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13 फ़रवरी 2010

रबी की रूमानी आस पर टिकी मुल्क की सांस

हाल-ए-रबी : मोटे अनाज एवं तिलहन के रकबे में 6-6 फीसदी की गिरावट है। लेकिन गेहूं और दलहन के बढ़े हुए रकबे ने इस गिरावट को थाम लिया है। दलहन के रकबे में 6 फीसदी तो गेहूं में 0.6 फीसदी की बढ़ोतरी खरीफ में धराशायी खाद्यान्न उत्पादन के लिए नई रोशनी लेकर आई है। रबी फसल पर राजीव कुमार की रिपोर्ट
February 12, 2010
रबी की फसल को लेकर सरकार काफी उत्साहित है। सरकारी अनुमान के मुताबिक इस साल रबी के दौरान पिछले साल के मुकाबले 1 करोड़ टन अधिक खाद्यान्न का उत्पादन होगा।
हालांकि इस बढ़ोतरी के बावजूद खरीफ के दौरान खाद्यान्न उत्पादन में हुई 16 फीसदी की गिरावट की पूरी भरपाई नहीं हो पाएगी और कृषि विकास दर का चालू वित्त वर्ष के दौरान शून्य से नीचे रहने का अनुमान है। रबी के दौरान मौसम के अनुकूल रहने से अधिक पैदावार की उम्मीद की जा रही है।
वैसे देखा जाए तो इस रबी के दौरान हुई कुल बुआई के रकबे में पिछले साल की तुलना में 0.2 फीसदी की गिरावट है। गत 5 फरवरी तक के आंकड़ों के मुताबिक रबी के मौसम में 589.46 लाख हेक्टेयर पर बुआई की गई है। ऐसे में पैदावार में बढ़ोतरी के बगैर पिछले साल के उत्पादन रिकॉर्ड को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता है।
इस बार रबी की पैदावार अगर पिछले साल की तरह ही रही तो खाद्यान्न का कुल उत्पादन 10.77 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो कि पिछले साल के खाद्यान्न उत्पादन के मुकाबले 7 फीसदी कम होगा। तिलहन के रकबे में आई कमी को देखते हुए इसके उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले कमी की आशंका जाहिर की जा रही है।
गेहूं के रकबे में इस साल बढ़ोतरी हुई है। गत 5 फरवरी तक गेहूं की बुआई 277 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह रकबा 275 लाख हेक्टेयर था। सरकार ने वर्ष 2009-10 के दौरान कुल 8.25 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया है जो कि पिछले साल के मुकाबले 20 लाख टन अधिक बताया जा रहा है।
हालांकि पंजाब में गेहूं के रकबे में पिछले साल के मुकाबले करीब 6000 हेक्टेयर की कमी आई है, लेकिन पंजाब के कृषि वैज्ञानिक इससे उत्पादन पर कोई फर्क नहीं देख रहे हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के अर्थशास्त्री एम एस सिध्दू के मुताबिक पंजाब की शत-प्रतिशत जमीन सिंचाई की सुविधा से लैस है।
दूसरी बात है कि गेहूं के लिए धान की तरह पानी की आवश्यकता नहीं होती है और इस साल मौसम गेहूं की खेती के लिए अब तक काफी अनुकूल चल रहा है। ऐसे में पंजाब में गेहूं के उत्पादन में कोई गिरावट नहीं होगी और पिछले साल की तरह इस साल भी यहां 150 लाख टन गेहूं का उत्पादन रहने की पूरी उम्मीद है।
हालांकि पंजाब व हरियाणा के कृषि वैज्ञानिक यह भी कह रहे हैं कि तापमान में बढ़ोतरी होने पर गेहूं की पैदावार में प्रति हेक्टेयर 750 किलोग्राम तक की कमी आ सकती है। पंजाब गेहूं उत्पादन में उत्तर प्रदेश के बाद सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। पंजाब, राजस्थान व हरियाणा में 43 फीसदी गेहूं का उत्पादन होता है और इन प्रदेशों के गेहूं रकबे में इस साल मामूली गिरावट दर्ज की गई है।
दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात व बिहार के गेहूं रकबे में इस साल अच्छी खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में कुल 42 फीसदी गेहूं का उत्पादन होता है। उत्तर प्रदेश के गेहूं किसानों के मुताबिक खरीफ की फसल बर्बाद होने के बाद अधिकतर इलाको में गेहूं की बुआई समय से पहले हो गई। बाद में गन्ने के खाली खेत में भी किसानों ने गेहूं की बुआई की।
इन किसानों ने गेहूं के पिछौती बीज का प्रयोग किया और माना जाता है कि इस किस्म के बीज से भी उत्पादन में कोई कमी नहीं आती है। गेहूं के बाजार भाव में आ रही गिरावट से भी इसके उत्पादन में बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं। दो माह पहले 1450 रुपये प्रति क्विंटल तक के गेहूं अब 1300 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है।
वहीं वायदा बाजार में भी गेहूं की कीमत लगातार कम हो रही है। अप्रैल के लिए गेहूं का वायदा भाव 1200 रुपये प्रति क्विंटल से भी नीचे आ गया है। उत्पादन पर नजर रखने वाले गेहूं कारोबारी भी कहते हैं कि अब तक के अनुमान के मुताबिक गेहूं का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले अधिक होगा और गेहूं का बाजार भाव अप्रैल-मई के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य 1100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच सकता है।
गेहूं की गुलाबी तस्वीर के सामने तिलहन की रबी तस्वीर मलीन दिख रही है। तिलहन के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 6 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। पिछले साल सरसों, सूरजमुखी व मूंगफली की खेती 94.59 लाख हेक्टेयर में की गई थी जबकि इस साल यह रकबा घटकर 88.92 लाख हेक्टेयर रह गया।
माना जा रहा है कि खाद्य तेल के आयात में लगातार हो रही बढ़ोतरी के कारण तिलहन के बुआई क्षेत्रफल में कमी आई है। रबी के दौरान होने वाली धान की बुआई में भी कमी दर्ज की गई है। धान के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 1.14 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई है। रबी के दौरान धान की खेती करने वाले किसान इस साल दलहन की ओर मुखातिब हो गए हैं।
हालांकि सरकार यह मान रही थी कि रबी के दौरान धान की बुआई में बढ़ोतरी होगी और इसकी मदद से खरीफ की कमी को पूरा कर लिया जाएगा। गेहूं के साथ दलहन के रकबे में इस साल अच्छी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले साल के 129.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल के मुकाबले यह 137.35 लाख हेक्टेयर हो गया है।
इस साल रबी फसल की बुआई सबसे अधिक मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में की गई है। तीसरा स्थान आंध्र प्रदेश का है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक अब तक रबी की फसल सामान्य बताई जा रही है। रबी के दौरान सभी फसलों की बुआई के क्षेत्रफल में पिछले साल के मुकाबले 5 फरवरी तक -0.2 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
ज्वार का क्षेत्रफल इस साल 8.5 फीसदी घटकर 44.99 लाख हेक्टेयर, मक्के का क्षेत्रफल 1.7 फीसदी कम होकर 10.17 फीसदी रह गया है। जौ के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 4.9 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है और यह 7.53 लाख हेक्टेयर हो गया है।
चने का रकबा 5.5 फीसदी बढ़कर 87.56 लाख हेक्टेयर, मसूर का क्षेत्रफल 3.7 फीसदी बढ़कर 15.21 लाख हेक्टेयर, कुलथी का क्षेत्रफल 12.2 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 4.84 लाख हेक्टेयर, उड़द का क्षेत्रफल 28 फीसदी बढ़कर 6.07 लाख हेक्टेयर तो मूंग का क्षेत्रफल भी पिछले साल के मुकाबले 23.1 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 4.75 लाख हेक्टेयर हो गया है।
मटर के रकबे में गत 5 फरवरी तक 10.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इस साल 7.23 लाख हेक्टेयर जमीन पर मटर की बुआई की गई है। दलहन बुआई के मामले में इस साल आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु व उत्तर प्रदेश में इजाफा दर्ज किया गया है जबकि राजस्थान व गुजरात में कमी आई है।
सरसों बुआई के मामले में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में बढ़ोतरी हुई है तो राजस्थान, गुजरात व हरियाणा में गिरावट आई है। मूंगफली की बुआई में कर्नाटक व उड़ीसा में इजाफा हुआ है तो पश्चिम बंगाल में कमी आई है। जौ की बुआई में मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में वृध्दि है तो प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान में जौ के क्षेत्रफल में कमी दर्ज की गई है। (बीएस हिन्दी)

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