नई दिल्ली January 20, 2010
गन्ना मूल्य को लेकर आंदोलन चलाने के बाद किसान अब गेहूं के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी चाहते हैं।
किसान गेहूं के भाव 1500 रुपये प्रति क्विंटल मांगने लगे हैं। उनकी दलील है कि आटे की कीमत 2200 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चली गई है। गेहूं और आटे के भाव में दोगुने से अधिक का अंतर नहीं रहना चाहिए। गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1080 रुपये प्रति क्विंटल है।
किसानों ने यह भी कहा है कि वे गन्ने का भुगतान हर हाल में नकद रूप में लेंगे और इस मामले में वे उत्तर प्रदेश की मिलों के साथ हैं। उत्तर प्रदेश की निजी चीनी मिलें किसानों को नकद भुगतान कर रही है, लेकिन इस मामले को लेकर कई मिलों के खिलाफ सरकारी कार्रवाई की बात सामने आई है।
सोमवार को भारतीय किसान यूनियन की तरफ से इलाहाबाद में आयोजित तीन दिवसीय शिविर में इन मसलों को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया। भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारियों ने इलाहाबाद से बताया कि किसान अब किसी भी उत्पाद की बिक्री वही करेंगे जहां उन्हें अधिक कीमत मिलेगी।
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश की सरकारी चीनी मिलें अब भी 205-210 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान दे रही हैं जबकि निजी मिलें 250 रुपये प्रति क्विंटल तक के मूल्य का नकद भुगतान कर रही हैं। सरकार नकद भुगतान करने वाली मिलों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है और इस बात को किसान बर्दाश्त नहीं करेंगे।
यूनियन के पदाधिकारी हरपाल सिंह ने बताया कि 8 मार्च तक गेहूं के समर्थन मूल्य को बढ़ाकर 1500 रुपये नहीं करने पर किसान एक बार फिर दिल्ली में अपना आंदोलन करेंगे। गौरतलब है कि दो माह पहले किसानों ने गन्ने के भुगतान मूल्य को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर विशाल रैली का आयोजन किया था।
इलाहाबाद के शिविर में किसानों ने अपनी जमीन उद्योग या किसी अन्य काम के लिए सरकार को नहीं देने का भी प्रस्ताव पारित किया। किसानों का कहना है कि अगर कोई उद्योगपति जमीन चाहता हैं तो वह किसानों से सीधे तौर पर बात कर सकता है। बीच में सरकार की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।
किसानों में इस बात को लेकर गुस्सा है कि उनके उत्पादों का उचित मूल्य उन्हें नहीं मिलता और बिचौलिए मोटा मुनाफा कमाते हैं। इसके लिए किसानों ने सरकार की नीतियों को दोषी ठहराया है, जिसके चलते ऐसी स्थिति पैदा हुई है। (बीएस Hindi)
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