नई दिल्ली January 18, 2010
भले ही बजट घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.8 फीसदी तक पहुंच रहा है, लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार सामाजिक क्षेत्र में कंजूसी बरतती नहीं दिख रही है।
अगले वित्त वर्ष के लिए पेश होने वाले बजट के लिए सरकार इस क्षेत्र के लिए खुले हाथों से धन मुहैया कराने की तैयारी में है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इन योजनाओं को धन आवंटित करने के लिए अगले वित्त वर्ष में कई सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेची जा सकती है।
आने वाले बजट में सबसे महत्वाकांक्षी सरकारी परियोजनाओं में से एक राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के लिए आवंटित धन में तो इजाफा हो ही सकता है। साथ ही सरकार खाद्य सुरक्षा कानून के अपने चुनावी वायदे को भी पूरा कर सकती है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक अन्य अहम योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के लिए भी ज्यादा राशि के आवंटन की मांग की है। उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों का कहना है कि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को 3 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से गेहूं और चावल देने से सरकारी खजाने पर 25,000 करोड़ रुपये का बोझ और बढ़ेगा।
बहरहाल संप्रग की सुप्रीमो सोनिया गांधी 'आम आदमी' को ध्यान में रखते हुए सरकार से आगे बढ़ने की उम्मीद रखती हैं। दरअसल आंध्र प्रदेश जैसे राज्य ने जनता को छूट पर खाद्यान्न मुहैया कराकर जबरदस्त राजनीतिक फायदा कमाया।
उम्मीद की जा रही है कि कृषि मंत्री शरद पवार बजट सत्र के दौरान खाद्य सुरक्षा से जुड़ा कानून सदन में पेश करेंगे। बाद में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी बजट में इस योजना के लिए इंतजाम करेंगे। बीपीएल परिवारों को छूट वाला खाद्यान्न मुहैया कराने से 25,000 करोड़ रुपये के जिस अतिरिक्त खर्च की बात की जा रही है उसकी बुनियाद है देश में मौजूद ऐसे लोगों की संख्या।
योजना आयोग के 2004-05 के अनुमान के मुताबिक देश में 30 करोड़ ऐसे लोग मौजूद हैं। सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट का कहना है कि देश में 42 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। हालांकि अभी तक योजना आयोग ने इस रिपोर्ट को मान्यता नहीं दी है।
लेकिन अगर आयोग इसे मंजूरी दे देता है तो खाद्य सुरक्षा पर सरकार का खर्च अपने आप ही बढ़ जाएगा। वैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मुद्दे को लेकर काफी संजीदा हैं और उन्होंने नरेगा की समीक्षा के लिए हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय के लोगों से बात की है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नरेगा के लिए 65 फीसदी अधिक आवंटन की मांग रखी।
...पर खाली खज़ाना आएगा किस काम
सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं खास तौर पर ग्रामीण इलाकों के लिए खर्च पर इस बार के बजट में रहेगा खासा ज़ोरग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना, ग्रामीण कौशल विकास पर व्यय में बढ़ोतरी होगी और ग्रामीण गरीबों को रियायती कीमत पर अनाज मुहैया कराया जाएगानरेगा में खर्च को सरकार बढ़ाकर पहुंचा सकती है 66,300 करोड़ रुपये तक। राष्ट्रीय आजीविका अभियान पर भी खर्च 10,500 करोड़ रुपये हो सकता हैराजकोषीय घाटा ऐतिहासिक होने की वजह से विनिवेश से मिली रकम खर्च होगी इन पर (बीएस हिंदी)
25 फ़रवरी 2010
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