25 फ़रवरी 2010
प्रणब और ममता के बीच जंग के लिए तैयार रहें
नई दिल्ली, 24 फरवरी- रेल बजट तो पेश हो गया और इसमें रेल मंत्री ममता बनर्जी ने जितनी परियोजनाओं के संकल्प पेश किए हैं उनमें से दो तिहाई के लिए ममता के भूतपूर्व गुरु और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी एक पैसा नहीं देने वाले। इसीलिए 26 फरवरी को जब आम बजट पेश होगा तो ममता बनर्जी के तेवर देखने लायक होंगे। प्रणब मुखर्जी बजट को अंतिम रूप दे चुके हैं और अब कुछ उलझनों को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बैठ कर ठीक कर रहे हैं। उन्होंने पिछले वित्त मंत्री और वर्तमान गृहमंत्री पी चिदंबरम की सलाह भी ली है। ममता बनर्जी ने जो एक दर्जन रेल परियोजनाएं मांगी थी उनमें से दो मुलाकातो के बाद सिर्फ तीन मंजूर की गई है और इनमें से भी एक के लिए रेल मंत्रालय को अपनी जेब से पैसा खर्च करना होगा। वैसे प्रणब मुखर्जी का सारा जोर सरकारी खजाने यानी राजकोष यानी घाटे को कम करने पर है। इन दिनों पूरे देश की निगाहें 26 फरवरी को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले वर्ष 2010-11 के बजट पर लगी हुई हैं। यह बजट इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें वित्तमंत्री विनिवेश, विदेशी निवेश, करारोपण और सब्सिडी जैसे कई महत्वपूर्ण नीतिगत संकेत देते हुए दिखाई देंगे। आर्थिक सुधारों को गतिशील बनाने का संकेत भी बजट से उभरेगा। निश्चित रूप से इस समय बढ़ता हुआ राजकोषीय घाटा देश की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती है। यह पूरी संभावना है कि वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी नए बजट में अपना अधिकांश ध्यान राजकोषीय घाटा कम करने पर केंद्रित करते हुए दिखाई देंगे। जिस तरह प्रधानमंत्री मनममोहन सिंह और गृहमंत्री पी चिदंबरम ने वित्तमंत्री रहते हुए राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की पुरजोर कोशिश से एक सुधारवादी वित्तमंत्री की छवि बनाई है, बतौर वित्तमंत्री वैसी ही सुधारवादी छवि बनाने का पूरा मौका इस बार प्रणब मुखर्जी के पास है। वैश्वित आर्थिक मंदी के चलते चालू वित्त वर्ष में सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] का 6.8 फीसदी और राजस्व घाटा जीडीपी के मुकाबले पांच फीसदी तक बढ़ जाने का अनुमान है। करीब एक दशक तक एक अंक में रहने के बाद केंद्र और राज्य सरकारों का कुल घाटा अब बढ़कर दो अंकों में पहुंच चुका है। राजकोषीय घाटा किसी देश को कितनी कठिनाइयों में पहुंचा सकता है, इसका अनुमान यूनान के परेशान प्रधानमंत्री जार्ज पापेंद्र के बार-बार दिए जा रहे इस वक्तव्य से लगाया जा सकता है कि उनके देश यूनान में मतदाताओं को ललचाने और राजनीतिक संरक्षण में धन बर्बाद करने के कारण वित्तीय व्यवस्था ठप्प हो गई है और वित्तीय प्रणाली में कानून के शासन की स्थिति ही समाप्त हो गई। इतना ही नहीं राहत की योजनाओं में भ्रष्टाचार के कारण सरकार दयनीय वित्तीय स्थिति में पहुंच गई है। स्थिति यह है कि संकट का सामना करने में असमर्थ होकर पूरा यूनान राजकोषीय घाटे से मुक्त होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट 'वैश्विक आर्थिक परिदृश्य' में कहा गया है कि भारत सहित अनेक दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए लगातार बढ़ता वित्तीय घाटा खतरे का रूप लेता जा रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं कि भ्रष्टाचार, कर चोरी, अनुचित सार्वजनिक खर्च को राजनीतिक संरक्षण और भारी सब्सिडी के प्रावधान के कारण देश का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में प्रमुख रूप से उर्वरक सब्सिडी का आकार लगभग 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। तेल विपणन से जुड़ी सरकारी कंपनियों का घाटा करीब 30,000 करोड़ रुपये है। खाद्य सब्सिडी का आकार बढ़ता जा रहा है। संसद में दिसंबर 2009 में अनुदानों के लिए 25,725 करोड़ रुपये की पूरक मांग की गई है। राहत पैकेजों की वजह से कर संग्रह खासतौर से अप्रत्यक्ष करों के जरिए होने वाली सरकारी कमाई में कमी आ गई है। अप्रैल 2009 से नवंबर 2009 के बीच अप्रत्यक्ष कर संग्रह 21 फीसदी घट गया है। पिछले वर्ष के बजट में थ्री-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के जरिए 35,000 करोड़ रुपये सरकारी खजाने में आने का प्रावधान था, लेकिन यह रकम अब तक सरकारी खजाने में जाती नहीं दिख रही है। सरकारी खर्च में भी काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। ऐसी कई बजट सब्सिडी को खतरनाक स्तर तक बढ़ने दिया गया, जिनका कोई सामाजिक और आर्थिक प्रभाव नहीं दिख रहा है। बजट अनुमानों के मुकाबले बजट के संशोधित अनुमानों में वित्तीय घाटे में बढ़ोतरी प्रोत्साहन पैकेजके कारण ही नहीं हुई है, बल्कि यह विविध तरह की सब्सिडी, वेतन समीक्षा, कर्ज माफी, नरेगा के विस्तार के लिए वित्त पोषण आदि कारणों से चिंताजनक ऊंचाई पर पहुंची है। ऐसे में जब राजकोषीय घाटा अनियंत्रित है और छलांगे लगाकर बढ़ रहा है, तब वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी दो दशक पहले के उस परिदृश्य को याद कर सकते हैं, जब मनमोहन सिंह ने 1991 में एक क्रांतिकारी बजट पेश किया था। यह बजट भयानक राजकोषीय घाटे, आसमान पर पहुंची महंगाई दर और विदेश व्यापार के मामले में दिवालिएपन की पृष्ठभूममि में प्रस्तुत किया गया था। ऐसे ही परिप्रेक्ष्य में अब 2010-11 का बजट पेश करते समय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी को भी अपनी भूमिका बेहद अहम बनाना होगी। वित्तमंत्री को बजट में इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना होगा कि अब राजकोषीय घाटे के मामले में उपयुक्त कदम उठाने और इनकी चरणबध्द वापसी का समय आ गया है। निस्संदेह अगर वित्तमंत्री इस वर्ष राजकोषीय घाटे को कम करने की डगर पर बढ़ने का मौका खो देते हैं तो उन्हें दूसरा ऐसा अच्छा मौका नहीं मिलेगा। चूंकि इस वर्ष केवल बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं और अन्य कई राज्यों में वर्ष 2011 में चुनाव होंगे, लिहाजा वित्तीय सुधार के परिप्रेक्ष्य में सख्त कदम उठाने के लिए वित्तमंत्री के पास इसी बजट में सबसे अच्छा मौका है। अब वित्तमंत्री को उनके द्वारा बार-बार दिए गए इस वक्तव्य पर दृढ़तापूर्वक कायम रहना होगा कि वर्ष 2010-11 में वह राजकोषीय घाटे को राष्ट्रीय आय के अनुपात के 5.5 फीसदी और राजस्व घाटे को जीडीपी के कम से कम 2.0 फीसदी नीचे ले जाएंगे। निश्चित रूप से चालू वित्त वर्ष के दौरान लगभग साढ़े चार लाख करोड़ रुपये की उधारी के बाद वित्त मंत्रालय अपनी झोली भरने के लिए भरपूर प्रयास करते हुए दिखाई देगा। उद्योग-व्यापार के लिए बजट से राहत की उम्मीदें कम हैं। नौकरीपेशा वर्ग, वरिष्ठ नागारिक महिलाओं, छोटे उद्यमी आदि को बजट से कुछ राहत अपेक्षित है। देश की अर्थव्यवस्था के नए आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो देश में सेवा क्षेत्र, निर्यात व्यापार और औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में स्थितियां सुधर गई हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन [सीएसओ] द्वारा जारी किए गए नवीनतम अग्रिम अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2009-10 में अर्थव्यवस्था 7।2 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगी। अर्थव्यवस्था की बढ़ती रफ्तार के ऐसे परिवेश में वित्तमंत्री को वर्ष 2008-09 में दिए गए वित्तीय राहत पैकेज के कुछ भाग को वापस लेना जरूरी होगा। चूंकि गुड एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी को लागू करना करीब एक साल के लिए आगे बढ़ गया है, अत: इस वर्ष उत्पाद कर में दो फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार के पास कर राजस्व बढ़ाने और सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बेचने के अच्छे रास्ते मौजूद हैं। वित्त मंत्रालय सूत्रों के अनुसार बिजली क्षेत्र के उपक्रम एनटीपीसी, रुरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन, सतलज जल विद्युत निगम और राष्ट्रीय खनिज विकास निगम [एनएमडीसी] जैसे सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी आंशिक इक्विटी विनिवेश से सरकार को करीब 50,000 करोड़ रुपये की राशि मिलने की उम्मीद है। नए बजट में सर्विस टैक्स बढ़ाया जा सकता है। इसे बढ़ाकर एक वर्ष पूर्व के स्तर पर लाया जा सकता है। यूरिया को छोड़ सभी उर्वरकों की सब्सिडी कम हो सकती है। शेयर बाजार के लिए बजट में उपहारों का ढेर नहीं होगा। यहां यह बढ़ते राजकोषीय घाटे के मद्देनजर संसद की वित्त संबंधी स्थाई समिति ने बार-बार अपने प्रतिवेदन में सरकार को सलाह दी है कि उसे बार-बार सब्सिडी और कर छूट देने से बचना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष [आईएमएफ] ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत और अधिक तेजी से विकास कर सकता है, लेकिन उसका राजकोषीय घाटा तर्कसंगत नहीं है। आईएमएफ ने भारत को सलाह दी है कि वह राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाए। उसका कहना है कि इस समय भारत के लिए सुनहरा मौका है कि वह आर्थिक सुधारों को लागू करे और महसूस करे कि उसकी अर्थव्यवस्था में अकूत संभावनाएं हैं। हम आशा कर सकते हैं कि नए बजट में एक ओर वित्तमंत्री आम आदमी को राहत देने के प्रयास करते हुए दिखाई देंगे। वहीं दूसरी ओर प्रोत्साहन पैकेजों की वापसी की शुरुआत और अर्थव्यवस्था के लिए बोझ बन रही अनावश्यक रियायतों को नियंत्रित करके राजस्व और राजकोषीय घाटे में कमी करने के पुरजोर प्रयासों से अर्थव्यवस्था की तस्वीर को सुहावनी बनाने की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई देंगे। (दीत्लिने इंडिया)
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