15 मार्च 2010
रोलर मिल्क पाउडर के धंधे में अच्छी कमाई
दूध की देश में काफी मांग हैं और भारत दूध उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में पहले नंबर पर है। लेकिन तरल दूध को लंबे समय तक भंडारित करके नहीं रखा जा सकता है। इसी कारण दूध को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं, जिसमें दूध को पाउडर बनाने की प्रौद्योगिकी काफी लोकप्रिय है। अधिक समय तक सुरक्षित रखने और कई उत्पादों में उपयोग के कारण दूध पाउडर की देश में काफी मांग है। इसके अलावा दूध को पाउडर के रूप में अधिक समय तक एवं अधिक मात्रा में भंडारित किया जा सकता है। इसका आसानी से परिवहन भी किया जा सकता है। दूध पाउडर बनाने की विधियां दूध का पाउडर आमतौर पर दो प्रकार से तैयार किया जाता है। स्प्रे-ड्राइड प्रक्रिया द्वारा और रोलर ड्राइड प्रक्रिया से दूध का पाउडर तैयार किया जाता है। स्प्रे-ड्राइड प्रक्रिया में काफी भारी निवेश और काफी बड़े स्थान की आवश्यकता होती है। अधिकतर बड़े दूध के संयंत्रों में स्प्रे ड्राइड प्रक्रिया द्वारा ही अतिरिक्त दूध को पाउडर में परिवर्तित किया जाता है और जब तरल दूध की मात्रा कम होती है, तो पाउडर को दूध में बदलकर बाजार में बेचा जाता है। स्प्रे ड्राइड प्रक्रिया से तैयार किया गया दूध पाउडर काफी अच्छी गुणवत्ता वाला होता है, इसीलिए बाजार में बेचे जाने वाले दूध में, बच्चों के दूध पाउडर आदि में स्प्रे ड्राइड प्रक्रिया से तैयार दूध पाउडर ही उपयोग में लाया जाता है। छोटे स्तर पर रोलर ड्राइड प्रक्रिया द्वारा दूध पाउडर तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया से तैयार दूध पाउडर थोड़ा मोटे दानों वाला होता है और इसका उपयोग बेकरी, गुलाब जामुन मिक्स और अन्य पकवानों में होता है। रोलर ड्राइड प्रक्रिया में लागत काफी कम आती है और इसके लिए काफी कम स्थान की आवश्यकता होती है। यहां रोलर प्रक्रिया द्वारा दूध पाउडर तैयार करने की विधि और इसके उत्पादों के बार मंे बताया जा रहा है। रोलर ड्राइड प्रक्रिया स्थापित करने की लागत रोलर ड्राइड प्रक्रिया के लिए दो लोहे के बड़े सलेंडर होतें हैं, जिन्हे बराबर लिटाकर मोटर लगी मशीन पर स्थापित किया जाता हैं। यह रोलर करीब 15 से 19 चक्र प्रति मिनट की गति से घूमता है और इन सिलेंडरों में भाप मौजूद रहती है। रोलर संयंत्र स्थापित करने के लिए आवश्कता के मुताबिक छोटा बॉयलर, दूध को उबालने के लिए बड़ी कड़ाही, स्टील पाइप, मिल्क पंप, रोलर को घूमाने के लिए मोटर और पैकिंग सामग्री की जरूरत होती है। उत्तर प्रदेश में स्थित मिल्क टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके कामरान सिद्दीकी ने हमें बताया कि 1,000 लीटर की क्षमता वाले बॉयलर का खर्च करीब 8 लाख रुपये आता है, इसमें रोलर से जुड़ी सभी पाइप भी शामिल हैं, इसके अलावा रोलर ड्रम पर करीब 2 लाख रुपये का खर्च आता है और इन्हे कास्ट आइरन से तैयार किया जाता है। सिद्दिकी का कहना है कि पानी की टंकी कम से कम 10,000 लीटर क्षमता की होनी चाहिए, क्योंकि दूध के काम में साफ-सफाई बेहद महत्वपूर्ण होती है। पंप, मोटर को मिलाकर रोलर ड्राइड दूध पाउडर के संयंत्र पर कुल लागत करीब 15 लाख रुपये तक आती है। सिद्दीकी का कहना है कि उनकी कंपनी रोलर ड्राइड पाउडर तैयार करने के साथ ही उसके उत्पाद जैसे गुलाबजामुन मिक्स, बिस्कुट आदि भी तैयार करती है। रोलर ड्रम से दूध पाउडर बनाने की प्रक्रिया आमतौर पर क्रीम निकाले गए दूध यानि स्किम्ड (सप्रेटा) दूध से पाउडर तैयार किया जाता है। प्रक्रिया में सबसे पहले दूध को उबालकर गाढ़ा कर लेते हैं। इसके बाद सिलेंडर में भाप छोड़कर इनका तापमान करीब 150 डिग्री सेंटीग्रेड तक लाया जाता है। दोनों सिलेंडर विपरीत दिशाओं में घूमते रहते हैं और इन पर बूंद-बूंद करके दूध टपकाया जाता है। ड्रम के गर्म होने के कारण दूध में मौजूद पानी तुरंत भाप बनकर उड़ जाता है और सूखा पाउडर ड्रम पर चिपक जाता है। (बिज़नस भास्कर)
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