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19 अक्तूबर 2009

किसानों को मीठा नहीं लगा गुड़ उत्पादन नियंत्रण प्रस्ताव

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के किसान और योजना आयोग गुड़ उत्पादन को नियंत्रित करने के खाद्य मंत्रालय के प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं। खाद्य मंत्रालय ने यह प्रस्ताव गन्ना (नियंत्रण) आदेश 1966 के तहत जारी किया है। मंत्रालय की इस पहल का उद्देश्य इस साल गुड़ का उत्पादन घटाना है ताकि अधिकांश गन्ने का इस्तेमाल चीनी बनाने के लिए किया जा सके। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादन होता है। जुलाई 2007 में केंद ने गुड़ को शुगरकेन कंट्रोल ऑर्डर से अलग कर दिया था, क्योंकि उस साल देश में चीनी का उत्पादन बड़े पैमाने पर हुआ था। बहरहाल अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। अनुमान है कि 2009-10 सीजन (अक्टूबर-सितंबर) में सिर्फ 1।6 करोड़ टन चीनी बनाई जा सकेगी, जबकि मांग करीब 2.3-2.4 करोड़ टन चीनी की होगी। सूत्रों ने बताया कि यूं तो योजना आयोग खाद्य मंत्रालय के उद्देश्य का महत्व समझ रहा है, लेकिन आयोग का यह भी कहना है कि दीर्घावधि में इस पहल का बुरा असर पड़ सकता है।
उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादन करने वाले किसानों के एक संगठन ने सरकार की इस पहल का विरोध किया है। यह संगठन गुड़ और खांडसारी बनाने वाला सबसे बड़ा संगठन है। इस संगठन का कहना है कि इससे किसानों को अच्छी कीमत मिलने में मुश्किल आएगी। यूपी के एसोसिएशन ऑफ प्रेसिडेंट्स ऑफ केन कमिटी के अवधेश मिश्रा ने कहा, 'चीनी मिलें गुड़ उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए लॉबिंग कर रही हैं ताकि गन्ने की कीमतों को कम किया जा सके। चीनी मिलों के मालिक यह जानते हैं कि कोल्हू चलाने वाले कारोबारी किसानों को गन्ने की ज्यादा कीमत देंगे क्योंकि इस साल देश में गन्ने की कमी है।' 2008-09 सीजन में गुड़ बनाने वाली कुछ इकाइयों ने प्रति क्विंटल गन्ने के लिए 150-155 रुपए की तुलना में 250 से 260 रुपए तक चुकाए थे। मिश्रा का कहना है कि गुड़ बनाने पर रोक लगाने से प्रतियोगिता खत्म हो जाएगी और किसानों के पास अपना गन्ना चीनी मिलों को देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा। मुजफ्फरनगर के फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के प्रेसिडेंट अरुण खंडेलवाल का कहना है कि यदि सरकार का यह प्रस्ताव लागू हो जाता है तो दीर्घकालीन स्तर पर गुड़ के उत्पादन में कमी आएगी, जिसकी भरपाई आयात से नहीं की जा सकती है। (ई टी हिन्दी)

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