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21 मार्च 2020

कोरोना वायरस : मंडियां बंद हुई तो खाद्यान्न की आवक पर पड़ेगा असर

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में रबी फसलों गेहूं, चना, सरसों और मसूर की कटाई जोर-शोर से चल रही है, ऐसे में एहतियात के तौर पर अगर फल, सब्जी या खाद्यान्न मंडियों को बंद किया गया तो, किसानों को फसल बेचने में दिक्कतें आयेंगी, साथ ही खाद्यान्न की आवक भी प्रभावित होगी।
कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते कई राज्यों द्वारा उठाए जा रहे एहतियाती कदमों से आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर असर पड़ने की आशंका है। राजधानी दिल्ली की फल और सब्जियों के साथ दलहन, और खाद्य तेलों के साथ ही आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति अन्य राज्यों से ही होती है। हालांकि आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई पर किसी तरह की कोई रोकटोक नहीं है लेकिन इसका फायदा ट्रांसपोर्टर उठा सकते हैं।
मध्य प्रदेश के देवास में मंडियां 31 मार्च तक बंद
मध्य प्रदेश के देवास में जिला प्रशासन ने 31 मार्च तक मंडियां बंद रखने का फैसला किया है। प्रशासन द्वारा जारी निर्देश के अनुसार देवास जिले के सभी किसानों को सूचित किया जाता है कि देवास, सोनकच्छ, कन्नौद, हाटपीपल्या, खातेगांव ओर लोहारदा में किसान भाई अपनी फसल मंडी में लेकर न जाएं सारी मंडियां 31 मार्च 2020 तक बंद रहेगी।
राजस्थान में मंडियां बंद रखने पर फैसला सोमवार को
राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार महासंघ के चेयरमैन बाबूलाल गुप्ता के अनुसार रविवार को मंडियां बंद रहेगी लेकिन आगे मंडियों को बंद रखने पर फैसला सोमवार को किया जाएगा। राजस्थान की कोटा मंडी के कारोबारी राजकुमार गुप्ता ने बताया कि अभी जिला प्रशासन ने मंडियां बंद रखने के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की है, लेकिन एतिहात के तौर पर राज्य की कई मंडियां जैसे रामगंज, कोटा और भिवानी आदि आज बंद है। इसीलिए इन मंडियों में खाद्यान्नों की आवक प्रभावित होगी।
हरियाणा की मंडियों में सरसों की हो रही है आवक
हरियाणा की कैथल मंडी के कारोबारी रामनिवास गोयल ने बताया कि हरियाणा की मंडियों में पहली अप्रैल के बाद गेहूं की आवक बढ़ेगी, इस समय केवल दक्षिण हरियाणा की मंडियों में सरसों की नई फसल की हो रही है। अभी तक राज्य प्रशासन की तरफ से मंडियां बंद करने की कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है।.........  आर एस राणा

कोरोना का असर: पैनिक खरीदारी से आवश्यक वस्तुओं के बढ़े दाम

आर एस राणा
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के कारण खाने-पीने की चीजों की पैनिक खरीदारी होने लगी है, जिस कारण दालें, खाद्य तेल, आटा, आलू, प्याज आदि की कीमतों में तेजी आई है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय के अनुसार खुदरा बाजार में आलू के दाम बढ़कर शनिवार को 30 रुपये और प्याज के 40 रुपये प्रति किलो हो गए, जबकि 17 मार्च को इनके भाव क्रमश: 25 और 30 रुपये प्रति किलो थे। इस दौरान आटा एक रुपया महंगा हुआ जबकि दालों के दाम स्थिर रहे हैं।
सब्जी मंडी आजादपुर के सब्जी कारोबारी बलबीर सिंह भल्ला ने बताया कि दो दिनों से खरीदारी बढ़ी है, जिससे आलू, प्याज और मटर आदि की कीमतों में तेजी आई है। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के डर के कारण आम आदमी जो पहले दो-तीन दिन की सब्जियां खरीद रहा था, वह सप्ताहभर की सब्जियां खरीद रहा है। मंडी में आलू के भाव बढ़कर 1,100 से 1,200 रुपये प्रति 50 किलो हो गए, जबकि पिछले सप्ताह भाव 6,00 से 700 रुपये प्रति किलो थे। इसी तरह प्याज के दाम 1,200 से 1,300 रुपये प्रति 40 किलो हो गए, जबकि पहले इसका भाव 800 से 850 रुपये प्रति 40 किलो था। मटर के कीमतें मंडी में 15-20 रुपये से बढ़कर शनिवार को 30 से 35 रुपये प्रति किलो हो गईं।
दालों की कीमतें बढ़ी
नरेला मंडी के कारोबारी महेंद्र जैन ने बताया कि पिछले तीन-चार दिनों में दालों की थोक कीमतों में 200 से 500 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। उन्होंने बताया कि कानपुर मंडी में 16 मार्च को मटर का थोक भाव 4,250 रुपये प्रति किलो था जो बढ़कर 4,475 रुपये प्रति किलो हो गया। इंदौर मंडी में मसूर का भाव 16 मार्च को 4,100 रुपये प्रति क्विंटल था जो बढ़कर 4,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। अरहर का भाव दिल्ली मंडी में बढ़कर 5,350 से 5,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। चालू सप्ताह में इसका भाव 400 रुपये तक बढ़ चुके हैं।
खाद्य तेलों की कीमतों में भी मांग बढ़ने का असर
नया बाजार के खाद्य तेलों के कारोबारी हेमंत गुप्ता ने बताया कि खाद्य तेलों में घरेलू मांग बढ़ी है, जिससे सरसों तेल और सोया रिफाइंड तेल की कीमतों में डेढ़ से दो रुपये प्रति किलो की तेजी आई है। हालांकि विश्व बाजार में कोरोना वायरस के कारण खाद्य तेलों में मांग कमजोर है, जिससे इनके दाम स्थिर ही बने हुए हैं।
केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक बफर से ज्यादा
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार पहली मार्च को केंद्रीय पूल में 584.97 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है जो तय मानकों बफर से ज्यादा है। तय मानकों के अनुसार पहली अप्रैल को केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का 160.40 लाख टन का स्टॉक होना चाहिए, इसमें रिजर्व 50 लाख टन को भी मिला दें तो कुल खाद्यान्न का स्टॉक 210.40 लाख टन का होना चाहिए।
एफएओ ने विश्व में महंगाई की जताई आशंका
खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने कई देशों में लॉक डाउन के खतरे के बीच हो रही पैनिक खरीदारी से खाद्यान की कीमतों में तेजी और वैश्विक महंगाई की आशंका जताई है। एफएओ के अनुसार दुनिया में अनाज और तिलहन की कमी नहीं है, लेकिन कई इलाकों में पैनिक खरीदारी से कीमतें बढ़ने का खतरा है। साथ ही लॉक डाउन से इनकी सप्लाई पर भी असर पड़ने की आशंका है।...........  आर एस राणा

कोरोना वायरस : कपास और धागे के निर्यात सौदे रुके, घरेलू किसान मुश्किल में

आर एस राणा
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के कारण विश्व बाजार में कपास और धागे की निर्यात मांग लगभग ठप्प सी हो गई है जिस कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतों में 25 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है, जिससे घरेलू कपास किसानों को समर्थन मूल्य से 450-550 रुपये प्रति क्विंटल तक नीचे दाम पर कपास बेचनी पड़ रही है। जानकारों के अनुसार विश्व बाजार में हालात सामान्य होने के बाद ही इसकी मांग में सुधार आने का अनुमान है।
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि कोरोना वायरस के असर के कारण विश्व भर में कपास में मांग कम हो गई है, जिसकी वजह से न्यूयार्क कॉटन के मई महीने के वायदा में कॉटन के भाव घटकर 53 सेंट प्रति पाउंड पर आ गए हैं जोकि पिछले दस साल का न्यूनतम भाव है। उन्होंने बताया कि 20 जनवरी 2020 को मार्च महीने के वायदा अनुबंध में कॉटन का भाव 71.25 सेंट प्रति पाउंड था।
उन्होंने बताया कि पिछले पंद्रह-बीस दिनों से भारत से कपास के साथ ही धागे का निर्यात पूरी तरह से रुक गया है। जिस कारण घरेलू बाजार में भी कपास की कीमतों में भारी गिरावट आई है। उत्पादक मंडियों में कपास के दाम घटकर 4,800 से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं, जबकि केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए मीडियम स्टेपल कपास का समर्थन मूल्य 5,250 रुपये और लॉन्ग स्टेपल 5,550 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
कपास के साथ धागे की पुरानी शिपमेंट भी रुकी
शंकर-6 किस्म की कपास के दाम 3,800 रुपये प्रति कैंडी घटे
कपास कारोबारी नवीन ग्रोवर ने बताया कि अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव घटकर 37,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रह गया, जबकि जनवरी महीने के अंत में इसका भाव 40,800 रुपये प्रति कैंडी था। उन्होंने बताया कि कपास के साथ ही धागे के नए निर्यात सौदे हो नहीं रहे हैं, जबकि पुराने सौदों की शिपमेंट भी रुक गई है, ऐसे में मौजूदा कीमतों में और भी मंदा आ सकता है। उन्होंने बताया कि जब कि विश्व बाजार में हालात सामान्य नहीं होंगे तब तक, विश्व बाजार में कपास की कीमतों में सुधार आने की उम्मीद भी नहीं है।
सीसीआई 79 लाख गांठ कपास की कर चुकी है खरीद
कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार निगम अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू फसल सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 11 मार्च तक 79 लाख गांठ कपास (एक गांठ-170 किलो) की खरीद कर चुका है। उन्होंने बताया कि कीमतें समर्थन मूल्य से नीचे होने के कारण निगम को ज्यादा खरीद करनी पड़ रही है तथा चालू सीजन में कुल खरीद करीब 100 लाख गांठ होने का अनुमान है। निगम ने फसल सीजन 2018-19 में 10.7 लाख गांठ कपास की खरीद की थी।
कपास का उत्पादन अनुमान ज्यादा
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार चालू फसल सीजन में कपास का उत्पादन बढ़कर 354.50 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल केवल 312 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। चालू फसल सीजन में 29 फरवरी तक उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवक 254.43 लाख गांठ की हो चुकी है। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड (सीएबी) ने फसल सीजन 2019-20 में देश में कपास का उत्पादन 360 लाख गांठ होने का अनुमान जारी किया है जबकि कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमान के अनुसार कपास का उत्पादन 322.67 लाख गांठ होने का अनुमान है।.......... आर एस राणा

केंद्रीय पूल में खाद्यान्न बफर स्टॉक से 178 फीसदी ज्यादा, गेहूं के भंडारण में आयेगी परेशानी

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अप्रैल 2020 से गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद शुरू होनी है जबकि केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक तय मानकों बफर से 178 फीसदी ज्यादा है। अत: गोदाम पहले ही खाद्यान्न से भरे हुए हैं, जिस कारण गेहूं का अधिकांश भंडारण खुले आसमान के नीचे यानि कैप (तिरपाल से ढक कर) करना होगा।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार पहली मार्च को केंद्रीय पूल में 584.97 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक है, जबकि तय मानकों बफर स्टॉक के अनुसार पहली अप्रैल 2020 को केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का 160.40 लाख टन स्टॉक होना चाहिए, इसमें रिजर्व 50 लाख टन को भी मिला दें तो कुल खाद्यान्न का स्टॉक 210.40 लाख टन का होना चाहिए। पहली अप्रैल को केंद्रीय पूल में गेहूं का 44.60 लाख टन का बफर स्टॉक और 20 लाख टन के रिजर्व को मिलाकर कुल 64.60 लाख टन का ही स्टॉक होना चाहिए, पहली पहली मार्च 2020 को केंद्रीय पूल में गेहूं का ही 275.21 लाख टन का स्टॉक है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में अप्रैल में 22 से 25 लाख टन गेहूं की खपत को भी जोड़ दे बकाया स्टॉक तय मानकों बफर से चार गुना से भी ज्यादा है।
खाद्यान्न भंडारण की कुल क्षमता लगभग 8 करोड़ टन से ज्यादा
खाद्य मंत्रालय के अनुसार रबी विपणन सीजन 2019-20 में एमएसपी पर 341.32 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में गेहूं का रिकार्ड 10.62 करोड़ टन होने का अनुमान है ऐसे में सरकारी खरीद में भी बढ़ोतरी हो सकती है। देश में खाद्यान्न भंडारण की कुल क्षमता करीब 8 करोड़ टन से ज्यादा है, जिसमें से सात करोड़ टन के लिए कवर्ड पक्के गोदाम है, जबकि एक करोड़ टन से ज्यादा खाद्यान्न का भंडारण अस्थायी गोदामों कैप (तिरपाल से ढक कर) किया जाता है। खाद्य मंत्रालय के अनुसार चावल का भंडारण कवर्ड पक्के गोदाम में ही किया जाता है, इसलिए रबी में खरीद जाने वाले गेहूं का ज्यादातर भंडारण कैप गोदामों में ही करना होगा।
गेहूं की कुल खरीद में सबसे ज्यादा भागीदारी पंजाब और हरियाणा की
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के साथ ही और अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं के लिए एफसीआई केंद्रीय पूल के लिए गेहूं व चावल की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करती है। पिछले रबी सीजन में समर्थन मूल्य पर कुल 341.32 लाख टन गेहूं खरीदा गया था, जिसमें से पंजाब और हरियाणा की भागीदारी ही 222 लाख टन से ज्यादा थी। सूत्रों के अनुसार इन राज्यों के गोदाम पहले ही खाद्यान्न से भरे हुए हैं, जिस कारण गेहूं के भंडारण में परेशानी आयेगी।............. आर एस राणा

चना, सरसों के किसानों को नहीं मिल रहा समर्थन मूल्य, मंडियों में भाव 900-1,200 रुपये तक आए नीचे

आर एस राणा
नई दिल्ली। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से हुए नुकसान के बाद अब सरसों और चना किसानों पर कीमतों की मार भी पड़ रही है। उत्पादक मंडियों में चना और सरसों के दाम घटकर समर्थन मूल्य से 900 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल तक नीचे आ गए हैं, जिस कारण किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है।
कर्नाटक की गुलबर्गा मंडी के दलहन कारोबारी चंद्रशेखर एस नादर ने बताया कि मंडी में चना के दाम घटकर 3,600 से 3,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2020-21 के लिए चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,875 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। उन्होंने बताया कि चालू रबी में चना का रिकार्ड उत्पादन होने का अनुमान है, इसलिए आगे चना की नई फसल की दैनिक आवक कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान की मंडियों में बढ़ेगी।
सरसों के भाव घटकर 3,500-3,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए
राजस्थान के भरतपुर जिले की कामामंडी में सरसों के भाव घटकर 3,500 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं जबकि चालू रबी सीजन के लिए सरसों का एमएसपी 4,425 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। मंडी के तिलहन कारोबारी राजकुमार जैन ने बताया कि फरवरी और मार्च में हुई बेमौसम बारिश से सरसों की फसल को काफी नुकसान हुआ है। इसीलिए मौसम साफ होते ही किसानों ने सरसों की कटाई तेज कर दी है। उन्होंने बताया कि मंडी में दैनिक आवक 3,000 से 3,500 क्विंटल की हो रही है तथा आगे दैनिक आवक और बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि अभी नए मालों में नमी की मात्रा 8 से 10 फीसदी की आ रही है, लेकिन मौसम साफ रहा तो आगे सूखे मालों की आवक बढ़ेगी।
20-21 मार्च को फिर मौसम खराब होने की आशंका
भारतीय मौसम विभाग उत्तर भारत के कई राज्यों में 20-21 मार्च से फिर मौसम खराब होने का अनुमान है। उत्तर के पहाड़ी राज्यों के साथ ही पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश के कई जिलों में तेज बारिश के साथ ही ओलावृष्टि होने की संभावना है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चना का उत्पादन चालू रबी में बढ़कर रिकार्ड 112.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 99.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था। हालांकि सरसों का उत्पादन चालू रबी में 91.13 लाख टन ही होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 92.56 लाख टन से कम है।............  आर एस राणा

पंद्रह मार्च तक 215.82 लाख टन चीनी का उत्पादन, 21 फीसदी से ज्यादा की कमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू चालू पेराई सीजन 2019-20 में पंद्रह मार्च 2020 तक चीनी के उत्पादन में 21.13 फीसदी की गिरावट आकर कुल 215.82 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है, जबकि पिछले पेराई सीजन में 273.65 लाख टन का उत्पादन हो चुका था।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में इस समय केवल 321 चीनी मिलों में ही पेराई चल रही है तथा 136 मिलों में पेराई बंद हो चुकी है। चालू सीजन में कुल 457 मिलों में ही पेराई आरंभ हुई थी, जोकि पिछले पेराई सीजन के 527 मिलों की तुलना में कम थी।
इस्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 15 मार्च 2020 तक चीनी का उत्पादन बढ़कर 87.16 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 84.14 लाख टन का उत्पादन हुआ था। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में चीनी का कुल उत्पादन पिछले साल के लगभग बराबर 118 लाख टन ही होने का अनुमान है।
बेमौसम बारिश, बाढ़ और सूखे से महाराष्ट्र में गन्ने की फसल को हुआ नुकसान
महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में पहली अक्टूबर 2019 से 15 मार्च 2020 तक चीनी का उत्पादन घटकर 55.85 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय तक राज्य में 100.08 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। महाराष्ट्र में 56 चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है। बेमौसम बारिश, बाढ़ और सूखे से महाराष्ट्र में गन्ने की फसल को भारी नुकसान हुआ था, जिस कारण कुल उत्पादन में भारी कमी आने का अनुमान है। कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 15 मार्च तक चीनी का उत्पादन घटकर 33.35 लाख टन का ही हुआ है जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के 42.45 लाख टन से कम है।
तमिलनाडु के साथ ही गुजरात में भी चीनी उत्पादन में आई कमी
इस्मा के अनुसार तमिलनाडु में चालू पेराई सीजन में मध्य मार्च तक 4.12 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 5.54 लाख टन का उत्पादन हो चुका था। गुजरात में पिछले पेराई सीजन के 9.80 लाख टन की तुलना में चालू पेराई सीजन में 15 मार्च तक केवल 7.78 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में चालू पेराई सीजन में 4 लाख टन, बिहार में 6.38 लाख टन, उत्तराखंड में 3.22 लाख टन, पंजाब में 4.84 लाख टन, हरियाणा में 4.89 लाख टन और महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ में 3.85 लाख टन चीनी का उत्पादन मध्य मार्च तक हुआ है।
36 से 38 लाख टन चीनी के हो चुके हैं निर्यात सौदे
चालू पेराई सीजन में 36 से 38 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुके हैं जिनमें से करीब 30 लाख टन की शिपमेंट भी चुकी है। केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन के लिए 60 लाख टन चीनी का निर्यात कोटा तय कर रखा है। उद्योग के अनुसार कोरोना वायरस के कारण विश्व बाजार में चीनी की कीमतों में नरमी आई है, लेकिन माना जा रहा है कि आगे मांग बढ़ने पर फिर सुधार आने का अनुमान है। ............  आर एस राणा

उत्तर प्रदेश से समर्थन मूल्य पर 55 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य

आर एस राणा
नई दिल्ली। गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश से चालू रबी विपणन सीजन 2020-21 के लिए 55 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है जोकि पिछले साल के 38 लाख टन टन से ज्यादा है।
राज्य के खाद्य एवं रसद विभाग के अनुसार पिछले रबी सीजन में भी राज्य से 55 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया था, लेकिन खरीद हुई थी केवल 38 लाख टन की ही। राज्य की मंडियों से पहली अप्रैल 2020 से गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू की जायेगी, तथा खरीद 15 जून 2020 तक जारी रहेगी। राज्य में किसानों से गेहूं की खरीद के लिए 5,000 खरीद केंद्र स्थापित किए जायेंगे।
किसानों को गेहूं का भुगतान ई-पेमेंट के जरिए बैंक एकाउंट में किया जायेगा
चालू रबी विपणन सीजन 2020-21 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,925 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि पिछले रबी में गेहूं की खरीद 1,840 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की थी। किसानों को गेहूं की खरीद का भुगतान ई-पेमेंट के जरिए उनके बैंक एकाउंट में किया जायेगा। भारतीय खाद्य निगम, एफसीआई सहित राज्य की खरीद एजेंसियों के लिए खरीद का लक्ष्य तय किया गया है। एफसीआई राज्य की मंडियों से 1.50 लाख टन गेहूं की खरीद करेगी। किसानों को गेहूं सरकारी कांटों पर बेचने के लिए खाद्य एवं विपणन विभाग के पोर्टल पर पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
ओटीपी आधारित पंजीकरण की व्यवस्था
चालू रबी में गेहूं की खरीद के लिए राज्य में ओटीपी आधारित पंजीकरण की व्यवस्था की गई है। इसके लिए किसान पंजीकरण के समय अपना वर्तमान मोबाइल नंबर अंकित करायेंगे। पंजीकरण किसान स्वयं जनसूचना केंद्र अथवा साइबर कैफे के माध्यम से करा सकेंगे। जो किसान 100 क्विंटल से अधिक गेहूं की बिक्री करेगे उन्हें गेहूं बेचने से पहले उपजिलाधिकारी से ऑनलाइन सत्यापन कराना होगा। गेहूं बिक्री के लिए पंजीकरण की खातिर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने के लिए किसानों को भूमि के विवरण (खतौनी) की कंप्यूटराइज्ड फोटो प्रति, फोटोयुक्त पहचान पत्र, बैंक पासबुक के पहले पेज की छाया प्रति, आधार नंबर व मोबाइल नंबर आदि साथ लाना होगा।....../..  आर एस राणा

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया बढ़कर 9,000 करोड़ के पार

आर एस राणा
नई दिल्ली। उतर प्रदेश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया लगातार बढ़ रहा है। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2019-20 में 13 मार्च 2020 तक राज्य की चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 9,053.25 करोड़ रुपये हो गया है। चालू पेराई सीजन में चीनी के निर्यात में तो बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसका फायदा भी गन्ना किसानों को नहीं मिल रहा है।
उत्तर प्रदेश गन्ना आयुक्त कार्यालय के अनुसार चालू पेराई सीजन 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में पहली अक्टूबर 2019 से 13 मार्च 2020 तक राज्य की चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 9,053.25 करोड़ रुपये हो गया है जबकि राज्य की चीनी मिलों ने पेराई सीजन 2018-19 का 278.81 करोड़ रुपये का भुगतान भी अभी तक नहीं किया है। चालू पेराई सीजन में बकाया भुगतान में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी राज्य की प्राइवेट चीनी मिलों पर बढ़कर 8,125.57 करोड़ रुपये, सहकारी चीनी मिलों पर 702.91 करोड़ रुपये और निगम की चीनी मिलों पर 224.77 करोड़ रुपये हो चुका है। चालू पेराई सीजन में राज्य में 119 चीनी मिलों में पेराई चल रही है, जबकि पिछले साल 117 चीनी मिलों में पेराई चल रही है।
35 लाख टन चीनी के हौ चुके हैं निर्यात सौदे
उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में 35 लाख टन से ज्यादा चीनी के निर्यात सौदे हो चुके हैं। जानकारों के अनुसार चालू सीजन में कुल 55 से 60 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन में 60 लाख टन चीनी के निर्यात का लक्ष्य तय किया हुआ है तथा केंद्र सरकार चीनी के निर्यात पर मिलों को 104.48 रुपये प्रति क्विंटल की दर से सब्सिडी दे रही है। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन घटकर 260 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले पेराई सीजन में 330 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
चीनी का उत्पादन पिछले साल से ज्यादा
चालू पेराई सीजन में राज्य में चीनी का उत्पादन बढ़कर 85.84 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय तक 82.60 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। चालू पेराई सीजन में गन्ने में औसतन रिकवरी 11.16 फीसदी की आ रही है जबकि पिछले पेराई सीजन में औसतन रिकवरी 11.28 फीसदी की आई थी। राज्य की चीनी मिलें चालू पेराई सीजन में 13 मार्च तक 7,693.83 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई कर चुकी हैं।........  आर एस राणा

किसानों को नहीं मिल रहा दालों का समर्थन मूल्य, फिर भी आयात 4 फीसदी बढ़ा

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों को अरहर, चना और मसूर समर्थन मूल्य से 800-900 रुपये प्रति क्विंटल नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है। इसके बावजूद चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले 10 महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान ही दालों का आयात 4 फीसदी बढ़कर 26.28 लाख टन हो गया।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार अप्रैल से जनवरी के दौरान दालों का आयात बढ़कर 26.28 लाख टन का हो चुका है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 25.27 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों में दालों का आयात 11.81 फीसदी बढ़कर 8,984.80 करोड रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित वर्ष की समान अवधि में 8,035.30 करोड़ रुपये मूल्य का ही दालों का आयात हुआ था।
किसान समर्थन मूल्य से नीचे बेच रहे हैं अरहर
उत्पादक मंडियों में किसानों को अरहर 4,900 से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचनी पड़ रही है जबकि केंद्र सरकार ने अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए 5,800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। कर्नाटक की गुलबर्गा मंडी के दलहन कारोबारी एस.सी. नादर ने बताया कि अरहर की दैनिक आवक के मुकाबले समर्थन मूल्य पर खरीद नाममात्र की ही हो रही है, इसीलिए किसानों को औने-पौने दाम पर अरहर बेचनी पड़ रही है। नेफेड के अनुसार तमिनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात, आंध्रप्रदेश और ओडिशा से पांच मार्च तक समर्थन मूल्य पर 2.77 लाख टन अरहर की खरीद की गई है।
चना और मसूर बिक रही है समर्थन मूल्य से नीचे
रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की आवक कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की मंडियों में शुरू हो गई है तथा इन राज्यों की मंडियों में भाव 3,900 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। केंद्र सरकार ने चालू रबी सीजन 2020-21 के लिए चना का एमएसपी 4,875 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। इसी तरह से मसूर का समर्थन मूल्य चालू रबी सीजन के लिए 4,800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है जबकि उत्पादक मंडियों में मसूर के भाव घटकर 4,150 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गये हैं। आगामी दिनों में चना के साथ ही मसूर की दैनिक आवक बढ़ेगी, जिससे इनकी कीमतों में और गिरावट आने का अनुमान है।
रबी में चना और मसूर का उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में चना का रिकार्ड 112.2 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले रबी में इसका उत्पादन 99.4 लाख टन का ही हुआ था। इसी तरह से मसूर का उत्पादन भी चालू रबी में बढ़कर 13.9 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 12.3 लाख टन मसूर का उत्पादन हुआ था। चालू रबी में दालों का कुल उत्पादन बढ़कर 151.1 लाख टन होने का अनुमान है जो पिछले रबी सीजन के 139.8 लाख टन था।...........  आर एस राणा

14 मार्च 2020

कोरोना वायरस : किसान और पोल्ट्री उद्योग को मिलाकर एक लाख करोड़ का नुकसान

आर एस राणा
नई दिल्ली। ब्रायलर, चिकन से कोरोना वायरस फैलने की अफवाहों के कारण पोल्ट्री उद्योग करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने की आशंका है। पोल्ट्री किसानों को तो नुकसान हो ही रहा है, उद्योग से जुड़े लोगों की आजीविका पर भी संकट छा गया है। इसलिए विशेषज्ञ सरकार से आगे आने और जरूरी कदम उठाने की बात कर रहे हैं।
कृषि अर्थशास्त्री और पोल्ट्री फेडरेशन आफ इंडिया के एडवायजर विजय सरदाना ने आउटलुक को बताया कि पोल्ट्री किसानों को करीब 60 हजार करोड़ रुपये का जबकि मक्का, सोयाबीन और बाजरा किसानों को करीब 40 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। ब्रायलर पालक किसानों की उत्पादन लागत 80 रुपये है, लेकिन अफवाहों के कारण उन्हें चिकन की कीमत 20 रुपये मिल रही है। उन्होंने बताया कि पोल्ट्री उद्योग पूरी तरह उधारी पर चलता है। पोल्ट्री उपकरण निर्माताओं के साथ ही दवाइयों की आपूर्ति करने वाले और और फीड मुहैया करने वाले उद्योग भी प्रभावित हुए हैं।
ब्रायलर के दाम घटने से छोटे पोल्ट्री किसान पूरी तरह बर्बाद
उन्होंने बताया कि आमतौर पर पोल्ट्री किसानों के तीन सीजन अहम होते हैं। पहला सीजन क्रिसमस तथा नया साल, दूसरा सीजन दशहरे के समय त्यौहारी मांग और तीसरा सीजन होली का होता है। लेकिन इस बार होली के त्यौहार से पहले ही कोरोना वायरस के कारण ब्रायलर की कीमतों में आई भारी गिरावट से छोटे पोल्ट्री उत्पादक किसान बर्बाद हो गए। घाटे के कारण ही आगरा में पोल्ट्री उत्पादक किसान ने आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा।
पोल्ट्री उद्योग को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनाने की जरूरत
सरदाना ने कहा कि यस बैंक की समस्या आई तो सरकार ने हस्तक्षेप किया, इसी तरह टेलीकॉम सेक्टेर में परेशानी आई तो भी सरकार ने हस्तेक्षप किया। तो सरकार पोल्ट्री उद्योग को मार्केट के भरोसे क्यों छोड़ रही है? उन्होंने कहा कि पोल्ट्री उद्योग के लिए नीतियां बनाने, मंडी लाइसेंस समाप्त करने के साथ ही एपीएमसी को भी समाप्त करने का समय आ गया है। पोल्ट्री उद्योग को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनानी होगी, तभी यह उद्योग और इससे जुड़े लोगों का भला हो पायेगा।
मक्का, बाजरा और सोया डीओसी में आई गिरावट
दिल्ली के मक्का कारोबारी कमलेश कुमार जैन ने बताया कि दिल्ली में मक्का की कीमतें घटकर 1,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गईं जबकि महीने भर पहले इसके भाव 2,300 रुपये प्रति क्विंटल थे। बाजरा के दाम भी 2,100 रुपये से घटकर 1,650 से 1,700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के कारण चिकन और अंडे की बिक्री में आई भारी गिरावट के कारण मक्का और बाजरा और सोया डीओसी में मांग नहीं आ रही है।
अप्रेल में आएगी मक्का की नई फसल
बिहार के मक्का कारोबारी राजेश गुप्ता ने बताया कि अप्रैल में मक्का की नई फसल की आवक बनेगी, जबकि उत्पादक मंडियों में पहले ही भाव घटकर 1,500 से 1,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2019-20 के लिए मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,760 3पये प्रति क्विंटल तय कर रखा है। उंचे भाव को देखते हुए चालू सीजन में किसानों ने मक्का की बुआई ज्यादा की थी, लेकिन अब कीमतों में आई गिरावट को देखते हुए किसानों को मक्का समर्थन मूल्य से नीचे बेचनी पड़ेगी।
पोल्ट्री उत्पादकों को भारी घाटा
करनाल स्थित राज पोल्ट्री फार्म के प्रबंधक विजयपाल ने बताया कि होली पर चिकन की मांग अच्छी रहती है, लेकिन इस बार मांग 50 से 60 फीसदी तक कम हो गई। उन्होंने बताया कि जनवरी तक चिकन के दाम 100 से 125 रुपये प्रति किलो थे, जो घटकर 40 से 70 रुपये प्रति किलो रह गए हैं।..........  आर एस राणा

मिलिंग कोपरा के समर्थन मूल्य में 439 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मिलिंग कोपरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वर्ष 2020 के सत्र के लिए 439 रुपये और बाल कोपरा के एमएसपी में 380 रुपये प्रति क्विंटल तक की बढ़ोतरी करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शुक्रवार को हुई कैबिनेट की बैठक में इस आश्य का फैसला लिया गया।
बैठक के बाद सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि केंद्र सरकार ने फसल सीजन 2020 के लिए मिलिंग क्ववालिटी के मिलिंग कोपरा के समर्थन मूल्य में 439 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर फसल सीजन 2020 के लिए समर्थन मूल्य 9,960 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि पिछले साल इसका समर्थन मूल्य 9,521 रुपये प्रति क्विंटल था। इसी तरह से बाल कोपरा के समर्थन मूल्य में फसल सीजन 2020 के लिए 380 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर समर्थन मूल्य 10,300 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
30 लाख किसान को मिलेगा लाभ
कोपरा का उत्पादन मुख्यत: दक्षिण भारत के राज्यों में होता है, प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि इससे 30 लाख किसान लाभान्वित होंगे। भारतीय राष्‍ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (नैफेड) तथा भारतीय राष्‍ट्रीय सहकारी उपभोक्‍ता संघ लिमिटेड (एनसीसीएफ) नारियल उत्‍पादक राज्‍यों में किसानों से समर्थन मूल्‍य पर कोपरा की खरीद करती हैं। भारत विश्व में कोपरा उत्पादन और उत्पादकता में नंबर एक है।
नारियल की खेती 20 लाख हेक्टेयर से ज्यादा में होती है
सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि पिछले साल तमिलनाडु में कोपरा की कीमतों में कमी आई थी, तो केंद्र सरकार द्वारा किसानों से एमएसपी के माध्यम से खरीद की गई थी, जिससे कोपरा के किसानों को लाभ हुआ था। कोपरा के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर की गई है। देश में नारियल की खेती का क्षेत्रफल 20 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। सीएसीपी उत्पादन की लागत, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल कीमतों के रुख, कोपरा और नारियल तेल की कुल मांग और आपूर्ति, कोपरा के प्रसंस्करण की लागत और उपभोक्ताओं पर एमएसपी में वृद्धि के प्रभाव के आधार पर समर्थन मूल्य बढ़ाने की सिफारिश करता है।.............  आर एस राणा

फरवरी में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 10 फीसदी से ज्यादा घटा

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्य तेलों के साथ ही अखाद्य तेलों के आयात में फरवरी में 10.5 फीसदी की कमी आकर कुल आयात 11,12,478 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल फरवरी में इनका आयात 12,42,533 टन का हुआ था। चालू तेल वर्ष (नवंबर-19 से अक्टूबर-20) के पहले चार महीनों नवंबर से फरवरी में वनस्पति तेलों के आयात में 6.1 फीसदी की कमी आई है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष के पहले चार महीनों में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 45,63,791 टन का ही हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 48,62,849 टन का हुआ था। केंद्र सरकार ने 8 जनवरी 2020 को आरबीडी पॉमोलीन तेल को प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल किया था, जिस कारण इसके आयात में कमी दर्ज की गई।
पहले चार महीनों में 44.50 लाख टन हुआ खाद्य तेलों का आयात
एसईए के अनुसार चालू तेल वर्ष के पहले चार महीनों में खाद्य तेलों का आयात 44.50 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 46.11 लाख टन का हुआ था। अखाद्य तेलों का आयात चालू तेल वर्ष के नवंबर से फरवरी के दौरान 1.13 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में 2.15 लाख टन अखाद्य तेलों का आयात हुआ था। उद्योग के अनुसार तेल वर्ष 2018-19 में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 149.13 लाख टन का हुआ था जोकि इसके पिछले तेल वर्ष के 145.16 लाख टन से ज्यादा था। तेल वर्ष 2016-17 में देश में रिकार्ड 150.77 लाख टन खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात हुआ था।
जनवरी के मुकाबले फरवरी में कीमतों में गिरावट दर्ज की गई
विश्व बाजार में कीमतों में आई गिरावट से घरेलू बाजार में आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में जनवरी के मुकाबले फरवरी में गिरावट आई। भारतीय बंदरगाह पर फरवरी में आरबीडी पामोलीन का भाव घटकर 703 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि जनवरी में इसका भाव 748 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रुड पाम तेल का भाव फरवरी में घटकर भारतीय बंदरगाह पर 708 डॉलर प्रति टन गया जोकि जनवरी में 762 डॉलर प्रति टन था। क्रुड सोयाबीन तेल का भाव इस दौरान 828 डॉलर प्रति टन से घटकर 795 डॉलर प्रति टन रह गया।............  आर एस राणा

किसानों को नहीं मिल रहा दालों का समर्थन मूल्य, फिर भी आयात 4 फीसदी बढ़ा

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों को अरहर, चना और मसूर समर्थन मूल्य से 800-900 रुपये प्रति क्विंटल नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है। इसके बावजूद चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले 10 महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान ही दालों का आयात 4 फीसदी बढ़कर 26.28 लाख टन हो गया।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार अप्रैल से जनवरी के दौरान दालों का आयात बढ़कर 26.28 लाख टन का हो चुका है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 25.27 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों में दालों का आयात 11.81 फीसदी बढ़कर 8,984.80 करोड रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित वर्ष की समान अवधि में 8,035.30 करोड़ रुपये मूल्य का ही दालों का आयात हुआ था।
किसान समर्थन मूल्य से नीचे बेच रहे हैं अरहर
उत्पादक मंडियों में किसानों को अरहर 4,900 से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचनी पड़ रही है जबकि केंद्र सरकार ने अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खरीफ विपणन सीजन 2019—20 के लिए 5,800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। कर्नाटक की गुलबर्गा मंडी के दलहन कारोबारी एस.सी. नादर ने बताया कि अरहर की दैनिक आवक के मुकाबले समर्थन मूल्य पर खरीद नाममात्र की ही हो रही है, इसीलिए किसानों को औने-पौने दाम पर अरहर बेचनी पड़ रही है। नेफेड के अनुसार तमिनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात, आंध्रप्रदेश और ओडिशा से पांच मार्च तक समर्थन मूल्य पर 2.77 लाख टन अरहर की खरीद की गई है।
चना और मसूर बिक रही है समर्थन मूल्य से नीचे
रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की आवक कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की मंडियों में शुरू हो गई है तथा इन राज्यों की मंडियों में भाव 3,900 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। केंद्र सरकार ने चालू रबी सीजन 2020-21 के लिए चना का एमएसपी 4,875 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। इसी तरह से मसूर का समर्थन मूल्य चालू रबी सीजन के लिए 4,800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है जबकि उत्पादक मंडियों में मसूर के भाव घटकर 4,150 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गये हैं। आगामी दिनों में चना के साथ ही मसूर की दैनिक आवक बढ़ेगी, जिससे इनकी कीमतों में और गिरावट आने का अनुमान है।
रबी में चना और मसूर का उत्पादन अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में चना का रिकार्ड 112.2 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले रबी में इसका उत्पादन 99.4 लाख टन का ही हुआ था। इसी तरह से मसूर का उत्पादन भी चालू रबी में बढ़कर 13.9 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 12.3 लाख टन मसूर का उत्पादन हुआ था। चालू रबी में दालों का कुल उत्पादन बढ़कर 151.1 लाख टन होने का अनुमान है जो पिछले रबी सीजन के 139.8 लाख टन था।.............  आर एस राणा

उत्तर भारत में बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं, जौ, चना और सरसों को भारी नुकसान

आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई जिलों में पिछले 48 घंटों में हुई भारी बारिश के साथ ही तेज हवा चलने और ओलावृष्टि से गेहूं, जौ, चना और सरसों के साथ ही सब्जियों की फसलों को भारी नुकसान हुआ है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) अगले 24 घंटों में पहाड़ी राज्यों में जहां बारिश और बर्फबारी होने का अनुमान है, वहीं मैदानी भागों में बारिश के साथ ही ओलावृष्टि होने से किसानों की मुश्किल अभी कम नहीं हुई है।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार पंजाब में लगातार दूसरे दिन बरनाला, मुक्तसर, संगरूर व गुरदासपुर सहित कई जिलों में तेज बारिश हुई। संगरूर के लहरागागा, गुरदासपुर व तरनतारन के कई क्षेत्रों में हल्की ओलावृष्टि भी हुई जिससे गेहूं की फसल खेतों में गिर गई है। राज्य के कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार तेज हवाओं और ओलावृष्टि के साथ भारी बारिश ने राज्य के कुछ हिस्सों में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाया है, राज्य सरकार ने शुक्रवार को फसल नुकसान के आकलन के लिए एक विशेष 'गिरदावरी' का आदेश दिया है।
हरियाणा के सात जिलों में लगातार तीसरे दिन तेज बारिश और ओलावृष्टि हुई
पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय रहने से हरियाणा के सात जिलों में लगातार तीसरे दिन शुक्रवार को तेज बारिश और ओलावृष्टि हुई। इससे लाखों हेक्टेयर में लगी सरसों, गेहूं और सब्जियों की फसलों को 50 से 80 फीसदी तक नुकसान होने की आशंका है। मौसम केंद्र चंडीगढ़ के मुताबिक हिसार में 23 साल बाद सबसे अधिक 37 एमएम बारिश रिकॉर्ड की गई। वहीं, रेवाड़ी में 54 एमएम बारिश हुई, जबकि पूरे हरियाणा में 12.5 एमएम औसत बारिश दर्ज की गई है। महेंद्रगढ़, भिवानी, रोहतक, फतेहाबाद, रेवाड़ी, चरखी दादरी, सोनीपत समेत कई जिलों में लगातार तीसरे दिन ओले पड़ने और तेज हवाओं के साथ बारिश होने से फसलें तबाह हो गईं। हरियाणा सरकार फसलों को हुए नुकसान की गिरदावरी के पहले ही आदेश दे चुकी है। हरियाणा के कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल ने ट्वीट किया है कि ओलावृष्टि से अनेकों गांवों में काफी नुकसान हुआ है। किसान भाइयों घबराने की जरुरत नहीं है, हरियाणा सरकार आपके नुकसान की भरपाई करेगी।
राजस्थान में ओलावृष्टि से प्रभावित जिलों के प्रभारी मंत्री विभिन्न हिस्सों का जायजा लेंगे
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा कि ओलावृष्टि से प्रभावित जिलों के प्रभारी मंत्री प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में 4, 5 और 6 मार्च को हुई ओलावृष्टि से फसलों को हुए नुकसान का जायजा लेंगे और प्रभावित किसानों से मुलाकात करेंगे। फसल खराबे से पीड़ित किसानों को आपदा राहत नियमों के तहत जल्द से जल्द सहायता प्रदान की जाएगी। उन्होंने एक अन्य ट्वीट कर कहा कि प्रदेश के कुछ हिस्सों में बारिश व ओलवृष्टि की खबरें प्राप्त हुई है इससे किसान भाइयों की फसलो को नुकसान पहुँचा है किसान भाईं घबराये नहीं, चिंतित ना हो, प्रदेश में किसान हितैषी सरकार है। सर्वे के निर्देश दे दिये गये है
नुकसान की भरपाई होगी, संकट की इस घड़ी में सरकार आपके साथ खड़ी है।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री ने किसानों को तत्काल राहत देने के दिए निर्देश
बेमौसम बारिश और ओलवृष्टि से उत्तर प्रदेश में गेंहू, मटर, आलू और तिलहन की हजारों हेक्टेयर फसलें बर्बाद हो गई हैं। उत्तर प्रदेश में पूर्वाचल से लेकर पश्चिमी जिलों तक खेतों में गिरी पड़ी फसलों को देखकर किसान बेहाल हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों को तत्काल राहत पहुंचाने के निर्देश दिए हैं। प्रदेश में एक से छह मार्च तक विभिन्न क्षेत्रों में हुई बारिश और ओले गिरने से सात जिलों में फसलों को नुकसान पहुंचा है। सात जिलों में कुल 2,37,374 किसानों की कुल 1,72,001 हेक्टेयर फसलें प्रभावित हुई हैं।
किसानों को बारिश से बर्बाद हुई फसलों के लिए उचित मुआवजा दिया जाए—प्रियंका
उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में दूसरे दिन भी बारिश और ओले गिरने से गेहूं, मटर, आलू और तिलहन की हजारों हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई। बारिश के साथ चली तेज हवा से अमेठी, रायबरेली, अयोध्या, अंबेडकरनगर, सीतापुर और बाराबंकी में गेहूं की फसल खेतों में गिर गई है। वहीं, सुल्तानपुर में जहां दो लोगों की मौत हो गई। बारिश से बर्बाद हुई फसलों के मुआवजे को लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश सरकार पर हमला किया है। उन्होंने  ट्वीट कर कहा कि किसानों को बारिश से बर्बाद हुई फसलों के लिए उचित मुआवजा देने की मांग की है। इन किसानों का दर्द सुनिए। ओलावृष्टि और भारी बारिश के चलते उत्तर प्रदेश की तमाम जगहों पर किसानों की फसल बर्बाद हो गई। कई किसानों की तो 80 फीसदी तक फसल बर्बाद हो गई है। यूपी की भाजपा सरकार को कोरे दावे करने की बजाय नुकसान का पूरा आंकलन करके किसानों को उचित मुआवजा देना चाहिए।
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान ओलावृष्टि और बारिश का अनुमान
पश्चिमी विक्षोभ पूर्वी दिशा में लद्दाख पर पहुँच गया है। इसके प्रभाव से बना चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र पश्चिमी राजस्थान पर है। इस सिस्टम से एक ट्रफ रेखा उत्तर प्रदेश और बिहार होते हुए पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्सों पर बने सर्कुलेशन तक सक्रिय है। अगले 24 घंटों के दौरान जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और लद्दाख में अच्छी बारिश और हिमपात जारी रहने की संभावना है। इस दौरान पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तरी राजस्थान में ओलावृष्टि के साथ अधिकांश स्थानों पर गरज के साथ बौछारें गिरने के आसार हैं। ओडिशा, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है। छत्तीसगढ़ में भी छिटपुट बारिश की संभावना है। केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में गरज के साथ हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है। अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह तथा लक्षद्वीप में भी हल्की से मध्यम बारिश की उम्मीद है।
जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में तेज बारिश और बर्फबारी हुई
पिछले 24 घंटों के दौरान जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में काफी व्यापक बारिश और बर्फबारी हुई। उत्तराखंड और लद्दाख में भी कुछ स्थानों पर वर्षा और हिमपात दर्ज किया गया है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में ओलावृष्टि के साथ-साथ बारिश तेज़ वर्षा हुई है। ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी मध्यम बारिश और बादलों की गर्जना के साथ ओलावृष्टि की गतिविधियाँ देखने को मिलीं। छत्तीसगढ़ और बिहार में भी कुछ स्थानों पर वर्षा हुई। केरल, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश हुई। गुजरात, महाराष्ट्र में विदर्भ क्षेत्र और दक्षिण-पूर्वी तथा उत्तरी मध्य प्रदेश में हल्की से मध्यम बारिश रिकॉर्ड की गई। असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में हल्की से मध्यम बारिश देखी गई।..........  आर एस राणा

फरवरी अंत तक 27.50 लाख गांठ कपास का हुआ निर्यात, 12 लाख का आयात

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू सीजन में 29 फरवरी तक 27.50 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) का निर्यात हो चुका है, जबकि इस दौरान 12 लाख गांठ कपास का आयात भी हो चुका है। पहली अक्टूबर 2020 से शुरू होने नए कपास सीजन में बकाया स्टॉक बढ़कर 38.50 लाख गांठ का बचने का अनुमान है, जोकि चालू पेराई सीजन के 32 लाख गांठ से ज्यादा है।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) ने चालू सीजन में कपास के उत्पादन का अनुमान 354.50 लाख गांठ पर ही स्थिर रखा है, जबकि चालू सीजन में पहली अक्टूबर 2019 से फरवरी अंत तक उत्पादक मंडियों में कपास की आवक 254.43 लाख गांठ की हो चुकी है। पिछले साल कपास का उत्पादन 312 लाख गांठ का ही हुआ था। कपास में यार्न मिलों की मांग कमजोर है, जिस कारण उत्पादक मंडियों में भाव लगभग स्थिर हो गए हैं। कपास में चीन की आयात मांग बढ़ने पर ही विश्व बाजार में दाम बढ़ेंगे, उसके बाद ही घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में सुधार आने का अनुमान है।
उत्तर भारत के साथ ही मध्य और दक्षिण के राज्यों में उत्पादन अनुमान ज्यादा
चालू सीजन में उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कपास का उत्पादन 61 लाख गांठ का उत्पादन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 52.90 लाख गांठ से ज्यादा है। इसी तरह मध्य भारत के राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 197 लाख गांठ का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इन राज्यों में 180.63 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। इसी तरह से दक्षिण भारत के राज्यों तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में 91.50 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है जोकि पिछले साल के 67.55 लाख गांठ से ज्यादा है। ओडिशा में चार लाख गांठ और अन्य राज्यों में एक लाख गांठ का उत्पादन होने का अनुमान है।
कपास के आयात में कमी का अनुमान, निर्यात पिछले साल के बराबर
सीएआई के अनुसार चालू फसल सीजन में कपास के आयात में 7 लाख गांठ की कमी आकर कुल आयात 25 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 32 लाख गांठ का आयात हुआ था। चालू सीजन में कपास का निर्यात 42 लाख गांठ का होने का अनुमान है, जोकि पिछले साल के लगभग बराबर ही है।. .......  आर एस राणा

उड़द का आयात 30 अप्रैल तक कर सकेंगे आयातक, सरकार ने बढ़ाई सीमा

केंद्र सरकार ने 2.50 लाख टन उड़द आयात के लिए तय मियाद को एक महीना बढ़ा दिया है। आयातक अब उड़द का आयात 30 अप्रैल 2020 तक कर सकेंगे। इससे पहले केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए उड़द के आयात की तय सीमा 31 मार्च 2020 तय कर रखी थी।
वाणिज्य मंत्रालय के अधीन आने वाले विदेश व्यापार महानिदेशालय, डीजीएफटी द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार सभी लाइसेंसधारी अतिरिक्त कोटे 2.50 लाख टन उड़द का आयात 30 अप्रैल 2020 या इससे पहले कर सकेंगे, तथा 30 अप्रैल तक आयातित माल भारतीय बंदरगाह पर पहुंच जाना चाहिए। उसके बाद आने वाले माल को बंदरगाह पर उतराने की अनुमति नहीं दी जायेगी।
केंद्र सरकार ने 19 दिसंबर 2019 को 2.50 लाख टन उड़द के अतिरिक्त कोटे के आयात की अनुमति दी थी, इससे पहले केंद्र सरकार ने केवल 1.50 लाख टन के आयात कोटे को मंजूरी थी। ऐसे में चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए उड़द का आयात कोटा बढ़कर 4 लाख टन का हो गया था। आयातकों का कहना था कि मार्च में 2.50 लाख टन का आयात नहीं हो पायेगा, इसलिए सरकार ने आयात की तय समय सीमा को आगे बढ़ा दिया। मार्च में उड़द की घरेलू फसल की आवक भी बनेगी, इसलिए इसकी मौजूदा कीमतों में ज्यादा तेजी की संभावना नहीं है। चैन्नई में आयातित उड़द एफएक्यू क्वालिटी के भाव 6,100 रुपये प्रति क्विंटल रहे।

फरवरी अंत तक चीनी का उत्पादन 194.84 लाख टन, पिछले सीजन से 22 फीसदी कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2019-20 में फरवरी अंत तक चीनी का उत्पादन 22 फीसदी घटकर 194.84 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 249.30 लाख टन का उत्पादन हो चुका था।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 29 फरवरी तक चीनी का उत्पादन घटकर 50.70 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 92.99 लाख टन का उत्पादन हो चुका था। महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश, बाढ़ और सूखे से गन्ने की फसल को भारी नुकसान हुआ था, जिस कारण उत्पादन में भारी कमी आने का अनुमान है। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में फरवरी अंत तक चीनी का उत्पादन बढ़कर 76.86 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय तक राज्य में केवल 73.87 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था।
कर्नाटक के साथ ही तमिलनाडु में घटा चीनी का उत्पादन
इस्मा के अनुसार कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 29 फरवरी तक 32.60 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 41.73 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। तमिलनाडु में चालू पेराई सीजन में फरवरी अंत तक चीनी का उत्पादन घटकर 3.20 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 4.63 लाख टन का उत्पादन हो चुका था। गुजरात में चालू पेराई सीजन में अभी तक 6.83 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ है जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के 8.79 लाख टन से कम है।
आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में भी उत्पादन में आई कमी
अन्य राज्यों में आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में 3.65 लाख टन चीनी का उत्पादन चालू पेराई सीजन में फरवरी अंत तक हुआ है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 5.70 लाख टन से कम है। बिहार में चीनी का उत्पादन चालू पेराई सीजन में 5.74 लाख टन, उत्तराखंड में 2.85 लाख टन, पंजाब में 4.50 लाख टन, हरियाणा में 4.30 लाख टन और मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में 3.30 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ है।
चालू पेराई सीजन में 35 लाख टन चीनी के हो चुके हैं निर्यात सौदे
इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन में चीनी मिलें अभी तक करीब 35 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे कर चुकी है तथा 22 से 23 लाख टन चीनी की शिपमेंट भी हो चुकी है। केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन के लिए 60 लाख टन चीनी का निर्यात कोटा निर्धारित कर रखा है, तथा विश्व बाजार में चीनी की उपलब्धता इस समय कम है, ऐसे में माना जा रहा है कि चालू पेराई सीजन में कुल निर्यात तय कोटे का 60 लाख टन हो जायेगा।...........  आर एस राणा

गैर-बासमती चावल का निर्यात 38 फीसदी घटा, बासमती का एक फीसदी कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले 9 महीनों अप्रैल से दिसंबर के दौरान गैर-बासमती चावल के निर्यात में 38 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल निर्यात 35.62 लाख टन का ही हुआ है जबकि बासमती चावल के निर्यात में इस दौरान 0.90 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 28.35 लाख टन का हुआ है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से दिसंबर के दौरान गैर-बासमती चावल का निर्यात घटकर 35.62 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 57.39 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में गैर-बासमती चावल का निर्यात घटकर 10,217 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 15,906 करोड़ रुपये का हुआ था। व्यापारियों के अनुसार गैर-बासमती चावल का निर्यात घटने की प्रमुख वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत का गैर-बासमती चावल अन्य देशों के चावल के मुकाबले महंगा है।
बासमती चावल में ईरान के साथ सऊदी अरब को निर्यात सौदे कम
बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से दिसंबर तक 28.35 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 28.61 लाख टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में 20,926 करोड़ रुपये का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 21,203 करोड़ रुपये मूल्य का हुआ था। एपीडा के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार ईरान के साथ सऊदी अरब को निर्यात सौदे कम हो रहे है। उन्होंने बताया कि ईरान को बासमती चावल का निर्यात वाया दुबई तो हो रहा है, लेकिन सीधे निर्यात सौदे नहीं हो रहे हैं।
मंडियों में धान और चावल की कीमतों में आई गिरावट
चावल में निर्यात मांग कम होने के कारण घरेलू बाजार में धान और चावल की कीमतों में गिरावट आई है। हरियाणा की कैथल मंडी के चावल कारोबारी रामनिवास खुरानियां ने बताया कि शनिवार को मंडी में पूसा 1,121 बासमती धान का भाव 2,800 से 2,850 रुपये प्रति क्विंटल रह गया, जबकि जनवरी में इसका भाव 3,100 रुपये प्रति क्विंटल था। इसी तरह से पूसा 1,121 बासमती सेला चावल का भाव घटकर 4,850 से 4,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गया, जबकि उपर में यह 5,500 से 5,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक चुका है। उन्होंने बताया कि ट्रेडिशनल बासमती धान के भाव घटकर मंडी में 3,700 से 3,750 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि दिसंबर में इसके भाव 4,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे। उन्होंने बताया कि चीन में फैले कोरोना वायरस के कारण चावल की निर्यात मांग प्रभावित हुई है, जिसका असर इसकी कीमतों पर पड़ रहा है।............ आर एस राणा

केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात से प्रतिबंध हटाया, रबी में पैदावार बढ़ने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्याज की थोक कीमतों में आई गिरावट के बाद केंद्र सरकार ने इसके निर्यात पर लगी रोक को हटाने का फैसला किया है। रबी सीजन में प्याज का उत्पादन अनुमान ज्यादा होने का अनुमान है, जिससे इसकी मौजूदा कीमतों में और मंदा आने का अनुमान है। महाराष्ट्र की मंडियों में प्याज के थोक दाम घटकर 17 से 21 रुपये प्रति किलो रह गए हैं।
सूत्रों के अनुसार गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में मंत्रियों के समूह (जीओएम) की बैठक में प्याज निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने का निर्णय किया गया। खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने बुधवार को एक ट्वीट के माध्यम से कहा कि चूंकि प्याज की कीमत स्थिर हो गई है और प्याज की भारी पैदावार हुई है, इसलिए सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का फैसला किया है। पिछले साल मार्च के महीने 28.4 लाख टन प्याज के पैदावार की तुलना में चालू रबी में मार्च में 40 लाख टन से अधिक की पैदावार आने की संभावना है।
डीजीएफटी जल्द जारी करेगी अधिसूचना
प्रतिबंध को हटाने का निर्णय विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा इस संबंध में अधिसूचना जारी किए जाने के बाद प्रभावी होगा तथा जल्दी ही अधिसूचना जारी होगी। सूत्रों ने कहा कि बुधवार को मंत्रिसमूह ने निर्यात को सुविधाजनक बनाने के लिए प्याज पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) कम करने या समाप्त करने के बारे में भी विचार किया। एमईपी दर के नीचे किसी वस्तु के निर्यात की अनुमति नहीं होती है। बैठक में केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और मंत्रिमंडलीय सचिव राजीव गौबा उपस्थित थे।
सितंबर 2019 में प्याज के निर्यात पर लगाई थी रोक
सितंबर 2019 में, सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था और प्रति टन प्याज पर 850 डॉलर का एमईपी भी लगा दिया था। उस समय मांग और आपूर्ति में अंतर होने के कारण प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी थीं। महाराष्ट्र सहित प्रमुख प्याज उत्पादक राज्यों में अत्याधिक बारिश और बाढ़ के कारण खरीफ प्याज फसल के प्रभावित होने से प्याज के उत्पादन में कमी आई थी। रबी प्याज की फसल की आवक मंडियों में शुरू हो गई है और मध्य मार्च से दैनिक आवक बढ़ने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार, मार्च में ही प्याज की आवक 40.68 लाख टन के लगभग होने की उम्मीद है जो आवक पिछले वर्ष की समान अवधि में 28.44 लाख टन था। उन्होंने कहा कि अप्रैल में मंडियों में प्याज की आवक 86 लाख टन से अधिक होने का अनुमान है, जो साल भर पहले यह 61 लाख टन था। सूत्रों ने कहा कि प्याज के निर्यात से घरेलू कीमतों में भारी गिरावट के रुकने की संभावना है और इससे उत्पादकों के हितों की रक्षा होगी। सूत्रों ने कहा कि बैठक के दौरान दालों, विशेष रूप से उड़द के आयात पर भी चर्चा की गई।............ आर एस राणा

उद्योग ने चीनी का उत्पादन अनुमान बढ़ाकर 265 लाख टन किया, पहले अनुमान से पांच लाख टन ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2019-20 में चीनी का उत्पादन 265 लाख टन होने का अनुमान है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चीनी का उत्पादन पहले अनुमान से पांच लाख टन ज्यादा होने का अनुमान है।
इस्मा ने अपने आरंभिक उत्पादन अनुमान में देश में 260 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान जारी किया था, जोकि पिछले साल के 330 लाख टन से 70 लाख टन कम था। इस्मा द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन पिछले पेराई सीजन 2018-19 के लगभग बराबर ही 118 लाख टन होने का अनुमान है।
बेमौसम बारिश और बाढ़ तथा सूखे से कर्नाटक और महाराष्ट्र में गन्ने की फसल को नुकसान हुआ था, जिस कारण इन राज्यों में चीनी के उत्पादन अनुमान में कमी आने का अनुमान है। महाराष्ट्र में पिछले पेराई सीजन में 107.20 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था, जबकि चालू पेराई सीजन में केवल 62 लाख टन ही उत्पादन होने का अनुमान है। कर्नाटक में चीनी का उत्पादन पिछले साल पेराई सीजन के 44.30 लाख टन से घटकर चालू पेराई सीजन में केवल 33 लाख टन उत्पादन का ही अनुमान है।
अन्य चीनी उत्पादक राज्यों में उत्पादन 52 लाख टन ही होने का अनुमान
इस्मा के अनुसार तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और उत्तराखंड में चीनी का उत्पादन चालू पेराई सीजन में 52 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पहले आरंभिक अनुमान के लगभग बराबर ही है। चालू पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन अनुमान में तो कमी आने की आशंका है, लेकिन पहली अक्टूबर 2019 को जब पेराई सीजन आरंभ हुआ तो, घरेलू मिलों के पास करीब 145 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक मौजूद था। देश में चीनी की सालाना खपत करीब 255 से 260 लाख टन की ही होती है।
मध्य फरवरी तक चीनी के उत्पादन में आई है कमी
केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन 2019-20 के लिए 60 लाख टन चीनी के निर्यात का कोटा तय किया है, जिसमें से करीब 32 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुके हैं। केंद्र सरकार चीनी के निर्यात पर मिलों को 10.44 रुपये प्रति किलो की दर से प्रोत्साहन राशि दे रही है, जिससे निर्यात सौदों में तो सुधार आया है लेकिन गन्ना किसानों का बकाया लगातार बढ़ ही रहा है। सूत्रों के अनुसार उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 24 फरवरी 2020 तक 7,392 करोड़ रुपये से ज्यादा का हो चुका है। उद्योग के अनुसार पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में 15 फरवरी तक 169.85 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है, जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के 219.66 लाख टन से कम है।...............आर एस राणा

किसानों के लिए फसल बीमा योजना को स्वैच्छिक बनाने का निर्णय, डेयरी क्षेत्र के लिए 4,558 करोड़ मंजूर

आर एस राणा
नई दिल्ली। सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) को स्वैच्छिक बनाने के साथ ही देश में 10 हजार कृषि उत्पाद संगठन (एफपीओ) बनाने का निर्णय लिया है। इसके अलावा सरकार ने डेयरी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए 4,558 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना कराने वाले किसानों से बैंक बीमा की राशि में से पहले ऋण की राशि काट लेते थे, लेकिन फसल बीमा योजना को स्वैच्छिक बनाये जाने से बैंक ऐसा नहीं कर पायेंगे। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) से फसली ऋण लेने वाले किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना अनिवार्य थी, जबकि अन्य किसानों के लिए यह योजना पहले ही स्वैच्छिक थी। उन्होंने बताया कि योजना की शुरूआत जनवरी 2016 में की गई थी, तथा इस बारे में कुछ शिकायतों के बाद कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया।
सरकार देश में 10 हजार एफपीओ का गठन करेगी
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर और कई बदलाव किये गये हैं। इसका लाभ किसानों को मिलेगा। उन्होंने कहा कि किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) का प्रयोग देश में बहुत सफल रहा है। एफपीओ के विनिर्माण और संवर्धन स्कीम के तहत 6,865 करोड़ रूपए के कुल बजटीय प्रावधान के साथ 10,000 नए एफपीओ बनाये जायेंगे।
सरकार ने डेयरी क्षेत्र के लिए 4,558 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी-जावडेकर
सरकार ने डेयरी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए बुधवार को 4,558 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी। इससे करीब 95 लाख किसानों को फायदा होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल द्वारा किये गये इस निर्णय के बारे में सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने पत्रकारों को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इससे देश में दुग्ध क्रांति में नये आयाम जुड़ेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि मंत्रिमंडल ने ब्याज सहायता योजना में लाभ को दो फीसदी से बढ़ाकर ढाई फीसदी करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है। जावडेकर ने कहा कि सरकार ने यह फैसले किसान समुदाय के हित के लिए किये हैं।
खरीफ फसलों के लिए 2 फीसदी और रबी के लिए 1.5 फीसदी है प्रीमियम
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिये 2 फीसदी प्रीमियम और रबी की फसल के लिये 1.5 फीसदी प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। इसके अलावा यह योजना वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए भी बीमा सुरक्षा प्रदान करती है। बागवानी फसलों को लिए किसानों को पांच फीसदी प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। फसल की बुआई के 10 दिनों के अंदर किसान को पीएमएफबीवाई का फॉर्म भरना जरूरी है।............. आर एस राणा

खाद्यान्न का रिकार्ड 29.19 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान, गेहूं के साथ चावल होगा बंपर

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2019-20 में देश में खाद्यान्न का उत्पादन 2.42 फीसदी बढ़कर रिकार्ड 29.19 करोड़ टन होने का अनुमान है। गेहूं के साथ ही चावल और चना की बंपर पैदावार होने का अनुमान है।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार खाद्यान्न का उत्पादन चालू फसल सीजन में बढ़कर 29.19 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 28.52 करोड़ टन का उत्पादन हुआ था। चावल का उत्पादन फसल सीजन 2019-20 में बढ़कर 11.74 करोड़ टन और गेहूं का 10.62 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में इनका उत्पादन क्रमश: 11.64 और 10.36 करोड़ टन का हुआ था।
दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार दालों का उत्पादन 230.2 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 220.8 लाख टन से तो ज्यादा है, लेकिन फसल सीजन 2017-18 के रिकार्ड उत्पादन 254.2 लाख टन से कम है। दलहन की प्रमुख फसल चना का उत्पादन चालू रबी में बढ़कर रिकार्ड 112.2 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 99.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था। अरहर का उत्पादन 36.9 लाख टन, उड़द का 22.5 लाख टन और मूंग का 22.7 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इनका उत्पादन क्रमश: 33.2 लाख टन, 30.6 लाख टन और 24.6 लाख टन का हुआ था। मसूर का उत्पादन चालू रबी में बढ़कर 13.9 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 12.3 लाख टन का हुआ था।
मोटे अनाजों में मक्का, ज्वार और जौ का उत्पादन अनुमान ज्यादा
मोटे अनाजों में मक्का का उत्पादन फसल सीजन 2019-20 में 280.8 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 277.2 लाख टन से ज्यादा है। ज्वार का उत्पादन 43.8 लाख टन और बाजरा का 89 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले साल इनका उत्पादन क्रमश: 34.8 और 86.6 लाख टन का हुआ था। जौ का उत्पादन चालू रबी में बढ़कर 18.80 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 16.3 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था।
सरसों के उत्पादन में आयेगी कमी, मूंगफली और सोयाबीन का ज्यादा
दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार तिलहन में सरसों का उत्पादन चालू रबी में 91.13 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 92.56 लाख टन से कम है। मूंगफली का उत्पादन चालू फसल सीजन में 82.44 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में 67.27 लाख टन का उत्पादन हुआ था। केस्टर सीड का उत्पादन 20.43 लाख टन और सोयाबीन का 136.28 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में इनका उत्पादन क्रमश: 11.97 और 132.68 लाख टन का हुआ था। कपास का उत्पादन चालू फसल सीजन में 348.91 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 280.42 लाख गांठ का ही उत्पादन हुआ था।.............  आर एस राणा

चीनी के उत्पादन में 22 फीसदी से ज्यादा की आई कमी, महाराष्ट्र और कर्नाटक में कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में 15 फरवरी तक देश में चीनी के उत्पादन में 22.67 फीसदी की गिरावट कुल उत्पादन 169.85 लाख टन का ही हुआ है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी के उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की गई, जबकि उत्तर प्रदेश में बढ़ा है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार 15 फरवरी तक चीनी का उत्पादन 169.85 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल इस समय तक 219.66 लाख टन का उत्पादन हो चुका था। इस समय देशभर में 449 चीनी मिलों में पेराई चल रही है तथा 23 चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है। पिछले साल इस समय 521 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी।
महाराष्ट्र में उत्पादन 47.71 फीसदी घटा
इस्मा के अनुसार सूखे, बाढ़ और बेमौसम बारिश से गन्ने की फसल को महाराष्ट्र के साथ ही कर्नाटक में भारी नुकसान हुआ, जिससे इन राज्यों में चीनी के उत्पादन में पिछले साल की तुलना में भारी गिरावट आई है। महाराष्ट्र में 15 फरवरी तक चीनी के उत्पादन में 47.71 फीसदी की गिरावट आकर कुल उत्पादन 43.39 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 82.98 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। राज्य में 143 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी, जिनमें से 8 चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है। कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में 30.80 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 38.74 लाख टन से कम है। राज्य में 63 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हुई थी, जिनमें से 13 चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन ज्यादा, तमिलनाडु में कम
उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन बढ़कर 66.34 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में 63.93 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था। राज्य में 119 चीनी मिलों में पेराई चल रही है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 117 मिलों में ही पेराई चल रही थी। तमिलनाडु में चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 15 फरवरी तक घटकर 2.60 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस समय तक 3.85 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था।
अन्य राज्यों गुजरात, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी उत्पादन घटा
गुजरात में चालू पेराई सीजन में 5.95 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है, जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 7.78 लाख टन का उत्पादन हुआ था। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में पिछले पेराई सीजन के 4.50 लाख टन की तुलना में चालू पेराई सीजन में अभी तक 3.06 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है। अन्य राज्यों में बिहार में 5.08 लाख टन, उत्तराखंड में 2.41 लाख टन, पंजाब में 3.72 लाख टन, हरियाणा में 3.51 लाख टन तथा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 2.76 लाख टन का उत्पादन हुआ है। उत्तर भारत में चीनी के एक्स फैक्ट्री भाव 3,200 से 3,300 रुपये और दक्षिण तथा पश्चिम राज्यों में 3,100 से 3,200 रुपये प्रति क्विंटल हैं।
चालू पेराई सीजन में 32 लाख टन चीनी के हो चुके हैं निर्यात सौदे
इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन में करीब 32 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुके हैं, जिनमें से करीब 16 लाख टन की शिपमेंट भी हो चुकी हैं। केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन के लिए 60 लाख टन चीनी के निर्यात का कोटा निधारित किया हुआ है, जबकि इस्मा के अनुसार निर्यात 50 लाख टन होने का अनुमान है। चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन घटकर 260 लाख टन होने का अनुमान है।...........  आर एस राणा