आर एस राणा
नई
दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश के दूसरे चरण में नगीना,
बुलंदशहर, आगरा और हाथरस सुरक्षित सीट है, इसके अलावा अमरोहा, अलीगढ़,
मथुरा और फतेहपुर सीकरी समेत 8 सीटों पर चुनाव होना है। 2014 के लोकसभा
चुनाव में सभी आठ सीटों को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जीतने में कामयाब
रही थी लेकिन इस बार सपा—बसपा और आरएलडी में हुए महागठबंधन के कारण जातीय
समीकरण उम्मीदवारों की जीत तय करेंगे।
उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा
सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान होंगे। दूसरे चरण में बसपा-सपा-आरएलडी की
अगुवाई हाथी कर रहा है। आठ में से बसपा 6 सीटों पर चुनावी मैदान में है और
सपा-आरएलडी एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। इसलिए दूसरे चरण का मतदान
मायावती बनाम नरेंद्र मोदी के बीच चुनावी मुकाबला माना जा रहा है। इस दौर
में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर और भाजपा की हेमा मालिनी की
प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है।
बुलंशहर में जीत का अंतर हो सकता है कम
बुलंदशहर
में मुख्य मुकाबला भाजपा के भोला सिंह, गठबंधन के योगेश वर्मा और कांग्रेस
के बंसी सिंह में है। भोला सिंह 2014 में यहां से चार लाख से ज्यादा वोटों
से जीते थे। इस सीट पर 17 लाख से अधिक वोटर हैं। इनमें 9 लाख से अधिक
पुरुष और करीब 8 लाख महिला वोटर हैं। बुलंदशहर में करीब 77 फीसदी हिंदू और
22 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती हैं। बुलंदशहर लोकसभा के अंतर्गत कुल 5
विधानसभा अनूपशहर, बुलंदशहर, डिबाई, शिकारपुर और स्याना विधानसभा सीटें आती
हैं। 2017 विधानसभा चुनाव में इन सभी 5 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की
है। बुलंदशहर के राहुल भल्ला ने बताया कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 6
लाख वोट मिले थे, इस बार सपा—बसपा और आरएलडी का महागठबंधन है, इसलिए जीत
का अंतर कम हो सकता है।
अमरोहा सीट पर महागठबंधन से मिल रही है चुनौती
उत्तर
प्रदेश में दूसरे चरण में जाटों के मतों की अमरोहा, अलीगढ़ और मथुरा की
सीटें बची है। इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अमरोहा सीट पर सबकी नजर
रहेगी। मुस्लिम और जाट बाहुल्य इस सीट की पहचान गन्ना उत्पादन के रूप में
भी होती है। अमरोहा जिले के देहरा चक गांव के गन्ना किसान जोगिंद्र आर्य ने
बताया कि चीनी मिलों पर गन्रा किसानों का बकाया बढ़ रहा है, लेकिन यह
मुद्दा इस बार चुनाव में नहीं है। गठबंधन होने के कारण चुनाव जातीय समीकरण
में उलझ गया है। अमरोहा लोकसभा सीट से बसपा ने जेडीएस से आए कुंवर दानिश को
मैदान में उतारा है। वहीं, भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद कंवर सिंह तंवर पर
दांव लगाया तो कांग्रेस ने सचिन चौधरी पर दांव खेला है। अमरोहा सीट के
जातीय समीकरण को देखें तो करीब 5 लाख मुस्लिम, 2.5 लाख दलित, 1 लाख गुर्जर,
1 लाख कश्यप, 1.5 लाख जाट और 95 हजार लोध मतदाता हैं।
नगीना सीट पर मुस्लिम वोटर करेंगे भाग्य का फैसला
नगीना
लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, गठबंधन में यह सीट बसपा के
खाते में गई है। यहां से बसपा ने गिरीश चंद्र, भाजपा ने मौजूदा सांसद यशवंत
सिंह और कांग्रेस ने पूर्व आईएएस आरके सिंह की पत्नी ओमवती को उतारा है।
नगीना सीट पर गठबंधन और कांग्रेस दोनों की नजर दलित और मुस्लिम वोटों पर है
जबकि भाजपा राजपूत और गैर जाटव दलित के साथ-साथ जाट मतदाताओं के सहारे
दोबारा जीत दर्ज करना चाहती है। लेकिन 6 लाख मुस्लिम वोटर इस सीट पर
किंगमेकर की भूमिका में हैं।
कांग्रेस के राजबब्बर त्रिकोणीय मुकाबले में
फतेहपुर
सीकरी लोकसभा सीट का मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है। यहां से भाजपा
ने अपने मौजूदा सांसद बाबूलाल चौधरी का टिकट काटकर राजकुमार चहेर को उतारा
है, जबकि कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर और बसपा से गुड्डु पंडित
मैदान में हैं। इस सीट पर दो लाख जाट मतदाताओं के देखते हुए भाजपा ने जाट
समुदाय पर दांव खेला है, जबकि तीन लाख ब्राह्मण मतों को ध्यान रखकर बसपा ने
ब्राह्मण कार्ड खेला है। ऐसे में कांग्रेस के राजब्बर के सामने सबकी बड़ी
चुनौती जातीय समीकरण को तोड़ना है।
महागठबंधन के उम्मीदवार से हेमा मालिनी को मिल रही है कड़ी टक्कर
मथुरा
लोकसभा सीट से भाजपा ने एक बार फिर हेमा मालिनी को उतारा है, जबकि आरएलडी
से कुंवर नरेंद्र सिंह और कांग्रेस से महेश पाठक मैदान में हैं। यहां करीब 4
लाख जाट समुदाय के मतदाता हैं, जबकि 2.5 लाख ब्राह्मण और 2.5 लाख राजपूत
वोटर भी हैं तथा इतने ही दलित मतदाता हैं। इस सीट पर ढेड़ लाख के करीब
मुस्लिम हैं। आरएलडी उम्मीदवार राजपूत के साथ-साथ जाट, मुस्लिम और दलितों
को साधने में कामयाब रहते हैं तो फिर भाजपा के लिए कठिन हो जायेगा।
कारोबारी संदीप बंसल ने बताया कि पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हेमा
मालिनी 3.5 लाख वोटों से जीती थी, लेकिन इस बार महागठबंधन होने के कारण
आरएलडी के उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिल रही है।
अलीगढ़ में होगा त्रिकोणीय मुकाबला
अलीगढ़
लोकसभा सीट से भाजपा ने मौजूदा सांसद सतीश गौतम और कांग्रेस ने चौधरी
बिजेन्द्र सिंह को मैदान में उतारा है जबकि बसपा ने अजीत बालियान को उतारा
है। जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो यादव, ब्राह्मण, राजपूत और जाट के
करीब डेढ़-डेढ़ लाख वोट हैं जबकि दलित 3 लाख और 2 लाख के करीब मुस्लिम
मतदाता हैं। वोट बैंक की नजर से देंखे तो बसपा और कांग्रेस दोनों ने जाट
उम्मीदवार उतारे हैं तो भाजपा ने ब्राह्मण पर दांव खेला है। इसलिए अलीगढ़
में त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है।
हाथरस में गठबंधन बनाम भाजपा
हाथरस
लोकसभा सीट से सपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री रामजीलाल सुमन को मैदान उतारा
है जबकि भाजपा ने राजवीर सिंह बाल्मीकि और कांग्रेस ने त्रिलोकीराम दिवाकर
को मैदान में उतारा है। हाथरस सीट जाट बहुल मानी जाती है, इस सीट पर करीब 3
लाख जाट, 2 लाख ब्राह्मण, 1.5 लाख राजपूत, 3 लाख दलित, 1.5 लाख बघेल और
1.25 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। ऐसे में गठबंधन होने के कारण जाट, मुस्लिम और
दलित मतदाता एकजुट हो गए तो भाजपा के लिए चुनौती बन जायेगी।
आगरा में भाजपा और बसपा में जंग
आगरा
सुरक्षित सीट पर बसपा ने मनोज सोनी, भाजपा ने एसपी सिंह बघेल और कांग्रेस
ने प्रीता हरित को मैदान में उतारा है। भाजपा के एसपी बघेल सपा और बसपा में
रह चुके हैं, ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं में अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है।
इस तरह से भाजपा के साथ-साथ बघेल दूसरे दलों के वोट बैंक को साधने में
कामयाब रहते हैं तो एक बार फिर कमल खिल सकता है। हालांकि कांग्रेस प्रदेश
अध्यक्ष राज बब्बर भी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। ऐसे में उनका भी
अपना एक आधार है जबकि दलित और मुस्लिम के सहारे बसपा भी जीत की आस लगाए
हुए है। .............. आर एस राणा
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