नई दिल्ली October 25, 2009
अब राज्यों के गन्ने के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करने से उनके बजट पर असर पड़ सकता है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि अगर राज्य सरकारें गन्ने का दाम उसके द्वारा तय की गई कीमत से ज्यादा घोषित करती हैं तो उसका भुगतान राज्यों को खुद करना पड़ेगा। केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत प्रदत्त अधिकार से एक अध्यादेश जारी किया।
इसके माध्यम से शुगरकेन (कंट्रोल) ऑर्डर 1966 में संशोधन किया गया ताकि सांविधिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) की जगह 'उचित और लाभकारी मूल्य' (फेयर ऐंड रेम्युनेरेटिव प्राइस-एफआरपी) ले सके जिसे समय समय पर तय किया जाएगा।
पिछली 22 अक्टूबर को हुए इस संशोधन आदेश में यह भी कहा गया, 'अगर कोई भी अथॉरिटी या राज्य सरकार एफआरपी से ज्यादा दाम की घोषणा करती है... तो उस अथॉरिटी या राज्य सरकार को उस राशि का भुगतान करना होगा, जो उसने तय मूल्य के ऊपर घोषित किया गया है।'
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु 5 ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) की घोषणा की है। वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और बिहार एसएमपी का पालन कर रहे हैं। सामान्यतया एसएपी, एसएमपी से ज्यादा और राजनीति से प्रेरित होता है।
एसएपी के आधार पर भुगतान करने वाली मिलें लामबंद हो गई हैं और वे इस मामले में पारदर्शिता की मांग कर रही हैं। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकारों को एसएपी तय करने का पूरा हक है। नए कदम से उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य उच्च एसएपी तय करने से हतोत्साहित होंगे।
बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी मिल्स जैसी प्रमुख कंपनियां, जो एसएपी के आधार पर किसानों को भुगतान करती हैं, अब महाराष्ट्र और कर्नाटक में संचालित कंपनियों के बराबर ही मूल्य भुगतान का फायदा ले सकेंगी।
यह संशोधन, अधिनियम के सेक्शन 3 के तहत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र को यह अधिकार है कि कीमतें ज्यादा होने से रोकने के लिए और आवश्यक जिंसों के उचित वितरण वह नियम बना सकती है।
उत्तर प्रदेश की एक बड़ी चीनी मिल के अधिकारी ने कहा, ' एकसमान और स्थिर दाम से किसानों को उचित समय पर भुगतान सुनिश्चित हो सकेगा। पिछले दिनों में चीनी मिलों के मुनाफे के बारे में सोचे बगैर एसएपी में बार-बार बढ़ोतरी की गई, जिससे भुगतान संबंधी दिक्कतें आईं।
एफआरपी की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि यह एसएपी से कम ही होगा, जिससे उन राज्यों की मिलों को फायदा होगा, जो एसएपी के आधार पर भुगतान करती हैं।' इस संशोधन से केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को भी राहत मिलेगी, जो अलग-अलग दरों पर लेवी दरें घोषित करने के दबाव में था। सर्वोच्च न्यायालय ने एसएपी के मुताबिक लेवी चीनी के मूल्य भुगतान का आदेश दिया था। (बीएस हिन्दी)
26 अक्तूबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें