18 मार्च 2010
बैटरी निर्माताओं की मांग से लेड 10 फीसदी महंगा
बैटरी निर्माताओं की मांग बढ़ने से लेड की कीमतों में तेजी आई है। बीते एक माह के दौरान इसके दाम अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में 10 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। दरअसल लेड का सबसे अधिक 71 फीसदी उपयोग बैटरी निर्माण में होता है। इस दौरान वाहनों की बिक्री में इजाफा होने से बैटरी की मांग बढ़ी है। लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में इस दौरान लेड के दाम 2,017 डॉलर से बढ़कर 2,210 डॉलर प्रति टन हो चुके हैं। वहीं घरेलू बाजार में इसकी कीमत 92 रुपये से बढ़कर 100 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। मेटल कारोबारी सुरेशचंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि बैटरी निर्माताओं की मांग बढ़ने घरेलू बाजार में लेड के दाम 10 फीसदी तक बढ़े हैं। उनका कहना है कि ऑटो की बिक्री बढ़ने के कारण बैटरी की मांग में भी इजाफा हुआ है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान ऑटो की बिक्री में भारी वृद्धि हुई है। भारतीय वाहन निर्माताओं के संघ सियाम के आंकड़ों के अनुसार फरवरी में ऑटो की बिक्री करीब 35 फीसदी बढ़कर 11.29 लाख यूनिट रही। इसके पिछले के जुलाई महीने से लगातार वृद्धि हो रही है। ऑटो सेक्टर में जबरदस्त बिक्री के कारण बैटरी की बिक्री में इजाफा हुआ है। एक्साइड इंडस्ट्रीज के डायरक्टर (ऑटोमेटिव) पी. के. काटकी ने बताया कि चालू वित्त में बैटरी की बिक्री में 16 फीसदी होने की संभावना है। उनका कहना है कि अगले वित्त वर्ष में बैटरी की बिक्री में बढ़ोतरी जारी रहने की उम्मीद है। यही कारण है कि लैड के दाम पिछले एक साल के दौरान दोगुने तक बढ़ चुके हैं। भारत के अलावा बीते महीनों में चीन, अमेरिका में भी ऑटो की बिक्री बढ़ने के कारण लेड की कीमतों में तेजी को बल मिला है। गौरतलब है कि पिछले साल के शुरूआत में आर्थिक संकट के चलते लैड की मांग में खासी कमी आई थी। जिससे इसके दाम घरेलू और अंतराष्ट्रीय बाजार में काफी नीचे चले गए थे। एलएमई में इसके दाम 1000 डॉलर प्रति टन से भी नीचे चले गए थे, जबकि घरेलू बाजार में यह आंकडा़ 50 रुपये प्रति किलो के नीचे था। लैड की सबसे अधिक खपत बैटरी निर्माण में 71 फीसदी होती है। इसके अलावा पिगमेंट व केमिकल्स में 12 फीसदी, शीट व एक्सट्रूजन्स में सात फीसदी, एमुूनिशन में छह फीसदी और अन्य में चार फीसदी की खपत होती है। वहीं विश्व में लैड का उत्पादन सबसे अधिक एशिया में 48 फीसदी होता है। इसके अलावा अमेरिका में 26 फीसदी, यूरोप में 22 फीसदी, ओसियानिया में तीन फीसदी और अफ्रीका में दो फीसदी लैड का उत्पादन किया जाता है। (बिज़नस भास्कर)
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