नई दिल्ली March 29, 2010
उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें कुछ अरसा पहले तक चीनी की आसमान छूती कीमत और गन्ने की रिकॉर्ड उपज को देखकर फूले नहीं समा रही थीं, लेकिन अब गन्ने की यही उपज उनके हलक में अटक गई है।
गन्ने की उपलब्धता की वजह से पेराई का सत्र राज्य में इस बार लंबा चल रहा है, जिसकी वजह से तकरीबन 1,000 करोड़ रुपये का भुगतान लटक गया है। उत्तर प्रदेश में गन्ने का भाव ज्यादा है और चीनी का उठान कम है, इसलिए मिलों की हालत खराब है। राज्य में बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और त्रिवेणी इंजीनियरिंग जैसी शीर्ष चीनी कंपनियों की मिलें हैं।
विभिन्न जिलों के गन्ना आयुक्तों से मिले आंकड़ों के मुताबिक कई स्थानों पर गन्ने के भुगतान का अच्छा खासा बकाया जमा हो गया है। इनमें सबसे ज्यादा 218 करोड़ रुपये का भुगतान मुजफ्फरपुर में अटका है।
इसके अलावा बिजनौर में 199 करोड़ रुपये, बागपत में 139 करोड़ रुपये, मेरठ में 136 करोड़ रुपये और सहारनपुर में 80 करोड़ रुपये का बकाया है। एक सूत्र ने बताया, 'राज्य के पश्चिमी जिलों में बकाया जमा है क्योंकि वहां मिलों में पेराई का समय बढ़ गया है। '
ज्यादातर चीनी कंपनियों का दावा है कि चीनी उत्पादन की लागत बढ़ गई है। गन्ना 260 रुपये प्रति क्विंटल है और 20 फीसदी लेवी चीनी 1,300-1,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बिकेगी। ऐसे में लागत 3,600 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है। लेकिन उठान 3,150 से 3,200 रुपये प्रति क्विंटल पर हो रहा है।
बाजार में चीनी का एक्स मिल भाव इसी साल जनवरी में 4,300 रुपये प्रति क्विंटल का रिकॉर्ड बना गया था। लेकिन उसके बाद अंतरराष्ट्रीय भाव में नरमी और सरकारी कदमों की वजह से इसमें लगातार कमी आ रही है।
कंपनियों को गन्ना अब भी 260 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर खरीदना पड़ रहा है, लेकिन चीनी भंडार कम होने की वजह से अब वे ज्यादा रकम उधार नहीं ले पा रही हैं, इसलिए भुगतान लटक रहा है।
हर ज़िले से चीनी मिलों को हैं गिले
ज़िला बकायामुज़फ्फरपुर 218बिजनौर 199बागपत 139मेरठ 136सहारनपुर 80*आंकड़े करोड़ रुपये में स्रोत: ज़िला गन्ना आयुक्त कार्यालय (बीएस हिंदी)
29 मार्च 2010
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