भुवनेश्वर February 15, 2010
करीब दो महीने तक खिंची जूट मिलों में हड़ताल से पश्चिम बंगाल के जूट उद्योग को करीब 2200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
हड़ताल की अवधि के दौरान 7000 करोड़ रुपये के जूट उद्योग का 1200 करोड़ रुपये का उत्पादन प्रभावित हुआ है। हड़ताल को देखते हुए सरकार ने खाद्यान्न और चीनी की पैकेजिंग जूट की बोरियों में करने की अनिवार्यता कम कर 76 प्रतिशत कर दी थी।
सरकार के इस बदलाव से पहले से ही घाटा झेल रहे जूट उद्योग को 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। रबी विपणन सत्र 2010-11 के दौरान कुल 10 लाख गांठ जूट की बोरियों की जरूरत है। सरकार की खरीद एजेंसियां अब पॉलिमर बैग जैसी वैकल्पिक व्यवस्था कर सकती हैं।
जूट पैकेजिंग मैटीरिल एक्ट 1987 के मुताबिक सरकारी खरीद में खाद्यान्न और चीनी की पैकेजिंग के लिए जूट की बोरी का 100 प्रतिशत प्रयोग अनिवार्य किया गया है, लेकिन केंद्र ने इसमें छूट दे दी है। इसके साथ ही 61 दिन की हड़ताल में कुल 480 करोड़ रुपये के वेतन का नुकसान हुआ है। इस उद्योग में करीब 2.2 लाख लोग काम करते हैं।
आपूर्ति एवं निपटान महानिदेशालय के अधीन बी टि्वल जूट बोरियों की 2001 से आपूर्ति के चलते जूट उद्योग को 900 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। जूट उद्योग के बार-बार अपील के बावजूद कपड़ा मंत्रालय कीमतों के भुगतान में 2001 के पुराने तरीके का ही पालन कर रहा है।
इंडियन जूट मिल एसोसिएशन के चेयरमैन संजर कजरिया ने कहा कि पिछले शुक्रवार को जहां मजदूर संगठनों से चल रहे तमाम विवादों को ट्रेड यूनियनों, जूट उद्योग और राज्य सरकार के त्रिपक्षीय समझौते से सुलझा लिया गया है, वहीं सरकार द्वारा 2009 की टैरिफ कमीशन की रिपोर्ट लागू न करने के चलते उद्योग जगत का तनाव बना हुआ है। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट के लागू होने के बाद ही बी टि्वल बोरियों का उचित और तार्किक मूल्य मिल सकेगा। (बीएस हिन्दी)
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