मुंबई February 08, 2010
जिंस बाजार नियामक, वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से अपील की है कि कमोडिटी एक्सचेंजों पर होने वाले डेरिवेटिव सौदों को भी इक्विटी सौदों की तरह ही माना जाए और टीडीएस में छूट दी जाए।
समिति के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि समिति की अपील मंत्रालय के पास भेजी जा चुकी है। कमोडिटी एक्सचेंजों के डेरिवेटिव सौदे काफी हद तक शेयरों के डेरिवेटिव सौदों की तरह ही होते हैं। वस्तुओं के डेरिवेटिव सौदों में भी ब्रोकरों को अपने ग्राहकों से कमीशन मिलता है।
एक्सचेंजों के सौदों में कमीशन और ब्रोकरों को किए जाने वाले भुगतान पर 10 फीसदी टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) काटा जाता है। वहीं, इक्विटी सौदों में टीडीएस में छूट मिलती है। एफएमसी ने हाल ही में मंत्रालय को भेजे गए अपने पत्र में कमोडिटी एक्सचेंजों में होने वाले डेरिवेटिव सौदों को लेकर इस बात पर जोर दिया है कि इसे एक सट्टेबाजी की तरह लिया जाता है।
वहीं, शेयरों के ऐसे सौदों को गैर-सट्टा सौदा माना जाता है। एमसीएक्स के प्रबंध निदेशक पी के सिंघल ने कहा कि इसकी वजह से एक्सचेंजों में कारोबार का स्तर काफी कम है जबकि दूरे समानांतर बाजारों में कारोबार फल-फूल रहा है। मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक वस्तुओं के वायदा सौदों से होने वाली आमदनी या नुकसान को किसी दूसरे व्यावसायिक लाभ या हानि से पूरा नहीं किया जा सकता है।
वस्तुओं का वायदा कारोबार कीमतों के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शेयर बाजारों की तरह कमोडिटी बाजारों में अटकलबाजी को शामिल किए जाने से कारोबार का आलोचक वर्ग बनाता है। यह वास्तविक खरीदारों को भी आकर्षित करता है। कमोडिटी सौदों में हेजिंग करने वालों के आने से कीमतों के विपरीत दिशा में जाने से सुरक्षा मिलती है।
इस तरह वायदा बाजार के सही तरीके से काम करने के लिए बाजार में सट्टेबाजों का होना जरूरी हो जाता है। इसलिए अपने बजट पूर्व ज्ञापन में एमसीएक्स ने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से जरूरी संशोधनों की मांग की है ताकि मान्यता प्राप्त कमोडिटी एक्सचेंजों में होने वाले सौदों को बराबर का व्यवहार मिल सके।
मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों में डेरिवेटिव सौदों को प्रोत्साहन देने के लिए वित्त अधिनियम, 2005 के जरिए आयकर अधिनियम के सेक्शन 43 में खण्ड 5 जोड़ा गया। इसके जरिए मानयता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों में होने वाले डेरिवेटिव सौदों को सट्टेबाजी के अंतर्गत न रखे जाने की व्यवस्था की गई है।
सिंघल का कहना है, 'सबसे पहले सरकार को कमोडिटी एकसचेंजों में होने वाले डेरिवेटिव सौदों को व्यापार की श्रेणी में लाना होगा। जैसा कि आयकर कानून के सेक्शन 43(5) में इसे पूरी तरह से सट्टेबाजी बताया गया है। इसमें बदलाव की जरूरत है। यह एक्सचेंजों में आधिकारिक सौदों के कम रहने की प्रमुख वजह है।'
भेदभाव क्यों
एफएमसी का कहना है कि जिंस एक्सचेंजों के सौदे काफी हद तक शेयरों के इक्विटी सौदों की तरह होते हैं, इसलिए मिलनी चाहिए टीडीएस में छूट छूट के लिए उपभोक्ता मंत्रालय को भेजा पत्र (बीएस हिन्दी)
09 फ़रवरी 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें