गन्ने की कीमत को लेकर उत्तर प्रदेश के किसान अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। 29 अक्टूबर को किसान बरेली में बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे। ऐसे में गन्ने के पेराई सीजन में और देरी होने की संभावना है जिसका असर चीनी की कीमतों पर पड़ना तय है। विवाद का विषय केंद्र सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को जारी अध्यादेश है जिसके तहत, अगर गन्ने के लिए केंद्र द्वारा तय की जानी वाले उचित और लाभकारी कीमत (एफआरपी) से अधिक कीमत राज्य सरकारें तय करती हैं, तो दोनों कीमतों में अंतर का भुगतान राज्य सरकारों को करना होगा।
एफआरपी 125 से 130 रुपये प्रति क्विंटल तक रहने की संभावना है जबकि राज्यों द्वारा घोषित कीमतें इससे काफी ज्यादा हैं। पहले ही वित्तीय संकट से जूझ रही राज्य सरकारें दाम के इस अंतर को चुकाने में असमर्थता व्यक्त कर रही हैं। बिजनेस भास्कर ने 26 अक्टूबर को -गन्ना मूल्य पर केंद्र और राज्यों के बीच होगी जंग- शीर्षक से खबर दी थी। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वी एम सिंह ने बताया कि किसानों ने गन्ने का बिक्री भाव 280 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इस भाव पर चीनी मिलें गन्ने की खरीद करती हैं तो ठीक है, नहीं तो किसान मिलों को गन्ना नहीं बेचेंगे। उन्होंने बताया कि हमने 29 अक्टूबर को बरेली में किसान संगठनों की बैठक बुलाई है। इसमें आगे की रणनीति पर विचार किया जायेगा।
गन्ना किसानों और मिलों के बीच गतिरोध पैदा होने से चीनी मिलों में गन्ने की पेराई देर से शुरू होने की आशंका बन गई है। इसका असर चीनी की कीमतों पर पड़ सकता है। चालू खरीद सीजन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 162.50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पंजाब और हरियाणा में राज्य सरकारों ने एसएपी 170-180 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले साल चीनी मिलों ने किसानों को गन्ने का मूल्य 140 रुपये से 165 रुपये प्रति क्विंटल के बीच दिया था, तब चीनी का एक्स फैक्ट्री भाव 2000 से 2200 रुपये प्रति क्विंटल था। इस समय चीनी के दाम 3000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक है और चीनी के दाम खुदरा बाजार में भी 24 रुपये से बढ़कर 34 रुपये प्रति किलो हो गये हैं। ऐसे में किसानों को गन्ने का कम भाव कतई मंजूर नहीं है।rana@businessbhaskar.नेट (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
28 अक्तूबर 2009
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