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13 फ़रवरी 2010

रकबे की क्षतिपूर्ति सरसों की अधिक पैदावार से

02 12, 2010
रबी के दौरान सरसों के उत्पादन की तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है।
खाद्य तेल उद्योग संगठन साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के मुताबिक इस साल बुआई कम होने के कारण देश में सरसों उत्पादन करीब तीन लाख टन यानी कि 4.5 प्रतिशत घटकर 59.2 लाख टन रह जाने की संभावना है।
एसईए ने सरसों उत्पादक राज्यों के एक सर्वेक्षण के बाद यह अनुमान जारी किया है। एएईए के एक दल ने सर्वे रिपोर्ट में कहा कि रैपसीड और सरसों फसल का कुल क्षेत्रफल 64.36 लाख हेक्टेयर होगा जो वर्ष 2008-09 के 66.47 लाख हेक्टेयर से कम है।
दूसरी तरफ खाद्य तेल कारोबारियों के मुताबिक इस साल भले ही सरसों के रकबे में गिरावट आई है, लेकिन मौसम के अनुकूल होने से सरसों की प्रति हेक्टेयर पैदावार में हर हाल में बढ़ोतरी होगी। और पिछले साल के मुकाबले सरसों के उत्पादन में 2 लाख टन का इजाफा हो सकता है।
सरसों की कीमतों में हो रही लगातार कमी से भी इसके संकेत मिल रहे है। इस रबी के दौरान सरसों की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 970-980 किलोग्राम रहने की उम्मीद है। एसईए के मुताबिक भारत में 2008-09 में 62 लाख टन रैपसीड सरसों का उत्पादन हुआ था जो घटकर चालू वर्ष में 59.2 लाख टन रहेगा।
तथापि खाद्य तेल उद्योग ने कहा कि इस वर्ष उपज बेहतर यानी 9.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की होगी जो वर्ष 2008-09 में नौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी। इस निगरानी दल के अनुसार सबसे अधिक उत्पादन राजस्थान में 27 लाख टन का होगा। दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश रहेगा जहां उत्पादन अपेक्षाकृत कम यानी आठ लाख टन रहने की संभावना है।
हरियाणा और पंजाब में मिलकर उत्पादन 6.75 लाख टन, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 8.30 लाख टन, गुजरात में 3.15 लाख टन और पश्चिम बंगाल में 2.6 लाख टन उत्पादन होने की संभावना है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को छोड़कर इस दल ने पाया कि अन्य प्रमुख रेपसीड और सरसों उत्पादक राज्यों में इस फसल का क्षेत्रफल इस वर्ष कम रहने की संभावना है।
राजस्थान में भी क्षेत्रफल घटकर 23.25 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है जो क्षेत्रफल वर्ष भर पहले 28.03 लाख हेक्टेयर था। फिर भी राजस्थान का क्षेत्रफल बाकी राज्यों की तुलना में कहीं अधिक है।खाद्य तेल के थोक कारोबारी एसईए के इस अनुमान से इत्तेफाक नहीं रखते। वे कहते हैं कि सरसों के दाने इस साल अच्छे हैं। फरवरी में हुई बारिश से भी सरसों की फसल को लाभ मिलेगा।
ऐसे में उत्पादन में कमी का कोई मतलब नहीं है। सरसों के दाम में भी पिछले एक माह के भीतर 5-7 रुपये प्रति किलोग्राम की गिरावट दर्ज की गई है। फिलहाल सरसों के भाव 2500 रुपये प्रति किलोग्राम चल रहे हैं। सरसों की बुआई में आई कमी के लिए तेल कारोबारी सरकार की नीति को जिम्मेदार ठहराते हैं।
पहली बात यह कि सरकार लगातार बड़े पैमाने पर खाद्य तेल का आयात कर रही है। वर्ष 2007-08 के दौरान सरसों की कीमत 3200-3300 रुपये प्रति क्विंटल तक चली गई थी। लेकिन यह कीमत कायम नहीं रही। इससे किसानों के रुख में बदलाव देखा गया। (बीएस हिन्दी)

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