February 22, 2010
खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतों ने पहले से ही कृषि मंत्री शरद पवार के लिए तमाम मुश्किलें खड़ी कर रखी हैं।
यह शायद उनके लिए काफी नहीं था कि अब उनकी अपनी पार्टी एनसीपी के मुखपत्र राष्ट्रवादी ने चीनी की ज्यादा कीमतों और कम आपूर्ति से ताल-मेल बिठाने के लिए लोगों को चीनी के उपभोग को कम करने का सुझाव दे डाला है। इस बिन मांगी सलाह ने शरद पवार के लिए शर्मिंदगी की स्थिति पैदा कर दी है।
चीनी की कीमतों को कम करने में मददगार सुझावों के बजाए राष्ट्रवादी में कहा गया है, 'कोई भी इंसान चीनी खाए बिना मर नहीं सकता, और चीनी को एक आवश्यक वस्तु क्यों माना जाता है?'
पवार पहले ही संप्रग के लिए यह कहकर परेशानी का सबब बन चुके हैं कि खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतों के लिए वो अकेले जिम्मेदार नहीं हैं, कोई भी फैसला लेने में प्रधानमंत्री के साथ पूरा मंत्रिमंडल शामिल था। पवार ने राष्ट्रवादी में कही गई बातों से खुद को अलग करने में जरा भी देर नहीं लगाई।
पत्रिका के संपादक द्वारा आजादी का फायदा उठाए जाने को लेकर पवार चाहे जो भी कहें, सच तो यह है कि एनसीपी उनकी जागीर की तरह है और पार्टी का हर सदस्य उनकी सोच से वाकिफ है। वैसे पूरी दुनिया चीनी को लेकर पवार की दिलचस्पी को समझता है।
पर, जो भी कहा जाए, दिसंबर तक चीनी की वैश्विक कीमतें 28 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं थी, और कम से कम इसके लिए पवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इसके बाद सभी वस्तुओं की कीमतों में कमी के साथ चीनी की कीमतें भी कम हुईं। लगातार पिछले तीन सत्रों से चीनी की आपूर्ति में भारी कमी की वजह से चीनी की कीमतें इस स्तर तक चढ़ गईं।
श्री रेणुका शुगर्स के प्रबंध निदेशक नरेंद्र मुरकुंबी के मुताबिक चालू सत्र के अंत तक चीनी की मांग की तुलना में आपूर्ति करीब 70 लाख टन कम रहेगी जिसकी भरपाई आयातों के जरिए की जानी होगी। मुरकुंबी ने हाल ही में दुबई में एक सम्मेलन में कहा, 'हम करीब 15 लाख टन आयातित कच्ची चीनी के स्टॉक को खोल चुके हैं।
इसके बाद इस सत्र में कुल 55 लाख टन चीनी आयात करने की जरूरत है।' भारतीय चीनी मिल संघ के पूर्व अध्यक्ष ओम धानुका का कहना है कि गन्ने की कीमतें तय करने में जरूरत से ज्यादा देरी होने से उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों में पेराई का काम इस सत्र में देरी से शुरू हुआ।
इसके बाद गन्ने की सीमित आपूर्ति की वजह से इस सत्र में कम पेराई क्षमता के साथ मिलों में पेराई जल्दी बंद होने से इस बात की उम्मीद नहीं है कि कुल उत्पादन में पिछले सत्र की अपेक्षा कोई खास फर्क देखने को मिलेगा। पिछले साल चीनी का उत्पादन महज 1.46 करोड़ टन रहा था। ऐसी स्थिति में मांग की अपेक्षा उत्पादन में 70 लाख टन से भी ज्यादा की कमी रहेगी।
इस सत्र में देश की चीनी कंपनियों को चीनी उत्पादन की लागत करीब 3,095 रुपये प्रति क्विंटल पड़ रही है। इस साल मिलों की तरफ से गन्ने के लिए करीब 250 रुपये क्विंटल की कीमत चुकाई गई है। इस बार गन्ने से चीनी की रिकवरी दर 10 फीसदी रही है। लगातार तीन सत्रों से नुकसान उठा रही चीनी कंपनियां दिसंबर में खत्म तिमाही में घाटे में चली गईं।
चीनी एक मात्र कृषि उत्पाद है जिस पर दी जाने वाली सब्सिडी का भार सरकार के बजाए उत्पादकों पर पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि लेवी चीनी का एक बड़ा हिस्सा खुले बाजार तक पहुंच रहा है जो व्यवस्था का मजाक उड़ा रहा है। गरीबी रेखा के नीचे जी रहे लोगों को कम दरों पर चावल, गेहूं और दालों की चाहत है न कि चीनी की।
धानुका का कहना है कि आयातित सफेद चीनी या आयातित कच्ची चीनी जिसे यहां परिशोधित किया जा रहा है लेवी की शर्तों से मुक्त हैं। निकासी के मामले में भी आयातित चीनी को घरेलू चीनी की तुलना में कई तरह की छूटें मिलती हैं। घरेलू चीनी की बिक्री मासिक निकासी व्यवस्था के तहत होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर कंपनियों को चीनी बेचने की आजादी होती और गरीबी रेखा से नीचे जी रहे लोगों के लिए सरकार बाजार से चीनी खरीदती, तो बाजार में चीनी की कीमतों में ज्यादा स्थिरता रहती। दो सत्रों से चीनी के घरेलू उत्पादन में भारी कमी ने चीनी के आयात पर हमारी निर्भरता काफी बढ़ा दी है।
इसके साथ ही गन्ना उत्पादकों को भी गन्ने के लिए काफी ऊंची कीमतें दी जा रही हैं। इन दोनों वजहों ने मिलकर चीनी की कीमतों में तेज उछाल के लिए आधार तैयार करने का काम किया है। लिफे में मार्च सौदों के लिए सफेद चीनी की वायदा कीमतें 740 डॉलर प्रति टन और आईसीई में कच्ची चीनी की वायदा कीमतें 28 सेंट प्रति पाउंड पर पहुंच गई हैं।
डॉलर की मजबूती की वजह से कीमतें अपने सर्वोच्च स्तर से नीचें आ चुकी हैं। हालांकि चीनी सलाहकार समिति किंग्समैन एसए का कहना है, 'निर्यात की तुलना में आयात के लिए मांग ज्यादा रहने की वजह से स्थितियां अभी भी सकारात्मक हैं।'
अगले कुछ महीनों में भी बाजार में बढ़त जारी रहेगी क्योंकि भारत, चीन, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, मिश्र और रुस घरेलू मांग और बढ़ती कीमतों की वजह से अभी और आयात करने वाले हैं।
इस समय वैश्विक स्तर पर चीनी की आपूर्ति मांग की तुलना में करीब 1.35 करोड़ टन कम है। पर, ब्राजील और चीन में बढ़िया उत्पादन की मदद से अलगे सत्र में चीनी का उत्पादन मांग की तुलना में करीब 40 लाख टन तक ज्यादा रहने की उम्मीद है। (बीएस हिंदी)
23 फ़रवरी 2010
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