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11 मार्च 2010

वनस्पति तेल के उत्पादन में पिछले 3 साल में 10 प्रतिशत की कमी

मुंबई March 11, 2010
भारत में पिछले 3 साल में वनस्पति तेल के उत्पादन में 10 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है।
इसकी प्रमुख वजह है कि किसानों ने तिलहन की बुआई का क्षेत्रफल कम कर दिया है। इस दौरान किसानों ने अधिक फायदे की उम्मीद से गेहूं, गन्ने और दलहन की खेती करने को प्राथमिकता दी है।
लंदन की गोदरेज इंटरनैशनल लिमिटेड के निदेशक दोराब मिस्त्री द्वारा क्वालालमपुर में पेश एक शोध में कहा गया है कि भारत में वनस्पति तेल का उत्पादन 2009-10 में 64 लाख टन रहा, जो 2008-09 और 2007-08 में हुए उत्पादन, 67 लाख टन और 71 लाख टन से कम है। इसके लिए दोराब मिस्त्री ने दक्षिण पश्चिमी मॉनसून को जिम्मेदार बताया है।
इसके चलते खरीफ की फसल में मूंगफली, सोयाबीन और राइस ब्रान के उत्पादन पर बहुत बुरा असर पड़ा है। मिस्त्री ने कहा, 'यह भी स्पष्ट है कि भारतीय कृषि इस समय स्थायित्व के दौर से गुजर रही है क्योंकि सरकार मूल रूप से इस मामले में सिध्दांतों के बगैर चल रही है।
भारत क्रमवार ढंग से हर खाद्यान्न के मामले में आयातक बनता जा रहा है और देश की ग्रामीण आबादी या तो और गरीब होती जा रही है, या ज्यादातर मामलों में शहरों की ओर विस्थापन हो रहा है। हाल ही में बीटी बैगन पर हुई गरमागरम बहस और उसके बाद सरकार के फैसले से मुझे निराशा हुई है।'
इस उद्योग के संगठन सेंट्रल आर्गेनाइजेशन फार ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड के चेयरमैन सत्यनारायण अग्रवाल ने कहा कि घरेलू उत्पादन में कमी के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। सीमा शुल्क में कमी (वर्तमान में कच्चे तेल के आयात पर सीमा शुल्क शून्य और रिफाइंड तेल के आयात पर 7.5 प्रतिशत है) की वजह से आयात सस्ता हो गया है।
भारत के रिफाइनर घरेलू स्रोतों से तिलहन खरीदने के बजाय सस्ती दर पर आयात करते हैं और घरेलू बाजार में रिफाइंड ऑयल बेचते हैं। कारोबारी रिफाइंड तेल की खरीद को ज्यादा प्रोत्साहन दे रहे हैं। इस साल 2009-10 के अंत में पेराई की गतिविधि नकारात्मक रही। किसान अपने उत्पाद घरेलू रिफाइनरीज को बेचना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें उत्पादन लागत से भी कम भाव मिल रहे हैं।
उदाहरण के लिए सोयाबीन की कीमतें इस समय 20 रुपये किलो चल रही हैं, जबकि उन्हें 24-25 रुपये प्रति किलो से कम भाव पर अपना माल बेचने से कोई फायदा नहीं है। भारत में अगले सत्र के लिए बड़े पैमाने पर कच्चा माल बचेगा। स्थानीय तेल, जैसे सरसों के तेल और आरबीडी पामोलीन जैसे आयातित तेल के बीच का अंतर निश्चित रूप से कम होगा, अगर घरेलू तेल की खपत में बढ़ोतरी होती है।
देश में किसान अन्य लाभकारी फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिसके चलते देश में तिलहन का उत्पादन कम हो रहा है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक 26 फरवरी, 2010 को तिलहन की बुआई का क्षेत्रफल 97.27 लाख हेक्टेयर रहा, जबकि पिछले साल समान अवधि में 95.73 लाख हेक्टेयर में तिलहन की बुआई हुई थी।
पिछले तीन साल के दौरान वनस्पति तेल की खपत में 18.55 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और यह 2007-08 के 129.9 लाख टन की तुलना में 2009-10 में 154 लाख टन हो गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के चलते गांव के गरीब लोगों की आमदनी सुनिश्चित हुई है।
आमदनी बढ़ने की वजह से खपत में भी बढ़ोतरी हुई है और इसके चलते वनस्पति तेल की मांग में और तेजी आई है। इस समय प्रति व्यक्ति तेल की खपत बढ़कर 13.11 किलो हो गई है, जबकि तीन साल पहले यह 11.40 किलोग्राम थी।
तीन सालों में वनस्पति तेल के आंकड़े
वर्ष उत्पादन खपत2009-10* 64।1 154.02008-09 66.8 149.22007-08 71.5 129.9*अनुमानित (लाख टन में) (बीएस हिंदी)

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