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23 दिसंबर 2018

मध्य प्रदेश और छत्तसीगढ़ में किसानों की कर्ज माफी, भाजपा शासित अन्य राज्यों पर बढ़ा दबाव

सरकार बनते ही किसानों की कर्ज माफी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने शपथ ली और कुछ ही घंटों में यह खबर आ गई कि दोनों राज्यों की सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ कर दिए। उम्मीद है कि राजस्थान से किसी भी समय यह खबर आ सकती है। इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस ने चुनाव से पहले जनता से किया अपना वादा निभाया है तथा इससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर भी दबाव बन रहा है कि वह अपने वादे पूरे करे। वर्ष 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के 13 लाख करोड़ कर्ज माफी का वादा किया था जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। 
इसका असर भाजपा शासित राज्यों पर भी पड़ना शुरु हो गया है तथा असम सरकार ने भी 600 करोड़ रुपये की किसान कर्जमाफी का ऐलान कर दिया है, जबकि गुजरात सरकार ने छह लाख 22 हजार उपभोक्ताओं के साढ़े छह सौ करोड़ रुपये के बिजली बिल माफ करने की घोषणा कर दी है।
साल 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ ही कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने है, अत: अन्य राज्य सरकारों पर भी किसानों की कर्ज माफी का दबाव बनेगा। सूत्रों के अनुसार हरियाणा की भाजपा सरकार पर ज्यादा दबाव है, क्योंकि पड़ोसी राज्यों पंजाब और उत्तर प्रदेश की सरकारें पहले ही किसानों की कर्ज माफी कर चुकी है
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ने वर्ष 2017 में किसानों की 36,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी योजना को मंजूरी दी थी, जबकि पंजाब की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वर्ष 2018 में किसानों की 10,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी को मंजूरी दी थी। उधर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने वर्ष 2018 में 34,000 करोड़ रुपये की किसान कर्ज माफी को मंजूरी दी थी। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने भी वर्ष 2018 में 8,000 करोड़ रुपये के किसानों के कर्ज माफ किए थे। इससे पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने वर्ष 2017 में किसानों की 34,000 करोड़ रुपये की किसान कर्ज माफी की थी। वर्ष 2017 में तमिलनाडु सरकार और वर्ष 2016 में तेलंगाना सरकार के साथ वर्ष 2014 में आंध्रप्रदेश सरकार भी किसानों के कर्ज माफ कर चुकी हैं।  
इस समय जिस तरह का कृषि संकट है, उसमें किसानों की कर्जमाफी एक फौरी जरूरत भी है। ठीक वैसे ही, जैसे कई मौकों पर उद्योगों, खासकर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के कर्ज माफ होते रहे हैं। कर्जमाफी के पीछे का एक तर्क यह भी है कि दो साल पहले हुई नोटबंदी का सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हुआ है, क्योंकि एक तो किसान का सारा कारोबार नगदी में ही होता है और जब नोटबंदी हुई, उस समय वे कैशलेस नाम की चीज से कोसों दूर थे, इसलिए किसानों के लिए कर्जमाफी तत्काल राहत का काम कर सकती है।
पिछले कुछ समय में जिस तरह से कर्ज में डूबे किसानों द्वारा आत्महत्या की एक के बाद एक खबरें आईं हैं, उसने भी सरकारों और राजनीतिक दलों पर कर्जमाफी का दबाव बनाया। लेकिन यह भी एक सच है कि कोई भी राजनीतिक दल, कोई भी अर्थशास्त्री और यहां तक कि कोई भी किसान संगठन यह नहीं कह रहा कि कर्जमाफी से कृषि संकट का हल हो जाएगा और किसानों के सारे दुख दूर हो जाएंगे। सब इसे तत्काल राहत ही मान रहे हैं। खुद राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी यह स्वीकार किया था।

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