मुंबई January 06, 2010
रबी सीजन की सबसे महत्वपूर्ण फसल गेहूं की बुआई लगभग पूरी हो चुकी है।
अच्छे मौसम के चलते इस बार गेहूं का रकबा बढ़ा है। इस साल गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी और सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा करने से भी किसान गेहूं की बुआई के लिए प्रोत्साहित हुए हैं।
रकबे में बढ़ोतरी और अच्छी फसल होने से इस बार उत्पादन भी ज्यादा होने की उम्मीद की जा रही है। उत्पादन में बढ़ोतरी के बावजूद माना जा रहा है कि किसानों के लिए इस साल भी गेहूं की फसल घाटे का सौदा नहीं साबित होगी।
पिछले एक साल के दौरान गेहूं की कीमतों में 20 फीसदी तक की उछाल देखने को मिली है। हालांकि गेहूं की अच्छी फसल की खबर और सरकारी गेहूं की धमक से इस समय गेहूं की कीमतें गिरने लगी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि किसानों का माल जब बाजार में आएगा तो कीमतें गिरने से किसानों को कहीं नुकसान न उठाना पड़ जाए।
इस सवाल पर शेयरखान के कमोडिटी हेड मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि किसानों को नुकसान होने का सवाल ही नहीं उठता है क्योंकि सरकार ने इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले साल से भी ज्यादा तय किया है।
एनसीडीईएक्स की रिसर्च एसोसिएट रुचि जैन के अनुसार देश के अंदर पिछले पांच सालों में गेहूं का उत्पादन 17 फीसदी बढ़ा है जबकि इस प्रमुख खाद्यान्न के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 70 फीसदी से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है।
पिछले साल देश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था और सरकार ने भी रिकॉर्ड खरीदारी की थी। यही वजह है कि इस समय भी सरकारी गोदामों में स्टॉक की कमी नहीं है। एक दिसंबर तक सरकारी गोदामों में 252 लाख टन गेहूं का स्टॉक था। रबी सीजन में गेहूं का रकबा बढ़ने की वजह से उम्मीद की जा रही है कि इस बार गेहूं का उत्पादन पिछले सीजन से भी ज्यादा होगा।
शेयरखान कमोडिटी रिसर्च हेड मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि खाद्यान्न में सबसे प्रमुख जिंस गेहूं की अच्छी पैदावार होने और सरकार द्वारा रिकॉर्ड खरीदारी करने के बावजूद 2009 में इसके भाव 20 फीसदी तक चढ़े। इसकी मुख्य वजह सटोरियों की सक्रियता और सरकार की ढुलमुल नीति रही है।
पिछले साल देश में गेहूं की कुल पैदावार 805 लाख टन की हुई थी जबकि साल भर में कुल खपत 700 लाख टन की ही है। जिसमें से सरकार ने 320 लाख टन गेहूं की खरीद 1080 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से की थी। अग्रवाल कहते हैं कि अगर समय रहते बाजार में पर्याप्त मात्रा में गेहूं उतारा जाता तो गेहूं की कीमतें 1200 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं होती।
वैश्विक स्तर पर भी इस साल गेहूं की फसल अच्छी होने की बात कही जा रही है। यूएसडीए की रिपोर्ट के अनुसार इस साल गेहूं का उत्पादन 6739 लाख टन होने का अनुमान है जबकि साल भर में 6467 लाख टन गेहूं की आवश्यकता होती हैं।
कृषि जिंसों की चाल पर नजर रखने वालों का कहना है कि गेहूं की कीमतें अब ऊपर नहीं जाने वाली हैं। सरकार के ऊपर भी दबाव है कि वह ज्यादा से ज्यादा माल बाजार में उतारे, क्योंकि नई फसल की खरीद के लिए सरकारी गोदामों को खाली करना है। इस बात को सटोरिये भी समझ रहे हैं।
नई फसल आने में अभी दो तीन महीने का समय है। ऐसे में जमाखोर भी अब अपना माल बेचने की फिराक में लगे हुए है जिसके चलते कीमतें गिरकर 1200 रुपये प्रति क्ंविटल के स्तर तक आ सकती हैं।
दूसरी तरफ सरकार बाजार में गेहूं पहुंचाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक टे्रडिंग का सहारा लेने जा रही है गेहूं के बड़े उपभोक्ता जैसे फ्लोर मिलों को एनसीडीईएक्स और एमसीएक्स जैसे कमोडिटी एक्सचेंजों के माध्यम से सरकारी गेहूं की बिक्री शुरू करने की बात की जा रही है, जिससे कीमतों में गिरावट आना लाजमी है।
गेहूं की चाल
साल न्यूनतम उत्पादन समर्थन मूल्य (लाख टन) 2005-06 650 693.502006-07 750 758.102007-08 1000 785.702008-09 1080 805.802009-10 1100 820.00 (अनुमानित)(रुपये प्रति क्विंटल) आंकडों का स्त्रोत एनसीडीईएक्स (बीएस हिन्दी)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें