मुंबई January 13, 2010
घरेलू बाजार में अरहर की नई फसल आने, दलहन की अच्छी फसल होने की खबर और मिलों में मांग कमजोर पड़ने से दालों की कीमतों में गिरावट देखने को मिल रही है।
पिछले दो महीने के दौरान थोक बाजार में अरहर की कीमतों में 32 फीसदी से ज्यादा की गिरावट हो चुकी है। अरहर की तरह दूसरी दालों में भी भारी गिरावट हुई है। दलहन फसलों में भारी गिरावट के बावजूद खुदरा बाजार में दालों की कीमतों में मुश्किल से 4-6 रुपये की कमी देखने को मिल रही है।
दलहन की थोक बाजार में गिरावट से उपभोक्ताओं को थोड़ा तो फायदा हुआ है लेकिन जिस हिसाब से थोक बाजार में दालों की कीमतों में गिरावट हुई हैं उस तरह खुदरा बाजार में गिरावट न होने से उपभोक्ताओं को इर्स गिरावट का पूरा फायदा नहीं मिल पा रहा है।
नवंबर महीने में थोक बाजार में अरहर 5,900 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही थी लेकिन दो महीने के अंदर कीमतें 32 फीसदी से भी ज्यादा गिरकर 4000 रुपये प्रति क्ंविटल पर पहुंच गई है। यानी 1900 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट हो चुकी है।
दूसरी तरफ खुदरा बाजार में नवंबर महीने में अरहर दाल 91 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर बेची जा रही थी और इस समय भी 86 रुपये किलोग्राम से कम पर अरहर दाल मिलनी मुश्किल हो रही है। यही हाल दूसरी दालों का भी है। चने का भाव 2600 रुपये से गिरकर 2350 रुपये प्रति क्ंविटल हो गया है।
फरवरी तक चने की नई फसल बाजार में आनी शुरू हो जाएगी, जबकि ऑस्ट्रेलिया से भारी मात्रा में आयात किया गया चना मुंबई के बाजारों में पहुंच चुका है जिसके चलते वर्तमान कीमतों में अभी और गिरावट होना तय माना जा रहा है, लेकिन चना दाल की खुदरा कीमतों में भी कोई खास फर्क नहीं देखने को मिल रहा है।
नवंबर में चना दाल 40 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेची जा रही थी जो अब 37 रुपये पर बिक रही है। यही हाल उड़द और मसूर दाल का है। उड़द दाल 76 रुपये से घटकर 74 रुपये और मसूर 68 रुपये से गिरकर 63 रुपये हो गई है।दलहन की कीमतों में गिरावट के बारे शेयरखान कमोडिटी के मेहुल अग्रवाल कि सबसे ज्यादा अरहर की कीमतें ऊपर गई थी जिसकी नई फसल बाजार में आना शुरू भी हो गई है।
इसके अलावा आयातित दाल भी बाजार में पहुंच चुकी है जिसके कारण जमाखोरों और सटोरियों को अपना माल बाजार में उतारने के लिए मजबूर होना पड़ा है। परिणामस्वरुप कीमतों में गिरावट देखने को मिल रही है। कीमतों में अभी और गिरावट देखने को मिलेगी, क्योंकि चालू रबी सीजन के दौरान दलहन का रकबा पिछले साल से काफी ज्यादा है।
कृषि मंत्रालय द्वारा सात जनवरी तक बुआई के जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार अभी तक रबी सीजन के दौरान 133.04 लाख हेक्टेयर पर दलहन फसलों की बुआई हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 124.79 लाख हेक्टेयर पर दलहन फसलों की बुआई की गई थी।
रबी सीजन की सबसे महत्वपूर्ण दलहन फसल चने का रकबा खूब बढ़ा है जिससे पैदावार भी अधिक होगी। इसका फर्क कीमतों पर पड़ेगा और कीमतों में वर्तमान भाव से करीबन 10-12 फीसदी तक की अभी और गिरावट देखने को मिल सकती है।
खुदरा बाजार में पहले से चढ़ी कीमतों पर खास असर नहीं पड़ा है। इस पर खुदरा कारोबारियों का कहना है कि हमारे पास जो पहले से माल है, जब तक वह नहीं खत्म होता है कीमतों में कमी कैसे की जा सकती है। क्योंकि हमने खरीद बढ़ी हुई कीमतों पर की है इसलिए हमको मजबूरी में महंगी दर पर बिक्री करना पड़ रहा है।
दूसरी बात जिस हिसाब से थोक कारोबारी कीमतें घटा सकते हैं उस हिसाब से खुदरा कारोबारी कीमतों में कमी नहीं कर सकते हैं क्योंकि ट्रांसपोर्ट खर्च और दुकान का भाड़ा अब पहले से ज्यादा हो चुका है। थोक कारोबारी और खुदरा कारोबारियों के अपने-अपने तर्क हैं लेकिन बीच में पिस रहा है आम उपभोक्ता।
थोक बाजार में कीमतों में तेज गिरावट
दाल 12 जनवरी 12 नंवबरअरहर 4000 5900चना देसी 2350 2600चना 2230 2450मसूर 3860 5064उड़द 4200 5450मूंग 6000 7600नोट-कीमत रुपये प्रति क्विंटल (बीएस हिन्दी)
13 जनवरी 2010
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