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29 जनवरी 2010

कपास की उत्पादकता में लगातार गिरावट

नई दिल्ली January 28, 2010
कपास की उत्पादकता पिछले दो सालों से लगातार कम हो रही है। वर्ष 2007-08 के दौरान कपास की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 567 किलोग्राम थी जो वर्ष 2008-09 में 526 किलोग्राम हो गई और वर्ष 2009-10 में मात्र 494 किलोग्राम रह गई है। कृषि वैज्ञानिक इस कमी के लिए बारिश की कमी को जिम्मेदार मान रहे हैं। उनका यह भी दावा है कि पिछले साल के मुकाबले कपास की गुणवत्ता में सुधार आया है। अभी कपास के दूसरे चरण की चुनाई बाकी है इसलिए कपास की उत्पादकता में भी थोड़ी-बहुत बढ़ोतरी हो सकती है। हालांकि कपास का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 5 लाख बेल्स (1 बेल = 170 किलोग्राम) अधिक हो चुका है। इस साल अब तक 295 लाख बेल्स कपास का उत्पादन हुआ है। भारतीय कपास निगम के मुताबिक इस साल देश के लगभग सभी प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों की उत्पादकता में कमी आई है। गुजरात की उत्पादकता पिछले साल 650 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जो कि इस साल 615 किलोग्राम के स्तर पर है वहीं पंजाब की उत्पादकता 565 किलोग्राम से घटकर 507 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। इसी तरह हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक की कपास उत्पादकता में 10-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की गिरावट दर्ज की गई है। मुंबई के माटुंगा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के कपास वैज्ञानिक के मुताबिक इस साल पिछले साल के मुकाबले कीड़े लगने की शिकायत भी काफी कम रही परंतु बारिश की कमी से उत्पादकता प्रभावित हो गई। लेकिन बनी बीटी व अन्य किस्मों की गुणवत्ता में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी पायी गई है। कपास से जुड़े आईसीएआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक चित्रनायक कहते हैं, 'विदर्भ इलाके की 30 एकड़ जमीन पर उगाए गए बनी बीटी कपास पर शोध के बाद अच्छे नतीजे सामने आए है। लंबाई व ताकत दोनों ही लिहाज से ये कपास पिछले साल से बेहतर है।Ó उन्होंने बताया कि पिछले साल बनी बीटी कपास की लंबाई 28-29 मिलीमीटर थी जो कि इस साल 32-33 मिलीमीटर हो गई है वहीं इसकी ताकत 22-23 प्रति टेक्स से बढ़कर 25 प्रति टेक्स हो गई है।कपास की लंबाई अच्छी होने से फाइबर भी उम्दा निकलता है। वैज्ञानिक किसानों को कपास के तने का इस्तेमाल करना भी बता रहे हैं। कपास के तने को काफी मजबूत माना जाता है और उससे कई प्रकार के सामानों का निर्माण हो सकता है। अब तक किसान कपास के तने को बेकार समझ कर जला देते थे। (बीएस हिन्दी)

फिर होने वाली है आलू से बदहजमी

लखनऊ January 28, 2010
आलू किसानों की बहाली और आने वाले समय में संकट और गहराने की चर्चा के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने माना है कि इस साल भी आलू का बंपर उत्पादन होगा और भंडारण की समस्या बनी रहेगी। लगातार बंपर पैदावार के चलते आलू किसान उत्तर प्रदेश में बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं। इस साल जैसी फसल की आवक है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि लगातार चौथे साल भी किसान सही दाम को तरसेंगे। सूबे के कृषि मंत्री का कहना है कि इस समय आलू के भंडारण क्षमता और उत्पादन के बीच करीब 40 लाख टन का अंतर है। हालांकि उनका मानना है कि सूबे की माया सरकार की ओर से दी जा रही भाड़े पर सब्सिडी के चलते आलू उत्पादकों को बाहर अपनी उपज का ठीक दाम मिल रहा है। विधानसभा में आलू को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब से खफा विपक्ष ने हंगामा काट दिया और बहिष्कार कर दिया। बहिष्कार कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी सहित राष्ट्रीय लोकदल ने भी किया। गुरुवार को उत्तर प्रदेश की विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में कृषि मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण ने माना कि सूबे में आलू की सभी शीत गृहों में भंडारण की कुल क्षमता 89 लाख टन है जबकि आलू का कुल उत्पादन 120 लाख टन से ज्यादा का है। आलू किसानों को उपज का लाभकारी दाम दिलाए जाने को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में मंत्री का कहना है कि सरकार को इसकी कोई जरूरत नहीं है क्योकि किसानों को बाजार में थोक में उपज का अच्छा दाम मिल रहा है। कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रमोद तिवारी ने इस पर विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि किसानों को कहीं भी अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पा रहा है और बिजली की जबरदस्त किल्लत के चलते किसानों का आलू शीतगृहों में ही सड़ जा रहा है। उन्होंने अपने दल के विधायकों के साथ सदन का बहिष्कार कर दिया। उनका साथ दिया भाजपा के विधानमंडल दल के नेता ओम प्रकाश सिंह,और समाजवादी पार्टी के वकार अहमद शाह ने। सूबे में बीते चार सालों से आलू की बंपर पैदावार होने के चलते किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पा रहा है। बीते सीजन में जब आलू की कीमतें गिरीं तो सरकार ने आलू बाहर भेजने वाले किसानों को भाड़े में सब्सिडी देकर किसानों को राहत देने का फैसला किया। किसान नेताओं का कहना है कि सरकार ने इस कदम को इतनी देर से उठाया कि किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ जबकि जमाखोरों ने ही इसका फायदा उठाया। (बीएस हिन्दी)

RBI ने बढ़ाया CRR, 5% से बढ़कर 5.75%

मुंबई : महंगाई पर काबू पाना काफी मुश्किल होता जा रहा है। इस पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा में नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर में 0.75 फीसदी की बढ़ोत्तरी का ऐलान किया है। इससे पहले सीआरआर 5 फीसदी थी लेकिन अब यह बढ़कर 5.75 फीसदी हो गया है।
बढ़ी हुई दरों को दो चरणों में लागू किया जाएगा। हालांकि, बैंकरों को उम्मीद थी कि सीआरआर में 50 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोत्तरी की जाएगी। पहले चरण में 50 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोत्तरी होगी जो 13 फरवरी से लागू होगी। वहीं, दूसरे चरण में 25 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोत्तरी 27 फरवरी से लागू होगी।
आरबीआई के इस कदम से बैंकों के पास कर्ज देने के लिए उपलब्ध राशि में 36000 करोड़ रुपए की कमी आएगी। इसके अलावा, RBI ने रेपो और रिवर्स रेपो की मौजूदा दरों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की है। पहले की ही तरह रिवर्स रेपो दर 3.25 फीसदी और रेपो दर 4.75 फीसदी रहेगी।
हालांकि, सीआरआर बढ़ने पर भी हाल में होमलोन, ऑटो लोन और शिक्षा लोन की दरों में बढ़ोत्तरी होने की कोई संभआवना नहीं दिखाई दे रही है। (ई टी हिन्दी)

RBI की मौद्रिक नीति समीक्षा की मुख्य बातें

आरबीआई द्वारा आज जारी मौदिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा की मुख्य बातें इस प्रकार रहीं : - आरबीआई ने नकदी आरक्षी अनुपात पौने फीसद ( 0 . 75 फीसद ) बढ़ाकर 5 । 75 फीसद किया। रेपो, रिवर्स रेपो की दरें क्रमश: 4 . 75 फीसद और 3 . 25 फीसद रही। -नकदी आरक्षी अनुपात में की गई बढ़ोतरी दो चरणों में लागू होगी। इस बढ़ोतरी के जरिए बैंकों की 36, 000 करोड़ रुपए की नकदी रिवर्ज बैंक के हाथ में चली जाएगी। -बैंक दरें छह फीसद पर अपरिवर्तित रहीं। -वित्त वर्ष 2010 के लिए सकल घरेलू उत्पादन का अनुमान छह से बढ़ाकर 7.5 फीसद किया। -मुद्रास्फीति के मार्च तक 8.5 फीसद तक चढने का अनुमान। -मुद्रास्फीति को निकट भविष्य में 4-4.5 फीसद और मध्यम अवधि में तीन फीसद रखने का लक्ष्य। -कापोर्रेट और सेवा क्षेत्र में बढ़ोतरी, कारोबारी हालात में बेहतरी की उम्मीद, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में वित्तीय स्थिति में सुधार से घरेलू मांग को समर्थन मिलेगा। -आर्थिक सुधार अभी भी असंतुलित है। (ई टी हिन्दी)

सोना फिर हुआ सलोना

मुंबई January 26, 2010
सोने की कीमतों में कमी का असर आभूषण विक्रेताओं की दुकानों पर भी नजर आने लगा है।
मकर संक्रांति के बाद शुरू होने वाले शादी विवाह के सीजन के लिए लोगों ने खरीदारी शुरू कर दी है। हालांकि अभी भी खरीदारों से ज्यादा पूछताछ करने वाले ही लोग आ रहे हैं। पिछले डेढ़ महीने में सोने के भाव 1,700 रुपये प्रति 10 ग्राम तक गिर चुके हैं।
यह कमी जेवरों के शौकीनों को अपनी ओर खींच रही है। सोने-चांदी के आभूषणों के प्रमुख बाजार दागिना बाजार के बडे दुकानदार कुमार जैन कहते हैं कि कीमतों में कमी के कारण आभूषण खरीदने के बारे में लोग फिर सोचने लगे हैं जिससे दुकानों में आवाजाही बढ़ी है। मकर संक्रांति के बाद सोना खरीदना भी शुभ माना जाता है इससे भी दुकानों में रौनक बढ़ी है।
16 फरवरी से शादी-विवाह का नया मौसम शुरू हो रहा हैं। इसीलिए लोग दुकानों में आकर डिजाइन पसंद कर रहे हैं और शादी के लिए आभूषण बनाने का ऑर्डर भी देने लगे हैं। कुमार कहते हैं कि कारोबार में उतनी चमक नहीं है, जितनी की ग्राहकों की संख्या दिखाई दे रही है। दरअसल सोने की कीमतें धीरे-धीरे नीचे आ रही हैं और इनमें और गिरावट के आसार हैं।
कुंदन ज्वैलर्स के सुरेश पूनिया कहते हैं कि कीमतों में गिरावट से ग्राहक तो वापस आ रहे हैं लेकिन इस समय लोग जरूरत के हिसाब से ही खरीदारी कर रहे हैं। साथ ही हल्के जेवरों का चलन बढ़ रहा है क्योंकि ऐसी खबरें आ रही हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मजबूत होने से सोने की कीमतों में अभी और गिरावट आ सकती है।
कंपनियां भी छूट देने में मशगूल हैं। तनिष्क, टीबीजेड, रिलायंस ज्वैलर्स जैसी कंपनियां मेंकिंग चार्ज में 25 फीसदी तक की छूट दे रही हैं। टीबीजेड के प्रवक्ता के अनुसार कंपनी ने काफी हल्के गहने बनाए हैं जिनको लोग पसंद भी कर रहे हैं।
दिसंबर 2009 में सोने की कीमतें 18,220 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गई थीं जिसके बाद से कीमतों में गिरावट का सिलसिला शुरू हुआ। जानकारों का कहना है सोना फिर तेज होकर 20,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच सकता है।
...क्योंकि सोना है सदा के लिए
भाव घटे तो बढ़ने लगी सोने के ज़ेवरों की खरीद मकर संक्रांति के बाद शुभ मानते हैं इसेशादी-विवाह के सीज़न से भी मांग में बढ़ोतरी डॉलर माबूत हुआ तो घटेंगे सोने के भाव (बीस हिन्दी)

28 जनवरी 2010

सोने के दाम गिरने से बढ़ी आभूषण कारोबार में रौनक

नई दिल्ली January 26, 2010
सोने के भाव में लगातार गिरावट से सर्राफा बाजार में फिर से थोड़ी चहल-पहल आई है।
नवंबर माह के मुकाबले खरीदारी में 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक सोने की कीमत 16,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से नीचे आने पर बिक्री में और इजाफा हो सकता है।
18,700 रुपये प्रति 10 के स्तर को छू चुका सोना हाजिर बाजार में फिलहाल 16,600 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर है। गत 12 जनवरी को भी सोने की कीमत दिल्ली के हाजिर बाजार में 17,200 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर थी। उसके बाद यानी कि पिछले 10 दिनों में सोने के भाव ने 17,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर को पार नहीं किया है।
सर्राफा कारोबारियों ने बताया कि ऊंची कीमत होने से निवेशकों ने सोने से मुंह मोड़ लिया था। इस कारण सोने में लगातार गिरावट का रुख जारी है। और आने वाले समय में भी सोने के भाव में गिरावट की संभावना है।
भारत के आभूषण बाजार में भी पिछले दो महीनों में ग्राहकों ने काफी कम खरीदारी की। लेकिन दिसंबर आखिर में सोने के भाव में अपने उच्चतम स्तर के मुकाबले लगभग 2000 रुपये प्रति 10 ग्राम की की कमी से ग्राहकों ने सर्राफा बाजार आना शुरू कर दिया। फरवरी माह में शादियां भी है और ग्राहक भाव में आई कमी का पूरा फायदा उठाना चाहते हैं।
सर्राफा कारोबारी विमल गोयल कहते हैं, '14 जनवरी के बाद बाजार में फिर से ग्राहकी शुरू हो गई है। कीमत कम होने का सिलसिला जारी रहने पर ग्राहक भी बाजार में बने रहेंगे।' हालांकि कुछ कारोबारी मार्च, अप्रैल व मई माह के दौरान शादी-ब्याह नहीं होने से कारोबार में कमी की आशंका जता रहे हैं।
लेकिन कुछ सर्राफा व्यापारियों का कहना है कि कीमत का घटना जारी रहा तो जून व जुलाई में होने वाली शादियों की खरीदारी फरवरी-मार्च के दौरान हो सकती है। दूसरी बात है कि सोने के भाव में इन दिनों घटने-बढ़ने का खेल लगातार जारी है। इसे देखते हुए निवेशक भी कम कीमत पर सर्राफा बाजार की ओर आकर्षित होंगे। (बीएस हिन्दी)

सप्लाई बढ़ाने से कम होंगी कीमतें: पवार

नई दिल्ली।। यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि बेतहाशा बढ़ रही महंगाई को थामने के लिए आरबीआई 29 जनवरी को घोषित होने वाली मौद्रिक नीति में सख्त उठाएगा। मगर कृषि मंत्री शरद पवार की राय इससे जुदा है। उनका कहना है कि आवश्यक वस्तुओं के दामों में तेजी सीधे तौर से डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करती है। अगर वस्तुओं की सप्लाई बढ़ा दी जाए तो कीमतें स्वयं कम हो जाएंगी। इसके लिए जरूरी नहीं कि मौद्रिक नीति में सख्त कदम उठाकर ब्याजदर बढ़ाने का रास्ता साफ किया जाए। सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि सरकार चीनी की कीमत में नरमी लाने के लिए चीनी मिलों को आयातित चीनी को दूसरे मिलों को बेचने की अनुमति दे सकती है। इस बारे में जल्द अधिसूचना जारी की जा सकती है। इससे चीनी ज्यादा से ज्यादा मात्रा में बाजार में आ सकेगी। जब पत्रकारों ने कृषि मंत्री से यह पूछा कि क्या खाद्य उत्पादों में महंगाई को रोकने के लिए मौद्रिक उपाय करने की जरूरत है? उन्होंने कहा, इसकी जरूरत नहीं है। बेशक खाद्य उत्पादों की महंगाई दर 16 फीसदी पर जा पहुंची है, मगर जहां तक इसमें कमी आने की बात है तो, जैसे ही सप्लाई की स्थिति में सुधार आएगा, इसकी कीमतें कम होनी शुरू हो जाएंगी। कृषि मंत्री ने कहा कि स्थिति में सुधार आना शुरू हो गया है। उत्पादों की सप्लाई और उपलब्धता बढ़ रही है। आगे इसमें और सुधार होगा तो महंगाई पर नियंत्रण की प्रक्रिया स्वत: आरंभ हो जाएगी। गौरतलब है कि आरबीआई शुक्रवार को मौद्रिक नीति की अंतिम तिमाही की समीक्षा करने जा रहा है। कयास लगाये जा रहे हैं कि इस बार आरबीआई कुछ ऐसे कदम उठा सकते हैं, जिनसे बाजार में मनी फ्लो कम हो। धन की उपलब्धता में कमी आए। इसके परिणामस्वरूप डिमांड घटे और बाजार शक्तियां कीमतें कम करने पर मजबूर हो जाएं। इधर, चीनी के थोक मूल्य में कमी आ रही है। मगर रिटेल में अभी इसका ज्यादा असर देखने को नहीं मिला है। शरद पवार का कहना है, चीनी की रिटेल कीमत में भी जल्द कमी आनी शुरू हो जाएगी। चीनी का थोक मूल्य 4000 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 3500 रुपये पर आ गया है। (ई टी हिन्दी)

हरियाणा में बढ़ा गन्ने का रकबा

चंडीगढ़ January 26, 2010
हरियाणा में गन्ने की फसल से बेहतर संकेत मिल रहे हैं। 2009 में शरद ऋतु की बुआई में जोरदार बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक जाड़े के मौसम में गन्ने की खेती का क्षेत्रफल बढ़कर 0.18 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले साल की समान अवधि के दौरान 0.05 लाख हेक्टेयर था। गन्ने की बुआई सामान्यतया दो ऋतुओं- शरद और वसंत ऋतु में होती है।
हरियाणा के कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक शरद ऋतु के मौसम में गन्ने की बुआई बढ़कर 0.18 लाख हेक्टेयर हो गई है। पिछले साल इस मौसम में बुआई का क्षेत्रफल 0.5 लाख हेक्टेयर थी। बुआई में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह गन्ने की कीमतों में उछाल है। अधिकारियों का कहना है कि 2011-12 में बुआई का क्षेत्रफल 1 लाख हेक्टेयर के आंकड़े को पार कर जाएगा।
हरियाणा में 2007-08 में गन्ने की बुआई का क्षेत्रफल 1.4 लाख हेक्टेयर था, जो 2008-09 में गिरकर 0.09 लाख हेक्टेयर रह गया। 2009-10 में बुआई गिरकर 0.75 लाख हेक्टेयर रहने की संभावना है। गन्ने की बुआई में कमी की एक वजह मजदूरों की कमी है। जहां गेहूं और धान में मशीनीकरण बढ़ गया है, गन्ने की खेती पूरी तरह श्रमिकों पर निर्भर है।
इसके साथ ही धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य ज्यादा होने की वजह से भी किसानों ने गन्ने की जगह धान की बुआई में रुचि दिखाई। बहरहाल गन्ने की बुआई के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी से कृषि विभाग को उम्मीद जगी है, जिसने राज्य में गन्ने की खेती में बढ़ोतरी करने का लक्ष्य रखा था।
अधिकारियों का कहना है कि गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 4 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई थी। इस योजना के तहत हरियाणा में अक्टूबर से दिसंबर 2009 के बीच गन्ने की खेती करने वाले किसानों को 2000 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी उपलब्ध कराई जाएगी।
इसके अलावा हरियाणा के गन्ना उत्पादकों को बढ़ावा देने के लिए निजी चीनी मिलों ने भी प्रतिस्पर्धी दर से गन्ना खरीदने की नीति बनाई है, जिससे गन्ने में किसानों की रुचि बढ़ी है। सरकार के साथ राज्य में निजी चीनी मिलें भी किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएं चला रही हैं।
यमुनानगर जिले की सरस्वती शुगर मिल ने इस इलाके में किसानों को गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अलग बजट बनाया है। कंपनी ने 6 करोड़ रुपये के बजट से किसानों के लिए योजनाएं बनाई है।
किसानों को गन्ने के बेहतर बीज उपलब्ध कराने, कर्ज मुहैया कराने सहित तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि चीनी की बढ़ती कीमतों की प्रमुख वजह गन्ने का कम उत्पादन है।
बढ़ी हुई कीमतों से गन्ना किसान उत्साहित
जाड़े के मौसम में गन्ने की बुआई का क्षेत्रफल बढ़कर 0।18 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले साल की समान अवधि में 0.05 लाख हेक्टेयर थाराज्य सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं और मिलों द्वारा किसानों को सहायता दिए जाने का व्यापक असरगन्ने का उचित दाम न मिलने, मजदूरों के संकट से आई थी बुआई में कमी (बीएस हिन्दी)

मिलें बेच सकेंगी कच्ची चीनी!

नई दिल्ली January 27, 2010
केंद्र सरकार बंदरगाहों के गोदामों में पड़ी आयातित कच्ची चीनी के प्रसंस्करण की समस्या पर गंभीर है।
जल्द ही आयात करने वाली मिलों को किसी अन्य मिल को कच्ची चीनी बेचने की अनुमति मिल सकती है। सरकार का मानना है कि इससे चीनी के प्रसंस्करण में तेजी लाने और घरेलू आपूर्ति बढ़ाने में मदद मिलेगी।
सूत्रों ने बताया कि बुधवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में इस संबंध में निर्णय किया गया है। बैठक में कृषि मंत्री शरद पवार और उद्योग के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। उल्लेखनीय है कि चीनी मिलों द्वारा आयातित करीब 9 लाख टन कच्ची चीनी विभिन्न बंदरगाहों के गोदामों में पड़ी है।
गन्ने की कीमतों को लेकर किसानों के विरोध के बाद उत्तर प्रदेश की सरकार ने पेराई सीजन खत्म होने तक (मार्च तक) कच्ची चीनी के प्रसंस्करण पर रोक लगा दी है। सूत्रों ने कहा, 'बैठक में आयातित कच्ची चीनी के प्रसंस्करण के मुद्दे के अलावा चीनी की कीमत स्थिति पर भी चर्चा की गई। आयातित कच्ची चीनी को अन्य मिलों को बेचने की छूट देने पर सहमति बनी।'
सूत्रों ने कहा कि इस सिलसिले में खाद्य मंत्रालय आवश्यक अध्यादेश जारी करेगा। इस महीने की शुरुआत में कीमतों पर कैबिनेट कमेटी ने उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों को अन्य राज्यों में आयातित कच्ची चीनी के प्रसंस्करण की अनुमति दी थी। बहरहाल प्रसंस्करण शुल्क के मसले पर महाराष्ट्र की मिलों से अब तक कोई समझौता नहीं हो पाया है।
उत्तर प्रदेश की मिलें जहां 4000 रुपये प्रति टन से ज्यादा प्रसंस्करण शुल्क देने को तैयार नहीं हैं, महाराष्ट्र और गुजरात की मिलें इसके लिए 6000 रुपये प्रति टन मांग रही हैं। जनवरी 2009 के बाद चीनी की कीमतें दोगुने से ज्यादा हो चुकी हैं और खुदरा बाजार में चीनी 45 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रही है।
अभी 16 लाख टन चीनी आयात की जरूरत
चालू चीनी वर्ष में सितंबर तक घरेलू बाजार में चीनी की कमी को पूरा करने के लिए भारत को 16 लाख टन अतिरिक्त चीनी आयात की जरूरत होगी।
इंडियन शुगर मिल्स के कार्यकारी निदेशक एमएन राव ने कहा कि भारत ने 70 लाख टन चीनी का आयात पिछले साल अप्रैल के बाद से किया है। पिछले 15 दिनों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें ज्यादा होने की वजह से कोई सौदे नहीं हुए हैं।
राहत की तैयारी
प्रधानमंत्री ने की चीनी मिल मालिकों और कृषि मंत्री के साथ बैठकबंदरगाहों पर पड़ी कच्ची चीनी बेचने की मिलों को मिल सकती है छूट (बीएस हिन्दी)

बीटी बैंगन को तुरंत मंजूरी देने की मांग उठाई वैज्ञानिकों ने

बंगलुरू बायोटैक्नालॉजी वैज्ञानिकों के एक संगठन ने केंद्र सरकार से अपील की है कि और देरी किए बगैर बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती की मंजूरी दी जानी चाहिए। इससे भारतीय किसानों और उपभोक्ताओं को लाभ होगा। फाउंडेशन फॉर बायोटैक्नालॉजी अवेयरनैस एंड एजूकेशन के एक्जीक्यूटिव सैक्रेटरी प्रो। सी. कुमेश्वर राव ने संवाददाताओं से कहा कि बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती की मंजूरी में और देरी होने से इसकी चोरी-छिपे खेती होने लगेगी। बीटी कॉटन के मामले में गुजरात में ऐसी ही हुआ था। बीटी फसलों की चोरी-छिपे खेती देश के हित में नहीं होगी। फाउंडेशन ने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयराम रमेश को पत्र भेजकर इस मसले को उठाया है। बीटी बैंगन का कानूनी प्रावधान के अनुसार खेती, उसके आर्थिक पहलू और जैव सुरक्षा के लिहाज से परीक्षण हो चुका है। इस प्रक्रिया में 15 सार्वजनिक और निजी संस्थानों के करीब 200 वैज्ञानिक शामिल थे। फाउंडेशन ने पत्र में लिखा है कि वैज्ञानिकों की सामूहिक बुद्धिमत्ता का सम्मान किया जाना चाहिए और निहित स्वार्थो के चलते कुछ तत्वों द्वारा इस मुद्दे को हवा देने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। (प्रेट्र)

राज्यों का 5 लाख टन गेहूं मिलों को मिलेगा

राज्य सरकारों के हिस्से का 5।18 लाख टन गेहूं केंद्र सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमए सएस) के तहत फ्लोर मिलों को बेचने का फैसला किया है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक ओएमएसएस के तहत फ्लोर मिलों को दस लाख टन गेहूं की बिक्री पिछले अक्टूबर से अगले मार्च तक होनी थी। अब इस अवधि में फ्लोर मिलों को कुल 15.18 लाख टन गेहूं उपलब्ध होगा। निविदा के माध्यम से यह गेहूं जारी किया जाएगा।एफसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक राज्य सरकारों को कुल बीस लाख टन गेहूं का आवंटन अक्टूबर से मार्च (दस लाख टन अक्टूबर से दिसंबर और दस लाख टन जनवरी से मार्च) महीने के लिए किया गया था लेकिन अभी तक राज्यों सरकारों ने केवल 1.81 लाख टन गेहूं का ही उठान किया है। इस अवधि के दौरान खुले बाजार बिक्री योजना के तहत फ्लोर मिलों को दस लाख गेहूं की बिक्री की जानी थी। लेकिन खुले बाजार के मुकाबले सरकारी गेहूं महंगा होने के कारण अक्टूबर से दिसंबर की अवधि के दौरान बहुत कम गेहूं राज्यों ने उठाया। इसलिए जनवरी महीने के लिए एफसीआई ने ओएमएसएस के तहत गेहूं की निविदा भरने के रिजर्व मूल्य में 183.82 रुपये प्रति क्विंटल की कमी करनी पड़ी। एफसीआई द्वारा ओएमएसएस के तहत गेहूं की कीमतों में कमी करने के बाद गेहूं के उठान में तेजी आई है। एफसीआई ने जनवरी से मार्च तक 5.18 लाख टन गेहूं का जो अतिरिक्त आवंटन करने का फैसला किया है, इसमें दिल्ली के लिए 82,422 टन, चंडीगढ़ के लिए 7,209 टन, पंजाब के लिए 33,244 टन, हरियाणा के लिए 16,772 टन, उत्तर प्रदेश के लिए 23,152 टन और मध्य प्रदेश के लिए 8,608 टन तथा छत्तीसगढ़ के लिए 1,412 आवंटित किया जाएगा।रोलर फ्लोर मिल्र्स फैडरेशन ऑफ इंडिया की सचिव वीणा शर्मा ने बताया कि एफसीआई द्वारा गेहूं की निविदा के रिजर्व मूल्य में कमी किए जाने और साप्ताहिक निविदा आने से फ्लोर मिलों में गेहूं की सप्लाई सुगम हो गई है इसीलिए खुले बाजार में गेहूं की कीमतों में पिछले दस-बारह दिनों में करीब 70-75 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। दिल्ली में एफसीआई की निविदा का रिजर्व मूल्य 1254.08 रुपये और लारेंस रोड पर भाव 1350-1355 रुपये प्रति क्विंटल हैं। जनवरी महीने में खुले बाजार बिक्री योजना के तहत करीब 3.5 लाख टन गेहूं का उठान हो चुका है। डेढ़-दो महीने बाद उत्पादक मंडियों में नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी तथा अभी तक के मौसम को देखते हुए गेहूं का उत्पादन पिछले साल के 805 लाख टन से ज्यादा ही होने की संभावना है। सरकार द्वारा गेहूं की बिकवाली बढ़ा देने से खुले बाजार में मौजूदा कीमतों में गिरावट की ही संभावना है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)

पीएम को भी चीनी उद्योग से नहीं मिला स्पष्ट भरोसा

चीनी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा बुलाई गई बैठक में भी कोई स्पष्ट दिशा नहीं दिखाई दी। चीनी उद्यमियों ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन को भरोसा दिलाया की घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें आयातित कीमतों से ज्यादा नहीं होंगी। लेकिन उद्यमियों ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया कि विश्व बाजार में और तेजी आने पर भी घरेलू बाजार में दाम और नहीं बढ़ेगे। उन्होंने सिर्फ यह कहा कि विश्व बाजार से दाम ऊपर नहीं जाएंगे। यानि विश्व बाजार में भाव अगर 60 रुपये किलो तक चढ़ते हैं तो घरेलू बाजार में भाव और चढ़ेंगे लेकिन 60 रुपये से ऊपर नहीं जाएंगे। इस मामले में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि घरेलू बाजार में पहले भी कभी विश्व बाजार से ज्यादा नहीं गए।आयातित व्हाइट शुगर बंदरगाह पर 46 रुपये और रॉ-शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) 44 रुपये प्रति किलो पड़ रही है। बुधवार को कृषि मंत्री शरद पवार के नेतृत्व में इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के साथ बैठक में प्रधानमंत्री को बताया कि मिलों को ऊंचे दाम पर गन्ने की खरीद करनी पड़ रही है तथा लेवी की 20 फीसदी चीनी देने के बाद मिलों की लागत बढ़कर 3800 रुपये प्रति क्विंटल के करीब बैठ रही है। इस्मा के कार्यवाहक महासचिव एम. एन. राव ने पत्रकारों को बताया कि मिलों को गन्ने की खरीद 250 रुपये प्रति क्विंटल की दर से करनी पड़ रही है तथा रिकवरी में कमी आने और 20 फीसदी लेवी में सस्ते दामों पर चीनी देने के कारण मिलों की औसत लागत बढ़ गई है। इस समय चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमत 3800 रुपये प्रति क्विंटल बैठ रही है। इसके अलावा आयातित चीनी के भाव रिकार्ड स्तर पर चल रहे हैं। आयातित व्हाइट चीनी भारतीय बंदरगाह पर करीब 46 रुपये और रॉ-शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) करीब 44 रुपये प्रति किलो पड़ रही है। चालू पेराई सीजन 2009-10 में भारतीय मिलों ने 45 लाख टन चीनी के आयात सौदे किए हैं तथा इसमें से करीब 25 लाख टन चीनी भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच भी चुकी है।राव ने बताया कि आगामी पेराई सीजन पर स्टॉक बनाए रखने के लिए मिलों को करीब 16 लाख टन चीनी का और आयात करना पड़ेगा। भारत के साथ ही विश्व में भी चीनी का उत्पादन कम रहा है इसलिए भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की ऊंची कीमतें बनी हुई है। इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन में 31 दिसंबर तक देश में चीनी के उत्पादन में 2.3 फीसदी की कमी आकर कुल उत्पादन 59 लाख टन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 60.4 लाख का उत्पादन हुआ था। बुधवार को चीनी के एक्स-फैक्ट्री भाव 3625 से 3800 रुपये और दिल्ली बाजार में थोक कीमतें 3775 से 3950 रुपये प्रति क्विंटल रही।बात पते कीघरेलू बाजार में चीनी के दाम पहले भी कभी विश्व बाजार से ज्यादा नहीं हुए। उद्योग ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया कि विश्व बाजार में दाम और बढ़ने पर घरेलू मूल्य और नहीं बढ़ेगे। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)

डेयरी फर्मों की पतली हालत, दूध में आएगा उबाल

आने वाले दिनों में अगर जल्दी ही दूध की कीमतें बढ़ती हैं तो इसका कारण देश में दूध की कमी होना नहीं होगा। इसकी असली वजह होगी शहरी इलाकों में दूध की आपूर्ति कम होना। बड़ी डेयरी फर्में जिन पर दूध की आपूर्ति की जिम्मेदारी रही है, वे निजी कंपनियों और फैक्टरियों के मुकाबले बाजार के हाशिए पर जा रही हैं। ऐसे में ज्यादा दाम देकर हम इन बड़ी डेयरी फर्मों के बाजार से बाहर निकलने की कीमत चुकाएंगे। दिल्ली इसका एकदम सटीक उदाहरण है। उत्तर प्रदेश दुनिया के सबसे बडे़ दूध निर्यातक न्यूजीलैंड से भी ज्यादा दूध का उत्पादन करता है। वहीं, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्य अकेले ऑस्ट्रेलिया को पछाड़ने का माद्दा रखते हैं। देश के कुल 10।80 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन में से करीब आधे का योगदान उत्तर भारत करता है। इतने बड़े पैमाने पर दूध उत्पादन होने के बावजूद आखिर दूध की कमी कैसे है? नैशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की मदर डेयरी भारत में श्वेत क्रांति की अगुवा और मिल्क इंडस्ट्री का एक बड़ा नाम है, लेकिन इसके पास पर्याप्त ताजा दूध नहीं है। यह राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार की डेयरी सहकारी समितियों से दूध खरीदती है। यह उपभोक्ताओं को सब्सिडी पर दूध नहीं देती है, ऐसे में यह किसानों को अच्छी कीमत भी चुका पाती है। हालांकि, इसका 30 फीसदी दूध मिल्क पाउडर और फैट का मिश्रण होता है। गर्मी में ऐसे दूध की हिस्सेदारी बढ़कर 50 फीसदी तक हो जाती है। पश्चिम और दक्षिण भारत की डेयरियां गर्मी के मौसम में इसी तरीके से दूध की आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं। मदर डेयरी दिल्ली की लाइफ लाइन है। इसकी प्रतियोगियों में अमूल (गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन) और दूसरी निजी कंपनियां हैं। दूध की आपूर्ति का संकट हर तरफ है। मुंबई में रोजाना 50 लाख लीटर दूध की जरूरत होती है। हालांकि, राज्य की तीन डेयरी मिलकर सिर्फ 10 लाख लीटर दूध की आपूर्ति ही कर पाती हैं। कोऑपरेटिव के पास जाने के बजाय दूध निजी कंपनियों के पास जा रहा है। ऐसे में दुर्भाग्यवश सहकारी समितियों को अभी नुकसान उठाना पड़ रहा है। दरअसल यह दाम का मामला है। डेयरी को आपसी प्रतियोगिता के अलावा फैक्टरियों से भी कड़ी टक्कर लेनी पड़ती है। किसानों को इससे कोई मतलब नहीं है कि उनका दूध कौन खरीद रहा है। वे सबसे ज्यादा दाम लगाने वाले को ही दूध बेचते हैं। दूध की आपूर्ति कम होने से यह प्रतियोगिता और कड़ी हो गई है। डेयरी इंडिया 2007 के औद्योगिक आंकड़ों के मुताबिक यह सेक्टर बमुश्किल सालाना 3 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। इस साल सूखा और चारे की कीमत बढ़ने के कारण दूध की लागत और बढ़ गई है। इसीलिए, किसान भी ज्यादा कीमत वसूल रहे हैं। (ई टी हिन्दी)

27 जनवरी 2010

इस साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचेगा बासमती निर्यात

नई दिल्ली।। सऊदी अरब सरकार के सब्सिडी वापस लेने, ईरान को किए जा रहे निर्यात को झटका लगने और दुबई वित्तीय संकट के बावजूद भारत का बासमती निर्यात इस साल 30 लाख टर्न के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच सकता है। कमोडिटी उद्योग के सूत्रों के मुतबिक, दिसंबर 2009 के अंत में बासमती निर्यात 23 लाख टन था और इस कारोबारी साल के अंत तक यह आसानी से 30 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच सकता है। हालांकि, बेहतर गुणवत्ता वाले बासमती की कीमत निर्यात बाजारों में पिछले साल की तुलना में गिर सकती है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर एसोसिएशन (एआईआरईए) के प्रेसिडेंट विजय अरोड़ा ने कहा, '31 मार्च तक निर्यात 25 लाख टन के पार पहुंच जाएगा।' उन्होंने कहा कि इस साल उत्पादन 15 लाख टन से बढ़कर 45 लाख टन पर पहुंच जाएगा। हालांकि, सूखे ने गैर-बासमती चावल की फसल पर चोट की है। 2008-09 में करीब 23।1 लाख टन बासमती का निर्यात किया गया था, लेकिन इस निर्यात का बड़ा हिस्सा अच्छी गुणवत्ता वाले गैर बासमती चावल का था जिसका आमतौर पर देश में ही उपभोग किया जाता है। निर्यात 2007-08 में दर्ज किए गए 15.1 लाख टन से कहीं ज्यादा रहा। केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में आपूर्ति मजबूत करने और कीमतों में कमी लाने के लिए चावल आयात करना है या नहीं, इससे जुड़ा फैसला इस साल मार्च तक के लिए टाल दिया था। खाद्यान्न के उपलब्ध भंडार की समीक्षा और फरवरी-मार्च में फसल का दूसरा आरंभिक अनुमान आने तक यह फैसला रोका गया है। हालांकि, भारत की आयात की जरूरतों की खबरों ने वैश्विक बाजार में दाम जरूर बढ़ा दिए थे। दूसरा अनुमान इस बात के पहले संकेत देता है कि साल की खरीफ फसल कैसी रहेगी। ऊंची कीमत वाले चावल के आयात में देरी का फैसला न केवल केंद्र के पास अब उपलब्ध गेंहू के जरूरत से ज्यादा भंडार की वजह से सही साबित हुआ, बल्कि थाई होम माली चावल की कीमतों में दिसंबर के बाद आई और तेजी ने भी इसे दुरुस्त ठहराया। ग्रेड ए चावल (2009-10 फसल) की कीमत 2 से 6 दिसंबर के बीच 1006 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 1021 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई, जबकि पिछले साल की इसी गुणवत्ता वाली फसल इस अवधि में 1116 डॉलर प्रति टन रही। हालांकि, 23 दिसंबर 2009 को यह 3 डॉलर लुढ़ककर 1113 डॉलर प्रति टन पर आ गई थी। थाइलैंड ने उस साल से भारी डिस्काउंट पर चावल का अतिरिक्त भंडार ऑफलोड करना शुरू किया, ताकि नई फसल के लिए राह तैयार की जा सके। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक का एक उद्देश्य केंद्र के गेंहू के भंडार को उनको देकर कम करना भी था। यह मार्च में नया मार्केटिंग सीजन शुरू होने से पहले एफसीआई के गोदामों से ओवरलोड कम करने की कोशिश थी। केंद्र सरकार पर अगले दो महीने में करीब 30 लाख टन गेहूं ऑफलोड करने को लेकर गंभीर दबाव है। 9 जनवरी को खत्म सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति दर 16.8 फीसदी रही है। (ई टी हिन्दी)

जेम्स एंड जूलरी सेक्टर ले रहा है राहत की सांस

नई दिल्ली।। अर्थव्यवस्था में रिकवरी के संकेत और सरकार की और से मिली मदद के बाद जेम्स और जूलरी सेक्टर क निर्यातक भी राहत की सांस लेने लगे हैं। आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर महीने में जेम्स एंड जूलरी निर्यात पिछले साल इसी महीने की तुलना में 45 फीसदी बढ़ा है। जेम्स एंड जूलरी निर्यातकों के मुताबिक निर्यात में काफी सुधार आया है। खासकर, मिडल ईस्ट, चीन और अरब देशों में नए बाजार तलाशने का फायदा निर्यातकों को मिल रहा है। निर्यातक आगे आने वाली तिमाही में मांग और बढ़ने की उम्मीद कर रहे हैं। संभव जेम्स लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव मेहता ने कहा, 'जेम्स एंड जूलरी निर्यात में सुधार आने लगा है। यह सुधार सरकारी मदद, क्रिसमस और नए साल के कारण अमेरिकी और यूरोपीय देशों में बढ़ी मांग और नए बाजार तलाशने के कारण आया है। डायमंड की बिक्री में आने वाले महीने में और सुधार आएगा।' राजेश एक्सपोर्ट के मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश मेहता ने कहा, 'अब परिस्थितियों में काफी सुधार आया है। दिसंबर महीने में क्रिसमस और नए साल के कारण जेम्स एंड जूलरी के निर्यात में काफी सुधार नजर आ रहा है। हमने मिडल ईस्ट और अरब देशों में नए बाजार तलाशे और वहां से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।' उन्होंने कहा कि इस तिमाही में मांग इसी तरीके से बने रहने की उम्मीद लगा रहे हैं। जेम्स एंड जूलरी के निर्यात को दो साल पहले के लेवल पर पहुंचने में कितना समय लग सकता है, इस पर मेहता ने कहा, 'यदि सोने का अंतर्राष्ट्रीय भाव 1,100 डॉलर से घटकर 850 डॉलर तक आ जाए, तो निर्यात दो साल पहले के लेवल पर जल्द पहुंच जाएगा।' (नवभारत)

रत्नों एवं आभूषणो के निर्यात में वृद्धि

नई दिल्ली। वैश्रिवक मंदी में कमी आने के संकेत मिलने लगे है। दिसम्बर २००९ में निर्यात ४५ फीसदी बढ़ गया है। आभूषण निर्यातकों के अनुसार विदेशों में भारतीय आभूषणों एवं रत्नों की मांग बढ़ी है। मिडिल ईस्ट, चीन और अरब देशों में नए बाजार तलाशने का फायदा निर्यातकों को मिल रहा है। निर्यातक आगे आने वाली तिमाही में मांग और बढ़ने की उम्मीद कर रहे हैं। का कहना है कि 'जेम्स एंड जूलरी निर्यात में सुधार सरकारी मदद, क्रिसमस और नए साल के कारण अमेरिकी और यूरोपीय देशों में बढ़ी मांग और नए बाजार तलाशने के कारण आया है। डायमंड की बिक्री में आने वाले महीने में और सुधार की उम्मीद है।क्रिसमस और नए साल के कारण निर्यात में काफी सुधार हुआ है। ईस्ट और अरब देशों में नए बाजार से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।' (लोकतेज)

25 जनवरी 2010

देश में दूध की कमी नहीं: डेयरी इंडस्ट्री

नई दिल्ली ।। डेयरी इंडस्ट्री के एक प्रतिनिधि ने रविवार को कहा कि देश में दूध की कोई कमी नहीं है। उसके मुताबिक, जाड़ों में सरप्लस सप्लाई होती है, जो इस साल सूखे के कारण नहीं देखी जा रही है। लेकिन कमी कहीं नहीं हैं। इंडस्ट्री के इस टॉप अधिकारी ने बताया कि फिलहाल स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का आयात नहीं हो रहा है, अगर दूध की कमी होती तो अब तक एसएमपी का आयात हो गया होता क्योंकि कस्टम ड्यूटी फिलहाल काफी कम है। यह ड्यूटी 10,000 टन के लिए 5 पर्सेंट, जबकि इससे ज्यादा के लिए 30 पर्सेंट है। डेयरी एक्सपर्ट आर.एस. खन्ना ने बताया है कि सूखे के कारण चारे की उपलब्धता में कमी जरूर महसूस की जा रही है। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह आई खबरों के मुताबिक, कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि उत्तर भारत में दूध की कमी हो सकती है। (Navbharat)

गुजरात से स्पॉट एक्सचेंज शुरू करेगा एनएमसीई

नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड (एनएमसीई) भी अब स्पॉट एक्सचेंज शुरू करने जा रहा है। एनएमसीई के सीईओ अनिल मिश्रा ने बिजनेस भास्कर को बताया कि एनएमसीई एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) के साथ मिलकर सबसे पहले गुजरात में फरवरी-मार्च तक स्पॉट मार्केट में कृषि जिंसों की ट्रेडिंग शुरू करने जा रहा है। स्पॉट एक्सचेंज के लिए राज्य सरकार से अनुमति मिल चुकी है। स्पॉट एक्सचेंज में कृषि जिंसों की खरीद और बिक्री का काम ऑनलाइन होगा। पूरे देश के खरीददार और किसान इस कारोबार में हिस्सा ले सकेंगे। अनिल मिश्रा ने बताया कि स्पॉट एक्सचेंज से किसानों को अपनी जिंस का सही दाम तो मिलेगा ही, साथ ही खरीददारों को भी फायदा होगा। स्पॉट एक्सचेंज के माध्यम से मुंबई में बैठा व्यापारी ऊंझा मंडी से जीरा की ऑनलाइन ट्रेडिंग कर सकता है। अभी तक किसान अपनी नजदीक की मंडियों में ही जिंसों की बिक्री करते है। देश की अन्य मंडियों में जिंसों के मूल्यों की जानकारी भी उन्हें नहीं मिल पाती है। जिसके कारण किसानों को कई बार अपनी उपज के सही दाम नहीं मिल पाते हैं। लेकिन स्पॉट एक्सचेंज के इलेक्ट्रानिक प्लेटफार्म के माध्यम से किसानों को अन्य मंडियों में प्रचलित भाव की सटीक जानकारी मिल जाएगी। स्पॉट एक्सचेंज में कामकाज शुरू होने के बाद बिचौलियों की भूमिका कम हो जाएगी, जिसके कारण जिंसों की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव की संभावना भी कम हो जाएगी। अभी गुजरात में एनएमसीई को स्पॉट एक्सचेंज का लाइसेंस मिला है। गुजरात के बाद अन्य राज्यों में भी विस्तार किया जाएगा। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में निवेशकों की भागीदारी बढ़ने से एनएमसीई के वायदा कारोबार में करीब 500 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस समय एनएमसीई में जिंसों का दैनिक कारोबार बढ़कर 1600 करोड़ का है। एनएमसीई ने हाल ही में गिन्नी गोल्ड का वायदा लांच किया था जिसमें निवेशकों द्वारा अच्छी खरीद-बिक्री की जा रही है। गिन्नी गोल्ड की फिजीकल में डिलीवरी लेने के लिए एक्सचेंज ने देश भर में 22 डिलीवरी सेंटर बनाए हुए हैं।बात पते की..मुंबई का व्यापारी ऑनलाइन ट्रेडिंग के जरिये गुजरात की ऊंझा मंडी में किसान से सीधे जीरा खरीद सकेंगे व्यापारी। बिचौलियों की भूमिका कम होने से दोनों पक्षों को होगा फायदा। (बिसनेस भास्कर....आर अस राणा)

उत्पादन घटने के बावजूद मक्का नरम

निर्यात मांग न होने से पैदावार में कमी आने के बावजूद मक्का की कीमतों में गिरावट आई है। निजामाबाद मंडी में मक्का की कीमतें करीब छह फीसदी और वायदा बाजार में करीब तीन फीसदी घटी हैं। कृषि मंत्रालय के मुताबिक देश में खरीफ सीजन में मक्का उत्पादन में करीब नौ फीसदी की कमी आने का अनुमान है। विश्व में मक्का का उत्पादन बढ़ने की संभावना है इसीलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्का के दाम नीचे चल रहे हैं जिससे भारत से निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं।कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आरंभिक अनुमान के अनुसार खरीफ में मक्का का उत्पादन 126.1 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 139 लाख टन का उत्पादन हुआ था। दिसंबर महीने में वियतनाम और इंडोनेशिया के आयातकों ने मक्का निर्यात की खेप खराब क्वालिटी के आधार पर लेने के इंकार कर दिया था। उसके बाद से भारत से निर्यात मांग काफी कम हो गई है। इसीलिए उत्पादक मंडियों में इसकी कीमतों में करीब 40-60 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। उधर विश्व में मक्का का उत्पादन बढ़ने की संभावना है जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्का के भाव 200-210 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं जबकि भारत से इन भावों में निर्यातकों को पड़ते नहीं लग रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्राजील, आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान की मक्का भारत के मुकाबले सस्ती है। आंध्र प्रदेश की निजामाबाद मंडी में मक्का के भाव 970 रुपये से घटकर 905-910 रुपये, कर्नाटक की मंडियों में 920 रुपये से घटकर 890 रुपये, महाराष्ट्र की मंडियों में 950 रुपये से घटकर 900-910 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। दिल्ली में मक्का का भाव 1100 रुपये से घटकर 1070 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। एनसीडीईएक्स पर फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में 11 जनवरी को मक्का का भाव 950 रुपये प्रति क्विंटल था लेकिन निवेशकों की बिकवाली से शनिवार को भाव घटकर 919 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।उत्तर भारत में मक्का का उत्पादन कम होने के कारण उत्तर भारत के पोल्ट्री फीड निर्माता और स्टार्च मिल वाले आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र से खरीद कर रहे हैं। इन राज्यों से उत्तर भारत में साप्ताहिक करीब 25-30 हजार क्विंटल मक्का के सौदे हो रहे हैं। आंध्र प्रदेश की मंडियों में मक्का की दैनिक आवक घटकर 10-12 हजार क्विंटल और कर्नाटक की मंडियों में 20-25 हजार और महाराष्ट्र की मंडियों में 15-20 हजार क्विंटल की हो रही है। रबी में भी मक्का की बुवाई में कमी आई है।कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के मुताबिक अभी तक देश में 9.97 लाख हैक्टेयर में ही बुवाई हुई जबकि पिछले साल इस समय तक 10.01 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। इसलिए रबी में मक्का का उत्पादन वर्ष 2008-09 के 53.9 लाख टन से कम रहने की संभावना है। लेकिन निर्यातकों की कमजोर मांग से तेजी की संभावना नहीं है। मार्च महीने में रबी मक्का की आवक शुरू हो जाएगी।बात पते की..निर्यातकों की कमजोर मांग से तेजी की संभावना नहीं है। मार्च में रबी मक्का की आवक शुरू हो जाएगी। इससे भावों पर दबाव रहने का अनुमान है। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)

देश के ज्यादातर शहरों में चीनी और महंगी

सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद चीनी के दाम देश के कई शहरों में बढ़े ही हैं। बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए केंद्र की ओर से कई कदमों की घोषणा के 10 दिन के बाद ही देश में चीनी के दाम फुटकर में घटने के बजाय 10 रुपये प्रति किलो तक बढ़ गए हैं। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली और भुवनेश्वर को छोड़कर सभी जगह कीमतों में इतनी बढ़ोतरी रही है। 13 जनवरी को केंद्र सरकार की ओर से चीनी कीमतों पर लगाम के लिए कदमों की घोषणा के बाद हालांकि दिल्ली और मुंबई में चीनी के थोक भावों में कमी आई है। 13 जनवरी को अपनी घोषणा में खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि नए उपायों का असर चीनी की खुदरा कीमतों पर 10-15 दिन में दिखने लगेगा। मांग में बढ़ोतरी और कम सप्लाई को देखते हुए सरकार ने घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए देश में कहीं भी आयातित रॉ शुगर की प्रोसेसिंग की इजाजत दी है। इसके अलावा चीनी के शुल्क मुक्त आयात की समय सीमा भी मार्च से बढ़ाकर दिसंबर 2010 तक सरकार कर चुकी है। आंकड़ों के मुताबिक इन सब कदमों का असर चीनी की थोक कीमतों पर पड़ा और दिल्ली में चीनी 3।50 रुपये घटकर 41 रुपये किलो और मुंबई में 40 रुपये किलो हो गई। दिल्ली और भुवनेश्वर को छोड़कर अन्य सभी स्थानों पर पिछले 9 दिन में चीनी की खुदरा कीमतों में 10 रुपये प्रति किलो तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। उम्मीद के मुताबिक कीमतों में कमी नहीं आई है। दिल्ली में खुदरा में चीनी 2-3 रुपये घटकर 44 रुपये प्रति किलो रही। रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान कोलकाता और चेन्नई में चीनी की खुदरा कीमतें 7-8 रुपये बढ़ी हैं। अहमदाबाद में 4 और बंगलुरू में पिछले 10 दिन में चीनी 2 रुपये महंगी हो चुकी है। (बिज़नस भास्कर)

आयात बढ़ने से काली मिर्च छह फीसदी घटी

निर्यात के मुकाबले आयात बढ़ने से घरेलू बाजार में काली मिर्च की कीमत छह फीसदी घट चुकी है। कोच्चि मंडी में एमजी-वन कालीमिर्च के भाव घटकर शुक्रवार को 13,400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। नवंबर महीने में भारत से काली मिर्च के निर्यात में 29 फीसदी की कमी आई है जबकि चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से नवंबर तक भारत में कालीमिर्च का आयात 50 फीसदी बढ़ा है। मांग घटने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी काली मिर्च के दाम करीब 250-295 डॉलर प्रति टन घट चुके हैं। विश्व के साथ ही भारत में भी काली मिर्च का उत्पादन बढ़ने की संभावना है इसीलिए गिरावट को बल मिल रहा है। मैसर्स केदारनाथ संस के डायरेक्टर अजय अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के मुकाबले वियतनाम और इंडोनेशिया की काली मिर्च के भाव कम होने के कारण भारत में आयात बढ़ रहा है। रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होने से जहां निर्यातकों को पड़ते नहीं लग रहे हैं वहीं आयातकों को फायदा हुआ है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से नवंबर के दौरान भारत में काली मिर्च के आयात में 50 फीसदी का इजाफा होकर कुल आयात 12,750 टन का हो चुका है। जबकि नवंबर महीने में भारत से निर्यात 29 फीसदी घटकर 1,500 टन का ही हुआ है। पिछले साल नवंबर में 2,100 टन काली मिर्च का निर्यात हुआ था। अप्रैल से नवंबर तक भारत से कुल निर्यात 13,000 टन का ही हुआ है।अजय अग्रवाल ने बताया कि घरेलू बाजार में नई फसल की आवक बनी हुई है जबकि फरवरी महीने में वियतनाम में नई फसल आ जाएगी। घरेलू बाजार में पिछले दस-पंद्रह दिनों में काली मिर्च की कीमतों में करीब छह फीसदी की गिरावट आकर भाव 13,400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। वायदा में निवेशकों की बिकवाली से चालू महीने में करीब नौ फीसदी की गिरावट आ चुकी है। एक जनवरी को एनसीडीईएक्स पर फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में काली मिर्च का भाव 14,495 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि 22 जनवरी को इसका भाव घटकर 13,221 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। इंटरनेशनल पिपर कम्युनिटी के अनुसार विश्व में काली मिर्च की पैदावार में तीन फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल उत्पादन 290,472 टन होने की संभावना है। पिछले साल विश्व में काली मिर्च का उत्पादन 281,974 टन रहा था। वियतनाम के साथ ही भारत में भी उत्पादन बढ़ने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कालीमिर्च के भाव 3275-3300 डॉलर से घटकर 3000-3050 डॉलर प्रति टन रह गये हैं। पैदावार में बढ़ोतरी को देखते हुए अमेरिका और यूरोप के आयातक नए सौदे सीमित मात्रा में ही कर रहे हैं। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)

इन्वेंट्री बढ़ने से निकिल के दाम तीन फीसदी घटे

निकिल की इन्वेंट्री बढ़ने की वजह से इसकी कीमतों में तीन फीसदी से अधिक की गिरावट आ चुकी हैं। कारोबारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में इसके मूल्यों में फिर से तेजी के आसार हैं। वहीं पिछले साल निकिल के उत्पादन और खपत में कमी आई हैं। निकिल कारोबारी रमेश चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई)में निकिल के दाम घटने की वजह से घरेलू बाजार में इसके 880 रुपये से घटकर 855 रुपये प्रति किलो रह गए। वहीं एलएमई में इसके दाम 18,870 डॉलर से गिरकर 18,855 डॉलर प्रति टन पर आ गए हैं। एंजिल ब्रोकिंग के मेटल विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बताया कि पिछले एक सप्ताह में एलएमई में निकिल की इन्वेंट्री करीब 15,000 टन बढ़कर 162,270 टन हो गई है। इस वजह से एलएमई में इसके दाम घटे हैं। एलएमई बढ़ने की वजह चीन सहित अन्य देशों द्वारा अधिक आयात करना हैं। इसके अलावा डॉलर के यूरो के मुकाबले मजबूत होने से भी इसकी कीमतों में गिरावट को बल मिला है। उधर आने वाले दिनों में इसके मूल्यों में फिर से वृद्धि होने की संभावना है। गुप्ता के मुताबिक आस्ट्रेलिया और कनाडा की खदानों में श्रमिकों की हड़ताल चल रही है। जिससे निकिल के दाम बढ़ सकते हैं। साथ चालू वर्ष में मांग बेहतर रहने के कारण भी कीमतों में तेजी के आसार हैं। इंटरनेशनल निकिल स्टडी ग्रुप (आईएनएसजी) के अनुसार वैश्विक आर्थिक हालात सुधरने से चीन, कोरिया, ताईवान में स्टेनलैस स्टील के उत्पादन में सुधार होने लगा है। जिससे चालू वर्ष में इसकी मांग और उत्पादन में बढ़ोतरी होने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 के दौरान रिफाइंड निकिल का वैश्विक उत्पादन 12।8 लाख टन से बढ़कर 14.4 लाख टन और प्राइमरी निकिल का वैश्विक उपयोग पिछले साल के 12.1 लाख से बढ़कर 13.5 लाख टन होने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि बीते साल दुनिया भर में आए आर्थिक संकट की वजह से सभी बेसमेटल के साथ निकिल की मांग में भारी कमी आई थी। पिछले साल वर्ष मुकाबले उत्पादन में सात और खपत में छह फीसदी की गिरावट आई है। निकिल की सबसे अधिक खपत स्टेनलैस स्टील में 65 फीसदी, इलैक्ट्रोप्लेटिंग में आठ फीसदी, केमिकल में पांच फीसदी और अन्य उत्पादन में 22 फीसदी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन यूरोप में 34 फीसदी में होता है। इसके बाद एशिया में 29 फीसदी, अमेरिका में 23 फीसदी, अफ्रीका में चार फीसदी और ओसेनिया में 11 फीसदी उत्पादन होता है।बात पते कीआने वाले दिनों में निकिल के मूल्यों में फिर से वृद्धि होने की संभावना है। आस्ट्रेलिया और कनाडा की खदानों में श्रमिकों की हड़ताल चल रही है। जिससे निकिल के दाम बढ़ सकते हैं। चालू वर्ष में मांग बेहतर रहने के कारण भी कीमतों में तेजी के आसार हैं। (बिज़नस भास्कर)

मिलों पर भारी गुड़ खांडसारी

नई दिल्ली January 25, 2010
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ खांडसारी उद्योग चीनी मिलों की मिठास हल्की करता नजर आ रहा है।
चीनी मिलों द्वारा गन्ने के भाव बढ़ाने के बावजूद इनको गन्ना मिलने में बिलकुल भी दिक्कत नहीं आ रही है। लेकिन चीनी मिलों को संघर्ष करना पड़ रहा है। चीनी मिलें जहां 260 रुपये प्रति क्विंटल का भाव दे रही हैं वहीं गुड़ व खांडसारी उत्पादक 270 रुपये प्रति क्विंटल नकद भाव किसानों को दे रहे हैं।
राज्य में इस साल गन्ने का रकबा कम होने की स्थिति में चीनी मिलों और गुड़ उत्पादकों के बीच गन्ना पाने की होड़ लगी है, जिसका फायदा किसानों को मिल रहा है। चीनी की बढ़ी कीमतें मिलों को भी ज्यादा गन्ना लपकने को ललचा रही हैं।
उत्तर प्रदेश फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि मिलों द्वारा गन्ने की कीमत बढ़ाने का गुड़-खांडसारी उत्पादकों पर बहुत असर पड़ता नहीं दिख रहा है, क्योंकि वे भी किसानों को प्रति क्विंटल करीब 260-270 रुपये तक भुगतान कर रहे हैं।
राज्य में करीब 1,000 मान्यता प्राप्त खांडसारी उत्पादक हैं, जिनमें से करीब 330 पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चल रहे हैं। इसके साथ ही करीब 2,000 से ज्यादा छोटे उत्पादक और कोल्हू वाले हैं। मुजफ्फरनगर के एक बड़े कारोबारी सुधीर गोयल ने बताया कि गुड़ उत्पादकों को मजबूरी में गन्ने की कीमत बढ़ानी पड़ी है।
उन्होंने बताया कि गुड़ इकाइयों में गन्ने की उपलब्धता बढ़ने से घरेलू बाजार गुड़ का स्टॉक बढ़ा है, जिससे गुड़ की कीमतों में गिरावट आई है। एक कारोबारी के मुताबिक मुजफ्फरनगर गुड़ मंडी में गुड़ खुरपा और चाकू के भाव 2,500 से 2,700 रुपये प्रति क्विंटल रहे।
शुगर टेक्नोलॉजिज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और सिंभावली शुगर के कार्यकरी निदेशक डॉ. जी एस सी राव ने बताया कि मिलें गन्ना किसानों को अधिक कीमत (250 से 260 रुपये प्रति क्विंटल) का भुगतान कर रही हैं।
लेकिन पेराई के बाद गन्ने से मिलने वाली चीनी में करीब 1 फीसदी कमी आई है। पिछले साल रिकवरी दर 9.5 से 10 फीसदी थी, जो इस बार 8.5 से 9 फीसदी रह गई है यानी मिल वालों के मार्जिन पर असर पड़ सकता है।
गुड़ बना गुरु
चीनी मिलों से ज्यादा भाव पर गन्ना खरीद रहीं गुड़ खांडसारी इकाईगन्ना किसान भी मिल पर उन्हें दे रहे तरजीहइस बार गन्ने में चीनी की रिकवरी कम, जिससे मिलों का घटेगा मार्जिन (बीएस हिन्दी)

तकरार में फंसा 'वायदा'

मुंबई January 25, 2010
जिंस वायदा कारोबार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में विलय के वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव पर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय का ऐतराज बरकरार है।
फिलहाल एमएमसी उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अधीन है और मंत्रालय नहीं चाहता कि वायदा बाजार की लगाम उसके हाथ से निकल जाए। वित्त मंत्रालय ने प्रस्ताव रखा है कि वायदा बाजार का काम भी पूंजी बाजार नियायम सेबी को ही देखना चाहिए।
बहरहाल इस मामले से जुड़े सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय कृषि एंव उपभोक्ता मामलों के मंत्री शरद पवार इस कदम का कड़ा विरोध कर रहे हैं जिससे यह प्रक्रिया फौरी तौर पर टाल दी गई है। दरअसल पवार अपनी 'पावर' में किसी तरह की कटौती नहीं चाहते।
पांच साल पहले जब इस आशय का प्रस्ताव पहली बार सामने आया था तब से पवार इसका विरोध कर रहे हैं। तब यह तय हुआ था कि तीन साल बाद इसकी समीक्षा की जाएगी। सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और एफएमसी के साथ बातचीत के बाद एक नोट भी तैयार कर किया है लेकिन मामला उससे आगे नहीं बढ़ पाया है।
कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर भी वित्त मंत्रालय और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से बातचीत कर चुके हैं। वहीं नॉर्थ ब्लॉक अभी भी इस बात पर जोर दे रहा है कि पूंजी बाजार का नियमन करने वाली संस्था सेबी ही जिंसों के वायदा कारोबार के साथ-साथ जिंस एक्सचेंजों पर भी नजर रखे।
पिछले साल योजना आयोग ने भी इस मसले को उठाया था और एफएमसी से जवाब तलब भी किया था। बदले में इस मांग का कड़ा विरोध करते हुए एफएमसी ने 5 पृष्ठों का एक नोट भेजा था। एमएमसी ने तर्क दिया था कि पूंजी बाजार और जिंस बाजार की तासीर एकदम अलग है।
पूंजी बाजार के अंतर्गत आने वाले शेयर बाजारों में काफी ग्लैमर है ऐसे में एक ही संस्था के नियमन से जिंस बाजार पर ध्यान कम हो सकता है क्योंकि ज्यादा ध्यान दूसरे क्षेत्रों पर लगाना होगा। साथ ही आयोग ने यह भी कहा था कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है और वायदा बाजारों में कृषि उत्पादों का बड़े पैमाने पर कारोबार होता है।
कम से कम दस साल के लिए तो इसे स्वतंत्र इकाई की जरूरत है। साथ ही उसने सोने जैसी कीमती धातुओं को लेकर भी अपना पक्ष रखा था। वैश्विक स्तर पर नियमन के अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं।
मिसाल के तौर पर सिंगापुर में शेयर, जिंस और मुद्रा कारोबार के लिए एक ही नियामक है। वहीं अमेरिका में शेयर बाजार को संभालने का जिम्मा प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग के पास है जबकि जिंस और शेयर वायदा कारोबार का नियमन वायदा कारोबार आयोग के अधिकार क्षेत्र में है।
टूटेगा वायदा!
एफएमसी के सेबी में विलय पर फिर सवालउपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को है ऐतराज़ जिंस बाज़ार पर पकड़ ढीली करने से परहेज़वित्त मंत्रालय चाहता है नियामकों का एकीकरण (बीएस हिन्दी)

देश में दूध की कोई कमी नहीं: डेयरी उद्योग

नई दिल्ली ।। डेयरी उद्योग ने कहा है कि देश में दूध की कोई कमी नहीं है लेकिन सर्दी में आमतौर पर दूध की सप्लाई में हर बार होनेवाली बढ़ोतरी इस साल सूखे की वजह से नहीं हुई है। डेयरी उद्योग के एक शीर्ष अधिकारी से जब दूध की सप्लाई की कुल स्थिति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि फिलहाल दूध की कोई कमी नहीं है। उस अधिकारी ने कहा कि अभी तक देश में स्किम्ड दूध पाऊडर का इंपोर्ट बि्ल्कुल नहीं हुआ है। अगर कोई कमी होती तो अब तक इंपोर्ट शुरू हो गया होता क्योंकि सीमा शुल्क काफी कम यानी पांच प्रतिशत ही है। स्किम्ड दूध पाऊडर पर इंपोर्ट ड्यूटी पहले 10,000 टन के लिए पांच प्रतिशत है लेकिन उसके बाद आगे की लिवाली पर 30 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि अन्य मौसमों की तुलना में सर्दी के दौरान आमतौर पर दूध की ज्यादा सप्लाई होती ही है, लेकिन इस साल यह नदारद है, संभवत: ऐसा सूखा के कारण या चारा उपलब्धता की स्थिति के कारण है। (बीएस हिन्दी)

चीनी पर हर मंतर नाकाम, उपायों के बावजूद बढ़ रहे दाम

नई दिल्ली।। चीनी की कुलांचे भरती कीमतों को काबू करने के लिए केंद सरकार के उपायों की घोषणा के 10 दिन बाद भी हालात नहीं बदले हैं। इसके खुदरा दामों में कमी आने की उम्मीदों के ठीक उलट दिल्ली और भुवनेश्वर बाजारों को छोड़कर देशभर में इसकी कीमत 10 रुपये प्रति किलोग्राम और बढ़ गई है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के ये आंकड़े ग्राहकों का दिल दुखाने के साथ सरकार की 'कोशिशों' की हवा भी निकाल रहे हैं। दिल्ली और मुंबई जैसे प्रमुख बाजारों में 13 जनवरी से चीनी की थोक कीमतों में कुछ कमी जरूर आई है, जब सरकार ने खुदरा दामों के 50 रुपये प्रति किलोग्राम का स्तर छूने पर इसकी रफ्तार थामने के लिए कई उपायों का एलान किया था। खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने दस दिन पहले चीनी की कीमतों पर नियंत्रण पाने के लिए कई कदमों की घोषणा की थी और साथ ही कहा था कि इन उपायों का असर कम खुदरा मोर्चे पर कम से कम 10 से 15 दिन में दिखेगा। पवार ने उपायों की घोषणा करते हुए कहा था, 'रीटेल बाजारों में इनका असर दिखने के लिए 10-15 दिन का वक्त लगेगा।' मांग-आपूर्ति में भारी अंतर को देखते हुए सरकार ने आयात की गई कच्ची चीनी की प्रोसेसिंग देशभर में भी कहीं भी करने की इजाजत दी थी। साथ ही उसने कच्ची चीनी के शून्य-ड्यूटी आयात की मियाद भी दिसंबर अंत तक बढ़ाने का फैसला किया। यह अवधि मार्च में खत्म होने जा रही थी। इन उपायों के बाद थोक मूल्यों पर कुछ प्रभाव दिखा और दिल्ली में इसके दाम 3।50 रुपये प्रति किलोग्राम लुढ़ककर 41 रुपए प्रति किलोग्राम पर आ गए, जबकि मुंबई में इनमें एक रुपये से भी कम गिरावट आई। दिल्ली और भुवनेश्वर को छोड़कर अन्य जगहों पर रीटेल कीमतें बीते नौ दिन में 10 रुपये प्रति किलोग्राम उछल गई हैं और उम्मीद के मुताबिक इनमें कोई गिरावट नहीं आई है। आंकड़ों के मुताबिक, इन दोनों बाजारों में खुदरा दाम 2-3 रुपये कमी के साथ क्रमश: 44 रुपये प्रति किलोग्राम और 42 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गए हैं। आइजल में रीटेल कीमतें 10 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़कर 35 रुपये पर पहुंच गई हैं। इसी तरह अहमदाबाद में रीटेल दाम 4 रुपए उछलकर 44 रुपये प्रति किलोग्राम पर हैं, जबकि पटना और बंगलुरु में 1-2 रुपये बढ़कर क्रमश: 42 रुपए और 40 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गए हैं। चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता भारत मौजूदा सीजन में सितंबर 2010 तक 1.6 करोड़ टन चीनी का उत्पादन करने में कामयाब रहेगा, जबकि मांग 2.3 करोड़ टन की है। इस अंतर को आयात के जरिए पाटा जाएगा। (बीएस हिन्दी)

डिब्बाबंद सब्जियों का बढ़ेगा निर्यात!

जालंधर January 23, 2010
डिब्बाबंद सब्जियों- खासकर साग, राजमा और कढ़ी-पकौड़ा की विदेशों में मांग में तेज बढ़ोतरी को देखते हुए राज्य सरकार की विपणन कंपनी मार्कफेड चालू वित्त वर्ष में 10-12 करोड़ रुपये का निर्यात लक्ष्य हासिल कर लेगी।
पहले मार्कफेड पश्चिम एशिया के देशों में डिब्बाबंद सब्जियों का निर्यात करती थी, जो कुल आयात का 50 प्रतिशत था। अब यूरोपीय बाजारों में भी कारोबार बढ़ा है। मार्कफेड से जुड़े सूत्रों ने कहा कि पिछले एक साल से आस्ट्रेलिया में पढ़ाई करने वाले छात्रों के बीच पंजाब की सब्जियों की मांग बढ़ी है।
पिछले साल डिब्बाबंद सब्जियों का निर्यात 8 करोड़ रुपये का था और इस साल निर्यात बढ़कर 10-12 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। वैश्विक मंदी के विपरीत प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि निर्यात में कोई समस्या नहीं आई। उन्होंने कहा कि जहां अन्य चीजों की मांग में कमी आ रही थी, सब्जियों की मांग में लगातार बढ़ोतरी हुई है।
सूत्रों ने बताया कि मार्कफेड ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड में भी सब्जियों का निर्यात करता है। अब डिब्बाबंद सब्जियों के अलावा अचार और मुरब्बे का भी निर्यात होने लगा है। मार्कफेड के जिला प्रबंधक सचिन गर्ग ने बताया कि राजपुरा में नया संयंत्र लगाया जा रहा है, जिसमें आधुनिक और हाइटेक तकनीक होगी और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण और पैकेजिंग बेहतर होगा।
उन्होंने कहा कि डिब्बाबंद पैकेजिंग के साथ आने वाले दिनों में पाउच पैकेजिंग की भी व्यवस्था की जाएगी, जिससे परिवहन की दिक्कतों से बचा जा सके।
बढ़ेगा कारोबार
मार्कफेड चालू वित्त वर्ष में हासिल कर लेगा 10-12 करोड़ रुपये का निर्यात लक्ष्य पिछले साल 8 करोड़ रुपये का हुआ था डिब्बाबंद सब्जियों का निर्यातपश्चिम एशिया के बाद बिट्रेन, अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड बने बाजार (बीएस हिन्दी)

काबू न आई बढ़ती महंगाई

नई दिल्ली January 25, 2010
महंगाई के खिलाफ सरकार की जंग मामूली असर ही दिखा पाई है।
चीनी के खुदरा भाव जरूर 13 जनवरी को सरकारी हथियार चलने के बाद 6 फीसदी नीचे आए हैं, लेकिन अनाज और दालें अब भी आसमान पर हैं। चीनी भी वापस जलवे दिखा रही है और तकरीबन 400 रुपये प्रति क्विंटल गिरने के बाद पिछले चार दिन में इसके भाव 100 रुपये प्रति क्विंटल उछलकर वापस 3,900 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गए हैं।
वार हुए बेकार
चीनी उद्योग से जुड़े अधिकारी कहते हैं कि कृषि मंत्री शरद पवार ने प्रसंस्कृत चीनी पर आयात शुल्क में छूट बढ़ाने जैसे उपाय जरूर किए हैं, लेकिन मांग और आपूर्ति में अभी कोई बुनियादी फर्क नहीं आया है।
केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की तमाम चीनी मिलों को लगभग 9 लाख टन आयातित कच्ची चीनी का प्रसंस्करण दूसरे राज्यों में करने की अनुमति दी है क्योंकि राज्य सरकार ने आयातित कच्ची चीनी के प्रसंस्करण पर रोक लगा दी है। लेकिन ज्यादातर मिलें इसकी बिक्री को तैयार नहीं हैं और रोक हटने का इंतजार कर रही हैं।
कैसे बिके अनाज
सरकार खुले बाजार में अनाज की उपलब्धता बढ़ाने के लिए भी कई तरीके आजमा रही है, लेकिन खुदरा भाव उन्हें बेअसर ही बता रहे हैं।
खाद्य मंत्रालय ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के जरिये 30 लाख टन गेहूं और 10 लाख टन चावल पिछली तिमाही में खुले बाजार में बिक्री के लिए भेजे थे। चालू तिमाही में भी इतना ही अनाज बेचा जाएगा। इस गेहूं में 10 लाख टन गेहूं नीलामी के जरिये थोक उपभोक्ताओं को बेचा जाना था और बाकी खुदरा विक्रेताओं और छोटी प्रसंस्करण इकाइयों को दिया जाना था।
लेकिन राज्यों की एजेंसियां बिक्री कराने के लिए तैयार नहीं हैं, जिसकी वजह से केंद्र सरकार बचा गेहूं बेचने का जिम्मा भी एफसीआई को ही देने के बारे में सोच रहा है। राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी महासंघ और नाफेड को भी इस काम में लगाया गया है।
नहीं गिरेंगे भाव
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के निदेशक अशोक गुलाटी ने कहा, 'अगर सरकार अगले दो महीने में 30 से 50 लाख टन गेहूं और चावल खुले बाजार में पहुंचा देती है, तो इनके भाव 4 से 5 रुपये प्रति किलोग्राम गिर सकते हैं। लेकिन अनाज और दाल के भाव में फौरी तौर पर तो कोई कमी होती नहीं दिख रही। अब मार्च में रबी की कटाई के बाद ही फर्क दिख सकता है।'
सब हथियार हुए बेकार
जिंस भाव 13 जन। 22जन.चीनी 47 44चावल 23 23गेहूं 14.5 15तुअर दाल 88 87उड़द दाल 74 74मूंग दाल 82 81भाव दिल्ली में रुपये प्रति किलोग्रामस्त्रोत : उपभोक्ता मामलों का विभाग (बीएस हिन्दी)

पवार ने मंहगाई का ठीकरा पीएम के सिर फोडा

पुणे। केन्द्रीय कृषि मंत्री और राकंपा प्रमुख शरद पवार ने कहा कि देश में मंहगाई बढने के लिए केवल वह जिम्मेदार नहीं है। पवार ने रविवार को कृषि विश्वविद्यालय के जैव नियंत्रण के एक उद्घान समारोह के बाद संवाददाताओं से कहा कि बढती कीमतों के लिए केवल उन्हे जिम्मेदार नही ठहराया जा सकता है। बल्कि इसके लिए प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार है। हालाकि उन्होने इस बात का खंडन किया कि बढती कीमतों के मुद्दे पर कांग्रेस उन्हें समर्थन नहीं दे रही है।उन्होने कहा ,विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के बाद कुछ दिशा-निर्देशों की मदद से इस संकट पर काबू पा लिया जाएगा। यह समिति जो भी सिफारिश करेगी हम उसी के अनुसार काम करेगे क्योकि यह मंत्रिमडल का फैसला है। उन्होने कहा, जहां तक मुझे जानकारी है, देंश में खाद्यान्नों का विशाल भंडार है जो पूरे वर्ष के लिए पर्याप्त रहेगा। इस वर्ष भी कृषि उप्तादन में वृद्धि हुई है। (बीएस हिन्दी)

23 जनवरी 2010

सरकार ने महंगाई से लड़ने के लिए कसी कमर

मुंबई/नई दिल्ली January 22, 2010
आवश्यक जिंसों के दाम पर लगाम लगाने के लिए उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय कुछ और महत्वपूर्ण कदम उठाने पर विचार कर रहा है। इसमें चीनी, गेहूं और खाद्य तेल की कीमतों पर खास नजर है।
चीनी के मामले में सरकार ने स्टॉक सीमा की तिथि बढ़ा दी है। साथ ही रिफाइंड और कच्ची चीनी के आयात की तिथि में बढ़ोतरी की गई है। गेहूं के मामले में सरकार ने 5.18 लाख टन अतिरिक्त गेहूं घरेलू बाजार में जारी करने का फैसला किया है।
घरेलू बाजार में तेल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए मंत्रालय ने खाद्य तेल के निर्यात पर प्रतिबंध की अवधि बढ़ा दी है। तेल आयात पर कम शुल्क रखा गया है। सूत्रों ने कहा कि अगर बाजार में खाद्य तेल कमी होती है तो सरकार इसके अतिरिक्त आपूर्ति की व्यवस्था करेगी।
कार्ड पर मिलेगा ज्यादा गेहूं-चावल
सरकार ने खाद्यान्नों की महंगाई पर लगाम लगाने के उपाय के तहत जनवरी और फरवरी में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत आज गेहूं और चावल की आपूर्ति में प्रति परिवार 10 किलो की वृध्दि करने का निर्णय लिया है।
फिलहाल पीडीएस पर एक परिवार को 35 किलो चावल और गेहूं मुहैया कराया जाता है।इसके लिए पात्र परिवारों में अंत्योदय अन्न योजना के कार्ड धारक और गरीबी रेखा से नीचे के परिवार शामिल होंगे। यह फैसला गुरुवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली मूल्य संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीपी) ने लिया।
मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक टली
वस्तुओं की बढ़ती कीमतों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मुख्यमंत्रियों के साथ 27 जनवरी को होने वाली बैठक को स्थगित कर दिया गया है और अब यह बैठक 6 फरवरी को होने की संभावना है। कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि कई मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री को सूचित किया है कि गणतंत्र दिवस समारोह के बाद 27 जनवरी की सुबह उन्हें यहां पहुंचने में कठिनाई होगी।
महंगाई दर घटकर 16.81 फीसदी
खाद्यान्न की महंगाई दर 9 जनवरी को समाप्त सप्ताह के दौरान 16.81 फीसदी पर आई। इस दौरान फल एवं सब्जियों की कीमत में गिरावट आई हालांकि दाल और आलू महंगे बने रहे।
2 जनवरी को समाप्त सप्ताह के दौरान खाद्यान्नों की महंगाई दर (गैर प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की कीमत) 17।28 फीसदी थी। गुरुवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सप्ताह के दौरान खाद्य पदार्थों के मूल्य सूचकांक में 0.1 फीसदी की आंशिक कमी दर्ज हुई। (बीएस हिन्दी)

बढ़ सकती हैं सोने की कीमतें : डब्ल्यूजीसी

मुंबई January 22, 2010
सोने की कीमतों में तेजी 2010 में भी जारी रह सकती है।
कीमतों में तेजी का अनुमान विकसित देशों में आर्थिक सुधार और महंगाई दर बढ़ने की वजह से लगाया जा रहा है। महंगाई दर बढ़ने के दौर में निवेशक सोने में निवेश को सुरक्षित मानते हैं।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है, 'सोने में निवेशकों की बढ़ती संख्या से कीमतों की स्थिरता को लेकर चिंता है। 2008 में बाजार में बड़े पैमाने पर मुद्रा पहुंची। इसकी वजह से मुद्रास्फीति बढ़ने का दबाव है। जो निवेशक उच्च महंगाई दर की संभावना को नकारते हैं, वे डॉलर के प्रति सशंकित हैं।'
2009 के अंत में सोने की कीमतें बढ़कर 1087 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गईं, जो 2008 के अंत में 869 डॉलर प्रति औंस पर थीं। इस दौरान कीमतों में 25 प्रतिशत की तेजी देखी गई। 2009 में सोने की कीमतों को समर्थन कई वजहों से मिला। पहली वजह सुरक्षित निवेश रही। खासकर साल की पहली छमाही में।
दूसरा कारण यह रहा कि डॉलर की कीमतों में गिरावट की वजह से निवेशक सोने की ओर आकर्षित हुए, जिससे महंगाई दर बढ़ने का खतरा था। अंत में पश्चिमी देशों के रिजर्व बैंकों ने फंड प्रबंधन की रणनीति के तहत सोने की बिक्री कम कर दी और विकसित देशों के बैंकों ने सोने की खरीदारी की।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार, खासकर भारत और चीन जैसे देशों में सुधार की वजह से सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। इससे आभूषण की मांग बढ़ने की उम्मीद है। 2009 में सोने में आई तेजी में आभूषण कारोबार की भूमिका नहीं थी। (बीएस हिन्दी_

मिलों में ट्रक से आ रही है कच्ची चीनी

नई दिल्ली January 23, 2010
उत्तर प्रदेश की कई चीनी मिलें राज्य सरकार की तरफ से कच्ची चीनी के आयात पर लगाई गई पाबंदी के बावजूद ट्रकों के जरिए चीनी की ढुलाई कर रही हैं।
पिछले साल नवंबर की शुरुआत में मायावती सरकार ने राज्य में आयातित कच्ची चीनी लाने पर रोक लगा दी थी, ताकि किसानों को नई पैदावार की अच्छी कीमत मिल सके। इसके लिए सरकार ने रेलवे को निर्देश दिया था कि गन्ने की पेराई शुरू होने तक राज्य में कच्ची चीनी की ढुलाई न करे।
उत्तर प्रदेश के एक चीनी मिल मालिक का कहना है, 'सड़कों के रास्ते चीनी की ढुलाई में प्रति क्विंटल 250-260 रुपये का खर्च आता है। रेलवे से ढुलाई काफी सस्ती है। इसमें महज 120 रुपये का खर्च पड़ता है, पर सरकार ने हमारे पास कोई दूसरा कोई चारा नहीं छोड़ा है। आयातित चीनी नवंबर से बंदरगाहों पर अटकी हुई है।'
मिलों को बंदरगाहों पर चीनी के सुरक्षित भंडारण के लिए 250 रुपये प्रति टन तक का खर्च उठाना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश की मिलों द्वारा आयातित करीब 9,00,000 टन कच्ची चीनी विभिन्न बंदरगाहों पर फंसी है। इस चीनी का सौदा 520-550 डॉलर प्रति टन पर हुआ है।
मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर मिलों को चीनी के आयात पर प्रति टन 690-700 डॉलर की लागत आई है। चीनी मिलें अभी तक सड़कों के जरिए 70,000-80,000 टन चीनी बंदरगाहों से निकालने में सफल हो गई हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से लगाई गई रोक की वजह से चीनी का परिशोधन रुका हुआ है। इससे 2,50,000 टन से भी ज्यादा परिशोधित चीनी बाजार में नहीं आ पा रही है। बढ़ती कीमतों को इससे भी बल मिल रहा है। सीधे मिलों से निकली चीनी का भाव राज्य में 4,300 रुपये प्रति क्विंटल के रिकार्ड स्तर तक जा चुका है।
हालांकि अब यह घटकर 3,950 रुपये पर आ गया है। चीनी की खुदरा कीमतें भी 45-46 रुपये प्रति किलो के रिकार्ड तक पहुंच चुकी हैं। शरद पवार की तरफ से भी राज्य सरकार से रोक हटाने की गुजारिश की गई थी, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हो सका। इस वजह से केंद्र सरकार को उत्पाद शुल्क के मामले में थोड़ी नरमी बरतनी पड़ रही है। केंद्र ने उत्तर प्रदेश की मिलों को अपनी चीनी का परिशोधन दूसरे राज्यों में करने की अनुमति दी है।
घरेलू उत्पादन में कमी को देखते हुए केंद्र सरकार ने चीनी के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी है। राज्य की चीनी कंपनियां जैसे बजाज हिन्दुस्तान, बलरामपुर चीनी, सिंभावली और धामपुर चीनी के शुल्क मुक्त आयात के लिए सौदे कर चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र के बाद चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। सितंबर 2009 को खत्म हुए साल 2008-09 में चीनी का घरेलू उत्पादन 42 फीसदी घटकर 1.5 करोड़ टन रह गया था। इस वजह से चीनी की खुदरा कीमतें दोगुनी से ज्यादा हो गईं। देश में चीनी का उपभोग अनुमान 2.3 करोड़ टन है।
राज्य सरकार के प्रतिबंध के बावजूद मिलें मंगा रही हैं आयातित चीनी
सड़क के रास्ते ढुलाई में प्रति क्विंटल 250-260 रुपये का आता है खर्च उत्तर प्रदेश की मिलों द्वारा आयातित करीब 9,00,000 टन कच्ची चीनी फंसी है बंदरगाहों पर इससे 2,50,000 टन से भी ज्यादा परिशोधित चीनी नहीं आ पा रही है बाजार में सितंबर 2009 में खत्म हुए साल 2008-09 में चीनी का घरेलू उत्पादन 42 फीसदी घटकर 1।5 करोड़ टन रह गया (बीएस हिन्दी)

मिठास देने के मूड में नहीं है चीनी

नई दिल्ली।। कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले सप्ताह आश्वासन दिया था कि सरकार सुनिश्चित करेगी कि चीनी के दामों में कमी आए। पवार साहब के वादे ने कुछ रंग तो दिखाया और चीनी की थोक कीमतों में मामूली कमी भी आई, लेकिन करीब हफ्ता भर बीतने के बाद भी आम ग्राहकों को इससे ज्यादा राहत नहीं मिलती दिख रही। इस बीच चीनी उद्योग के जानकारों की दलील है कि चीनी की कीमतें हो सकता है कि उच्चतम स्तर छू चुकी हों, लेकिन इसकी संभावना कम ही है कि निकट भविष्य में इसमें नरमी आएगी। कीमतों पर कैबिनेट समिति (सीसीपी) की लंबी बैठक के बाद पिछले सप्ताह पवार ने उम्मीद जताई थी कि हफ्ते-दस दिन में चीनी की थोक कीमतों में कमी आ जाएगी। उन्होंने कहा, 'थोक दामों में कमी आनी शुरू हो गई है। इतने सालों के अपने अनुभव से मैं कह रहा हूं कि खुदरा कीमतों पर इसका असर दिखने में एक सप्ताह से दस दिन तक का वक्त लगता है।'
हालांकि, नीचे की ओर मुड़ने के बजाय चीनी के थोक दाम बीते तीन से चार दिन के दौरान ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं। शुक्रवार को कारोबार शुरू होने पर नई दिल्ली बाजार में शुगर रेडी (एम) की ओपनिंग प्राइस 3,900-4,100 रुपये की पिछली क्लोजिंग प्राइस से 50-100 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 3,950-4,150 रुपये पर पहुंची, जबकि शुगर रेडी (एस) की ओपनिंग प्राइस पिछले क्लोजिंग प्राइस स्तर 3,850-4,000 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले 3850-4100 रुपये रही। दिल्ली के एक कमोडिटी एनालिस्ट ने ईटी से कहा, 'चीनी की कीमतें रीटेल बाजार में 49-50 रुपये प्रति किलोग्राम के साथ उच्चतम स्तर छू चुकी हैं, लेकिन इसमें गिरावट आई तो भी मामूली ही होगी और यह 42-43 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ सकती है, जिसके बाद यह मुख्य रूप से स्थिर बनी रहेगी। वजह साफ है कि चीनी की कमी है, जिससे बाजार के सेंटिमेंट पर प्रभाव पड़ना जारी रहेगा।' पिछले बुधवार पवार ने कहा था कि आयात होने वाली 56 लाख टन चीनी का 50 फीसदी हिस्सा बंदरगाहों तक पहुंच चुका है, जबकि शेष मार्च तक आ जाएगा। सब मिलाकर इस साल देश के लिए कुल उपलब्ध चीनी का स्तर 2।4 करोड़ टन तक पहुंच जाएगा, जो 2.3 करोड़ टन के सालाना उपभोग स्तर से 10 लाख टन ज्यादा है। उन्होंने कहा कि भारी बारिश के कारण गन्ने की खराब फसल के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा चीनी का उत्पादन करने वाले ब्राजील ने इथेनॉल का स्तर घटाया था और इससे भी चीनी की कीमतों पर वैश्विक बाजार सेंटिमेंट पर असर पड़ना स्वाभाविक है। एक हालिया इंटरव्यू में श्री रेणुका शुगर्स के एमडी नरेंद्र मुरकुंबी ने भी इसी बात से सहमति जताते हुए कहा था कि वैश्विक बाजार में चीनी की मार्च की वायदा कीमत ज्यादा होगी और ब्राजील में गन्ने की कम पैदावार निश्चित रूप से ग्लोबल कीमतों पर प्रभाव छोड़ेगी। (ई टी हिन्दी)

गन्ने में कम रस से मिल-मालिकों के मुनाफे में लगी सेंध

लखनऊ : मिल मालिक पहले से गन्नों की कम आपूर्ति से परेशान थे और अब उन्हें गन्ने से कम रिकवरी (कम रस मिलना, जिससे चीनी उत्पादन पर असर होता है) से जूझना पड़ रहा है। पिछले साल की तुलना में गन्ने से चीनी की रिकवरी 1 फीसदी घटी है, जिसका मतलब है कि चीनी का कम उत्पादन होगा और उत्पादन का खर्च बढ़ेगा। इससे मिलों के मुनाफे पर सीधी चोट पहुंचेगी। उत्तर प्रदेश की मिलों को गन्ने से रिकवरी 8।5-9 फीसदी हो रही है। शुगर टेक्नोलॉजिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसटीएआई) के प्रेसिडेंट और एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. जी एस सी राव ने कहा कि रिकवरी रेट 8.5-8.75 फीसदी के बीच है। पिछले सीजन में यह 9.5-10 फीसदी रही थी। हालांकि, गन्ने की पूरी फसल की पेराई अभी की जानी है और इससे इन आंकड़ों में कुछ बदलाव आ भी सकता है, खास तौर से अगर सर्दी खिंचती है। लेकिन, यह तय दिख रहा है कि मौजूदा सीजन में चीनी की रिकवरी कम ही रहेगी। पिछले सीजन की तुलना में यह 1 फीसदी तक गिर सकती है। इस वजह से उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को इस सत्र में कम मुनाफे पर काम करना होगा। कम रिकवरी का सीधा मतलब लागत खर्च बढ़ना है। हालांकि, चीनी की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच चुकी हैं, जिससे चीनी उद्योग के चेहरे पर मुस्कुराहट दिख रही है। मिलें गन्ने के लिए रिकॉर्ड ऊंचे दाम दे रही हैं, जो 250 रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा है। इससे चीनी मिलों के प्रॉफिट मार्जिन पर असर होगा। अंडर रिकवरी से कुल बिक्री में भी कमी आ सकती है। गन्ने के रस से कम चीनी बनेगी, जिससे मिलों का उत्पादन कम होगा। उत्तर प्रदेश में गन्ने की कमी से बीते कुछ वर्षों से उत्पादन लगातार कम हो रहा है। 2007 में राज्य में 84.75 लाख टन चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था। मौजूदा सीजन में कुल उत्पादन 34-36 लाख टन तक गिर सकता है। हालांकि, अगर मिल मालिक गन्ने की शेष फसल का इस्तेमाल करते हैं और रिकवरी सुधरती है, तो उत्पादन का अनुमान बढ़ भी सकता है। (ई /टी हिन्दी)

पवार ने कहा और दूध के दाम बढ़ गए

नई दिल्ली।। कृषि मंत्री शरद पवार महंगाई पर कुछ कहने के बाद बेशक यू टर्न ले लेते हैं, मगर उनके बोलने का असर तुरंत बाजार पर नजर आता है। कुछ दिन पहले पवार ने बोला था कि देश में दूध की कुछ कमी है और दाम बढ़ाने का जबर्दस्त दबाव है और शुक्रवार को मुंबई में डेरी वालों ने दूध के दाम में दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी का एलान कर दिया। इसका असर अब अन्य शहरों में भी हो सकता है। यह महज इत्तफाक है या कुछ और। इस पर राजनीति गरमा गई है। बीजेपी प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद के मुताबिक, सवाल यह उठता है कि क्या पवार आम आदमी के मंत्री हैं या बिचौलियों के। क्यों मुंबई में दूध के दाम तब बढ़े, जब पवार ने इसकी भूमिका तैयार कर दी थी। क्या यह केंद्र की जिम्मेदारी नहीं है कि वह इन मसलों को गंभीरता से ले। क्या माना जाए कि सरकार कीमतें बढ़ाने के लिए पवार के कंधे का इस्तेमाल कर रही है। कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि पवार कुशलता के साथ मौजूदा स्थिति को संभाल नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि महंगाई पर हमने करोड़ों लोगों की चिंता कृषि मंत्री के समक्ष प्रकट कर दी है। पवार क्योंकि खाद्य वितरण का कार्यभार भी देखते हैं, ऐसे में यह उनका दायित्व बनता है कि वे बाजार को नियंत्रण में रखने के उपाय करें। तिवारी से इतर कई सीनियर कांग्रेसी नेता इस बात से नाराज हैं कि पवार ने दूध बढ़ने की संभावना व्यक्त की और उसके बाद दूध के दाम बढ़ गए या बढ़ा दिए गए। इसका आम आदमी को गलत मेसेज गया। इसकी पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए पवार को भी संभलकर बयानबाजी करनी चाहिए। पुणे में पवार ने इस बात पर अचरज जताया कि महंगाई से उनके कृषि मंत्रालय का क्या लेना है। वह तो सिर्फ उपज पर ध्यान केंद्रित करती है। (ई टी हिन्दी)

फूल निर्यातकों के लिए गुलाबी नहीं होगा वैलेंटाइन डे

अहमदाबाद : इस साल वैलेंटाइन डे रविवार को पड़ने से फूल निर्यातकों के चेहरे मुरझाए हुए हैं। इसका एकमात्र कारण है, उस दिन स्कूल-कॉलेजों और कॉरपोरेट ऑफिसों का बंद रहना। इसके चलते कारोबारियों को फूलों की मांग में 15 फीसदी कमी की आशंका सताने लगी है। इंडियन सोसायटी ऑफ फ्लोरीकल्चर प्रोफेशनल्स (आईएसएफपी) के मुताबिक, एक अनुमान के तौर पर 14 फरवरी से पहले भारत से 3.5 करोड़ फूलों का निर्यात होगा। आईएसएफपी के प्रेसिडेंट प्रवीण शर्मा ने बताया, 'एक से 9 फरवरी तक हॉलैंड और ब्रिटेन जैसे देशों के लिए शिपमेंट शुरू हो जाएगी। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात जैसे पश्चिम एशियाई देशों में शिपमेंट थोड़ी देर से 11 और 12 फरवरी को भेजी जाएगी।' उन्होंने बताया, 'इस बार माहौल ज्यादा गुलाबी नहीं है। पिछले साल की तुलना में इस बार भारत से होने वाले फूलों के निर्यात में 15 फीसदी की कमी आने का अनुमान है। इसका एकमात्र कारण यह है कि इस बार वैलेंटाइन डे रविवार को पड़ रहा है। दो दशकों से यह देखा जा रहा है ऐसा जब भी होता है, फूलों की मांग कम जाती है।' शर्मा ने बताया, 'पिछले साल भी वैलेंटाइन डे शनिवार को पड़ा था और इस कारण निर्यात में 10 फीसदी की गिरावट आई थी।' शर्मा पुणे की फ्लोरा कंसल्टेंट्स के मुख्य सलाहकार भी हैं। उन्होंने बताया, 'कॉलेज छात्रों और कॉरपोरेट उपभोक्ताओं की ओर से फूलों की मांग में कमी को देखते हुए भारत से फूल मंगाकर बिक्री करने वाली ब्रिटेन की टेस्को पीएलसी, इंटरग्रीन लिमिटेड, र्वल्ड फ्लावर्स जैसी प्रमुख रीटेल चेन कंपनियों की बिक्री में कमी आई है।' आईएसएफपी के अनुमान के मुताबिक, इस बार वैलेंटाइन डे के मौके पर देश के दो बड़े शहरों मुंबई और बंगलुरु से 1.5 करोड़ और 2.0 करोड़ फूलों के डंठलों का निर्यात होगा। मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर फूलों का कुल 11 अरब डॉलर का कारोबार है। इसमें भारत की भागीदारी 0.65 फीसदी है। (ई टी हिन्दी)

मार की अरहर 27 सस्ती

अरहर की ऊंची कीमतों की मार झेल रहे उपभोक्ताओं को जल्दी ही राहत मिलने की संभावना है। पिछले एक महीने में म्यांमार के निर्यातकों ने अरहर की कीमतों में 27.6 फीसदी की कमी कर दी है तथा घरेलू थोक बाजार में भी इसके दाम करीब 21 फीसदी घट चुके हैं। इसलिए उम्मीद है कि जल्दी ही फुटकर में भी इसकी कीमतें नीचे आ जाएंगी। घरेलू बाजार में पिछले एक महीने में उड़द के दाम करीब 17 फीसदी घटे हैं लेकिन आयातित उड़द की कीमतों में इस दौरान मात्र चार फीसदी का मंदा आया है।ग्लोबल दाल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर चंद्रशेखर एस. नादर ने बताया कि अरहर की घरेलू फसल की आवक बनने के कारण म्यांमार के निर्यातकों ने भाव घटाने शुरू कर दिए हैं। म्यांमार के निर्यातक फरवरी- मार्च शिपमेंट अरहर निर्यात के सौदे 925-940 डॉलर प्रति टन में बिकवाली कर रहे हैं लेकिन भारतीय आयातकों इन भावों में भी खरीद नहीं कर रहे हैं। जिससे मौजूदा कीमतों में और गिरावट की संभावना है। 18 दिसंबर को लेमन अरहर के भाव मुंबई पहुंच 1300 डॉलर प्रति टन थे। इस दौरान आयातित उड़द के भाव मुंबई में 1060-1160 डॉलर से घटकर 1020-1120 डॉलर प्रति टन रह गए। फुटकर बाजार में उड़द की दाल 72-74 रुपये और अरहर की 85-87 रुपये प्रति किलो चल रही है लेकिन जल्दी ही इन भावों में गिरावट की संभावना है।बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील बंदेवार ने बताया कि घरेलू मंडियों में अरहर की कीमतें घटकर 4700-4800 रुपये प्रति क्विंटल और आयातित अरहर के भाव मुंबई में 4400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। दिसंबर के मध्य में मंडियों में देसी अरहर के भाव 6000 रुपये प्रति क्विंटल थे। घरेलू मंडियों में उड़द के भाव इस दौरान घटकर 4500- 4600 रुपये प्रति क्विंटल और आयातित उड़द के 4100 रुपये प्रति क्विंटल रह गये। दिसंबर के मध्य में इसके भाव उत्पादक मंडियों में 5800 रुपये प्रति क्विंटल थे। म्यांमार के अलावा भारत में भी उड़द की नई फसल आंध्र प्रदेश की अगले महीने आएगी। लेकिन घरेलू मंडियों में पुराना स्टॉक सीमित मात्रा में होने के कारण मौजूदा कीमतों में भारी गिरावट के आसार नहीं है। लेकिन अरहर का घरेलू उत्पादन तो बढ़ेगा ही साथ में म्यांमार की नई फसल को देखते हुए मौजूदा कीमतों में और भी 10-15 फीसदी की गिरावट आने के आसार हैं।दलहन व्यापारी बिजेंद्र गोयल ने बताया कि कई राज्यों में दलहन के स्टॉक पर लिमिट लगी हुई है इसलिए व्यापारियों के साथ ही मिलर भी सीमित मात्रा में ही स्टॉक कर पाएंगे। ऐसे में आगामी दिनों में अरहर की मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की ही संभावना है।कृषि मंत्रालय के मुताबिक अरहर का उत्पादन पिछले साल के 23.1 लाख टन से बढ़कर 24.7 लाख टन होने की संभावना है। खरीफ में उड़द का उत्पादन 8.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि रबी उड़द की बुवाई में भी बढ़ोतरी हुई है।पते की बात..कई राज्यों में दलहन की स्टॉक लिमिट होने से व्यापारियों की खरीद क्षमता सीमित है। ऐसे में आगामी दिनों में अरहर की मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। (बिसनेस भास्कर....आर अस राणा)

रबर की तेजी से कंपनियां मुश्किल में

भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में नेचुरल रबर की कीमतों में आई भारी तेजी से छोटी रबर कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। घरेलू मंडियों में नेचुरल रबर के दाम बढ़कर 133-139 रुपये प्रति किलो और सिंगापुर कमोडिटी एक्सचेंज (सीकॉम) में भाव 146-147 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गए हैं। भारत की बजाय अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव तेज हैं इसलिए आयात पड़ते भी नहीं लग रहे हैं। रबर प्रॉडक्ट निर्माताओं के संगठन आल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (एआईआरएआई) ने केंद्र सरकार से सरकारी एजेंसियों के माध्यम से शुल्क रहित दो लाख टन रबर आयात करके सप्लाई करने की मांग की है। एआईआरएआई के उत्तर भारत के चेयरमैन एम। एल. गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आयातित नेचुरल रबर पर 20 फीसदी आयात शुल्क है। भारत के मुकाबले विदेशी बाजार में नेचुरल रबर के भाव करीब छह फीसदी ज्यादा है। जिसके कारण छोटी रबर कंपनियों को नेचुरल रबर के आयात में दिक्कतें आ रही हैं। इसलिए केंद्र सरकार को छोटी रबर कंपनियों के हित के लिए सरकारी कंपनियों एमएमटीसी- एसटीसी के माध्यम से शून्य शुल्क पर दो लाख टन नेचुरल रबर का आयात करना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस समय छोटी कंपनियों को अमेरिका और यूरोप से रबर उत्पादों के अच्छे निर्यात सौदे मिल रहे हैं लेकिन कच्चे माल की कीमतों में भारी तेजी के कारण छोटी कंपनियों की लागत में भारी बढ़ोतरी हो चुकी है। एआईआरएआई के उप महासचिव आलोक कुमार गोयल ने बताया कि प्रतिकूल मौसम से पीक सीजन में भी नेचुरल रबर के घरेलू उत्पादन में कमी आई है। जनवरी के बाद पीक सीजन समाप्त हो जाएगा। इसलिए फरवरी में उत्पादन में और कमी आ जाएगी। जबकि उद्योग की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में आगामी दिनों में कीमतें में और भी तेजी के ही आसार हैं। मैसर्स हरिसंस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बताया कि भारत की तुलना में विदेशी बाजार में नेचुरल रबर की कीमतों में आई तेजी से आगामी महीनों में आयात भी न के बराबर ही हो पाएगा। जिसका असर घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की कीमतों पर पड़ने की संभावना है। भारतीय रबर बोर्ड के मुताबिक दिसंबर महीने में नेचुरल रबर के उत्पादन में करीब 2.2 फीसदी की कमी आकर कुल उत्पादन 98 हजार टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में 100,225 टन उत्पादन हुआ था। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से दिसंबर तक नेचुरल रबर का उत्पादन करीब छह फीसदी घटकर 6.36 लाख टन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 6.76 लाख टन का हुआ था। दिसंबर महीने में भारत में 4,890 टन का आयात हुआ था जो कि पिछले साल दिसंबर के 3,426 टन से ज्यादा था। चालू सीजन में भारत में नेचुरल रबर का कुल उत्पादन करीब 8.17 लाख टन होने की संभावना है जोकि पिछले साल के 8.81 लाख टन से करीब सात फीसदी कम है।बात पते की॥भारत के मुकाबले विदेशी बाजार में नेचुरल रबर महंगी होने से आयात कम ही रहेगा। इससे घरेलू बाजार में उपलब्धता सीमित रहने से और तेजी आ सकती है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)

20 जनवरी 2010

इस हफ्ते से सस्ता होगा खाद्य तेल...!

नई दिल्ली : इस हफ्ते से खाद्य तेल प्रति किलो 2 रुपए सस्ता होगा। इतना ही नहीं कीमत में लगातार गिरावट बनी रहेगी। खाद्य तेल ज्यादा मांग को देखते हुए कई खिलाड़ी इस कारोबार में शामिल हो गए हैं, जिसका असर कीमतों पर पड़ा है। लगातार बढ़ती महंगाई के दौर में आखिर यह कैसे मुमकिन हुआ? इसका श्रेय सरकार को नहीं जाता है। इससे उलट, खाद्य तेल के मामले में किसी भी मंत्री या पार्टी की कोई रुचि नहीं है क्योंकि आमतौर पर इससे उन्हें कोई राजनीतिक फायदा नहीं होता है। रसोईघर के लिए खाद्य तेल काफी महत्वपूर्ण है लेकिन इसके प्रति नेताओं की बेरुखी आम लोगों के लिए वरदान साबित हो गई है। इस सेक्टर में सत्ताधारियों के लिए 'वोट और नोट' बटोरने की क्षमता नहीं है। यही वजह है कि इसमें किसी नेता की दिलचस्पी कम है। बिना किसी अनुकूल कर और सरकारी मदद के बिना भारत आज खाद्य तेल का इस्तेमाल करने वाला दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है। छोटे किसान मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी जैसे तिलहनों की खेती कर रहे हैं। पानी की कमी वाले वैसे इलाके जो हर साल मौसम की मार सहते हैं और जिससे किसानों की लागत, कर्ज और कटाई का खर्च बढ़ जाता है। यहां तक कि जब तेल मिल मालिक उन्हें सही कीमत देने से इनकार कर देते हैं तो उन्हें गन्ना किसानों की तरह सरकारी पुचकार नसीब नहीं होती है। भारत में इंटरनेट की शुरुआत होने के बाद इन्हीं किसानों ने अपने पुराने तरीके छोड़कर यह जानने का प्रयास किया कि नेट पर टेड कैसे किया जाता है। इन किसानों ने विदेश में बीन की कीमतों का पता लगाया और एक जैसी दिलचस्पी वाले लोगों का एक समुदाय विकसित किया। आज कोई बेवकूफ नहीं है। उन्हें भविष्य की समझ है। हालांकि, वे खुद एक्सचेंज पर ट्रेड नहीं कर सकते हैं। लेकिन वे इस सेक्टर की चाल को भांप कर मौके का सही फायदा जरूर उठा सकते हैं। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि संसाधनों की कमी से जूझ रहे सोयाबीन किसान विदेश के पाम ऑयल की खेती को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। देश में सोयाबीन किसान करीब 400 लीटर तेल का उत्पादन करते हैं वहीं, विदेश में 6,000 लीटर पाम ऑयल का उत्पादन होता है। बिना किसी सीमा शुल्क के खाद्य तेल का बाजार पूरी तरह खुला हुआ है। पिछली बार आपने कब सुना था कि कोई मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बिना किसी शिकायत के मुश्किलों से निपट रहा है। प्रोसेसिंग इंडस्ट्री भी देश भर में बिखरी हुई है, क्योंकि तिलहन के खेतों के आसपास कोल्हू का होना बेहद जरूरी है। इस सेक्टर में 15,000 से ज्यादा तेल मिल, 700 सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन यूनिट, 260 वनस्पति प्लांट और 1,000 से भी ज्यादा रिफाइनरी में करीब 10 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं। ये रिफाइनरी न सिर्फ एक दूसरे को बल्कि मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्राजील और अर्जेंटीना की कंपनियों को भी कड़ी टक्कर दे रही हैं। विदेश की कंपनियों को वहां की सरकार से सस्ता कर्ज, नई तकनीकी और सस्ता कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है। भारत में इस सेक्टर को कोई सरकारी मदद नहीं दी जाती है। नई फैक्ट्री के आकार और लोकेशन पर किसी भी तरह का सरकारी नियंत्रण नहीं है। हर फैक्ट्री के लिए कोई तिलहन 'जोन' नहीं बनाया गया है जैसा की उत्तर प्रदेश के चीनी मिलो के लिए है। (ई टी हिन्दी)

महाराष्ट्र में रबी फसल की अच्छी पैदावार

पुणे : देश में लगातार बढ़ती महंगाई से जहां खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र के कृषि सेक्टर से एक अच्छी खबर आई है। पिछले साल की तुलना में इस साल महाराष्ट्र में रबी पैदावार में 11 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके साथ ही 2009-10 के लिए राज्य के खरीफ फसल का अंतिम अनुमान भी पिछले साल की तुलना में 5 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल की तुलना में इस साल रबी सीजन में खेती का इलाका घटा है। इसके बाद भी उत्पादन पिछले साल से ज्यादा है। रबी फसल के बारे में कृषि विभाग के शुरुआती अनुमान के मुताबिक, इस साल महाराष्ट्र में रबी की बुआई 55।25 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो पिछले साल की तुलना में 7 फीसदी कम है। रबी सीजन के दौरान ज्वार, गेहूं और चने की पैदावार ज्यादा होने की उम्मीद है। पिछले सीजन की तुलना में इस सीजन में 0.67 लाख हेक्टेयर कम इलाके में गेहूं की खेती हुई है। इसके बाद भी उत्पादन 1 लाख टन से लेकर 16 लाख टन ज्यादा होने की उम्मीद है। चने की खेती का रकबा मामूली बढ़ा है, लेकिन पिछले सीजन की तुलना में इसका उत्पादन राज्य में 2 लाख टन बढ़ सकता है।2009-10 रबी सीजन में 51.84 लाख हेक्टेयर में अनाज की खेती की गई है, जो पिछले साल की तुलना में 4 लाख हेक्टेयर कम है। हालांकि, इस सीजन के दौरान कुल 54.39 लाख टन अनाज उत्पादन की उम्मीद है, जो पिछले साल से 11 फीसदी ज्यादा है। पिछले सीजन के दौरान 59.16 लाख टन अनाज का उत्पादन हुआ था। कृषि विभाग के एक उच्चस्तरीय सूत्र का कहना है, 'इस साल हर फसल की पैदावार पिछले साल की तुलना में ज्यादा होने की उम्मीद है।' (ई टी हिन्दी)

तीन और करेंसी में फ्यूचर्स कारोबार की इजाजत

मुंबई : बाजार नियामक सेबी ने मंगलवार को स्टॉक एक्सचेंजों को रुपए के साथ 3 और करेंसी- यूरो, पौंड और येन को करेंसी फ्यूचर्स कारोबार की इजाजत दे दी। अब शेयर बाजार को इसकी लॉन्च की तारीख के बारे में फैसला करना है। सेबी द्वारा इस सिलसिले में जारी सर्कुलर के मुताबिक, स्टॉक एक्सचेंजों को यूरो-रुपया, पौंड स्टर्लिंग-रुपया और येन-रुपया में करेंसी फ्यूचर्स की इजाजत मिल गई है। फिलहाल, अमेरिकी डॉलर-रुपया में ही करेंसी फ्यूचर्स कारोबार की अनुमति है। करेंसी फ्यूचर्स मार्केट का रेगुलेशन आरबीआई और सेबी दोनों साथ मिलकर करते हैं। पिछले साल अक्टूबर में आरबीआई ने मौद्रिक नीति की समीक्षा में और ज्यादा मुद्राओँ करेंसी फ्यूचर्स की जरूरत की ओर इशारा किया था और इस वजह से इस बारे में काफी समय से उम्मीद की जा रही थी। फ्यूचर्स इंस्ट्रूमेंट्स (इक्विटी, कमोडिटी या करेंसी) के तहत किसी भी संपत्ति की खरीद या बिक्री पहले से तय राशि पर निर्धारित की जाती है और इसकी डिलीवरी बाद की तारीख में होती है। फिलहाल, डॉलर-रुपया फ्यूचर्स कारोबार तीन मान्यता प्राप्त एक्सचेंजों में होता है। इन एक्सचेंजों में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई), एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज शामिल हैं। (ई टी हिन्दी)

चीनी में तेजी की आस

मुंबई January 19, 2010
चीनी की कीमतें कम होने की सरकार की कोशिशें धूमिल नजर आने लगी हैं।
देश की प्रमुख चीनी कंपनी बजाज हिंदुस्तान लिमिटेड (बीएचएल) का मानना है कि चालू पेराई सत्र (अक्टूबर 2009 से सितंबर 2010) के अंत तक चीनी का फैक्टरी मूल्य 50 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएगा।
सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले रिलीज ऑर्डर के मुताबिक कंपनियों द्वारा जारी चीनी के एक्स-फैक्टरी मूल्य में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। बहरहाल इस समय मिलें अपने उत्पाद की 10 प्रतिशत चीनी सरकार को 13.50 रुपये प्रति किलो के भाव देती हैं, जिसे बाद में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत जनता को 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उपलब्ध कराया जाता है।
बीएनपी पारिबा के कुणाल वोरा और बीएचएल के संयुक्त प्रबंध निदेशक कुशाग्र बजाज के हालिया कंपनी विश्लेषण के मुताबिक कंपनी का शुगर रियलाइजेशन बढ़कर चालू पेराई सत्र में मार्च 2010 तक बढ़कर 50 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि खुदरा बाजार में आम लोगों को चीनी कम से कम 55 रुपये प्रति किलो मिलेगी।
हालांकि तमाम चीनी मिलों के वरिष्ठ अधिकारियों का अनुमान है कि रियलाइजेशन 40-45 रुपये प्रति किलो के बीच रहेगा। उत्तर प्रदेश की एक मिल के अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, 'इस समय की स्थिति को देखकर लगता है कि यह 45 रुपये प्रति किलो के स्तर को पार कर जाएगा। लेकिन लंबे समय तक यह स्तर बरकरार रहना कठिन है।'
चीनी की कीमतों के अनुमान में ढेरों समस्याएं हैं, क्योंकि सरकार लगातार नीतियों में बदलाव कर रही है। इसमें अतिरिक्त शुल्क मुक्त चीनी का आयात और अतिरिक्त चीनी जारी किया जाना शामिल है। सरकार का मिलों पर बहुत ज्यादा दबाव है, कि वे आने वाले दिनों में हाजिर बाजार में कीमतों में बढ़ोतरी न होने दें।
अधिकारी ने कहा कि इसकी वजह से रियलाइजेशन एक सीमित दायरे में रह सकता है। एक पखवाड़े पहले चीनी के कारोबार में रियलाइजेशन 44 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गया था, लेकिन बाद में यह वर्तमान स्तर, 40 रुपये प्रति किलो पर आकर ठहर गया है।
सिंभावली शुगर्स के मुख्य वित्त अधिकारी संजय तापड़िया ने कहा, 'भारत में चीनी के दाम अंतरराष्ट्रीय भाव से जुड़े हुए हैं। ब्राजील में होने वाले किसी भी बदलाव से चीनी के दाम में अंतर आ सकता है, जो सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है। वहां से कीमतों में किसी बदलाव के संकेत नहीं मिल रहे हैं।'
मिलें कर रही हैं बढ़त की उम्मीद
बजाज हिंदुस्तान को चीनी के फैक्टरी मूल्य 50 रुपये प्रति किलो पहुंचने की उम्मीदहालांकि अन्य कंपनियों का कहना है कि कीमतें होंगी 40-45 रुपये के बीच कीमतों को लेकर सरकार का मिलों पर दबाव, अंतरराष्ट्रीय बाजार से भी बढ़त के संकेत नहीं (बीएस हिन्दी)

बदलाव के दौर में हाजिर कारोबार

मुंबई January 19, 2010
भारत में अनाज का हाजिर कारोबार बदलाव के दौर से गुजर रहा है।
जमीनी स्तर पर बाजार की अच्छी समझ नहीं होने की वजह से नए उभरते करोबारी सौदों के लिए आसान रास्ते तलाश रहे हैं। नए कारोबारी पुराने कारोबारियों की तरह कृषि वस्तुओं और उनकी कीमतों का फर्क समझने के लिए बाजार-बाजार घूमने की जहमत नहीं उठाना चाहते।
बड़ी-बड़ी डिग्री वाले तकनीक के दीवाने अगली पीढ़ी के ये कारोबारी कारोबार के तौर तरीके अपने मुताबिक बदलने में लगे हैं। ग्रेन राइस ऐंड ऑयलसीड मर्चेंट एसोसिएशन (जीआरओएमए) के अध्यक्ष शरद मारु का कहना है, 'चावल, गेहूं और दूसरी नकदी वस्तुएं मसलन चीनी, गुड़ और तेल बीजों की दो-तीन किस्में दिखने में काफी हद तक समान होती हैं, पर इनकी कीमतों मे फर्क होता है। मंडी में हर रोज घूमने वाले दैनिक कारोबारी ही सिर्फ ये अंतर समझ सकते हैं।'
ऐसे बदलते माहौल में ऑनलाइन एक्सचेंजों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, लेकिन यहां भी बाजार की सही-सही जानकारी देना एक्सचेंजों के लिए मुश्किल काम होता है। बाजार में कारोबार की प्रक्रिया, वितरण और कीमत अदायगी की व्यवस्था और सबसे जरूरी सामानों के बीच गुणवत्ता का फर्क समझाने में एक्सचेंजों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है।
एनसीडीईएक्स स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनस्पॉट) के प्रमुख राजेश सिन्हा के मुताबिक अगली पीढ़ी के कारोबरियों के उभरने के साथ ऑनलाइन हाजिर एक्सचेंज भी फलेगा- फूलेगा। एनसीडीईएक्स स्पॉट एक्सचेंज (एनस्पॉट) नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरीवेटिव्स एक्सचेंज द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा ऑनलाइन हाजिर एक्सचेंज है। यह वस्तुओं के हाजिर कारोबार की ऑनलाइन सुविधा देता है।
देश की बड़ी मंडियों में बोर्ड पर कीमतें दर्शाई जा रही हैं। अगले कुछ सालों में इस तरह के तमाम जिंस बाजारों को इस सुविधा से जोड़ने की योजना है। इससे किसानों को फायदा हो रहा है। उनकी आमदनी बढ़ी है।
फाइनैंशियल टेक्नोलॉजी प्रोमोटेड नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अंजनी सिंहा का कहना है कि ऑनलाइन एक्सेचेंजों के आने से मध्यस्थों को बीच से निकालना संभव हो सका है। उपभोक्ताओं की तरफ से चुकाई गई कीमत का 50 फीसदी तक खा जाने वाले मध्यस्थों की भूमिका ऑनलाइन एक्सचेंजों के आ जाने के बाद अनावश्यक हो गई है।
कीमतों में बढ़त का ज्यादातर फायदा किसानों के पास जाता है। सबसे जरूरी बात, ऑनलाइन एक्सचेंजों ने माल आपूर्ति को एक बोरी तक कम कर दिया है। इससे बहुत ही छोटे किसान भी कारोबार में उतरने लगे हैं। इसके साथ ही ये एक्सचेंज खरीदारों को उपलब्ध कराए गए माल के लिए दूसरी पार्टी की तरफ से गारंटी की व्यवस्था करते हैं।
वहीं विक्रेताओं को समय पर एकाउंट से एकाउंट भुगतान की सुविधा देते हैं। अभी अनाज किसानों से थोक व्यापारियों तक मध्यस्थों के हाथों पहुंचता है। ये मध्यस्थ दोनों तरफ से 2.5 फीसदी का कमीशन लेते हैं। थोक व्यापारी भी अपना लाभ उठाते हुए खुदरा व्यापारियों को अनाज बेचते हैं।
खुदरा बिक्रेता भी कुछ मुनाफा लेते हुए अंतिम उपभोक्ताओं को माल बेचता है। इस प्रक्रिया में अनाज के दाम में माल ढुलाई का खर्चा भी जुड़ता जाता है। ऑनलाइन कारोबार में इन खर्चों को बचाया जा सकता है। किसान सीधे अपना माल उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं। अगर किसान अपने लिए छोटा मुनाफा भी रखें, तो भी यह काफी ज्यादा होगा।
2008 में शुरू हुए मौजूदा दो एक्सचेंजों में 2009 में 2809.29 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। इसमें से एनएसईएल की हिस्सेदारी 2558.56 करोड़ रुपये है। इस अवधि में एनएसईएल में 1,370 करोड़ रुपये के कृषि वस्तुओं का कारोबार हुआ।
अंजनी सिन्हा के मुताबिक, 'मात्रा के हिसाब से भले ही कारोबार का आकार छोटा है, पर जहां भी हमने काम किया, वहां किसानों की आमदनी बढ़ी है।' एक अध्ययन के अनुसार भारत में हर रोज औसत रूप से 115,000 करोड़ रुपये का हाजिर कारोबार होता है। 2009 में सरकारी क्षेत्र की कुछ कंपनियों ने भी आंध्रप्रदेश में कपास खरीदने के लिए ऑनलाइन एक्सचेंजों की मदद ली। (बीएस हिन्दी)

बासमती निर्यात में 15 फीसदी बढ़त के अनुमान

नई दिल्ली January 20, 2010
बासमती चावल के निर्यात में वर्ष 2009-10 के दौरान पिछले साल के मुकाबले 15 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है।
निर्यातकों ने बासमती चावल के निर्यात में और बढ़ोतरी के वास्ते सरकार से इस श्रेणी के धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की मांग की है। ताकि किसानों को सीधे तौर पर निर्यात लाभ से जोड़ा जा सके।
बासमती चावल निर्यातकों के मुताबिक वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान कुल 23 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया गया था। खाड़ी देशों में बासमती की अच्छी मांग होने के कारण इस साल यह निर्यात 26-27 लाख टन रहने का अनुमान है। भारत मुख्य रूप से खाड़ी देशों को बासमती चावल का निर्यात करता है।
हालांकि पिछले दिनों ईरान में बासमती चावल के आयात पर 200 डॉलर प्रति टन की डयूटी लगने से वहां से निकलने वाली मांग कमजोर हुई है। निर्यातकों ने बताया कि डयूटी लग जाने से वहां के चावल आयातक पहले के स्टॉक को निकालने के बाद ही कोई नया ऑर्डर देंगे। इसलिए चावल निर्यात में बहुत बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है।
निर्यातक कहते है कि पूसा-1121 बासमती चावल के लिए यूरोप का बाजार खुल जाने पर निर्यात में 3-4 लाख टन की बढ़ोतरी हो सकती है। उनके मुताबिक सरकार की ढीले रवैये के कारण यूरोप के देशों ने पूसा-1121 को अब तक बासमती चावल की मान्यता नहीं दी है। जबकि यूरोप में निर्यात होने वाले बासमती चावल पूसा-1121 के मुकाबले कम उम्दा है।
चावल निर्यात संघ के पदाधिकारी विजय सेतिया ने बताया कि बासमती धान के लिए कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं होने से भी इसके निर्यात को प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। एमएसपी तय होने से बासमती उत्पादक किसान सीधे तौर पर इसके निर्यात से जुड़ जाएंगे।
अभी किसानों को यह पता नहीं होता है कि उन्हें बासमती धान के लिए कम से कम क्या कीमत मिल जाएगी। खुली बिक्री होने पर कई बार बासमती धान उत्पादकों को कम कीमत पर संतोष करना पड़ता है।
सरकार के सहयोग की जरूरत
कारोबारियों ने सरकार से बासमती श्रेणी के धान के लिए अलग न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किए जाने की मांग कीचालू वित्त वर्ष के अंत तक 26-27 लाख टन बासमती चावल निर्यात का अनुमान (बीएस हिन्दी)

देसी व्यापारियों को रास नहीं आ रही हैं ई-मंडियां

मुंबई January 20, 2010
मुसद्दी लाल खरे (बदला हुआ नाम) वाशी स्थित कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमपी) के अनाज कारोबारी हैं।
वे स्थानीय ब्रोकरों और आढ़तियों के साथ कारोबार कर खुश हैं और रोजाना खरीद और बिक्री के लिए बने ऑनलाइन एक्सचेंज से कारोबार नहीं करना चाहते। वे अनाज ब्रोकरों से रोजाना 10 लाख टन से ज्यादा गेहूं और दाल का कारोबार करते हैं।
वे ऑनलाइन कारोबार में दो कारणों से नहीं आना चाहते। पहला- आढ़तिए अपने साथ 250 ग्राम अनाज लाते हैं, जिससे उन्हें अनाज की गुणवत्ता की परख करने और उसका दाम लगाने में आसानी होती है और दूसरा- यह परंपरागत धारणा है कि इस तरह का कारोबार करोड़ों में फोन पर हो जाता है और उसमें ज्यादा कागजी कार्रवाई की जरूरत बहुत कम पड़ती है।
अगर आपूर्ति किए गए माल में गुणवत्ता में अंतर आता है तो खरे के पास एक बार फिर मोलभाव का अवसर होता है। वे ब्रोकरों और खरीदारों के बीच माध्यम का काम करते हैं, जो एपीएमसी के थोक बिक्रेता और मुख्यत: आढ़तिए और प्रसंस्करण मिलें होती हैं।
खरे कहते हैं कि अगर आप ऑनलाइन स्पॉट एक्सचेंज के माध्यम से खरीदारी करते हैं तो इस तरह का आत्मविश्वास और स्वतंत्रता नहीं पा सकते हैं, जो अभी मुश्किल से एक साल पुराने है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की 60 प्रतिशत से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है।
बावजूद इसके, दोनों हाजिर एक्सचेंज- एमसीएक्स प्रवर्तित नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेज (एनएसईएल) और एनसीडीईएक्स प्रवर्तित एनसीडीईएक्स स्पॉट एक्सचेंज मात्रा और मूल्य के हिसाब से कोई उल्लेखनीय कारोबार करने में सक्षम नहीं हो रहे हैं। ये दोनों 19 कृषि जिसों का कारोबार कर रहे हैं। बहरहाल इन एक्सचेंजों के कुल कारोबार में गैर कृषि जिंस के कारोबार की भूमिका अहम है।
वाशी के गेहूं के कारोबारी भवेश ऐंड कंपनी के विनोद शाह का कहना है कि उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर एक्सचेंजों के कारोबार में पारदर्शिता का अभाव है। गेहूं का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि एमपी सीहोर किस्म की 5 विभिन्न किस्में हैं या लोकवान की 10 विभिन्न किस्में हैं, जिनके दाम में गुणवत्ता के आधार पर 400-500 रुपये क्विंटल का अंतर है।
अगर इन जिंसों का नमूना आपकी मेज पर है तो इनकी कीमतों का अनुमान आप लगा सकते हैं और यह काम आढ़तिए आसानी से करते हैं। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन कारोबार में गुणवत्ता के इस अंतर को परखने का मौका नहीं है, जिसकी वजह से हमें कारोबार करने में दिक्कत आ रही है।
वाशी के दाल के कारोबारी मोहन गोरी भी इससे सहमत हैं। इस समस्या के साथ ऑनलाइन कारोबार में मुनाफे को लेकर भी स्पष्टता नहीं है। गोरी ने कहा कि अगर आप आढ़तियों से खरीदारी करते हैं तो अनाज की सफाई आपके गोदाम में होती है और उसे आप सुविधापूर्वक उपभोक्ताओं को दे सकते हैं। लेकिन अगर आप ऑनलाइन कारोबार करते हैं तो साफ किए गए जिंस की कीमत ज्यादा हो जाती है, जिससे बिक्रेता को मुनाफा होता है, हमें नहीं।
इसके साथ ही अगर आप इसका कारोबार किसी दूसरे कारोबारी से करते हैं तो अगर माल खराब होने पर कारोबार में दिक्कत आती है तो आप आढ़तिए को आसानी से पकड़ सकते हैं। ऑनलाइन कारोबार में केवल कारोबार का प्लेटफार्म मिलता है। न तो बिक्रेता खरीदार को जानता है और न खरीदार बिक्रेता को जानता है। गोरी सवाल करते हैं कि ऐसे में आप करोड़ो रुपये कैसे फंसा सकते हैं?
एनस्पॉट के प्रमुख राजेश सिन्हा ने कहा, 'कारोबार का परंपरागत विश्वास तोड़ना बहुत बड़ी चुनौती है। हम मात्रा के आधार पर कारोबार करते हैं। कारोबारी निश्चितता और अनिश्तिता को लेकर हिचकिचाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म पर तब तक कोई कारोबारी नहीं आना चाहेगा, जब तक कि मुनाफे और कारोबार को लेकर निश्चिंतता न रहे और स्पॉट एक्सचेंज इसके लिए कोशिश कर रहे हैं।'
उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी परंपरागत तरीके छोड़ रहे हैं और बिजनेस में वे राष्ट्रीय और वैश्विक बदलाव के बारे में भी जानना चाहते हैं। सामान्य धारणा है कि स्पॉट एक्सचेंज, वायदा एक्सचेंजों की तरह ही कारोबार करते हैं, यह भी हमारे लिए बड़ी चुनौती है।
एनएससीएल के एमडी और सीईओ अंजनि सिन्हा के मुताबिक, 'एक्सचेंज तमाम नए प्रयोग कर रहा है और तमाम नए उत्पाद पेश कर रहा है। इसमें अनाज की बोली, संयुक्त कारोबार आदि शामिल है, जिससे कारोबारियों की हिस्सेदारी बढ़े। एनएससीएल ने अगले वित्त वर्ष तक कारोबार को बढ़ाकर 100 करोड़ रुपये तक करने का लक्ष्य रखा है, जबकि इस समय का रोजाना कारोबार 10-15 करोड़ रुपये है।' (बीएस हिन्दी)

किसानों ने की गेहूं के दाम 1500 रुपये क्विंटल करने की मांग

नई दिल्ली January 20, 2010
गन्ना मूल्य को लेकर आंदोलन चलाने के बाद किसान अब गेहूं के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी चाहते हैं।
किसान गेहूं के भाव 1500 रुपये प्रति क्विंटल मांगने लगे हैं। उनकी दलील है कि आटे की कीमत 2200 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चली गई है। गेहूं और आटे के भाव में दोगुने से अधिक का अंतर नहीं रहना चाहिए। गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1080 रुपये प्रति क्विंटल है।
किसानों ने यह भी कहा है कि वे गन्ने का भुगतान हर हाल में नकद रूप में लेंगे और इस मामले में वे उत्तर प्रदेश की मिलों के साथ हैं। उत्तर प्रदेश की निजी चीनी मिलें किसानों को नकद भुगतान कर रही है, लेकिन इस मामले को लेकर कई मिलों के खिलाफ सरकारी कार्रवाई की बात सामने आई है।
सोमवार को भारतीय किसान यूनियन की तरफ से इलाहाबाद में आयोजित तीन दिवसीय शिविर में इन मसलों को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया। भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारियों ने इलाहाबाद से बताया कि किसान अब किसी भी उत्पाद की बिक्री वही करेंगे जहां उन्हें अधिक कीमत मिलेगी।
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश की सरकारी चीनी मिलें अब भी 205-210 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान दे रही हैं जबकि निजी मिलें 250 रुपये प्रति क्विंटल तक के मूल्य का नकद भुगतान कर रही हैं। सरकार नकद भुगतान करने वाली मिलों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है और इस बात को किसान बर्दाश्त नहीं करेंगे।
यूनियन के पदाधिकारी हरपाल सिंह ने बताया कि 8 मार्च तक गेहूं के समर्थन मूल्य को बढ़ाकर 1500 रुपये नहीं करने पर किसान एक बार फिर दिल्ली में अपना आंदोलन करेंगे। गौरतलब है कि दो माह पहले किसानों ने गन्ने के भुगतान मूल्य को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर विशाल रैली का आयोजन किया था।
इलाहाबाद के शिविर में किसानों ने अपनी जमीन उद्योग या किसी अन्य काम के लिए सरकार को नहीं देने का भी प्रस्ताव पारित किया। किसानों का कहना है कि अगर कोई उद्योगपति जमीन चाहता हैं तो वह किसानों से सीधे तौर पर बात कर सकता है। बीच में सरकार की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।
किसानों में इस बात को लेकर गुस्सा है कि उनके उत्पादों का उचित मूल्य उन्हें नहीं मिलता और बिचौलिए मोटा मुनाफा कमाते हैं। इसके लिए किसानों ने सरकार की नीतियों को दोषी ठहराया है, जिसके चलते ऐसी स्थिति पैदा हुई है। (बीएस Hindi)

अब दूध के दाम भी बढेंगे

नई दिल्ल्ली। चीनी के बाद अब दूध के दाम भी बढने जा रहे है। कृषि मंत्री शरद पवार ने आज एक नया बयान दिया है जिसमें कहा कि देशवासियों को महंगाई की मार का एक और तोहफा देने का संकेत दे दिया है। पवार ने कहा कि वर्तमान समय में देशभर में दूध की भारी किल्लत है। जिसको देखते हुए सरकार पर दूध के दाम बढाने का दबाव बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दूध की सबसे ज्यादा कमी उतर भारत में हो रही है। बढती महंगाई के बाद देश की जनता पर एक और भार थोपने के लिए पवार ने संकेत दे दिए है। (खास ख़बर)

चमक बढ़ सकती है मेटल कंपनियों में

मेटल इंडस्ट्री में बीते वर्ष के दौरान आई चमक मौजूदा वर्ष में और बढ़ने की उम्मीद है। विश्वव्यापी स्तर पर स्टील की मांग बढ़ रही है और स्टॉक जुटाने की कोशिश हो रही है। अगर विकसित देशों में आर्थिक हालात न सुधरे, तब भी वैश्विक स्तर पर स्टील की मांग और उत्पादन क्षमता 10 फीसदी बढ़ने की संभावना है। इक्विटी रिसर्च कंपनी एवेंडस केपिटल ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है। रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा वर्ष में मेटल सेक्टर के शेयर चमकने की काफी संभावना है। इसमें दिग्गज कंपनियां हिंडाल्को, जेएसडब्लू स्टील, टाटा स्टील और सेल में ज्यादा संभावनाएं है।मेटल इंडस्ट्री पर जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की विकास दर सुधरने से मेटल्स की मांग सुधरेगी। इंडस्ट्री की उत्पादन लागत घटने, कार्य कुशलता बढ़ने और प्रोडक्ट मिक्स बेहतर होने से अगले वित्त वर्ष 2010-11 की पहली छमाही में कंपनियों की कर पूर्व आय बढ़कर 103 डॉलर प्रति आय हो सकती है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि मेटल शेयरों में 34 फीसदी तक का सुधार हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर स्टील की इन्वेंट्री बढ़कर 900 लाख टन तक पहुंच सकती है। दूसरी ओर लंदन मेटल एक्सचेंज में अल्यूमीनियम की इन्वेंट्री घटकर 16 लाख टन रहने का अनुमान है।अल्यूमीनियम की खपत 1.8 फीसदी बढ़ने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में मेटल की मांग मुख्य रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च और आटो सेक्टर की बिक्री पर निर्भर करेगी। देश में स्टील की मांग 12.1त्न और अल्यूमीनियम की मांग 11.3त्न की दर से बढ़ेगी। डॉलर मजबूत होने से घरेलू निर्माताओं की रुपये में औसत आय सुधरेगी। ऐसे में कंपनियों का शुद्ध लाभ अगले दो वर्षो में 44 फीसदी वार्षिक रहने की संभावना है। शुद्ध लाभ बढ़ने से कंपनियों के शेयरों का पीई अनुपात 33 फीसदी तक गिर जाएगा। आपका फायदा..अगले वित्त वर्ष 2010-11 की पहली छमाही में कंपनियों की कर पूर्व आय बढ़कर 103 डॉलर प्रति आय हो सकती है। हिंडाल्को, जेएसडब्लू स्टील, टाटा स्टील और सेल के शेयर चमकने की काफी संभावना है। (बिसनेस भास्कर)

बारिश की कमी से दार्जिलिंग चाय का उत्पादन घटेगा

वर्ष 2009 के दौरान दार्जिलिंग चाय का उत्पादन 15-18 फीसदी घटने का अनुमान है। इसकी वजह सीजन की शुरूआत में बहुत कम बारिश होना है। जर्मनी भारतीय दार्जिलिंग चाय के लिए सबसे बड़े बाजार के रूप में उबर रहा है। दार्जिलिंग टी एसोसिएशन के सचिव संदीप मुखर्जी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि दार्जिलिंग में वर्ष 2008 में करीब एक करोड़ किलो चाय का उत्पादन हुआ था। मौसम अनुकूल न रहने की वजह से वर्ष 2009 में उत्पादन 18 फीसदी तक घटने का अनुमान है। उनके मुताबिक पैदावार कम होने की वजह से इसके मूल्यों में पांच फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इन दिनों दार्जिलिंग चाय के नीलामी भाव 200 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। मालूम हो कि दार्जिलिंग चाय प्रीमियम क्वालिटी की चाय है। इस वजह से 70-75 फीसदी दार्जिलिंग चाय निर्यात होती है। मुखर्जी का कहना है कि जर्मनी, जापान, अमेरिका और ब्रिटेन दार्जिलिंग चाय के प्रमुख आयातक है। इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, रूस और चीन में भी इसकी मांग बढ़ रही है।बाकी 25-30 फीसदी की खपत घरेलू बाजार में होती है। दार्जिलिंग में चाय के करीब 87 बागान हैं। पैदावार में कमी का असर निर्यातकों पर पड़ा है। लेकिन दूसरे चाय उत्पाद देशों में भी पैदावार कम होने के चलते भारतीय निर्यातक अधिक मुनाफा कमा सकते थे। लेकिन देश में भी पैदावार कम होने से वे ऐसा नहीं कर पाए। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 के दौरान बारिश की कमी के दौरान चाय के उत्पादन में लगातार गिरावट आई थी। लेकिन पीक सीजन के दौरान उत्पादन सुधरने से चाय की कुल पैदावार में बहुत अधिक कमी नहीं आई। नीलामी केंद्रों पर चाय के दाम पिछले सीजन के मुकाबले 20 फीसदी तक ज्यादा हैं। जिससे चाय कंपनियों ने भी मूल्यों में 30-40 फीसदी का इजाफा किया है। भारतीय चाय बोर्ड के अनुसार बीते साल जनवरी- नवंबर के दौरान 92.02 करोड़ किलो चाय का उत्पादन हुआ है। (बिज़नस भास्कर)

पश्चिम बंगाल में कच्चे जूट के दाम गिरे

पश्चिम बंगाल की जूट मिलों में 14 दिसंबर से चल रही कर्मचारियों की हड़ताल से कच्चे जूट की कीमतों में पांच फीसदी की गिरावट आई है। दरअसल कर्मचारी जूट मिलों में कर्मचारी महंगाई भत्ता, प्रॉविडेंट फंड, ग्रेज्युटी, बोनस और न्यूनतम मजदूरी के भुगतान की मांग को लेकर कर्मचारी बेमियादी हडताल पर हैं। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के चैयरमेन संजय कजरिया ने बिजनेस भास्कर को बताया पश्चिम बंगाल की 54 में से 50 जूट मिलों में हड़ताल लंबी खिंचने की वजह से कज्‍जो जूट (टीडी-5 किस्म) के दाम 2850 रुपये से घटकर 2700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। हैसियन बैग के दाम 61,000 रुपये प्रति टन चल रहे हैं। जूट मिलों में काम न होने से जूट इंडस्ट्री को काफी नुकसान हुआ है। साथ ही जूट बाजार में किसी भी तरह की हलचल नहीं है। कजरिया का कहना उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इससे इंडस्ट्री को करोड़ों रुपये का नुकसान हो चुका है। उनके अनुसार 2।61 लाख कर्मचारी हडताल पर हैं।वहीं दूसरी ओर जूट मिलों में उत्पादन प्रभावित होने से रबी विपणन सीजन 2010-2011 के लिए जूट बैग की सप्लाई प्रभावित हो सकती है। इस दौरान करीब 10 लाख गांठ बी-टी बैग की आवश्यकता होती है। सरकार ने जूट के उत्पादन में आ रही कमी के मद्देनजर जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की थी। सीजन 2009-10 के लिए सरकार ने एमएसपी को दस फीसदी बढ़ाकर 1375 रुपये प्रति क्विंटल किया। अगले सीजन के लिए एमएसपी में 300 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा होने की संभावना है। चालू सीजन के दौरान देश में जूट का उत्पादन 96.98 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि सरकार ने 102 लाख गांठ का लक्ष्य रखा था। उल्लेखनीय है कि नई फसल के पहले जुलाई में पिछली समान अवधि के मुकाबले जूट के दाम दोगुने बढ़कर 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक चले गए थे। इसकी वजह वायदा बाजार में सट्टेबाजी थी। देश में सबसे अधिक जूट का उत्पादन पश्चिम बंगाल में किया जाता है। यहीं पर सबसे अधिक जूट मिल हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, असम और बिहार समेत अन्य राज्यों में भी जूट का उत्पादन होता है। (बिज़नस भास्कर)

हाइब्रिड सब्जी बीज उत्पादन में निजी कंपनियां सक्रिय

अधिक उत्पादन देने वाले सब्जियों के हाइब्रिड बीजों के बाजार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ घरेलू निजी कंपनियों की भी नजर है। देश में सब्जियों के बीज का कारोबार 1,500 करोड़ रुपये का है। इसमें अधिकतर भागीदारी निजी क्षेत्र की कंपनियों की है। लेकिन अब नए हाइब्रिड बीज विकसित करने पर भी कंपनियां निवेश कर रही हैं। रासी सीड्स प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ। अरविंद कपूर का कहना है कि बंदगोभी और फूलगोभी के करीब 99 फीसदी बीज विदेशों से आयात किए जा रहे हैं। इसके अलावा अन्य सब्जियों के भी अच्छे घरेलू बीज उपलब्ध नहीं हैं। डॉ. कपूर का कहना है कि इसी के मद्देनजर रासी सीड ने हाइवेज नाम का नया ब्रांड लांच किया है। कंपनी का मकसद सब्जी बीज बाजार में 15 फीसदी की हिस्सेदारी प्राप्त करना है। बड़े सब्जी बीज बाजार को देखते हुए विभा आईसीए आर के पूर्व महानिदेशक डॉ. आर. एस. परौदा ने बताया कि खेती के लिए अन्य फसलों की तुलना में सब्जियों के बीज के उत्पादन में कंपनियों को अच्छा फायदा होता है। यही वजह है कि कंपनियां आकर्षित हो रहे हैं। (बिज़नस भास्कर)

गुड़ के चार गुने स्टॉक से भाव पर बना दबाव

प्रमुख उत्पादक मंडी मुजफ्फरनगर में गुड़ का बंपर स्टॉक हो चुका है इसीलिए आवक घटने के बावजूद पिछले तीन-चार दिनों में गुड़ के दाम करीब छह फीसदी घट गए हैं। मंडी में अभी तक 8.97 लाख कट्टे (प्रति कट्टा 40 किलो) का स्टॉक हो चुका है जबकि पिछले साल इस समय मात्र 2.23 लाख कट्टों का ही स्टॉक था। स्टॉक ज्यादा होने से स्टॉकिस्टों की मांग पहले की तुलना में घट गई है, साथ ही चीनी की कीमतों में आई गिरावट का असर भी गुड़ की कीमतों पर पड़ा है। मौसम साफ रहा तो मौजूदा कीमतों में और भी तीन-चार फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि पिछले तीन-चार दिनों से मुजफ्फरनगर मंडी में गुड़ की दैनिक आवक 16-17 हजार कट्टों से घटकर 7-8 हजार कट्टों की रह गई है लेकिन स्टॉकिस्टों की मांग घटने और चीनी की कीमतों में गिरावट आने के कारण गुड़ के दाम घटे हैं। चीनी की कीमतों में पिछले चार-पांच दिनों में करीब 400- 450 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। मंगलवार को मंडी में गुड़ लड्डू के भाव 1210 रुपये से घटकर 1070 रुपये प्रति 40 किलो रह गए। खुरपापाड़ गुड़ के दाम भी 1115 रुपये से घटकर 1015 रुपये प्रति 40 किलो रह गए। मकर-सक्रांति का त्यौहार बीत जाने के बाद गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब की मांग भी कम हुई है। मुजफ्फरनगर मंडी में गुड़ का स्टॉक पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 6.74 लाख कट्टे ज्यादा है। अन्य उत्पादक मंडियों शामली में गुड़ के भाव घटकर 1020-1050 रुपये, हापुड़ मंडी में 1050-1070 रुपये और मुरादनगर में 1020-1080 रुपये प्रति 40 किलो रह गए। इन मंडियों में दैनिक आवक भी घटकर 1500 से 2000 हजार कट्टों की रह गई है। मैसर्स देशराज राजेंद्र कुमार के प्रोपराइटर देशराज ने बताया कि त्यौहारी मांग समाप्त होने के कारण गुड़ की मांग में कमी आई है इसलिए पिछले तीन-चार दिनों में इसकी कीमतों में करीब 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। दिल्ली बाजार में मंगलवार को गुड़ चाकू के भाव घटकर 2750-2800 रुपये और पेड़ी के भाव 2850-2900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। कमजोर मांग को देखते हुए इसकी कीमतों में 100-125 रुपये प्रति क्विंटल की ओर गिरावट आ सकती है। हाजिर में आई गिरावट का असर वायदा बाजार भी पड़ा है। नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) में जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में गुड़ के दाम पिछले दस दिनों में 5.5 फीसदी घटे हैं। सात जनवरी को जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में भाव 1145 रुपये थे जो कि मंगलवार को घटकर 1082 रुपये प्रति 40 किलो रह गए। (बिसनेस भास्कर,......आर अस राणा)

आभूषणों की चमक से लुभाए जा रहे ग्राहक

मौजूदा समय में ब्याह-शादियों के साथ-साथ त्योहारी सीजन भी न होने के बावजूद ज्वेलर्स कतई निराश नहीं हैं। ज्वेलर्स इसे ध्यान में रखकर ग्राहकों को लुभाने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे हैं। तनिष्क ब्रांड अपने ग्राहकों को डायमंड ज्वेलरी की खरीद पर 25 फीसदी तक की छूट दे रहा है। इसी तरह कई ज्वेलर्स एक्सचेंज ऑफर के जरिए ग्राहकों को अपनी ओर खींच रहे हैं। जनवरी महीने में सोने के गहनों की मांग में सुधार तो आया है, लेकिन सोने का दाम ऊंचा होने के कारण मात्रा के लिहाज से कुल बिक्री (वाल्यूम) में कमी देखने को मिली है।तनिष्क के मार्केटिंग हेड गौरव भुवन ने बिजनेस भास्कर को बताया कि हम अपने ग्राहकों को डायमंड की खरीद पर 25 फीसदी तक की छूट दे रहे हैं। यह स्कीम 8 जनवरी को शुरू हुई थी और 15 फरवरी तक चलेगी। इससे तनिष्क ब्रांड वाली डायमंड ज्वेलरी की खरीद में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा हमारी एक्सचेंज पॉलिसी भी चल रही है। ग्राहकों की सोच अब बदल रही है तथा ग्राहक अब सोने के साथ-साथ डायमंड ज्वेलरी की खरीद को भी प्राथमिकता दे रहे हैं। एच। के. इंक की सीईओ नीति जग्गी ने बताया कि हमने अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए एक्सचेंज ऑफर दे रखा है। इससे हमारी खरीद में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। पीपी ज्वेलर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर पवन गुप्ता ने बताया कि ब्रांडेड ज्वेलरी में मार्जिन काफी कम है, जबकि खर्च बढ़े हुए हैं। इसके बावजूद हम ग्राहकों को एक्सचेंज ऑफर दे रहे हैं। दिल्ली बुलियन एंड ज्वेलर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने बताया कि एक्सचेंज ऑफर के तहत ज्वेलर्स ग्राहक से दस फीसदी मेकिंग चार्ज काट कर नए गहने दे देते है। ब्रांडेड ज्वेलरी की खरीद के समय ग्राहक को अनब्रांडेड के मुकाबले करीब तीन से पांच फीसदी ज्यादा रकम चुकानी पड़ती है। अगले दो महीने में केवल तीन दिन ही शादियों का मुर्हत है, लेकिन गहनों की मांग फिर भी अच्छी बनी हुई है। ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि ग्राहकों में जागरूकता बढ़ रही है, इसलिए ग्राहक अब हॉलमार्क गहनों की खरीद ज्यादा कर रहे हैं। यही कारण है कि हॉलमार्क गहनों की बिक्री में पिछले एक साल में करीब 10-15 फीसदी का इजाफा हुआ है। दिल्ली सराफा बाजार में मंगलवार को सोने का भाव 17,100 रुपये प्रति दस ग्राम रहा।आपका फायदाग्राहकों की सोच अब बदल रही है। ग्राहक अब सोने के साथ-साथ डायमंड ज्वेलरी की खरीद को भी प्राथमिकता दे रहे हैं। हॉलमार्क गहनों की खरीद के लिए भी ग्राहक आगे आ रहे हैं। उन्हें इसका लाभ मिल रहा है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)