नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें जमकर लुढ़कने और घरेलू उत्पादन में हो बढ़ोतरी के बावजूद उपभोक्ताओं के लिए सस्ती चीनी सपना बनी रह सकती है। सरकार ने चीनी की कीमतों को स्थिर करने के लिए एक बार फिर कोटा प्रणाली में परिवर्तन करके मिलों को मनमानी करने की छूट दे दी है। यही नहीं, निर्धारित कोटे के बिना बिकी चीनी को लेवी में जब्त करने की प्रक्रिया को भी फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। यही कारण है कि खुले बाजार में चीनी के थोक भाव एक बार फिर 3400 रुपये के पार हो गए हैं। इससे खुदरा में चीनी फिर से 38 रुपये किलो के स्तर पर पहुंच सकती है जो अभी 36 रुपये किलो चल रही है।
मिलों के दबाव में चीनी निदेशालय फरवरी के आखिरी सप्ताह के कोटे की चीनी की बिक्री के लिए मिलों को 10 से 17 मार्च का समय पहले ही दे चुका है। अब मार्च के लिए निर्धारित कोटे की बिक्री के लिए भी मिलों को एक सप्ताह का अतिरिक्त समय मिल गया है। इस तरह से मिलों के पास चालू माह के कोटे की बिक्री के लिए 38 दिन का समय है। सूत्र बताते हैं कि मिलों के पास फरवरी कोटे की लगभग 3।22 लाख टन चीनी थी जिसकी बिक्री सोमवार तक हुई है। मिलें अभी तक मार्च कोटे की एक तिहाई चीनी भी नहीं बेच पाई हैं। इसमें सर्वाधिक मिलें महाराष्ट्र की बतायी जा रही हैं। निदेशालय के पास जनवरी माह के दौरान बिना बिके कोटे को लेवी के तहत जब्त की चीनी का हिसाब नहीं है।
महंगाई पर चर्चा के दौरान कृषि मंत्री शरद पवार संसद में पहले ही यह बयान दे चुके हैं कि 250 रुपये क्विंटल पर गन्ने की खरीद पर चीनी की लागत लागत 3200 रुपये क्विंटल से ’यादा होती है। इसी प्रकार आयातित कच्ची चीनी के प्रसंस्करण से तैयार चीनी भी 3800 रुपये क्विंटल से ऊंची पड़ रही है। इन परिस्थितियों में घरेलू उद्योग की बेहतरी के लिए चीनी के दामों को 4000 रुपये क्विंटल पर स्थिर रहना जरूरी है। (अमर उजाला)
18 मार्च 2010
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