March 25, 2010
चीनी की गिरती कीमतों से परेशान भारतीय चीनी कंपनियों की धड़कनें अंतरराष्ट्रीय बाजार में लुढ़कते दामों से और भी तेज हो गई हैं।
आईसीई के मई वायदा में कच्ची की कीमतें 18.25 सेंट प्रति पाउंड चल रही हैं। 1 फरवरी को भाव पिछले 30 सालों के सर्वोच्च स्तर पर थे। फिलहाल कीमतें इस स्तर से 40 फीसदी नीचे आ गई हैं। उत्तर भारत की मिलें इस साल किसानों को गन्ने के लिए 260-275 रुपये क्विंटल का दाम चुका रही हैं।
मिलों सें निकलने वाली चीनी के दाम में तेजी से कमी आने से उनके मुनाफे पर असर हो रहा है। पश्चिम और दक्षिण के बाजारों में चीनी के भाव 2,800 रुपये क्विंटल और उत्तर भारत के बाजारों में चीनी के भाव 3,100 रुपये क्विंटल चल रहे हैं।
भारतीय चीनी मिल संघ का कहना है कि चालू सत्र में मिलें उचित और लाभकारी मूल्य के मुकाबले 19,000 करोड़ रुपये ज्यादा का भुगतान कर रही हैं। इसके साथ ही कुल उत्पादन का 20 फीसदी हिस्सा लेवी चीनी में बदले जाने का ससरकारी दबाव भी उन्हें झेलना पड़ रहा है।
इस्मा के अध्यक्ष विवेक सरावगी का कहना सही है कि मिलें किसानों की इतनी ऊंची कीमतें इसलिए चुका रही हैं ताकि गुड़ और खांडसारी व्यवसाय की ओर जा रहे गन्ने रुख चीनी उद्योग की ओर मोड़ा जा सके। सरावगी का कहना है कि मिलों के इस प्रयास से चीनी का उत्पादन इस सत्र के अंत तक पहले के अनुमान 160 लाख टन के बजाए 168.45 लाख टन रह सकता है।
पिछले साल उतपादन केवल 140 लाख टन रहा था। हमारा सालाना उपभोग करीब 230 लाख टन है और 3 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। कच्ची और सफेद दोना तरह की चीनी के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देकर सरकार ने स्थिति को संभालने की जरूर कोशिश की है।
देश में अब तक 30 लाख टन सफेद चीनी आ चुकी है और 20 लाख टन अतिरिक्त चीनी के आयात के लिए सौदे हो चुके हैं। तीन लगातार सालों तक चीनी का निर्यातक रहने के बाद 2008-09 से भारत चीनी के बड़े आयातक के तौर पर उभर रहा है। फसल के दौरान ब्राजील में भारी बारिश और पाकिस्तान, मिस्र और मेक्सिको में भारी मांग की वजह से चीनी सट्टेबाजों के लिए आकर्षक क्षेत्र बन गया है।
21 जनवरी को चीनी के मार्च वायदा भाव 759 डॉलर के उच्च स्तर पर थे, लेकिन तब भी कारोबारी लॉन्ग पोजीशन ले रहे थें। मतलब यह कि उन्हें इसके बाद भी कीमतों में और चढ़ने की उम्मीद थी। इस कीमत पर भी हमारे खरीदार सौदे कर रहे थे लिहाजा इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मिलों में चीनी की कीमतें 3,905 रुपये से 4,050 रुपये प्रति टन के बीच पहुंच गई थीं।
ऐसे में सरकार ने चीनी की कीमतों में कमी करने के तमाम प्रयास किए। बड़े उपभोक्ताओं के लिए स्टॉक सीमा तय की गई। साथ हीं मिलों को चीनी की साप्ताहिक बिक्री को कहा गया। पर, कीमतें ऊंची बनी रहीं।पर अब स्थितियां बदल गई हैं। ब्राजील की सलाहकार कंपनी डाटाग्रो ने अनुमान लगाया है कि ब्राजील का चीनी उत्पादन 12.7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 373 लाख टन रहेगा।
भारत में भी चीनी उत्पादन के पुराने रुझानों से पता चलता है कि जब भी किसानों को अपनी मेहनत का उचित इनाम मिलता है और गन्ने की कीमतें जल्दी निश्चत हो जाती हैं, किसान अगले सत्र में ज्यादा जमीन में गन्ने की बुआई करते हैं। इस्मा के पूर्व अध्यक्ष ओम धानुका का कहना है कि अक्टूबर में शुरू हो रहे नए सत्र में देश का चीनी उत्पादन 250 लाख टन तक जा सकता है।
दुनिया के दो बड़े चीनी उत्पादक देशों में बढ़िया उत्पादन संभावनाओं को देखते हुए, आगे कीमतों में और गिरावट की संभावनाओं से कोई इनकार नहीं कर सकता। ब्राजील और भारत में बंपर पैदावार को देखते हुए क्या कारोबारी अपने पोजीशन का निपटान करेंगे? क्या वे इस बात से कोई संकेत नहीं लेंगे कि यूरोपीय संघ 5,00,000 टन अतिरिक्त चुकंदर की चीनी बेचने जा रहा है और डब्ल्यूटीओ को भी इसमें कुछ गलत नहीं लगता है।
क्या चीनी बाजार चीन द्वारा आयात संभावनाओं से कोई प्रात्साहन लेगा? इंडोनेशिया, मिस्र, पाकिस्तान और मैक्सिको जैसे देशों की आयात जरूरतों पर बाजार क्या रुख लेता है? आने वाले कुछ कारोबारी सत्रों में हमें इन सवालों का जवाब मिल जाना चाहिए।
महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी मिल महासंघ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे का अनुमान है कि कच्ची चीनी के भाव 18 सेंट और सफेद चीनी के भाव 500 डॉलर से भी नीचे जा सकते हैं। अपनी पोजीशन को जल्दी में समाप्त करना कई खरीदारों के लिए खरीद मूल्य निकालना भी मुश्किल कर सकता है।
इस्मा ने इस बात की भी आशंका जताई है कि भारतीय आयातकों द्वारा चीनी आयात के कई सौदों के रोके जाने का भी डर है। पर उत्पादन में सुधार और पहले से ही चीनी के पर्याप्त आयात की मदद से अगले सत्र की शुरुआत में हमारे पास अच्छा स्टॉक होगा। (बीएस हिंदी)
26 मार्च 2010
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