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09 मार्च 2010

कृषि कंपनियां भी अधिग्रहण की राह पर

मुंबई March 09, 2010
कच्चेमाल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए धातु और बुनियादी क्षेत्र की कंपनियां जिस तरह से संसाधनों का अधिग्रहण कर रही हैं वैसा ही नजारा अब कृषि उत्पादों से जुड़ी कंपनियों के मामले में भी देखने को मिल रहा है।
श्री रेणुका शुगर्स ने ब्राजील की सबसे बड़ी चीनी कंपनियों में से एक इक्विपाव में नियंत्रक हिस्सेदारी हासिल की है। माना जा रहा है कि दो और कंपनियां ब्राजील में इसी तरह के अधिग्रहण की योजना बना रही हैं। कुछ भारतीय कंपनियों ने इंडोनेशिया और मलेशिया में पाम तेल के लिए पाम खेतों का अधिग्रहण किया है। कृषि फार्म बनाने के मामले में इथियोपिया अगला केंद्र है।
ब्राजील की कंपनी इक्विपाव काफी विशाखित है। कंपनी के पास चीनी और एथनॉल उत्पादन की मिलों के साथ करीब 1,15,000 हेक्टेयर भूभाग में फैले गन्ने के खेत भी हैं जहां से कंपनी को जरूरत का दो-तिहाई गन्ना प्राप्त हो जाता है। यहां गन्ने की खेती और कटाई दोनों के लिए उच्च तकनीकों का इस्तेमाल होता है।
भारत में चीनी सबसे ज्यादा राजनीतिक रूप से प्रभावित व्यवसाय है। गन्ने और चीनी की आपूर्ति और कीमतें काफी अस्थिर हैं। ऐसे में चीनी कंपनियां आपूर्ति संबंधी जोखिम कम कर रही हैं। श्री रेणुका और बलरामपुर चीनी जैसी कुछ कंपनियां बंदरगाहों के निकट परिशोधन इकाइयां लगा रही हैं। आने वाले दिनों में चीनी उद्योग में एकीकरण और कॉरपोरेट विकास देखने को मिल सकता है।
फिलहाल उद्योग की महज 10-15 फीसदी परिशोधन क्षमता कॉरपोरेट क्षेत्र के पास है। देश के दो सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश सहकारी चीनी मिलों को निजी हाथों बेच रही हैं।
सिंगापुर के प्रमुख एफआईआई की भारतीय शाखा किम ईएनजी सिक्योरिटीज इंडिया के प्रमुख जिगर शाह ने बताया, 'जोखिम कम करने की रणनीति के तहत चीनी कंपनियां गन्ने की खेती और परिशोधन के लिए वैसे इलाकों का भी अधिग्रहण करेंगी जहां फिलहाल गन्ने की खेती नहीं होती है।'
मौजूदा समय में व्यवसाय को जोखिम से सुरक्षा देना जरूरत बन गई है। जिगर के मुताबिक, 'कच्चेमाल की लागतों में 67 फीसदी हिस्सा गन्ना हासिल करने के लिए चुकाना पड़ता है। गन्ने की घटती-बढ़ती कीमतों के बीच आपूर्ति सुनिश्चित करना चीनी कंपनियों के लिए सबसे बड़ा उद्देश्य है।'
अर्न्स्ट ऐंड यंग में रिटेल ऐंड कंज्यूमर प्रोडक्ट प्रैक्टिस के सहायक निदेशक संजेश ठाकुर का कहना है, 'गन्ने की किल्लत की वजह से आपूर्ति प्रबंधन पर कंपनियां का जोर बढ़ रहा है। चीनी उद्योग में कंपनियों की तरफ से बंदरगाहों के निकट परिशोधन इकाइयां बिठाए जाने का नया चलन देखने को मिल रहा है।
कंपनियां गन्ने के लिए किसानों पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रही हैं। बंदागाहों के नजदीक परिशोधन केंद्रों से चीनी की किल्लत के समय आयातित कच्ची चीनी के परिशोधन में मदद मिलेगी और माल ढुलाई की लागत भी कम होगी।'
कच्चेमाल की आपूर्ति सुनिश्चित करने की यह कोशिश सिर्फ चीनी कंपनियों तक ही सीमित नहीं है। कृषि उत्पादों से जुड़ी कई कंपनियां इस दौड़ में शामिल हो चुकी हैं। संजेश के मुताबिक, 'चीनी के अलावा एफएमसीजी सेक्टर में विकास के साथ-साथ खाद्य तेल और डेयरी कंपनियां आपूर्ति सुनिचित करने के लिए साधन व्यवस्था मजबूत कर रही हैं।'
मसलन रुचि सोया और के एस ऑयल ने इंडोनेशिया और मलेशिया में पाम पेड़ों के फार्म हासिल किए हैं। कई और कंपनियां भी इस तरह के मौके तलाश रही हैं। देश की सबसे बड़ी गुलाब निर्यातक कंपनी करुतुरी ग्लोबल ने इथोपिया में 8,40,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है। यहां कंपनी शुरुआत में कुछ अनाज जैसे मक्का, गेहूं और चावल, सब्जियों की खेती करेगी।
साथ ही यहां पाम तेल कर उत्पादन भी किया जाएगा। बाद में यहां गन्ने की खेती की जाएगी। डेयरी आमतौर पर सहकारी संस्थाओं से दूध इकठ्ठा करती हैं, लेकिन इन पर निर्भरता कम करने के लिए उत्तर भारत की एक डेयरी गांव के पंचायतों से सीधे ग्वालों से दूध हासिल करने के लिए बात कर रही है।
कृषि उत्पादों के लिए पकड़ी विदेश की राह
श्री रेणुका शुगर्स के बाद कुछ और चीनी कंपनियां ब्राजील में तलाश रही हैं अधिग्रहण के मौके रुचि सोया और के एस ऑयल मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम के फार्म कर रही हैं हासिलकरुतुरी ग्लोबल ने इथियोपिया में 8,40,000 एकड़ भूमि का किया है अधिग्रहणडेयरी ग्वालों से दूध हासिल करने को गांव के पंचायतों से कर रही हैं बातचीत (बीएस हिंदी)

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