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26 अक्टूबर 2009

गन्ना मूल्य पर केंद्र और राज्यों के बीच होगी जंग

नई दिल्ली/चंडीगढ़/भोपाल। केंद्र सरकार ने एक ही झटके में राज्यों से गन्ना मूल्य तय करने का अधिकार छीन लिया है। इसके लिए गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 में संशोधन किया गया है। खाद्य मंत्रालय द्वारा 22 अक्तूबर को जारी अधिसूचना के जरिये गन्ना नियंत्रण आदेश में खंड 3(ख) जोड़ा गया है। इसके मुताबिक अगर राज्य सरकारें, केंद्र सरकार द्वारा 21 अक्तूबर को जारी अध्यादेश के तहत गन्ने के लिए तय की जाने वाली उचित और लाभकारी कीमत (एफआरपी) से अधिक दाम तय करती हैं, तो ऐसी स्थिति में राज्यों को ही इस अंतर का भुगतान किसानों को करना होगा।
यही नहीं, राज्यों द्वारा राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) तय करने के लिए आधार का काम करने वाला गन्ना नियंत्रण आदेश के खंड पांच(क) (जिसे भार्गव फामरूला कहा जाता है) को भी इस आदेश के जरिए हटा दिया गया है। भार्गव फामरूले के तहत केंद्र द्वारा तय गन्ने के न्यूनतम वैधानिक मूल्य (एसएमपी) के ऊपर दाम देने के लिए किसानों को चीनी मिलों के मुनाफे का आधा हिस्सा बांटने का प्रावधान था।केंद्र सरकार के इस कदम के चलते अब राज्य सरकारें एफआरपी से अधिक दाम तय नहीं कर सकेंगी। अगर वह ऐसा करती हैं तो उन्हें भारी वित्तीय बोझ के लिए तैयार रहना होगा। इस कदम के बाद चीनी मिलों पर भी एसएपी का भुगतान करने की कानूनी बाध्यता नहीं रह गई है।
लेकिन केंद्र का यह कदम आसानी से राज्यों के गले उतरने वाला नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार ने चालू पेराई सीजन (2009-10) के लिए गन्ने के दाम 162.50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय किए हैं। पंजाब और हरियाणा ने इसके दाम 170-180 रुपये प्रति क्विंटल रखे हैं। तमिलनाडु ने एसएपी 143.74 रुपये निर्धारित किया है। जबकि अधिकारी एफआरपी 125 से 130 रुपये तय किए जाने की बात कर रहे हैं। ऐसे में इन राज्यों को किसानों को 50 से 60 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान अपने खजाने से करना होगा।
गन्ने की ये कीमतें केंद्र सरकार द्वारा तय किए वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) 107.76 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक है, जो 9.5 फीसदी के रिकवरी आधार के लिए है। इसकी जगह ही केंद्र एफआरपी लागू करेगा। केंद्र का कहना है कि नई मूल्य प्रणाली गन्ने के दाम में एकरूपता लाने के लिए सुधारवादी कदम है। लेकिन यह सुधार किसानों और राज्य सरकारों के गले आसाने से उतरने वाला नहीं है। पिछले साल जब चीनी मिलों ने गन्ने का मूल्य 140 रुपये से 165 रुपये प्रति क्विंटल के बीच दिया था, तब चीनी का एक्स फैक्टरी मूल्य 2,000 से 2,200 रुपये प्रति क्विंटल था। अब यह 3,000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक है और चीनी की खुदरा कीमतें भी 24 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 34 रुपये किलो तक हो गई हैं। ऐसे में सरकार का यह कदम किसानों के नए आंदोलन का कारक भी बन सकता है।
केंद्र के इस कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पंजाब के कृषि मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह ने कहा कि केंद्र सरकार ही किसानों को गन्ने की कीमतों के बीच के अंतर का भुगतान कर। लंगाह का कहना है कि राज्य सरकार पहले ही महंगी बिजली खरीद कर किसानांे को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली उपलब्ध करा रही है। अब वह किसानों को अतिरिक्त मूल्य की भरपाई करने की स्थिति में नहीं है।
मध्य प्रदेश के किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री डॉ। रामकृष्ण कुसमारिया ने कहा कि सरकार जल्द ही इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएगी, जो गन्ना किसानों को हित में होगा। उन्होंने कहा, हम किसानों को परिवहन अनुदान पहले से ही दे रहे हैं। एसएपी तय करने से पहले सरकार विभागीय अधिकारियों और वित्त मंत्रालय से भी परामर्श करगी। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार की ओर से अब तक किसानों को एक निश्चित दर पर खेत से शुगर मिल तक गन्ना लाने के लिए परिवहन अनुदान दिया जाता है। बीते चार वर्षो से राज्य सरकार ने राज्य परामर्श मूल्य घोषित नहीं किया है। (बिज़नस भास्कर)

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