आर एस राणा
देश
का किसान संकट के दौर से गुजर रहा है, तथा सरकारी नीतियां किसानों के बजाए
व्यापारियों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है। इसलिए केंद्र सरकार
को किसान की माली हालत सुधारने के लिए प्राइस पॉलिसी के बजाए इनकम पॉलिसी
बनाने पर जोर देने की जरुरत है।
कृषि लागत एवं मूल्य
आयोग (सीएसीपी) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोक गुलाटी ने सोमवार को दिल्ली में
स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव की किताब मोदीराज में
किसान डबल आमद या डबल आफत के अवलोकन के अवसर पर कहा कि सभी 23 फसलें जिनका
की केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है, खरीदना संभव नहीं है।
केवल दो या फिर चार एग्री जिंसों की एमएसपी पर खरीद ही संभव है।
उन्होंने
कहा कि जिस तरह से समर्थन मूल्य पर हमारे यहां एग्री जिंसों की खरीद होती
है, उसी तरह से चीन भी खरीद करता था लेकिन चीन की सरकार ने देखा कि किसानों
को इससे फायदा नहीं हो रहा है तो उन्होंने इसे बंद कर दिया। उन्होंने कहा
कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने के लिए सबसे पहले
डिमांड और सप्लाई को देखा जाता है।
उन्होंने कहा कि
मोदी सरकार में पिछले चार साल में कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद
(जीडीपी) वृद्धि दर 2.5 फीसदी रही है जबकि इससे पहले यूपीए सरकार के समय के
चार साल में जीडीपी की दर 5.2 फीसदी रही थी।
उन्होंने
कहा कि विश्व बाजार में खाद्यान्न की कीमतों में गिरावट बनी हुई है, जबकि
हमारे यहां लगातार एमएसपी में बढ़ोतरी की जा रही है। एमएसपी में भारी
बढ़ोतरी का ही नतीजा है कि हमारे यहां खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन हुआ
है, और केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का तय मानकों बफर के मुकाबले भारी—भरकम
स्टॉक जमा हो गया।
स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष
योगेंद्र यादव ने इस अवसर पर कहा कि मोदी सरकार अभी तक सबसे ज्यादा किसान
विरोधी सरकार है। हालांकि पहले की सरकारें भी किसान विरोधी थी। सरकार आए
दिन ऐतिहासिक घोषणा तो करती है लेकिन अमल नहीं करती। मोदी सरकार ने चुनाव
से पहले वायदा किया था कि किसानों को फसलों का समर्थन मूल्य लागत का डेढ़
गुना देंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मना कर दिया। कृषि मंत्री ने संसद में
कहा कि हमने ऐसा वायदा ही नहीं किया था लेकिन उसके बाद जब किसानों संगठनों
ने दबाव बनाया तो फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी की, लेकिन ए2एफअल के आधार
पर।
उन्होंने कहा कि 90 सिंचाई योजनाएं अधूरी हैं। देश
में 2014—15 और 2015—16 में सूखा पड़ा लेकिन केंद्र सरकार ने कह दिया कि
सूखे से निपटना हमारा काम नहीं है। नोटबंदी का ऐसा असर हुआ किसानों पर कि
आज तक किसान इससे उबर नहीं पाया है। उन्होंने कहा कि यह किताब आगे की राह
तय करने में काफी मददगार साबित होगी।
अखिल भारतीय
किसान संघर्ष समन्वय समिति(एआईकेएससीसी) के संयोजक वीएम सिंह ने इस अवसर पर
कहा यह किताब किसानों के लिए नहीं है बल्कि देश के नेताओं, मीडिया और
नीतियां बनाने वालों के लिए है। किसान को तो पता है, उनको कितना घाटा लग
रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों से लगातार झूठे वादे कर रही है।
उन्होंने कहा कि किसानों की आमदनी दोगुनी होने के बजाए देश में किसानों की
आत्महत्याएं जरुर दोगुनी हो गई हैं।
इस अवसर पर पैनल
वार्ता में आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह, भारत कृषक समाज व पंजाब किसान
आयोग के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ और जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अविक
शाह के भी भाग लिया।
आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह ने
कहा कि नीतियां बनाने में किसानों की भागदारी जब तक नहीं होगी, तब तक
किसानों की दशा और दिशा में सुधार नहीं हो सकता। हमारे यहां बनने वाली
अधिकतर नीतियां कंजूमर सहयोगी है, किसानों के हक में नीतियां बनाई ही नहीं
जा रही हैं। उद्योग की लांबिग है, लेकिन किसानों के संगठन कमजोर है इसलिए
किसानों की सुनवाई नहीं होती।
उन्होंने कहा कि खाद,
बिजली और डीजल तथा ट्रैक्टर की कीमतों में हुई बढ़ोतरी से किसान का खर्च भी
बढ़ा है, लेकिन किसान की आय में उस अनुपात में बढ़ोतरी नहीं हुई जबकि
किसान भी अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहता है। यही हालत दूध
किसानों की है, जहां किसान 12 से 18 रुपये प्रति लीटर दूध बेच रहे हैं,
वहीं उपभोक्ता 55 से 60 रुपये प्रति लीटर खरीद रहा है।
उन्होंने
कहा कि नोटबंदी ने किसानों को तबाह कर दिया। पहले स्टॉकिस्ट एग्री जिंसों
की खरीद करते थे, लेकिन नोटबंदी के बाद उनकी खरीद नहीं हुई जिससें
खाद्यान्न की कीमतों में भारी गिरावट आई। किसान अपनी फसल के पैसे 50 हजार
रुपये से ज्यादा बैंक से निकालता है तो उससे पैन नंबर मांगा जाता है, जबकि
खेती टैक्स फ्री है तो फिर क्यो किसान से पैन नंबर मांगा जाता है?
भारत
कृषक समाज व पंजाब किसान आयोग के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ ने कहा कि पिछली
सरकार और इस इस पर में एक चीज नहीं बदली, वो है किसानों की आत्महत्याएं। ............ आर एस राणा
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