मुंबई March 15, 2010
चीनी कंपनियां कुछ दिनों पहले तक तो झूम रही थीं, लेकिन अब कीमतों का पहिया उनके दांत खट्टे कर रहा है।
दरअसल चीनी के दाम जनवरी में चरम पर पहुंचे थे, लेकिन अब आंकड़े उसके मुकाबले 22 फीसदी गिर चुके हैं। जनवरी में जिन मिलों ने चालू तिमाही के दौरान बेहतर मुनाफा कमाने की उम्मीद लगाई थी, उनके सुर अब बदल रहे हैं।
जनवरी में घरेलू बाजार में चीनी के दाम (मिल से बाहर आने पर) 40 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास थे, लेकिन अब कीमत केवल 28 रुपये प्रति किग्रा हो गई है। इस तरह दाम में 30 फीसदी की गिरावट आ गई है। खुदरा बाजार में जरूर गिरावट अभी 22 फीसदी ही है, लेकिन यह आंकड़ा भी मिल मालिकों की पेशानी पर बल डाल रहा है।
निकल गए बल
ब्रोकरेज फर्म कोटक कमोडिटीज सर्विसेज लिमिटेड के विश्लेषक अमोल तिलक ने बताया कि दिसंबर 2009 में खत्म तिमाही के दौरान तकरीबन सभी चीनी मिलों के शुद्ध लाभ में कई गुना बढ़ोतरी हुई थी क्योंकि चीनी के भाव गुब्बारे की तरह बढ़ रहे थे।
लेकिन इस वक्त चीनी मिलों को लागत की वसूली भर हो रही है। हां, अगर 31 रुपये प्रति किलोग्राम के थोक भाव में और गिरावट आती है, तो चीनी मिलों को घाटा होने लगेगा। हर हफ्ते बाजार में जारी की जाने वाली चीनी का कोटा सरकार ने तय कर दिया है, जिससे बाजार में चीनी की आपूर्ति बहुत अधिक हो गई है।
इससे परेशान भारतीय चीनी मिल संगठन (इस्मा) ने सरकार से मांग की है कि महीने के कोटे की पुरानी प्रणाली लागू की जाए। दरअसल सरकार ने मांग के बराबर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए चालू सत्र में हर हफ्ते तय मात्रा में चीनी जारी करने की व्यवस्था लागू कर दी थी। आपूर्ति कम रहने की वजह से ही जनवरी में कीमतें आसमान पर पहुंच गई थीं।
लेकिन अब जरूरत से ज्यादा चीनी बाजार में पहुंच गई है, जिससे उसका भाव पिछले डेढ़ महीने में नाटकीय तरीके से नीचे आया है। जनवरी में भाव 4,400-4,500 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन अब यह केवल 3,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है।
लेवी भी आफत
इसके उलट गन्ना किसानों को दिया जाने वाला भाव कम नहीं हुआ है। इसकी वजह से मिलों को मौजूदा बाजार भाव पर चीनी बेचने में बड़ी दिक्कत हो रही है। लेकिन उन्हें लेवी प्रणाली के तहत अपने कुल उत्पादन का 20 फीसदी हिस्सा 13 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए भी देना है। इससे चीनी मिलों की हालत और भी पतली हो रही है।
इस्मा का कहना है कि सरकार को 20 फीसदी का आंकड़ा कम कर देना चाहिए। इस्मा का मानना है कि यदि लेवी की बाध्यता को खत्म कर दिया जाए या उसमें कुछ कटौती कर दी जाए, तो मिल मालिक घाटे का बोझ सह सकते हैं।
कड़वा घूंट
चीनी के भाव बाज़ार में गिरने से मिलें परेशानखुदरा बाज़ार में जनवरी से 22 फीसदी कम हुए भावमिलों को मिल रहा 28 रुपये प्रति किग्रा दामइसमें और कमी आई तो मिलों को होगा घाटागन्ने के भाव और लेवी का डंक चुभ रहा मिलों को (बीएस हिंदी)
17 मार्च 2010
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