नई दिल्ली : खरीफ की फसल पर सूखा और बाढ़ की मार पड़ने के बावजूद उम्मीद की जा रही है कि प्याज की कीमतें इस साल अब ग्राहकों को नहीं रुलाएंगी। उम्मीद है कि इस साल प्याज की पैदावार पिछले साल का 80 लाख टन का स्तर छू सकती है। पिछले एक महीने में प्याज की कीमतें 65 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं, लेकिन अब प्याज की पैदावार बढ़ने से कीमतों में नरमी आ सकती है। नेशनल हॉर्टीकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन के डायरेक्टर सतीश भोंडे ने कहा, 'मेरा मानना है कि इस साल प्याज की पैदावार पिछले साल के 75-80 लाख टन के स्तर तक पहुंच सकती है।' भोंडे का कहना है कि प्राकृतिक आपदा से प्याज की कीमतें बढ़ने की जो आशंका थी, उसमें अब कमी आ सकती है। दिल्ली के थोक बाजार में अभी प्याज का भाव 1,750 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि एक महीने पहले यह कीमत 1,063 रुपए प्रति क्विंटल थी।
फसलों पर सूखे के असर के बारे में भोंडे का कहना है कि प्याज का उत्पादन करने वाले राज्यों के गैर पारंपरिक इलाकों में भी प्याज की बुआई से सूखे से हुआ नुकसान कम हुआ है। अधिकतर किसानों ने सूखा प्रभावित इलाकों में प्याज की खेती की है। हालांकि, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में खड़ी खड़े फसलों को बाढ़ की वजह से नुकसान हुआ है। भोंडे का कहना है कि इससे प्याज की बहुत ज्यादा कमी नहीं होगी क्योंकि महाराष्ट्र में प्याज की पैदावार सबसे ज्यादा होती है और वहां बाढ़ से कोई नुकसान नहीं हुआ है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल महाराष्ट्र में 27 लाख टन और कर्नाटक में 3.7 लाख टन और आंध्र प्रदेश में 2 लाख टन प्याज की पैदावार हुई थी। देश में प्याज की कुल फसल का 40 फीसदी खरीफ सीजन में और खरीफ के अंत तक उगाया जाता है, जबकि शेष की बुआई अक्टूबर से शुरू होने वाले रबी सीजन में शुरू होता है। (ई टी हिन्दी)
20 अक्तूबर 2009
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