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11 फ़रवरी 2010

केंद्र सरकार खरीदेगी चीनी

नई दिल्ली ।। चीनी की महंगाई पर काबू पाने की सरकारी कोशिशों का अब तक असर नहीं हुआ है। ऐसे में केंद्र अब विदेश से 10 लाख टन तैयार सफेद चीनी खरीदने की सोच रहा है। आयात सरकारी ट्रेडिंग कंपनियों के जरिए किया जाएगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव को देखते हुए सरकार लंदन के लिफे कमॉडिटी एक्सचेंज पर इस सौदे की हेजिंग भी कर सकती है। चीनी को लेकर हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि अगले सीजन में भी देश के चीनी उत्पादन में ज्यादा सुधार नहीं हो पाएगा। इससे यह संकट और बढ़ सकता है।वैश्विक बाजार में चीनी के दाम पिछले सप्ताह 29 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए। इसकी बड़ी वजह भारत ही है। भारत के विदेश से चीनी आयात करने की वजह से वहां इसकी कीमतें रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। चीनी के बड़े उत्पादक देशों को उम्मीद है कि भारत अपनी घरेलू मांग पूरी करने के लिए आयात पर निर्भर रहेगा।थोक मूल्य सूचकांक के मुताबिक, खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर करीब 18 फीसदी है और चीनी की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 50 फीसदी से भी अधिक बढ़ गई हैं। पिछले एक साल में खुदरा बाजार में चीनी के दाम दोगुने से भी अधिक हो गए हैं और इससे प्रोसेस्ड खाद्य वस्तुओं और सॉफ्ट ड्रिंक की कीमतें भी बढ़ी हैं। इस समय भारत 2009-10 के चीनी उत्पादन सीजन के चरम पर है। तैयार चीनी का आयात अप्रैल के बाद गन्ने की कटाई खत्म होने पर ही किया जाएगा। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, 'कुछ सीजन पहले गेहूं के आयात को लेकर जो प्रक्रिया अपनाई गई थी, वही चीनी के लिए भी आजमाई जा सकती है। उस समय भारतीय खाद्य निगम ने गेहूं के आयात के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग कंपनियों का इस्तेमाल किया था।' चीनी के आयात के मामले में सरकार एसटीसी, एमएमटीसी और पीईसी जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग कंपनियों से आयात करने को कह सकती है। चीनी के तट पर उतरने के साथ ही इसकी बिक्री कारोबारियों और इस कमोडिटी का बड़ा इस्तेमाल करने वालों को की जाएगी। इससे परिवहन का खर्च बचेगा और थोक बाजार में दाम जल्द ही कम किए जा सकेंगे। सरकारी हलकों में यह माना जा रहा है कि सरकार का सीधे बाजार में दखल जरूरी हो गया है और इसे टाला नहीं जा सकता क्योंकि 2010 के आगामी सीजन के लिए भी गन्ने की बुआई सामान्य से कम रहने की उम्मीद है।उद्योग के एक जानकार का कहना है, 'चीनी की आपूर्ति राशन की दुकानों के जरिए करने से बेहतर खुले बाजार में रियायती दरों पर इसकी बिक्री है। इससे चीनी के दाम कम करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही अगर इस सौदे को समझदारी से निपटाया जाता है तो सब्सिडी का कुल खर्च भी घट सकता है।' वैश्विक स्तर पर चीनी के दाम लगातार चढ़ रहे हैं। इसकी बड़ी वजह सालाना उत्पादन और उपभोग का लगभग 15।3 करोड़ टन पर संतुलन है। पिछले सालों का भंडार तेजी से घटने की वजह से चीनी की बड़ी मांग आने पर ब्राजील और थाईलैंड जैसे चीनी का निर्यात करने वाले देशों के कारोबारी कीमतें और बढ़ा सकते हैं। (नवभारत तिमेस)

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