हर खेत और हर फसल के लिए गिनी-चुनी खादों का दौर अब खत्म होने वाला है। आने वाले समय में स्थानीय स्तर पर वहां की जमीन के लिए जरूरी पोषक तत्वों के हिसाब से खादों का प्रयोग होगा।
यह सरकार की उस खाद मूल्य नीति का लब्बोलुआब है, जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को मंजूरी दी है। वैसे यह नीति खेतों की उर्वरता को भले ही संतुलित कर दे, लेकिन सरकारी खजाने के लिए उल्टा साबित हो सकती है। पिछले सालों में इन खादों पर खजाना लुटाने वाली सरकार ने अब इन्हें बाजार के हवाले कर दिया है।
बीते कुछ वर्षो के दौरान यूरिया के मुकाबले डीएपी व एनपीके जैसी मिश्रित खादों पर सब्सिडी बहुत बढ़ी है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन उर्वरकों के मूल्य तेज हुए हैं। खाद पर सब्सिडी 72 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई है। सरकार इसे घटाने की जरूर सोच रही है, लेकिन उसका यह दांव उल्टा पड़ सकता है। दरअसल विश्व बाजार में अनाज की कीमतों के चढ़ने के बाद खादों के मूल्य भी बढ़ जाएंगे। किसानों को राहत देने के चक्कर में सब्सिडी बढ़ानी पड़ सकती है, जो सरकार के लिए भारी पड़ सकती है।
नई मूल्य प्रणाली में सरकार ने मूल्य तय करने का अभी कोई फार्मूला तय नहीं किया है। लेकिन कंपनियां जो भी मूल्य तय करेंगी, वह मौजूदा कीमत से अधिक होगा। दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों के चढ़ने से घरेलू कंपनियां दाम बढ़ाने के लिए बाध्य होंगी। उस समय खाद के दाम कम करने के लिए सब्सिडी बढ़ाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा। नतीजतन मूल्य तय करने का अधिकार निजी कंपनियों के हाथ में सौंप देने के दुष्परिणाम भुगतने ही पड़ेंगे।
कृषि वैज्ञानिकों की राय में पोषक तत्वों वाली खाद के इस्तेमाल से फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है। पोषक तत्वों वाली खाद में जमीन की जरूरत के तत्व शामिल किए जाते हैं, जिनमें नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटाश और सल्फेट प्रमुख पोषक हैं। जमीन में इन्हीं तत्वों का संतुलन बिगड़ने पर फसलों की उत्पादकता घटने लगती है। इसके अलावा जमीन में दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्वों सल्फर और जिंक का होना भी जरूर होता है। इन तत्वों के बीच एक खास तरह का अनुपात होता है। सघन खेती और खादों के बेतरतीब प्रयोग से यह अनुपात बिगड़ जाता है।
कृषि वैज्ञानिकों की राय में सरकार का पोषक तत्वों वाली खाद को प्रोत्साहित करने का फैसला उचित समय पर लिया गया है। इससे खेती को लाभ मिलना तय है। देश की ज्यादातर जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा बहुत अधिक हो गई है। इसके बावजूद अज्ञानता व सस्ती मिलने के कारण यूरिया का प्रयोग बहुत बढ़ गया है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक देश में खेतों में डाली जाने वाली कुल खादों में आधे से अधिक यूरिया है।
नेशनल एकेडमी आफ एग्रीकल्चरल साइंस के एक अध्ययन के मुताबिक 46 फीसदी जमीन में सूक्ष्म पोषक [माइक्रो न्यूट्रीएंट्स] तत्वों की कमी है। जबकि यूरिया के अंधाधुंध प्रयोग से सभी राज्यों में नाइट्रोजन की मात्रा औसत से बहुत अधिक हो गई है।
क्या है पोषक तत्व वाली खाद?
सरकार ने पोषक तत्व वाली खाद के प्रयोग को प्रोत्साहित करने की नीति तैयार की है। इसमें फास्फेट और पोटैशियम वाली खादों में विभिन्न पोषक तत्वों को मिश्रित किया जाता है, जिसे एनपीके के नाम से भी जाना जाता है। यानी 'एन' नाइट्रोजन, 'पी' फास्फोरस, 'के' पोटाश। इसके अलावा सल्फर व जिंक जैसे सूक्ष्म तत्वों को भी इनमें मिश्रित किया जाएगा।
कैसे तय होगा मूल्य?
इन खादों का मूल्य प्रति टन के हिसाब कंपनियां खुद तय करेंगी। पोषक तत्वों के अनुपात और उनके दामों के हिसाब से मिश्रित पोषक खाद का अधिकतम मूल्य तय होगा। मिश्रण का आधार एफसीओ-1985 अधिनियम होगा। इस तरह के पोषक तत्वों वाली खाद का जिक्र पिछले बजट भाषण में ही किया गया था। मुक्त बाजार प्रणाली के फैसले के लिए सचिवों की एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को आधार बनाया गया है।
कैसे मिलेगी सब्सिडी?
नई मूल्य प्रणाली एक अप्रैल से लागू हो जाएगी। कंपनियों को बेची गई खाद के प्रमाणपत्र के आधार सब्सिडी दी जाएगी। सरकारी सब्सिडी फिक्स होगी। साथ ही फर्टिलाइजर मानिटरिंग सिस्टम से इसकी निगरानी भी की जाएगी। (दैनिक जागरण)
20 फ़रवरी 2010
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