नई दिल्ली January 23, 2010
उत्तर प्रदेश की कई चीनी मिलें राज्य सरकार की तरफ से कच्ची चीनी के आयात पर लगाई गई पाबंदी के बावजूद ट्रकों के जरिए चीनी की ढुलाई कर रही हैं।
पिछले साल नवंबर की शुरुआत में मायावती सरकार ने राज्य में आयातित कच्ची चीनी लाने पर रोक लगा दी थी, ताकि किसानों को नई पैदावार की अच्छी कीमत मिल सके। इसके लिए सरकार ने रेलवे को निर्देश दिया था कि गन्ने की पेराई शुरू होने तक राज्य में कच्ची चीनी की ढुलाई न करे।
उत्तर प्रदेश के एक चीनी मिल मालिक का कहना है, 'सड़कों के रास्ते चीनी की ढुलाई में प्रति क्विंटल 250-260 रुपये का खर्च आता है। रेलवे से ढुलाई काफी सस्ती है। इसमें महज 120 रुपये का खर्च पड़ता है, पर सरकार ने हमारे पास कोई दूसरा कोई चारा नहीं छोड़ा है। आयातित चीनी नवंबर से बंदरगाहों पर अटकी हुई है।'
मिलों को बंदरगाहों पर चीनी के सुरक्षित भंडारण के लिए 250 रुपये प्रति टन तक का खर्च उठाना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश की मिलों द्वारा आयातित करीब 9,00,000 टन कच्ची चीनी विभिन्न बंदरगाहों पर फंसी है। इस चीनी का सौदा 520-550 डॉलर प्रति टन पर हुआ है।
मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर मिलों को चीनी के आयात पर प्रति टन 690-700 डॉलर की लागत आई है। चीनी मिलें अभी तक सड़कों के जरिए 70,000-80,000 टन चीनी बंदरगाहों से निकालने में सफल हो गई हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से लगाई गई रोक की वजह से चीनी का परिशोधन रुका हुआ है। इससे 2,50,000 टन से भी ज्यादा परिशोधित चीनी बाजार में नहीं आ पा रही है। बढ़ती कीमतों को इससे भी बल मिल रहा है। सीधे मिलों से निकली चीनी का भाव राज्य में 4,300 रुपये प्रति क्विंटल के रिकार्ड स्तर तक जा चुका है।
हालांकि अब यह घटकर 3,950 रुपये पर आ गया है। चीनी की खुदरा कीमतें भी 45-46 रुपये प्रति किलो के रिकार्ड तक पहुंच चुकी हैं। शरद पवार की तरफ से भी राज्य सरकार से रोक हटाने की गुजारिश की गई थी, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हो सका। इस वजह से केंद्र सरकार को उत्पाद शुल्क के मामले में थोड़ी नरमी बरतनी पड़ रही है। केंद्र ने उत्तर प्रदेश की मिलों को अपनी चीनी का परिशोधन दूसरे राज्यों में करने की अनुमति दी है।
घरेलू उत्पादन में कमी को देखते हुए केंद्र सरकार ने चीनी के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी है। राज्य की चीनी कंपनियां जैसे बजाज हिन्दुस्तान, बलरामपुर चीनी, सिंभावली और धामपुर चीनी के शुल्क मुक्त आयात के लिए सौदे कर चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र के बाद चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। सितंबर 2009 को खत्म हुए साल 2008-09 में चीनी का घरेलू उत्पादन 42 फीसदी घटकर 1.5 करोड़ टन रह गया था। इस वजह से चीनी की खुदरा कीमतें दोगुनी से ज्यादा हो गईं। देश में चीनी का उपभोग अनुमान 2.3 करोड़ टन है।
राज्य सरकार के प्रतिबंध के बावजूद मिलें मंगा रही हैं आयातित चीनी
सड़क के रास्ते ढुलाई में प्रति क्विंटल 250-260 रुपये का आता है खर्च उत्तर प्रदेश की मिलों द्वारा आयातित करीब 9,00,000 टन कच्ची चीनी फंसी है बंदरगाहों पर इससे 2,50,000 टन से भी ज्यादा परिशोधित चीनी नहीं आ पा रही है बाजार में सितंबर 2009 में खत्म हुए साल 2008-09 में चीनी का घरेलू उत्पादन 42 फीसदी घटकर 1।5 करोड़ टन रह गया (बीएस हिन्दी)
23 जनवरी 2010
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