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30 अक्टूबर 2009

गन्ना मूल्य पर किसान व सरकार आमने-सामने

चालू पेराई सीजन (2009-10) में गन्ने की कीमतों को लेकर उत्तर प्रदेश के किसानों ने आंदोलन तेज कर दिया है। केंद्र सरकार की नई मूल्य प्रणाली फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) को किसानों ने नकार दिया है। किसान संगठनों ने गुरुवार को बरेली में बैठक कर एकमत से निर्णय लिया कि वे चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों को 280 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कम भाव पर गन्ना नहीं देंगे। ऐसा नहीं करने पर किसान गन्ना विकास सहकारी समिति से अपनी सदस्यता छोड़ने की हद तक जाने को तैयार हैं। एक नवंबर को किसान संगठन गढ़ मुक्तेश्वर में बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे।लंबे समय से गन्ना किसानों के हितों की लड़ाई लड़ रहे राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वी एम सिंह ने बरेली से बिजनेस भास्कर को फोन पर बताया कि किसानों ने गन्ने का बिक्री मूल्य 280 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इस भाव पर अगर चीनी मिलें गन्ने की खरीद करती हैं तब तो ठीक है, नहीं तो किसान चीनी मिलों को गन्ना नहीं बेचेंगे। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष महेंद्र टिकैत ने फोन पर बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो किसान गन्ना विकास सहकारी समिति की सदस्यता को भी छोड़ देंगे। गन्ना किसानों और मिलों के बीच गतिरोध बनने से चीनी मिलों में गन्ने की पेराई देर से शुरू होने की आशंका बन गई है। इसका असर चीनी की कीमतों पर पड़ना शुरू हो गया है। चीनी के एक्स-फैक्ट्री मूल्य बढ़कर 3100 रुपये और थोक बाजार में 3200 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर हो गए हैं। फुटकर बाजार में भी चीनी के दाम 34-35 रुपये प्रति किलो से ज्यादा हो गए हैं।चालू खरीद सीजन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 162।50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। वहीं, पंजाब और हरियाणा में राज्य सरकारों ने एसएपी 170-180 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। एफआरपी के तहत गन्ने का समर्थन मूल्य 129.84 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। केंद्र सरकार ने तय किया है कि एफआरपी से अधिक दाम तय करने की स्थिति में राज्य सरकारों को ही यह अधिक कीमत किसानों को देनी होगी। गुरुवार को ही केंद्र ने गन्ने का एफआरपी 129.84 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। ऐसे में इन राज्यों को 50 रुपये प्रति क्विंटल तक किसानों को देना होगा जिसके लिए राज्य तैयार नहीं हैं। इसके चलते आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर किसानों और चीनी मिलों के बीच भी टकराव बढ़ने की आशंका है क्योंकि कुछ मिलें एफआरपी से ज्यादा दाम देने की इच्छुक नहीं हैं। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)

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