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30 अक्टूबर 2009

भारत में ड्यूटी फ्री चावल आयात की मंजूरी से विश्व बाजार सक्रिय

बाढ़ और सूखे से भारत ही नहीं चीन और थाईलैंड में भी लाखों टन चावल की पैदावार प्रभावित हुई है। इससे दुनिया के सबसे गरीब देशों के सामने चावल की अत्यधिक ऊंची कीमत और कमी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। बड़े उत्पादक देश उत्पादन में कमी को पूरा करने के लिए क्या कदम उठाते हैं, इसी से गरीब देशों को संकट से राहत मिल पाएगी। भारत ने पिछले दिनों ड्यूटी फ्री चावल आयात की अनुमति दे दी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार इस फैसले खासा प्रभावित होता दिख रहा है।परंपरागत रूप से विश्व के शीर्ष चावल निर्यातकों में शामिल भारत पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्रों में सूखे से भारी नुकसान के कारण उत्पादन में होने वाली कमी पूरा करने के लिए भारत अगले वर्ष 11 से 38 लाख टन तक चावल आयात कर सकता है। अमेरिकी चावल फेडरेशन के वाइस प्रेसीडेंट जिम गुइन के अनुसार विश्व के चावल बाजार के लिए भारत में उत्पादन गिरना बहुत महत्वपूर्ण घटना है। भारत अपने यहां सुलभता बढ़ाने के लिए चावल का आयात शुरू कर चुका है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार का समीकरण ही बदल गया है। एक प्रमुख निर्यातक देश (भारत) अब आयातक बन चुका है। भारत का आयात बाजार में उतरना इसलिए भी परेशान करने वाली बात है क्योंकि थाईलैंड के ग्रेड बी चावल में तेजी आ चुकी थी। पिछले महीने इसके भाव 530 डॉलर प्रति टन थे। हालांकि पिछले वर्ष के खाद्यान्न संकट के दौरान थाई राइस के भाव 1,000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गए थे। मौजूदा भाव उससे काफी कम हैं। गुइन ने कहा कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिहाज से दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चीन निर्यात करेगा या नहीं। थाईलैंड के बंपर स्टॉक की विश्व बाजार में बिक्री पर भी काफी निर्भरता है। चीन के पास विश्व के चावल का करीब 50 फीसदी स्टॉक है और वह बीच-बीच में निर्यात करता रहता है। यूएस राइस प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट और सीईओ वाट रॉबट्र्स ने एक अंतरराष्ट्रीय चावल सम्मेलन के दौरान कहा कि वैश्विक बाजार में खाद्यान्न संकट हालात एक बार फिर बनते दिखाई दे रहे हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि चावल के कम उत्पादन का तात्कालिक हल ढूंढने के लिए भारत गेहूं के ज्यादा उपभोग की ओर लौट सकता है। हालांकि गेहूं का उपभोग बढ़ाने से भी वह चावल आयात को नहीं रोक पाएगा। (बिज़नस भास्कर)

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