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20 अक्टूबर 2009

बढ़ती कीमतों से जिंस बाजार में रहा धमाका

October 19, 2009
पिछली दीवाली से लेकर इस दीवाली तक प्रमुख कृषि जिंसों की कीमतों में लगातार तेजी रही। चाहे वह चीनी हो या दाल या फिर आलू-प्याज। यहां तक कि अगस्त तक सुस्त गेहूं भी अन्य जिंसों की चाल में तेजी देख बाजार में सक्रिय हो चला है।
दूसरी तरफ सोने-चांदी ने तो तमाम रिकार्ड ही तोड़ दिए। वायदा बाजार में ये दोनों ही जिंस सटोरियों की पहली पसंद बनकर उभरे हैं। इन जिंसों का जायजा ले रहे हैं
चमकती चीनी
चीनी की कीमतों ने गत दीपावली से इस दीपावली के दौरान ऊंची छलांग लगाई है। हालांकि इस बढ़ोतरी के संकेत पिछले साल अक्टूबर से मिलने लगे थे। जब मिलों में पेराई शुरू हुई थी और चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति देख साफ हो गया था कि इस साल देश की मांग के मुकाबले चीनी के उत्पादन में भारी गिरावट होने जा रही है।
चीनी की सालाना खपत 235 लाख टन है। और सरकार की तरफ से गत दीपावली के दौरान 190-200 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगाया गया था। पिछले साल के 80-90 लाख टन चीनी के स्टॉक उपलब्ध होने के कारण इस बात का अंदाजा लगाया जा रहा था कि वर्ष 2008-09 के लिए चीनी की कोई कमी नहीं होगी। और कीमत में भी बढ़ोतरी दर्ज नहीं की जाएगी।
लेकिन पूरे सत्र के दौरान चीनी का उत्पादन अनुमान से काफी कम लगभग 149 लाख टन पर सिमट गया। पिछले साल के स्टॉक में भी कमी आई। सरकार ने विदेशों से चीनी आयात कर चीनी के दाम पर नियंत्रण करने की सोची। लेकिन विश्व भर में चीनी उत्पादन में लगभग 5 फीसदी की कमी के कारण भारत को सस्ती दरों पर चीनी की उपलब्धता नहीं हो पायी।
और चीनी धीरे-धीरे ऊंचाई पर चढ़ती गयी। इस बढ़ोतरी के पीछे किसानों को गन्ने की पर्याप्त कीमत नहीं मिलना सबसे अधिक जिम्मेदार माना जा रहा है। वर्ष 2006-07 के दौरान 267 लाख टन चीनी का उत्पादन रहा। जाहिर बात है गन्ने का उत्पादन भी जबरदस्त हुआ था। लेकिन उस साल किसानों को 80-85 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की आपूर्ति करनी पड़ी।
और ये पैसे भी उन्हें समय पर नहीं मिले। वर्ष 2007-08 में चीनी का उत्पादन 264 लाख टन रहा। इस साल भी किसानों को गन्ने के भुगतान में देरी की गयी। लिहाजा वर्ष 2008-09 के दौरान किसानों ने गन्ने की बुआई में जानबूझ कर 30 फीसदी की कमी कर दी।
रुलाते आलू-प्याज
सब्जियों में सबसे जरूरी चीज आलू-प्याज की कीमत भी इस दीवाली पर आसमान पर दिखी। सबसे सस्ता माना जाने वाला आलू भाव के लिहाज से फिलहाल हरी सब्जियों को मात दे रहा है। प्याज के भाव भी कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में आयी बाढ़ के कारण दीवाली के दौरान लोगों को रुलाते देखे गए।
मंडी की कीमतों के मुताबिक इन दिनों पहाड़ी आलुओं के दाम 2000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। हालांकि आलू एवं प्याज के भाव में तेजी के लिए प्राकृतिक कारण ज्यादा जिम्मेदार बताए जा रहे हैं। इस साल बिहार, असम एवं पश्चिम बंगाल में आलू के उत्पादन में 40 फीसदी से अधिक की गिरावट रही।
बिहार एवं बंगाल में ठंड के दौरान आलू को खेतों से निकाला जाता है, लेकिन पिछले साल आलू को खेतों से निकालने से पहले पाला गिरने से अधिकतर आलू खराब हो गए। कुछ ऐसा ही हाल बंगाल में भी देखने को मिला। बिहार और बंगाल आलू की खपत एवं उसके उत्पादन दोनों ही लिहाज से अग्रणी राज्यों में शामिल हैं।
इन दोनों राज्यों में उत्पादन में कमी से उत्तर प्रदेश में आलू के उत्पादन में कोई कमी नहीं होने के बावजूद कीमत लगातार बढ़ती रही। उत्तर प्रदेश का आलू उत्पादन में पहला स्थान है और देश का लगभग 40 फीसदी आलू का उत्पादन इसी राज्य में होता है। पिछले दो सालों से इस प्रदेश के आलू उत्पादकों को औने-पौने दाम पर अपने आलू को बेचना पड़ रहा था।
उत्तर प्रदेश के साथ पंजाब के आलू किसान भी गत दो सालों से 200-300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से आलू की बिक्री कर रहे थे। प्याज के दाम में आयी इस अचानक बढ़ोतरी के लिए कर्नाटक की बाढ़ मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
कर्नाटन में इस दौरान 5 लाख टन से अधिक प्याज का उत्पादन होता है और इसकी आपूर्ति मुख्य रूप से इस समय दिल्ली की मंडियों में की जाती है। नए प्याज के आने में अभी 15 दिन बाकी है।
चावल की चाहत
जरूरी खाद्य पदार्थों में चावल एकमात्र ऐसा जिंस है जिसके भाव में इस दीवाली के दौरान पिछली दीवाली के मुकाबले कोई बढ़त नहीं देखी गयी। उल्टा कुछ किस्मों के चावल में पिछले साल के मुकबाले गिरावट का रुख देखा गया। हालांकि इस साल चावल के उत्पादन में 100-120 लाख टन की गिरावट की आशंका है।
चावल के सबसे बड़े उत्पादक राज्य पंजाब में भी इस साल बारिश की कमी से गैर बासमती धान के रकबे में 20 फीसदी तक की गिरावट देखी गयी। दूसरी तरफ बासमती चावल के रकबे में बढ़ोतरी रही। चावल के निर्यातक एवं कारोबारियों के मुताबिक पिछले दो सालों से देश में चावल का रिकार्ड उत्पादन हो रहा है। और उसके पहले भी कमोबेश चावल का उत्पादन सामान्य ही रहा है।
पिछले एक साल से सरकार ने गैर बासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा रखी है। लोकसभा चुनाव के पहले सरकार ने कहा था कि जून के बाद सरकार 20 लाख टन गैर बासमती चावल का निर्यात करेगी। लेकिन मानसून की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए 10 लाख टन चावल का ही निर्यात हो पाया। अब सरकार के पास एक साल से अधिक समय तक के लिए चावल का स्टॉक है।
ऐसे में धान के रकबे में 20 फीसदी की कमी के बावजूद चावल के भाव में तेजी का रंग नहीं चढ़ पाया। उल्टा अक्टूबर में चावल की कीमतों में कमी दर्ज की गयी। हालत ऐसी है कि जो चावल सरकार जन वितरण प्रणाली के तहत 16-16.50 रुपये प्रति किलोग्राम दे रही है वही चावल प्रति किलोग्राम 25 पैसे कम कीमत पर बाजार में उपलब्ध है।
मध्य पूर्व के देशों में बासमती चावल पूसा 1121 की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने के कारण उसके दाम में भी 1500-2000 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट दर्ज की गयी। साधारण धान की स्थिति यह है कि पंजाब की कई मंडियों में किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (950 रुपये प्रति क्विंटल) से भी कम कीमत पर धान बेच रहे हैं।
गेहूं में गर्मी
गेहूं की कीमत चढ़ने लगी है। पिछले साल की दीपावली के दौरान गेहूं कारोबारी खुद को सिर्फ कोसते नजर आते थे, लेकिन इस दीवाली में गेहूं कारोबारियों के चेहरे पर थोड़ी मुस्कान लौट आयी है। कारण साफ है। चावल के उत्पादन में 120 लाख टन की कमी आने वाली है। बारिश की कमी के कारण रबी की फसल गेहूं के उत्पादन में भी कमी के आसार दिख रहे हैं।
वायदा बाजार में गेहू के भाव चढ़ने लगे हैं। यहां गेहूं के भाव 1300 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर के पार है। मात्र छह माह पहले तक उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं मध्य प्रदेश की मंडियों में गेहूं का बिक्री मूल्य 950 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर था। तो अन्य मंडियों में इसकी कीमत 1000-1060 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थी।
दूसरी बात यह है कि विश्व स्तर पर भी गेहूं की खपत के मुकाबले इसके उत्पादन में कोई कमी नहीं होने जा रही है। उधर गेहूं के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध है। अप्रैल-मई के दौरान यह माना जा रहा था कि एमएसपी के मुकाबले 100-200 रुपये प्रति क्विंटल कम कीमत होने से इस साल गेहूं के रकबे में गिरावट होगी। लेकिन अब वायदा बाजार में गेहूं के तेज रुख को देखते हुए किसान गेहूं की बुआई में कोई कमी नहीं करेंगे।
गेहूं की सालाना खपत करीब 6-6.2 करोड़ टन है और वर्ष 2008-09 का उत्पादन 7.75 करोड़ टन रहने का अनुमान है। यानी कि कुल खपत के मुकाबले 3 करोड़ टन से अधिक गेहूं इस साल के लिए उपलब्ध होगा। लेकिन चावल के उत्पादन में 10 फीसदी से अधिक की गिरावट और मानसून में आयी कमी से रबी की फसल प्रभावित होने की आशंका से गेहूं की कीमत में तेजी लाजिमी बतायी जा रही है।
दहकती दाल
दाल की कीमतों ने इस दीवाली के दौरान तमाम रिकार्ड को तोड़ दिया। पिछले तीन महीनों से दाल के भाव में 60 फीसदी से अधिक की तेजी चल रही है। अरहर दाल तो थोक मंडी में 70-72 रुपये प्रति किलोग्राम, तो मूंग दाल भी 60-65 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है।
गत दीवाली की बात करे तो अरहर और मूंग दोनों ही क्रमश: 40-45 एवं 40-42 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर थी। अरहर एवं मूंग के समर्थन में मसूर एवं उड़द दाल की कीमतों में भी पिछले साल की दीवाली के मुकाबले 40 फीसदी की तेजी आ चुकी है। दाल के दाम में तेजी के लिए कारोबारी मुख्य रूप से उत्पादन में कमी को जिम्मेदार मानते हैं।
भारत हर साल अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए 25-30 लाख टन दाल का आयात करता है। उत्पादकों को कहना है कि सरकार दाल के उत्पादन के प्रति उदासीन है। और चावल गेहूं की तरह कभी दाल उत्पादन में बढ़ोतरी सरकार की प्राथमिकता नहीं रही। हालांकि इस साल दाल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण इसके रबके में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।
लेकिन कर्नाटक में बाढ़ आने से दाल के उत्पादन में अब पिछले साल के मुकाबले कोई खास इजाफा होने की संभावना नहीं दिख रही। इस साल दलहन के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। सबसे अधिक 24 फीसदी का इजाफा अरहर के रकबे में है। मूंग एवं उड़द के रकबे में लगभग 7 एवं 5 फीसदी की बढ़ोतरी है।
महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश में आर्द्रता की कमी के कारण उपज में उम्मीद के अनुकूल बढ़ोतरी नहीं होगी। देश में नयी दालों का आवक नवंबर से शुरू होगी। लिहाजा इसके पहले सस्ती दाल का स्वाद भारतवासियों को नसीब नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि दाल की प्रति व्यक्ति खपत नहीं बढ़ रही है। लेकिन जनसंख्या बढ़ने के कारण मांग में कोई कमी नहीं आयी है।
भारत में सबसे अधिक बर्मा से दालों का आयात किया जाता है और वहां भी अरहर की दाल कम हो चली है। भारत ऑस्ट्रेलिया, कनाडा एवं अफ्रीकी देशों से भी दालों का आयात करता है।
सोने की चमक से आंखें चौंधियाई
इस साल दीवाली के दौरान सोने की चमक खूब रही। पिछले साल दीपावली पर लगभग 12,000 रुपये प्रति 10 ग्राम बिकने वाला सोना इस साल 16,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर को पार कर गया। चांदी की कीमत भी जमकर चांदी काटी।
पिछले साल 17,000 रुपये प्रति किलो बिकने वाली चांदी इस साल 27,000 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गयी। इस प्रकार गत एक वर्ष में सोने के भाव में 37 फीसदी की मजबूती आयी है तो चांदी में 60 फीसदी से ज्यादा की। इस एक साल में सोना निवेशकों की पहली पसंद के रूप में उभरा है। तभी तो जिंस बाजार की तेजी में असली भूमिका इनदिनों सोना-चांदी ही निभा रहे हैं।
पिछले नौ साल में सोने की कीमतों में 300 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2000 में सोने के दाम 4500 रुपये प्रति 10 ग्राम थे। हालांकि पिछले साल के मुकाबले कीमत अधिक होने से इस साल दीवाली के दौरान खरीदारी कम रही, लेकिन ग्राहक इस बात को मानने लगे हैं कि सोने के भाव पिछले साल के स्तर पर नहीं पहुंचेंगे।
यही कारण है कि वे अब बाजार की ओर लौटने लगे हैं। तभी तो गत सितंबर माह में सोने के आयात में तेजी देखी गयी। सर्राफा जानकारों के मुताबिक सितंबर में कुल 40 टन सोने का आयात किया गया। हालांकि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में यह 26 फीसदी कम है। गत वर्ष सितंबर में कुल 54 टन सोने का आयात किया गया था।
अनुमान के मुताबिक इस साल सिर्फ धनतेरस के दिन कुल 15 टन सोने का कारोबार किया गया। सर्राफा विशेषज्ञों के मुताबिक सोने के साथ चांदी के प्रति भी निवेशकों का रुझान काफी बढ़ा है। हालांकि वजन में अधिक होने के कारण चांदी को लाने एवं ले जाने में काफी दिक्कत होती है, लेकिन वायदा बाजार में चांदी के कारोबार में सोने की तरह ही चमक जारी है।
सर्राफा कारोबारी यह भी कहते हैं कि अब भारत में सोने की कीमत यहां की मांग पर निर्भर नहीं करती है बल्कि पूर्ण रूप से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की चाल पर इसकी निर्भरता है। अभी हाल ही में एसोचैम ने अपने एक अनुमान में कहा है कि सोने की कीमत जल्द ही 18,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर जा सकती है।
ऐसे में अब भारतीय ग्राहक भी इसकी खरीदारी के लिए बाजार में निकल आए हैं। नवंबर से लेकर 15 दिसंबर तक शादियां ही शादियां हैं। लिहाजा सोने के कारोबारी आने वाले महीनों में भी इसकी कीमत में कमी के आसार नहीं देख रहे हैं। वे इतना जरूर कहते हैं कि कीमत थोड़ी कम हो जाएगी तो लोग अधिक खरीदारी करेंगे। अन्यथा वे काम चलाने लायक ही सोने की खरीदारी करेंगे।
रबर में रवानगी
रबर के भाव लगातार बढ़ रहे है। गत दीवाली के दौरान 84-85 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर कायम रबर फिलहाल 109 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गया है। वायदा बाजार में भी इसके भाव में लगातार तेजी का रुख है।
आगामी दिसंबर, जनवरी एवं फरवरी माह के लिए इसकी कीमत क्रमश: 111.56 रुपये, 113.50 रुपये एवं 115.24 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुकी है। बताया जा रहा है कि प्राकृति रबर के उत्पादन में इस साल के पहले आठ महीनों के दौरान लगभग 6 फीसदी की गिरावट आयी है।
रबर बोर्ड की तरफ से भी इस साल पिछले साल के मुकाबले कुल उत्पादन में गिरावट की आशंका जाहिर की गयी है। भारत में रबर उत्पादन में गिरावट के लिए रबर के उम्रदराज पेड़ों को मुख्य कारण माना जा रहा है। हालांकि रबर के रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। लेकिन कई पेड़ अभी काफी नए हैं लिहाजा उनकी उत्पादकता कम होती है।
वर्ष 2003 में 14,000 हेक्टेयर में रबर के पौधें लगाए गए। इन पौधों को परिपक्व होने में अभी एक साल और लगेगा। इस साल केरल में फरवरी-मई के दौरान बारिश नहीं होने से भी रबर के उत्पादन में कमी आयी है। भारत में रबर की उत्पादकता में भी कमी आयी है। वर्ष 2009 में रबर की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1820 किलोग्राम चल रही है जबकि पिछले साल यह उत्पादकता 1903 किलोग्राम थी।
रबर की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए विश्व स्तर पर भी इसके उत्पादन में कमी को जिम्मेदार बताया जा रहा है। रबर उत्पादन में अग्रणी देश मलेशिया एवं इंडोनेशिया में इस साल के पूर्वार्ध्द में कमी दर्ज की गयी है। साथ ही थाइलैंड में रबर का उत्पादन कम बताया जा रहा है। वियतनाम में तो रबर के उत्पादन में भारी गिरावट हुई है।
दूसरी तरफ चीन में रबर की मांग बढ़ने से भी कीमतों में तेजी जारी है। विश्व के कुल रबर की 27 फीसदी खपत चीन में होती है। हालांकि चीन में रबर के उत्पादन में इजाफा दर्ज किया गया है लेकिन चीन का आयात लगातार जारी है।
कपास हुआ गीला
कपास की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले गिरावट का रुख है। ऐसा भी नहीं है कि कपास की आवक पिछले साल के मुकाबले कम है। उल्टा इस साल कपास की आवक कम हो रही है। वर्तमान में देसी कपास की कीमत 23,000 रुपये प्रति कैंडी चल रही है जो कि पिछले साल की समान अवधि के दौरान 24,200 रुपये प्रति कैंडी थी।
वैसे ही जे-34 किस्म के कपास के दाम फिलहाल 21,500 रुपये प्रति कैंडी चल रहे हैं जबकि पिछले साल ये 22,200 रुपये प्रति कैंडी के स्तर पर थे। एच-4 के भाव में 200 रुपये प्रति कैंडी की मामूली बढ़त है। इसकी कीमत इन दिनों 21,700 रुपये प्रति कैंडी है जबकि पिछले साल यह कीमत 21,500 रुपये प्रति कैंडी थी।
जानकारों का कहना है कि कपास की कीमत का रुख मुख्य रूप से चीन के आयात के ऊपर निर्भर करता है। अगर चीन कपास का आयात जमकर करेगा तो कपास की कीमत ऊंची चली जाएगी। अन्यथा इस साल कपास के भाव में तेजी के कोई आसार नहीं है। हालांकि टेक्सटाइल उद्योगों से अब मांग निकलने लगी है।
लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास के दाम भारत के मुकाबले कम होने से घरेलू कपास में मजबूती की कोई संभावना नहीं है। दूसरी बात है कि कपास के निर्यात में वर्ष 2008-09 के दौरान वर्ष 2007-08 के मुकाबले 60 फीसदी तक की गिरावट है।
2008-09 के दौरान मात्र 35 लाख बेल्स (1 बेल= 170 किलोग्राम) कपास का निर्यात हुआ जबकि एक साल पहले यह निर्यात 88.50 लाख बेल्स था। मंदी के कारण घरेलू स्तर पर भी कपास की खपत में 7 लाख बेल्स की कमी आयी है। वर्ष 2008-09 के दौरान मात्र 229 लाख बेल्स कपास की खपत हुई जबकि इससे पूर्व के साल में 236.88 लाख बेल्स कपास की खपत रही।
अगस्त माह के आखिर तक देश में 71.50 लाख बेल्स कपास का स्टॉक बचा था जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान मात्र 35.50 लाख बेल्स कपास का स्टॉक था। कुल मिला कर इस साल कपास की कीमत में तेजी के कोई आसार बिल्कुल नजर नहीं आ रहे हैं।
इस साल यानी कि वर्ष 2009-10 के दौरान पिछले साल के मुकाबले उत्पादन में कोई खास बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। वर्ष 2008-09 में कपास का कुल उत्पादन 290 लाख बेल्स रहा जबकि पूर्व के साल में 310 लाख?बेल्स कपास का उत्पादन हुआ था। उत्पादन के दृष्टिकोण से चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। चीन उत्पादन एवं उपभोग दोनों ही लिहाज से पहले स्थान पर है।
जूट का जलवा
कच्चे जूट की कीमतों में तेजी का रुख चल रहा है। खरीफ फसलों की पैकेजिंग के लिए जूट की मांग में बढ़ोतरी हुई है। वायदा बाजार में भी जूट के कारोबार में हलचल तेज हो गयी है। हालांकि जून से सितंबर के दौरान जूट की कीमतों में 200-300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आयी थी।
कुछ समय के लिए तो जूट के भाव में 1000 रुपये प्रति किलोग्राम तक की कमी आ गयी थी और यह 3000 रुपये प्रति क्विंटल से फिसलकर 2000 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया था। लेकिन खरीफ की नयी उपज की पैकेजिंग की अच्छी मांग निकलने से जूट के दाम फिर से मजबूत होने लगे हैं।
फिलहाल जूट के दाम 2325 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर हैं। अधिकतर चीनी मिलों में अगले माह से गन्ने की पेराई शुरू हो जाएगी। ऐसे में नवंबर तक जूट की मांग बढ़ने से इसकी कीमत में और बढ़ोतरी तय मानी जा रही है। जूट कोरपोरेशन ऑफ इंडिया के जरिए भी कच्चे जूट की खरीदारी होने से जूट की कीमत में मजबूती आ रही है।
सितंबर के पहले सप्ताह में टीडी 5 किस्म के कच्चे जूट की कीमत 1600 रुपये प्रति क्विंटल चल रही थी जो कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से मात्र 225 रुपये अधिक थी। मिल वाले सरकारी अनाज खरीदारी की पैकेजिंग के लिए इन दिनों जमकर जूट की खरीदारी कर रही है। (बीएस हिन्दी)

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