मुंबई March 23, 2010
चीनी की कीमतों में नाटकीय रूप से आई गिरावट के चलते चीनी का उत्पादन करने वाली कंपनियों का मुनाफा घट रहा है, इसे देखते हुए चीनी उद्योग ने तत्काल सरकारी संरक्षण की गुहार लगाई है।
उद्योग के सर्वोच्च निकाय भारतीय चीनी उत्पादक संघ (इस्मा) ने कृषि मंत्रालय को पत्र लिखा है। इस चिट्ठी में कुछ सुझाव पेश किए गए हैं। इस्मा ने कहा है कि बड़ी मात्रा में चीनी इस्तेमाल करने वालों को इसका स्टॉक लंबी अवधि तक रखने की अनुमति दी जाए, कच्ची रिफाइंड चीनी पर आयात शुल्क लगाया जाए और चीनी की गिरती कीमतों को थामने के लिए निर्यात की अनुमति दी जाए।
इस्मा के अध्यक्ष और बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ने कहा - कई ऐसे मुद्दे हैं जो चीनी उत्पादकों के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लिहाजा इसे तत्काल सुलझाने की दरकार है। सरकार ने हाल में कोल्ड ड्रिंक निर्माता समेत बड़े कॉरपोरेट उपभोक्ताओं को सिर्फ 10 दिन की जरूरत के बराबर चीनी का स्टॉक रखने की अनुमति दी है जबकि इस आदेश से पहले ये उपभोक्ता एक महीने से ज्यादा की जरूरत के बराबर स्टॉक अपने पास रखते थे।
इस्मा की मांग है कि चीनी मिलों से उनके सालाना उत्पादन का 20 फीसदी लेवी कोटा तत्काल हटाया जाना चाहिए, जो कि उन्हें मौजूदा बाजार कीमत से करीब 60 फीसदी कम कीमत पर देना पड़ता है।
इससे पहले, जन वितरण प्रणाली के लिए 13.45 रुपये प्रति किलो की दर से लेवी कोटा की चीनी दी जाती थी और अगर कारोबारियों व स्टॉकिस्टों द्वारा पूरा माल नहीं उठाया जाता था तो यह मात्रा स्वत: ही फ्री कोटे में तब्दील हो जाती थी और चीनी मिलों के लिए यह काफी अच्छा होता था।
जब से सरकार ने लेवी कोटा के प्रावधान में संशोधन कर इसे साप्ताहिक रोलओवर का कर दिया है, चीनी मिल आर्थिक दबाव से जूझ रहे हैं। यह इकलौता ऐसा उद्योग है जो अपने उत्पादन का महत्वपूर्ण हिस्से की आपूर्ति पीडीएस के लिए करता है, जबकि बाकी अन्य उद्योगों के साथ ऐसी कोई बात नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है कि चीनी उद्योग में साप्ताहिक कोटा रिलीज सिस्टम को पिछले साल की तरह महीनेवार रिलीज में तब्दील किए जाने की बेहद जरूरत है। हाजिर बाजार में उतार-चढ़ाव होने पर चीनी मिल पहले अपने जोखिम को कम करने के लिए वायदा एक्सचेंज में हेजिंग करते थे।
चूंकि वायदा एक्सचेंज से इस उपकरण को हटा लिया गया है तो ऐसे में मिलों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के जरिए कच्चे माल की कीमत तय करना और पहले से तय पूर्ण नियंत्रित दर पर इसे बेचने के बजाय गन्ने की कीमत को चीनी की कीमत के अनुपात में तय किया जाना चाहिए।
जब जनवरी महीने की शुरुआत में चीनी की कीमत (एक्स-मिल) 42 रुपये प्रति किलो की ऊंची दर पर थी तब सरकार ने इसकी कीमत में कमी लाने के लिए विभिन्न कदम उठाए थे। अब यह मकसद हल हो गया है और चीनी की कीमत 32 रुपये प्रति किलो की उचित दर पर पहुंच गई है तो इस उद्योग के लिए संरक्षणवादी कदम उठाए जाने की दरकार है ताकि लंबे समय तय यह उद्योग टिका रहे। इस बीच, गन्ने की कीमत कम नहीं हुई है।
चीनी के सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की मिलें वर्तमान में गन्ने की कीमत 275-300 रुपये प्रति क्विंटल चुका रही हैं जबकि उत्तर प्रदेश में गन्ना 260-280 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध है। उद्योग का अनुमान है कि इस साल 168 लाख टन चीनी का उत्पादन होगा। पिछले साल 147 लाख टन चीनी उत्पादित हुई थी।
सरावगी ने कहा - स्थायी कारोबारी हित के लिए उद्योग की जरूरतों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर किसानों के बकाया राशि का भुगतान न होना और गन्ने की पराई के अव्यवहार्य होने के मामले से इनकार नहीं किया जा सकता।
गिरती कीमतों से उद्योग परेशान
भारतीय चीनी उत्पादक संघ ने कृषि मंत्रालय को पत्र लिख सुझाए उपाय इस्मा ने लंबी अवधि के लिए स्टॉक रखने, आयात शुल्क लगाने और निर्यात के लिए मांगी अनुमति कीमतें 32 रुपये प्रति किलो तक गिर चुकी हैं (बीस हिंदी)
23 मार्च 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें