19 अक्टूबर 2009
उद्योग जगत की चेतावनी, कीमत तय करने में देरी से और बढ़ेंगे चीनी के भाव
नई दिल्ली: एक ओर जहां 2009-10 पेराई सीजन के लिए लेवी चीनी की कीमत तय करने में देर हो रही है, वहीं शुगर इंडस्ट्री ने सरकार को चेतावनी दी है कि कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए सरकार इस सेक्टर पर अपना प्रभाव बढ़ा रही है जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें बढ़ रही हैं, लिहाजा आयात पर बुरा असर पड़ सकता है और इससे चीनी की खुदरा कीमत में और बढ़ोतरी हो सकती है। चीनी उत्पादन की हालत पतली रहने के कारण पहले ही चीनी की खुदरा कीमत 35 रुपए प्रति किलो के आसपास चल रही है। पिछले साल महज 1।45 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ था और इस साल (अक्टूबर 2009 से सितंबर 2010) भी चीनी उत्पादन मामूली रूप से बढ़कर 1.6 करोड़ टन ही रहने का अनुमान है। यह सालाना उपभोग की मात्रा से 70 लाख टन कम है। भारत में चीनी की सालाना खपत 2.3 करोड़ टन है। इस सप्ताह की शुरुआत में सरकार ने लेवी चीनी की मात्रा दोगुनी करने के लिए अधिसूचना जारी की थी। लेवी शुगर चीनी मिलों के उत्पादन का वह हिस्सा होता है, जिसे उन्हें सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए देना होता है। सरकार ने इस मात्रा को 10 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करने के लिए अधिसूचना जारी की थी। सरकार ने अभी तक लेवी शुगर की कीमतों की समीक्षा नहीं की है जबकि महालक्ष्मी शुगर मिल्स मामले में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है पिछले छह सालों से लेवी शुगर की कीमत स्थिर है। न्यायालय ने कहा कि लेवी शुगर की कीमत एसएपी आधार पर होनी न चाहिए न कि सिर्फ सरकार द्वारा घोषित वैधानिक न्यूनतम कीमत (एसएमपी) आधार पर। स्टेट एडवाइजरी प्राइस (एसएपी) राज्य सरकारों द्वारा घोषित की जाती है और वह आमतौर पर केंद्र सरकार द्वारा घोषित एसएमपी से अधिक होती है। लेवी चीनी की कीमतों को केवल एसएपी के आधार पर करने से लेवी शुगर की कीमत बढ़कर 20 रुपए प्रति किलो हो जाएगी जबकि अभी यह 13 रुपए प्रति किलो है। इस बीच, 2008-09 में गन्ने की भारी कमी के चलते उत्पादन लागत में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। इंडस्ट्री लॉबी आईएसएमए के प्रेसिडेंट समीर सौमैया ने ईटी को बताया, 'मुझे विश्वास है और मेरा मानना है कि लेवी शुगर कोटा की कीमतों को बढ़ाने के लिए जल्द ही अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।' इसमें खास बात यह है कि लेवी कोटा को दोगुना करने के बाद भी चीनी मिलें सरकार को केवल 30 लाख टन बेच रही हैं जबकि पिछले साल उन्होंने 26 लाख टन बेची थी। उत्पादन में कमी के कारण सरकार को बेची जाने वाली लेवी चीनी में यह गिरावट देखने को मिल रही है। (ई टी हिन्दी)
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