानों के लगा रहे हैं चक्कर
गोवर्धनपूरा के किसान रामलाल ने बताया कि उसने अपनी दो एकड़ गेहूं की फसल में पानी तो लगा दिया है, लेकिन यूरिया खाद नहीं मिल पा रहा है दूकानदार भी नहीं बता पा रहा है कि कब तक खाद आयेगा। अगर दो-तीन दिन और खाद नहीं मिला तो फिर खेत में नमी कम हो जायेगी, और खाद नहीं डाल पायेगा। जिला बारां की तहसील किशनगंज के परनिया मेन रोड पर स्थित अभिषेक कृषि सेवा केंद्र के प्रबंधक देवकीनंदन अगवाल ने बताया कि पहली नवंबर से 21 दिसंबर तक उसके पास केवल 65 टन यूरिया आया है जबकि इस दौरान मांग करीब 110 से 115 टन की रही। अत: किसानों को यूरिया की आपूर्ति में परेशानी हो रही है। उन्होंने बताया कि उनके पास अगली खेप कब आयेगी, अभी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
नवंबर से ही बनी हुई है परेशानी
कोटा जिला के बारां झालावाड़ रोड पर स्थित अग्रवाल फर्टिलाइजर के प्रबंधक अशोक अग्रवाल ने बताया कि पहली दिसंबर से अभी तक यूरिया नहीं आया है, जबकि नवंबर में भी केवल 36 टन यूरिया ही आया था। अत: मांग के मुकाबले यूरिया की आवक कम होने के कारण किसानों को परेशानी हो रही है। किसानों की लंबी लाईन लग जाती है जिस कारण पुलिस की मदद लेनी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि आज 24 दिसंबर को यूरिया का रैक लग रहा है, अत: 25 दिसंबर को उसे खाद मिल जायेगा। उन्होंने कहा कि गेहूं की बुवाई को महीनाभर से ज्यादा हो गया है अत: आगे मांग में कमी आने का अनुमान है।
60 हजार टन अतिरिक्त यूरिया की मांग
सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री के निर्देश पर कृषि विभाग के प्रमुख शासन सचिव अभय कुमार दिल्ली आये थे और यहां केंद्रीय उर्वरक और रसायन मंत्रालय के सचिव से मुलाकात कर राज्य के लिए 60 हजार मीट्रिक टन यूरिया के अतिरिक्त आवंटन की मांग की। दिल्ली से लौटकर अभय कुमार ने यूरिया उत्पादक कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ भी बैठक की और चंबल फर्टिलाइजर तथा श्रीराम फर्टिलाइजर निर्देश दिया कि दोनों कंपनियां सड़क मार्ग से भी यूरिया की सप्लाई सुनिश्चित करें।............  आर एस राणा

23 दिसंबर 2018

प्याज किसानों को दो रुपये के अनुदान के बाद भी नहीं मिलेगी लागत-राजू शेट्टी

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्याज पर किसानों की लागत 9 से 10 रुपये प्रति किलो आई है जबकि किसान महाराष्ट्र की मंडियों में नीचे में एक से दो रुपये प्रति किलो के भाव पर बेचने को मजबूर हैं। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा 2 रुपये प्रति किलो के अनुदान से लागत भी वसूल नहीं हो रही है।
स्वाभिमान शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सदस्य राजू शेट्टी ने आउटलुक को बताया कि राज्य के किसान मंडियों में नीचे में एक से दो रुपये प्रति किलो के भाव प्याज बेचने पर मजबूर है जबकि राज्य सरकार ने 2 रुपये प्रति किलो का अनुदान देने का फैसला किया है। इससे किसानों को 3 से 4 रुपये प्रति किलो का ही दाम मिलेगा। अत: लागत के मुकाबले उन्हें छह से सात रुपये प्रति किलो की दर से नीचे दाम पर ही बेचना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को कम से पांच या छह रुपये प्रति किलो का अनुदान देना चाहिए था।
महाराष्ट्र के साथ मध्य प्रदेश और गुजरात में भाव नीचे
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (एनएचआरडीएफ) के अनुसार महाराष्ट्र की लासलगांव मंडी में 21 दिसंबर को प्याज 101 से 825 रुपये, जलगांव मंडी में 250 से 750 रुपये, धुलिया मंडी में 100 से 600 रुपये प्रति क्विंटल रहे। उधर मध्य प्रदेश की नीमच मंडी में प्याज के भाव 21 दिसंबर को 100 से 725 रुपये और गुजरात की जामनगर मंडी में 150 से 500 रुपये तथा दिल्ली की आजादपुर मंडी में 375 से 1,125 रुपये प्रति क्विंटल रहे।
महाराष्ट्र सरकार ने 150 करोड़ की राहत देने की घोषणा की
महाराष्ट्र सरकार ने 20 दिसंबर को प्याज किसानों को 150 करोड़ रुपये की राहत देने की घोषणा की थी। इसके तहत एक नवंबर से 15 दिसंबर, 2018 के बीच बेचे गए प्याज के लिए 200 रुपये प्रति क्विंटल (200 क्विंटल की ऊपरी सीमा के साथ प्रति प्याज किसान) का एक अनुग्रह भुगतान शामिल है।
नासिक के किसान ने भेजा था प्रधानमंत्री को 1,064 रुपये का मनीआर्डर
पिछले महीने, नासिक जिले के किसान संजय साठे ने थोक बाजार में 750 किलोग्राम प्याज बेचने के मिले 1,064 रुपये विरोधस्वरूप प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दिए थे। हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय ने बाद में किसान के मनीआर्डर को वापस लौटा दिया था। किसान ने कहा था कि उनका इरादा सरकार को कम कीमतों के कारण किसानों को होने वाली भारी वित्तीय दिक्कतों को कम करने के लिए कुछ कदम उठाने के लिए प्रेरित करना था।
अहमदनगर जिले के किसान ने राज्य के मुख्यमंत्री को भेजे थे 6 रुपये
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक अन्य किसान, श्रेयस अभाले ने प्याज की कीमतों के लुढ़कने और कम आय मिलने के विरोध में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को छह रुपये का मनी ऑर्डर भेजा था। अभाले ने कहा था कि जिले के संगमनेर थोक बाजार में एक रुपये प्रति किलो की दर से 2,657 किलोग्राम प्याज बेचने और बाजार के खर्चों को समायोजित करने के बाद, उन्हें केवल छह रुपये मिले थे।............  आर एस राणा

कर्ज माफी समस्या का स्थाई समाधान नहीं किसानों की आय बढ़ाने के लिए ठोस नीति जरुरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनाव खत्‍म होने के बाद यह तो तय है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में किसानों की कर्जमाफी और अन्य मांगों की अनदेखी नहीं की जा सकती। यही कारण है कि तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कर्जमाफी की प्रक्रिया शुरू कर दी, साथ ही असम, गुजरात और छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकारों ने भी अपने-अपने राज्यों में किसानों को राहत देनी शुरू कर दी है। कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी बार-बार यह संदेश दे रहे हैं कि आगे भी कांग्रेस इस मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में जानकारों का मानना है कि कर्जमाफी फौरी राहत तो है, लेकिन समस्या के स्थाई समाधान के लिए राज्य और केंद्र सरकारों को ठोस रणनीति बनानी होगी।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (आईकेएससीसी) के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि कर्जमाफी किसानों के लिए फौरी राहत है, फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने के साथ ही हर किसान को उसकी फसल का एमएसपी मिले यह सुनिश्चित करना जरुरी है। किसानों की समस्या के स्थाई समाधान के लिए इन दोनों कामों को एक साथ करना होगा। इसीलिए आईकेएससीसी दो केंद्रीय कानूनों के माध्यम से इन दोनों को सभी किसानों का वैधानिक अधिकार बनाना चाहती है। 
एमएसपी पर खरीद कानूनी अधिकार हो
उन्होंने कहा कि किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है, अत: अगली पीढ़ी को खेती से जोड़ने के लिए किसानों के दोनों प्रावइेट बिलों को पारित कराने के लिए संयुक्त रुप से संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले बिल में स्पष्ट कहा गया है कि कर्जमाफी केवल एकबारगी है, इससे उन सभी किसानों को फायदा होगा, जो कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं। साथ ही जो किसान कर्ज चुका चुके हैं उनको भी इसका लाभ मिले। दूसरा प्राइवेट बिल स्वामीनाथन रिपोर्ट के मुताबिक फसलों का एमएसपी निर्धारण सुनिश्चित करता है, यानि उत्पादन लागत का डेढ़ गुना ज्यादा। विधेयक यह भी गांरटी देता है कि कोई भी व्यक्ति एमएसपी से कम कीमत पर उत्पाद नहीं खरीद सकता है, और अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल की सजा तो होगी ही, साथ ही जुर्माने के रुप में भुगतान की गई राशि और एमएसपी के अंतर की दोगुना राशि भी किसान को चुकानी होगी। देशभर के किसानों को पटरी पर लाने के लिए यह एक मात्र उपाय है।
देश के 52.5 फीसदी किसान कर्जदार 
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने अगस्त 2018 में एक रिपोर्ट में बताया था कि देश में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 फीसदी किसान कर्जे में दबे हुए हैं। यानि की देश के आधे से ज्यादा किसान कर्जदार हैं। यही कारण है कि विपक्ष हो या फिर सत्ताधारी पार्टी कर्जमाफी को मुद्दा बना रही हैं।
हर राज्य का किसान कर्जवान
भाजपा के किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही ने बताया कि हमारी कृषि नीति और कृषि पद्धति ऐसी है कि इससे उद्योग को तो फायदा हो रहा है, लेकिन किसान कर्जवान बनता जा रहा है। उन्होंने कहा आज हर राज्य में किसान कर्ज के नीचे दबा हुआ है, चाहे हरित क्रांति में अहम योदगदान देने वाले राज्य के किसान ही हों। ऐसे में कर्जमाफी योजना से किसानों को फौरी राहत तो मिल सकती है, लेकिन स्थाई समाधान के लिए कृषि नीति और कृषि पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। 
उपभोक्ता जो दाम चुकाता है, उसमें किसान की हिस्सेदारी मात्र 20-25 फीसदी
किसान के खेत छोटे होते जा रहे हैं, साथ ही खेती की लागत बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि कर्ज माफी से केवल उन्हीं किसानों को फायदा होगा, जिन किसानों ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से कर्ज ले रखा है। अत: कर्जमाफी पर हल्ला ज्यादा किया जा रहा है, जबकि इसका लाभ केवल कुछ किसानों को ही मिलेगा। राष्ट्रीयकृत बैंक ज्यादातर बड़े किसानों को ही ऋण देते हैं, अत: मजबूरीवश छोटे किसानों को साहूकारों से या फिर अन्य जगहों से मोटे कर्ज पर ऋण लेना पड़ता है। इसलिए छोटे किसानों को जिन्होंने साहूकारों या फिर अन्य जगहों से कर्ज लिया है, उन्हें इसका फायदा नहीं मिल पायेगा। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न हो या फिर फल सब्जियों के जो भाव उपभोक्ता चुकाता है, उसमें से किसान को केवल 20 से 25 फीसदी हिस्सा ही मिल पाता है। अत: बिचौलियां ही ज्यादा लाभ उठाते हैं, इसी तरह से दूध की बात करें, तो किसान लागत से भी 8 से 10 रुपये प्रति लीटर नीचे दाम पर दूध बेचने पर मजबूर है। ऐसे में खेती को लाभ का सौदा बनाने के लिए नीतियां में बदलाव जरुरी है।
देश में 41.6 फीसदी ऋण गैर-संस्थागत स्रोतों से लिया जाता है
नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण (31 मार्च 2017 तक की स्‍थिति) से पता चलता है कि किसानों के कुल कर्ज का 58.4 फीसदी संस्थागत ऋण है और 41.6 फीसदी ऋण गैर-संस्थागत स्रोतों से लिया गया है। इससे साफ है कि किसान बैंकों के अलावा साहूकारों तथा महाजनों तथा अन्य स्रोतों से कर्ज लेते हैं। 
किसानों के कर्ज के लिए केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार
स्वाभिमान शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सदस्य राजू शेट्टी ने कहा कि देश का किसान कर्ज तले दबा हुआ है, इसके लिए केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार है। अत: देशभर के किसानों की पूर्ण कर्जमाफी केंद्र सरकार को करनी चाहिए। राज्य सरकारें जो कर्जमाफी कर रही है, उसका लाभ कुछ ही किसानों को मिल पाता है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार की नीतियां चाहे आयात-निर्यात नीति हो या फिर, फसलों की खरीद नीति के अलावा फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने में किसानों के हितों की हमेशा अनदेखी की जाती है।
बैंकों के बजाए साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है किसान को
देश के अधिकांश किसान या तो साहूकारों से कर्ज लेते हैं या फिर महाजनों से। अत: राज्य सरकारों द्वारा की जा रही कर्जमाफी का इन किसानों को लाभ नहीं मिल पाता है। किसान साहूकार या महाजन से उंची ब्याजदर पर कर्ज ले लेता है, जबकि अधिकांश बार उसे फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता, या फिर प्रतिकूल मौसम से फसल खराब हो जाती है जिस कारण किसान कर्ज नहीं चुका पाता है। कई बार परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि किसान को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ता है। इसलिए केंद्र सरकार को राज्यों के साथ मिलकर देशभर के किसानों के लिए कोई ठोस नीति बनाने की जरुरत है। .............  आर एस राणा

रबी फसलों की बुवाई 4.58 फीसदी घटी, मोटे अनाजों के साथ दलहन पर ज्यादा असर

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में मानसूनी बारिश कम होने का असर रबी फसलों की बुवाई पर भी असर पड़ा है। देशभर में रबी फसलों की बुवाई 4.58 फीसदी घटकर अभी तक 512.53 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। मोटे अनाज के साथ ही दलहन की बुवाई में तो कमी आई ही है, साथ ही रबी धान की रोपाई भी पिछले साल की तुलना में 31.63 फीसदी पिछड़ी है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार देशभर में रबी फसलों की बुवाई 512.53 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 537.12 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई चालू सीजन में अभी तक 253.52 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 257.47 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
रबी दलहन में चना और मसूर की बुवाई कम
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 4.99 फीसदी घटकर 136.25 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 143.40 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई 9.19 फीसदी घटकर अभी तक केवल 89.36 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 98.40 लाख हेक्टेचर में बुवाई हो चुकी थी। अन्य दालों में मसूर की बुवाई 15.91 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 16.27 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मटर की बुवाई जरुर पिछले साल के 8.84 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 9.78 लाख हेक्टेयर में हुई है। उड़द और मूंग की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 5.28 और 2.59 लाख हेक्टेयर में हुई है।
मोटे अनाजों में ज्वार, मक्का और जौ की बुवाई घटी
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 17.37 फीसदी घटकर 40.26 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 48.72 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई चालू रबी में 21.63 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 28.48 लाख हेक्टेयर में ज्वार की बुवाई हो चुकी थी। मक्का और जौ की बुवाई चालू रबी में क्रमश: 11.27 और 6.77 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 12.57 और 6.88 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
तिलहन में सरसों की बुवाई बढ़ी, मूंगफली की घटी
तिलहन की बुवाई चालू रबी में 0.57 फीसदी घटकर 72.53 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 72.94 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई पिछले साल के 63.05 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 64.17 लाख हेक्टेयर में हुई है। मूंगफली और असली की बुवाई चालू रबी में घटकर क्रमश: 2.91 और 3 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 4.06 और 3.27 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
धान की रोपाई पर सबसे ज्यादा असर 
धान की रोपाई चालू रबी में 31.53 फीसदी घटकर केवल 9.98 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 14.58 लाख हेक्टेयर में इसकी रोपाई हो चुकी थी।............  आर एस राणा

इलाहाबाद हाईकोर्ट : तीन सप्ताह में गन्ना किसानों के ब्याज भुगतान के आदेश का पालन करे, वर्ना केन कमिश्नर कोर्ट में पेश हो

आर एस राणा
नई दिल्ली। गन्ना किसानों के ब्याज के बकाया भुगतान पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार को एक बार फिर झटका दिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरूवार को अपने फैसले में कहा कि या तो तीन सप्ताह में ब्याज के बकाया भुगतान के फैसले पर अमल किया जाए, नहीं तो 4 फरवरी को राज्य के केन कमिश्नर संजय भूसरेड्डी अदालत में हाजिर हो।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने इस मामले में और 6 महीने का समय देने की मांग की थी, जिसका वीएम सिंह ने कड़ा विरोध किया। वीएम सिंह ने कहा कि वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव है, इसलिए राज्य सरकार मामले को लटकाना चाहती है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार मिल मालिकों के साथ मिली हुई है, जबकि किसानों को इसका नुकसान झेलना पड़ रहा है।
राज्य सरकार की तरफ से हाईकोर्ट में कहा गया कि एक-एक किसान के बकाया का आकलन किया जा रहा है, इस पर वीएम सिंह ने कहा कि किसान फसल की बुवाई के लिए लोन लेता है, ट्रेक्टर पर लोन लेता है तथा फसल की कटाई तक वह लोन नहीं चुका पाता क्योंकि चीनी मिलों ने उसके बकाया का भुगतान नहीं किया है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह किसानों का मामला है इसलिए वह किसानों के साथ है। वीएम सिंह ने कहा कि राज्य की 121 चीनी मिलों में 23 चीनी मिलें तो राज्य सरकार की है, अत: राज्य सरकार पहले उनका तो भुगतान करे।
मामले में वीएम सिंह द्वारा अवमानना याचिका दाखिल कर बताया गया कि मार्च 2017 में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक आदेश जारी कर उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के बकाया भुगतान ब्याज समेत किए जाने का आदेश दिया था और इस बारे में तत्कालीन अखिलेश सरकार के कैबिनेट के फैसले को रद्द कर दिया था।
लगभग 40 से 42 लाख किसान परिवारों का है बकाया
वी एम सिंह ने बताया कि राज्य के करीब 40 से 42 लाख किसान परिवारों का बकाया का ब्याज है। अदालत ने साल 2012-13 और 2013-14 तथा 2014-15 के जिस बकाये पर ब्याज देने को कहा है वह रकम करीब 2,500 करोड़ रुपये होती है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन अखिलेश सरकार ने कैबिनेट में बकाया भुगतान नहीं करने का प्रस्ताव पारित किया था, जिस कारण अखिलेश सरकार को किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ी, और उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। उन्होंने कहा कि अगर योगी सरकार ने भी किसानों के ब्याज के बकाया भुगतान पर टालमटौल का रवैया जारी रखा, तो उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतान पड़ेगा।  
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2014 और 2015 में आदेश जारी कर गन्ना किसानों के उनके बकाया का भुगतान ब्याज समेत किये जाने का आदेश दिया था, लेकिन तत्कालीन अखिलेश सरकार ने इसके खिलाफ कैबिनेट में प्रस्ताव पास कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने मार्च 2017 में रद्द कर दिया था। ..........आर एस राणा

बेहतर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर खाद्यान्न की बर्बादी रोकी जाए-राष्ट्रपति

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्यान्न की बर्बादी पर चिन्ता व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि फसलों के तैयार होने के बाद होने वाले नुकसान को बेहतर प्रौद्योगिकी के प्रयोग से रोका जाना चाहिए। राष्ट्रपति ने गुरुवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में आल इंडिया फूड प्रोसेसर्स एसोसिएशन (एआईएफपीए) के प्लेटिनम जुबली सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए भोजन की बर्बादी पर चिन्ता व्यक्त की और कहा कि बेहतर तरीकों के उपयोग और वितरण से इसे रोका जा सकता है।
उन्होंने कहा कि देश में खाद्यान्न की कमी नहीं है लेकिन इसकी बर्बादी नैतिक तौर पर ठीक नहीं है। उन्होंने इसी प्रकार फसलों के तैयार होने के बाद होने वाले नुकसान पर भी चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा देश में इससे सालाना एक लाख करोड़ रुपये की क्षति होती है। उन्होंने इसे एक त्रासदी करार देते हुए कहा कि आधारभूत सुविधाओं और भंडारण के अभाव में यह नुकसान होता है। इस क्षति को रोकने में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
देश में 42 मेगा फूड पार्क और 274 कोल्ड चेन स्थापित करने का निर्णय
राष्ट्रपति ने खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में आधारभूत सुविधाओं के विकास तथा कोल्ड चेन की स्थापना के लिए निवेश पर जोर देते हुए कहा कि सरकार इस दिशा में कई कदम उठा रही है। देश में 42 मेगा फूड पार्क की स्थापना का निर्णय लिया गया है जिनमें से कइयों में कामकाज शुरु हो गया है। इसके साथ ही 274 काेल्ड चेन स्थापित की जायेंगी, जिनमें से 129 कोल्ड चेन चालू हो गई है। प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना के माध्यम से भी फसलों के नुकसान को कम करने का प्रयास किया गया है।
खाद्य वस्तुओं की पैकेजिंग में आधुनिक प्रौद्योगिकी का हो उपयोग
राष्ट्रपति ने कहा कि बदलती जीवन शैली और स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता को देखते हुए लोग प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं की ओर आकर्षित होने लगे हैं। ऐसी वस्तुओं की पैकेजिंग में आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए जोकि जैविक रूप से नष्ट हो सकें। उन्होंने कहा कि देश में खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखकर 190 खाद्य जांच प्रयोगशालाओं की स्थापना की गयी है।
छोटे—छोटे कोल्ड स्टोरेज के निर्माण पर जोर
उन्होंने कहा कि जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं को बचाने के लिए छोटे-छोटे कोल्ड स्टोरेज के निर्माण पर जोर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा इनका निर्माण इस प्रकार से किया जाना चाहिए जिससे वे सौर ऊर्जा से चलाये जा सकें। उन्होंने छोटे से छोटे स्तर पर प्रसंस्करण सुविधा का विस्तार करने पर जोर देते हुए कहा कि इसकी पहुंच साधारण परिवारों तक हो ताकि वह प्रसंस्करण कर जैसे अचार या फिर कुछ अन्य खाद्य वस्तुओं की पैकिंग और ग्रेडिंग आदि कर सकें। 
सालाना एक लाख चार हजार टन खाद्य प्रसंस्करण क्षमता
इस अवसर पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण के महत्व को देखते हुए इसके लिए अलग से मंत्री रखा। उन्होंने बताया कि पिछले पांच साल के दौरान इस उद्योग में पांच लाख लोगों को रोजगार मिला है और देश में सालाना एक लाख चार हजार टन प्रसंस्करण क्षमता का विस्तार किया गया है।
कुल उत्पादन के 10 फीसदी का होता है प्रसंस्करण
उन्होंने कहा कि देश में कृषि के कुल उत्पादन के केवल 10 फीसदी हिस्से का ही प्रसंस्करण हो पाता है जिसे बढ़ाना जरुरी है तथा खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय इसी कड़ी में काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि खाद्य प्रसंस्करण में आ रही बाधाओं को काफी हद तक दूर किया गया है और बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश आया है। उन्होंने कहा कि दुनिया की बढ़ती आबादी के लिए भोजन एक चुनौती है और इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए लोग भारत और चीन की ओर देख रहे हैं।
किसानों और महिलाओं को सशक्त बनाना
इस अवसर पर एसोसिएशन के अध्यक्ष सुबोध जिंदल ने कहा कि उनके संगठन का उद्देश्य देश को खाद्य उद्योग का विश्व बाजार बनाना है और अंतिम रुप से किसानों और महिलाओं को शक्तिशाली बनाना तथा रोजगार सृजित करना है। एआईएफपीए देश में खाद्य प्रसंस्करण के संवर्धन के लिए समर्पित है। इस उद्देदश्य से यह सक्षम तकनीकियों, अभिनव प्रयोगों, नए उत्पादों के विकास, उद्यमशीलता, कानूनों एवं नियमों के अनुकूलन को बढ़ावा देता है।
उन्होंने कहा कि इसका मिशन कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार और जल्द खराब होने वाले खाद्य पदार्थों का संरक्षण है। साथ ही, प्राकृतिक उत्पादों के पूर्ण सदुपयोग तथा उपभोक्ताओं को पोषण युक्त खाद्य सामग्रियां उपलब्ध कराने पर जोर देता है। ............  आर एस राणा

मध्य प्रदेश और छत्तसीगढ़ में किसानों की कर्ज माफी, भाजपा शासित अन्य राज्यों पर बढ़ा दबाव

सरकार बनते ही किसानों की कर्ज माफी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने शपथ ली और कुछ ही घंटों में यह खबर आ गई कि दोनों राज्यों की सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ कर दिए। उम्मीद है कि राजस्थान से किसी भी समय यह खबर आ सकती है। इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस ने चुनाव से पहले जनता से किया अपना वादा निभाया है तथा इससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर भी दबाव बन रहा है कि वह अपने वादे पूरे करे। वर्ष 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के 13 लाख करोड़ कर्ज माफी का वादा किया था जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। 
इसका असर भाजपा शासित राज्यों पर भी पड़ना शुरु हो गया है तथा असम सरकार ने भी 600 करोड़ रुपये की किसान कर्जमाफी का ऐलान कर दिया है, जबकि गुजरात सरकार ने छह लाख 22 हजार उपभोक्ताओं के साढ़े छह सौ करोड़ रुपये के बिजली बिल माफ करने की घोषणा कर दी है।
साल 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ ही कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने है, अत: अन्य राज्य सरकारों पर भी किसानों की कर्ज माफी का दबाव बनेगा। सूत्रों के अनुसार हरियाणा की भाजपा सरकार पर ज्यादा दबाव है, क्योंकि पड़ोसी राज्यों पंजाब और उत्तर प्रदेश की सरकारें पहले ही किसानों की कर्ज माफी कर चुकी है
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ने वर्ष 2017 में किसानों की 36,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी योजना को मंजूरी दी थी, जबकि पंजाब की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वर्ष 2018 में किसानों की 10,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी को मंजूरी दी थी। उधर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने वर्ष 2018 में 34,000 करोड़ रुपये की किसान कर्ज माफी को मंजूरी दी थी। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने भी वर्ष 2018 में 8,000 करोड़ रुपये के किसानों के कर्ज माफ किए थे। इससे पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने वर्ष 2017 में किसानों की 34,000 करोड़ रुपये की किसान कर्ज माफी की थी। वर्ष 2017 में तमिलनाडु सरकार और वर्ष 2016 में तेलंगाना सरकार के साथ वर्ष 2014 में आंध्रप्रदेश सरकार भी किसानों के कर्ज माफ कर चुकी हैं।  
इस समय जिस तरह का कृषि संकट है, उसमें किसानों की कर्जमाफी एक फौरी जरूरत भी है। ठीक वैसे ही, जैसे कई मौकों पर उद्योगों, खासकर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के कर्ज माफ होते रहे हैं। कर्जमाफी के पीछे का एक तर्क यह भी है कि दो साल पहले हुई नोटबंदी का सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हुआ है, क्योंकि एक तो किसान का सारा कारोबार नगदी में ही होता है और जब नोटबंदी हुई, उस समय वे कैशलेस नाम की चीज से कोसों दूर थे, इसलिए किसानों के लिए कर्जमाफी तत्काल राहत का काम कर सकती है।
पिछले कुछ समय में जिस तरह से कर्ज में डूबे किसानों द्वारा आत्महत्या की एक के बाद एक खबरें आईं हैं, उसने भी सरकारों और राजनीतिक दलों पर कर्जमाफी का दबाव बनाया। लेकिन यह भी एक सच है कि कोई भी राजनीतिक दल, कोई भी अर्थशास्त्री और यहां तक कि कोई भी किसान संगठन यह नहीं कह रहा कि कर्जमाफी से कृषि संकट का हल हो जाएगा और किसानों के सारे दुख दूर हो जाएंगे। सब इसे तत्काल राहत ही मान रहे हैं। खुद राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी यह स्वीकार किया था।

असम सरकार ने किसानों की 600 करोड़ की ऋण माफी को दी मंजूरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बाद असम सरकार ने भी 600 करोड़ रुपये की किसान कर्ज माफी का ऐलान किया है। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने इसकी घोषणा की है। बताया जा रहा है कि असम सरकार के इस कदम से तकरीबन 8 लाख किसानों को फायदा मिलेगा।
असम के उद्योग मंत्री चंद्र मोहन ने मंत्रिमंडल के फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि किसानों का अधिकतम 25,000 रुपये का कृषि ऋण माफ होगा। उन्होंने बताया कि किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) और पीएसयू बैंकों के माध्यम से लिए गए सभी कृषि ऋणों पर यह लागू होगा।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने एक ब्याज राहत योजना को भी मंजूरी है जिसके माध्यम से अगले वित्तीय वर्ष से लगभग 19 लाख किसानों को शून्य ब्याज पर ऋण लेने की सुविधा होगी। उन्होंने बताया कि सोमवार की रात को कैबिनेट की बैठक में इसका निर्णय लिया गया। इससे राज्य सरकार पर 600 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।
इससे पहले मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ की राज्य सरकारों ने किसानों की कर्ज माफी की घोषणा की थी। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव से पहले वादा किया था कि राज्य में उनकी सरकार आती है, तो उनकी सरकार बनने के 10 दिन के अंदर किसानों के कर्ज माफ कर दिया जायेंगे।...........  आर एस राणा

चालू पेराई सीजन में 70.52 लाख टन चीनी का उत्पादन, पिछले साल से 2.1 फीसदी ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर से शुरू हुए चालू गन्ना पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में 15 दिसंबर तक चीनी का उत्पादन 2.1 फीसदी बढ़कर 70.52 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 69.04 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार महाराष्ट्र में रिकवरी की दर ज्यादा आने, के साथ ही पेराई जल्द आरंभ होने से चीनी के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। चालू पेराई सीजन में अभी तक देशभर की 462 चीनी मिलों में ही पेराई आरंभ हुई है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 476 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी।
महाराट्र में रिकवरी की दर ज्यादा
इस्मा के अनुसार महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 15 दिसंबर तक 29 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 25.70 लाख टन ही चीनी का उत्पादन हुआ था। चालू पेराई सीजन में राज्य में गन्ने में रिकवरी की दर औसतन 10.18 फीसदी की आ रही है जबकि पिछले पेराई सीजन में रिकवरी की दर 10.10 फीसदी की आ रही थी। राज्य में 178 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय तक केवल 176 चीनी मिलों में ही पेराई चल रही थी।
उत्तर प्रदेश में उत्पादन घटा
उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 15 दिसंबर तक केवल 18.94 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 23.37 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। राज्य में 116 चीनी मिलों में ही पेराई आरंभ हुई है।
कर्नाटक में चीनी उत्पादन ज्यादा
उधर कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 15 दिसंबर तक 13.94 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 11.24 लाख टन ही चीनी का उत्पादन हुआ था। राज्य में चालू पेराई सीजन में 63 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी है जबकि बीते पेराई सीजन की समान अवधि में 62 चीनी मिलों में ही पेराई चल रही थी।
महाराष्ट्र में बारिश की कमी से चीनी उत्पादन में कमी की आशंका
अन्य राज्यों में गुजरात में चालू पेराई सीजन में 15 दिसंबर तक 3.10 लाख टन, आंधप्रदेश और तेलंगाना में 1.05 लाख टन तथा बिहार में 1.36 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है। इस्मा के अनुसार पेराई जल्द आरंभ होने से महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी का उत्पादन अभी तक ज्यादा हुआ है लेकिन उत्तर प्रदेश में देरी से पेराई आरंभ होने के कारण उत्पादन में कमी आई है। महाराष्ट्र की कई जिलों में बारिश सामान्य से कम होने के कारण गन्ने की फसल प्रभावित हुई है, इसलिए चालू पेराई सीजन में राज्य में चीनी का कुल उत्पादन पिछले साल की तुलना में कम होने की आशंका है।..............  आर एस राणा

छत्तीसगढ़ सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 28 फीसदी बढ़ाकर किया 2,500 रुपये

आर एस राणा
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों की कर्ज माफी के बाद धान की सरकारी खरीद 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से करने की घोषणा की है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पीटीआई न्यूज एजेंसी को बताया कि राज्य के मुख्यमंत्री ने इसकी घोषणा की है। इससे राज्य के किसानों को धान का भाव भाजपा सरकार की तुलना में 28 फीसदी अधिक मिलेगा।
तय लक्ष्य से ज्यादा खरीद होने का अनुमान
उन्होंने बताया कि चालू खरीफ विपणन सीजन 2018-19 में अभी तक राज्य से 21.60 लाख टन चावल की सरकारी खरीद हो चुकी है जबकि खरीद का लक्ष्य 55 लाख टन का तय किया हुआ है। उन्होंने बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से चावल की सरकारी खरीद तय लक्ष्य से ज्यादा ही होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि पड़ोसी राज्यों तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और ओडिशा के किसान अपना धान छत्तीसगढ़ में बेचने के इच्छुक हैं।
किसान सीमित मात्रा में ही बेच रहे थे धान
कांग्रेस ने अपनी चुनावी घोषणापत्र में धान की सरकारी खरीद 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से करने की घोषणा की थी, जिसे देखते हुए छत्तीगढ़ के साथ ही पड़ोसी राज्यों तेलंगाना, आंध्रप्रदेश तथा ओडिशा के किसानों धान की बिकवाली कम कर दी थी। ऐसे में माना जा रहा है कि आगामी दिनों में राज्य की मंडियों में धान की दैनिक आवक बढ़ेगी। 
तत्कालीन भाजपा सरकार दे रही थी 200 रुपये बोनस
केंद्र सरकार ने चालू खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के लिए सामान्य ग्रेड के धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,750 रुपये और ग्रेड ए किस्म के धान का एमएसपी 1,770 रुपये प्रति क्विंटल घोषित कर रखा है जबकि छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार ने धान पर 200 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस घोषित कर रखा था, इसलिए किसानों से धान की खरीद 1,950-1,970 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की जा रही थी। अत: भाजपा सरकार की तुलना में किसानों को धान का भाव 28 फीसदी ज्यादा मिलेगा। 
राज्य सरकार उठायेगी, अतिरिक्त लागत का भार
यह पूछे जाने पर क्या केंद्र सरकार इस लागत का भार उठायेगी, तो उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर अभी तक कोई बात नहीं हुई है, तथा माना जा रहा है कि राज्य सरकार ही अतिरिक्त लागत का भार उठायेगी।
समर्थन मूल्य पर 217 लाख टन चावल की हुई है खरीद
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार चालू खरीफ विपणन सीजन में अभी तक 217 लाख टन चावल की सरकारी खरीद हो चुकी है तथा खरीद का लक्ष्य 370 लाख टन का तय किया हुआ है। पिछले खरीफ विपणन सीजन में समर्थन मूल्य पर 381.8 लाख टन चावल की खरीद हुई थी।..........  आर एस राणा

17 दिसंबर 2018

कई राज्यों में बारिश सामान्य से कम, रबी में दलहन के साथ मोटे अनाजों की बुवाई पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। खरीफ में देश के कई राज्यों में बारिश समाान्य से कम हुई थी जिसका असर रबी फसलों की बुवाई पर भी देखा जा रहा है। चालू रबी सीजन में दलहन की बुवाई 9.32 और मोटे अनाजों की 20.38 फीसदी पिछड़ रही है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार देशभर में रबी फसलों की कुल बुवाई 5.25 फीसदी पिछड़ कर 476.12 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 502.48 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई जरुर चालू सीजन में थोड़ी बढ़कर 233.71 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 233.59 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुवाई हो पाई थी।
दलहन में चना की बुवाई पर ज्यादा असर
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 9.32 फीसदी घटकर अभी तक केवल 125.40 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 138.29 लाख हेक्टेयर में दालों की बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई घटकर 83.71 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 96.02 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मसूर की बुवाई 15.18 लाख हेक्टेयर में और मटर की 8.06 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 15.97 और 8.48 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई में कमी
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 20.38 फीसदी पिछे चल रही है तथा अभी तक इनकी बुवाई केवल 37.55 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुवाई 47.16 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई 20.46 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 28.26 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मक्का की बुवाई पिछले साल के 11.47 लाख हेक्टेयर से घटकर 10.38 लाख हेक्टेयर में हुई है। जौ की बुवाई भी चालू रबी में घटकर 6.23 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 6.50 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी।
सरसों की बुवाई ज्यादा, मूंगफली की कम
रबी तिलहन की बुवाई चालू रबी में घटकर 70.22 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 70.58 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई जरुर बढ़कर 63.13 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 61.26 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो पाई थी। मूंगफली की बुवाई पिछले साल के 3.67 लाख हेक्टेयर से घटकर चालू रबी में 2.69 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। अलसी की बुवाई भी पिछले साल के 3.15 लाख हेक्टेयर से घटकर 2.62 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
धान की रोपाई 28.14 फीसदी पिछे
धान की रोपाई चालू रबी में 9.24 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई 12.86 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।..............  आर एस राणा

पीएम-आशा के तहत तय लक्ष्य की केवल 11 फीसदी दलहन/तिलहन की खरीद, दाम एमएसपी से नीचे

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों की आय बढ़ाने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना के तहत तय दलहन और तिलहन की खरीद तय लक्ष्य की केवल 11 फीसदी ही हुई है। नेफेड एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के पहले दो महीनो अक्टूबर-नवंबर में 3.75 लाख टन दलहन और तिलहन की खरीद ही हुई है। नेफेड खरीफ में दलहन और तिलहन की मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक से खरीद कर रही है।
खरीफ में खरीद का लक्ष्य 33 लाख टन
केंद्र सरकार ने किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए सितंबर 2018 में प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) को मंजूरी दी थी, तथा चालू खरीफ विपणन सीजन में इसके इस योजना के तहत 33 लाख टन दलहन और तिलहन की खरीद का लक्ष्य तय किया हुआ है।
मंडियों में भाव एमएमएपी से नीचे
उत्पादक मंडियों में दलहन की कुल आवक की तुलना में खरीद सीमित मात्रा में होने के कारण किसानों को दालें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है। कर्नाटक की गुलबर्गा मंडी के कारोबारी चंद्रशेखर एस नादर ने बताया कि मंडी में उड़द 4,700 से 5,000 रुपये और मूंग 5,000 से 5,200 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2018—19 के लिए उड़द का एमएसपी 5,600 रुपये और मूंग का 6,975 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
उन्होंने बताया कि नई अरहर की आवक मंडी में शुरू हो गई है तथा नई अरहर के भाव 4,600 से 4,800 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि अरहर का एमएसपी 5,675 रुपये प्रति क्विंटल है।
अरहर की खरीद चालू महीने के आखिर तक होगी शुरू
नेफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार दक्षिण भारत के राज्यों तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु से चालू महीने के आखिर तक अरहर की एमएसपी पर खरीद शुरू की जायेगी। नेफेड के पास चना का करीब 23.87 लाख टन और मसूर का 1.84 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ है। इसके अलावा अरहर, मूंग और उड़द का भी बकाया स्टॉक है।
खरीफ दलहन की पैदावार कम होने का अनुमान
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में खरीफ में दालों का उत्पादन घटकर 92.2 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले खरीफ सीजन में 93.4 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था।
रबी में दालों की बुवाई घटी
मंत्रालय के अनुसार रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 10.33 फीसदी घटकर अभी तक केवल 113.69 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 126.78 लाख हेक्टेयर में दालों की बुवाई हो चुकी थी।.....  आर एस राणा

कमजोर रुपये से फास्फोरस, पोटाश निर्माताओं की लागत बढ़ेगी-रिपोर्ट

आर एस राणा
नई दिल्ली। डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने से पी एंड के (फास्फोरस और पोटाश) के कच्चे माल की लागत बढ़ने से इनके निर्माताओं पर दबाव बढ़ेगा, जिसका असर किसानों पर पड़ने की आशंका है। 
रेटिंग एजेंसी इक्रा ने एक रिपोर्ट में कहा है कि पी एंड के के निर्माता कच्चे माल की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर हैं और हाल ही में डॉलर की तुलना में रुपये में गिरावट आई है। जिससे फॉस्फोरिक एसिड की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के कारण इनकी लागत बढ़ी है। इसलिए कंपनी अपनी लागत को कम करने के लिए फास्फोरस और पोटाश की कीमतों में बढ़ोतरी कर सकती है जिसका असर किसानों पर पड़ेगा। 
एजेंसी के मुताबिक देश के कुछ इलाकों में कमजोर मानसून के कारण कई कंपनियों को डीलरों को अधिक छूट देनी पड़ेगी। साथ ही, लागत में बढ़ोतरी का बोझ स्वयं वहन करने से कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ेगा। हालांकि जिन इलाकों में मानसूनी बारिश अच्छी हुई है उन क्षेत्र के निर्माताओं पर असर पर कम पड़ेगा।
एजेंसी के अनुसार आगे यूरिया की मांग में 2 से 3 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इसलिए, संशोधित निश्चित लागत मुद्दे पर समय से किया गया हस्तक्षेप, निकट अवधि में यूरिया कंपनियों के अप्रैल 2014 से लंबित वास्तविक नकद भुगतान (31 मार्च, 2018 को 4,500 करोड़ रुपये) का मामला, निकट अवधि में महत्वपूर्ण है। इस भुगतान के कारण इन कंपनियों में से कई की वित्तीय स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार होगा। एजेंसी के अनुसार बढ़ती प्राकृतिक गैस की कीमतों के परिणामस्वरूप यूरिया कंपनियों के लिए सब्सिडी बढ़ रही है।
इक्रा ने कहा, उर्वरक बिक्री में वित्त वर्ष 2018-19 में अब तक अच्छी वृद्धि हुई है। इसमें मात्रा के लिहाज से कुल मिलाकर 6 फीसदी वृद्धि रही है। यूरिया की बिक्री सालाना तीन फीसदी की दर से बढ़ी है और अगले चार वर्षों में भारत लगभग 75 लाख टन क्षमता की बढ़ोतरी करेगा, जो आयात पर निर्भरता को कम करेगी।............  आर एस राणा

नवंबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 9 फीसदी घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में नवंबर में 9 फीसदी की गिरावट आकर कुल आयात 11,33,893 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल नवंबर में 12,48,810 टन तेलों का आयात हुआ था।
विश्व बाजार में कीमतों में आई भारी गिरावट
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी वी मेहता के अनुसार विश्व बाजार में अखाद्य तेलों की उपलब्धता ज्यादा होने से इनकी कीमतों में 15 से 30 फीसदी की भारी गिरावट आई है। आयातित आरबीडी पॉमोलीन का भाव भारतीय बंदरगाह पर नवंबर में घटकर औसतन 510 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि अक्टूबर में इसका भाव 568 डॉलर प्रति टन और पिछले साल नवंबर 2017 में इसका भाव 702 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रुड पॉम तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर नवंबर 2018 में घटकर औसतन 472 डॉलर प्रति टन गया जबकि पिछले साल नवंबर में इसक भाव 703 डॉलर प्रति टन था। क्रुड सोया तेल का भाव भी पिछले साल के नवंबर के औसतन भाव 839 डॉलर प्रति टन से घटकर नवंबर 2018 में 682 डॉलर प्रति टन रह गया।
बीते तेल वर्ष में घटा है खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात
एसईए के अनुसार अक्टूबर 2018 में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 12,56,433 टन का हुआ था जबकि नवंबर में आयात घटकर 11,33,893 टन का हुआ है। तेल वर्ष 2017-18 (नवंबर-17 से अक्टूबर-18) के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों का 145,16,642 टन का आयात हुआ था जोकि इसके पिछले तेल वर्ष 2016-17 के 150,77,420 टन के मुकाबले कम था।
घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों पर दबाव
विश्व बाजार में खाद्य तेलों की उपलब्धता ज्यादा होने से कीमतें घटी हैं, जिसका असर घरेलू बाजार में भी खाद्य तेलोें की कीमतों पर पड़ा है। घरेलू बाजार में खरीफ तिलहनों की आवक भी बराबर बनी हुई है इसलिए घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के भाव में हल्का सुधार तो बन सकता है लेकिन बड़ी तेजी की संभावना नहीं है।.....  आर एस राणा

गुजरात में मोटे अनाज, दलहन और गेहूं की बुवाई पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। मानसूनी सीजन में बारिश की कमी से गुजरात के कई जिलों में सूखे जैसे हालात होने का असर रबी फसलों की बुवाई पर भी पड़ रहा है। चालू रबी में राज्य में गेहूं की बुवाई 38.02 फीसदी, मोटे अनाजों की 33.71 फीसदी और दलहन की बुवाई 41.19 फीसदी पिछे चल रही है।
राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार 10 दिसंबर तक राज्य में गेहूं की बुवाई केवल 5,28,117 हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 8,52,684 हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। राज्य में समाान्यत गेहूं की बुवाई 9.84 लाख हेक्टेयर में होती है।
मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई बड़ी, मक्का की घटी
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में राज्य में केवल 6,39,626 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 9,64,878 हेक्टेयर में हो चुकी थी। राज्य में मोटे अनाजों की बुवाई 11.38 हेक्टेयर में होती है। मोटे अनाजों में मक्का की बुवाई राज्य में चालू रबी में घटकर 74,742 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 81,716 हेक्टेयर में ही बुवाई हुई थी। हालांकि चालू रबी में राज्य में ज्वार की बुवाई पिछले साल के 20,774 हेक्टेयर से बढ़कर 33,118 हेक्टेयर में हो चुकी है।
दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई घटी
दलहन की बुवाई राज्य में चालू रबी में घटकर अभी तक केवल 1,67,003 हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 2,84,498 हेक्टेयर में हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई पिछले साल के 2.62 लाख हेक्टेयर से घटकर 1.48 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
तिलहन की बुवाई पिछड़ी
तिलहन की बुवाई राज्य में चालू रबी में अभी तक केवल 1,91,862 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 2,18,996 हेक्टेयर में हो चुकी थी। तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई चालू रबी में पिछले साल के 2.17 लाख हेक्टेयर की तुलना में 1.90 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है।
मसालों के साथ सब्जियों की बुवाई भी कम
मसालों में जीरा और धनिया की बुवाई चालू सीजन में राज्य में क्रमश: 2,68,368 और 24,033 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में इनकी बुवाई क्रमश: 3,11,366 और 62,587 हेक्टेयर में हो चुकी थी। राज्य में प्याज, आलू और सब्जियों की बुवाई में भी पिछले साल की तुलना में कमी आई है।.........  आर एस राणा

09 दिसंबर 2018

गैर-बासमती चावल के निर्यात में 13 फीसदी की गिरावट, बंगलादेश की आयात मांग कमजोर

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले सात महीनों अप्रैल से अक्टूबर के दौरान गैर-बासमती चावल के निर्यात में 12.97 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 43.6 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 50.1 लाख टन का हुआ था। बंगलादेश की आयात मांग कम होने से चालू वित्त वर्ष में कुल निर्यात पिछले साल से कम रहने की आशंका है।
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले साल बंगलादेश में चावल का उत्पादन कम हुआ था, जिस कारण बंगलादेश की आयात मांग ज्यादा रही थी। चालू सीजन में बंगलादेश में उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान है इसलिए बंगलादेश की आयात मांग कम आ रही है। उन्होंने बताया कि गैर-बासमती चावल का सबसे निर्यात बंगलादेश और अफ्रीकन देशों को ज्यादा होता है।
अक्टूबर में गैर-बासमती चावल के निर्यात में 12.01 फीसदी की गिरावट आकर 6.37 लाख टन का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल 7.24 लाख टन का निर्यात हुआ था। 
बीते वित्त वर्ष में हुआ था रिकार्ड निर्यात
एपीडा के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 में देश से रिकार्ड 86.48 लाख टन गैर-बासमती चावल का निर्यात हुआ था, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष 2016-17 में 67.70 लाख टन गैर-बासमती चावल का निर्यात हुआ था। उन्होंने बताया कि सामान्यत: 65 लाख टन गैर-बासमती चावल का सालाना निर्यात होता है तथा चालू वित्त वर्ष 2018-19 में भी इतना निर्यात होने का अनुमान है।
उत्पादन बढ़ने का अनुमान
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में चावल का उत्पादन 992.4 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 975 लाख टन का उत्पादन हुआ था।.............  आर एस राणा

रबी फसलों की बुवाई 6.17 फीसदी पिछड़ी, मोटे अनाज और दलहन पर असर ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में मानसूनी बारिश कम होने का असर रबी फसलों की बुवाई पर पड़ा है। चालू रबी में मोटे अनाजों की बुवाई 25.84 फीसदी, दलहन की 10.33 फीसदी पिछे चल रही है। चालू रबी में कुल बुवाई 6.17 फीसदी घटकर अभी तक केवल 414.29 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी सीजन में 414.29 लाख हेक्टेयर में ही फसलों की बुवाई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 441.56 लाख हेक्टेयर में रबी फसलों की बुवाई हो चुकी थी। रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई जरुर चालू सीजन में बढ़कर 194.49 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 190.90 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुवाई हो पाई थी।
दलहन की बुवाई में आई कमी
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 10.33 फीसदी घटकर अभी तक केवल 113.69 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 126.78 लाख हेक्टेयर में दालों की बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई घटकर 77.27 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 88.94 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मसूर की बुवाई 13.95 लाख हेक्टेयर में और मटर की 7.48 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 14.77 और 7.82 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
मोटे अनाजों की बुवाई में आई ज्यादा कमी
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 25.84 फीसदी पिछे चल रही है तथा अभी तक इनकी बुवाई केवल 33.09 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुवाई 44.62 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई 18.45 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 27.63 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मक्का की बुवाई पिछले साल के 10.24 लाख हेक्टेयर से घटकर 8.76 लाख हेक्टेयर में हुई है। जौ की बुवाई भी चालू रबी में घटकर 5.49 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 5.83 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी।
सरसों की बुवाई में हल्की बढ़ोतरी
रबी तिलहन की बुवाई चालू रबी में घटकर 65.45 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 67.34 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई जरुर बढ़कर 59.56 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 59.36 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो पाई थी। मूंगफली की बुवाई पिछले साल के 3.02 लाख हेक्टेयर से घटकर चालू रबी में 2.14 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। अलसी की बुवाई भी पिछले साल के 2.77 लाख हेक्टेयर से घटकर 2.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
धान की रोपाई में 36.42 फीसदी की गिरावट
धान की रोपाई चालू रबी में 36.42 फीसदी पिछड़ कर 7.58 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई 11.92 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।..............  आर एस राणा

महाराष्ट्र की मंडी में 51 पैसे प्रति किलो बिका प्याज, नाराज किसान ने मुख्यमंत्री को भेजे 216 रुपये

आर एस राणा
नई दिल्ली। महाराष्ट्र के नासिक जिले में प्याज की कम कीमतों से परेशान एक किसान ने विरोध का अनोखा तरीका अपनाया। किसान ने अपनी उपज की बिक्री से मिली धनराशि को राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस को भेज दिया। 
जिले की येवला तहसील के अंदरसुल गांव के रहने वाले प्याज किसान चंद्रकांत भीकण देशमुख ने शुक्रवार को बताया कि वह पांच दिसंबर को इस आशा के साथ 545 किलो प्याज लेकर यहां बनी एपीएमसी की थोक मंडी में बेचने आए थे कि उन्हें इसका अच्छा भाव मिलेगा, लेकिन उनकी उम्मीदों पर उस समय पानी फिर गया जब मंडी में उनका प्याज 51 पैसे प्रति किलो के हिसाब से बिका।
उन्होंने बताया कि मंडी शुल्क काटने के बाद उनके हाथ में बिक्री हुए उपज के महज 216 रुपये ही मिले। देशमुख ने सवाल किया कि मेरे इलाके में सूखे जैसे हालात हैं। मैं इतनी कम आमदनी से घर कैसे चलाऊंगा और कर्जा किस तरह चुकाऊंगा। 
इस किसान ने अपनी रसीद दिखाते हुये कहा कि मेरा प्याज बढ़िया क्वालिटी का था पर मुझे उसका अच्छा भाव नहीं मिला। इसलिए मैंने विरोध स्वरूप इस 216 रुपये की राशि को राज्य के मुख्यमंत्री को भेज दिया है। देश की प्याज की करीब आधी उपज नासिक से आती है।
देशमुख से पहले एक किसान ऐसा ही कदम उठा चुकाया था। इसी जिले की निफाड तहसील के किसान संजय साठे ने अपनी प्याज की 750 किलो की उपज बेचने पर मिले 1,064 रुपये की राशि को विरोध स्वरूप प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दिया था।..............  आर एस राणा

कपास के निर्यात में कमी आने की आशंका, 12 लाख गांठ की हो चुकी हैं शिपमेंट

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ में कपास की पैदावार में कमी आने से निर्यात भी घटने की आशंका है। कपास का निर्यात चालू सीजन में घटकर 50 से 55 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 69 लाख गांठ का निर्यात हुआ था।
कपास की निर्यातक फर्म के सी टी एंड एसोसिएट के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि चालू सीजन में कपास के घरेलू उत्पादन में कमी आने की आशंका है, इसका असर निर्यात सौदों पर भी पड़ रहा है। पहली अक्टूबर से शुरू हुए चालू कपास सीजन में अभी तक 20 से 22 लाख गांठ के निर्यात सौदे हुए हैं जबकि 12 लाख गांठ की शिपमेंट हो चुकी है। उन्होंने कहा कि चीन की आयात मांग को देखते पहले अनुमान था कि 70 लाख गांठ से ज्यादा का निर्यात हो जायेगा, लेकिन वर्तमान अब लगता है कि निर्यात 50 से 55 लाख गांठ का ही हो पायेगा। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की पास का भाव शुक्रवार को 43,700 से 43,800 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रहा। फरवरी-मार्च में कपास की कीमतों में तेजी आने की संभावना है।
विश्व बाजार में भारतीय कपास सस्ती
उन्होंने बताया कि अभी विश्व बाजार में भारतीय कपास सस्ती है, लेकिन आगे निर्यात मांग रुपये के मुकाबले डॉलर का भाव क्या रहता है, और विश्व बाजार में कपास के भाव कैसे रहते हैं, इस पर निर्भर करेगा। भारतीय कपास का भाव विश्व बाजार में 84 से 85 सेंट प्रति बुशल है जबकि अफ्रीकन देशों की कपास का भाव 90 सेंट प्रति पाउंड है। इस समय भारत से बंगलादेश और वियतनाम की आयात मांग बनी हुई है।
दैनिक आवक 29 फीसदी घटी
कॉटन कारर्पोरेशन आॅफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गुजरात और महाराष्ट्र में कपास की पैदावार में ज्यादा कमी आई है। पहली अक्टूबर से शुरू हुए चालू सीजन में 30 नवंबर तक कपास की दैनिक आवक 29 फीसदी घटकर 46 लाख गांठ की ही हुई है जबकि पिछले सीजन में 65 लाख गांठ की आवक हुई थी।
सीएआई और सीएबी के उत्पादन अनुमान में अंतर
कॉटन एसोसिएशन आॅफ इंडिया (सीएआई) के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में कपास का उत्पादन घटकर 340.25 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 365 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। कॉटन एडवाईजरी बोर्ड (सीएबी) के अनुसार चालू सीजन में कपास का उत्पादन 361 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि फसल सीजन 2017-18 में 370 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था।
गुजरात में 13.59 लाख गांठ उत्पादन कम होने का अनुमान
गुजरात के कृषि निदेशालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में राज्य में कपास का उत्पादन घटकर 88.28 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में 101.28 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था।..........  आर एस राणा

उत्तर भारत में न्यूनतम तापमान घटेगा, दक्षिण के कई राज्यों में बारिश की संभावना

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अगले 24 घंटों के दौरान उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तापमान में कमी आने का अनुमान है। दक्षिण भारत के केरल, कर्नाटक ओर आंध्रप्रदेश में बारिश होने का अनुमान है।
मौसम विभाग के अनुसार उत्तर भारत में अगले 48 घंटाें में हिमालय के पश्चिमी इलाके में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से पहाड़ी इलाकों में मौसम खराब हो सकता है। वहीं मैदानी राज्यों पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में अगले 24 घंटों के दौरान न्यूनतम तापमान में गिरावट आयेगी। इन राज्यों में व पूर्वोत्तर भारत के कुछ इलाकों में कोहरा भी छाया रहेगा। 
अगले 24 घंटों के दौरान केरल और दक्षिण आंतरिक कर्नाटक में कुछ जगहों पर हल्की से मध्यम वर्षा होने का अनुमान है। इसके साथ ही उत्तरी आंतरिक कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में एक-दो जगह पर बारिश होने की उम्मीद है।
बीते 24 घंटों के दौरान, दक्षिण तटीय आंध्र प्रदेश में तेज वर्षा हुई है। जबकि तटीय तमिलनाडु और उत्तर आंतरिक कर्नाटक में हल्की से मध्यम बारिश दर्ज की गयी। केरल में भी कुछ जगहों पर हल्की से मध्यम बारिश हुई।
अंडमान व निकोबार द्वीप समूह और रायलसीमा पर एक-दो जगह हल्की वर्षा हुई।
पिछले 24 घंटों के दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश, छतीसगढ़, पूर्वी मध्य प्रदेश, पंजाब के कुछ भागों और उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में न्यूनतम तापमान में कमी आई है।..........  आर एस राणा

राजस्थान में चना की बुवाई 7.09 फीसदी घटी, सरसों की बढ़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के साथ ही राजस्थान में भी रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई में 7.09 फीसदी की गिरावट आई है जबकि सरसों की बुवाई में 11.16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। रबी फसलों की कुल बुवाई राज्य में पिछले साल की तुलना में पिछड़ कर 72.4 फीसदी क्षेत्रफल में ही हुई है।
राज्य के कृषि निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चना की बुवाई चालू रबी सीजन में 4 दिसंबर तक 12.96 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 13.95 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। राज्य में चना की बुवाई का लक्ष्य 15 लाख हेक्टेयर का तय किया गया है। चालू रबी में दलहन की कुल बुवाई 13.26 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
सरसों की बुवाई में हुई बढ़ोतरी
तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई बढ़कर चालू रबी में 22.40 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 20.15 लाख हेक्टेयर में ही सरसों की बुवाई हुई थी। राज्य में सरसों की बुवाई का लक्ष्य 26 लाख हेक्टेयर का तय किया गया है। तिलहन की कुल बुवाई चालू रबी में राज्य में 22.78 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है।
गेहूं की बुवाई ज्यादा, जौ की कम
गेहूं की बुवाई चालू रबी में राज्य में बढ़कर 20.91 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 19.42 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुवाई हुई थी। जौ की बुवाई राज्य में चालू रबी में घटकर 2.52 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 2.75 लाख हेक्टेयर में जौ की बुवाई हो चुकी थी। राज्य में चालू रबी में 3 लाख हेक्टेयर में जौ की बुवाई का लक्ष्य तय किया है।
कुल बुवाई पिछले की तुलना में कम
राज्य में चालू रबी में 67.93 लाख हेक्टेयर में ही रबी फसलों की बुवाई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 68.88 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। राज्य में रबी फसलों की बुवाई का लक्ष्य 93.80 लाख हेक्टेयर का तय किया गया है।...........  आर एस राणा

गुजरात : रबी में गेहूं के साथ ही मोटे अनाजों की बुवाई में भारी कमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। राज्य के कई जिलों में सूखे जैसे हालात बनने के कारण चालू रबी सीजन में फसलों की बुवाई में भारी कमी आई है। राज्य में अभी तक गेहूं की केवल 36.88 फीसदी ही बुवाई हो पाई है जबकि मोटे अनाजों की बुवाई भी 40.30 फीसदी क्षेत्रफल में ही हुई है।
राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में 3 दिसंबर 2018 तक राज्य में गेहूं केवल 3,63,031 हेक्टेयर में ही बोया गया है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 6,68,000 हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी। इसी तरह से मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 4,58,838 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 7,76,000 हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई हो चुकी थी। 
चालू रबी में राज्य में दालों की बुवाई घटकर 1,45,486 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 2,68,600 हेक्टेयर में दालों की बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई पिछले साल के 2,47,600 हेक्टेयर से घटकर चालू रबी में अभी तक 1,30,604 हेक्टेयर में ही हुई है। 
तिलहन की बुवाई चालू रबी में राज्य में अभी तक केवल 1,88,835 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई 2,17,200 हेक्टेयर में हो चुकी थी। 
मसालों में जीरा की बुवाई चालू सीजन में राज्य में अभी तक 1,99,455 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 2,69,800 हेक्टेयर में जीरा की बुवाई हो चुकी थी। सामान्यत: राज्य में जीरा की बुवाई 3,18,900 हेक्टेयर में होती है। इसी तरह से धनिया की बुवाई भी पिछले साल के 57,300 हेक्टेयर की तुलना में चालू सीजन में अभी तक केवल 18,779 हेक्टेयर में ही हो पाई है। धनिया की बुवाई राज्य में 93,200 हेक्टेयर में होती है।............  आर एस राणा

आलू की कीमतों में भारी गिरावट, किसानों को नहीं मिल रही है लागत भी

आर एस राणा
नई दिल्ली। उपभोक्ता भले ही 25 से 30 रुपये प्रति किलो की दर से आलू खरीद रहे हों, लेकिन किसानों को लागत भी वसूल नहीं हो पा रही है। नया आलू दिल्ली की आजादपुर मंडी में 6.50 से 10 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, जबकि पुराने आलू के भाव घटकर 2 से 7 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। जिससे किसानों को भारी घाटा लग रहा है।
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के बहचौला गांव के आलू किसान अंबुज शर्मा ने बताया कि कोल्ड स्टोर में रखे आलू के भाव दिल्ली की आजादपुर मंडी में घटकर 2 से 7 रुपये प्रति किलो रह गए हैं, जिससे परिवहन लागत और कोल्ड स्टोर का किराया भी नहीं निकल रहा है। उन्होंने बताया कि दो एकड़ में आलू की फसल लग रखी है, लेकिन भाव में आ रही गिरावट से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
महीनेभर में 400—500 रुपये का आ चुका है मंदा
दिल्ली की आजादपुर मंडी के पोटेटो ऐंड अनियन मर्चेंट एसोसिएशन (पोमा) के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने बताया कि पंजाब और हिमाचल के बाद उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और संभल से भी नए आलू की आवक शुरू हो गई है तथा आगरा से पुराना आलू कोल्ड स्टोर का आ रहा है। बुधवार को मंडी में 125 से 130 ट्रक आलू की आवक हुई तथा पंजाब के नए आलू का भाव 325 से 425 रुपये प्रति 50 किलो और उत्तर प्रदेश के नए आलू का भाव 400 से 500 रुपये प्रति 50 किलो रहा। उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोर के आलू का भाव घटकर 100 से 350 रुपये प्रति 50 किलो रह गया। महीनेभर में ही आलू की कीमतों में 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुका है।
पंजाब और उत्तर प्रदेश से आगे और बढ़ेगी आवक
उन्होंने बताया कि पंजाब के होशियापूर और हिमाचल के उना से नए आलू की आवक हो रही है, आगामी दिनों में पंजाब के जालंधर और होशियारपुर से नए आलू की आवक बढ़ेगी, साथ ही हरियाणा के साहबाद से भी नया आलू आयेगा। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और संभल से तो आवक बढ़ेगी ही साथ ही हापुड़, मेरठ और आगरा से भी नए आलू की आवक बढ़ेगी। दिल्ली में इस समय आलू की दैनिक आवक करीब 125 से 130 ट्रक की हो रही है, इसमें 50 से 55 ट्रक पुराने आलू के आ रहे हैं।
आलू का उत्पादन बढ़ने का अनुमान
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2017-18 में आलू का उत्पादन बढ़कर 493,44,000 टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 486,05,000 टन का ही हुआ था।
वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़ा निर्यात
राष्ट्रीय बागवानी एवं अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (एनएचआरडीएफ) के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान 3,07,409 टन आलू का निर्यात हुआ है जबकि वित्त वर्ष 2016-17 में कुल निर्यात 2,55,725 टन का ही हुआ था।.............  आर एस राणा

नवंबर में डीओसी का निर्यात 16 फीसदी घटा, चीन सरसों डीओसी का करेगा आयात

आर एस राणा
नई दिल्ली। डीओसी के निर्यात में नवंबर में 16 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 3,11,739 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल नवंबर में 3,69,522 टन डीओसी का निर्यात हुआ था। उद्योग के अनुसार चीन ने सरसों डीओसी के आयात के लिए पांच भारतीय कंपनियों से करार किया है तथा उम्मीद है जल्दी ही चीन को निर्यात शुरू हो जायेगा।
चीन ने सरसों डीओसी के आयात के लिए करार
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी वी मेहता के अनुसार चीन ने सरसों डीओसी के आयात के लिए पांच भारतीय कंपनियों के साथ करार किया है। ऐसे में माना जा रहा है कि जल्दी ही चीन सरसों डीओसी का आयात शुरू कर देगा, हालांकि चीन को सोया डीओसी के निर्यात में अभी समय लग सकता है। उन्होंने बताया कि सोया डीओसी के निर्यात के लिए चीन का एक प्रतिनिधिमंडल चालू महीने में भारत का दौरा करेगा, उसके बाद ही स्थिति साफ होगी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2012 में चीन ने भारत से सरसों और सोया डीओसी का आयात बंद कर दिया था, उससे पहले चीन सालाना 3.5 से 4 लाख टन सरसों और एक लाख टन सोया डीओसी का आयात करता था। उन्होंने बताया कि चीन द्वारा सरसों डीओसी का आयात करने से किसानों के साथ ही उद्योग को भी फायदा होगा।
पहले आठ महीनों में डीओसी का निर्यात 10 फीसदी बढ़ा
एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले आठ महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान डीओसी के निर्यात में 10 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 20,43,282 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 18,55,558 टन का ही हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले आठ महीनों में सरसों डीओसी के निर्यात में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, इस दौरान 7,45,901 टन सरसों डीओसी का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 3,92,463 टन ही सरसों डीओसी का निर्यात हुआ था।
भाव में हुई बढ़ोतरी
सोया डीओसी के भाव भारतीय बंदरगाह पर नवंबर में बढ़कर औसतन 365 डॉलर प्रति टन हो गए जबकि अक्टूबर 2018 में इसके भाव 357 डॉलर प्रति टन थे। इसी तरह से सरसों डीओसी के भाव इस दौरान 229 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 230 डॉलर प्रति टन हो गए।........ आर एस राणा

चालू सीजन में 39 लाख टन से ज्यादा हो चुका है चीनी उत्पादन, देशभर में 415 मिलों की पेराई आरंभ

आर एस राणा
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में देशभर की 415 चीनी मिलों ने ही गन्ने की पेराई आरंभ की है जबकि पिछले साल इस समय तक 450 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो गई थी। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में अभी तक केवल 109 चीनी मिलों ने ही पेराई आरंभ की है जबकि 121 चीनी मिलों में पेराई आरंभ होनी है।
चीनी का कुल उत्पादन बढ़ा
इस्मा ने अनुसार चालू पेराई सीजन में 30 नवंबर तक देश में 39.73 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 39.14 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 18.05 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 21 फीसदी ज्यादा है। राज्य में 167 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 30 नवंबर तक 9.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 13.11 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है। चीनी मिलों द्वारा गन्ने की पेराई धीमी गति से करने के कारण चीनी उत्पादन में पिछले साल से कम हुआ है।
कर्नाटक और गुजरात में चीनी उत्पादन बढ़ा
कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 30 नवंबर तक 7.93 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 7.02 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। इसी तरह से गुजरात में चालू पेराई सीजन में 1.95 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में केवल 1.78 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था।
अन्य राज्यों में 91 के मुकाबले 60 मिलों ने ही की पेराई आरंभ
अन्य राज्यों में भी चालू पेराई सीजन में अभी तक केवल 60 चीनी मिलों ने ही पेराई आरंभ की है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 91 चीनी मिलों ने पेराई आरंभ कर दी थी। अन्य राज्यों में चीनी का उत्पादन 2.30 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल इस समय तक 2.35 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। .......  आर एस राणा

पंजाब, हरियाणा से 240 लाख टन धान की सरकारी खरीद

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू खरीफ विपणन सीजन 2018-19 में पंजाब और हरियाणा से धान की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 240.77 लाख टन धान की खरीद हो चुकी है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पंजाब से चालू खरीफ सीजन में 170.17 लाख टन धान की खरीद हुई है, इसमें 168.93 लाख टन सरकारी एजेंसियों ने खरीदा है तथा 1,24,379 टन निजी चावल मिलों ने खरीदा है।
पंजाब सरकार धान की खरीद के लिए 24,050 करोड़ रुपये किसानों और आढ़ितयों के भुगतान के लिए जारी कर चुकी है।
पड़ोसी राज्य हरियाणा से चालू खरीफ में 70.60 लाख टन धान की खरीद समर्थन मूल्य पर की गई है, जिसमें से 58.04 लाख टन सरकारी एजेंसियों ने खरीदा है, तथा 12.55 लाख टन धान निजी मिलों द्वारा खरीदा गया है।
चालू खरीफ में पंजाब से धान की सरकारी खरीद का लक्ष्य 200 लाख टन का तय किया गया है जबकि पिछले खरीफ सीजन में राज्य से 179.34 लाख टन धान की खरीद ही हुई थी।  ..........  आर एस राणा

02 दिसंबर 2018

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने नहीं बढ़ाया गन्ना मूल्य, किसान मायूस

आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्‍यनाथ की सरकार ने चालू पेराई सीजन 2018-19  (अक्टूबर से सितंबर) के लिए गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं की है, जिससे राज्य के किसान मायूस हैं। राज्य के किसानों को पिछले साल के भाव 310 से 325 रुपये प्रति क्विंटल पर ही गन्ना बेचना पड़ेगा। नया पेराई सीजन शुरू हुए दो महीने बीत चुके हैं, इसके बावजूद राज्य की चीनी मिलों पर पिछले पेराई सीजन 2017-18 का 4,374 करोड़ रुपये बकाया बचा हुआ है।
अमरोहा जिले के देहरा चक गांव के किसान जोगिंद्र आर्य ने बताया कि उसने छह  एकड़ में गन्ना लगा रखा है, तथा वेव शुगर मिल में गन्ना डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि उम्मीद थी कि राज्य सरकार गन्ने का एसएपी कम से कम 350 रुपये प्रति क्विंटल घोषित करेगी, लेकिन राज्य सरकार ने गन्ने का एसएपी पिछले वाला ही रखा है, जिससे हमें मायूसी मिली है। उन्होंने बताया कि शुगर मिल द्वारा पर्चियां कम दी जा रही है, जिससे खेत समय पर खाली नहीं हो पायेंगे और गेहूं की बुवाई में भी देरी होगी। एक तो गन्ने के भाव में बढ़ोतरी नहीं की, दूसरा पर्चियां कम जारी की जा रही है इसलिए दोहरा नुकसान लग रहा है।
राज्य में केवल 106 मिलों में ही हुई है पेराई आरंभ
पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए गन्ने के पेराई सीजन के दो महीने बीतने के बावजूद भी उत्तर प्रदेश में केवल 106 चीनी मिलों में ही पेराई आरंभ हो पाई है जबकि चालू पेराई सीजन में राज्य में 121 चीनी मिलों में पेराई होनी है। पिछले साल 119 चीनी मिलों में पेराई हुई थी।
पिछले साल की थी केवल 10 रुपये की बढ़ोतरी
उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले पेराई सीजन 2017-18 में गन्ने के एसएपी में मात्र 10 रुपये की बढ़ोतरी कर सामान्य प्रजाति के लिए 315 रुपये प्रति क्विंटल एवं अगेती प्रजाति के लिए 325 रुपये प्रति क्विंटल भाव तय किया था। रिजेक्टिड प्रजाति के गन्ने का भाव 310 रुपये प्रति क्विंटल था।
उत्पादन में आई कमी
चालू पेरााई सीजन में 29 नवंबर तक चीनी का उत्पादन 8.85 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 12.79 लाख टन का उतपादन हो चुका था। चालू पेराई सीजन में गन्ने में रिकवरी की दर औसतन 10.23 की आई है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय रिकवरी की दर 9.80 फीसदी की ही आ रही थी। राज्य की चीनी मिलों ने 29 नवंबर तक 865.80 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई की है।
चीनी उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान
चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग के अधिकारी के अनुसार चालू सीजन में राज्य में गन्ने की फसल पिछले साल से ज्यादा है, इसलिए चीनी का उत्पादन भी बढ़कर 125 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले पेराई सीजन में राज्य में 120.49 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।..............  आर एस राणा

देश के 9 राज्यों में सूखे जैसे हालात, रबी फसलों की बुवाई 8.31 फीसदी पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के 9 राज्यों में मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने के कारण सूखे जैसे हालात होने के कारण रबी फसलों की बुवाई प्रभावित हो रही है। चालू रबी में फसलों की बुवाई 8.31 पिछड़ी है। मोटे अनाजों के साथ ही दलहन और धान की रोपाई सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी सीजन में 354.98 लाख हेक्टेयर में ही फसलों की बुवाई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 387.14 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुवाई हो चुकी थी। रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई चालू सीजन में 152.97 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 156.76 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुवाई हो पाई थी।
दलहन की बुवाई 12.39 फीसदी पिछे
रबी दलहन की बुवाई चालू सीजन में 12.39 फीसदी घटकर अभी तक केवल 101.91 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 116.33 लाख हेक्टेयर में दालों की बुवाई हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई घटकर 70.46 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 83.02 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मसूर की बुवाई 12.68 लाख हेक्टेयर में और मटर की 6.63 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई क्रमश: 13.61 और 7.10 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई 33.11 फीसदी पिछड़ी
मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में 27.08 फीसदी पिछे चल रही है तथा अभी तक इनकी बुवाई केवल 29.64 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुवाई 40.65 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई 17.84 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 26.67 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मक्का की बुवाई पिछले साल के 8.34 लाख हेक्टेयर से घटकर 7.22 लाख हेक्टेयर में हुई है। जौ की बुवाई भी चालू रबी में घटकर 4.35 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 5.11 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी थी।
तिलहन की बुवाई में आंशिक सुधार
रबी तिलहन की बुवाई चालू रबी में थोड़ी सुधरकर 63.14 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 62.90 लाख हेक्टेयर में इनकी बुवाई हो चुकी थी। तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई जरुर बढ़कर 57.89 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 55.51 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो पाई थी। मूंगफली की बुवाई पिछले साल के 2.83 लाख हेक्टेयर से घटकर चालू रबी में 1.95 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। अलसी की बुवाई भी पिछले साल के 2.54 लाख हेक्टेयर से घटकर 1.95 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
धान की रोपाई सबसे ज्यादा प्रभावित
धान की रोपाई चालू रबी में 30.27 फीसदी पिछड़ कर 7.33 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई 10.51 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।...........  आर एस राणा

गुजरात में गेहूं की बुवाई 67 और मोटे अनाजों की 52 फीसदी पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। राज्य में मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने के कारण कई जिलों में सूखे जैसे हालात बनने के कारण रबी फसलों की बुवाई में भारी कमी आई है। गेहूं की बुवाई चालू रबी में 67.14 फीसदी घटकर 1,91,100 हेक्टेयर में ही हो हुई है जबकि मोटे अनाजों की बुवाई 52.38 फीसदी घटकर 2,70,900 हेक्टेयर में ही हो पाई है।
भारत मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार मानसूनी सीजन में सौराष्ट्र और कच्छ में सामान्य से 34 फीसदी और गुजरात रीजन में सामान्य के मुकाबले 24 फीसदी कम बारिश हुई है।
गेहूं की बुवाई सबसे ज्यादा प्रभावित
राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी सीजन में 26 नवंबर तक राज्य में गेहूं की बुवाई केवल 1,91,100 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 4,71,500 हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। सामान्यत: राज्य में गेहूं की बुवाई 9,84,400 हेक्टेयर में होती है।
मोटे अनाजों की बुवाई सामान्य की 24 फीसदी
मोटे अनाजों ज्वार और मक्का की बुवाई घटकर चालू रबी सीजन में 26 नवंबर तक 2,70,900 हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई 5,67,000 हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों की बुवाई राज्य में रबी सीजन में 11,38,600 हेक्टेयर में होती है। अत: चालू रबी में सामान्य की केवल 24 फीसदी ही मोटे अनाजों की बुवाई हो पाई है।
दलहन की बुवाई 45.33 फीसदी पिछे
दालों की बुवाई चालू रबी सीजन में राज्य में अभी तक केवल 1,19,000 हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 2,17,700 हेक्टेयर में हो चुकी थी। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुवाई 1,05,200 हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 2,02,500 हेक्टेयर में हो चुकी थी।
कुल बुवाई 31.64 फीसदी पिछड़ी
तिलहन की बुवाई राज्य में पिछले साल के 2,02,600 हेक्टेयर से घटकर अभी तक केवल 1,81,100 हेक्टेयर में ही हुई है। बारिश की कमी के कारण मसालों के साथ ही सब्जियों की बुवाई भी पिछे चल रही है। राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में फसलों की कुल बुवाई 32.64 फीसदी पिछड़ कर केवल 12.36 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 18.35 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। सामान्यत: रबी फसलों की बुवाई 31.35 लाख हेक्टेयर में होती है। ............  आर एस राणा

जीएसटी के लिए आधी रात को संसद चल सकती है तो किसानों के लिए क्यो नहीं -वीएम सिंह

आर एस राणा
जीएसटी बिल को पास कराने के लिए केंद्र सरकार आधी रात को संसद चला सकती है लेकिन देश का पेट भरने वाले किसानों के निजी बिलो के लिए सरकार के समय नहीं है इससे साफ हो जाता है कि सरकार किसानों की कितनी हितैषी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार—बार यह बात दोहराते हैं कि उन्होंने फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) डेढ़ गुना तय कर दिया, तो फिर किसानों के निजी बिलो को पास करने में क्यों दिक्कत आ रही है?
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के संयोजक वीएम सिंह ने मंगलवार को दिल्ली में आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहा कि किसानों के सम्पूर्ण कर्ज मुक्ति बिल और कृषि उपज लाभकारी मूल्य गारंटी बिल को पास कराने के लिए देशभर के लाखों किसान 29-30 नवंबर को दिल्ली पहुंच रहे हैं। किसान अपनी ताकत व एकजुटता दिखा कर सरकार को हक देने पर मजबूर करेगा। उन्होंने कहा कि देशभर के 200 से ज्यादा किसान संगठन एक हो चुके हैं।
उन्होंने कहा कि देश के इतिहास में पहली बार किसानों के दो बिल संसद में पहुंचे हैं और देश की 21 प्रमुख पार्टियों का इन दोनों बिलो को समर्थन हासिल है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव के समय किसानों से फसलों की लागत का डेढ़ गुना मूल्य और सबका ऋण माफ करने का वादा किया था, लेकिन ऐसा न करके किसानों के साथ वादाखिलाफी की है। अब पूरे देश का किसान एकजुट होकर मोदी से अपने साथ हुए धोखे का हिसाब मांगेगा। उन्होंने कहा कि किसानों को हक प्यार से नहीं मिला तो छीनना भी जानते हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने कहा कि मध्य प्रदेश में कल चुनाव हैं, तथा राज्य सरकार स्वामीनाथन रिपोर्ट की अपने घोषणापत्र में बात ही नहीं कर रही है, केवल भावांतर की बात करती है। जबकि सबको पता है कि भावांतर योजना पहले ही फेल हो चुकी है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर किसानों को लूटा जा रहा है अत: खेती किसानी को बचाने के लिए देशभर के किसान दिल्ली पहुंच रहे हैं।
कृषि विशेषज्ञ पी साईनाथ ने कहा कि वर्ष 2015 के बाद से मोदी सरकार ने किसानों की आत्महताएं की रिपोर्ट को जारी करना ही बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि आज देश का किसान ही नहीं हर वर्ग संकट के दौर से गुजर रहा है। इसलिए किसानों के इन दोनों बिलो को पास कराना बहुत जरुरी है।
जय जवान-जय किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले रिटायर्ड मेजर जनरल सतबीर सिंह ने कहा कि देश में जवानों और किसानों को मिलाकर कुल 70 फीसदी आबादी है तथा किसान का बेटा ही जवान बनता है लेकिन मोदी सरकार ने किसानों के साथ ही जवानों से भी झूठे वादे किए हैं। अत: अब समय आ गया है उनका जवाब देने का। 
स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि देश के इतिहास में पहली बार देशभर के 200 किसान संगठन एकजूट हुए हैं। उन्होंने कहा कि 29-30 नवंबर को देशभर से लाखों किसान तो दिल्ली पहुंच ही रहे हैं, और जो किसान दिल्ली नहीं पहुंच पायेंगे वह देशभर के दर्जनों शहरों में विरोध-प्रदर्शन करेंगे।
उन्होंने बताया कि 29 नवंबर को देश के अलग-अलग हिस्सों से किसान दिल्ली के रामलीला मैदान पहुचेंगे, तथा 30 नवंबर को रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक रैली निकाली जायेगी। रैली में किसानों के साथ ही किसान के दोनों बिलो को समर्थन दे रही विपक्षी पार्टियों के नेता भी भाग लेंगे।
अखिल भारतीय किसान सभा के नेता आशीष मित्तल ने बताया कि कृषि प्रधान देश में पहली बार किसान नाइट मेले का आयोजन बड़े स्तर पर 29 नवंबर को रामलीला मैदान में किया जाएगा। मेले में गायक जसवीर सिंह जस्सी व वरिष्ठ कवि हरिओम पवार आदि के अलावा अन्य कलाकार अपनी अपनी रचनाएं प्रस्तुत करेंगे।......आर एस राणा

दलहन आयात पर मद्रास हाइकोर्ट के स्टे आर्डर को चुनौती देगी केंद्र सरकार

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र द्वारा उड़द, मूंग और अरहर के आयात पर रोक लगाने के बावजूद भी मद्रास हाईकोर्ट से स्टे आर्डर लेकर आयातक लगातार आयात कर रहे है, इसे चुनौती देने के लिए केंद्र सरकार ने तैयारी कर ली है।
सूत्रों के अनुसार वाणिज्य मंत्रालय ने मद्रास हाइकोर्ट के स्टे आर्डर को चुनौती देने का फैसला किया है। इससे करीब 7 लाख टन दालों का आयात अटकने की आशंका है। जिसका असर घरेलू बाजार में दलहन की कीमतों पर भी पड़ने की संभावना है।
केंद्र सरकार ने अरहर, उड़द और मूंग के आयात की मात्रा तय रखी थी, तथा तय मात्रा का आयात पहले ही हो चुका था, लेकिन कुछ आयातक सरकार के इस फैसले के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में चले गए थे। मद्रास हाईकोर्ट ने आयातकों को स्टे आर्डर दे दिया था, जिस कारण उड़द का आयात लगातार चेन्न्ई में हो रहा है।
घरेलू मंडियों में खरीफ दलहन उड़द और मूंग की दैनिक आवक बनी हुई है, तथा केंद्र सरकार द्वारा आयात पर रोक के बावजूद भी इनके भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे ही बने हुए हैं। .....  आर एस राणा

किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्राइस पॉलिसी के बजाए इनकम पॉलिसी बनाने की जरुरत-गुलाटी

आर एस राणा
देश का किसान संकट के दौर से गुजर रहा है, तथा सरकारी नीतियां किसानों के बजाए व्यापारियों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है। इसलिए केंद्र सरकार को किसान की माली हालत सुधारने के लिए प्राइस पॉलिसी के बजाए इनकम पॉलिसी बनाने पर जोर देने की जरुरत है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोक गुलाटी ने सोमवार को दिल्ली में स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव की किताब मोदीराज में किसान डबल आमद या डबल आफत के अवलोकन के अवसर पर कहा कि सभी 23 फसलें जिनका की केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है, खरीदना संभव नहीं है। केवल दो या फिर चार एग्री जिंसों की एमएसपी पर खरीद ही संभव है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से समर्थन मूल्य पर हमारे यहां एग्री जिंसों की खरीद होती है, उसी तरह से चीन भी खरीद करता था लेकिन चीन की सरकार ने देखा कि किसानों को इससे फायदा नहीं हो रहा है तो उन्होंने इसे बंद कर दिया। उन्होंने कहा कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने के लिए सबसे पहले डिमांड और सप्लाई को देखा जाता है। 
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में पिछले चार साल में कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 2.5 फीसदी रही है जबकि इससे पहले यूपीए सरकार के समय के चार साल में जीडीपी की दर 5.2 फीसदी रही थी।
उन्होंने कहा कि विश्व बाजार में खाद्यान्न की कीमतों में गिरावट बनी हुई है, जबकि हमारे यहां लगातार एमएसपी में बढ़ोतरी की जा रही है। एमएसपी में भारी बढ़ोतरी का ही नतीजा है कि हमारे यहां खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन हुआ है, और केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का तय मानकों बफर के मुकाबले भारी—भरकम स्टॉक जमा हो गया।
स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने इस अवसर पर कहा कि मोदी सरकार अभी तक सबसे ज्यादा किसान विरोधी सरकार है। हालांकि पहले की सरकारें भी किसान विरोधी थी। सरकार आए दिन ऐतिहासिक घोषणा तो करती है लेकिन अमल नहीं करती। मोदी सरकार ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि किसानों को फसलों का समर्थन मूल्य लागत का डेढ़ गुना देंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मना कर दिया। कृषि मंत्री ने संसद में कहा कि हमने ऐसा वायदा ही नहीं किया था लेकिन उसके बाद जब किसानों संगठनों ने दबाव बनाया तो फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी की, लेकिन ए2एफअल के आधार पर।
उन्होंने कहा कि 90 सिंचाई योजनाएं अधूरी हैं। देश में 2014—15 और 2015—16 में सूखा पड़ा लेकिन केंद्र सरकार ने कह दिया कि सूखे से निपटना हमारा काम नहीं है। नोटबंदी का ऐसा असर हुआ किसानों पर कि आज तक किसान इससे उबर नहीं पाया है। उन्होंने कहा कि यह किताब आगे की राह तय करने में काफी मददगार साबित होगी। 
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति(एआईकेएससीसी) के संयोजक वीएम सिंह ने इस अवसर पर कहा यह किताब किसानों के लिए नहीं है बल्कि देश के नेताओं, मीडिया और नीतियां बनाने वालों के लिए है। किसान को तो पता है, उनको कितना घाटा लग रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों से लगातार झूठे वादे कर रही है। उन्होंने कहा कि किसानों की आमदनी दोगुनी होने के बजाए देश में किसानों की आत्महत्याएं जरुर दोगुनी हो गई हैं।
इस अवसर पर पैनल वार्ता में आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह, भारत कृषक समाज व पंजाब किसान आयोग के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ और जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अविक शाह के भी भाग लिया।
आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह ने कहा कि नीतियां बनाने में किसानों की भागदारी जब तक नहीं होगी, तब तक किसानों की दशा और दिशा में सुधार नहीं हो सकता। हमारे यहां बनने वाली अधिकतर नीतियां कंजूमर सहयोगी है, किसानों के हक में नीतियां बनाई ही नहीं जा रही हैं। उद्योग की लांबिग है, लेकिन किसानों के संगठन कमजोर है इसलिए किसानों की सुनवाई नहीं होती।
उन्होंने कहा कि खाद, बिजली और डीजल तथा ट्रैक्टर की कीमतों में हुई बढ़ोतरी से किसान का खर्च भी बढ़ा है, लेकिन किसान की आय में उस अनुपात में बढ़ोतरी नहीं हुई जबकि किसान भी अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहता है। यही हालत दूध किसानों की है, जहां किसान 12 से 18 रुपये प्रति लीटर दूध बेच रहे हैं, वहीं उपभोक्ता 55 से 60 रुपये प्रति लीटर खरीद रहा है।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी ने किसानों को तबाह कर दिया। पहले स्टॉकिस्ट एग्री जिंसों की खरीद करते थे, लेकिन नोटबंदी के बाद उनकी खरीद नहीं हुई जिससें खाद्यान्न की कीमतों में भारी गिरावट आई। किसान अपनी फसल के पैसे 50 हजार रुपये से ज्यादा बैंक से निकालता है तो उससे पैन नंबर मांगा जाता है, जबकि खेती टैक्स फ्री है तो फिर क्यो किसान से पैन नंबर मांगा जाता है?
भारत कृषक समाज व पंजाब किसान आयोग के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ ने कहा कि पिछली सरकार और इस इस पर में एक चीज नहीं बदली, वो है किसानों की आत्महत्याएं। ............  आर एस राणा