18 मार्च 2010
फ्लोर मिलों ने गेहूं मांगा ज्यादा पर खरीदा कम
औद्योगिक उपभोक्ता खासकर फ्लोर मिलों ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं का आवंटन बढ़ाने का कई बार अनुरोध किया। सरकार ने आवंटन बढ़ाने के फैसले भी किए लेकिन मिलों ने सरकारी गेहूं खरीदने में कंजूसी बरती। यही वजह है कि मिलों ने करीब 58 फीसदी आवंटित गेहूं की खरीद की। उत्पादक राज्यों में गेहूं की बिक्री बंद हो गई है जबकि गैर उत्पादक राज्यों में 31 मार्च को बंद हो जाएगी।खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सरकार ने बड़े उपभोक्ताओं को 20।81 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था। लेकिन इसमें से मात्र 11.98 लाख टन गेहूं के लिए निविदा भरी गईं। औद्योगिक उपभोक्ताओं ने 11.65 लाख टन का उठान किया है। उधर राज्यों ने आवंटित गेहूं और चावल उठाने में और ज्यादा उदासीनता दिखाई। केंद्र ने राज्यों को 20 लाख गेहूं और 10 लाख टन चावल आवंटित किया था। लेकिन उनके द्वारा सिर्फ 3.84 लाख टन गेहूं और 4.48 लाख टन चावल का उठान किया गया। मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में गेहूं की नई फसल की आवक शुरू हो गई है। इसलिए खुले बाजार में गेहूं के दाम घट गए हैं और सरकारी मूल्य से कम हो गए हैं। केंद्र सरकार को नए खरीद सीजन में गेहूं की सरकारी खरीद बढ़कर 260 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है। पिछले खरीद सीजन में एफसीआई ने 253 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। हालांकि जानकारों का मानना है कि इस बार समर्थन मूल्य पर खरीद 260 लाख टन से भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि केंद्रीय पूल में गेहूं के बंपर भंडार और नई फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना को देखते हुए मांग हल्की रहेगी जिससे गेहूं के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम रह सकते हैं। नए खरीद सीजन के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1100 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। सरकार के पास गेहूं का बड़ा स्टॉक मौजूद है। एक मार्च को केंद्रीय पूल में गेहूं का 206.83 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ है। तय मानक के अनुसार एक अप्रैल को केंद्रीय पूल में 84 लाख टन गेहूं का स्टॉक होना चाहिए। लेकिन वर्तमान स्थिति में बकाया स्टॉक बफर के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा बचने की संभावना है। वर्ष 2008-09 में देश में गेहूं का 806.8 लाख टन का उत्पादन रहा था। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2009-10 में देश में गेहूं का उत्पादन 802.6 लाख टन होने का अनुमान है। हालांकि जानकारों का मानना है कि उत्पादन 820 लाख टन से भी ज्यादा हो सकता है।rana@businessbhaskar.net (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
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