26 मार्च 2010
कपास की तेजी के लिए सीसीआई पर दोष मढ़ा
स्पिनिंग मिलों के संगठन सदर्न इंडिया मिल्स एसोसिएशन ने कॉटन की तेजी के लिए कॉटन कारपोरशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) की मूल्य निर्धारण और सप्लाई नीतियों को जिम्मेदार बताया है। एसोसिएशन के चेयरमैन जे। तुलसीधरन ने एक बयान में कहा कि मौजूदा सीजन के शुरू से ही खुले बाजार में कपास के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ऊपर रहने से सीसीआई की भूमिका नहीं है, फिर भी वह बाजार में लगातार कॉटन का कारोबार कर रहा है। एसोसिएशन के सदस्यों से शिकायतें मिली हैं कि समझौते के अनुरूप तय मात्रा की एक तिहाई भी कॉटन सीसीआई निर्धारित मूल्य पर बेच नहीं रहा है। वह बार-बार 700-800 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 356 किलो) मूल्य बढ़ा रहा है। उन्होंने बताया कि चूंकि सीसीआई का बिक्री मूल्य बाजार के लिए बेंचमार्क प्राइस बन जाता है। ऐसे में पिछले कुछ दिनों में कॉटन के दाम तेजी से बढ़ गए। सीसीआई ने पिछले 22 मार्च को शंकर-6 किस्म के कॉटन का मूल्य 700 रुपये प्रति कैंडी से ज्यादा बढ़ा दिया।टैक्सटाइल सेक्टर की वैल्यू चेन के उद्योग यार्न के दाम बढ़ने की शिकायत कर रहे है जबकि स्पिनिंग मिलों ने कच्चे माल और बिजली खर्च की पूरी मूल्य वृद्धि के अनुरूप तैयार यार्न के दाम नहीं बढ़ाए हैं।तुलसीधरन ने कहा कि सीसीआई को टैक्सटाइल उद्योग को स्पर्धी बनाए रखने के लिए कॉटन के मूल्य में लगातार बढ़ोतरी नहीं करनी चाहिए। टैक्सटाइल सेक्टर में श्रमिकों की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है। मंदी के बाद यह सेक्टर उबरने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि कॉटन आधारित टैक्सटाइल सेक्टर को पिछले दो साल तक मंदी के कारण भारी संकट का सामना करना पड़ा। (बिसनेस भास्कर)
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