नई दिल्ली March 16, 2010
बढ़ती महंगाई के लिए जमाखोरी जैसी चीजों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन विश्लेषकों की मानें, तो इस बार महंगाई के पीछे सबसे बड़ा हाथ सरकार की लचर वितरण प्रणाली का है।
खुदरा और थोक मूल्य सूचकांकों में महंगाई के बढ़ते आंकड़ों और रुझानों के अध्ययन के बाद विश्लेषक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें थोक व्यापारियों की जमाखोरी और अटकलबाजी की वजह से नहीं बल्कि सरकारी वितरण व्यवस्था की खामियों की वजह से चढ़ रही हैं।
साल 2009 में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) और ग्रामीण मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-आरएल) की बढ़त के विश्लेषण के बाद जानकार इस नतीजे पर पहुंचे हैं। 2009 में खाद्य वस्तुओं की महंगाई थोक कीमतों के स्तर पर चढ़ने से पहले ही खुदरा स्तर पर बढ़ती नजर आई।
जिस स्तर तक महंगाई दर 2009 में चढ़ी थी, आमतौर पर ऐसी स्थिति में पहले थोक कीमतें बढ़ती हैं जिसका असर आगे खुदरा कीमतों पर देखा जाता है। साल 2009 में सितंबर तक ज्यादातर समय सीपीआई-आरएल डब्ल्यूपीआई की तुलना में तेज गति से बढ़ा है। सीपीआई-आरएल सूचकांक में खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी 70 फीसदी है।
12 महीनों में से 10 महीने में सीपीआई-आरएल की बढ़त दो अंकों में रही जबकि इस दौरान डब्ल्यूपीआई की बढ़त 8 फीसदी के आस-पास देखी गई। औद्योगिक मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य वस्तुओं का हिस्सा आधे से भी कम है, इसलिए विश्लेषण में इसे शामिल नहीं किया गया है।
मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने कहा, '2009 में खुदरा कीमतों में थोक कीमतों की तुलना में ज्यादा तेजी से वृद्धि हुई है जिसका मतलब है कि खुदरा स्तरों पर ज्यादा मुनाफा कमाया गया है। बड़े स्तरों पर कीमतों को लेकर सट्टेबाजी हमेशा होती रही है, पर मौजूदा रुझानों से ऐसा नहीं लगता कि बड़े स्तरों पर कीमतों को लेकर ज्यादा अटकलबाजी हुई है।'
ज्यादातर विशेषज्ञ कम से कम इस बात को लेकर निश्चित जरूर हैं कि सरकार की तरफ से बढ़ती महंगाई के लिए खराब मानसून और कम उत्पादन को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है।
एचडीएफसी बैंक में अर्थशास्त्री ज्योतिंदर कौर का कहना है, 'खाद्य उत्पादों की ऐसी महंगाई काफी चिंताजनक है। इस तरह के रुझानों से साफ तौर से पता चलता है कि ऐसी महंगाई की समस्या कुछ फसलों के चक्र सुधारकर हल नहीं क जा सकती है। खुदरा स्तर पर कीमतों को देखकर साफ होता है कि सरकार वितरण प्रणाली का सही प्रबंधन करने में नाकामयाब रही है। खुदरा स्तर पर महंगाई की वजह सट्टेबाजी नहीं है।'
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक राज्य स्तर पर खास तौर से यह समस्या देखने को मिली है। इंडिकस एनालिटक्स की मुख्य अर्थशास्त्री सुमिता काले ने कहा, 'वितरण व्यवस्था की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है, मानसून में उतार-चढाव और उत्पादन में कमी के साथ खाद्य वस्तुओं की महंगाई और गहरी समस्या बन जाती है।'
बढ़िया रबी फसल के बाजार में आने की उम्मीदों के बीच फरवरी में डब्ल्यूपीआई में महंगाई दर भले ही 17 फीसदी के उच्च स्तर से नीचे खिसक गई हो, लेकिन खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर के आगे भी दो अंकों में रहने का अनुमान है। (बीएस हिंदी)
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