नई दिल्ली February 15, 2010
उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को एक बार फिर गन्ने ने हलकान करना शुरू कर दिया है।
कुछ महीने पहले गन्ना किसानों का आंदोलन इन्हें परेशान कर रहा था और अब चीनी के गिरते दाम की वजह से इन्हें गन्ना महंगा लगने लगा है। दरअसल गुड़ और खांडसारी इकाइयों के मुकाबले की वजह से मिलों ने गन्ने के भाव बढ़ाने शुरू कर दिए थे, लेकिन चीनी सस्ती होने पर भी अब वे गन्ने के भाव किसी कीमत पर नहीं गिरा सकतीं।
देश के इस दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य की मिलें चीनी का उठान अच्छा होने और कीमत भी अच्छी मिलने की वजह से ज्यादा से ज्यादा गन्ना हासिल करना चाहती थीं। इसीलिए उन्होंने 260-265 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से गन्ना खरीदना शुरू कर दिया, जबकि पिछले साल उन्होंने केवल 140 से 145 रुपये प्रति क्विंटल भाव पर गन्ना खरीदा था।
लेकिन चीनी का दाम 18 फीसदी गिरकर 3,500 रुपये प्रति क्विंटल आ गया है। ऐसे में चाहकर भी मिलें कम दाम पर गन्ना नहीं खरीद पा रही हैं। जाहिर है, अगर चीनी का भाव नहीं चढ़ा तो मिलों को अच्छा खासा नुकसान हो जाएगा।
एक चीनी मिल मालिक ने कहा, 'हमने 190-195 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीदकर नवंबर के दूसरे पखवाड़े में पेराई शुरू की थी। लेकिन कुछ मिलों को पर्याप्त गन्ना नहीं मिला, तो उसी महीने उन्होंने 200-205 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीदना शुरू कर दिया। दिसंबर में भाव और बढ़े और बाद में भी बढ़ते रहे। जनवरी में चीनी के भाव रिकॉर्ड 4,300 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गए और उसके बाद सरकारी हरकत से उनमें लगातार कमी आ रही है।'
उद्योग सूत्रों के मुताबिक गन्ने का भाव अगर 260 रुपये प्रति क्विंटल हो तो दूसरे खर्च, बिजली की कीमत और लेवी वगैरह मिलाकर चीनी उत्पादन का खर्च 3,700 रुपये प्रति क्विंटल पड़ता है। एक अन्य मिल मालिक ने कहा, 'ऐसे में अगर चीनी के भाव नहीं बढ़े, तो हरेक क्विंटल पर हमें 100 से 200 रुपये का नुकसान होने लगेगा क्योंकि किसान तो गन्ना सस्ता देने से रहे।' (बीएस हिन्दी)
15 फ़रवरी 2010
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